अल्लाह का फरमान पूरा करने पर मिलेगा ईद का ईनाम
गोरखपुर। माह-ए-रमज़ान के दूसरे अशरे में रोजेदार सुबह से ही इबादत व क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत शुरु कर रहे हैं, जिसका सिलसिला देर रात तक जारी रह रहा है।
फ़र्ज़, वाजिब व सुन्नत नमाज़ों के अलावा तहज्जुद, इशराक, चाश्त, अव्वाबीन, सलातुल तस्बीह आदि नफ्ल नमाज़ें भी खूब पढ़ी जा रही हैं। सभी के सिरों पर टोपी व हाथों में तस्बीह नज़र आ रही है। मिस्वाक, खजूर व इत्र का खूब इस्तेमाल हो रहा है। रोजेदार दिन में रोज़ा रखकर व रात में तरावीह की नमाज़ पढ़कर अल्लाह का फरमान पूरा कर रहे हैं। अल्लाह का फरमान पूरा करने के बदले में रोजेदारों को ईद का ईनाम मिलेगा। बुधवार को 16वां रोज़ा अल्लाह की हम्दो सना में बीता। करीब 13 घंटा 43 मिनट का लंबा रोज़ा रोजेदारों के सब्र का इम्तिहान ले रहा है।
वहीं गौसे आजम फाउंडेशन के समीर अली, मो. अमन, मो. फ़ैज़, मो. जैद, अली गज़नफर शाह, जैद चिंटू, रियाज़ अहमद, अमान अहमद, मो. वसीम, मो. शारिक, सैफ हाशमी, अहसन खान जरूरतमंद परिवारों में रमज़ान राशन किट बांट कर नेकी कमा रहे हैं।बाजार में रौनक बढ़ गई है। ईद की खरीदारी शुरू हो चुकी है। सेवईयों की बिक्री भी जोर पकड़ चुकी है।
रोज़ा रखने से गुनाह माफ़ होते हैं : मुफ्ती अख्तर
मुफ्ती-ए-शहर अख्तर हुसैन मन्नानी ने कहा कि भूखे-प्यासे रहकर इबादत में खो जाने वाले रोजेदार बंदे खुद को अल्लाह के नजदीक पाते हैं और आम दिनों के मुकाबले रमज़ान में इस क़ुर्बत (करीबी) के एहसास की शिद्दत बिल्कुल अलग होती है, जो आमतौर पर बाकी के महीनों में नहीं होती है। रमज़ान की फज़ीलतों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है, मगर उसका बुनियादी सबक यह है कि हम सभी उस दर्द को समझें जिससे दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा रोजाना दो-चार होता है। जब हमें खुद भूख लगती है तभी हमें गरीबों की भूख का एहसास हो सकता है। रमज़ान के महीने में ही कुरआन-ए-पाक दुनिया में उतरा था, लिहाजा इस महीने में तरावीह के रूप में कुरआन-ए-पाक सुनना बेहद सवाब का काम है। रमज़ान का महीना हममें इतना तक़वा (परहेजगारी) पैदा कर सकता है कि सिर्फ रमज़ान ही में नहीं बल्कि उसके बाद भी ग्यारह महीनों की ज़िन्दगी भी सही राह पर चल सके। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मशहूर फरमान है कि जिसने ईमान के साथ सवाब की नियत से यानी खालिस अल्लाह की खुशनूदी हासिल करने के लिए रोज़ा रखा उसके पिछले तमाम गुनाह माफ़ फरमा दिए जाते हैं।
इबादत करने से गुनाह माफ होते हैं : मौलाना जहांगीर
सुब्हानिया जामा मस्जिद तकिया कवलदह के इमाम मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने बताया कि जिसने ईमान के साथ सवाब की नियत से यानी रिया, शोहरत और दिखावे के लिए नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ अल्लाह की खुशनूदी के लिए रात में इबादत के लिए खड़ा हुआ यानी नमाज़े तरावीह और तहज्जुद पढ़ी तो उसके पिछले तमाम गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं। एक और हदीस में है कि जो शख़्स शबे कद्र (21, 23, 25, 27, 29 रमज़ान की रात) में ईमान के साथ और सवाब की नियत से इबादत के लिए खड़ा हुआ यानी नमाज़े तरावीह और तहज्जुद पढ़ी, क़ुरआन की तिलावत की और अल्लाह का ज़िक्र किया तो उसके पिछले तमाम गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं।
पूरे मोहल्ले से कोई भी एतिकाफ़ में नहीं बैठा तो सब गुनाहगार : उलमा किराम
उलमा-ए-अहले सुन्नत द्वारा जारी रमज़ान हेल्पलाइन नंबरों पर बुधवार को सवाल-जवाब का सिलसिला जारी रहा। लोगों ने नमाज़, रोज़ा, जकात, फित्रा आदि के बारे में सवाल किए। उलमा किराम ने क़ुरआन व हदीस की रोशनी में जवाब दिया।
1. सवाल : अगर पूरे मोहल्ले से कोई भी एतिकाफ़ में नहीं बैठा तो क्या सब गुनहगार होंगे? (अकमल, तकिया कवलदह)
जवाब : हां। एतिकाफ़ करना सुन्नत अलल किफाया है अगर पूरे मोहल्ले से कोई भी एतिकाफ़ में नहीं बैठा तो सब गुनहगार होंगे। (मुफ्ती अख्तर हुसैन)
2. सवाल : क्या दौराने एतिकाफ़ मोबाइल का इस्तेमाल किया जा सकता है? (सैफ, तुर्कमानपुर)
जवाब : हां, ज़रूरत की बिना पर इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन मस्जिद के आदाब और दूसरे नमाज़ियों के हुक़ूक़ का ख़्याल रखते हुए। (मौलाना मोहम्मद अहमद)
3. सवाल : बगैर वुज़ू के अज़ान देना कैसा? (आसिफ, जमुनहिया बाग)
जवाब : ऐसा करना मकरूह है लेकिन अज़ान अदा हो जाएगी। (मुफ्ती मेराज)
4. सवाल : क्या सगी खाला (मां की बहन) को ज़कात दे सकते हैं? (अब्दुल, अलीनगर)
जवाब : अगर खाला जकात की मुस्तहिक है तो उन्हें ज़कात दे सकते हैं। (मुफ्ती अजहर)
Mar 30 2024, 11:29