तुर्की-चीन पर अडानी की “स्ट्राइक” अडानी ने पाकिस्तान के इन दोनों साथियों को सिखाया सबक

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तुर्की को अपने “नापाक” दोस्त पाकिस्तान का साथ देने की भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। भारत के साथ हाल में हुई तनातनी में तु्र्की ने खुलकर पाकिस्तान का साथ दिया था। जिसके बाद तुर्की के खिलाफ लोगों का गुस्सा देखा गया। उसके बाद केन्द्र सरकार ने भी सबक सिखाया। भारत सरकार ने तुर्किए के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए तुर्की एयरपोर्ट की ग्राउंड हैंडलिंग कंपनी सेलेबी एयरपोर्ट सर्विस की सिक्योरिटी क्लीयरेंस रद्द कर दी। अब देश के दिग्गज कारोबारी गौतम अडानी ने बड़ा फैसला किया है। 

तुर्की की कंपनी के साथ पार्टनरशिप खत्म

गौतम अडानी की कंपनी अडानी एयपोर्ट होल्डिंग्स ने अहमदाबाद एयरपोर्ट पर ग्राउंड हैंडलिंग सर्विस के लिए तुर्की की कंपनी सेलेबी के साथ अपनी पार्टनरशिप खत्म कर दी है। गौतम अडानी की और से यह फैसला भारत सरकार के एक आदेश के बाद लिया गया है। नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत आने वाले ब्यूरो ऑफ सिविल एविएशन सिक्योरिटी ने सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज इंडिया लिमिटेड की सुरक्षा मंजूरी रद्द कर दी था। इसके बाद सेलेबी को तुरंत अपना सारा काम अडानी को सौंपने का आदेश दिया गया।

चीन की कंपनी से नाता तोड़ा

इस बीच अडानी एयरपोर्ट होल्डिंग्स ने ड्रैगनपास के साथ भी अपना समझौता खत्म कर दिया है। ड्रैगनपास चीन की एक कंपनी है जो एयरपोर्ट लाउंज और ट्रैवल सर्विस देती है। अडानी के एक प्रवक्ता ने बताया कि एयरपोर्ट लाउंज तक पहुंच देने वाली कंपनी ड्रैगनपास के साथ हमारा समझौता तत्काल प्रभाव से खत्म कर दिया गया है। अब ड्रैगनपास के ग्राहक अडानी द्वारा मैनेज किए जाने वाले एयरपोर्ट पर लाउंज का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे।

अब तुर्की का होगा मालदीव जैसा हाल, पाकिस्तान का साथ देकर बड़ी गलती कर बैठे एर्दोगन

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पिछले साल जनवरी में मालदीव के कुछ मंत्रियों ने प्रधानमंत्री मोदी के लक्षद्वीप दौरे के दौरान अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया था। जिसके बाद भारत और मालदीव के बीच विवाद काफी बढ़ गया। इस दौरान भारत सरकार के पहले भारतीय अपने प्रधानमंत्री की ढाल बनकर खड़े हो गए थे। भारतीय पर्यटकों ने मालदीव का बहिष्कार शुरू कर दिया, जिसने कुछ ही समय में मालदीव के नेताओं को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया। अब लगता है मालदीव के बाद तुर्की की बारी है।

दरअसल, 22 अप्रैल को पाकिस्तान की ओर से आए आतंकियों ने पहलगाम में 26 लोगों का धर्म पूछकर नरसंहार कर दिया। भारत ने आतंकी हमला का जवाब देते हुए पाकिस्तान में 9 आतंकी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया था। इसके बाद आतंक को पालने वाला पाकिस्तान तिलमिला गया और भारत पर ड्रोन और मिसाइल दागने लगा। पाकिस्तान ने तुर्की के ड्रोन से हमला किया था। इन हमलों को भारत के एयर डिफेंस सिस्टम ने मुंहतोड़ जवाब दिया। इसके बाद पाकिस्तान घुटने पर आ गया। तुर्की ने इस तनाव के वक्त में भारत के खिलाफ पाकिस्तान का साथ दिया। तुर्की की मीडिया ने प्रोपेगेंडा चलाने में पाकिस्तान का पक्ष लिया। जिससे गुस्साए भारतीय पर्यटकों ने तुर्की का बहिष्कार करना शुरू कर दिया है। अब टूर ऑपरेटर्स ने तुर्की का दौरा कैंसिल करना शुरू किया। भारत की कई टूर कंपनियों ने तुर्की, चीन और अजरबैजान की बुकिंग कैंसिल करनी शुरू कर दी है।

तुर्की को भारी पड़ सकता है भारत का बहिष्कार

अब बड़ा सवाल ये है कि भारतीय पर्यटकों के बहिष्कार से तुर्की को कितना नुकसान होगा? पिछले कुछ सालों में भारी संख्या में भारतीय पर्यटकों ने घुमने के लिए तुर्की को चुना है। साल 2023 में करीब 2.74 लाख भारतीय नागरिक घुमने के लिए तुर्की गये थे। जबकि 2024 में तुर्की जाने वाले भारतीय पर्यटकों का ये आंकड़ा बढ़कर करीब 3.5 लाख पहुंच गया। भारतीय लोगों के बीच शादी करने, हनीमुन मनाने और फैमिली ट्रिप्स के लिए तुर्की तेजी से पॉपुलर हो रहा था।

भारतीयों के बहिष्कार से तुर्की को कितना नुकसान?

बात अगर तु्र्की को भारतीय पर्यटकों से होने वाले फायदे की करें तो तुर्की की सरकार ने 2025 में भारतीय टूरिज्म से 300 मिलियन डॉलर तक की इनकम करने की उम्मीद की थी। अगर बहिष्कार लंबे समय तक चला तो अनुमान है कि 150–200 मिलियन डॉलर तक का नुकसान हो सकता है। वहीं टूरिज्म सेक्टर से जुड़े होटल, ट्रांसपोर्ट, गाइड्स को मिलाकर नुकसान 2000 करोड़ रुपये से ज्यादा हो सकता है। वहीं भारतीय काफी खर्च करने के लिए जाने जाते है। वो चीनियों की तरह खर्च करने में कंजूस नहीं होते हैं। भारत का एक पर्यटक मालदीव या तुर्की जैसे देशों में 2500 डॉलर से ज्यादा खर्च करता है। इसके अलावा शादियों और अन्य तरह का आयोजन करने के लिए भी भारती के लोग तुर्की जाते हैं। शादियों का खर्च और भी ज्यादा होता। जिससे भारत का बहिष्कार तुर्की को भारी पड़ सकता है।

तुर्की से आयातित सेब की बिक्री पर भी असर

भारत के लोगों का गुस्सा सिर्फ तुर्की की यात्रा का बहिष्कार करने तक नहीं है। भारतीय बाजारों में तुर्की से आयातित सेब की बिक्री पर भी असर पड़ा है। थोक व्यापारी बता रहे हैं कि अब ग्राहक तुर्की के सेब नहीं खरीद रहे हैं। 2024-25 में भारत ने तुर्की से करीब 1.6 लाख टन सेब आयात किए थे जो कुल विदेशी सेब बाजार का 6-8% हिस्सा रखते थे। अब सेब उत्पादक संघ तुर्की से आयात पर पूरी तरह से रोक की मांग कर रहा है।

कराची पहुंचा तुर्की का युद्धपोत, पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के लिए उमड़ रहा “प्यार”

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पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच जंग के से हालात पैदा हो गए हैं। पाक को दिन रात भारत की तरफ से जवाबी कार्रवाई का डर सता रहा है। इस बीच बीच तुर्की का प्रेम पाकिस्तान के लिए उमड़ रहा है। पाकिस्तान की एक अपील पर तुर्की का नौसैनिक जहाज टीसीजी बुयुकाडा कराची पहुंच गया है। हालांकि तुर्की इसे भारत के साथ तनाव के बीच उठाया गया कदम नहीं बता रहा है, लेकिन पाकिस्तान ऐसे ही संदेश दे रहा है।

पाकिस्तानी ने बताया- तुर्की ने क्यों भेजा युद्धपोत?

