जम्मू कश्मीर में पर्यटकों की सुरक्षा को लेकर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार, जानें क्या कहा

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सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू और कश्मीर में पर्यटकों की सुरक्षा को लेकर दायर एक जनहित याचिक को खारिज कर दिया है। सर्वोच्च अदालत ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए कहा कि यह पीआईएल सिर्फ प्रचार पाने के लिए की गई है। इसमें जनहित का कोई मामला नहीं है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 1 मई को पहलगाम आतंकी हमले की न्यायिक जांच के लिए जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ताओं को फटकार लगाते हुए कहा था कि जज आतंकी मामलों की जांच के विशेषज्ञ नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट में 2 जजों की बेंच जस्टिस सूर्यकांत और एन कोटिश्वर सिंह ने याचिका पर सुनावई की। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इसे पब्लिसिटी स्टंट बताते हुए याचिका खारिज कर दी है। जस्टिस सूर्यकांत ने याचिकाकर्ता के वकील विशाल तिवारी से कहा, आपने इस तरह की पीआईएल क्यों दायर की है? आपका असली मकसद क्या है? क्या आप इस मुद्दे की संवेदनशीलता को नहीं समझते हैं? मुझे लगता है कि आप इस पीआईएल को दायर करने के लिए कुछ दृष्टांत योग्य उदाहरण को आमंत्रित कर रहे हैं।

याचिकाकर्ता वकील ने कहा, यह पहली बार है कि जम्मू-कश्मीर में पर्यटकों को निशाना बनाया गया। इसलिए वह उनकी सुरक्षा के लिए निर्देश मांग रहे हैं। पीठ ने अपने आदेश में कहा, याचिकाकर्ता एक के बाद एक जनहित याचिका दायर करने में लगे हुए हैं। इसका प्राथमिक मकसद सार्वजनिक कारण में कोई वास्तविक रुचि नहीं रखते हुए प्रचार प्रतीत होता है।

इससे पहले शीर्ष अदालत ने जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में हुए घातक आतंकवादी हमले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज की निगरानी में न्यायिक जांच की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था। उस हमले में 26 लोगों की जान चली गई थी। शीर्ष अदालत ने पीआईएल दाखिल करने वालों को फटकार भी लगाई। कोर्ट ने कहा कि जज आतंकवाद के मामलों की जांच के विशेषज्ञ नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट में नए वक्फ कानून पर आज सुनवाई, सांविधानिक वैधता मामले में हो सकता है फैसला

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सुप्रीम कोर्ट आज वक्फ (संशोधन) अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। पिछली सुनवाई में अदालत ने कानून के दो मुख्य पहलुओं पर रोक लगा दी थी। पिछली सुनवाई में अदालत ने कानून के दो मुख्य पहलुओं पर रोक लगा दी थी। 17 अप्रैल को सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार व जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ को केंद्र की ओर से आश्वासन दिया गया था कि वह 5 मई तक न तो वक्फ बाय यूजर समेत वक्फ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करेगा, न ही केंद्रीय वक्फ परिषद व बोर्डों में कोई नियुक्ति करेगा।

याचिकाओं पर हो सकती है अंतिम सुनवाई

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच इस मामले की अंतिम सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट आज यह तय करेगा कि वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कोई अंतरिम आदेश जारी किया जाए या नहीं। सीजेआई संजीव खन्ना 13 मई को रिटायर होने वाले हैं, इसलिए उनके पास समय कम है। इस मामले में याचिकाकर्ताओं और केंद्र सरकार की ओर से कई वकीलों को सुनना होगा।

वक्फ संपत्तियों में 20 लाख एकड़ से ज्यादा के इजाफा का दावा

केंद्र सरकार ने याचिकाओं के जवाब में 1,300 पेज का हलफनामा दाखिल किया है। केंद्र ने 25 अप्रैल को दायर हलफनामे में कहा कि कानून पूरी तरह संवैधानिक है। यह संसद से पास हुआ है, इसलिए इस पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। हलफनामे में सरकार ने दावा किया 2013 के बाद से वक्फ संपत्तियों में 20 लाख एकड़ से ज्यादा का इजाफा हुआ। इस वजह से कई बार निजी और सरकारी जमीनों पर विवाद हुआ। वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सरकार के आंकड़ों को गलत बताया और कोर्ट से झूठा हलफनामा देने वाले वाले अधिकारी पर कार्रवाई की मांग की।

नए कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 70 से ज्यादा याचिकाएं दायर

बता दें कि पांच अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिलने के बाद केंद्र ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को पिछले महीने अधिसूचित किया था। वक्फ (संशोधन) विधेयक को लोकसभा ने 288 सदस्यों के समर्थन से पारित किया, जबकि 232 सांसद इसके खिलाफ थे। राज्यसभा में इसके पक्ष में 128 और इसके खिलाफ 95 सदस्यों ने मतदान किया। वहीं, इसके पास होने के बाद कई राजनीतिक दलों और मुस्लिम संगठनों ने अधिनियम की वैधता को शीर्ष अदालत में चुनौती दिया था। नए वक्फ कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 70 से ज्यादा याचिकाएं दायर हुई हैं, लेकिन कोर्ट सिर्फ पांच मुख्य याचिकाओं पर ही सुनवाई करेगा। याचिकाओं के इस समूह में एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी द्वारा दायर एक याचिका भी शामिल है।

पाकिस्तानी परिवार को सुप्रीम कोर्ट ने दी बड़ी राहत, वापस भेजने पर लगाई रोक

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पाकिस्तान निर्वासित होने के कगार पर पहुंचे एक परिवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है।सुप्रीम कोर्ट ने बेंगलुरु के एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए पाकिस्तान भेजने के आदेश पर फिलहाल के लिए रोक लगा दी है। याचिकाकर्ता और उनके परिवार के सदस्यों ने भारतीय नागरिकता का दावा करते हुए भारतीय दस्तावेज पेश किए हैं। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के अधिकारियों को परिवार के दस्तावेज जांचने और कोई फैसला लेने तक परिवार को पाकिस्तान निर्वासित न करने का निर्देश दिया है।

भारतीय नागरिकता के वैध दस्तावेज का दावा

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए हिन्दुओं के नरसंहार के बाद भारत ने पाकिस्तानी नागिरकों का वीजा रद्द कर बाहर का रास्ता दिखा दिया है। अब तक कई पाकिस्तानी नागरिक अटारी-वाघा बॉर्डर से पाकिस्तान वापस भेजे जा चुके हैं। हालांकि इस बीच बेंगलुरु में रहने वाले छह सदस्यों के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दावा किया है कि उनके पास भारतीय नागरिकता के वैध दस्तावेज मौजूद हैं।

अपनी याचिका में बेंगलुरु में नौकरी कर रहे अहमद तारिक बट ने बताया कि उन्हें और उनके परिवार के पांच सदस्यों को श्रीनगर के फॉरेन रजिस्ट्रेशन ऑफिस से पाकिस्तान डिपोर्ट किए जाने का नोटिस मिला है। इन सभी सदस्यों का दावा है कि वे भारतीय नागरिक हैं और उनके पास भारतीय पासपोर्ट और आधार कार्ड हैं।

कोर्ट ने क्या कहा?

