मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले जारी हुआ कांग्रेस का घोषणा पत्र, डिटेल में जानिए वचन पत्र की खास बातें

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस अपना वचन पत्र मंगलवार दोपहर जारी किया। इसमें युवा, महिला एवं किसानों पर ध्यान दिया गया। महिलाओं के लिए प्रियदर्शिनी नाम से अलग से प्रविधान हैं। पार्टी की तरफ से घोषित गारंटियों को सम्मिलित करते हुए वचन पत्र को अंतिम रूप दिया गया है। इस मौके पर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व सीएम कमल नाथ, महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला तथा वचन पत्र समिति के अध्यक्ष डा. राजेंद्र कुमार सिंह, दिग्विजय सिंह, कांतिलाल भूरिया, विवेक तन्खा सहित अनेक नेता पीसीसी दफ्तर में उपस्थित हैं।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ ने पार्टी के वचन पत्र विमोचन के अवसर पर कहा कि कांग्रेस का चुनाव में नारा रहेगा 'कांग्रेस आएगी खुशहाली लाएगी'। कांग्रेस सरकार ढाई हजार रुपए प्रति क्विंटल धान तथा गेहूं ₹2600 क्विंटल की दर पर खरीदेंगे। उपज का 3000 की क्विंटल देने का मिशन। 2 रुपये किलो की दर से गोबर खरीदा जाएगा। नंदिनी योजना शुरू होगी। 2 लाख पदों पर भर्ती की जाएगी। युवा स्वाभिमान योजना प्रारंभ होगी 1500 से 3000 रुपये तक दिए जाएंगे। 25 लाख रुपए का स्वास्थ्य बीमा तथा 10 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा देंगे स्वास्थ्य का अधिकार कानून बनाया जाएगा, सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना 1200 रुपये प्रतिमाह की जाएगी। मेरी बेटी योजना में 251000 रुपये दिए जाएंगे। IPL में मध्य प्रदेश की टीम बने, इसकी कोशिश की जाएगी। आउटसोर्सिंग कर्मचारी के साथ न्याय होगा।

वही इससे पहले प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष राजीव सिंह ने बताया कि वचन पत्र में महिलाओं के लिए जो प्रविधान किए गए हैं, उन्हें अलग से प्रियदर्शिनी नाम से प्रदर्शित किया गया है। पार्टी ने महिलाओं को डेढ़ हजार रुपये प्रतिमाह तथा 500 रुपये में रसोई गैस सिलेंडर देने का ऐलान किया है। 1 करोड़ से अधिक बिजली उपभोक्ताओं को 100 यूनिट बिजली निशुल्क तथा 200 यूनिट आधी दर पर देने, कर्मचारियों की पुरानी पेंशन योजना फिर से लागू करने, किसानों को कर्ज माफी देने, 5 हार्सपावर तक के कृषि पंप के लिए मुफ्त बिजली, पुराने बिजली बिल की माफी, सिंचाई के लिए 12 घंटे बिजली देने, पुराने प्रकरणों की वापसी, स्कूली बच्चों को प्रतिमाह 500 से 1,500 रुपये देने के लिए पढ़ो पढ़ाओ योजना, आदिवासियों के ऊपर दर्ज प्रकरणों की वापसी, 50 प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या वाली आदिवासी बहुल क्षेत्रों को छठवीं अनुसूची में सम्मिलित करने, OBC को 27 फीसदी आरक्षण का लाभ दिलवाने तथा सरकार में आने पर जाति आधारित गणना कराने की गारंटी भी दी गई है।

क्या है हिजबुल्लाह? जिसने हमास के खिलाफ इजराइल की बढ़ा रखी है टेंशन

#who_is_this_hezbollah_in_the_war_between_israel_and_hamas 

इजरायल और हमास के बीच युद्ध बढ़ता ही जा रहा है। आने वाले दिनों में जंग के और तेज होने की आशंका है।दरअसल, हमास के बाद हिजबुल्लाह ने भी इजरायल पर हमला कर दिया है।बता दें कि हमास फिलिस्तीन तो हिजबुल्लाह लेबनान का आतंकी संगठन है।

