*आला हज़रत का 105वां उर्स-ए-पाक अकीदत के साथ मनाया गया*
गोरखपुर। मंगलवार को शहर में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां अलैहिर्रहमां का 105वां उर्स-ए-पाक अकीदत व मोहब्बत के साथ मनाया गया।
हर तरफ एक ही नारा गूंजा इश्क मोहब्बत-इश्क मोहब्बत, आला हज़रत-आला हज़रत। मस्जिद, मदरसा, घर व सोशल मीडिया पर आला हज़रत को शिद्दत से याद किया गया। उलमा किराम ने तकरीर में आला हज़रत की ज़िन्दगी के हर पहलू पर रोशनी डाली।
इमामबाड़ा इस्टेट पूरब फाटक मियां बाज़ार, नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर, मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती, सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफरा, सुप्पन खां की मस्जिद खूनीपुर, जामा मस्जिद रसूलपुर, अंधियारी बाग स्थित मदरसतुल मदीना, मदरसा दारूल उलूम हुसैनिया इमामबाड़ा दीवान बाजार, जामियातुल मदीना फैजाने सूफी निजामुद्दीन तकिया कवलदह, मदरसा तजवीदुल कुरआन लिल बनात अलहदादपुर, चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर आदि में उर्स-ए-आला हज़रत के मौके पर महफिल सजी। क़ुरआन ख्वानी, फातिहा ख़्वानी व दुआ ख़्वानी की गई। नात व मनकबत पेश हुई। कुल शरीफ की रस्म हुई। अकीदतमंदों में लंगर बांटा गया।
इमामबाड़ा इस्टेट पूरब फाटक मियां बाजार पर भव्य जलसा हुआ। नात व मनकबत हाफिज आरिफ रजा व रिजाउल मुस्तफा मदनी ने पेश की। संबोधित करते हुए हाजी आजम अत्तारी व मौलाना कादरी अलीमी ने कहा कि ने पूरी दुनिया में आला हज़रत की ज़िन्दगी व फतावों पर रिसर्च किया जा रहा है।
आज पूरी दुनिया में उर्स-ए-आला हज़रत मनाया जा रहा है। जो इस बात का सबूत है कि आज दुनिया के हर कोने में आला हज़रत के चाहने वाले मौजूद हैं। आला हज़रत का “फतावा रज़विया” इस्लामी कानून (फिक्ह हनफ़ी) का इंसाइक्लोपीडिया है। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान की दुआ मांगी गई।
नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर में महफिल हुई।
मौलाना असलम रज़वी व मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने कहा कि आला हज़रत पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर जानो दिल से फ़िदा व क़ुर्बान थे। तकरीर के बाद कुल शरीफ की रस्म अदा की गई। अंत में सलातो सलाम पढ़कर दुआ मांगी गई। अकीदतमंदों में लंगर बांटा गया।
महफिल में शाबान अहमद, अलाउद्दीन निज़ामी, अशरफ़ निज़ामी, मनोव्वर अहमद, हाजी जलालुद्दीन कादरी, आकिब अंसारी, कारी अंसारुल हक, कारी मो. मोहसिन रजा, मौलाना मकबूल आदि मौजूद रहे।
मदरसा तजवीदुल कुरआन लिल बनात अलहदादपुर में उर्स-ए-आला हज़रत मनाया गया। महफिल सजी।
जिसमें आलिमा महजबीन सुल्तानी ने कहा कि आला हज़रत ने 13 साल की उम्र से ही फतवा लिखना और लोगों को दीन-ए-इस्लाम का सही पैग़ाम पहुंचाना शुरू कर दिया। पूरी उम्र दीन की खिदमत में गुजारी।
आला हज़रत द्वारा किया गया क़ुरआन पाक का उर्दू में तर्जुमा ‘कंजुल ईमान’ व ‘फतावा रज़विया’ बेमिसाल है। महफ़िल में अफजल रजा गुलाम यजदानी, सना परवीन, अलशिफा कादरी, इल्मा कादरी, फरहीन फातिमा, नौशीन फातिमा आदि मौजूद रहीं।
सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफरा बाजार में हाफिज रहमत अली निजामी ने कहा कि आला हज़रत 14वीं व 15वीं सदी हिजरी के अज़ीम मुजद्दिद हैं।
जिन्हें उस समय के प्रसिद्ध अरब व अज़म के विद्वानों ने यह उपाधि दी। आला हज़रत ने हिंद उपमहाद्वीप के मुसलमानों के दिलों में अल्लाह और पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के प्रति प्रेम भर कर पैग़ंबरे इस्लाम की सुन्नतों को ज़िन्दा किया। आप सच्चे समाज सुधारक थे। आप मुल्क से बहुत मोहब्बत करते थे।
मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक में मुफ्ती मेराज अहमद कादरी ने कहा कि आला हज़रत को अल्लाह व पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और गहरा इश्क था। जिसको आपने ‘हदाइके बख्शिश’ में नातो मनकब के जरिए बयान किया है।
Sep 13 2023, 18:15