युवा संगठन एआईडीवाईओ व एआईडीएसओ के संयुक्त तत्वाधान में बिरसा मुंडा के प्रतिमा पर माल्यार्पण व श्रद्धा सुमन अर्पित की गई


सरायकेला : वीर बिरसा मुंडा जयंती के अवसर पर बुधवार को चांडिल ब्लॉक स्थित बिरसा मुंडा के प्रतिमा पर युवा संगठन एआईडीवाईओ व एआईडीएसओ के संयुक्त तत्वाधान में बिरसा मुंडा के प्रतिमा पर माल्यार्पण व श्रद्धा सुमन अर्पित की गई। 

समाज में जरूरत है बिरसा मुंडा के अधूरे सपनों को साकार करने का आज भी जो चल रहा कुसंस्कार, अंधविश्वास नशाखोरी, विस्थापन, बेरोजगारी भुखमरी इन सभी के खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत है और उनके आदर्श व उनके विचारों को आत्मसात करने की जरूरत है।

 कार्यक्रम में युवा संगठन के हाराधन महतो, उदय तंतुवाई एंव छात्र संगठन के विशेश्वर महतो, प्रभात कुमार महतो, युधिष्ठिर प्रमाणिक, राजा प्रमाणिक व छात्र- युवा उपस्थित थे।

आजाद परिंदे शैक्षणिक संस्थान ने मनाई भगवान बिरसा मुंडा जयंती व झारखंड स्थापना दिवस


सरायकेला : नीमड़ीह प्रखंड अंतर्गत झिमड़ी गांव में आजाद परिंदे शैक्षणिक संस्थान की ओर से झिमड़ी स्थित पंचायत भवन में भगवान बिरसा मुंडा के 149वे जन्म दिवस तथा 23वे झारखण्ड स्थापना दिवस भी मनाया गया। इस अवसर पर ' धरती आबा' भगवान बिरसा मुंडा का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनकी त्याग व बलिदान की याद किया गया।

जल-जगंल-जमीन एवं आदिवासी सभ्यता व संस्कृति की रक्षा के लिए अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध आवाज बुलंद करने वाले महान आदिवासी नेता एवं लोकनायक थे। इस अवसर पर "झारखंड से संबंधित सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता" का भी आयोजन किया गया था। 

जिसमे प्रथम दस विजेताओं को पुरस्कृत किया गया तथा सभी प्रतिभागियों को सांत्वना पुरस्कार दिया गया। जिसमे प्रथम स्थान संदीप महतो, द्वितीय स्थान राजू महतो तथा तीसरा स्थान चंद्रावली महतो ने हासिल किया। 

इस अवसर पर चिरंजीत महतो, चंदन कुमार महतो, गोविंद महतो, बबलू महतो, हेमंत महतो, सुवर्णा महतो, शशधर महतो, विद्याचरण, साधन महतो, अंगद महतो आदि मौजूद थे।

विधायक सविता महतो ने बिरसा मुंडा को माल्यार्पण कर किया नमन, दिया श्रद्धांजलि


सरायकेला : चांडिल अनुमंडल क्षेत्र में बुधवार को राज्य की स्थापना दिवस सह बिरसा मुंडा जयंती धूमधाम के साथ मनाया गया। स्थापना दिवस के मौके पर डोबो, भादुडीह, हुमीद, बड़ालाखा, बिहार स्पोंज आयरन, काटीया, ब्लॉक मैदान एवं छोटालाखा में माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित किया। 

इस दौरान काटीया स्टेडियम में खेल कूद प्रतियोगिता व हुमीद में फुटबॉल प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसमे विधायक शामिल होकर खिलाड़ियों का हौसला अफजाई किया। स्थापना दिवस के अवसर पर विधायक सविता महतो ने काटीया व हुमीद स्थित भगवान बिरसा मुंडा के मूर्ति पर माल्यार्पण कर बिरसा मुंडा को नमन किया। 

बिरसा मुंडा को नमन करते हुए उन्होंने कहा कि भगवान बिरसा के दिखाए हुए राहों पर हम सभी को चलने की आवश्यकता है। देश के आजादी के लिए बिरसा मुंडा काफी संघर्ष किए थे। आज के दिन ही भगवान बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था और आज के दिन ही झारखंड अलग राज्य बना था। 