पाकिस्तानी नौसेना के आधिकारिक बयान में टीसीजी बुयुकाडा की यात्रा का उद्देश्य दोनों देशों के बीच समुद्री सहयोग को मजबूत करना है। भले ही पाकिस्तान की तरफ से दोनों देशों की सहयोग की बात की जा रही है, लेकिन जाहिर तौर पर वो भारत को संदेश देना चाहता है कि तुर्की उसके साथ है। और तुर्की भी ऐसा ही करने की कोशिश कर रहा है।।

तुर्की कोई साजिश तो नहीं रच रहा?

तुर्की का युद्धपोत टीसीजी बुयुकडा ऐसे समय में कराची पहुंचा, जब पहलगाम हमले को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तनातनी है। पिछले हफ्ते वायुसेना के उच्च अधिकारियों को भेजने के बाद अब तुर्की ने पाकिस्तान में अपने युद्धपोत को भेजा है। अंकारा से तुर्की वायुसेना के सी-130 विमान के कराची में उतरने के कुछ दिनों बाद, तुर्की नौसेना का एक युद्धपोत रविवार को कराची बंदरगाह पर पहुंचा। पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक जहाज का आना तुर्की के राजदूत डॉ. इरफान नेजीरोग्लू द्वारा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से मुलाकात कर ‘पाकिस्तान के साथ अंकारा की एकजुटता’ व्यक्त करने के एक दिन बाद हुआ है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि तुर्की कोई साजिश तो नहीं रच रहा है। इससे पहले तुर्की ने पाकिस्तान की अगोस्टा 90B कैटेगरी की पनडुब्बियों को अपडेट करने में भी सहायता किया और ड्रोन समेत सैन्य उपकरण दिए।

क्या है तुर्की के युद्धपोत की खासियत?

टीसीजी बुयुकाडा तुर्की नौसेना का पनडुब्बी रोधी युद्ध कोरवेट की एडा-क्लास सिरीज का दूसरा जहाज है। इसे 2013 में कमीशन किया गया था। इन जहाजों को सतही युद्ध, पनडुब्बी रोधी अभियानों और गश्ती मिशनों के लिए डिज़ाइन किया गया है। जहाज एडवांस रडार सिस्टम, 76 मिमी नौसैनिक बंदूक, जहाज एंटी मिसाइलों और टारपीडो लांचर से सुसज्जित है। इसमें समुद्री विमानन संचालन का समर्थन करने के लिए एक हेलीकॉप्टर लैंडिंग पैड और हैंगर भी है। यह कार्वेट खुले समुद्र में काम कर सकता है और इसकी रेंज विस्तारित क्षेत्रीय मिशनों के लिए काफी है।

पहलगाम अटैक के बाद भारत-पाक में बढ़ा तनाव

भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के गुनहगारों को सजा देने की कसम खा रखी है और आशंका है कि भारत, पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य अभियान शुरू कर सकता है। भारत सरकार ने सेना को फ्री हैंड दे दिया है और तय सेना को करना है कि पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई के लिए उसकी स्ट्रैटजी क्या होगी। तब तक के लिए भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौता सस्पेंड करते हुए पाकिस्तानी जहाजों को भारतीय बंदरगाहों में प्रवेश करने से रोक दिया, पाकिस्तानी एयरलाइंस के भारतीय एयरस्पेस में दाखिल होने पर पाबंदी लगा दी गई है। पाकिस्तान ने भी ऐसा ही किया है।

Skytime is Changing the Tours and Travel Industry in Kerala

 

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बाबा सिद्दीकी हत्याकांड: ऑस्ट्रेलिया-तुर्की में बनी पिस्तौल, यूट्यूब पर ट्रेनिंग, एक-एक कर खुल रहे राज

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महाराष्ट्र में एनसीपी के वरिष्ठ नेता बाबा सिद्दीकी शूट आउट केस में लगातार चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। इसी क्रम में अब मुंबई पुलिस ने बताया है कि एनसीपी नेता की हत्या में इस्तेमाल की गई पिस्तौल बरामद कर ली गईं हैं। दावा किया गया कि इनमें से एक ऑस्ट्रेलियाई मेड ग्लॉक पिस्‍टल तो दूसरी तुर्की मेड पिस्‍टल है। वहीं तीसरी एक देसी पिस्‍टल है। पुलिस ने तीनों हथियार बरामद कर लिए हैं। इससे पहले, मुंबई पुलिस ने बताया था कि जांच में पता चला है कि हत्या में शामिल शूटर्स ने यूट्यूब पर वीडियो देखकर हथियार चलाना सीखा था।

मुंबई पुलिस पहले ही यह साफ कर चुकी है कि वारदात से चंद दिन पहले ही शूटर्स के पास ये हथियार पहुंचाए गए थे। हमलावरों ने यूट्यूब पर वीडियो देखकर ये पिस्टल चलानी सीखी थी। बाबा सिद्दीकी की 12 अक्टूबर की रात को उनके विधायक बेटे जीशान सिद्दीकी के निर्मल नगर इलाके में मौजूद ऑफिस के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस वारदात में पुलिस के अनुसार तीन शूटरों ने उनकी हत्या की थी। हालांकि मामले में मुबंई पुलिस ने अब तक चार लोगों को गिरफ्तार किया है।

पुलिस पुलिस ने अब तक जिन चार लोगों को अरेस्‍ट किया है, जिनमें दो कथित शूटर हरियाणा के रहने वाले गुरमेल बलजीत सिंह और उत्तर प्रदेश का धर्मराज राजेश कश्यप है। इसके अलावा हरीशकुमार बालकराम निषाद और पुणे का सह-साजिशकर्ता प्रवीण लोनकर भी इस हत्‍याकांड में शामिल हैं। निषाद और कश्यप उसी गांव के हैं, जहां का फरार आरोपी शिवकुमार गौतम है।

इस मामले में अपराध शाखा के एक अधिकारी ने बताया कि हिरासत में लिए गए आरोपियों से पूछताछ में पता चला कि शिवकुमार गौतम ने उत्तर प्रदेश में शादियों में जश्न के दौरान की जाने वाली फायरिंग के दौरान बंदूक चलाना सीखा था। अधिकारी ने गुरमेल सिंह और धर्मराज कश्यप से पूछताछ का हवाला देते हुए बताया कि शिवकुमार गौतम को इस वारदात में 'मुख्य शूटर' के तौर पर रखा गया था, क्योंकि वह बंदूक चलाना जानता था।

उन्होंने बताया कि शिवकुमार गौतम ने ही धर्मराज कश्यप और गुरमेल सिंह को कुर्ला में किराए के घर में हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया था, जहां उन्होंने खुली जगह की कमी के कारण ड्राई प्रैक्टिस (बिना गोली के गोली चलाना) किया था। अधिकारी ने बताया कि उन्होंने करीब चार हफ्ते तक यूट्यूब वीडियो देखकर हथियार लोड करना और उतारना सीखा। इसमें चौंकाने वाली बात यह है कि कथित सह-षड्यंत्रकारियों में से एक शुभम लोनकर से पुलिस ने जून में अभिनेता सलमान खान के बांद्रा में मौजूद घर के बाहर गोलीबारी के सिलसिले में पूछताछ की थी, ये पूरी वारदात कथित तौर पर लॉरेंस बिश्नोई गिरोह के नेटवर्क से जुड़ी हुई है।