उनकी इस याचिका पर जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट बेंच ने सुनवाई की। कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए संबंधित अधिकारियों को याचिकाकर्ताओं की तरफ से प्रस्तुत दस्तावेजों की जांच करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मौजूदा याचिका में याचिकाकर्ता 2 और 3 पति-पत्नी हैं। याचिकाकर्ता 1, 4, 5 और 6 उनके बच्चे हैं। वे मौजूदा समय श्रीनगर के निवासी हैं। सरकारी निर्देश के अनुसार वीजा रद्द कर दिए गए हैं, सिवाय उन लोगों के जो संरक्षित हैं, ऐसे में याचिकाकर्ताओं को निर्वासित करने के लिए कदम उठाए गए हैं। कुछ लोगों को निर्वासन के लिए हिरासत में लिया गया है। याचिकाकर्ता अपने पक्ष में जारी किए गए आधिकारिक दस्तावेजों का हवाला देते हुए दावा कर रहे हैं कि वे भारतीय नागरिक हैं। ऐसे में तथ्यात्मक दलील को सत्यापित करने की आवश्यकता है, इसलिए हम अधिकारियों को इन दस्तावेजों और उनके ध्यान में लाए जाने वाले किसी भी अन्य तथ्य को सत्यापित करने के निर्देश देने के साथ याचिका की योग्यता पर कुछ भी कहे बिना इसे समाप्त कर देते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जल्द से जल्द निर्णय लिया जाए। हम कोई समयसीमा निर्धारित नहीं कर रहे हैं। इस मामले के विशिष्ट तथ्यों को देखते हुए उचित निर्णय लिए जाने तक अधिकारी याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई भी कड़ी कार्रवाई न करें। अगर याचिकाकर्ता अंतिम निर्णय से असंतुष्ट है, तो वह जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर कर सकता है। इस आदेश को मिसाल नहीं माना जाएगा, क्योंकि यह इस मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार है।

सेना का का मनोबल न गिराएं...पहलगाम हमले की जांच की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार

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पहलगाम आतंकी हमलों की न्यायीक जांच की मांग से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है। याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह की याचिका दायर करने से पहले मामले की गंभीरता को समझना चाहिए था। हमारे बलों का मनोबल मत तोड़ो। इन याचिकाओं के लिए यह सही समय नहीं है।

जज कब से ऐसे मामलों की जांच करने के एक्सपर्ट ?

अदालत ने याचिकाकर्ता से कहा कि आपने मांग की है कि रिटायर्ड जज की अगुवाई में पहलगाम हमले के जांच हो। जज कब से ऐसे मामलों की जांच करने के एक्सपर्ट हो गए हैं? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले की गंभीरता को देखिए। कोर्ट ने कहा कि यह कठिन समय है और सभी को साथ मिलकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी।

हर भारतीय आतंकवाद से लड़ने के लिए एकसाथ

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मुश्किल वक्त में देश का प्रत्येक नागरिक आतंकवाद से लड़ने के लिए एकजुट है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यह ऐसा जरूरी समय है, जब हर भारतीय आतंकवाद से लड़ने के लिए एकसाथ खड़ा है। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसी मांग कर सुरक्षाबलों का मनोबल ना गिराएं। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एनके सिंह की पीठ ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि ये मामला बहुत ही संवेदनशील है। ऐसे में इस मामले की संवेदनशीलता का भी ख्याल रखें।

याचिका पर सुनवाई करने से इनकार

बता दें कि पहलगाम आतंकी हमले में विदेशी पर्यटकों समेत 26 लोग मारे गए थे। आतंकियों ने धर्म पूछकर सबको मारा था। याचिकाकर्ताओं ने 26 लोगों की मौत वाली पहलगाम आतंकी हमले की न्यायिक जांच की मांग की थी। मगर सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया. याचिकाकर्ता से सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपने निष्कर्षों को लेकर थोड़ा ज़िम्मेदार बनिए।

पेगासस रिपोर्ट सार्वजनिक करने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, कहा-देश में स्पाईवेयर का उपयोग गलत नहीं


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पेगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है। पेगासस जासूसी रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि सुरक्षा उद्देश्यों के लिए किसी भी देश का स्पाईवेयर रखना गलत नहीं है। अगर देश अपनी सिक्योरिटी के लिए स्पाइवेयर का यूज कर रहा तो इसमें क्या गलत है? चिंता की बात ये है कि इसका इस्तेमाल किसके खिलाफ हो रहा है?

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की बेंच ने मंगलवार को कहा कि देश की सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ी किसी भी रिपोर्ट का खुलासा नहीं किया जाएगा। बेंच ने कहा- व्यक्तिगत आशंकाओं का समाधान किया जा सकता है, लेकिन टेक्निकल पैनल की रिपोर्ट सड़कों पर चर्चा के लिए नहीं हो सकती। इस बात की जांच करनी होगी कि जानकारी किस हद तक साझा की जा सकती है। 

रिपोर्ट को छुआ नहीं जाएगा- कोर्ट

कोर्ट ने कहा कि देश की सुरक्षा और संप्रभुता को प्रभावित करने वाली किसी भी रिपोर्ट को नहीं छुआ जाएगा, लेकिन जो व्यक्ति यह जानना चाहते हैं कि क्या उन्हें इसमें शामिल किया गया है, उन्हें सूचित किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा, हां, व्यक्तिगत आशंकाओं को संबोधित किया जाना चाहिए, लेकिन इसे सड़कों पर चर्चा के लिए दस्तावेज नहीं बनाया जा सकता है। इस मामले में अगली सुनवाई 30 जुलाई को होगी।

क्या है मामला?

2021 में एक पोर्टल ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि केंद्र सरकार ने 2017 से 2019 के दौरान करीब 300 भारतीयों की पेगासस स्पाइवेयर के जरिए जासूसी की। इनमें पत्रकार, वकील, सामाजिक कार्यकर्ता, विपक्ष के नेता और बिजनेसमैन शामिल थे। अगस्त 2021 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने अक्टूबर 2021 में जांच के लिए रिटायर्ड जस्टिस आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में कमेटी बनाई। अगस्त 2022 में इसकी रिपोर्ट आई। इसमें कहा गया कि 29 फोन की जांच की गई, उनमें पेगासस का कोई सबूत नहीं मिला, लेकिन उनमें से 5 में मैलवेयर पाया गया।

क्या है पेगासस?

पेगासस सबसे उन्नत जासूसी सॉफ्टवेयर्स में से एक है, जिसे इजराइल की साइबर सिक्योरिटी कंपनी एनएसओ ग्रुप ने तैयार किया। ये केवल फोन नंबर से फोन हैक कर सकता है। कंपनी केवल सरकारों को ही ये सॉफ्टवेयर बेचती है और 10 से ज्यादा देशों की सरकारें पेगासस का इस्तेमाल कर रही हैं।भारत सरकार ने 2017 में इजरायल से एक रक्षा सौदे में पेगासस खरीदा था, जिसका खुलासा अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने किया था।

स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ ऐसा बयान स्‍वीकार नहीं” सावरकर विवाद पर राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट ने चेताया

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सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में टिप्पणी करने के खिलाफ चेतावनी दी है। शीर्ष अदालत ने वीर सावरकर के खिलाफ दिए कांग्रेस के बयान को गैरजिम्‍मेदार करार दिया और भविष्‍य में ऐसा न करने की नसीहत भी दे डाली। साथ ही कोर्ट ने वीडी सावरकर के बारे में टिप्पणी करने पर ट्रायल कोर्ट के समन पर रोक लगा दी है। बता दें कि कांग्रेस के सीनियर लीडर राहुल गांधी ने सावरकर पर दिए गए कथित विवादित बयान को लेकर दर्ज मानहानि मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