हमास, इजराइल पर हुए हालिया हमले के लिए जिम्मेदार उग्रवादी संगठन है। यह गाजा पट्टी को नियंत्रित करता है और इज़राइल के स्थान पर फ़िलिस्तीनी राज्य बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। हमास एक सुन्नी फिलिस्तीनी संगठन है, जबकि ईरान समर्थित हिजबुल्लाह एक शिया लेबनानी पार्टी है।हाल के वर्षों में, हमास और हिजबुल्लाह के बीच सीरियाई गृहयुद्ध को लेकर मतभेद रहा है, हिजबुल्लाह सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद का समर्थन कर रहा है और हमास उन्हें सत्ता से बेदखल करने का समर्थन कर रहा है। भले ही सीरिया को लेकर दोनों संगठनों के विचार अलग-अलग हैं लेकिन इजरायल को दोनों ही अपना दुश्मन नंबर एक मानते हैं। इज़राइल के अस्तित्व के प्रति उनके साझा विरोध ने ही उन्हें सामरिक सहयोगी बना दिया है।

2020 और 2023 के बीच, दोनों समूहों के नेताओं ने इज़राइल के साथ संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन जैसे अरब देशों के बीच हुए समझौतों का विरोध किया था।दोनों ही संगठनों के नेताओं ने इन समझोतों के बाद उठे बवंडर पर चर्चा करने के लिए कम से कम दो बैठकें कीं थी। हिजबुल्लाह के नेता हसन नसरल्लाह ने हाल ही में अप्रैल में लेबनान में हमास प्रमुख इस्माइल हानियेह से मुलाकात की थी। 2020 में अपनी यात्रा के दौरान, जब हनियेह ने देश के सबसे बड़े फ़िलिस्तीनी शरणार्थी शिविर, ऐन अल-हेलवे का दौरा किया, तो उन्हें एक नायक के स्वागत से सम्मानित किया गय था। 

हिज़बुल्ला का उदय कब हुआ, इसकी सटीक तारीख बताना मुश्किल है। लेकिन वर्ष 1982 में फ़लस्तीनी चरमपंथियों के हमले के जवाब में दक्षिणी लेबनान में इजराइल की घुसपैठ के बाद हिज़बुल्ला के पहले रहे संगठन का उदय हुआ था। उस समय चरमपंथी हमले का समर्थन कर रहे शिया नेताओं ने अमाल आंदोलन से खुद को अलग कर लिया था। इन नेताओं ने एक नया संगठन 'इस्लामिक अमाल' का गठन किया। इस संगठन को ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स से अच्छी-खासी सैन्य और संगठनात्मक मदद मिली। ये संगठन सबसे प्रभावी और बड़े शिया मिलिशिया के तौर पर उभरा और आगे चलकर यही हिज़बुल्लाह बना। इस संगठन ने इजराइल सेना और उसके सहयोगी साउथ लेबनान आर्मी के साथ ही लेबनान में मौजूद विदेशी बलों पर हमले शुरू किए। 

ऐसा माना जाता है कि वर्ष 1983 में अमेरिकी दूतावास और यूएस मरीन बैरक्स पर बमबारी की। इन हमलों में कुल 258 अमेरिकियों और 58 फ़्रेंच नागरिकों की जान गई थी। इसके बाद लेबनान से पश्चिमी देशों की शांति सेना पीछे हट गई। वर्ष 1985 में हिज़बुल्लाह ने औपचारिक तौर एक 'खुली चिट्ठी' प्रकाशित करते हुए स्थापना का ऐलान किया। इस पत्र में अमेरिका और सोवियत संघ को इस्लाम के सिद्धांतों का दुश्मन बताया गया और इसराइल को 'ख़त्म' करने का आह्वान किया। हिज़बुल्लाह का कहना था कि इजराइल मुसलमानों की ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर रहा है। हिज़बुल्लाह ने ये भी आह्वान किया कि "लोगों के मुक्त और सीधे चयन के आधार पर इस्लामी व्यवस्था को अपनाया जाए, न कि इसे ज़बरदस्ती थोपा जाए।"

4 साल बाद पाकिस्तान लौट रहे नवाज शरीफ, क्या वापसी का देश की राजनीति पर होगा असर?