ब्रिक्स में क्यों शामिल होना चाहता है तुर्की? भारत, चीन और रूस वाले आर्थिक गुट में आने की ये है वजह*
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तुर्की ब्रिक्स में शामिल होना चाहता है, जानकारी के मुताबिक अंकारा ने ब्रिक्स मे शामिल होने के लिए आवेदन दिया है। हालांकि तुर्की की ओर से आधिकारिक तौर पर इसका ऐलान नहीं किया गया है। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोयन की पार्टी के प्रवक्ता उमर सेलिक ने भी हाल ही में ये कहा था कि तुर्की के ब्रिक्स में शामिल होने का प्रक्रिया शुरू हो गई है। वहीं, कुछ दिनों पहले रूस के राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने जानकारी दी थी कि तुर्की ने ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा जताई है। ब्लूमबर्ग एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक तुर्की ने कई महीने पहले ही ब्रिक्स में शामिल होने की अर्ज़ी दे दी है। अब सवाल ये कि आखिर तुर्की क्यों संगठन में आना चाहता है? जानकारों की मानें तो तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन एक ओर मुस्लिम देशों के बीच वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं तो वहीं दूसरी ओर अपना वैश्विक प्रभाव बढ़ाने पर भी उनका ज़ोर है। आने वाले समय में ब्रिक्स को डब्ल्यूटीओ (विश्व व्यापार संगठन), आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक जैसे पश्चिमी देशों के वर्चस्व वाले संगठन के विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि तुर्की आर्थिक विकास के लिए अधिक अवसर और वित्तीय सहायता हासिल करने के लिए ब्रिक्स में शामिल होना चाहता है। दरअसल ज्यादातर देश पश्चिमी देशों के कड़े प्रतिबंधों से परेशान हैं और वह ब्रिक्स के न्यू डेवलपमेंट बैंक की मदद चाहते हैं। आर्थिक संकट से निकलने की कोशिश दरअसल, तुर्की को विदेशी निवेश की ज़रूरत है क्योंकि देश एक गंभीर आर्थिक संकट से गुज़र रहा है। अगर तुर्की की अर्थव्यवस्था धराशाई होती है तो ये यूरोपीय बैंकों के लिए भी ख़तरनाक होगा क्योंकि तुर्की की अर्थव्यवस्था उन्हीं पर निर्भर है। तुर्की का आधा कारोबार यूरोपीय संघ के देशों के साथ है।काउंसिल ऑफ़ यूरोपियन यूनियन के मुताबिक तुर्की 31.8% हिस्से के साथ यूरोपीय संघ का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है। साल 2022 में यूरोपीय संघ और तुर्की के बीच कुल 200 बिलियन यूरो का ट्रेड हुआ था। ब्रिक्स के जरिए अपने कई हितों को साधने की तैयारी में तुर्की यूरोप से बाहर नये आर्थिक प्लेटफॉर्म की तलाश में है। उसका अपना कहना है कि ब्रिक्स के साथ जुड़कर,तुर्की का लक्ष्य पूर्व और पश्चिम के बीच एक सेतु के रूप में अपनी भूमिका को मजबूत करना है, जिससे अंतरराष्ट्रीय मामलों में इसका रणनीतिक महत्व बढ़ेगा। तुर्की नाटो देशों का सदस्य है लेकिन रूस का करीबी दोस्त होने की वजह से पश्चिमी देशों के साथ उसके संबंध कुछ खास नहीं रहे हैं। इसके अलावा बताया जाता है कि तुर्की चीन के प्रभाव वाले संगठन एससीओ में भी शामिल होना चाहता है, लिहाज़ा रूस और चीन के प्रभाव वाले ब्रिक्स के जरिए वह अपने कई हितों को साध सकता है। माना जा रहा है कि ब्रिक्स में शामिल होने के बावजूद तुर्की नाटो से अपने संबंध तोड़ने वाला नहीं है, बल्कि वह पश्चिमी देशों से इतर नए गुटों के साथ जुड़कर अपने वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। दरअसल तुर्की अपनी विदेश नीति में बदलाव लाना चाहता है, जिससे उसकी इस इमेज में बदलाव भी आए कि वो मुस्लिम देशों का अगुवा बनना चाहता है। ब्रिक्स क्या है? शुरू में ये समूह ब्रिक कहलाता था। ये विकासशील देशों का एक समूह है जिसका गठन वर्ष 2006 में हुआ था। इसमें ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन शामिल थे। साल 2010 में इस समूह में दक्षिण अफ़्रीका भी शामिल हो गया और तब इसका नाम ब्रिक से बदल ब्रिक्स कर दिया गया। ब्रिक्स का गठन उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के अमीर देशों की राजनीतिक और आर्थिक शक्ति को चुनौती देने के लिए, दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण विकासशील देशों को एकजुट करने के मकसद से हुआ था। इस आर्थिक अलायंस में हाल के वर्षों में कई विस्तार हुए हैं। अब इसमें ईरान, मिस्र, इथीयोपिया और संयुक्त अरब अमीरात भी शामिल हो चुके हैं। सऊदी अरब ने भी इस समूह में शामिल होने की इच्छा ज़ाहिर की है और अज़रबैजान ने तो सदस्यता के लिए औपचारिक अर्ज़ी भी दे दी है।
Furniture Fair & Thailand Fest Wow Crowds with Luxury, Global Products, and Top Creators

Furniture Fair & Thailand Shopping Festival Kick Off with a Grand Opening, Welcoming Over 10,000 Visitors on Day 1

The highly anticipated Furniture Fair and Thailand Shopping Festival commenced on 27th September 2024 at BKC, witnessing a grand start with over 10,000 visitors on the very first day. Organized by I Ads & Events, a renowned leader in event management, the exhibition has quickly become a highlight for attendees, featuring an impressive lineup of international brands and exhibitors.

The 6-day event, running from 27th September to 2nd October, showcases a diverse range of furniture for both domestic and commercial use, tailored to meet varying budgets and tastes. Visitors have the opportunity to explore everything from elegant sofa sets and modular kitchens to office furniture, carpets, antiques, and bespoke decor items. The event is a one-stop destination for new homebuyers or those looking to refurbish their living spaces with modern and traditional furniture alike.

In addition to the furniture, the Thailand Shopping Festival offers a unique shopping experience, featuring exhibitors from Thailand, Turkey, Iran, Afghanistan, and Korea. Visitors can indulge in an array of exclusive international products, such as Thailand's pearl jewellery, Turkish lights, Iranian silver jewellery, Afghan dry fruits, and Korean beauty products. This combination of local and global offerings has created an exciting marketplace for discerning shoppers.

As a testament to the event's wide appeal, top content creators were also spotted on the exhibition floor, capturing the experience and sharing it with their vast audiences. Their presence underscores the event's reach and influence, drawing both consumer attention and social media buzz.

I Ads & Events, with over two decades of experience in managing B2C exhibitions across India, has once again demonstrated its expertise in creating immersive and interactive experiences. The event highlights their dedication to connecting brands directly with consumers, ensuring not just a shopping experience but also meaningful engagement.

The exhibition, open daily from 10:00 AM to 8:30 PM, is easily accessible to the public with an entry ticket priced at just Rs. 50. This makes it a perfect family outing where visitors can discover the latest trends in furniture, indulge in global shopping, and enjoy exclusive deals.

With such a successful opening day and a diverse array of offerings, the Furniture Fair and Thailand Shopping Festival are set to be must-attend events for anyone looking to enhance their living spaces or find unique international products. 

For more details, visit https://www.iadsandevents.com, or Instagram: , contact num +919234712380

For media coverage on this platform call +917710030004

तुर्की ने यूएन में नहीं उठाया कश्मीर का मुद्दा, क्यों छोड़ा पाकिस्तान का साथ?

