नर्सिंग की जनक फ्लोरेंस नाइटिंगेल की 113वी पुण्यतिथि पर सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन की अपील, दीन दुखियों एवं मानवता की सेवा को आगे आए विश्व की नई
दीन दुखियों एवं मानवता की सेवा को आगे आए विश्व की नई पीढ़ी


बेतिया : आज दिनांक 13 अगस्त 2023 को सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में मानवता की प्रतिमूर्ति आधुनिक नर्सिंग के जनक फ्लोरेंस नाइटिंगेल की 113वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेस्डर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता ,डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड, डॉ शाहनवाज अली, डॉ अमित कुमार लोहिया, मदर ताहिरा चैरिटेबल ट्रस्ट की निदेशक एस सबा डॉ अमानुल हक डॉ महबूब उर रहमान ने संयुक्त रूप से कहा कि 12 मई सन् 1820 को उनका जन्म हुआ था। फ्लोरेंस की याद में उनके जन्मादिन पर हर साल 12 मई को वर्ल्डु नर्सिंग डे के रूप में मनाया जाता है।
जिंदगीभर बीमारो एवं रोगियों की सेवा करने वाली फ्लोरेंस का अपना बचपन बीमारी और शारीरीक कमजोरी की चपेट में रहा। वह ग्या रह साल की उम्र तक लिखना ही नहीं सीख सकी। बाद में फ्लोरेंस ने लैटिन, ग्रीक, गणित की औपचारिक शिक्षा ली। गणित फ्लोरेंस का प्रिय विषय हुआ करता था।
इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि 17 साल की उम्र में जब फ्लोरेंस ने अपनी मां से कहा कि वो आगे गणित पढ़ना चाहती है तब उनकी मां ने यह कहकर उनका विरोध किया कि गणित औरतों के पढ़ने का विषय नहीं होता है। 22 साल की उम्र में फ्लोरेंस ने नर्सिंग को अपना करियर बनाने का फैसला किया। उन दिनों अच्छेह घर की लड़कियां नर्स बनने के बारे में सोचती भी नहीं थी। उस पर से फ्लोरेंस एक संपन्ने परिवार की लड़की थी। उनका यह फैसला उनके परिवारवालों को पसंद नहीं आया।
सन् 1854 में ब्रिटेन, फ्रांस मां तुर्की ने रूस के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। युद्ध में घायलों के उपचार के लिए कोई सुविधाएं उपलब्ध, नहीं थी। वहां के अस्प तालों में गंदगी पसरी हुई थी। वहां की स्थिति इतनी विकट थी कि घाव पर बांधने के लिए पट्टीयां भी उपलब्ध नहीं हो पा रही थी। देश की रक्षा के खातिर सीमा पर लड़ रहे सैनिकों की इतनी दयनीय दशा होने के बावजूद वहां की सेना महिलाओं को बतौर नर्स नियुक्तर करने के पक्ष में नहीं थी।
आखिरकार फ्लोरेंस अपनी महिला नर्सों के समूह के साथ अधिकारिक रूप से युद्धस्थ ल पर पहुंची। वहां पर भी उन सभी को केवल इसलिए उपेक्षा का सामना करना पड़ा क्योथकि वे महिलाएं थी। इस बीच रूस ने जवाबी हमला कर दिया। रूस के सैनिकों की संख्या 50,000 थी, जिनका सामना केवल 8000 ब्रिटीश सैनिकों ने किया नतीजतन छह घंटों में 2500 ब्रिटीश सैनिक घायल हो गए। अस्प0तालों की दशा पहले से ज्याादा दयनीय हो गई।
