इस विशेष सत्र में महिला आरक्षण पर बिल ला सकती है सरकार, जानें राज्यसभा से पास होने के बावजूद क्यों अटक गया था ये बिल?
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संसद के विशेष सत्र शुरू के साथ ही एक बार फिर महिला आरक्षण पर सुगबुगाहट तेज हो गई है। माना जा रहा है कि केंद्र सरकार महिला आरक्षण बिल ला सकती है। संसद के विशेष सत्र में बुधवार को बिल पेश हो सकता है। सरकार की ओर से इस सत्र में चार बिलों को सूचीबद्ध किया गया है।हालांकि विपक्ष की ओर से महिला आरक्षण विधेयक पर जोर दिया जा रहा है।मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का कहना है कि इन्हीं पांच दिनों में महिला आरक्षण बिल को पास करा लिया जाए। इसे लेकर, हैदराबाद में हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में बकायदा प्रस्ताव पारित किया गया है।
दरअसल, सोमवार से शुरू हुए सत्र से ठीक एक दिन पहले सरकार ने सर्वदलीय बैठक का आयोजन किया। इसमें विपक्षी गठबंधन INDIA समेत एनडीए के नेताओं ने हिस्सा लिया। इस दौरान महिला आरक्षण बिल को लेकर चर्चा हुई, जिसे पास कराने को लेकर न सिर्फ इंडिया नेताओं ने हामी भरी, बल्कि एनडीए नेता भी इसके समर्थन में नजर आए। इससे ही साफ हो गया था कि इस बिल को बेहद ही आसानी से संसद से पास करवाया जा सकेगा।
27 साल से अटका है महिला आरक्षण विधेयक
बता दें कि करीब 27 साल से लंबित महिला आरक्षण विधेयक अटका पड़ा है। महिलाओं को सदन में 33 फीसदी आरक्षण देने से जुड़ा बिल आखिरी बार मई 2008 को संसद में पेश किया गया था। तब की यूपीए सरकार ने अपने न्यूनतम साझा कार्यक्रम में महिला बिल को शामिल किया था और इसी वादे को पूरा करते हुए राज्यसभा में 6 मई 2008 को बिल पेश किया गया। फिर 9 मई 2008 को इसे कानून और न्याय से संबंधित स्थायी समिति के पास भेज दिया गया।स्थायी समिति ने लंबी चर्चा के बाद 17 दिसंबर 2009 को अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की और इसे पास करने की सिफारिश की। 2 महीने बाद फरवरी 2010 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस सिफारिश को अपनी मंजूरी दे दी। हालांकि संसद में समाजवादी पार्टी, जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने इसका जमकर विरोध किया। जिसके बाद यह बिल अटकता चला गया।
लोकसभा से नहीं हो सका था पास
आखिरकार बिल पेश होने के करीब 2 साल बाद संसद की ऊपरी सदन ने 9 मई 2010 को अपने यहां पास कर दिया। लेकिन राज्यसभा के बाद जब यह बिल लोकसभा पहुंचा तो कभी यह बिल यहां पास ही नहीं हो सका।दरअसल, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस की ओर से इस बिल का समर्थन किया जाता रहा है लेकिन अन्य क्षेत्रीय दलों के भारी विरोध और पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिए भी आरक्षण की मांग समेत कुछ चीजों पर विरोध के चलते इस पर आम सहमति कभी नहीं बन सकी। साथ ही महिला आरक्षण बिल का विरोध करने वाले दलों की ओर से कहा गया कि इस आरक्षण का फायला सिर्फ शहरी क्षेत्र की महिलाओं को ही मिलेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं की फायदा नहीं होगा और उनकी हिस्सेदारी नहीं हो पाएगी।
विधायी सदनों में महिलाओं की स्थिती
वर्तमान लोकसभा में 78 महिला सदस्य चुनी गईं, जो कुल संख्या 543 के 15 प्रतिशत से भी कम हैं। बीते साल दिसंबर में सरकार द्वारा संसद में साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, राज्यसभा में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व करीब 14 प्रतिशत है। इसके अलावा 10 राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 फीसदी से भी कम है, इनमें आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, ओडिशा, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा और पुडुचेरी शामिल हैं।
छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा महिला विधायक
पिछले साल दिसंबर में जारी आंकड़ों के मुताबिक, राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ में है जहां पर 14.44 फीसदी हिस्सेदारी है। इसके बाद पश्चिम बंगाल में 13.7 फीसदी और झारखंड में 12.35 फीसदी महिला विधायकों के साथ देश में सबसे आगे चल रहे हैं।
Sep 19 2023, 11:34