राहुल गांधी के बयान को गैरजिम्‍मेदार बताया

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले पर सुनवाई की। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और मनमोहन की पीठ ने कांग्रेस नेता को सावरकर के खिलाफ आगे कोई अपमानजनक टिप्पणी करने से आगाह किया। सुप्रीम कोर्ट ने वीर सावरकर को लेकर दिए राहुल गांधी के बयान को गैरजिम्‍मेदार बताया। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि हमें यह स्वीकार नहीं कि किसी भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के खिलाफ इस तरह का स्‍टेटमेंट दिया जाए।

“महात्मा गांधी ने भी “आपका वफादार सेवक” शब्द का इस्तेमाल”

कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र में उनकी पूजा की जाती है। अदालत ने कहा कि अगर गांधी इस तरह की टिप्पणी करना जारी रखते हैं, तो उन्हें इसके परिणाम भुगतने होंगे। जब वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने कहा कि इस मामले में धारा 196 लागू नहीं होती। जस्टिस दीपांकर दत्ता ने नाराजगी जताते हुए कहा कि क्या आपके मुवक्किल को पता है कि महात्मा गांधी ने भी “आपका वफादार सेवक” शब्द का इस्तेमाल किया था। इस तरह आप कहेंगे कि महात्मा गांधी अंग्रेजों के सेवक थे। क्या उन्हें पता है कि उनकी दादी ने भी स्वतंत्रता सेनानी को पत्र भेजा था। उन्हें स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में गैरजिम्मेदाराना बयान नहीं देना चाहिए।

भविष्य के लिए चेताया

अदालत ने कहा कि आप स्वतंत्रता सेनानियों के इतिहास- भूगोल को जाने बिना ऐसे बयान नहीं दे सकते। मैंने भी हमारे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को इसी तरह लिखते देखा है। कानून के बारे में आपकी बात सही है और आपको स्थगन मिल जाएगा। लेकिन उनके द्वारा आगे दिए गए किसी भी बयान पर स्वतः संज्ञान लेकर विचार किया जाएगा। अदालत ने सख्त भरे लहजे में कहा कि हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में एक शब्द भी नहीं कहें।

देशभर में दर्ज हुए थे राहल के खिलाफ केस

राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान 17 नवंबर 2022 को महाराष्ट्र के अकोला में एक रैली में वीर सावरकर पर बयान दिया था, जिसे लेकर देशभर में उनके खिलाफ कई केस दर्ज हुए। लखनऊ में वकील नृपेंद्र पांडेय ने भी सिविल कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर राहुल पर स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान करने का आरोप लगाया था। इस याचिका को पहले सत्र न्यायालय ने जून 2023 में खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ नृपेंद्र पांडेय ने पुनरीक्षण याचिका दाखिल की, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया और राहुल गांधी को समन जारी कर दिया।

संसद ही सर्वोच्च…,न्यायपालिका की आलोचना के बीच उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने फिर दोहराई बात


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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने फिर न्यायापलिका और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्रों को लेकर बड़ा बयान दिया है। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने एक बार फिर भारत के संविधान में निर्धारित शासन व्यवस्था के ढांचे के भीतर न्यायपालिका की भूमिका और उसकी सीमाओं पर सवाल उठाए हैं। उपराष्ट्रपति ने न्यायिक "अधिकारों के अतिक्रमण" की आलोचना की और दोहराया कि "संसद ही सर्वोच्च है"।

संविधान में संसद से ऊपर कोई नहीं-धनखड़

दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम के दौरान धनखड़ ने कहा कि संविधान के तहत किसी भी पद पर बैठे व्यक्ति की बात हमेशा राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर होती है। धनखड़ ने यह भी कहा कि कुछ लोग यह सोचते हैं कि संवैधानिक पद सिर्फ औपचारिक या दिखावटी होते हैं, लेकिन यह गलत सोच है। संविधान लोगों के लिए है और यह उनके चुने हुए प्रतिनिधियों की रक्षा करता है। उन्होंने कहा कि संविधान में संसद से ऊपर किसी भी संस्था की कल्पना नहीं की गई है। संसद सबसे सर्वोच्च है।

लोकतंत्र के लिए हर नागरिक की अहम भूमिका-धनखड़

धनखड़ ने आगे कहा कि किसी भी लोकतंत्र के लिए हर नागरिक की अहम भूमिका होती है। मुझे यह बात समझ से परे लगती है कि कुछ लोगों ने हाल ही में यह विचार व्यक्त किया है कि संवैधानिक पद औपचारिक या सजावटी हो सकते हैं। इस देश में हर किसी की भूमिका (चाहे वह संवैधानिक पदाधिकारी हो या नागरिक) के बारे में गलत समझ से कोई भी दूर नहीं हो सकता।

लोकतंत्र में चुप रहना खतरनाक है-धनखड़

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने यह भी कहा कि लोकतंत्र में बातचीत और खुली चर्चा बहुत जरूरी है। अगर सोचने-विचारने वाले लोग चुप रहेंगे तो इससे नुकसान हो सकता है। उन्होंने कहा, संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को हमेशा संविधान के मुताबिक बोलना चाहिए। हम अपनी संस्कृति और भारतीयता पर गर्व करें। देश में अशांति, हिंसा और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना सही नहीं है। जरूरत पड़ी तो सख्त कदम भी उठाने चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जताई थी चिंता

यहां, उपराष्ट्रपति ने किसी का नाम नहीं लिया। हालांकि, साफ है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर की गई अपनी टिप्पणी को लेकर आलोचना करने वालों पर निशाना साधा। सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने हाल में कहा था कि राज्यपाल अगर कोई विधेयक राष्ट्रपति को मंजूरी के लिए भेजते हैं, तो राष्ट्रपति को उस पर तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा। राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय सीमा निर्धारित करने वाले हाल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चिंता व्यक्त करते हुए धनखड़ ने पिछले शुक्रवार को कहा था कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी जहां जज कानून बनाएंगे, शासकीय कार्य करेंगे और ‘‘सुपर संसद’’ के रूप में कार्य करेंगे।

बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग, याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हम पर पहले ही लग रहे आरोप

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सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर हुई है, जिसमें पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की गई है।वकील विष्णु शंकर जैन ने जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष याचिका पेश की, जिसके बाद याचिका को कल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने और पैरामिलिट्री फोर्स तैनात करने की याचिका सुनवाई की। याचिकाकर्ता ने अपील की थी कि वक्फ कानून के विरोध में हुई मुर्शिदाबाद हिंसा के बाद कोर्ट इस पर फैसला ले। इस पर जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने कोई आदेश नहीं दिया। बेंच ने याचिकाकर्ता से पूछा, क्या आप चाहते हैं कि हम राष्ट्रपति को इसे लागू करने का आदेश भेजें? हम पर दूसरों के अधिकार क्षेत्र में दखलंदाजी के आरोप लग रहे हैं।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उठाया सवाल