मौके पर जिला परिषद सदस्य पिंकी लायेक, प्रखंड विकास पदाधिकारी तालेश्वर रविदास, पूर्व जिप सदस्य ओमप्रकाश लायेक, केंद्रीय सदस्य काबलु महतो, मुखिया सुबोधीनी माहली, प्रखंड अध्यक्ष कृष्णा किशोर महतो, समर भुईया आदि झामुमो कार्यकर्ता उपस्थित थे।

भगवान बिरसा मुंडा जयंती के साथ झारखंड स्थापना दिवस धूमधाम से मनाया गया


सरायकेला : कोल्हान के चांडिल अनुमंडल क्षेत्र के विभिन्न जगह में धरती आवा भगवान बिरसा मुंडा के जयंती साथ झारखंड स्थापना दिवस पर दलमा बुरू बौगा के मैदान में धूमधाम से मनाया गया । 

इस अवसर पर कांग्रेस कमेटी सरायकेला खरसावां के वरीय उपाध्यक्ष जिपालाल सिंह मुंडा इंटक के चांडिल प्रखण्ड अध्यक्ष गुरुचरण कर्मकार चांडिल पूर्वी मंडल अध्यक्ष संजय लोहरा गुनाधर सिंह मुंडा सुखदेव कर्मकार दिलीप सिंह आदि उपस्थित एवं कांग्रेस कमेटी सरायकेला खरसावां के जिला सचिव राजु चौधरी को अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया गया ।

नीमडीह: धूमधाम से मनाई गई चित्रगुप्त की पूजा, वैदिक मंत्रोच्चार के बीच कलम, दवात, कॉपी एवं पुस्तक की हुई पूजा


सरायकेला : जिला के नीमडीह प्रखण्ड स्थित रघुनाथपुर निवासी वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सिन्हा ने बताया कि कायस्थ समाज के लोगों ने श्री चित्रगुप्त महाराज की पूजा-अर्चना की इस अवसर पर कई स्थानों पर प्रतिमाएं स्थापित कर बड़े धूमधाम से चित्रगुप्त महाराज की पूजा-अर्चना की गई।

 कायस्थ समाज के लोगों ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच कलम, दवात, कॉपी एवं पुस्तक की पूजा की गई। इस दौरान कायस्थ समाज ने भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज की पूजा-अर्चना की एवं मनोवांछित कामना की।

सरायकेला : भाई दूज विशेष, तिलक का शुभ मुहूर्त


 

भाई दूज का त्‍योहार कार्तिक मास की शुक्‍ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है. इस बार भाई दूज की तिथि और शुभ मुहूर्त को लेकर लोगों में काफी कन्‍फ्यूजन है।

सूखा नारियल

दिवाली का पूरा हफ्ता त्योहारों में बीतता है. धनतेरस से शुरू हुए त्योहार भाई दूज के साथ खत्म होते हैं. पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि पर भाई दूज मनाया जाता है. भाई दूज ऐसा पर्व है जिसमें बहनें अपने भाई को तिलक करती हैं और उसे सूखा नारियल देती हैं।

प्रेम प्रतीक 

भाई दूज भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. इससे यमराज और मां यमुना की पौराणिक कथा जु़ड़ी हुई है।

भाई दूज 

भाई दूज के दिन भाई को तिलक करने से पहले यमराज और मां यमुना का ध्यान करना शुभ माना जाता है. इसके बाद भाई के माथे पर तिलक और चावल लगाया जाता है और उसे मिठाई खिलाई जाती है. इस दौरान बहनें भाई को सूखा नारियल देती हैं और भाई बहन को उपहार देते हैं।

पौराणिक कथा 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमराज और मां यमुना दोनों ही सूर्यदेव की संताने हैं. अरसों बाद जब यमराज बहन यमुना से मिलने पहुंचे तो उन्होंने भाई के लिए ढेरों पकवान बनाएं, मस्तक पर तिलक लगाया और भेंट में नारियल दिया. इसके बाद यमराज ने बहन से वरदान में उपहार स्वरूप कुछ भी मांग लेने के लिए कहा जिसपर मां यमुना ने कहा कि वे बस ये विनती करती हैं कि हर साल यमराज उनसे मिलने जरूर आएं. इसी दिन से भाई दूज मनाए जाने की शुरूआत हुई. माना जाता है कि भाई दूज के दिन ही यमराज बहन यमुना से मिलने आते हैं।

उत्तर-पूर्व 

जब भी तिलक करें तो ध्‍यान रखें कि तिलक कराते हुए भाई का मुंह उत्तर या उत्तर-पश्चिम में से किसी एक दिशा में होना चाहिए और बहन का मुंह उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा में होना चाहिए।

