प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 आरंभ होने की 166वीं वर्षगांठ पर विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा भव्य कार्यक्रम का आयोजन
बेतिया: सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में भारत की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857आरंभ होने की 166 वी वर्षगांठ पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ,बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया ।
इस अवसर पर सर्वप्रथम डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता ब्रांड एंबेसडर स्वच्छ भारत मिशन सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन, डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड, डॉ अमित कुमार लोहिया, डॉ शाहनवाज अली, पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन, मदर ताहिरा चैरिटेबल वेलफेयर ट्रस्ट की निदेशक एस सबा, डॉ महबूब उर रहमान एवं अल बयान के संपादक डॉ सलाम ने संयुक्त रूप से 1857 के महानायक स्वतंत्रता सेनानी बहादुर शाह जफर , बेगम हजरत महल,रानी लक्ष्मीबाई , तात्या टोपे ,वीर कुंवर सिंह , स्वतंत्रता सेनानियों एवं अमर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि आज ही के दिन 10 मई 1857को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का शंखनाद हुआ था। स्वतंत्रता सेनानियों ने बहादुर शाह जफर को स्वतंत्रता आंदोलन का मुखिया मानते हुए उन्हें फिर से दिल्ली के गद्दी पर बैठाया था। मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के नेतृत्व में रानी लक्ष्मीबाई, कुंवर सिंह, बहादुर शाह, नाना साहब, तातिया टोपे और बेगम हजरत महल के साथ देश की हजारों स्वतंत्रता सेनानी शामिल थे।
लखनऊ के नजदीक बेगम हजरत महल एवं झांसी की रानी के नेतृत्व भारतीयों के प्रति अंग्रेज शासकों का व्यवहार उचित नहीं था। 1857 के आंदोलन के बाद भारत के हजारों युवाओं को मौत के घाट उतार दिया गया। इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 मे दिल्ली के खूनी दरवाजा जिसे लाल दरवाजा भी कहा जाता है। दिल्ली में बहादुर शाह जफर मार्ग पर दिल्ली गेट के निकट स्थित है। यह दिल्ली के बचे हुए 13 ऐतिहासिक दरवाजों में से एक है। यही वह दरवाजा है जहां अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के दो बेटों व एक पोते को अंग्रेजों ने बर्बरता पूर्वक मानवी तरीके से धोखे से शहीद कर दिया था।
यही वह दरवाजा है जहां अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के दो बेटों व एक पोते को 1857 में अंग्रेजों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसी हत्याकांड से इस दरवाजा के नाम खूनी दरवाजा रख दिया गया। जिस रोड पर यह दरवाजा स्थित है, देश के स्वाधीन होने के बाद इस रोड का नाम बहादुर शाह जफर मार्ग रखा गया।खूनी दरवाजा पुरानी दिल्ली के लगभग आधा किलोमीटर दक्षिण में फिरोज शाह कोटला मैदान के सामने स्थित है।
इसके पश्चिम में मौलाना आजाद चिकित्सीय महाविद्यालय का द्वार है। यह असल में दरवाजा न होकर तोरण है। भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसे सुरक्षित स्मारक घोषित किया है। इस दरवाजे का का नाम खूनी दरवाजा तब पड़ा जब यहां मुगल सल्तनत के तीन शहजादों को हत्या कर लटका दिया गया। इनमें शामिल थे अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के बेटे मिर्जा मुगल और मिर्जा सुल्तान और बहादुर शाह के पोते अबू बकर।
ब्रिटिश जनरल विलियम हॉडसन ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गोली मार हत्या कर दी। मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर के आत्मसमर्पण के अगले ही दिन विलियम हॉडसन ने तीनों शहजादों को भी समर्पण करने पर मजबूर कर दिया। 22 सितम्बर को जब वह इन तीनों को हुमायूं के मकबरे से लाल किले ले जा रहा था। इन शहजादों को विश्वास में लिया गया था कि उन्हें लालकिला ले जाया जाएगा। जहां उन पर मुकदमा चलेगा। उनका विद्रोह में योगदान नहीं है तो उन्हें मुक्त कर दिया जाएगा। उन दिनों अंग्रेजों की अदालत लालकिला में थी।
वहीं मामलों की सुनवाई होनी थी। अंग्रेज सैनिक तीनों शहजादों को हुमायूं के मकबरे से लेकर लालकिला के लिए चले थे तो उनके पीछे बड़ी संख्या में जनता हो ली थी।
शहजादों की गिरफ्तारी पर जनता में भारी रोष था। ब्रिटिश जनरल विलियम हाडसन भी अंग्रेज सैनिकों के साथ था। खूनी दरवाजे पर हाडसन ने तीनों शहजादों को रोका, उन्हें नग्न किया और कतार में खड़ा कर गोलियां दाग कर मार डाला। इसके बाद शवों को इसी हालत में ले जाकर कोतवाली के सामने लटका दिया गया।
डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता कहते हैं कि शहजादों की हत्या और उन्हें कोतवाली पर लटकाए जाने का मकसद अंग्रेजों द्वारा जनता में भय व्याप्त करना था ताकि विद्रोह में शामिल होने से अन्य लोग डरें। मगर इससे उल्टा हुआ।
निर्दोष शहजादों को इस तरह से मार देने से जनता में अंग्रेजों के प्रति भयंकर आक्रोश पैदा हुआ। लोग गुस्से से भर गए और बागी सैनिकों का हर तरह से साथ देने लग गए थे। इस मंच के माध्यम से हम सभी स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
May 11 2023, 16:57