बता दें कि हाल ही भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर कार्यपालिका के काम में दखल देने का आरोप लगाया है। जिस पर खासा विवाद हो रहा है। साथ ही उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर सवाल उठाए थे और सुप्रीम कोर्ट पर सुपर संसद के रूप में काम करने का आरोप लगाया था।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के उस ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाए थे, जिसमें शीर्ष अदालत ने राष्ट्रपति और राज्यपालों को निर्देश दिया था कि अगर कोई विधेयक संसद या विधानसभा की तरफ से दोबारा पारित किया गया हो, तो तीन महीने के भीतर उसे मंजूरी दी जाए।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, हम ऐसी स्थिति नहीं ला सकते, जहां राष्ट्रपति को निर्देश दिया जाए। उन्होंने गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा, मैंने कभी नहीं सोचा था कि राष्ट्रपति को कोर्ट द्वारा निर्देशित किया जाएगा। राष्ट्रपति भारत की सेना की सर्वोच्च कमांडर हैं और केवल वही संविधान की रक्षा, संरक्षण और सुरक्षा की शपथ लेते हैं। फिर उन्हें एक निश्चित समय में निर्णय लेने का आदेश कैसे दिया जा सकता है।

बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने लगाए गंभीर आरोप

वहीं इसके कुछ ही दिनों बाद बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने न्यायपालिका पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट देश में धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए जिम्मेदार है। निशिकांत दुबे ने इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधते हुए कहा था, अगर शीर्ष अदालत को कानून बनाना है तो संसद और राज्य विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए।

हमारी मंजूरी जरूरी नहीं...', निशिकांत दुबे के खिलाफ अवमानना याचिका दायर करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी

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सुप्रीम कोर्ट और सीजेआई के खिलाफ टिप्पणी करने वाले भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है। अब दुबे के खिलाफ अवमानना याचिका दायर करने की मांग की गई है, जिसपर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा बयान आया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप इसे दायर करें, याचिका दायर करने के लिए आपको हमारी मंजूरी की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि इसके लिए हमसे नहीं बल्कि अटॉर्नी जनरल से मांग कीजिए।

अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की मांग

यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के वकील अनस तनवीर ने दायर की है। अनस तनवीर भी वक्फ कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं में से एक का पक्ष सुप्रीम कोर्ट में रख रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद अनस तनवीर ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमाणी को पत्र लिखकर उनकी मंजूरी मांगी है। पत्र में कहा गया है कि दुबे ने सर्वोच्च अदालत की गरिमा को कम किया है। आवेदन में कहा गया है कि दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर तीखा हमला करते हुए कहा था कि अगर कानून सुप्रीम कोर्ट को ही बनाना है, तो संसद और राज्य विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए। उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना पर भी निशाना साधा और उन्हें देश में गृह युद्ध के लिए जिम्मेदार ठहराया

बीजेपी नेता का बयान 'खतरनाक रूप से भड़काऊ'

अधिवक्ता अनस तनवीर ने अटॉर्नी जनरल को लिखे पत्र में कहा है कि निशिकांत दुबे ने सार्वजनिक रूप से जो बयान दिए हैं, वे अत्यंत आपत्तिजनक, भ्रामक और माननीय सुप्रीम कोर्ट की गरिमा एवं अधिकार को कम करने की नीयत से दिए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड के भेजे गए पत्र के अनुसार, दुबे ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ जो आपत्तिजनक टिप्पणियां की है वह कंटेप्ट वाली हैं और बेहद अपत्तिजनक है। पत्र में कहा कि दुबे की टिप्पणी 'गंभीर रूप से अपमानजनक' और 'खतरनाक रूप से भड़काऊ' हैं।

बीजेपी ने खुद को दुबे के बयान से अलग किया

निशिकांत दुबे की यह टिप्पणी वक्फ संशोधन कानून को लेकर आई। वक्फ संशोधन कानून के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून के कुछ प्रावधानों को लेकर सवाल उठाए हैं, जिसके बाद केंद्र सरकार ने अगली सुनवाई तक कानून के कुछ प्रावधानों को लागू करने पर रोक लगा दी है। भाजपा ने भी शनिवार को खुद को निशिकांत दुबे के बयान से अलग कर लिया और दुबे के बयान को उनके निजी विचार बताया। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी नेताओं से अपील की है कि वे ऐसी टिप्पणियां न करें।

अनुच्छेद–142 न्यूक्लियर मिसाइल बना, राष्ट्रपति को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर भड़के धनखड़

#jagdeepdhankharsupremecourtorderstopresident

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों को मंजूरी देने की समयसीमा तय की थी। इस पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया आदेश पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि भारत में ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे और कार्यकारी जिम्मेदारी निभाएंगे।

जज 'सुपर संसद' के रूप में काम करेंगे-धनखड़

राज्यसभा के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि एक हालिया फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें इसे लेकर बेहद संवेदनशील होने की जरूरत है। हमने इस दिन की कल्पना नहीं की थी, जहां राष्ट्रपति को तय समय में फैसला लेने के लिए कहा जाएगा और अगर वे फैसला नहीं लेंगे तो कानून बन जाएगा।उपराष्ट्रपति ने कहा कि अब जज विधायी चीजों पर फैसला करेंगे। वे ही कार्यकारी जिम्मेदारी निभाएंगे और सुपर संसद के रूप में काम करेंगे। उनकी कोई जवाबदेही भी नहीं होगी क्योंकि इस देश का कानून उन पर लागू ही नहीं होता।

अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ परमाणु मिसाइल

उपराष्ट्रपति ने कहा, हम ऐसे हालात नहीं बना सकते जहां अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश दें। संविधान का अनुच्छेद 142 के तहत मिले कोर्ट को विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24x7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। दरअसल, अनुच्छेद 142 भारत के सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देता है कि वह पूर्ण न्याय (कम्पलीट जस्टिस) करने के लिए कोई भी आदेश, निर्देश या फैसला दे सकता है, चाहे वह किसी भी मामले में हो।

जस्टिस यशवंत वर्मा के मिली नगदी का किया जिक्र

उपराष्ट्रपति ने दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के घर से भारी मात्रा में नकदी मिलने की घटना का जिक्र किया। उन्होंने कहा, '14 और 15 मार्च की रात नई दिल्ली में एक जज के घर पर एक घटना हुई। सात दिनों तक किसी को इसके बारे में पता नहीं चला। हमें खुद से सवाल पूछने होंगे। क्या इस देरी को समझा जा सकता है? क्या इसे माफ किया जा सकता है? क्या इससे कुछ बुनियादी सवाल नहीं उठते? किसी भी सामान्य स्थिति में, और सामान्य स्थितियां कानून के शासन को परिभाषित करती हैं - चीजें अलग होतीं। यह केवल 21 मार्च को एक अखबार द्वारा खुलासा किया गया था, जिससे देश के लोग पहले कभी नहीं इतने हैरान हुए।

क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने?