व्रत 

भाई को तिलक करने से पहले तक बहन को व्रत रखना चाहिए. आपकी निष्‍ठा, प्रेम और समर्पण से भगवान भी प्रसन्‍न होते हैं और आपके व भाई के बीच का रिश्‍ता अच्‍छा बना रहता है. बहन को तिलक करने के बाद ही अपना व्रत खोलना चाहिए।

भाई को मिष्ठान 

तिलक करने के बाद भाई को मिष्ठान जरूर खिलाएं. बहन को भाई को अपने हाथों से मिष्ठान खिलाना चाहिए. ऐसा करना शुभ माना जाता है. साथ ही हर भाई अपनी बहन को आज के दिन सामर्थ्‍य के अनुसार कुछ न कुछ उपहार जरूर दें।

तिलक 

तिलक के दौरान भाई या बहन, किसी को भी काले वस्त्र नहीं पहनने चाहिए. शास्त्रों में शुभ कार्यों के दौरान काले वस्त्र पहनने की मनाही है।

सरायकेला : झारखंड राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित होने वाले जिला स्तरीय कार्यक्रम को लेकर उपायुक्त नें किया कार्यक्रम स्थल का निरिक्षण


पदाधिकारियों के साथ बैठक कर कार्यक्रम की अंतिम रूप रेखा पर किया चर्चा

सरायकेला : आगामी 15 नवंबर को झारखंड स्थापना दिवस के अवसर पर जिला स्तरीय कार्यक्रम की तैयारीयों के मद्देनजर जिला दंडाधिकारी सह उपायुक्त श्री रवि शंकर शुक्ला नें आज काशी साहू कॉलेज सरायकेला का निरिक्षण कर कार्यक्रम की अंतिम तैयारियां के मध्यजर आवश्यक दिशा निदेश दिए। इस दौरान उपायुक्त नें कार्यक्रम के सफल संचालन को लेकर सम्बन्धित पदाधिकारियों के साथ बैठक कर शौपी गई जिम्मेदारीयों को ससमय पूर्ण करने के संबंध में आवश्यक दिशा निदेश दिए। 

वही कार्यक्रम में लोगो के सहयोग हेतू विशेष हेल्प डेस्क, स्वास्थ्य जाँच केंद्र तथा आधार केंद्र का स्टॉल लगाने तथा सभी स्टॉल में सम्बन्धित विभाग के पदाधिकारियों की उपस्थिति तथा पर्याप्त संख्या में आवेदन उपलब्ध रखने के निदेश दिए।

बैठक में उप विकास आयुक्त श्री प्रवीण कुमार गागराई, परियोजना निदेशक श्री संदीप कुमार दोराईबुरु, अपर उपायुक्त श्री सुबोध कुमार, अनुमंडल पदाधिकारी सरायकेला श्रीमती पारुल सिंह, अनुमंडल पदाधिकारी चांडिल श्री गिरजा शंकर महतो, जिला परिवाहन पदाधिकारी, जिला आपूर्ति पदाधिकारी, जिला जनसंपर्क पदाधिकारी, जिला योजना पदाधिकारी, जिला शिक्षा पदाधिकारी, सिविल सर्जन, जिला समाज कल्याण पदाधिकारी, जिला पशुपालन पदाधिकारी, नजारत उप समहर्ता, DPM JSLPS एवं सभी BDO/CO अन्य सम्बन्धित पदाधिकारी उपस्थित रहें।

सरायकेला : उपायुक्त ने जनता दरबार में सुनी आमजनों की समस्याएं,


शिकायतों का नियमानुसार निष्पादन हेतू सम्बन्धित पदाधिकारी को दिया निर्देश

सरायकेला : समाहरणालय स्थित कार्यालय कक्ष में जिला दंडाधिकारी -सह- उपायुक्त श्री रवि शंकर शुक्ला के द्वारा जनता दरबार का आयोजन किया। जनता दरबार में जिले के विभिन्न क्षेत्र से व्यक्तिगत एवं समाजिक समस्याओं के निराकरण हेतू पहुँचे लोगो से उपायुक्त नें क्रमवार मिलकर उनकी समस्याओं से अवगत हो उक्त समस्याओं के नियमानुसार निष्पादन को लेकर सम्बन्धित विभिगीय पदाधिकारी को निदेशित किया। 

आज के जनता दरबार में भूमि विवाद, आपसी बटवारा, शिक्षा विभाग, भु-अर्जन कार्यालय, पंजी-2 में नाम जोड़ने, समेत अन्य समस्याओं से सम्बन्धित आवेदन प्राप्त हुए।