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मोदी सरकार ने पाँच अगस्त 2109 को जब जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किया था तो अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं भी आई थीं। चीन और तुर्की ने भारत के इस फ़ैसले का खुलकर विरोध किया था। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन 2019 से हर साल संयुक्त राष्ट्र की वार्षिक आम सभा में कश्मीर का मुद्दा उठाते थे और भारत की आलोचना करते थे। भारत अर्दोआन के बयान पर आपत्ति जताता था और पाकिस्तान स्वागत करता था। लेकिन इस बार अर्दोआन ने संयुक्त राष्ट्र की आम सभा को संबोधित करते हुए कश्मीर का नाम तक नहीं लिया।

आम तौर पर तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने वार्षिक संबोधन में कश्मीर का जिक्र जरूर करते थे। संयुक्त महासभा में पाकिस्तान को उम्मीद थी कि तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन फिर एक बार कश्मीर का मुद्दा उठाएंगे,लेकिन उन्होंने तो इस बार इसका नाम लेना तक जरूरी नहीं समझा। राष्ट्रपति एर्दोगन ने यूएन की महासभा को संबोधित तो किया पर कश्मीर पर एक लफ्ज नहीं बोले। तुर्की के इस रुख ने पाकिस्तान को हैरान कर दिया। तुर्की के इस रुख के बाद लोग कई तरह के कयास लगाने लगे हैं। एर्दोगन की इस चुप्पी को भारत की कूटनीतिक जीत के तौर पर देखा जा रहा है।

कयास लगाया जा रहा है कि तुर्की के कश्मीर पर एक शब्द न बोलने के पीछे ब्रिक्स है। ऐसा कहना है कि तुर्की ब्रिक्स देशों के साथ खुद को खड़ा देखना चाहता है, उसे इसमें शामिल होना है और यही वजह है कि उनके राष्ट्रपति एर्दोगन ने एक बार भी अपनी स्पीच में कश्मीर का मुद्दा नहीं उठाया।

न्यूयॉर्क में 79वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण के दौरान उन्होंने कहा, “हम ब्रिक्स के साथ अपने संबंधों को विकसित करने की अपनी इच्छा को बनाए रखते हैं, जो उभरती अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ लाता है।”

ब्रिक्स गुट में ब्राज़ील, रूस, इंडिया, चीन और दक्षिण अफ़्रीका हैं. भारत इस गुट का संस्थापक सदस्य देश है। इस गुट के विस्तार की बात हो रही है और कई देशों ने इसमें शामिल होने में दिलचस्पी दिखाई है। तुर्की भी इसी लाइन में है। तुर्की का यूएन महासभा में कश्मीर के मुद्दे को न उठाना भारत को खुश करना भी है।

तुर्की के राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन यह भलीभांति जानते हैं कि अगर उन्हें ब्रिक्स का सदस्य बनना है तो भारत को खुश कर के रखना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि ब्रिक्स में तुर्की को एंट्री भारत की मंजूरी के बाद ही मिल सकती है। तुर्की को यह भी पता है कि अगर भारत ने मना कर दिया तो उसका ब्रिक्स का हिस्सा बनना मुश्किल हो जाएगा। तो इसका लब्बोलुआब यह है कि ब्रिक्स में तुर्की को एंट्री तभी मिलेगी जब वह भारत के करीब आए और उसे खुश करने की कोशिश करे।

तुर्की को पता है कि भारत का कश्मीर को लेकर रुख साफ है। वह किसी भी कीमत पर कश्मीर पर समझौता नहीं करेगा। यही नहीं भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर के बयानों से स्पष्ट है कि पीओके जिसे पाकिस्तान आजाद कश्मीर कहता है, उसे भी लेने की प्लानिंग है।

तुर्की सरकार ने इंस्टाग्राम पर लगाया बैन, वजह जानकर हो जाएंगे हैरान

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तुर्की ने अचानक ही पूरे देश में इंस्टाग्राम पर रोक लगा दी है। देश के सूचना प्रौद्योगिकी नियामक ने शुक्रवार को इसकी जानकारी दी। हालांकि, इंस्टाग्राम पर प्रतिबंध लगाने के फैसले के वजह को लेकर तुर्की की तरफ से कोई जानकारी नहीं दी गई है। साथ ही यह भी नहीं बताया गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लगा यह प्रतिबंध कब तक लागू रहेगा। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो इंस्टाग्राम पर यह प्रतिबंध हमास के बड़े नेता इस्माइल हनीया की मौत की वजह से लगाया गया है।

माना जा रहा है कि इंस्टाग्राम ने इस्माइल हनीया की मौत वाले शोक संदेश को ब्लॉक कर दिया था। जिसके बाद तुर्की की सरकार ने ये कदम उठाया है। दरअसल, तुर्की के संचार अधिकारी फहरेटिन अल्तुन की बुधवार को इंस्टाग्राम की आलोचना करते हुए कहा कि प्लेटफॉर्म ने हमास प्रमुख इस्माइल हानिया की हत्या पर शोक संदेशों को ब्लॉक कर दिया है।

अल्तुन ने एक्स पर कहा,यह सेंसरशिप है, पूरी तरह से।उन्होंने कहा कि इंस्टाग्राम ने अपने इस कदम के लिए कोई नीतिगत उल्लंघन का हवाला नहीं दिया है। हम इन प्लेटफॉर्म के खिलाफ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करना जारी रखेंगे, जिन्होंने बार-बार दिखाया है कि वे शोषण और अन्याय की वैश्विक व्यवस्था की सेवा करते हैं। हम हर अवसर पर और हर मंच पर अपने फलस्तीनी भाइयों के साथ खड़े रहेंगे। फलस्तीन जल्द या बाद में आजाद होगा। इजरायल और उसके समर्थक इसे रोक नहीं पाएंगे।

मीडिया रिपोर्सट्स के मुताबिक इंस्टाग्राम पर लगाए गए बैन की वजह से 5 करोड़ यूजर्स प्रभावित हुए है। तुर्की की कुल आबादी लगभग 8.5 करोड़ है। ऐसे में तुर्की की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा इंस्टाग्राम का इस्तेमाल करता है।

हालांकि तुर्किये में ऐसा में पहली बार नहीं हुआ है, जब किसी सोशल मीडिया ऐप या बेवसाइट को बैन किया गया है। इससे पहले भी तुर्किये विकीपीडिया को बैन कर चुका है। उसने साल 2017 से 2020 के बीच विकीपीडिया को उग्रवाद और राष्ट्रपति से जुड़े आर्टिकल के चलते बैन कर दिया था।

कम नहीं हो रहा तुर्की का “पाक” प्रेम, एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिर उठाया कश्मीर मुद्दा

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अपने दोस्त पाकिस्तान को खुश करने के लिए तुर्की ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर का मुद्दा उठाया है।तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर का मुद्दा उठाते हुए कहा कि भारत और पाकिस्तान को इस मुद्दे को बातचीत से सुलझाना चाहिए। इससे क्षेत्र में स्थिरता आएगी। 

राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगन ने यहां संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के उच्च स्तरीय 78वें सत्र में कश्मीर का मुद्दा उठाया। एर्दोगन ने मंगलवार को महासभा की आम बहस में विश्व नेताओं को दिए संबोधन में कहा, ‘‘भारत और पाकिस्तान के बीच संवाद और सहयोग के जरिये कश्मीर में न्यायपूर्ण एवं स्थायी शांति की स्थापना कर दक्षिण एशिया में शांति, स्थिरता तथा समृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘तुर्किये इस दिशा में उठाए गए कदमों का समर्थन करना जारी रखेगा।’‘

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बदलाव की उठाई मांग

हालांकि, एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में बड़े बदलावों की वकालत करने लिए भारत की तारीफ भी की। उन्होंने कहा कि यह गर्व का विषय है कि भारत यूएनएससी में एक अहम भूमिका निभा रहा है। इस बीच अर्दोआन ने सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों पर निशाना साधा और कहा कि वह चाहते हैं कि यूएनएससी के 15 अस्थायी सदस्यों को भी सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य बनाया जाए। एर्दोगन ने कहा, "संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के इन 20 देशों (पांच स्थायी सदस्यों+15 अस्थायी सदस्यों) को यूएनएससी में बदल-बदलकर स्थायी सदस्यता दी जानी चाहिए। क्योंकि दुनिया इन पांच स्थायी सदस्यों से बड़ी है। हमारा कहना सिर्फ इतना है कि दुनिया महज अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और रूस तक सीमित नहीं है।"

एर्दोगन कश्मीर को बता चुके हैं एक ज्वलंत मुद्दा

बता दें कि कश्मीर को लेकर एर्दोगन का यह बयान उनके पुराने बयानों की अपेक्षा काफी हल्का है। साल 2020 में एर्दोगन ने कश्मीर को एक ज्वलंत मुद्दा बताया था। इसके साथ उन्होंने अनुच्छेद 370 को खत्म करने को लेकर भारत की आलोचना भी की थी। वहीं पिछले साल उन्होंने जोर देकर कहा था कि संयुक्त राष्ट्र रिजोल्यूशन अपनाए जाने के बावजूद, कश्मीर अभी भी घिरा हुआ है और 80 लाख लोग फंसे हुए हैं।हालांकि, भारत ने अर्दोआन के बयानों की निंदा की थी और देश की स्वायत्ता का सम्मान करने की मांग की थी।