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पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ वतन वापसी कर रहे हैं।वह अगले शनिवार को पाकिस्तान वापस आ सकते हैं। इस बीच पाकिस्तान की एक अदालत ने गुरुवार को नवाज शरीफ की घर वापसी से पहले एवेनफील्ड और अल-अजीजिया मामलों में सुरक्षात्मक जमानत दे दी है।दरअसल, नवाज शरीफ की शनिवार को स्वदेश वापसी से पहले उनके वकीलों ने इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में संरक्षण जमानत याचिका दायर कर अधिकारियों को उनके यहां पहुंचने पर गिरफ्तार करने से रोकने का अनुरोध किया था। 

बता दें कि, शरीफ (73) को एवेनफील्ड और अल-अजीजिया मामलों में दोषी ठहराया गया था और तोशाखाना वाहन मामले में भगोड़ा अपराधी घोषित किया गया था।कई मामलों में दोषी और आरोपी नवाज शरीफ इलाज कराने के लिए ब्रिटेन गए थे लेकिन फिर 4 साल तक वापस ही नहीं लौटे।नवाज शरीफ जब 2019 में इलाज के लिए ब्रिटेन गए थे तो इन मामलों में उन्हें जमानत मिली हुई थी।

अदालत द्वारा उन्हें भ्रष्टाचार का दोषी ठहराए जाने के बाद साल 2017 में उन्होंने प्रधानमंत्री का पद छोड़ दिया था। दो साल बाद भ्रष्टाचार के और आरोपों का सामना करते हुए, उन्होंने सीने में दर्द की शिकायत की और उनके उत्तराधिकारी इमरान खान ने उन्हें चिकित्सा उपचार के लिए लंदन जाने की अनुमति दे दी। साल 2019 में एक बार लंदन में शरीफ ने यह कहते हुए अपना प्रवास बढ़ा लिया कि उनके डॉक्टर उन्हें यात्रा करने की अनुमति नहीं दे रहे हैं।

नवाज़ शरीफ़ एक बार फिर आम चुनावों से पहले देश में वापसी कर रहे हैं। इससे पहले वो जुलाई 2018 में अपनी बेटी मरियम नवाज़ शरीफ़ के साथ चुनावों से एक महीना पहले देश लौटे थे। तब वो गिरफ़्तार होने के लिए वापस आए थे और पाकिस्तान में उतरते ही उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया था। इस बार भी वो ऐसी ही स्थिति में होंगे और उन्हें अदालत के सामने आत्मसमर्पण करना होगा।हालांकि नवाज़ शरीफ़ के सामने परिस्थितियां ऐसी ही लग रही हैं जैसी की साल 2018 में थीं। हालांकि वास्तविकता में बहुत कुछ बदल चुका है।

*हमास का साथ दे रहे ईरान को अमेरिका से लगा तगड़ा झटका, लगाए नए प्रतिबंध*

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इजरायल-हमास युद्ध के बीच अमेरिका ने ईरान के खिलाफ बड़ा कदम उठाया है। अमेरिका ने ईरान की बैलिस्टिक मिसाइल और ड्रोन कार्यक्रमों का मुकाबला करने के लिए नए प्रतिबंध की घोषणा की है।दरअसल, इजराइल और हमास की जंग के बीच ईरान हमास का साथ दे रहा है। यही नहीं, दुश्मन देश इजराइल के खिलाफ वह लेबनान में आतंकी संगठन हिजबुल्ला को भी सपोर्ट कर रहा है। यही हिजबुल्ला इजराइल पर लगातार हमले कर रहा है। अपने दोस्त देश इजराइल पर ईरान के इन पैंतरों पर अमेरिका ने ईरान के पर कतर दिए हैं। अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने ट्वीट कर जानकारी दी कि, अमेरिका ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल और यूएवी कार्यक्रमों का मुकाबला करने के लिए नए प्रतिबंध लगा रहा है।