दरअसल, 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के मामले में ऐतिहासिक फैसला लिया था। अदालत ने कहा था कि राज्यपाल को विधानसभा की ओर से भेजे गए बिल पर एक महीने के भीतर फैसला लेना होगा।

इसी फैसले के दौरान अदालत ने राज्यपालों की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर भी स्थिति स्पष्ट की। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सार्वजनिक किया गया। 11 अप्रैल की रात वेबसाइट पर अपलोड किए गए ऑर्डर में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 201 का हवाला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, राज्यपालों की ओर से भेजे गए बिल के मामले में राष्ट्रपति के पास पूर्ण वीटो या पॉकेट वीटो का अधिकार नहीं है। उनके फैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है और न्यायपालिका बिल की संवैधानिकता का फैसला न्यायपालिका करेगी।

जम्मू कश्मीर में पर्यटकों की सुरक्षा को लेकर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार, जानें क्या कहा

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सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू और कश्मीर में पर्यटकों की सुरक्षा को लेकर दायर एक जनहित याचिक को खारिज कर दिया है। सर्वोच्च अदालत ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए कहा कि यह पीआईएल सिर्फ प्रचार पाने के लिए की गई है। इसमें जनहित का कोई मामला नहीं है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 1 मई को पहलगाम आतंकी हमले की न्यायिक जांच के लिए जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ताओं को फटकार लगाते हुए कहा था कि जज आतंकी मामलों की जांच के विशेषज्ञ नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट में 2 जजों की बेंच जस्टिस सूर्यकांत और एन कोटिश्वर सिंह ने याचिका पर सुनावई की। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इसे पब्लिसिटी स्टंट बताते हुए याचिका खारिज कर दी है। जस्टिस सूर्यकांत ने याचिकाकर्ता के वकील विशाल तिवारी से कहा, आपने इस तरह की पीआईएल क्यों दायर की है? आपका असली मकसद क्या है? क्या आप इस मुद्दे की संवेदनशीलता को नहीं समझते हैं? मुझे लगता है कि आप इस पीआईएल को दायर करने के लिए कुछ दृष्टांत योग्य उदाहरण को आमंत्रित कर रहे हैं।

याचिकाकर्ता वकील ने कहा, यह पहली बार है कि जम्मू-कश्मीर में पर्यटकों को निशाना बनाया गया। इसलिए वह उनकी सुरक्षा के लिए निर्देश मांग रहे हैं। पीठ ने अपने आदेश में कहा, याचिकाकर्ता एक के बाद एक जनहित याचिका दायर करने में लगे हुए हैं। इसका प्राथमिक मकसद सार्वजनिक कारण में कोई वास्तविक रुचि नहीं रखते हुए प्रचार प्रतीत होता है।

इससे पहले शीर्ष अदालत ने जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में हुए घातक आतंकवादी हमले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज की निगरानी में न्यायिक जांच की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था। उस हमले में 26 लोगों की जान चली गई थी। शीर्ष अदालत ने पीआईएल दाखिल करने वालों को फटकार भी लगाई। कोर्ट ने कहा कि जज आतंकवाद के मामलों की जांच के विशेषज्ञ नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट में नए वक्फ कानून पर आज सुनवाई, सांविधानिक वैधता मामले में हो सकता है फैसला

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सुप्रीम कोर्ट आज वक्फ (संशोधन) अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। पिछली सुनवाई में अदालत ने कानून के दो मुख्य पहलुओं पर रोक लगा दी थी। पिछली सुनवाई में अदालत ने कानून के दो मुख्य पहलुओं पर रोक लगा दी थी। 17 अप्रैल को सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार व जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ को केंद्र की ओर से आश्वासन दिया गया था कि वह 5 मई तक न तो वक्फ बाय यूजर समेत वक्फ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करेगा, न ही केंद्रीय वक्फ परिषद व बोर्डों में कोई नियुक्ति करेगा।

याचिकाओं पर हो सकती है अंतिम सुनवाई

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच इस मामले की अंतिम सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट आज यह तय करेगा कि वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कोई अंतरिम आदेश जारी किया जाए या नहीं। सीजेआई संजीव खन्ना 13 मई को रिटायर होने वाले हैं, इसलिए उनके पास समय कम है। इस मामले में याचिकाकर्ताओं और केंद्र सरकार की ओर से कई वकीलों को सुनना होगा।

वक्फ संपत्तियों में 20 लाख एकड़ से ज्यादा के इजाफा का दावा

केंद्र सरकार ने याचिकाओं के जवाब में 1,300 पेज का हलफनामा दाखिल किया है। केंद्र ने 25 अप्रैल को दायर हलफनामे में कहा कि कानून पूरी तरह संवैधानिक है। यह संसद से पास हुआ है, इसलिए इस पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। हलफनामे में सरकार ने दावा किया 2013 के बाद से वक्फ संपत्तियों में 20 लाख एकड़ से ज्यादा का इजाफा हुआ। इस वजह से कई बार निजी और सरकारी जमीनों पर विवाद हुआ। वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सरकार के आंकड़ों को गलत बताया और कोर्ट से झूठा हलफनामा देने वाले वाले अधिकारी पर कार्रवाई की मांग की।

नए कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 70 से ज्यादा याचिकाएं दायर

बता दें कि पांच अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिलने के बाद केंद्र ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को पिछले महीने अधिसूचित किया था। वक्फ (संशोधन) विधेयक को लोकसभा ने 288 सदस्यों के समर्थन से पारित किया, जबकि 232 सांसद इसके खिलाफ थे। राज्यसभा में इसके पक्ष में 128 और इसके खिलाफ 95 सदस्यों ने मतदान किया। वहीं, इसके पास होने के बाद कई राजनीतिक दलों और मुस्लिम संगठनों ने अधिनियम की वैधता को शीर्ष अदालत में चुनौती दिया था। नए वक्फ कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 70 से ज्यादा याचिकाएं दायर हुई हैं, लेकिन कोर्ट सिर्फ पांच मुख्य याचिकाओं पर ही सुनवाई करेगा। याचिकाओं के इस समूह में एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी द्वारा दायर एक याचिका भी शामिल है।

पाकिस्तानी परिवार को सुप्रीम कोर्ट ने दी बड़ी राहत, वापस भेजने पर लगाई रोक

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पाकिस्तान निर्वासित होने के कगार पर पहुंचे एक परिवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है।सुप्रीम कोर्ट ने बेंगलुरु के एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए पाकिस्तान भेजने के आदेश पर फिलहाल के लिए रोक लगा दी है। याचिकाकर्ता और उनके परिवार के सदस्यों ने भारतीय नागरिकता का दावा करते हुए भारतीय दस्तावेज पेश किए हैं। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के अधिकारियों को परिवार के दस्तावेज जांचने और कोई फैसला लेने तक परिवार को पाकिस्तान निर्वासित न करने का निर्देश दिया है।

भारतीय नागरिकता के वैध दस्तावेज का दावा

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए हिन्दुओं के नरसंहार के बाद भारत ने पाकिस्तानी नागिरकों का वीजा रद्द कर बाहर का रास्ता दिखा दिया है। अब तक कई पाकिस्तानी नागरिक अटारी-वाघा बॉर्डर से पाकिस्तान वापस भेजे जा चुके हैं। हालांकि इस बीच बेंगलुरु में रहने वाले छह सदस्यों के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दावा किया है कि उनके पास भारतीय नागरिकता के वैध दस्तावेज मौजूद हैं।

अपनी याचिका में बेंगलुरु में नौकरी कर रहे अहमद तारिक बट ने बताया कि उन्हें और उनके परिवार के पांच सदस्यों को श्रीनगर के फॉरेन रजिस्ट्रेशन ऑफिस से पाकिस्तान डिपोर्ट किए जाने का नोटिस मिला है। इन सभी सदस्यों का दावा है कि वे भारतीय नागरिक हैं और उनके पास भारतीय पासपोर्ट और आधार कार्ड हैं।

कोर्ट ने क्या कहा?