तुर्की-चीन पर अडानी की “स्ट्राइक” अडानी ने पाकिस्तान के इन दोनों साथियों को सिखाया सबक

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तुर्की को अपने “नापाक” दोस्त पाकिस्तान का साथ देने की भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। भारत के साथ हाल में हुई तनातनी में तु्र्की ने खुलकर पाकिस्तान का साथ दिया था। जिसके बाद तुर्की के खिलाफ लोगों का गुस्सा देखा गया। उसके बाद केन्द्र सरकार ने भी सबक सिखाया। भारत सरकार ने तुर्किए के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए तुर्की एयरपोर्ट की ग्राउंड हैंडलिंग कंपनी सेलेबी एयरपोर्ट सर्विस की सिक्योरिटी क्लीयरेंस रद्द कर दी। अब देश के दिग्गज कारोबारी गौतम अडानी ने बड़ा फैसला किया है। 

तुर्की की कंपनी के साथ पार्टनरशिप खत्म

गौतम अडानी की कंपनी अडानी एयपोर्ट होल्डिंग्स ने अहमदाबाद एयरपोर्ट पर ग्राउंड हैंडलिंग सर्विस के लिए तुर्की की कंपनी सेलेबी के साथ अपनी पार्टनरशिप खत्म कर दी है। गौतम अडानी की और से यह फैसला भारत सरकार के एक आदेश के बाद लिया गया है। नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत आने वाले ब्यूरो ऑफ सिविल एविएशन सिक्योरिटी ने सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज इंडिया लिमिटेड की सुरक्षा मंजूरी रद्द कर दी था। इसके बाद सेलेबी को तुरंत अपना सारा काम अडानी को सौंपने का आदेश दिया गया।

चीन की कंपनी से नाता तोड़ा

इस बीच अडानी एयरपोर्ट होल्डिंग्स ने ड्रैगनपास के साथ भी अपना समझौता खत्म कर दिया है। ड्रैगनपास चीन की एक कंपनी है जो एयरपोर्ट लाउंज और ट्रैवल सर्विस देती है। अडानी के एक प्रवक्ता ने बताया कि एयरपोर्ट लाउंज तक पहुंच देने वाली कंपनी ड्रैगनपास के साथ हमारा समझौता तत्काल प्रभाव से खत्म कर दिया गया है। अब ड्रैगनपास के ग्राहक अडानी द्वारा मैनेज किए जाने वाले एयरपोर्ट पर लाउंज का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे।

अब तुर्की का होगा मालदीव जैसा हाल, पाकिस्तान का साथ देकर बड़ी गलती कर बैठे एर्दोगन

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पिछले साल जनवरी में मालदीव के कुछ मंत्रियों ने प्रधानमंत्री मोदी के लक्षद्वीप दौरे के दौरान अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया था। जिसके बाद भारत और मालदीव के बीच विवाद काफी बढ़ गया। इस दौरान भारत सरकार के पहले भारतीय अपने प्रधानमंत्री की ढाल बनकर खड़े हो गए थे। भारतीय पर्यटकों ने मालदीव का बहिष्कार शुरू कर दिया, जिसने कुछ ही समय में मालदीव के नेताओं को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया। अब लगता है मालदीव के बाद तुर्की की बारी है।

दरअसल, 22 अप्रैल को पाकिस्तान की ओर से आए आतंकियों ने पहलगाम में 26 लोगों का धर्म पूछकर नरसंहार कर दिया। भारत ने आतंकी हमला का जवाब देते हुए पाकिस्तान में 9 आतंकी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया था। इसके बाद आतंक को पालने वाला पाकिस्तान तिलमिला गया और भारत पर ड्रोन और मिसाइल दागने लगा। पाकिस्तान ने तुर्की के ड्रोन से हमला किया था। इन हमलों को भारत के एयर डिफेंस सिस्टम ने मुंहतोड़ जवाब दिया। इसके बाद पाकिस्तान घुटने पर आ गया। तुर्की ने इस तनाव के वक्त में भारत के खिलाफ पाकिस्तान का साथ दिया। तुर्की की मीडिया ने प्रोपेगेंडा चलाने में पाकिस्तान का पक्ष लिया। जिससे गुस्साए भारतीय पर्यटकों ने तुर्की का बहिष्कार करना शुरू कर दिया है। अब टूर ऑपरेटर्स ने तुर्की का दौरा कैंसिल करना शुरू किया। भारत की कई टूर कंपनियों ने तुर्की, चीन और अजरबैजान की बुकिंग कैंसिल करनी शुरू कर दी है।

तुर्की को भारी पड़ सकता है भारत का बहिष्कार

अब बड़ा सवाल ये है कि भारतीय पर्यटकों के बहिष्कार से तुर्की को कितना नुकसान होगा? पिछले कुछ सालों में भारी संख्या में भारतीय पर्यटकों ने घुमने के लिए तुर्की को चुना है। साल 2023 में करीब 2.74 लाख भारतीय नागरिक घुमने के लिए तुर्की गये थे। जबकि 2024 में तुर्की जाने वाले भारतीय पर्यटकों का ये आंकड़ा बढ़कर करीब 3.5 लाख पहुंच गया। भारतीय लोगों के बीच शादी करने, हनीमुन मनाने और फैमिली ट्रिप्स के लिए तुर्की तेजी से पॉपुलर हो रहा था।

भारतीयों के बहिष्कार से तुर्की को कितना नुकसान?

बात अगर तु्र्की को भारतीय पर्यटकों से होने वाले फायदे की करें तो तुर्की की सरकार ने 2025 में भारतीय टूरिज्म से 300 मिलियन डॉलर तक की इनकम करने की उम्मीद की थी। अगर बहिष्कार लंबे समय तक चला तो अनुमान है कि 150–200 मिलियन डॉलर तक का नुकसान हो सकता है। वहीं टूरिज्म सेक्टर से जुड़े होटल, ट्रांसपोर्ट, गाइड्स को मिलाकर नुकसान 2000 करोड़ रुपये से ज्यादा हो सकता है। वहीं भारतीय काफी खर्च करने के लिए जाने जाते है। वो चीनियों की तरह खर्च करने में कंजूस नहीं होते हैं। भारत का एक पर्यटक मालदीव या तुर्की जैसे देशों में 2500 डॉलर से ज्यादा खर्च करता है। इसके अलावा शादियों और अन्य तरह का आयोजन करने के लिए भी भारती के लोग तुर्की जाते हैं। शादियों का खर्च और भी ज्यादा होता। जिससे भारत का बहिष्कार तुर्की को भारी पड़ सकता है।

तुर्की से आयातित सेब की बिक्री पर भी असर

भारत के लोगों का गुस्सा सिर्फ तुर्की की यात्रा का बहिष्कार करने तक नहीं है। भारतीय बाजारों में तुर्की से आयातित सेब की बिक्री पर भी असर पड़ा है। थोक व्यापारी बता रहे हैं कि अब ग्राहक तुर्की के सेब नहीं खरीद रहे हैं। 2024-25 में भारत ने तुर्की से करीब 1.6 लाख टन सेब आयात किए थे जो कुल विदेशी सेब बाजार का 6-8% हिस्सा रखते थे। अब सेब उत्पादक संघ तुर्की से आयात पर पूरी तरह से रोक की मांग कर रहा है।

कराची पहुंचा तुर्की का युद्धपोत, पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के लिए उमड़ रहा “प्यार”

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पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच जंग के से हालात पैदा हो गए हैं। पाक को दिन रात भारत की तरफ से जवाबी कार्रवाई का डर सता रहा है। इस बीच बीच तुर्की का प्रेम पाकिस्तान के लिए उमड़ रहा है। पाकिस्तान की एक अपील पर तुर्की का नौसैनिक जहाज टीसीजी बुयुकाडा कराची पहुंच गया है। हालांकि तुर्की इसे भारत के साथ तनाव के बीच उठाया गया कदम नहीं बता रहा है, लेकिन पाकिस्तान ऐसे ही संदेश दे रहा है।

पाकिस्तानी ने बताया- तुर्की ने क्यों भेजा युद्धपोत?

