*मकर संक्रांति पर्व का जाने वैज्ञानिक अर्थ: खगोल विद, खगोल विज्ञान एजुकेटर अमरपाल सिंह की जुबानी*
गोरखपुर। मकर संक्रांति के पीछे का विज्ञान पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन के कारण हम दिन व रात का अनुभव करते हैं, लेकिन ये दिन व रात सम्पूर्ण पृथ्वी पर सब जगह एक जैसा नहीं होता है। जितनी सूर्य की किरणें पृथ्वी के जिस भाग पर पड़ रही होती हैं, उसी हिसाब से दिन तय होता है। जैसे पृथ्वी को दो गोलार्धों में बांटा गया है।
एक उत्तरी गोलार्ध व दूसरा दक्षिणी गोलार्ध जिनमें जिस पर पड़ने वाली सूर्य की किरणें प्रथ्वी पर दिन तय करती हैं और इसका अपने अक्ष पर 23.5 अंश झुके होने के कारण दोनो गोलार्धों में मौसम भी अलग अलग होता है। अगर हम बात करें उत्तरायण व दक्षिणायन की तो हम पाते हैं कि यह एक खगोलीय घटना है। 14/15 जनवरी के बाद सूर्य उत्तर दिशा की ओर अग्रसर या जाता हुआ होता है, जिसमें सूर्य दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश ( दक्षिण से उत्तर की ओर गमन प्रतीत ) करता है। इसे उत्तरायण या सूर्य उत्तर की ओर के नाम से भी जाना जाता है।
वैज्ञानिकता के आधार पर इस घटना के पीछे का मुख्य कारण है पृथ्वी का छः महीनों के समय अवधि के उपरांत उत्तर से दक्षिण की ओर बलन करना, जो कि एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो लोग उत्तरी गोलार्ध में रहते हैं। उनके लिए सूर्य की इस राशि परिवर्तन के कारण 14/15 जनवरी का दिन मकर संक्रांति के तौर पर मनाते हैं, और उत्तरी गोलार्ध में निवास करने वाले व्यक्तियों द्वारा ही समय के साथ धीरे धीरे मकर मण्डल के आधार पर ही मकर संक्रांति की संज्ञा अस्तित्व में आई है।
मकर संक्रांति का अर्थ है सूर्य का क्रांतिवृत्त के दक्षिणायनांत या उत्तरायनारंभ बिंदु पर पहुंचना, प्राचीन काल से सूर्य मकर मण्डल में प्रवेश करके जब क्रांतिवृत्त के सबसे दक्षिणी छोर से इस दक्षिणायनांत या उत्तरायनारंभ बिंदु पर पहुंचता था, तब वह दिन ( 21 या 22 दिसंबर) सबसे छोटा होता था, मगर अब सूर्य जनवरी के मध्य में मकर मण्डल में प्रवेश करता है, वजह यह है कि अयन चलन के कारण दक्षिणायनांत (या उत्तरायनारंभ) बिंदु अब पश्चिम की ओर के धनु मण्डल में सरक गया है, अब बास्तबिक मकर संक्रांति (दक्षिणायनांत या उत्तरायनारंभ बिंदु) का आकाश के मकर मण्डल से कोई लेना देना नहीं रह गया है।
Jan 14 2024, 19:18