*देश- दुनिया में हिन्दी साहित्य के सम्वर्द्धन में प्रवासी भारतीयों की भूमिका अहम- डॉ अर्जुन पाण्डेय*
अमेठी- विशाखापट्टनम हिन्दी विभाग, आंध्र विश्वविद्यालय, विशाखा हिन्दी परिषद तथा अवधी साहित्य संस्थान अमेठी उत्तर प्रदेश के संयुक्त तत्त्वावधान में 'हिन्दी साहित्य के सम्वर्द्धन बोलियों की भूमिका' विषयक विचार गोष्ठी तथा कवि सम्मेलन का शुभारम्भ अतिथियों द्वारा मां सरस्वती जी के चित्र पर द्वीप प्रज्वलन एवं माल्यार्पण के साथ हुआ। गोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि प्राचार्य प्रो. नरसिंहा राव ने अपने उद्बोधन में कहा कि हिन्दी साहित्य के सम्वर्द्धन में बोलियों की भूमिका अहम है। देश में भाषा, साहित्य एवं बोलियों में समन्वय स्थापित करके ही हिन्दी साहित्य को संवारा जा सकता है।
विषय का प्रवर्तन करते हुए मुख्य वक्ता अध्यक्ष अवधी साहित्य संस्थान अमेठी डॉ. अर्जुन पाण्डेय ने कहा कि भाषा विभिन्न प्रकार की बोलियों का समन्वय है। जहां एक ओर बोली का स्वरूप स्वतन्त्र, मौखिक एवं लिपि विहीन होता है, वहीं भाषा व्याकरण एवं लिपि के अधीन होती है। बोली का लिखित रूप ही भाषा है। बोली और भाषा में समन्वय स्थापित करके ही हिन्दी साहित्य का सम्वर्द्धन सम्भव है। दुनिया के खाके मे लगभग 7100 भाषाओं में हिन्दी साहित्य तीसरे स्थान पर पहुंच चुकी है। सारी दुनिया में हिन्दी साहित्य के सम्वर्द्धन में प्रवासी भारतीयों की भूमिका अहम है। हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व है। विशिष्ट अतिथि विशाखा हिंदी परिषद के अध्यक्ष प्रो. एस एम इक़बाल ने कहा कि भाषा हमें एक दूसरे से जुड़ने का अवसर प्रदान करती है। बोली आम लोगों से जुड़ी होती है। बोलियों का लोक साहित्य में सर्वाधिक महत्व है।बोली, भाषा एवं साहित्य को एक सूत्र में पिरोकर ही सांस्कृतिक एकता स्थापित हो सकती है। देश का समाकलित विकास एक देश एक भाषा द्वारा संभव है।
संकल्प साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थान के अध्यक्ष ज्योत नारायण दिनकर ने कहा कि बोली का प्रभाव सीधे भाषा पर पड़ता है। एक देश एक भाषा के माध्यम से ही साहित्य का संवर्धन करके राष्ट्र का समग्र विकास संभव है। प्रो. अरुण मिश्र ने कहा कि बाजारीकरण एवं भूमंडलीकरण ने अनेक विसंगतियों को जन्म दिया। किसी भी देश की सांस्कृतिक एकता वहां के साहित्य पर निर्भर है। युवा साहित्यकार डॉ. शिवम् तिवारी ने कहा कि किसी भी देश में भाषा का विकास वहां पर बोली जाने वाली बोलियों पर निर्भर करता है। हमें अपनी भाषा पर गर्व होना चाहिए।
प्रख्यात साहित्यकार प्रो. एस सूरप्पडु ने कहा कि यदि द्रविड़ के रामानंद उत्तर न गए होते तो भक्ति परम्परा के महाकव्य साखी, सबद ,रमैनी, श्रीरामचरितमानस और सूरसागर का आविर्भाव न होता। प्रो. के सीतालक्ष्मी ने कहा कि भाषा तो नियमों की मोहताज होती है, सार्थक शब्दों के समूह को भाषा कहते हैं। निरन्तर हिन्दी साहित्य का सम्वर्द्धन वहां की बोलियों की देन है। साहित्य मनीषी प्रो.जे विजया भारती ने कहा कि बोलियां क्षेत्रीय एवं देशज भाषा की उपज है, जो वहां के साहित्य संवर्धन में सहायक है।प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए पूर्व हिन्दी अफसर डॉ.एस कृष्ण बाबू ने कहा कि अवधी एवं ब्रजी सशक्त बोलियां हैं। महात्मा कबीर की साधुक्कडी भाषा में अनेक बोलियों का समन्वय है। हिन्दी साहित्य इन्हीं बोलियों की देन है।
द्वितीय सत्र में कवि सम्मेलन का आयोजन डॉ. दीपा गुप्ता की अध्यक्षता में हुआ। सुधा कुमारी जूही, लोक गायिका शांति मिश्रा गुंजन, उज्जवल गोयल डॉ अर्जुन पाण्डेय, शिवम् तिवारी और सुब्रह्मण्यम ने अपनी मनोरंजक रचनाओं के माध्यम से लोगों का मन मोह लिया।इस अवसर पर अवधी साहित्य संस्थान अमेठी द्वारा प्रो. नरसिंहा राव, प्रो. एस एम इकबाल, ज्योत नारायण दिनकर, प्रो. एस सूरप्पडु, प्रो. के सीतालक्ष्मी, प्रो. जे विजया भारती, डॉ. एस कृष्ण बाबू को तुलसी अवधी सम्मान से सम्मानित किया गया। साथ ही विशाखा हिंदी परिषद द्वारा प्रो. अर्जुन पांडेय, प्रो. अरुण कुमार मिश्र, शांति मिश्रा गुंजन, डॉ. शिवम् तिवारी, डॉ. जय प्रकाश सिंह, युधिष्ठिर पांडेय को आचार्य गुंड्रा सुंदर रेड्डी सम्मान से विभूषित किया गया। आभार ज्ञापन प्रो. वाई वेंकट लक्ष्मी द्वा्रा किया गया। राष्ट्रीय गोष्ठी में आन्ध्र प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश के साहित्यकारों के साथ सैंकड़ों की संख्या में छात्र-छात्राएं एवं शोध छात्रों की उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रही कार्यक्रम का संचालन डॉ. शिवम् तिवारी ने किया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान से हुआ।
Aug 20 2023, 14:16