ऐसे समय में फ्लोरेंस नाइटेंगल के मार्गदर्शन में सभी नर्सें जख्मी सैनिकों की सेवा में जुट गई। वे दिन-रात एक कर सैनिकों का उपचार करने में मदद करती रही। अस्प ताल की साफ सफाई से लेकर मरहम-पट्टी तक का काम उन्हों ने किया। वे मरीजों के लिए खाना भी खुद बनाती थी। उनके सोने के लिए एक कमरा तक नहीं था।
इतनी विपरीत परिस्थितियों में वे घायलों की सेवा में जुटी रही। इसी दौरान फ्लोरेंस ने आंकडे व्यीवस्थित ढंग से एकत्रित करने की व्य वस्थाी बनाई। अपने गणित के ज्ञान का प्रयोग करते हुए फ्लोरेंस ने जब मृत्युेदर की गणना की तो पता चला कि साफ-सफाई पर ध्याञन देने से मृत्युलदर साठ प्रतिशत कम हो गई है। नाइटेंगल की सेवा को देखकर सैन्यअ अधिकारियों का रवैया भी बदल गया। इस मेहनत और समर्पण के लिए फ्लोरेंस का सार्वजनिक रूप से सम्माान किया गया और जनता ने धन एकत्रित करके फ्लोरेंस को पहुंचाया ताकि वह अपना काम निरंतर कर सके।
युद्ध खत्मस होने के बाद भी वे गंभीर रूप से घायल सैनिकों की सेवा और सेना के अस्पततालों की दशा सुधारने के अपने काम में लगी रही। सन 1858 में उनकी काम की सराहना रानी विक्टो रिया और प्रिंस अल्बीर्ट ने भी की। सन् 1860 में फ्लोरेंस के अथक प्रयासों का सुखद परिणाम आर्मी मेडिकल स्कूरल की स्थाटपना के रूप में मिला। इसी वर्ष में फ्लोरेंस ने नाइटेंगल ट्रेनिंग स्कूमल की स्था्पना की। इसी साल फ्लोरेंस ने नोट्स ऑन नर्सिंग नाम की पुस्त क का प्रकाशन किया। यह नर्सिंग पाठ्यक्रम के लिए लिखी गई विश्वे की पहली पुस्तनक है।
रोगियों और दुखियों की सेवा करने वाली फ्लोरेंस खुद भी 1861 में किसी रोग का शिकार हो गई इसकी वजह से वे छह सालों तक चल नहीं सकी। इस दौरान भी उनकी सक्रियता बनी रही। वे अस्पसतालों के डिजाइन और चिकित्सार उपकरणों को विकसित करने की दिशा में काम करती रही। साथ में उनका लेखन कार्य भी जारी रहा।
उन्होंहने अपना पूरा जीवन गरीबों, बीमारों और दुखियों की सेवा में समर्पित किया। इसके साथ ही उन्होंहने नर्सिंग के काम को समाज में सम्मामनजनक स्थाकन दिलवाया। इससे पूर्व नर्सिंग के काम को हिकारत की नजरों से देखा जाता था। फ्लोरेंस के इस योगदान के लिए सन 1907 में किंग एडवर्ड ने उन्हें आर्डर ऑफ मेरिट से सम्मा नित किया। आर्डर ऑफ मेरिट पाने वाली पहली महिला फ्लोरेंस नाइटेंगल ही है।
फ्लोरेंस नाइटेंगल के बारे में कहा जाता हैं, कि वह रात के समय अपने हाथों में लालटेन लेकर अस्परताल का चक्केर लगाया करती थी। उन दिनों बिजली के उपकरण नहीं थे, फ्लोरेंस को अपने मरीजों की इतनी फिक्र हुआ करती थी कि दिनभर उनकी देखभाल करने के बावजूद रात को भी वह अस्पीताल में घूमकर यह देखती थी कि कहीं किसी को उनकी जरूरत तो नहीं है।
घायलों की सेवा करने वाली फ्लोरेंस को 'लेडी विथ दि लैंप' का नाम मिला था और उन्हीं की प्रेरणा से महिलाओं को नर्सिंग क्षेत्र में आने की प्रेरणा मिली थी। फ्लोरेंस नाइटेंगल का 90 वर्ष की उम्र में 13 अगस्त, 1910 को निधन हो गया। इस मंच के माध्यम से हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
Aug 15 2023, 14:43