उनकी इस याचिका पर जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट बेंच ने सुनवाई की। कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए संबंधित अधिकारियों को याचिकाकर्ताओं की तरफ से प्रस्तुत दस्तावेजों की जांच करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मौजूदा याचिका में याचिकाकर्ता 2 और 3 पति-पत्नी हैं। याचिकाकर्ता 1, 4, 5 और 6 उनके बच्चे हैं। वे मौजूदा समय श्रीनगर के निवासी हैं। सरकारी निर्देश के अनुसार वीजा रद्द कर दिए गए हैं, सिवाय उन लोगों के जो संरक्षित हैं, ऐसे में याचिकाकर्ताओं को निर्वासित करने के लिए कदम उठाए गए हैं। कुछ लोगों को निर्वासन के लिए हिरासत में लिया गया है। याचिकाकर्ता अपने पक्ष में जारी किए गए आधिकारिक दस्तावेजों का हवाला देते हुए दावा कर रहे हैं कि वे भारतीय नागरिक हैं। ऐसे में तथ्यात्मक दलील को सत्यापित करने की आवश्यकता है, इसलिए हम अधिकारियों को इन दस्तावेजों और उनके ध्यान में लाए जाने वाले किसी भी अन्य तथ्य को सत्यापित करने के निर्देश देने के साथ याचिका की योग्यता पर कुछ भी कहे बिना इसे समाप्त कर देते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जल्द से जल्द निर्णय लिया जाए। हम कोई समयसीमा निर्धारित नहीं कर रहे हैं। इस मामले के विशिष्ट तथ्यों को देखते हुए उचित निर्णय लिए जाने तक अधिकारी याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई भी कड़ी कार्रवाई न करें। अगर याचिकाकर्ता अंतिम निर्णय से असंतुष्ट है, तो वह जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर कर सकता है। इस आदेश को मिसाल नहीं माना जाएगा, क्योंकि यह इस मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार है।

सेना का का मनोबल न गिराएं...पहलगाम हमले की जांच की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार

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पहलगाम आतंकी हमलों की न्यायीक जांच की मांग से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है। याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह की याचिका दायर करने से पहले मामले की गंभीरता को समझना चाहिए था। हमारे बलों का मनोबल मत तोड़ो। इन याचिकाओं के लिए यह सही समय नहीं है।

जज कब से ऐसे मामलों की जांच करने के एक्सपर्ट ?

अदालत ने याचिकाकर्ता से कहा कि आपने मांग की है कि रिटायर्ड जज की अगुवाई में पहलगाम हमले के जांच हो। जज कब से ऐसे मामलों की जांच करने के एक्सपर्ट हो गए हैं? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले की गंभीरता को देखिए। कोर्ट ने कहा कि यह कठिन समय है और सभी को साथ मिलकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी।

हर भारतीय आतंकवाद से लड़ने के लिए एकसाथ

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मुश्किल वक्त में देश का प्रत्येक नागरिक आतंकवाद से लड़ने के लिए एकजुट है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यह ऐसा जरूरी समय है, जब हर भारतीय आतंकवाद से लड़ने के लिए एकसाथ खड़ा है। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसी मांग कर सुरक्षाबलों का मनोबल ना गिराएं। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एनके सिंह की पीठ ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि ये मामला बहुत ही संवेदनशील है। ऐसे में इस मामले की संवेदनशीलता का भी ख्याल रखें।

याचिका पर सुनवाई करने से इनकार

बता दें कि पहलगाम आतंकी हमले में विदेशी पर्यटकों समेत 26 लोग मारे गए थे। आतंकियों ने धर्म पूछकर सबको मारा था। याचिकाकर्ताओं ने 26 लोगों की मौत वाली पहलगाम आतंकी हमले की न्यायिक जांच की मांग की थी। मगर सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया. याचिकाकर्ता से सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपने निष्कर्षों को लेकर थोड़ा ज़िम्मेदार बनिए।

पेगासस रिपोर्ट सार्वजनिक करने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, कहा-देश में स्पाईवेयर का उपयोग गलत नहीं


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पेगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है। पेगासस जासूसी रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि सुरक्षा उद्देश्यों के लिए किसी भी देश का स्पाईवेयर रखना गलत नहीं है। अगर देश अपनी सिक्योरिटी के लिए स्पाइवेयर का यूज कर रहा तो इसमें क्या गलत है? चिंता की बात ये है कि इसका इस्तेमाल किसके खिलाफ हो रहा है?

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की बेंच ने मंगलवार को कहा कि देश की सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ी किसी भी रिपोर्ट का खुलासा नहीं किया जाएगा। बेंच ने कहा- व्यक्तिगत आशंकाओं का समाधान किया जा सकता है, लेकिन टेक्निकल पैनल की रिपोर्ट सड़कों पर चर्चा के लिए नहीं हो सकती। इस बात की जांच करनी होगी कि जानकारी किस हद तक साझा की जा सकती है। 

रिपोर्ट को छुआ नहीं जाएगा- कोर्ट

कोर्ट ने कहा कि देश की सुरक्षा और संप्रभुता को प्रभावित करने वाली किसी भी रिपोर्ट को नहीं छुआ जाएगा, लेकिन जो व्यक्ति यह जानना चाहते हैं कि क्या उन्हें इसमें शामिल किया गया है, उन्हें सूचित किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा, हां, व्यक्तिगत आशंकाओं को संबोधित किया जाना चाहिए, लेकिन इसे सड़कों पर चर्चा के लिए दस्तावेज नहीं बनाया जा सकता है। इस मामले में अगली सुनवाई 30 जुलाई को होगी।

क्या है मामला?

2021 में एक पोर्टल ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि केंद्र सरकार ने 2017 से 2019 के दौरान करीब 300 भारतीयों की पेगासस स्पाइवेयर के जरिए जासूसी की। इनमें पत्रकार, वकील, सामाजिक कार्यकर्ता, विपक्ष के नेता और बिजनेसमैन शामिल थे। अगस्त 2021 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने अक्टूबर 2021 में जांच के लिए रिटायर्ड जस्टिस आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में कमेटी बनाई। अगस्त 2022 में इसकी रिपोर्ट आई। इसमें कहा गया कि 29 फोन की जांच की गई, उनमें पेगासस का कोई सबूत नहीं मिला, लेकिन उनमें से 5 में मैलवेयर पाया गया।

क्या है पेगासस?

पेगासस सबसे उन्नत जासूसी सॉफ्टवेयर्स में से एक है, जिसे इजराइल की साइबर सिक्योरिटी कंपनी एनएसओ ग्रुप ने तैयार किया। ये केवल फोन नंबर से फोन हैक कर सकता है। कंपनी केवल सरकारों को ही ये सॉफ्टवेयर बेचती है और 10 से ज्यादा देशों की सरकारें पेगासस का इस्तेमाल कर रही हैं।भारत सरकार ने 2017 में इजरायल से एक रक्षा सौदे में पेगासस खरीदा था, जिसका खुलासा अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने किया था।

स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ ऐसा बयान स्‍वीकार नहीं” सावरकर विवाद पर राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट ने चेताया

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सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में टिप्पणी करने के खिलाफ चेतावनी दी है। शीर्ष अदालत ने वीर सावरकर के खिलाफ दिए कांग्रेस के बयान को गैरजिम्‍मेदार करार दिया और भविष्‍य में ऐसा न करने की नसीहत भी दे डाली। साथ ही कोर्ट ने वीडी सावरकर के बारे में टिप्पणी करने पर ट्रायल कोर्ट के समन पर रोक लगा दी है। बता दें कि कांग्रेस के सीनियर लीडर राहुल गांधी ने सावरकर पर दिए गए कथित विवादित बयान को लेकर दर्ज मानहानि मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

