औरंगाबाद के लाल कुमार जगतपति ने आजादी की लड़ाई में गोली लगने के बाद भी नहीं छोड़ा था तिरंगा, आज जिला प्रशासन ने उन्हे दिया है भूला
औरंगाबाद : जिले के कई स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका निभाई थी। देश के आजादी के लिए शहीद भी हुए थे, जिसमें एक औरंगाबाद जिले के ओबरा प्रखंड के खरांटी निवासी कुमार जगतपति भी थे।
आजादी की लड़ाई में अपनी प्राणों का परवाह नहीं करने वाले इस स्वतंत्रता सेनानी के सम्मान में प्रशासनिक उदासीनता के कारण आजतक आदमकद प्रतिमा भी नहीं बनी। उनके आवास भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है और अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर है।
सरकार द्वारा ऐतिहासिक धरोहरों को सहेजने की बात कही जाती है, लेकिन यहां ऐतिहासिक धरोहर स्वतंत्रता सेनानी कुमार जगतपति के आवास का अस्तित्व समाप्त होने वाला है। स्थानीय कमेटी द्वारा कई बार जिला प्रशासन से कुमार जगपति से जुड़े चीजों को सहेजने की मांग की गई, लेकिन आज तक कोई ठोस कदम जिला प्रशासन द्वारा नहीं उठाया गया है।
गांव में हुई थी प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा
7 मार्च 1923 को जन्म लेने वाले कुमार जगपति के पिता सुखराज बहादुर जमींदार थे। सुखराज बहादुर के तीन संतान थे। बड़ा बेटा केदार नाथ सिन्हा जो पिता के काम में हाथ बटाते थे। दूसरे नम्बर पर सरजू प्रसाद सिन्हा जो असम के हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और राज्यपाल भी रहे और तीसरे नम्बर पर कुमार जगतपति थे।
1932 में पहुंचे थे पटना
कुमार जगतपति के प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा गांव में हुआ था। इसके बाद वे 1932 में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के पटना चले गए। उन्होंने 1938 में पटना के कॉलेजियट स्कूल से मैट्रिक की पढ़ाई किया। इसके बाद पटना के बीएन कॉलेज में दाखिला लिया।
गोली खाने के बावजूद नहीं झुकने दिया था तिरंगा
अंग्रेजों के बढ़ते अत्याचार को देखते हुए 1942 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की शुरूआत की, जिसे अगस्त क्रांति के रूप में भी जाना जाता है। बापू के आह्वान पर 11 अगस्त 1942 की दोपहर 2:00 बजे पटना सचिवालय पर झंडा फहराने सात युवा निकले थे। इनमें कुमार जगतपति भी शामिल थे।
इन 7 युवा पर जिलाधिकारी डब्लू जी ऑर्थर के आदेश पर पुलिस ने गोलियां बरसाई थी। जगतपति को एक गोली हाथ में लगी और दूसरी गोली सीने में, तीसरी गोली जांघ में लगी थी। इसके बावजूद उन्होंने तिरंगे को झुकने नहीं दिया था। गोली लगने के बाद भी सातो युवाओं ने तिरंगा लहरा दिया था। सात शहीदों में तीसरे नंबर पर कुमार जगतपति थे।
स्थानीय लोगों द्वारा बनवाया गया है प्रतिमा
कुमार जगतपति के शहादत के बाद स्थानीय लोगों की ओर से साल 1976 में शहीद की निजी जमीन पर उनका स्मारक बनाया गया। वहीं पूर्व विधायक राजाराम सिंह के द्वारा अपने कार्यकाल में स्मारक का सौंदर्यीकरण कराया गया था, लेकिन इसके बाद अब तक यहां कुमार जगतपति की आदमकद प्रतिमा नहीं लगाई गई है।
वहीं इनके शहादत दिवस पर किसी भी तरह का कोई प्रशासनिक कार्यक्रम भी आयोजित नहीं किया जाता है। जो प्रशासनिक उदासीनता को दर्शाता है। इतना ही नहीं शहीद का घर भी खंडहर में तब्दील हो चुका है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि कई बार प्रशासन से कुमार जगपति के आदमकद प्रतिमा लगवाने, उनके आवास का जीर्णोद्धार कराने, स्कूल या सड़क कुमार जगपति के नाम पर करने की मांग की गई, लेकिन आज तक प्रशासन द्वारा कुछ नहीं कराया गया।
औरंगाबाद से धीरेन्द्र
Aug 15 2023, 13:09