सरायकेला: मानसून के बदले मिजाज से किसान बदहाल,कही खूब बरस रही है बादल तो कही सुख
सरायकेला: मॉनसून का इस बार कुछ अलग ही मिजाज देखने को मिल रहा है। सावन महीना मे जहां पुरे देश के मिट्टी का प्यास बुझाने की जिम्मेदारी मानसून की होती है, वहीं इस बार मौसम का मिजाज कुछ बदला-बदला सा रहा है ।
"मौसम की यह कैसी माया, कहीं है धुप तो कहीं है बारिश की काया ।"
देश के उत्तरीय कुछ राज्यों मे बे-मौसम का बारिश तबाही मचा रखी है । जिससे जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है ।
गौरतलब है कि, हमारे झारखंड राज्य के कृषक मौसम पर निर्भर रहते हैं। समय पर बारिश उचित मात्रा मे हो तो किसानों का आश बंधता है । इस बार वक्त पर मौसम ने किसानों को धोका दे गया । किसानो का हल और बैल मानसून के इंतजार मे रह गया । सावन का माह किसानों के लिए अभिश्राफ समान रहा । भादो माह के आरंभ मे मॉनसून का असर दिखने लगा । किसान को देर मे ही सही पर कुछ आस बंधने लगा है । पर खेत खलिहानों मे कहीं-कहीं जल का अतिरिक्त जमावड़ा भी देखा जा रहा है । अतिरिक्त जल निकासी मे कठिनाइयों का सामना करना होता है । पास वाले किसान भी एक ही परेशानी को झेल रहा होता है । जिस कारण वे अपने जमीन से जल निकासी मार्ग देने से मना करते है । इस तरह की परेशानी हमारे झारखंड राज्य मे आम है । क्यों कि, यहां किसानो की जमीन छोटे-छोटे टुकड़ों मे बंटा हुआ है । जिस कारण राज्य का कृषि क्षेत्र को क्षति होता है । इस तरह के विसंगत भूमी समायोजन का नीति अलग राज्य होने के बात किसी भी सरकार ने नही बनाया है । जिससे कि, किसानो के बीच कागजी तौर पर टुकड़े-टुकड़े भूमी का अदल - बदल कर कृषि प्रणाली का उत्थान किया जा सके ।
किसानों की दयनीय अवस्था का मूल कारण ही, इसके अव्यवस्थित व्यवस्था प्रणाली है । जिस कारण, भारत एक कृषि प्रधान देश है यह शब्द हर राज्यों के लिए सटीक नही बैठता है ।
झारखंड राज्य मे एक और महत्वपूर्ण कड़ी है जिसका आरंभ ही एक नये श्लोगन के साथ आरंभ किया गया था 1980 के दशक मे । वह है "स्वर्ण रेखा बहुउद्देशीय परियोजना ।" इसके विकास के लिए अरबों - खरबों रूपया जनता से कमाया हुआ पैसा झोंका जा रहा है पर "ढाक के तीन पात" बन कर रह गया है।
जिन समुदाय के लिये इसे आरंभ किया गया था वे कृषक समुदाय के लोगों की अवस्था आज भी वैसे ही है जो सत्तर साल पहले था । हां, इस विकासशील विभाग से सीधे जुड़े हुये एक भी प्राणी अभाव और अनाहार के लिए आज तक आत्म हत्या नही किया है, हां इनके ठिकानों मे ई. डी. का छापा जरूर पड़ता रहा है । आत्म हत्या किया है तो वे किसान जिनके लिए यह बहुउद्देशीय परियोजना आरंभ किया गया था ।
कुल मिलाकर झारखंड राज्य मे नीयत और नीतियों मे कमीज़ तक रहेगा किसानो के पास प्राकृति और मानसून के सिवाय दुसरा और कोई राह नही रह जाता है ।
Sep 15 2023, 13:11