तत्कालीन बिहार की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाली धनबाद को।कोयले के प्रचुर भंडार के कारण पूरे देश में मिली पहचान
धनबाद : राज्य पुनर्निर्माण आयोग की सिफारिश पर धनबाद जिला 24.10.1956 को बनाया गया था। धनबाद के तत्कालीन जिले में दो अनुमंडल होते थे, अर्थात् धनबाद सदर एवं बाघमारा। 01.04.1991 को चास के नाम से जाना जाने वाला बाघमारा अनुमंडल बोकारो जिले का हिस्सा बन गया।
झारखंड में एक बड़ा कोयला क्षेत्र है। झरिया 19.4 बिलियन टन कोकिंग कोल के अनुमानित भंडार वाले भारत में सबसे बड़े कोयला भंडार का प्रतिनिधित्व करता है।भारत के सबसे अमीर कोयला खानों में से एक के लिए प्रसिद्ध है जिसमें कोकिंग कोयला की अच्छी गुणवत्ता की सबसे बड़ी जमा है। यह टिस्को और आईआईएससीओ की गुणवत्ता खनन और वॉशरी के लिए भी मान्यता प्राप्त गोविन्द नाथ शर्मा, झरिया हैं । लगभग 350 साल पुराना झारखंड का ऐतिहासिक झरिया शहर काले हीरे की नगरी और आग के ऊपर बसे शहर के रूप में देश ही नहीं विदेशों में भी मशहूर है। झरिया की और कई बातें इस शहर को खास और मशहूर बनाता है।
आज इसके बारे में आपको विस्तार से अवगत कराते हैं। इस ऐतिहासिक शहर की और अधिक जानकारी पाकर आपका भी मन बाग- बाग हो जाएगा। आग के ऊपर बसा काले हीरे की नगरी झरिया अभी भी आबाद है। लेकिन इस ऐतिहासिक शहर में जमीनी आग के कारण चारों ओर से खतरा मंडरा रहा है। झरिया लगभग 77 हजार एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार झरिया की आबादी पांच लाख 41 हजार है। वर्तमान समय में झरिया धनबाद नगर निगम के अधीन है। झरिया अंचल में 34 से 53 नंबर तक वार्ड हैं। जबकि विधानसभा में एक वार्ड कम 52 तक ही है।
मतदाताओं की संख्या अभी लगभग तीन लाख 25 हजार है। कांग्रेस की पूर्णिमा नीरज सिंह अभी झरिया की विधायक है। पांच लाख से अधिक की आबादी वाले आग के ऊपर बसे कोयले की इस नगरी के बारे में कई खास जानकारी पाकर आप भी कह उठेंगे वाह झरिया।झरिया की जमीन के नीचे उच्च कोटि के कोकिंग कोल का है भंडार।
झरिया में सबसे उच्च कोटि के कोकिंग कोल का अथाह भंडार यहां की जमीन के नीचे है। 1900 के पहले निजी खान मालिकों ने यहां से कोयला निकालना शुरु किया। कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया जब भारत में कोयला खानों का राष्ट्रीयकरण 1971 – 72 में किया जा रहा था। यह राष्ट्रीयकरण इंदिरा गांधी के सरकार राज में हुआ था ।होने के बाद से भारत कोकिंग कोल लिमिटेड की ओर से यहां कोयले का खनन किया जा रहा है। अधिकांश क्षेत्रों में भारत कोकिंग कोल लिमिटेड की ही खदानें व परियोजनाएं हैं। 90 प्रतिशत भूमिगत खदानें बंद हो चुकी हैं। अब आउटसोर्सिंग परियोजना के माध्यम से कोयला खनन किया जा रहा है। झरिया में बीसीसीएल के अलावा स्टील अथॉरिटी इंडिया लिमिटेड सेल और निजी कंपनी टाटा स्टील की ओर से भी यहां की खदानों से कोयले का खनन किया जा रहा है। यह कोयला देश के विभिन्न बिजली संयंत्रों और स्टील कंपनियों को मालगाड़ी से भेजा जाता है। कोयला खान विशेषज्ञों का कहना है कि झरिया में अभी भी इतना कोयले का भंडार है कि दशकों तक इसे निकालने के बाद भी यह समाप्त नहीं होगा।
दशकों तक राजाओं ने झरिया में किया राज
झरिया राजाओं का शहर रहा। झरिया राजा परिवार के लोग दशकों तक यहां शासन किए। 350 वर्ष पूर्व रीवा राजघराना के चार भाई अपने शासन का विस्तार करने के लिए झरिया पहुंचे थे।
एक शताब्दी से आग के ऊपर बसा है झरिया
आज भी आग के ऊपर झरिया बसा है। एक शताब्दी से भी अधिक समय से यहां की जमीन में लगी आग आज भी धधक रही है। वर्ष 1916 में पहली बार झरिया के भौंरा कोलियरी की कोयला खान में आग लगी थी। इसके बाद धीरे-धीरे अन्य क्षेत्रों में भी आग लग गई। लगातार ऑक्सीजन मिलने के कारण आग धधकती चली गई। एक शताब्दी के बाद भी अरबों-खरबों रुपये खर्च करने के बाद भी आग पर काबू नहीं पाया जा सका है। आज भी झरिया के दर्जनों इलाके में आग लगी है।