राहुल गांधी के बयान को गैरजिम्‍मेदार बताया

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले पर सुनवाई की। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और मनमोहन की पीठ ने कांग्रेस नेता को सावरकर के खिलाफ आगे कोई अपमानजनक टिप्पणी करने से आगाह किया। सुप्रीम कोर्ट ने वीर सावरकर को लेकर दिए राहुल गांधी के बयान को गैरजिम्‍मेदार बताया। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि हमें यह स्वीकार नहीं कि किसी भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के खिलाफ इस तरह का स्‍टेटमेंट दिया जाए।

“महात्मा गांधी ने भी “आपका वफादार सेवक” शब्द का इस्तेमाल”

कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र में उनकी पूजा की जाती है। अदालत ने कहा कि अगर गांधी इस तरह की टिप्पणी करना जारी रखते हैं, तो उन्हें इसके परिणाम भुगतने होंगे। जब वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने कहा कि इस मामले में धारा 196 लागू नहीं होती। जस्टिस दीपांकर दत्ता ने नाराजगी जताते हुए कहा कि क्या आपके मुवक्किल को पता है कि महात्मा गांधी ने भी “आपका वफादार सेवक” शब्द का इस्तेमाल किया था। इस तरह आप कहेंगे कि महात्मा गांधी अंग्रेजों के सेवक थे। क्या उन्हें पता है कि उनकी दादी ने भी स्वतंत्रता सेनानी को पत्र भेजा था। उन्हें स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में गैरजिम्मेदाराना बयान नहीं देना चाहिए।

भविष्य के लिए चेताया

अदालत ने कहा कि आप स्वतंत्रता सेनानियों के इतिहास- भूगोल को जाने बिना ऐसे बयान नहीं दे सकते। मैंने भी हमारे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को इसी तरह लिखते देखा है। कानून के बारे में आपकी बात सही है और आपको स्थगन मिल जाएगा। लेकिन उनके द्वारा आगे दिए गए किसी भी बयान पर स्वतः संज्ञान लेकर विचार किया जाएगा। अदालत ने सख्त भरे लहजे में कहा कि हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में एक शब्द भी नहीं कहें।

देशभर में दर्ज हुए थे राहल के खिलाफ केस

राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान 17 नवंबर 2022 को महाराष्ट्र के अकोला में एक रैली में वीर सावरकर पर बयान दिया था, जिसे लेकर देशभर में उनके खिलाफ कई केस दर्ज हुए। लखनऊ में वकील नृपेंद्र पांडेय ने भी सिविल कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर राहुल पर स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान करने का आरोप लगाया था। इस याचिका को पहले सत्र न्यायालय ने जून 2023 में खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ नृपेंद्र पांडेय ने पुनरीक्षण याचिका दाखिल की, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया और राहुल गांधी को समन जारी कर दिया।

संसद ही सर्वोच्च…,न्यायपालिका की आलोचना के बीच उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने फिर दोहराई बात


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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने फिर न्यायापलिका और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्रों को लेकर बड़ा बयान दिया है। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने एक बार फिर भारत के संविधान में निर्धारित शासन व्यवस्था के ढांचे के भीतर न्यायपालिका की भूमिका और उसकी सीमाओं पर सवाल उठाए हैं। उपराष्ट्रपति ने न्यायिक "अधिकारों के अतिक्रमण" की आलोचना की और दोहराया कि "संसद ही सर्वोच्च है"।

संविधान में संसद से ऊपर कोई नहीं-धनखड़

दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम के दौरान धनखड़ ने कहा कि संविधान के तहत किसी भी पद पर बैठे व्यक्ति की बात हमेशा राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर होती है। धनखड़ ने यह भी कहा कि कुछ लोग यह सोचते हैं कि संवैधानिक पद सिर्फ औपचारिक या दिखावटी होते हैं, लेकिन यह गलत सोच है। संविधान लोगों के लिए है और यह उनके चुने हुए प्रतिनिधियों की रक्षा करता है। उन्होंने कहा कि संविधान में संसद से ऊपर किसी भी संस्था की कल्पना नहीं की गई है। संसद सबसे सर्वोच्च है।

लोकतंत्र के लिए हर नागरिक की अहम भूमिका-धनखड़

धनखड़ ने आगे कहा कि किसी भी लोकतंत्र के लिए हर नागरिक की अहम भूमिका होती है। मुझे यह बात समझ से परे लगती है कि कुछ लोगों ने हाल ही में यह विचार व्यक्त किया है कि संवैधानिक पद औपचारिक या सजावटी हो सकते हैं। इस देश में हर किसी की भूमिका (चाहे वह संवैधानिक पदाधिकारी हो या नागरिक) के बारे में गलत समझ से कोई भी दूर नहीं हो सकता।

लोकतंत्र में चुप रहना खतरनाक है-धनखड़

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने यह भी कहा कि लोकतंत्र में बातचीत और खुली चर्चा बहुत जरूरी है। अगर सोचने-विचारने वाले लोग चुप रहेंगे तो इससे नुकसान हो सकता है। उन्होंने कहा, संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को हमेशा संविधान के मुताबिक बोलना चाहिए। हम अपनी संस्कृति और भारतीयता पर गर्व करें। देश में अशांति, हिंसा और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना सही नहीं है। जरूरत पड़ी तो सख्त कदम भी उठाने चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जताई थी चिंता

यहां, उपराष्ट्रपति ने किसी का नाम नहीं लिया। हालांकि, साफ है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर की गई अपनी टिप्पणी को लेकर आलोचना करने वालों पर निशाना साधा। सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने हाल में कहा था कि राज्यपाल अगर कोई विधेयक राष्ट्रपति को मंजूरी के लिए भेजते हैं, तो राष्ट्रपति को उस पर तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा। राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय सीमा निर्धारित करने वाले हाल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चिंता व्यक्त करते हुए धनखड़ ने पिछले शुक्रवार को कहा था कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी जहां जज कानून बनाएंगे, शासकीय कार्य करेंगे और ‘‘सुपर संसद’’ के रूप में कार्य करेंगे।

बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग, याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हम पर पहले ही लग रहे आरोप

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सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर हुई है, जिसमें पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की गई है।वकील विष्णु शंकर जैन ने जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष याचिका पेश की, जिसके बाद याचिका को कल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने और पैरामिलिट्री फोर्स तैनात करने की याचिका सुनवाई की। याचिकाकर्ता ने अपील की थी कि वक्फ कानून के विरोध में हुई मुर्शिदाबाद हिंसा के बाद कोर्ट इस पर फैसला ले। इस पर जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने कोई आदेश नहीं दिया। बेंच ने याचिकाकर्ता से पूछा, क्या आप चाहते हैं कि हम राष्ट्रपति को इसे लागू करने का आदेश भेजें? हम पर दूसरों के अधिकार क्षेत्र में दखलंदाजी के आरोप लग रहे हैं।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उठाया सवाल