विदेशी मामलों के जानकारों के मुताबिक, अमेरिका का इस प्रतिबंध का उद्देश्य खाड़ी में इजरायल और सहयोगियों के लिए तेहरान के खतरे के साथ-साथ यूक्रेन में हथियारों के विनाशकारी प्रभाव को रोकना है। ऐसा भी हो सकता है कि अमेरिका अपने मिसाइल कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए ईरान के खिलाफ कार्रवाई की हो।

अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध ऐसे समय में लगाया है, जब ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल और ड्रोन कार्यक्रम पर सुरक्षा परिषद द्वारा साल 2015 में लगा प्रतिबंध समाप्त होने वाला है। हालांकि, अमेरिका ने उससे पहले ही ईरान पर नए प्रतिबंध की घोषणा कर दी।

इससे पहले ब्रिटेन समेत अन्य यूरोपीय देशों ने एक साथ बयान जारी कर ईरानी मिसाइलों और ड्रोन की युद्ध में बढ़ती भागीदारी पर चिंता जताई है। 45 देशों के समूह ने कहा है, ' ये अंतरराष्ट्रीय स्थिरता को खतरे में डालता है और क्षेत्रीय तनाव को बढ़ाता है।' अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा, "हम नामित आतंकवादी संगठनों और आतंकवादी प्रतिनिधियों को ईरान द्वारा मिसाइलों और मानव रहित हवाई वाहनों की मदद का भयानक प्रभाव देख रहे हैं, जो सीधे तौर पर इजरायल और हमारे खाड़ी भागीदार की सुरक्षा को खतरा है।

वर्ल्ड कप 2023: पुणे में भारत और बांग्लादेश के बीच भिडंत, जानें दोनों टीमों में किसका पलड़ा भारी

#indvsbanworldcup_2023

वर्ल्ड कप 2023 में टीम इंडिया आज अपना चौथा मैच खेलेगी। इस मैच में भारतीय टीम का सामना बांग्लादेश से होगा। ये मैच पुणे के महाराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन स्टेडियम में खेला जाएगा। यहां वर्ल्ड कप में यह पहला मुकाबला होगा। विश्व कप 2023 का ये 17वां मैच होगा। भारतीय टीम की कोशिश टूर्नामेंट में लगातार चौथी जीत दर्ज करने की होगी। वहीं, बांग्लादेश ने पिछले चार वनडे मैचों में से तीन में भारत को शिकस्त दी है। ऐसे में ये मुकाबला काफी रोमांचक हो सकता है। 

विश्व कप में दोनों के बीच पांचवां मुकाबला

दोनों टीमें विश्व कप में सबसे पहली बार 2007 में पोर्ट ऑफ स्पेन में आमने-सामने आई थीं। वह मैच इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया था। बांग्लादेश ने बड़ा उलटफेर करते हुए ग्रुप स्टेज में राहुल द्रविड़ की भारतीय टीम को पांच विकेट से हराया था। इसके बाद टीम इंडिया विश्व कप से ही बाहर हो गई थी। 2011 विश्व कप में मीरपुर में दोनों ग्रुप स्टेज में एक बार फिर आमने-सामने आए। इस बार महेंद्र सिंह धोनी के नेतृत्व में टीम इंडिया ने बांग्लादेश को 87 रन से शिकस्त दी। इस मैच में वीरेंद्र सहवाग और विराट कोहली ने शतक जड़े थे। इसके बाद धोनी के ही नेतृत्व में 2015 में मेलबर्न में हुए क्वार्टर फाइनल मुकाबले में भारत ने बांग्लादेश को 109 रन से हराया था। 2019 में विराट कोहली के नेतृत्व में भारतीय टीम ने बर्मिंघम में बांग्लादेश को 28 रन से शिकस्त दी थी। अब 2023 विश्व कप में यह दोनों के बीच पांचवां मुकाबला होगा।

पिछले एक साल में कौन किस पर भारी?