नारायण आईटीआई लुपुंगडीह चांडिल में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की जयंती मनाई गई


सरायकेला : नारायण आईटीआई लुपुंगडीह चांडिल में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की जयंती मनाई गई। एवं संस्थान के सभी शिक्षकों के द्वारा उनके तस्वीर पर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया। 

इस अवसर पर संस्थान के संस्थापक डॉक्टर जटाशंकर पांडे जी ने कहा की पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर 1889 को इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने घर पर निजी शिक्षकों से प्राप्त की। पंद्रह साल की उम्र में वे इंग्लैंड चले गए और हैरो में दो साल रहने के बाद उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया जहाँ से उन्होंने प्राकृतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।

 1912 में भारत लौटने के बाद वे सीधे राजनीति से जुड़ गए। यहाँ तक कि छात्र जीवन के दौरान भी वे विदेशी हुकूमत के अधीन देशों के स्वतंत्रता संघर्ष में रुचि रखते थे। उन्होंने आयरलैंड में हुए सिनफेन आंदोलन में गहरी रुचि ली थी। उन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अनिवार्य रूप से शामिल होना पड़ा। 1929 में पंडित नेहरू भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन के लाहौर सत्र के अध्यक्ष चुने गए जिसका मुख्य लक्ष्य देश के लिए पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करना था।

 उन्हें 1930-35 के दौरान नमक सत्याग्रह एवं कांग्रेस के अन्य आंदोलनों के कारण कई बार जेल जाना पड़ा। उन्होंने 14 फ़रवरी 1935 को अल्मोड़ा जेल में अपनी ‘आत्मकथा’ का लेखन कार्य पूर्ण किया। रिहाई के बाद वे अपनी बीमार पत्नी को देखने के लिए स्विट्जरलैंड गए एवं उन्होंने फरवरी-मार्च, 1936 में लंदन का दौरा किया। उन्होंने जुलाई 1938 में स्पेन का भी दौरा किया जब वहां गृह युद्ध चल रहा था। द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने से कुछ समय पहले वे चीन के दौरे पर भी गए।7 अगस्त 1942 को मुंबई में हुई अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में पंडित नेहरू ने ऐतिहासिक संकल्प ‘भारत छोड़ो’ को कार्यान्वित करने का लक्ष्य निर्धारित किया। 8 अगस्त 1942 को उन्हें अन्य नेताओं के साथ गिरफ्तार कर अहमदनगर किला ले जाया गया। यह अंतिम मौका था जब उन्हें जेल जाना पड़ा एवं इसी बार उन्हें सबसे लंबे समय तक जेल में समय बिताना पड़ा। 

अपने पूर्ण जीवन में वे नौ बार जेल गए। जनवरी 1945 में अपनी रिहाई के बाद उन्होंने राजद्रोह का आरोप झेल रहे आईएनए के अधिकारियों एवं व्यक्तियों का कानूनी बचाव किया। मार्च 1946 में पंडित नेहरू ने दक्षिण-पूर्व एशिया का दौरा किया। 6 जुलाई 1946 को वे चौथी बार कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए एवं फिर 1951 से 1954 तक तीन और बार वे इस पद के लिए चुने गए। और आज के दिन आज के दिन चिल्ड्रंस डे के रूप में भी जाने जाते हैं।इस अवसर पर मुख्य रूप से उपस्थित सुदीष्ट कुमार , शशि भूषण पांडे ,एडवोकेट निखिल कुमार, देव कृष्ण महतो, पवन कुमार महतो, अजय मण्डल, गौरव महतो, कृष्ण पद महतो, आदि मौजूद थे।

आज कोल्हान में मनाया जा रहा है गोवर्धन पूजा,लुपुंगडीह गांव में स्थित मंदिर परिसर में लगे श्रद्धालुओं का भी भीड़


सरायकेला : कोल्हान के विभिन्न जिलों में कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है। 

यह पर्व दिवाली के अगले दिन आता है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गोवर्धन पर्वत, भगवान श्री कृष्ण और गौ माता की पूजा की जाती है। इस दिन लोग घर की आंगन में या घर के बाहर गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाते हैं और पूजा करते हैं। साथ ही इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है।

आज ईचागढ़ विधान सभा क्षेत्र के नीमडीह प्रखण्ड अन्तर्गत लुपुंगडीह गांव में धूमधाम से गिरी गोवर्धन पूजा मनाया जा रहा । मंदिर परिसर में लगे श्रद्धालु का भी भीड़ ।