पाकिस्तानी नौसेना के आधिकारिक बयान में टीसीजी बुयुकाडा की यात्रा का उद्देश्य दोनों देशों के बीच समुद्री सहयोग को मजबूत करना है। भले ही पाकिस्तान की तरफ से दोनों देशों की सहयोग की बात की जा रही है, लेकिन जाहिर तौर पर वो भारत को संदेश देना चाहता है कि तुर्की उसके साथ है। और तुर्की भी ऐसा ही करने की कोशिश कर रहा है।।

तुर्की कोई साजिश तो नहीं रच रहा?

तुर्की का युद्धपोत टीसीजी बुयुकडा ऐसे समय में कराची पहुंचा, जब पहलगाम हमले को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तनातनी है। पिछले हफ्ते वायुसेना के उच्च अधिकारियों को भेजने के बाद अब तुर्की ने पाकिस्तान में अपने युद्धपोत को भेजा है। अंकारा से तुर्की वायुसेना के सी-130 विमान के कराची में उतरने के कुछ दिनों बाद, तुर्की नौसेना का एक युद्धपोत रविवार को कराची बंदरगाह पर पहुंचा। पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक जहाज का आना तुर्की के राजदूत डॉ. इरफान नेजीरोग्लू द्वारा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से मुलाकात कर ‘पाकिस्तान के साथ अंकारा की एकजुटता’ व्यक्त करने के एक दिन बाद हुआ है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि तुर्की कोई साजिश तो नहीं रच रहा है। इससे पहले तुर्की ने पाकिस्तान की अगोस्टा 90B कैटेगरी की पनडुब्बियों को अपडेट करने में भी सहायता किया और ड्रोन समेत सैन्य उपकरण दिए।

क्या है तुर्की के युद्धपोत की खासियत?

टीसीजी बुयुकाडा तुर्की नौसेना का पनडुब्बी रोधी युद्ध कोरवेट की एडा-क्लास सिरीज का दूसरा जहाज है। इसे 2013 में कमीशन किया गया था। इन जहाजों को सतही युद्ध, पनडुब्बी रोधी अभियानों और गश्ती मिशनों के लिए डिज़ाइन किया गया है। जहाज एडवांस रडार सिस्टम, 76 मिमी नौसैनिक बंदूक, जहाज एंटी मिसाइलों और टारपीडो लांचर से सुसज्जित है। इसमें समुद्री विमानन संचालन का समर्थन करने के लिए एक हेलीकॉप्टर लैंडिंग पैड और हैंगर भी है। यह कार्वेट खुले समुद्र में काम कर सकता है और इसकी रेंज विस्तारित क्षेत्रीय मिशनों के लिए काफी है।

पहलगाम अटैक के बाद भारत-पाक में बढ़ा तनाव

भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के गुनहगारों को सजा देने की कसम खा रखी है और आशंका है कि भारत, पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य अभियान शुरू कर सकता है। भारत सरकार ने सेना को फ्री हैंड दे दिया है और तय सेना को करना है कि पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई के लिए उसकी स्ट्रैटजी क्या होगी। तब तक के लिए भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौता सस्पेंड करते हुए पाकिस्तानी जहाजों को भारतीय बंदरगाहों में प्रवेश करने से रोक दिया, पाकिस्तानी एयरलाइंस के भारतीय एयरस्पेस में दाखिल होने पर पाबंदी लगा दी गई है। पाकिस्तान ने भी ऐसा ही किया है।

Skytime is Changing the Tours and Travel Industry in Kerala

 

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बाबा सिद्दीकी हत्याकांड: ऑस्ट्रेलिया-तुर्की में बनी पिस्तौल, यूट्यूब पर ट्रेनिंग, एक-एक कर खुल रहे राज

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महाराष्ट्र में एनसीपी के वरिष्ठ नेता बाबा सिद्दीकी शूट आउट केस में लगातार चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। इसी क्रम में अब मुंबई पुलिस ने बताया है कि एनसीपी नेता की हत्या में इस्तेमाल की गई पिस्तौल बरामद कर ली गईं हैं। दावा किया गया कि इनमें से एक ऑस्ट्रेलियाई मेड ग्लॉक पिस्‍टल तो दूसरी तुर्की मेड पिस्‍टल है। वहीं तीसरी एक देसी पिस्‍टल है। पुलिस ने तीनों हथियार बरामद कर लिए हैं। इससे पहले, मुंबई पुलिस ने बताया था कि जांच में पता चला है कि हत्या में शामिल शूटर्स ने यूट्यूब पर वीडियो देखकर हथियार चलाना सीखा था।

मुंबई पुलिस पहले ही यह साफ कर चुकी है कि वारदात से चंद दिन पहले ही शूटर्स के पास ये हथियार पहुंचाए गए थे। हमलावरों ने यूट्यूब पर वीडियो देखकर ये पिस्टल चलानी सीखी थी। बाबा सिद्दीकी की 12 अक्टूबर की रात को उनके विधायक बेटे जीशान सिद्दीकी के निर्मल नगर इलाके में मौजूद ऑफिस के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस वारदात में पुलिस के अनुसार तीन शूटरों ने उनकी हत्या की थी। हालांकि मामले में मुबंई पुलिस ने अब तक चार लोगों को गिरफ्तार किया है।

पुलिस पुलिस ने अब तक जिन चार लोगों को अरेस्‍ट किया है, जिनमें दो कथित शूटर हरियाणा के रहने वाले गुरमेल बलजीत सिंह और उत्तर प्रदेश का धर्मराज राजेश कश्यप है। इसके अलावा हरीशकुमार बालकराम निषाद और पुणे का सह-साजिशकर्ता प्रवीण लोनकर भी इस हत्‍याकांड में शामिल हैं। निषाद और कश्यप उसी गांव के हैं, जहां का फरार आरोपी शिवकुमार गौतम है।

इस मामले में अपराध शाखा के एक अधिकारी ने बताया कि हिरासत में लिए गए आरोपियों से पूछताछ में पता चला कि शिवकुमार गौतम ने उत्तर प्रदेश में शादियों में जश्न के दौरान की जाने वाली फायरिंग के दौरान बंदूक चलाना सीखा था। अधिकारी ने गुरमेल सिंह और धर्मराज कश्यप से पूछताछ का हवाला देते हुए बताया कि शिवकुमार गौतम को इस वारदात में 'मुख्य शूटर' के तौर पर रखा गया था, क्योंकि वह बंदूक चलाना जानता था।

उन्होंने बताया कि शिवकुमार गौतम ने ही धर्मराज कश्यप और गुरमेल सिंह को कुर्ला में किराए के घर में हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया था, जहां उन्होंने खुली जगह की कमी के कारण ड्राई प्रैक्टिस (बिना गोली के गोली चलाना) किया था। अधिकारी ने बताया कि उन्होंने करीब चार हफ्ते तक यूट्यूब वीडियो देखकर हथियार लोड करना और उतारना सीखा। इसमें चौंकाने वाली बात यह है कि कथित सह-षड्यंत्रकारियों में से एक शुभम लोनकर से पुलिस ने जून में अभिनेता सलमान खान के बांद्रा में मौजूद घर के बाहर गोलीबारी के सिलसिले में पूछताछ की थी, ये पूरी वारदात कथित तौर पर लॉरेंस बिश्नोई गिरोह के नेटवर्क से जुड़ी हुई है।

