समाजशास्त्र विभाग में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ उद्घाटन
गोरखपुर: दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग द्वारा आईसीएसएसआर, नई दिल्ली के सहयोग से ह्यबेसिक इंडियन सोशल इंस्टीट्यूशन: कंटीन्यूटी एंड चेंजह्ण विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र का आयोजन हुआ। उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने किया। मुख्य अतिथि के रूप में लखनऊ विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. राजेश मिश्रा एवं मुख्य वक्ता भारतीय समाजशास्त्र परिषद् की महासचिव प्रो. श्वेता प्रसाद रहीं।
समाजशास्त्र है लोकप्रिय विषय, विद्यार्थियों में हैं बड़ी संभावनाएँ: कुलपति प्रो. पूनम टंडन कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. पूनम टण्डन ने कहा कि समाजशास्त्र एक लोकप्रिय विषय है, जिसके विद्यार्थियों में बड़ी संभावनाएँ हैं। समाजशास्त्र विषय आॅनलाइन कोर्सेज में भी बहुत लोकप्रिय है। भारतीय सामाजिक संस्थाओं में हो रहे परिवर्तन पर केंद्रित इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का सार्थक निष्कर्ष निकलेगा।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि प्रो. राजेश मिश्रा ने कहा कि किसी भी राष्ट्र का चरित्र मध्य वर्ग की विशेषताओं से जाना जा सकता है। मध्य वर्ग को केंद्रित करके अध्ययन होगा तो समाज में परिवर्तन समझ में आएगा। भारत में परंपरा और आधुनिकता का अंतरसंबंध है, यहाँ न केवल परंपराओं का आधुनिकीकरण हो रहा और बल्कि आधुनिकता का भी परम्परागतकरण हुआ है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि भारत की डेमोक्रेसी को जाति ने मजबूत किया है। जाति एक दबाव समूह के रूप में नीतियों को प्रभावित करती है। भारत में जाति एक सामुदायिक विशेषता के रूप में अपने कदम जमाए हुए हैं।
मुख्य वक्ता भारतीय समाजशास्त्र परिषद् की महासचिव प्रो. श्वेता प्रसाद ने आधारभूत भारतीय सामाजिक संस्थाओं की वर्तमान स्थिति एवं भविष्य की संभावनाओं का रेखांकन करते हुए परिवार, जाति, विवाह, धर्म जैसी संस्थाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला।
कार्यक्रम में अतिथियों का परिचय तथा स्वागत विभागाध्यक्ष प्रो. अनुराग द्विवेदी ने किया।राष्ट्रीय संगोष्ठी की संयोजक तथा आयोजन सचिव प्रो. सुभी धुसिया ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि सामाजिक संस्थाएँ किसी भी समाज की पहचान है और समाज के स्थायित्व का आधार है। भारतीय सामाजिक संस्थाएँ अपनी मौलिकता की वजह से वैश्विक स्तर पर विशिष्ट रखती है। परिवर्तन एक बहुआयामी प्रक्रिया है, इस संदर्भ से भारतीय सामाजिक संस्थाओं में परिवर्तन भी बहुआयामी स्वरूप लिए हुए है।
कार्यक्रम का संचालन दीपेन्द्र मोहन सिंह तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. पवन कुमार ने किया। इस अवसर पर अधिष्ठाता कला संकाय प्रो. कीर्ति पांडेय, प्रो. संगीता पांडेय, डा. मनीष कुमार पांडेय, श्री प्रकाश प्रियदर्शी सहित भारत के आधा दर्जन से अधिक राज्यों के विभिन्न विश्वविद्यालय महाविद्यालयों से शिक्षक, शोधार्थी तथा बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
चार सत्रों में 80 से अधिक प्रतिभागियों ने किया प्रस्तुतीकरण
दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम दिन आयोजित कुल 04 तकनीकी सत्रों में 80 से अधिक प्रतिभागियों ने आधारभूत सामाजिक संस्थाओं से संबंधित विभिन्न विषयों पर शोध पत्रों का प्रस्तुतीकरण किया। साथ ही राष्ट्रीय संगोष्ठी में सिंपोजियम सत्र का भी आयोजन किया गया, जिसमें लखनऊ विश्वविद्यालय के डॉ. प्रमोद गुप्ता, राजस्थान से डॉ. अरविंद महाला, समाजसेवी मुमताज खान उपस्थित रहे। सिंपोजियम सत्र की अध्यक्षता इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो. चंद्रभूषण गुप्ता अंकुर ने किया।
Mar 20 2024, 16:33