पिछले 12 महीनों यानी 1 साल में वनडे की पिच पर 4 बार दोनों टीमों का आमना-सामना हुआ, जिसमें चौंकाने वाली बात ये है कि 3-1 से बांग्लादेश का पलड़ा भारी रहा है। बांग्लादेश की भारत पर सबसे ताजातरीन वनडे जीत इसी साल एशिया कप के सुपर फोर मुकाबले में देखने को मिली थी।

25 साल बाद होगा ऐसा

बांग्लादेश के लिए पुणे में होने वाला वनडे मुकाबला ऐतिहासिक है। वो इस वजह से क्योंकि इसके जरिए वो 25 साल बाद भारतीय जमीन पर वनडे में टीम इंडिया का मुकाबला करती दिखेगी। भारत में आखिरी बार टीम इंडिया के खिलाफ बांग्लादेश ने वनडे 1998 में खेला था। मुंबई के वानखेड़े मैदान पर खेले उस मुकाबले को भारतीय टीम ने 5 विकेट से जीता था।

बाइडेन के बाद आज इजरायल पहुंच रहे ब्रिटेन के पीएम ऋषि सुनक, प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहु से करेंगे मुलाकात

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अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के इजराइल दौरे के बाद आज ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक इज़राइल पहुंचेंगे।ऋषि सुनक इस्राइल में पीएम बेंजामिन नेतन्याहू और राष्ट्रपति इसाक हर्जोग से मुलाकात करेंगे।समाचार एजेंसी रायटर ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कार्यालय का हवाला देते हुए बताया कि ब्रिटिश पीएम ऋषि सुनक इजराइल में पीएम नेतन्याहू के साथ ही इजराइल के राष्ट्रपति इसहाक हर्जोग से भी मुलाकात करेंगे। इस दौरान जंग से निपटने के समाधान, हमास की आतंकी गतिविधियों के साथ ही समाधान के उपायों पर चर्चा की जाएगी। 

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कार्यालय ने बताया कि ऋषि सुनक 7 अक्टूबर को इजरायल पर हुए हमले के मद्देनजर अपनी संवेदनाएं व्यक्त करने के लिए तेल अवीव पहुंचेंगे। सुनक ने अपनी यात्रा से पहले एक बयान में कहा कि हमास के भयावह कृत्य के बाद कई लोगों की जान चली गई है। हर एक नागरिक की मौत एक त्रासदी है। उन्होंने कहा कि गाजा अस्पताल पर मंगलवार को हुए एक घातक विस्फोट के बाद दुनियाभर के नेताओं को संघर्ष की खतरनाक स्थिति से बचने के लिए एक साथ आना चाहिए। इसके अलावा ऋषि सुनक गाजा में जल्द से जल्द मानवीय सहायता की अनुमति देने और वहां फंसे ब्रिटिश नागरिकों को निकलने में सक्षम बनाने के लिए एक मार्ग खोलने का भी आग्रह करेंगे।

बता दें कि इजरायल पर हमास के हमले के बाद से 7 ब्रिटिश नागरिक मारे गए और 9 लापता हैं। माना जा रहा है कि लापता लोग हमास के कब्जे में हैं।

इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा कि मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी गाजा पट्टी में 20 ट्रक सहायता भेजने पर सहमत हुए हैं. इज़रायली सरकार ने कहा था कि वह मिस्र से दक्षिणी गाजा में मानवीय सहायता की अनुमति तब तक नहीं देगी जब तक यह सुनिश्चित नहीं हो जाता कि इसमें से कुछ भी हमास की ओर नहीं भेजा जाएगा