ब्रिक्स में क्यों शामिल होना चाहता है तुर्की? भारत, चीन और रूस वाले आर्थिक गुट में आने की ये है वजह*
#why_turkey_wants_to_join_brics
तुर्की ब्रिक्स में शामिल होना चाहता है, जानकारी के मुताबिक अंकारा ने ब्रिक्स मे शामिल होने के लिए आवेदन दिया है। हालांकि तुर्की की ओर से आधिकारिक तौर पर इसका ऐलान नहीं किया गया है। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोयन की पार्टी के प्रवक्ता उमर सेलिक ने भी हाल ही में ये कहा था कि तुर्की के ब्रिक्स में शामिल होने का प्रक्रिया शुरू हो गई है। वहीं, कुछ दिनों पहले रूस के राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने जानकारी दी थी कि तुर्की ने ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा जताई है। ब्लूमबर्ग एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक तुर्की ने कई महीने पहले ही ब्रिक्स में शामिल होने की अर्ज़ी दे दी है। अब सवाल ये कि आखिर तुर्की क्यों संगठन में आना चाहता है? जानकारों की मानें तो तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन एक ओर मुस्लिम देशों के बीच वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं तो वहीं दूसरी ओर अपना वैश्विक प्रभाव बढ़ाने पर भी उनका ज़ोर है। आने वाले समय में ब्रिक्स को डब्ल्यूटीओ (विश्व व्यापार संगठन), आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक जैसे पश्चिमी देशों के वर्चस्व वाले संगठन के विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि तुर्की आर्थिक विकास के लिए अधिक अवसर और वित्तीय सहायता हासिल करने के लिए ब्रिक्स में शामिल होना चाहता है। दरअसल ज्यादातर देश पश्चिमी देशों के कड़े प्रतिबंधों से परेशान हैं और वह ब्रिक्स के न्यू डेवलपमेंट बैंक की मदद चाहते हैं। आर्थिक संकट से निकलने की कोशिश दरअसल, तुर्की को विदेशी निवेश की ज़रूरत है क्योंकि देश एक गंभीर आर्थिक संकट से गुज़र रहा है। अगर तुर्की की अर्थव्यवस्था धराशाई होती है तो ये यूरोपीय बैंकों के लिए भी ख़तरनाक होगा क्योंकि तुर्की की अर्थव्यवस्था उन्हीं पर निर्भर है। तुर्की का आधा कारोबार यूरोपीय संघ के देशों के साथ है।काउंसिल ऑफ़ यूरोपियन यूनियन के मुताबिक तुर्की 31.8% हिस्से के साथ यूरोपीय संघ का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है। साल 2022 में यूरोपीय संघ और तुर्की के बीच कुल 200 बिलियन यूरो का ट्रेड हुआ था। ब्रिक्स के जरिए अपने कई हितों को साधने की तैयारी में तुर्की यूरोप से बाहर नये आर्थिक प्लेटफॉर्म की तलाश में है। उसका अपना कहना है कि ब्रिक्स के साथ जुड़कर,तुर्की का लक्ष्य पूर्व और पश्चिम के बीच एक सेतु के रूप में अपनी भूमिका को मजबूत करना है, जिससे अंतरराष्ट्रीय मामलों में इसका रणनीतिक महत्व बढ़ेगा। तुर्की नाटो देशों का सदस्य है लेकिन रूस का करीबी दोस्त होने की वजह से पश्चिमी देशों के साथ उसके संबंध कुछ खास नहीं रहे हैं। इसके अलावा बताया जाता है कि तुर्की चीन के प्रभाव वाले संगठन एससीओ में भी शामिल होना चाहता है, लिहाज़ा रूस और चीन के प्रभाव वाले ब्रिक्स के जरिए वह अपने कई हितों को साध सकता है। माना जा रहा है कि ब्रिक्स में शामिल होने के बावजूद तुर्की नाटो से अपने संबंध तोड़ने वाला नहीं है, बल्कि वह पश्चिमी देशों से इतर नए गुटों के साथ जुड़कर अपने वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। दरअसल तुर्की अपनी विदेश नीति में बदलाव लाना चाहता है, जिससे उसकी इस इमेज में बदलाव भी आए कि वो मुस्लिम देशों का अगुवा बनना चाहता है। ब्रिक्स क्या है? शुरू में ये समूह ब्रिक कहलाता था। ये विकासशील देशों का एक समूह है जिसका गठन वर्ष 2006 में हुआ था। इसमें ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन शामिल थे। साल 2010 में इस समूह में दक्षिण अफ़्रीका भी शामिल हो गया और तब इसका नाम ब्रिक से बदल ब्रिक्स कर दिया गया। ब्रिक्स का गठन उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के अमीर देशों की राजनीतिक और आर्थिक शक्ति को चुनौती देने के लिए, दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण विकासशील देशों को एकजुट करने के मकसद से हुआ था। इस आर्थिक अलायंस में हाल के वर्षों में कई विस्तार हुए हैं। अब इसमें ईरान, मिस्र, इथीयोपिया और संयुक्त अरब अमीरात भी शामिल हो चुके हैं। सऊदी अरब ने भी इस समूह में शामिल होने की इच्छा ज़ाहिर की है और अज़रबैजान ने तो सदस्यता के लिए औपचारिक अर्ज़ी भी दे दी है।
Furniture Fair & Thailand Fest Wow Crowds with Luxury, Global Products, and Top Creators

Furniture Fair & Thailand Shopping Festival Kick Off with a Grand Opening, Welcoming Over 10,000 Visitors on Day 1

The highly anticipated Furniture Fair and Thailand Shopping Festival commenced on 27th September 2024 at BKC, witnessing a grand start with over 10,000 visitors on the very first day. Organized by I Ads & Events, a renowned leader in event management, the exhibition has quickly become a highlight for attendees, featuring an impressive lineup of international brands and exhibitors.

The 6-day event, running from 27th September to 2nd October, showcases a diverse range of furniture for both domestic and commercial use, tailored to meet varying budgets and tastes. Visitors have the opportunity to explore everything from elegant sofa sets and modular kitchens to office furniture, carpets, antiques, and bespoke decor items. The event is a one-stop destination for new homebuyers or those looking to refurbish their living spaces with modern and traditional furniture alike.

In addition to the furniture, the Thailand Shopping Festival offers a unique shopping experience, featuring exhibitors from Thailand, Turkey, Iran, Afghanistan, and Korea. Visitors can indulge in an array of exclusive international products, such as Thailand's pearl jewellery, Turkish lights, Iranian silver jewellery, Afghan dry fruits, and Korean beauty products. This combination of local and global offerings has created an exciting marketplace for discerning shoppers.

As a testament to the event's wide appeal, top content creators were also spotted on the exhibition floor, capturing the experience and sharing it with their vast audiences. Their presence underscores the event's reach and influence, drawing both consumer attention and social media buzz.

I Ads & Events, with over two decades of experience in managing B2C exhibitions across India, has once again demonstrated its expertise in creating immersive and interactive experiences. The event highlights their dedication to connecting brands directly with consumers, ensuring not just a shopping experience but also meaningful engagement.

The exhibition, open daily from 10:00 AM to 8:30 PM, is easily accessible to the public with an entry ticket priced at just Rs. 50. This makes it a perfect family outing where visitors can discover the latest trends in furniture, indulge in global shopping, and enjoy exclusive deals.

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तुर्की ने यूएन में नहीं उठाया कश्मीर का मुद्दा, क्यों छोड़ा पाकिस्तान का साथ?

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मोदी सरकार ने पाँच अगस्त 2109 को जब जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किया था तो अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं भी आई थीं। चीन और तुर्की ने भारत के इस फ़ैसले का खुलकर विरोध किया था। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन 2019 से हर साल संयुक्त राष्ट्र की वार्षिक आम सभा में कश्मीर का मुद्दा उठाते थे और भारत की आलोचना करते थे। भारत अर्दोआन के बयान पर आपत्ति जताता था और पाकिस्तान स्वागत करता था। लेकिन इस बार अर्दोआन ने संयुक्त राष्ट्र की आम सभा को संबोधित करते हुए कश्मीर का नाम तक नहीं लिया।

आम तौर पर तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने वार्षिक संबोधन में कश्मीर का जिक्र जरूर करते थे। संयुक्त महासभा में पाकिस्तान को उम्मीद थी कि तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन फिर एक बार कश्मीर का मुद्दा उठाएंगे,लेकिन उन्होंने तो इस बार इसका नाम लेना तक जरूरी नहीं समझा। राष्ट्रपति एर्दोगन ने यूएन की महासभा को संबोधित तो किया पर कश्मीर पर एक लफ्ज नहीं बोले। तुर्की के इस रुख ने पाकिस्तान को हैरान कर दिया। तुर्की के इस रुख के बाद लोग कई तरह के कयास लगाने लगे हैं। एर्दोगन की इस चुप्पी को भारत की कूटनीतिक जीत के तौर पर देखा जा रहा है।

