बिना चीरे और टांके के होने वाली पुरूष नसबंदी 99.5 फीसदी प्रभावी है: डा. एके चौधरी
गोरखपुर।परिवार नियोजन में पुरूष नसबंदी की भागीदारी के स्थायी साधन का चुनाव उच्च रक्तचाप (बीपी) और शुगर (मधुमेह) के मरीज भी कर सकते हैं । चिकित्सक की सलाह पर उन्हें भी यह सेवा दी जाती है और सामान्य लोगों की तरह वह भी खुशहाल जीवन जी सकते हैं । कई ऐसे लाभार्थी भी हैं जिन्होंने इन बीमारियों के साथ सेवा का चुनाव किया और नसबंदी सफल रही ।तमाम बाधाओं के बावजूद भी गोरखपुर मंडल में पिछले साढ़े तीन वर्षों में 554 पुरूषों ने इस साधन का चुनाव किया है ।
गोरखपुर जनपद के अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी आरसीएच डॉ एके चौधरी का कहना है कि बिना चीरे और टांके के होने वाली पुरूष नसबंदी 99.5 फीसदी प्रभावी है लेकिन कई भ्रांतियों के कारण भी पुरूष इससे बचते रहे हैं ।
डॉ चौधरी का कहना है कि स्वास्थ्य इकाइयों पर परामर्श के दौरान पुरूष नसबंदी के योग्य कई लाभार्थी इस कारण से भी मना करते हैं कि उन्हें उच्च रक्तचाप, शुगर या बढ़े हुए कोलेस्ट्राल की समस्या है । उन्हें इस भ्रांति के प्रति जागरूक किया जाता है और बताया जाता है कि नसबंदी की सेवा चिकित्सक की सलाह पर ही दी जाती है । इन बीमारियों के साथ भी चिकित्सक की निगरानी में सेवा अपनाई जा सकती है ।
गोरखपुर जिले के पिपराइच सीएचसी पर स्वास्थ्यकर्मी दिलीप (45) के मन में भी यह भ्रांति थी कि मधुमेह और रक्तचाप की बीमारी के साथ वह नसबंदी नहीं करा सकते । खून की कमी से पत्नी की तबीयत अक्सर खराब रहती थी, इसलिए पत्नी की नसबंदी से चिकित्सकों ने पहले ही मना कर दिया था । दिलीप बताते हैं कि उनकी शादी सोलह वर्ष पहले हुई थी । एनीमिया के कारण गर्भावस्था की जटिलताओं से उनके कई बच्चे पत्नी की गर्भ में ही नुकसान हो गये । उनकी पांच साल की केवल एक बच्ची ही बच पाई । डेढ़ साल पहले पत्नी की तबीयत काफी खराब हो गई और उनका हीमोग्लोबिन पांच तक आ गया था । बार बार गर्भपात के कारण पत्नी सीवियर एनीमिया की श्रेणी में चली गयी थीं। परिवार नियोजन का कोई साधन न अपनाना भी इसका प्रमुख कारण रहा । दिलीप कहते हैं कि सीएचसी के चिकित्सा अधीक्षक डॉ मणि शेखर, फार्माशिस्ट सुरेश यादव, बीपी सिंह और परिवार नियोजन काउंसलर रीना ने उन्हें पुरूष नसबंदी अपनाने की सलाह दी ।
दिलीप नसबंदी करवाने के लिए तो तैयार हो गये लेकिन उन्हें और उनकी पत्नी को डर था कि कहीं बीपी और शुगर के कारण दिक्कत न बढ़ जाए। उन्हें चीफ फार्माशिस्ट सुरेश ने समझाया कि नसबंदी से पहले बीपी और शुगर की जांच की जाएगी और जब चिकित्सक सलाह देंगे तभी नसबंदी होगी । दिलीप ने बताया कि सहकर्मियों के समझाने के बाद नसबंदी का निर्णय लिया और इसी साल जुलाई माह में नसबंदी करवा लिया । डॉक्टर की सलाह के अनुसार चार दिन दवाई ली और इस बीच अपनी नौकरी भी करते रहे । अब वह पूरी तरह से स्वस्थ हैं ।
छोटी सी प्रक्रिया है
डॉ एके चौधरी ने बताया कि पुरूष नसबंदी में शुक्राणुवाहक नलिकाओं को बांध दिया जाता है । यह एक छोटी सी प्रक्रिया है जिसके बाद यौन इच्छा या क्षमता पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता है। इस सेवा के लिए उन्हीं पुरूषों का चयन किया जाता है जो विवाहित हों और उनकी आयु 60 वर्ष या इससे कम हो । दंपति के पास कम से कम एक बच्चा हो जिसकी उम्र एक साल की हो चुकी हो । बीपी, शुगर, कोलेस्ट्राल जैसी बीमारियों के साथ चिकित्सक की निगरानी में इस सेवा को अपना सकते हैं ।
बढ़ानी होगी रूचि
मंडलीय परिवार नियोजन लॉजिस्टिक मैनेजर अवनीश चंद्र ने बताया कि इस सेवा के प्रति पुरूषों की रूचि बढ़ाने के लिए प्रयास हो रहे हैं । गोरखपुर मंडल में वर्ष 2020-21 में 105 पुरूषों ने, 2021-22 में 202 पुरूषों ने, 2022-23 में 139 पुरूषों ने और इस वित्तीय वर्ष में अक्टूबर माह तक 108 पुरूषों ने इस सेवा का चुनाव किया है । इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश टेक्निकल सपोर्ट यूनिट (यूपीटीएसयू) मंडल के सभी जिलों में सहयोग कर रही है ।
मिथकों से ऊपर उठना होगा
एडी हेल्थ गोरखपुर मंडल डॉ आईबी विश्वकर्मा का कहना है कि केवल वही पुरूष नसबंदी नहीं करवा सकते हैं जिन्हें यौन रोग जैसे एचआईवी, सिफलिस आदि हो या जो अति गंभीर बीमारी जैसे ह्रदय रोग, कैंसर आदि से ग्रसित हों। यौन संक्रमण रोगी पुरूष भी ठीक होने के बाद इस सेवा को चुन सकते हैं । पुरूष नसबंदी सुरक्षित है और अगर कोई दिक्कत होती है तो चिकित्सकीय सहायता सदैव उपलब्ध रहती है।
ऑपरेशन के कुछ घंटों बाद जननांगों में सूजन, तीन दिन के भीतर बुखार और घाव के आसपास दर्द, जलन, पकने या खून आने की दिक्कत हो तो तुरंत चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए। पुरूष नसबंदी के तीन माह तक दंपति को अस्थायी साधन का इस्तेमाल करना होता है और जब शुक्राणु जांच हो जाए तभी नसबंदी को सफल माना जाता है ।
Nov 21 2023, 17:34