अग्नि व भू धंसान इलाके में दशकों से हजारों लोग रहते आ रहे हैं। केंद्र सरकार के झरिया मास्टर प्लान के तहत अभी तक इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को पूरी तरह से पुनर्वास नहीं किया जा सका है। लोग जान हथेली पर रखकर रहने को मजबूर हैं। आग दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है।
ऊपर मकान नीचे दुकान यही है झरिया बाजार की पहचान
लगभग साढ़े पांच लाख की आबादी वाले झरिया कोयलांचल का मुख्य प्राचीन बाजार झरिया शहर में स्थित है। शुरू में इस प्राचीन शहर के बाजार को कोलकाता के बाजार के रूप में बसाया गया था। मात्र एक किलोमीटर के अंदर ही झरिया का मुख्य बाजार स्थित है। यहां लगभग पांच हजार हर तरह की दुकानें हैं। हर तरह के सामान इस बाजार में मिलते हैं। झरिया के बाजार की खासियत यह है कि ऊपर मकान और नीचे दुकान है। ऐसा लगभग एक शताब्दी से चलता आ रहा है। एक समय झरिया बाजार में झारखंड के अलावा पश्चिम बंगाल के लोग भी खरीदारी करने आते थे। लेकिन तीन दशक पहले यहां के मुख्य बाजार अनाज व फल मंडी को धनबाद स्थानांतरित कर दिए जाने के कारण इसकी रौनक कुछ फीकी हो गई है। इसके अलावा झरिया बाजार के आसपास छोटे-छोटे बाजार हो गए हैं ।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी व देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद भी आए थे झरिया
देश में चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तीन बार झरिया की धरती पर पांव रखे थे। उनके साथ देशबंधु चितरंजन दास व अन्य स्वतंत्र सेनानी भी थे। गया में कांग्रेस के अधिवेशन के दौरान महात्मा गांधी यहां के निजी कोयला खान मालिक, उद्योगपति, समाजसेवी रामजश अगरवाला के घर आर्थिक सहयोग के लिए पहुंचे थे। इस दौरान उद्योगपति रामजश अग्रवाला ने महात्मा गांधी को ब्लैंक चेक देकर झरिया का नाम रोशन किया था।
इलियास और गयास अहमद ने साहित्य में झरिया को दिलाई पहचान
झरिया शहर के गद्दी मोहल्ला में रहने वाले गयास अहमद गद्दी और इनके भाई इलियास अहमद गद्दी ने साहित्य के क्षेत्र में झरिया को प्रसिद्धि दिलाई। दोनों सहोदर भाई साहित्य के क्षेत्र में ऐसा नाम किए हैं कि आज भी देश-विदेश के लोग झरिया को साहित्य की उर्वरा भूमि के रूप में जानते हैं। गयास अहमद गद्दी ने अपनी उर्दू कहानियों से देश और विदेश में प्रसिद्धि पाई। इनकी कहानियां परिंदा पकड़ने वाली गाड़ी व अन्य देश के कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती हैं। वहिं इलियास अहमद गद्दी ने फायर एरिया उर्दू उपन्यास लिखा। इसके लिए इलियास को साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला। दोनों भाई अब इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन दोनों की रचनाएं आज भी जीवित हैं। दोनों साहित्यकारों के परिवार वाले आज भी झरिया में ही रह रहे हैं।
झरिया की आग को देखने आते हैं हर साल दर्जनों विदेशी
आग के ऊपर बसे काले हीरे की नगरी झरिया को देखने के लिए हर साल दर्जनों विदेशी यहां आते हैं।
झरिया की मिठाई मेसु हर जगह है मशहूर
बेसन और चीनी से बनी झरिया की मिठाई मेसु हर जगह मशहूर है। लगभग 75 वर्षों से इसे झरिया में बनाया जा रहा है। यह मात्र 120 रुपये प्रति किलो की दर से मिलता है। झरिया की मेसु मिठाई की प्रसिद्धि का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि झरिया बाजार में इसके 50 थोक और पांच सौ खुदरा की दुकानें हैं। थोक मेसु बेचने वाले गोलघर के महेश गुप्ता और सुरेश गुप्ता ने बताया कि दादा देवनारायण साव ने इस मिठाई को बेचने की शुरुआत की थी। इसके बाद पिता मुंशी साव इसे बेचने का कार्य किया। अभी हम दोनों भाई थोक में इसका कारोबार करते हैं। झरिया की यह मिठाई इतनी प्रसिद्ध है कि इसकी डिमांड झारखंड और बिहार के कई जिलों में है। झरिया में हर दिन लगभग 20 क्विंटल मेसु की बिक्री होती है। संदेश के रूप में भी इसे ज्यादातर लोग ले जाते हैं।
झरिया मे ही बना था फिल्म कला पत्थर*
साल 1979 में रिलीज हुई काला पत्थर एक एक्शन फिल्म थी। इस फिल्म में अमिताभ बच्चन और शशि कपूर मुख्य भूमिका में थे। काला पत्थर यश चोपड़ा द्वारा अभिनीत थी और चासनाला खनन आपदा पर आधारित थी। वास्तविक घटना 27 दिसंबर 1975 को झारखंड के धनबाद के पास चासनाला में एक कोयला खदान में हुई थी।
Mar 16 2023, 14:28