कयास लगाया जा रहा है कि तुर्की के कश्मीर पर एक शब्द न बोलने के पीछे ब्रिक्स है। ऐसा कहना है कि तुर्की ब्रिक्स देशों के साथ खुद को खड़ा देखना चाहता है, उसे इसमें शामिल होना है और यही वजह है कि उनके राष्ट्रपति एर्दोगन ने एक बार भी अपनी स्पीच में कश्मीर का मुद्दा नहीं उठाया।

न्यूयॉर्क में 79वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण के दौरान उन्होंने कहा, “हम ब्रिक्स के साथ अपने संबंधों को विकसित करने की अपनी इच्छा को बनाए रखते हैं, जो उभरती अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ लाता है।”

ब्रिक्स गुट में ब्राज़ील, रूस, इंडिया, चीन और दक्षिण अफ़्रीका हैं. भारत इस गुट का संस्थापक सदस्य देश है। इस गुट के विस्तार की बात हो रही है और कई देशों ने इसमें शामिल होने में दिलचस्पी दिखाई है। तुर्की भी इसी लाइन में है। तुर्की का यूएन महासभा में कश्मीर के मुद्दे को न उठाना भारत को खुश करना भी है।

तुर्की के राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन यह भलीभांति जानते हैं कि अगर उन्हें ब्रिक्स का सदस्य बनना है तो भारत को खुश कर के रखना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि ब्रिक्स में तुर्की को एंट्री भारत की मंजूरी के बाद ही मिल सकती है। तुर्की को यह भी पता है कि अगर भारत ने मना कर दिया तो उसका ब्रिक्स का हिस्सा बनना मुश्किल हो जाएगा। तो इसका लब्बोलुआब यह है कि ब्रिक्स में तुर्की को एंट्री तभी मिलेगी जब वह भारत के करीब आए और उसे खुश करने की कोशिश करे।

तुर्की को पता है कि भारत का कश्मीर को लेकर रुख साफ है। वह किसी भी कीमत पर कश्मीर पर समझौता नहीं करेगा। यही नहीं भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर के बयानों से स्पष्ट है कि पीओके जिसे पाकिस्तान आजाद कश्मीर कहता है, उसे भी लेने की प्लानिंग है।

तुर्की सरकार ने इंस्टाग्राम पर लगाया बैन, वजह जानकर हो जाएंगे हैरान

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तुर्की ने अचानक ही पूरे देश में इंस्टाग्राम पर रोक लगा दी है। देश के सूचना प्रौद्योगिकी नियामक ने शुक्रवार को इसकी जानकारी दी। हालांकि, इंस्टाग्राम पर प्रतिबंध लगाने के फैसले के वजह को लेकर तुर्की की तरफ से कोई जानकारी नहीं दी गई है। साथ ही यह भी नहीं बताया गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लगा यह प्रतिबंध कब तक लागू रहेगा। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो इंस्टाग्राम पर यह प्रतिबंध हमास के बड़े नेता इस्माइल हनीया की मौत की वजह से लगाया गया है।

माना जा रहा है कि इंस्टाग्राम ने इस्माइल हनीया की मौत वाले शोक संदेश को ब्लॉक कर दिया था। जिसके बाद तुर्की की सरकार ने ये कदम उठाया है। दरअसल, तुर्की के संचार अधिकारी फहरेटिन अल्तुन की बुधवार को इंस्टाग्राम की आलोचना करते हुए कहा कि प्लेटफॉर्म ने हमास प्रमुख इस्माइल हानिया की हत्या पर शोक संदेशों को ब्लॉक कर दिया है।

अल्तुन ने एक्स पर कहा,यह सेंसरशिप है, पूरी तरह से।उन्होंने कहा कि इंस्टाग्राम ने अपने इस कदम के लिए कोई नीतिगत उल्लंघन का हवाला नहीं दिया है। हम इन प्लेटफॉर्म के खिलाफ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करना जारी रखेंगे, जिन्होंने बार-बार दिखाया है कि वे शोषण और अन्याय की वैश्विक व्यवस्था की सेवा करते हैं। हम हर अवसर पर और हर मंच पर अपने फलस्तीनी भाइयों के साथ खड़े रहेंगे। फलस्तीन जल्द या बाद में आजाद होगा। इजरायल और उसके समर्थक इसे रोक नहीं पाएंगे।

मीडिया रिपोर्सट्स के मुताबिक इंस्टाग्राम पर लगाए गए बैन की वजह से 5 करोड़ यूजर्स प्रभावित हुए है। तुर्की की कुल आबादी लगभग 8.5 करोड़ है। ऐसे में तुर्की की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा इंस्टाग्राम का इस्तेमाल करता है।

हालांकि तुर्किये में ऐसा में पहली बार नहीं हुआ है, जब किसी सोशल मीडिया ऐप या बेवसाइट को बैन किया गया है। इससे पहले भी तुर्किये विकीपीडिया को बैन कर चुका है। उसने साल 2017 से 2020 के बीच विकीपीडिया को उग्रवाद और राष्ट्रपति से जुड़े आर्टिकल के चलते बैन कर दिया था।

कम नहीं हो रहा तुर्की का “पाक” प्रेम, एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिर उठाया कश्मीर मुद्दा

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अपने दोस्त पाकिस्तान को खुश करने के लिए तुर्की ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर का मुद्दा उठाया है।तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर का मुद्दा उठाते हुए कहा कि भारत और पाकिस्तान को इस मुद्दे को बातचीत से सुलझाना चाहिए। इससे क्षेत्र में स्थिरता आएगी। 

राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगन ने यहां संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के उच्च स्तरीय 78वें सत्र में कश्मीर का मुद्दा उठाया। एर्दोगन ने मंगलवार को महासभा की आम बहस में विश्व नेताओं को दिए संबोधन में कहा, ‘‘भारत और पाकिस्तान के बीच संवाद और सहयोग के जरिये कश्मीर में न्यायपूर्ण एवं स्थायी शांति की स्थापना कर दक्षिण एशिया में शांति, स्थिरता तथा समृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘तुर्किये इस दिशा में उठाए गए कदमों का समर्थन करना जारी रखेगा।’‘

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बदलाव की उठाई मांग

हालांकि, एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में बड़े बदलावों की वकालत करने लिए भारत की तारीफ भी की। उन्होंने कहा कि यह गर्व का विषय है कि भारत यूएनएससी में एक अहम भूमिका निभा रहा है। इस बीच अर्दोआन ने सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों पर निशाना साधा और कहा कि वह चाहते हैं कि यूएनएससी के 15 अस्थायी सदस्यों को भी सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य बनाया जाए। एर्दोगन ने कहा, "संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के इन 20 देशों (पांच स्थायी सदस्यों+15 अस्थायी सदस्यों) को यूएनएससी में बदल-बदलकर स्थायी सदस्यता दी जानी चाहिए। क्योंकि दुनिया इन पांच स्थायी सदस्यों से बड़ी है। हमारा कहना सिर्फ इतना है कि दुनिया महज अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और रूस तक सीमित नहीं है।"

एर्दोगन कश्मीर को बता चुके हैं एक ज्वलंत मुद्दा

बता दें कि कश्मीर को लेकर एर्दोगन का यह बयान उनके पुराने बयानों की अपेक्षा काफी हल्का है। साल 2020 में एर्दोगन ने कश्मीर को एक ज्वलंत मुद्दा बताया था। इसके साथ उन्होंने अनुच्छेद 370 को खत्म करने को लेकर भारत की आलोचना भी की थी। वहीं पिछले साल उन्होंने जोर देकर कहा था कि संयुक्त राष्ट्र रिजोल्यूशन अपनाए जाने के बावजूद, कश्मीर अभी भी घिरा हुआ है और 80 लाख लोग फंसे हुए हैं।हालांकि, भारत ने अर्दोआन के बयानों की निंदा की थी और देश की स्वायत्ता का सम्मान करने की मांग की थी।