गाजा में अस्पताल विस्फोट पर अमेरिका का बड़ा बयान, तेल अवीव पहुंचे बायडन बोले-

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इजरायल-हमास जंग के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बड़ा बयान दिया है।18 अक्टूबर को इजरायल पहुंचे अमेरिकी राष्ट्रपति ने इजरायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू को अपना समर्थन दिया।गाजा पट्टी में अल-अहली अरब अस्पताल पर मिसाइल अटैक को लेकर अमरिका ने इजरायल को क्लीनचिट दे दी है।

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि ऐसा लग रहा है कि यह एक आतंकवादी समूह की ओर से दागे गए मिसफायर रॉकेट का परिणाम था। ऐसे में साफ है कि बाइडेन इस मामले में इज़रायल के उस बयान के साथ हैं, जिसमें उसने कहा था कि अस्पताल पर हुए हमले में उसका हाथ नहीं है। वहीं हमास अब भी इस हमले के लिए इज़रायल को ज़िम्मेदार ठहरा रहा है।

तेल अवीव पहुंचे अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से कहा कि ऐसा लगता है कि हमला दूसरी टीम की ओर से किया गया था। बाद में अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि अब तक हमने जो जानकारी देखी है, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि गाजा के अस्पताल पर हुआ विस्फोट एक आतंकवादी समूह की ओर से दागे गए गलत रॉकेट के कारण हुआ है। उन्होंने कहा कि यह निष्कर्ष अमेरिकी रक्षा विभाग की ओर से दिखाए गए डेटा पर आधारित है।

हमास और ईरान में कैसे हुई गहरी दोस्ती, जानें पूरी कहानी

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इजराइल-हमास युद्ध अब अगले लेकिन बेहद घातक चरण में प्रवेश कर चुका है।इजरायली फौज के सपोर्ट में अमेरिकी सेना भी उतर चुकी है।ऐसे में सबसे बड़ी चिंता युद्ध में पूरे पश्चिम एशिया के चपेट में आने की है।दरअसल, इस युद्द में अमेरिका भारत समेत कई देश इजराइल का साथ दे रहे है वहीं हमास का साथ इरान जैसा देश दे रहा है। आपको बता दें ये वही इरान है जो एक समय में इजराइल का दोस्त था। लेकिन अब ईरान और इजराइल एक दूसरे के दुश्मन है क्योंकी अब ईरान हमास का साथ दे रहा है और खुलकर समर्थन भी कर रहा है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि हमास और ईरान के बीच गहरी दोस्ती कैसे हो गई है? ऐसा क्या है कि युद्ध के हालात में जब पूरी दुनिया हमास की इस कार्रवाई को आतंकी करार दे रहे हैं, वहीं ईरान खुलकर समर्थ कर रहा है?

हमास-ईरान की दोस्ती की शुरुआत साल 1979 में इस्लामिक क्रांति से हुई थी ।मोहम्मद रजा पहलवी जब ईरान के शासक थे, तब तक हमास से उनका कोई मतलब नहीं था, बल्कि उन्होंने इजराइल को मान्यता भी दी थी और व्यापार भी शुरू किया। वहीं जब ईरान में नई सत्ता ने कामकाज संभाला तब से इजराइल-ईरान के रिश्ते एकदम खत्म हो गए और हमास की एंट्री हुई। हालांकि, तब हमास का यह रूप नहीं था, लेकिन चरमपंथ को बढ़ावा देने की अपनी नीति के तहत ईरान ने इस संगठन की मदद की।

