औरंगाबाद में हो रही सेव की खेती
औरंगाबाद()।बिहार का खांटी व्यंजन लिट्टी-चोखा अब हर भारतीय की थाली तक पहुंच चुका है लेकिन जब हम यह कहे कि थोड़ा सा इंतजार कीजिएं और कश्मीरी के बाद ठेठ बिहारी सेव के स्वाद का भी मजा लीजिएं, तो यह सुनकर आपके मुंह में पानी आ जाएंगा। तो जान लीजिएं वह शुभ घड़ी जल्द ही आनेवाली है,
जब बिहारवासी ही नही बल्कि देश के किसी भी हिस्से में रहनेवाले लोग बिहारी सेव खाने का आनंद ले सकेंगे। इसे लेकर खुशखबरी यह है कि बिहार सेव के पेड़ में छोटे-छोटे फल आ गएं है। फल अभी हरे और कच्चे है। जैसे ही पककर तैयार हो जाएंगे, वैसे ही आप खांटी बिहारी सेव के मजे ले सकेंगे। यह सब जानने के बाद उत्सुकता जग रही होगी कि आखिर बिहार में सेव की खेती कहां हो रही है, तो जान लीजिए यह खेती औरंगाबाद के कुटुम्बा प्रखंड के चिल्हकी गांव में हो रही है, जो पहले से ही बिहार में स्ट्राबेरी की खेती का हब बना हुआ है। यही के प्रगतिशील किसान ब्रजकिशोर मेहता ने सेव की खेती की है। खेती अभी प्रायोगिक स्टेज में है।
उन्होंने 2 कट्ठा खेत में सेव के 100 पेड़ लगाए है। सेव के पौधों में फल आ गए। फल अभी छोटे और हरे है जो धीरे-धीरे बड़े होकर पककर लाल होंगे, तब इसका मजा लिया जा सकेगाप्रतिकूल मौसम के अनुकूल सेव की हो रही खेती-औरंगाबाद की गिनती गया के बाद बिहार के सर्वाधिक गर्म जिले के रूप में होती है। औरंगाबाद के सिरिस स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि मौसम वैज्ञानिक डॉ. अनूप चौबे बताते है कि गर्म प्रदेश सेव की खेती के लिए अनुकूल नही है। इसके बावजूद कृषि वैज्ञानिकों ने सेव की कुछ अलग तरह की किस्म विकसित की है, जिनकी खेती सामान्य इलाकों में भी की जा सकती है लेकिन ऐसी खेती श्रम साध्य है।
हरमन-99 किस्म के सेव की हो रही खेती-चिल्हकी बिगहा में सेव के हरमन-99 किस्म की खेती हो रही है। इस प्रजाति के सेव की यह विशेषता है कि है कि इस किस्म को गर्म मौसम में भी उगाया जा सकता है।
हरमन-99 किस्म के सेव के पौधे 45 डिग्री तक का तापमान सहन करने में सक्षम है। यह तीन साल के अंदर फल देना शुरू कर देता है। इसके एक पौधे से तीन साल बाद 25 से 30 किलो सेव की उपज प्राप्त होता है। यहां सेव की खेती कर रहे किसान ब्रजकिशोर मेहता बताते है कि सेव की खेती शुरू करने से पहले उन्होंने समस्तीपुर के पूसा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र जाकर ट्रेनिंग ली थी। जिला उद्यान कार्यालय द्वारा उन्हें ट्रेनिंग के लिए भेजा गया था। वहां उन्होने गर्म मौसम में भी सेब की खेती करने की बारीकीयां सीखी। ट्रेनिंग के बाद उद्यान विभाग ने ही उन्हे अनुदान पर सेव के हरमन-99 किस्म के पौधे उपलब्ध कराए। उन्होने बताया कि सेव के 100 पौधे खरीदने में 10 हजार रुपये खर्च हुए थे। दो साल की देखभाल और सेवा करने के बाद अब पौधे में सेव के फल आ गए है।
वें चाहे तो इन फलो को पेड़ में ही लगा छोड़कर तैयार होने पर बिक्री के लिए बाजार में उतार सकते है लेकिन ऐसा करना जल्दीबाजी होगी। अभी पौधों को मजबूती देने के लिए फलों को कच्ची अवस्था में ही तोड़ देना जरूरी है। ऐसा करने से अगली बार फल भी ज्यादा मात्रा में आएंगी और पौधे भी मजबूत होंगे।
उन्होने कहा कि जिस हरमन-99 किस्म के सेव की वें खेती कर रहे है, उसके पौधे की आयु 25 से 30 साल की होती है। इस अवधि तक ये पौधे फल देते रहते है। यानी कि एक बार खेती शुरू करने के बाद आप 25 साल तक कमाई कर सकते हैं।
गौरतलब है कि ब्रज किशोर मेहता ने बिहार में सबसे पहले स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की थी। साल 2012 में महज 6 पौधों से उन्होंने इसकी खेती शुरू की थी। फिर, साल 2014 में उन्होंने 10 कट्ठे में स्ट्रॉबेरी के खेती की। इससे उन्हें अच्छी आमदनी हुई। इसके बाद उन्होने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब वे कई तरह की बागवानी फसलों की खेती कर रहे हैं, जिससे अच्छी कमाई हो रही है और अब वें सेव की खेती में भी जुटे है।।
May 24 2023, 16:44