बता दें कि हाल ही भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर कार्यपालिका के काम में दखल देने का आरोप लगाया है। जिस पर खासा विवाद हो रहा है। साथ ही उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर सवाल उठाए थे और सुप्रीम कोर्ट पर सुपर संसद के रूप में काम करने का आरोप लगाया था।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के उस ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाए थे, जिसमें शीर्ष अदालत ने राष्ट्रपति और राज्यपालों को निर्देश दिया था कि अगर कोई विधेयक संसद या विधानसभा की तरफ से दोबारा पारित किया गया हो, तो तीन महीने के भीतर उसे मंजूरी दी जाए।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, हम ऐसी स्थिति नहीं ला सकते, जहां राष्ट्रपति को निर्देश दिया जाए। उन्होंने गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा, मैंने कभी नहीं सोचा था कि राष्ट्रपति को कोर्ट द्वारा निर्देशित किया जाएगा। राष्ट्रपति भारत की सेना की सर्वोच्च कमांडर हैं और केवल वही संविधान की रक्षा, संरक्षण और सुरक्षा की शपथ लेते हैं। फिर उन्हें एक निश्चित समय में निर्णय लेने का आदेश कैसे दिया जा सकता है।

बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने लगाए गंभीर आरोप

वहीं इसके कुछ ही दिनों बाद बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने न्यायपालिका पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट देश में धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए जिम्मेदार है। निशिकांत दुबे ने इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधते हुए कहा था, अगर शीर्ष अदालत को कानून बनाना है तो संसद और राज्य विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए।

हमारी मंजूरी जरूरी नहीं...', निशिकांत दुबे के खिलाफ अवमानना याचिका दायर करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी

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सुप्रीम कोर्ट और सीजेआई के खिलाफ टिप्पणी करने वाले भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है। अब दुबे के खिलाफ अवमानना याचिका दायर करने की मांग की गई है, जिसपर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा बयान आया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप इसे दायर करें, याचिका दायर करने के लिए आपको हमारी मंजूरी की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि इसके लिए हमसे नहीं बल्कि अटॉर्नी जनरल से मांग कीजिए।

अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की मांग

यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के वकील अनस तनवीर ने दायर की है। अनस तनवीर भी वक्फ कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं में से एक का पक्ष सुप्रीम कोर्ट में रख रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद अनस तनवीर ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमाणी को पत्र लिखकर उनकी मंजूरी मांगी है। पत्र में कहा गया है कि दुबे ने सर्वोच्च अदालत की गरिमा को कम किया है। आवेदन में कहा गया है कि दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर तीखा हमला करते हुए कहा था कि अगर कानून सुप्रीम कोर्ट को ही बनाना है, तो संसद और राज्य विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए। उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना पर भी निशाना साधा और उन्हें देश में गृह युद्ध के लिए जिम्मेदार ठहराया

बीजेपी नेता का बयान 'खतरनाक रूप से भड़काऊ'

अधिवक्ता अनस तनवीर ने अटॉर्नी जनरल को लिखे पत्र में कहा है कि निशिकांत दुबे ने सार्वजनिक रूप से जो बयान दिए हैं, वे अत्यंत आपत्तिजनक, भ्रामक और माननीय सुप्रीम कोर्ट की गरिमा एवं अधिकार को कम करने की नीयत से दिए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड के भेजे गए पत्र के अनुसार, दुबे ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ जो आपत्तिजनक टिप्पणियां की है वह कंटेप्ट वाली हैं और बेहद अपत्तिजनक है। पत्र में कहा कि दुबे की टिप्पणी 'गंभीर रूप से अपमानजनक' और 'खतरनाक रूप से भड़काऊ' हैं।

बीजेपी ने खुद को दुबे के बयान से अलग किया

निशिकांत दुबे की यह टिप्पणी वक्फ संशोधन कानून को लेकर आई। वक्फ संशोधन कानून के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून के कुछ प्रावधानों को लेकर सवाल उठाए हैं, जिसके बाद केंद्र सरकार ने अगली सुनवाई तक कानून के कुछ प्रावधानों को लागू करने पर रोक लगा दी है। भाजपा ने भी शनिवार को खुद को निशिकांत दुबे के बयान से अलग कर लिया और दुबे के बयान को उनके निजी विचार बताया। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी नेताओं से अपील की है कि वे ऐसी टिप्पणियां न करें।

अनुच्छेद–142 न्यूक्लियर मिसाइल बना, राष्ट्रपति को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर भड़के धनखड़

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सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों को मंजूरी देने की समयसीमा तय की थी। इस पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया आदेश पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि भारत में ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे और कार्यकारी जिम्मेदारी निभाएंगे।

जज 'सुपर संसद' के रूप में काम करेंगे-धनखड़

राज्यसभा के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि एक हालिया फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें इसे लेकर बेहद संवेदनशील होने की जरूरत है। हमने इस दिन की कल्पना नहीं की थी, जहां राष्ट्रपति को तय समय में फैसला लेने के लिए कहा जाएगा और अगर वे फैसला नहीं लेंगे तो कानून बन जाएगा।उपराष्ट्रपति ने कहा कि अब जज विधायी चीजों पर फैसला करेंगे। वे ही कार्यकारी जिम्मेदारी निभाएंगे और सुपर संसद के रूप में काम करेंगे। उनकी कोई जवाबदेही भी नहीं होगी क्योंकि इस देश का कानून उन पर लागू ही नहीं होता।

अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ परमाणु मिसाइल

उपराष्ट्रपति ने कहा, हम ऐसे हालात नहीं बना सकते जहां अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश दें। संविधान का अनुच्छेद 142 के तहत मिले कोर्ट को विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24x7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। दरअसल, अनुच्छेद 142 भारत के सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देता है कि वह पूर्ण न्याय (कम्पलीट जस्टिस) करने के लिए कोई भी आदेश, निर्देश या फैसला दे सकता है, चाहे वह किसी भी मामले में हो।

जस्टिस यशवंत वर्मा के मिली नगदी का किया जिक्र

उपराष्ट्रपति ने दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के घर से भारी मात्रा में नकदी मिलने की घटना का जिक्र किया। उन्होंने कहा, '14 और 15 मार्च की रात नई दिल्ली में एक जज के घर पर एक घटना हुई। सात दिनों तक किसी को इसके बारे में पता नहीं चला। हमें खुद से सवाल पूछने होंगे। क्या इस देरी को समझा जा सकता है? क्या इसे माफ किया जा सकता है? क्या इससे कुछ बुनियादी सवाल नहीं उठते? किसी भी सामान्य स्थिति में, और सामान्य स्थितियां कानून के शासन को परिभाषित करती हैं - चीजें अलग होतीं। यह केवल 21 मार्च को एक अखबार द्वारा खुलासा किया गया था, जिससे देश के लोग पहले कभी नहीं इतने हैरान हुए।

क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने?

दरअसल, 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के मामले में ऐतिहासिक फैसला लिया था। अदालत ने कहा था कि राज्यपाल को विधानसभा की ओर से भेजे गए बिल पर एक महीने के भीतर फैसला लेना होगा।

इसी फैसले के दौरान अदालत ने राज्यपालों की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर भी स्थिति स्पष्ट की। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सार्वजनिक किया गया। 11 अप्रैल की रात वेबसाइट पर अपलोड किए गए ऑर्डर में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 201 का हवाला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, राज्यपालों की ओर से भेजे गए बिल के मामले में राष्ट्रपति के पास पूर्ण वीटो या पॉकेट वीटो का अधिकार नहीं है। उनके फैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है और न्यायपालिका बिल की संवैधानिकता का फैसला न्यायपालिका करेगी।