इस्लामिक क्रांति से पहले ईरान दूसरा मुस्लिम बहुल देश था, जिसने अपने शासक मोहम्मद रज़ा पहलवी के शासन में इसराइल को मान्यता दी थी।लेकिन अब मध्य-पूर्वी देशों में ईरान एकदम अलग राह पर है और वो इसराइल को मान्यता देने से इनकार करता है। वहीं, इस क्षेत्र के अन्य मुस्लिम देशों ने इसराइल के संबंध सामान्य करने शुरू कर दिए हैं। इस्लामिक गणराज्य ईरान के संस्थापक अयोतुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी ने इजराइल की तुलना 'कैंसर वाले ट्यूमर' से की थी। उन्होंने फ़लस्तीन के मुद्दे को मुस्लिम वर्ल्ड में अपनी सरकार की वैधता बढ़ाने और शिया-सुन्नी के बीच विभाजन से परे इस्लामी एकता को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल किया।

खुमैनी ने हर साल रमज़ान के आख़िरी दिन को फ़लस्तीन के समर्थन में 'कुद्स (यरुशलम) दिवस' के तौर पर मनाने की भी शुरुआत की। फ़लस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ) का हित चाहने वालों में से एक ईरान भी था। हालांकि, पीएलओ के साथ ईरान के रिश्ते तब खराब हुए जब इराक़ के साथ जंग में पीएलओ के नेता यासर अराफ़ात ने इराक़ का समर्थन किया। अराफ़ात को वर्ष 1988 में ईरान के सर्वोच्च नेता अयोतुल्लाह अली ख़ुमैनी ने 'ग़द्दार और मूर्ख' बताया था। उस समय यासर अराफ़ात इसराइल के साथ राजनीतिक समझौते की ओर बढ़ते दिख रहे थे, लेकिन ईरान का नेतृत्व इसराइल के साथ किसी भी तरह की शांति वार्ता के ख़िलाफ़ था. अली खुमैनेई अभी भी ईरान के सर्वोच्च नेता हैं। जैसे ही इसराइल को स्वीकार करने के मुद्दे पर फ़लस्तीन के गुट बंटने शुरू हुए, ईरान ने अपना रुख पीएलओ और उसके प्रभावशाली धड़े फ़तह से मोड़कर अधिक कट्टर और प्रतिद्वंद्वी हमास और फ़लस्तीन इस्लामिक जिहाद (पीआईजे) की ओर कर लिया।

साल 2007 में चुनाव के बाद से हमास ने ग़ज़ा और फ़तह ने वेस्ट बैंक पर नियंत्रण पा लिया। फ़लस्तीनी क्षेत्रों में राजनीतिक ताकतों के बीच इस बंटवारे को देखते हुए ईरान का समर्थन अब मुख्य रूप से ग़ज़ा पट्टी पर शासन करने वाले गुट यानी हमास और पीआईजे की ओर चला गया।ये चरमपंथी समूह इस क्षेत्र में इसराइल और अमेरिका के ख़िलाफ़ एकजुट ईरान के अन्य सहयोगी जैसे हिज़बुल्ला और सीरियाई संगठनों से मिल गए।

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव से पहले केंद्रीय कर्मचारियों को तोहफा, डीए में चार फीसदी की बढ़ोतरी

#dearness_allowance_4_percent_increase

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले केंद्रीय कर्मचारियों को दिवाली का तोहफा मिलने जा रहा है। केंद्र की मोदी सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनर्स को दिवाली का तोहफा दिया है। केन्द्र सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों डीए में चार फीसदी की बढ़ोतरी कर दी है। सरकार के फैसले से देशभर के एक करोड़ सरकारी कर्मचारी और पेंशनर्स को फायदा मिलेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इससे जुड़े प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। बढ़ा हुआ डीए एक जुलाई से लागू होगा। इससे केंद्र सरकार के एक करोड़ से अधिक कर्मचारियों और पेंशनर्स को फायदा होगा।

केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने डीए की बढ़ी हुई दरों की घोषणा की है। अब इस वृद्धि के साथ ही डीए की मौजूदा दर 42 से 46 प्रतिशत पर पहुंच गई है। केंद्रीय कर्मचारियों के डीए में यह बढ़ोतरी सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप की गई है। इससे केंद्र सरकार के 48.67 लाख कर्मचारियों और 67.95 लाख पेंशनर्स को फायदा होगा। डीए में बढ़ोतरी से सरकारी खजाने पर सालाना 12,857 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। इसके बाद जनवरी 2024 में भी अगर महंगाई भत्ते में 4 फीसदी की बढ़ोतरी हुई तो वह दर 50 प्रतिशत हो जाएगी।दरअसल, केंद्र सरकार साल में दो बार अपने कर्मचारियों के डीए में बदलाव करती है। इससे पहले जनवरी से डीए में चार फीसदी की बढ़ोतरी की गई थी।

केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने बाद में संवाददाताओं को बताया कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट और सीसीईए की बैठक में आज चार अहम फैसले लिए गए। केंद्रीय कर्मचारियों का डीए 42% से बढ़ाकर 46% कर दिया गया है। साथ ही रेलवे के 11 लाख से अधिक कर्मचारियों को 78 दिन का बोनस देने का फैसला किया गया है। तीसरा निर्णय किसानों से जुड़ा हुआ है। रबी की छह फसलों का एमएसपी बढ़ा दिया गया है। तिलहन और सरसों में 200 रुपये, मसूर के लिए 425 रुपये, गेहूं के लिए 150 रुपये, जौ के लिए 115 रुपये, चने के लिए 105 रुपये और सनफ्लावर के लिए भी 150 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई है।

पत्रकार सौम्या विश्वनाथन की हत्या में सभी आरोपी दोषी करार, 15 साल बाद मिला इंसाफ

#soumya-vishwanathan_murder_case_court_awarded_punishment_to_all_accused 

टीवी पत्रकार सौम्या विश्वनाथन मर्डर केस में दिल्ली के साकेत कोर्ट ने पांचों आरोपियों को दोषी करार दिया है।करीब 15 साल पहले नेल्सन मंडेला रोड पर सौम्या की चलती गाड़ी में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।इससे पहले अदालत ने मामले में दलीलें पूरी करते हुए 13 अक्टूबर को जजमेंट सुरक्षित रख लिया था।26 अक्‍टूबर को ही पांचों आरोपियों की सजा का ऐलान हो सकता है। सभी आरोपियों को मकोका, हत्या और लूट में दोषी करार दिया गया है। साथ ही अजय सेठी को आरोपियों की मदद करने और मकोका में दोषी क़रार दिया गया है।

सौम्या विश्वनाथन की हत्या 30 सितंबर, 2008 में उस वक्त हुई थी, जब वह तड़के करीब 3.30 बजे अपनी कार से घर लौट रही थीं। उसी दौरान उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने दावा किया था कि उनकी हत्या का मकसद लूटपाट था। हत्या के सिलसिले में पांच लोगों- रवि कपूर, अमित शुक्ला, बलजीत मलिक, अजय कुमार और अजय सेठी को गिरफ्तार किया गया, जो मार्च 2009 से हिरासत में हैं। पुलिस ने आरोपियों पर मकोका लगाया था। मलिक और दो अन्य आरोपी रवि कपूर और अमित शुक्ला को 2009 में आईटी प्रोफेशनल जिगिशा घोष की हत्या मामले में दोषी करार दिया जा चुका है।

पुलिस ने तब दावा किया था कि जिगिशा घोष की हत्या में इस्तेमाल हथियार की बरामदगी के बाद विश्वनाथन की हत्या के मामले का खुलासा हुआ। निचली अदालत ने 2017 में जिगिशा घोष हत्या मामले में कपूर और शुक्ला को मौत की सजा और मलिक को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। हालांकि, अगले साल, हाई कोर्ट ने जिगिशा हत्या मामले में कपूर और शुक्ला की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था। मलिक की उम्रकैद की सजा बरकरार रही।