गोवर्धन पूजा विधि

गोवर्धन पूजा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करें।

फिर शुभ मुहूर्त में गाय के गोबर से गिरिराज गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाएं और साथ ही पशुधन यानी गाय, बछड़े आदि की आकृति भी बनाएं।

इसके बाद धूप-दीप आदि से विधिवत पूजा करें।

भगवान कृष्ण को दुग्ध से स्नान कराने के बाद उनका पूजन करें।

इसके बाद अन्नकूट का भोग लगाएं।

गोवर्धन पूजा का महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण द्वारा ही सर्वप्रथम गोवर्धन पूजा आरंभ करवाई गई थी। श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत तो अपनी उंगली पर उठाकर इंद्रदेव के क्रोध से ब्रज वासियों और पशु-पक्षियों की रक्षा की थी। यही कारण है कि गोवर्धन पूजा में गिरिराज के साथ कृष्ण जी के पूजन का भी विधान है। इस दिन अन्नकूट का विशेष महत्व माना जाता है। 

क्या है गोवर्धन पूजा की कथा।

गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग में एक बार देवराज इंद्र को अपने ऊपर अभिमान हो गया था। इंद्र का अभिमान चूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने एक अद्भुत लीला रची। श्री कृष्ण में देखा कि एक दिन सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे थे और किसी पूजा की तैयारी में व्यस्त थे। इसे देखते हुए कृष्ण जी ने माता यशोदा से पूछा कि यह किस बात की तैयारी हो रही है ।

कृष्ण की बातें सुनकर यशोदा माता ने बताया कि इंद्रदेव की सभी ग्राम वासी पूजा करते हैं जिससे गांव में ठीक से वर्षा होती रहे और कभी भी फसल खराब न हो और अन्न धन बना रहे। उस समय लोग इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए अन्नकूट (अन्नकूट का महत्व)चढ़ाते थे। यशोदा मइया ने कृष्ण जी को यह भी बताया कि इंद्र देव की कृपा से ही अन्न की पैदावार होती है और उनसे गायों को चारा मिलता है।

इस बात पर श्री कृष्ण ने कहा कि फिर इंद्र देव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा होनी चाहिए क्योंकि गायों को चारा वहीं से मिलता है। इंद्रदेव तो कभी प्रसन्न नहीं होते हैं और न ही दर्शन देते हैं। इस बात पर बृज के लोग इंद्र देव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। यह देखकर इंद्र देव क्रोधित हुए और उन्होंने मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। इंद्रदेव ने इतनी वर्षा की कि उससे बृज वासियों को फसल के साथ काफी नुकसान हो गया।

ब्रजवासियों को परेशानी में देखकर श्री कृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी ब्रजवासियों को अपने गाय और बछड़े समेत पर्वत के नीचे शरण लेने के लिए कहा। इस बात पर इंद्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हो गए और उन्होंने वर्षा की गति को और ज्यादा तीव्र कर दिया। तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर विराजमान होकर वर्षा की गति को नियंत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें।

इंद्र लगातार सात दिन तक वर्षा करते रहे तब ब्रह्मा जी ने इंद्र से कहा कि श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं और उन्हें कृष्ण जी की पूजा की सलाह दी। ब्रह्मा जी की बात सुनकर इंद्र ने श्री कृष्ण से क्षमा मांगी और उनकी पूजा करके अन्नकूट का 56 तरह का भोग लगाया। तभी से गोवर्घन पर्वत पूजा की जाने लगी और श्री कृष्ण को प्रसाद में 56 भोग चढ़ाया जाने लगा।

गोवर्धन पर्वत गोबर का क्यों बनाया जाता है

ऐसी मान्यता है कि श्री कृष्ण को गायों से अत्यंत प्रेम था और वो गायों तथा बछड़ों की सेवा किया करते थे। यह भी माना जाता है कि गाय का गोबर अत्यंत पवित्र होता है, इसलिए इसी से गोवर्धन पर्वत बनाना और इसका पूजन करना फलदायी माना जाता है। इस दिन गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाई जाती है और इसके चारों कोनों में करवा की सींकें लगाईं जाती हैं। इसके भीतर कई अन्य आकृतियां भी बनाई जाती हैं और इसकी पूजा की जाती है। (गोवर्धन के दिन गाय की पूजा का महत्व)

ऐसा माना जाता है कि इस दिन जो भी गोवर्धन की इस कथा का पाठ करता है और श्रद्धा पूर्वक गाय के गोबर से बने पर्वत की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती।