बेंगलुरु में आरएसएस की तीन दिवसीय बैठक शुरू, कई अहम मुद्दों पर होगी चर्चा

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में निर्णय लेने की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की तीन दिवसीय बैठक आज 21 मार्च से बेंगलुरु में शुरी हो गई है।संघ प्रमुख मोहन भागवत ने इस बैठक का उदघाटन किया। इस बैठक में 1482 प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं। 23 मार्च तक चलने वाली इस बैठक में आरएसएस से जुड़े 32 संगठनों के महासचिव भी शामिल होंगे, जिनमें भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और महासचिव बीएल संतोष भी शामिल होंगे।

संघ की प्रतिनिधि सभा की शुरूआत में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, तबलावादक जाकिर हुसैन, प्रीतीश नंदी सहित कई जानी मानी हस्तियों और संघ के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को श्रद्धांजलि दी गई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह मुकुंद सीआर ने कहा कि हम जब भी इस तरह बैठक करते हैं तो शुरुआत उन लोगों को श्रद्धांजलि देते हैं, जो इस दुनिया में नहीं रहे।

सह सरकार्यवाह मुकुंद ने कहा कि इस साल संघ की स्थापना के 100 साल पूरे हो जाएंगे, इसलिए बैठक में संघ के विस्तार पर बातचीत होगी साथ ही अब तक संघ ने कितना काम किया इस पर चर्चा होगी। इसका मूल्यांकन होगा कि जो सामाजिक बदलाव हम लाने की कोशिश कर रहे हैं, उसमें कितना सफल रहे।

संघ के मुख्य प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने बताया कि बैठक के दौरान बांग्लादेश और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी समारोह को लेकर प्रस्ताव पारित किया जाएगा। आंबेकर ने बताया कि संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले, संघ द्वारा किए गए कार्यों और उसके भविष्य की रूपरेखा का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करेंगे। क्षेत्रीय प्रमुख भी अपने कार्यों, कार्यक्रमों, भूमिका और भविष्य की योजनाओं को प्रस्तुत करेंगे, जिनकी समीक्षा की जाएगी।

क्या औरंगजेब की कब्र हटानी चाहिए? विवाद के बीच आया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बयान

महाराष्ट्र के नागपुर में इस समय मुगल बादशाह औरंगजेब की कब्र को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है. इसी बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की 3 दिवसीय बैठक के चलते अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस पीसी के दौरान सुनील आंबेकर से औरंगजेब को लेकर सवाल पूछा गया. उन से पूछा गया कि क्या अभी भी औरंगजेब प्रासंगिक है?

जहां इस वक्त औरंगजेब की कब्र को हटाने को लेकर बवाल मचा हुआ है. इसी बीच सुनील आंबेकर से जब नागपुर में हुई हिंसा और औरंगजेब की कब्र को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, किसी भी तरह की हिंसा समाज के लिए अच्छी नहीं है. पुलिस ने इस पर एक्शन लिया है. पुलिस इसकी जांच कर रही है. साथ ही मुगल बादशाह को लेकर उन्होंने कहा, औरंगजेब प्रासंगिक नहीं है.

संघ की तीन दिवसीय बैठक

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की 3 दिवसीय बैठक 21 से 23 मार्च तक कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में शुरू होने जा रही है, 19 मार्च को इस बैठक को लेकर अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस दौरान प्रचार प्रमुख ने 3 दिवसीय होने वाली बैठक को लेकर जानकारी दी. उन्होंने कहा, बैठक में देश भर से प्रतिनिधि शामिल होंगे. संघ के पदाधिकारी और कार्यकर्ता भी हिस्सा बनेंगे. उन्होंने जानकारी दी कि बैठक की शुरुआत 21 मार्च को सुबह 9 बजे होगी और 23 तारीख की शाम तक बैठक होगी. यह संघ की रचना में सबसे महत्वपूर्ण बैठक है.

आरएसएस नेता भैयाजी जोशी ने ऐसा क्या कहा, भड़क गए संजय राउत

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देश में इन दिनों भाषा को लेकर सियासी पारा चढ़ा हुआ है। दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन भाषा को लेकर लगातार केन्द्र सरकार पर हमलावर है। स्टालिन तीन-भाषा नीति के माध्यम से हिंदी थोपने का आरोप लगा रहे हैं। इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) नेता सुरेश भैयाजी जोशी ने महाराष्ट्र के मुंबई में बड़ा बयान दिया है। आरएसएस नेता सुरेश भैयाजी जोशी ने कहा कि मुंबई आने के लिए मराठी सीखने की जरूरत नहीं है।

भैयाजी ने ठाणे में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि मुंबई की कोई एक भाषा नहीं है। मुंबई के अलग-अलग भागों में अलग-अलग भाषा बोली जाती है। घाटकोपर परिसर के लोग गुजराती बोलते हैं, गिरगांव में हिंदी बोलने वाले कम मिलेंगे, वहां लोग मराठी बोलते हैं। इसलिए मुंबई आने वालों को मराठी भाषा सीखनी चाहिए ऐसा नहीं है।

ठाणे में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए शिवसेना (UBT) के नेता संजय राउत ने भाजपा और आरएसएस को सुना दिया। उन्होंने भाजपा के मार्गदर्शक, पॉलिसी मेकर और आरएसएस के नेता भैयाजी जोशी का जिक्र करते हुए चैलेंज किया कि क्या ऐसी बातें आप लखनऊ जाकर कह सकते हैं?

राउत ने कहा, 'वह (भैयाजी) कल महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई आए थे। यहां आकर ऐलान कर दिया कि महाराष्ट्र की राजधानी की भाषा मराठी नहीं है। मराठी नहीं हो सकती। यहां कोई भी आकर मराठी के बिना रह सकते हैं, काम कर सकते हैं।' उद्धव सेना के वरिष्ठ नेता ने सवाल पूछते हुए कहा कि आपको (भैयाजी जोशी) इस प्रकार का बयान देने का अधिकार किसने दिया?

आरएसएस को राउत की चुनौती

शिवसेना नेता ने आगे तंज कसते हुए कहा कि क्या आप कोलकाता में जाकर बोल सकते हैं कि कलकत्ता की भाषा बंगाली नहीं है? क्या आप कोच्चि और त्रिवेंद्रम में जाकर बोल सकते हो कि यहां की भाषा मलयाली नहीं है। क्या आप लखनऊ जाकर योगी जी के सामने खड़े होकर बोल सकते हैं कि लखनऊ की भाषा हिंदी नहीं है। क्या आप पटना में जाकर नीतीश कुमार जी के सामने बोल सकते हो कि पटना की भाषा हिंदी नहीं है। क्या आप चेन्नई में जाकर बोल सकते हो कि यहां की भाषा तमिल या तेलुगु नहीं है? क्या पंजाब में जाकर बोल सकते हों कि यहां की भाषा पंजाबी नहीं है।

मुंबई को महाराष्ट्र से तोड़ने की कोशिश-राउत

राउत ने कहा कि आप की मंशा मुंबई को महाराष्ट्र से तोड़ने की है। हमने मराठी भाषा के लिए बलिदान दिया है। हमारे लोग शहीद हो गए। शिवाजी महाराज ने मराठा राज्य स्थापित किया क्योंकि उनकी भाषा मराठी थी।

ED की कार्रवाई के खिलाफ कांग्रेस का प्रदर्शन: भूपेश, महंत, बैज बोले– हम अंग्रेजों से नहीं डरे, ED, IT से क्या डरेंगे,केंद्र सरकार के खिलाफ लड़ेगे

रायपुर-  छत्तीसगढ़ कांग्रेस कमेटी ने ED की कार्रवाई के खिलाफ राजधानी के राजीव गांधी चौक पर धरना प्रदर्शन किया. दरअसल आज ईडी ने फिर महामंत्री मलकीत सिंह गैदू को पूछताछ के लिए बुलाया था. वहीं ED दफ्तर से ठीक 100 मीटर की दूरी पर कांग्रेस ने राज्य स्तरीय विरोध प्रदर्शन कर बड़ी सभा की, जिसमें कांग्रेस प्रदेश सह-प्रभारी, पीसीसी चीफ दीपक बैज, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत, गैदू समेत पूर्व मंत्री, विधायक, यूथ कांग्रेस, महिला कांग्रेस और NSUI के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में शामिल हुए।

बता दें कि कुछ दिनों पहले ED की टीम ने रायपुर स्थित राजीव (कांग्रेस) भवन में दबिश दी थी और सुकमा, कोंटा में बनाए गए कांग्रेस भवन को लेकर महामंत्री गैदू से पूछताछ की थी. वहीं नोटिस थमाकर वापस लौट गई थी. पीसीसी चीफ को नोटिस थमाने और कांग्रेस के महामंत्री से दायरे से बाहर निजी सवाल करने का कांग्रेस ने विरोध जताया. सभा में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, दीपक बैज और नेता प्रतिपक्ष चरण दास महंत ने ED और बीजेपी को घेरा. सभी ने केंद्र सरकार के खिलाफ आजादी की दूसरी लड़ाई लड़ने की बात कही. कांग्रेसी नेताओं ने कहा, हम अंग्रेजों से नहीं डरे, ED, IT से क्या डरेंगे.

RSS के 12 मंजिला 5 स्टार कार्यालय की जांच करें ED : भूपेश बघेल

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि केंद्रीय एजेंसियां वहां नहीं जाती जहां गड़बड़ियां हुई है. ये वहां जाती है जहां इनके आका कहते हैं. इनका उद्देश्य जांच करना नहीं, बल्कि कांग्रेस नेताओं को बदनाम करना और नेताओं को जांच के दायरे में लाना है. उन्होंने ED से RSS के 12 मंजिला कार्यालय कुशाभाऊ ठाकरे परिसर बीजेपी कार्यालय और एकात्म परिसर की जांच करने की बात कही.

छापा मारने की सूची ईडी, सीबीआई या IT को भेजती है सरकार : महंत

नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत ने सरकार पर निशाना साधते हुए कार्यकर्ताओं और नेताओं से कहा कि आप सभी तैयार रहिए. आने वाले समय में ये कही भी पहुंच सकते हैं. किनके घर छापा मारना है इसकी सूची सरकार तैयार कर ED या CBI या IT को भेजते हैं. उन्होंने कहा, सभी संस्थाओं का सम्मान करते हैं, लेकिन विपक्ष के साथ ऐसा व्यवहार अस्वीकार्य है.

बंटोगे तो कटोगे : अमरजीत भगत

पूर्व मंत्री अमरजीत भगत के भाषण से एक बार फिर पार्टी में एकजुटता की आवश्यकता नजर आई. भगत ने अपने भाषण में बीजेपी के बंटोगे तो कटोगे नारे को शामिल करते हुए कांग्रेसी नेताओं को एकजुट रहने की जरूरत बताई. भगत ने कहा कि शुरुआत में ही एक साथ विरोध किया जाता तो आज ये स्थिति नहीं आती. उन्होंने कहा कि सेफ रहना है तो एकजुट होना होगा.

बीजेपी लोकतंत्र को दबाने की हदें पार कर रही : दीपक बैज

सभा को संबोधित करते हुए पीसीसी चीफ दीपक बैज ने केंद्र सरकार के खिलाफ आजादी की दूसरी लड़ाई लड़ने की बात कही. उन्होंने बीजेपी पर लोकतंत्र को दबाने की हदे पार करने का आरोप लगाया. साथ ही ED से प्रदेश के समस्त बीजेपी कार्यालयों की जांच की मांग की. बैज ने कहा कि इनकी निगाहें कही और निशाना कही है. ED-IT को नहीं पता की ये झीरम घाटी में गोली खाया हुआ गैदू है. हम अंग्रेजों से नहीं डरे, ED, IT से भी नहीं डरेंगे. हम बड़े प्रदर्शन करेंगे, सदन के अंदर और सदन के बाहर लड़ाई लड़ेंगे.

महाकुंभ में लगाई डुबकी फिर सपने में आई मां… 32 साल बाद साधू बन पहुंचा घर

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ के समापन में 7 दिन का समय बाकी है. इससे पहले महाकुंभ में आया 32 साल से लापता शख्स उसके परिवार को मिल गया. 1992 में जो शख्स लापता हुआ था. वह महाकुंभ मेले में स्नान करने आया. स्नान करने के बाद सपने में अपनी मां को देखा तो महाकुंभ से लगभग 160 किलोमीटर का सफर तय कर वह 32 साल बाद अपने घर पहुंच गया, जिसे देखकर उसकी मां, पत्नी, बच्चे और भाई-बहन सभी बेहद खुश हो गए.

दरअसल जमालपुर के रहने वाले अमरनाथ गुप्ता 1992 में अयोध्या ढांचा विध्वंस के दौरान कार सेवकों की टोली में गए थे. अयोध्या से ट्रेन से मिर्जापुर वापस हो रहे थे. इस दौरान जौनपुर में ट्रेन पर पथराव होने लगा. वहां से उतरकर किसी तरह वाराणसी से जमालपुर अपने घर पहुंचे. घर पहुंचने पर अमरनाथ को पुलिस ने गिरफ्तार कर मिर्जापुर की जेल में बंद कर दिया था. कुछ दिन जेल काटने के बाद जेल से छूटकर घर पहुंचे. घर पर जब मन नहीं लगा तो परिवार को बिना बताए अयोध्या निकल गए थे.

सपने में नजर आई मां

अयोध्या से वृंदावन पहुंचकर बाबा किशोर दास से दीक्षा लेकर उनके जयपुर आश्रम में रहने लगे. एक हफ्ते पहले महाकुंभ स्नान करने आए. स्नान करने के बाद रात में सो रहे थे. इस दौरान उन्होंने अपनी मां को सपने में देखा तो रविवार को मां से मिलने घर पहुंच गए. अब उनको देखने के लिए आसपास के लोग पहुंच रहे हैं. मुंबई में नौकरी कर रहे भाई विजय कुमार, चचेरे भाई त्रिलोकी, संत कुमार और राजू भी उनसे मिलने के लिए जमालपुर आ रहे हैं.

क्या है अमरनाथ की कहानी?

अयोध्या ढांचा विध्वंस के सालों से लापता अमरनाथ गुप्ता जिनकी उम्र 72 साल हो चुकी है. पढ़ाई के दौरान ही विश्व हिंदू परिषद (RSS) के साथ जुड़ गए थे. 95 साल की बूढ़ी मां प्यारी देवी, पत्नी चंद्रावती, बेटा अतुल बेटी अर्चना, अंजना मोनी समेत सात बहनें उन्हें पाकर बेहद खुश हैं. अमरनाथ गुप्ता ने बताया कि अयोध्या ढांचा विध्वंस के समय टोली में कार सेवकों के साथ गया था. वहां से लौटने के दौरान जौनपुर में ट्रेन में पथराव होने लगा. वहां सुधार कर किसी तरह वाराणसी से जमालपुर घर पहुंचे तो पुलिस ने गिरफ्तार कर मिर्जापुर जेल में बंद कर दिया था. फिर वहां से लौटने के बाद जब मन नहीं लगा तो वह घर से बिना किसी को बताए निकल गए थे.

बंगाल की धरती से मोहन भागवत ने किया हिंदुओं को एकजुट होने का आह्वान, दिया बड़ा बयान

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने पश्चिम बंगाल की धरती से कहा है कि हमें हिंदू समाज को एकजुट और संगठित करने की जरूरत है।उन्होंने हिंदू समाज को जिम्मेदार समुदाय बताते हुए कहा कि वह एकता को विविधता का प्रतीक मानते हैं। संघ प्रमुख ने ये बातें पश्चिम बंगाल के पूर्वी बर्धमान स्थित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही।

देश का जिम्मेदार समाज हिंदू-भागवत

पश्चिम बंगाल के ब‌र्द्धमान में संघ के मध्य बंग प्रांत की सभा को संबोधित करते हुए हिंदू समाज की एकता पर जोर दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ का उद्देश्य संपूर्ण हिंदू समाज को संगठित करना है, क्योंकि यह समाज भारत की सांस्कृतिक और नैतिक पहचान का प्रतीक है।भागवत ने कहा कि अक्सर लोगों द्वारा यह सवाल उठाया जाता है कि संघ सिर्फ हिंदू समाज पर ही क्यों ध्यान देता है। इसका उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि हिंदू समाज ही इस देश का जिम्मेदार समाज है, जो उत्तरदायित्व की भावना से परिपूर्ण है। इसलिए, इसे एकजुट करना आवश्यक है।

हिंदू ने विश्व की विविधता को अपनाया-भागवत

भागवत ने कहा, भारतवर्ष एक भौगोलिक इकाई नहीं है इसका आकार समय के साथ घट या बढ़ सकता है। इसे भारतवर्ष तब कहा जाता है जब यह अद्वितीय प्रकृति का प्रतीक हो। भारत का अपना चरित्र है। जिन लोगों को लगा कि इस प्रकृति के साथ नहीं रह सकते, उन्होंने अपना अलग देश बना लिया। जो लोग बचे रहे, वे चाहते थे कि भारत का सार बना रहे। यह सार क्या है? 15 अगस्त 1947 से अधिक पुराना है। यह हिंदू समाज है, जो विश्व की विविधता को अपनाकर फलता-फूलता है। यह प्रकृति विश्व की विविधता को स्वीकार करती है और उसके साथ आगे बढ़ती है। यह एक शाश्वत सत्य है जो कभी नहीं बदलता है।

इतिहास से सबक और समाज में एकता की आवश्यकता

अपने संबोधन में मोहन भागवत ने ऐतिहासिक आक्रमणों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत पर शासन करने वाले आक्रमणकारियों ने समाज के भीतर विश्वासघात के कारण सफलता पाई। उन्होंने सिकंदर से लेकर आधुनिक युग तक के विभिन्न आक्रमणों का उदाहरण देते हुए कहा कि समाज जब संगठित नहीं रहता, तब बाहरी ताकतें हावी हो जाती हैं। इसलिए, हिंदू समाज की एकजुटता सिर्फ वर्तमान की नहीं, बल्कि भविष्य की भी जरूरत है।

हिंदू पूरे देश की विविधता को एकजुट रखते हैं-भागवत

मोहन भागवत ने कहा कि भारत में कोई भी सम्राटों और महाराजाओं को याद नहीं करता, बल्कि अपने पिता का वचन पूरा करने के उद्देश्य से 14 साल के लिए वनवास जाने वाले राजा (भगवान राम) और उस व्यक्ति (भरत) को याद रखता है, जिसने अपने भाई की पादुकाएं सिंहासन पर रख दीं और वनवास से लौटने पर राज्य उसे राज सौंप दिया। उन्होंने कहा, ये विशेषताएं भारत को परिभाषित करती हैं। जो लोग इन मूल्यों का पालन करते हैं, वे हिंदू हैं और वे पूरे देश की विविधता को एकजुट रखते हैं। हम ऐसे कार्यों में शामिल नहीं होते जो दूसरों को आहत करते हों। शासक, प्रशासक और महापुरुष अपना काम करते हैं, लेकिन समाज को राष्ट्र की सेवा के लिए आगे रहना चाहिए।

बता दें कि पहले ममता बनर्जी सरकार ने आरएसएस की रैली को अनुमति नहीं दी थी। इस पर संघ ने कलकत्ता हाईकोर्ट का रास्ता खटखटाया था, जिसने उन्हें रैली की इजाजत दी।

आज़ादी के बाद दिल्ली की राजनीति: विकास, चुनौतियाँ और 2025 के चुनाव

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दिल्ली, भारत की राजनीति का हृदय, आज़ादी के बाद से कई महत्वपूर्ण परिवर्तनों से गुज़री है। देश की राजधानी के रूप में, यह राजनीतिक आंदोलनों, सरकारी नीतियों और राष्ट्रीय चर्चाओं का केंद्र रही है। दिल्ली की राजनीति के परिवर्तनों को भारत की पूरी राजनीतिक यात्रा का आईना माना जा सकता है, जो एक नवगठित लोकतंत्र से लेकर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र तक के सफर का गवाह रही है। दशकों में दिल्ली की राजनीति ने कांग्रेस पार्टी के शासन से लेकर क्षेत्रीय ताकतों के उदय, और हाल ही में आम आदमी पार्टी (AAP) के एक राजनीतिक विक्राल के रूप में उभरने तक कई महत्वपूर्ण परिवर्तन देखे हैं। यह लेख दिल्ली की राजनीतिक यात्रा का विवरण प्रस्तुत करता है और विशेष रूप से 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव और उनके प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करता है।

आज़ादी के बाद दिल्ली की राजनीतिक यात्रा

प्रारंभिक वर्ष (1947-1960 के दशक)

आज़ादी के बाद, दिल्ली भारत की नई राज्यव्यवस्था का केंद्र बन गई। यह शहर नीति-निर्माण और प्रशासन का प्रमुख केंद्र था। जवाहरलाल नेहरू, जो भारत के पहले प्रधानमंत्री थे, एक प्रमुख शख्सियत थे जिन्होंने भारत की लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष प्रणाली की नींव रखी। नेहरू की कांग्रेस पार्टी ने पहले कुछ दशकों तक दिल्ली की राजनीति पर प्रभुत्व बनाए रखा, जो देश भर में कांग्रेस के प्रभाव को दर्शाता है। शुरुआती वर्षों में, भारतीय सरकार ने देश को पुनर्निर्माण करने, विभाजन, सांप्रदायिक तनाव और रियासतों के विलय जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया।

दिल्ली को 1956 में एक केंद्रीय शासित प्रदेश के रूप में स्थापित किया गया, बजाय एक पूर्ण राज्य के, जिससे यह सीधे केंद्र सरकार के अधीन रहा। इसका मतलब था कि दिल्ली को अन्य राज्यों द्वारा प्राप्त स्वायत्तता नहीं मिलती थी, जिससे यह राजनीतिक रूप से अद्वितीय हो गई। इस प्रकार, दिल्ली की राजनीति मुख्य रूप से केंद्रीय सरकार की नीतियों से प्रभावित थी और क्षेत्रीय राजनीतिक ताकतों को अपनी पहचान बनाने का अवसर बहुत कम था।

1970 का दशक: आपातकाल और राजनीतिक असंतोष

1970 का दशक भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में आपातकाल की घोषणा ने भारत के लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण मोड़ पेश किया। आपातकाल, जिसे इंदिरा गांधी ने राजनीतिक अशांति और अपनी नेतृत्व क्षमता पर उठाए गए सवालों के जवाब में घोषित किया था, के परिणामस्वरूप व्यापक गिरफ्तारी, सेंसरशिप और नागरिक स्वतंत्रताओं का निलंबन हुआ। दिल्ली, जो केंद्र सरकार का मुख्यालय थी, इस दौरान राजनीतिक दमन का प्रमुख केंद्र बनी।

इस अवधि के दौरान जनता पार्टी का उदय हुआ, जो कांग्रेस के खिलाफ एक गठबंधन था और 1977 के चुनावों में कांग्रेस को हराकर सत्ता में आई। यह पहला मौका था जब कांग्रेस को भारत में अपनी समग्र प्रमुखता से वंचित किया गया था और दिल्ली में वैकल्पिक राजनीतिक आवाज़ें उभरने लगीं। जनता पार्टी का संक्षिप्त कार्यकाल समाप्त हुआ, और 1980 के दशक में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने फिर से अपनी पकड़ बनाई।

1980 का दशक: कांग्रेस का पुनरुत्थान और सिख दंगे

1980 का दशक इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के पुनरुत्थान का दौर था। उनके 1984 में हत्या के बाद दिल्ली की राजनीति में एक त्रासद घटना घटी— 1984 के सिख दंगे। उनकी हत्या के बाद जो हिंसा हुई, उसने दिल्ली की राजनीतिक और सामाजिक संरचना को गहरे तरीके से प्रभावित किया। दंगों को लेकर कांग्रेस पार्टी पर आरोप लगे हैं और यह मामला आज भी एक विवादित मुद्दा बना हुआ है। हालांकि, इस समय कांग्रेस दिल्ली की राजनीति में फिर से मजबूत हुई और राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला।

1980 का दशक शहरी राजनीति के स्वरूप में बदलाव लेकर आया। दिल्ली के एक महानगर के रूप में बढ़ते विकास और बढ़ती सामाजिक-आर्थिक विषमताओं ने राजनीतिक विमर्श को प्रभावित किया। जबकि कांग्रेस दिल्ली की राज्य राजनीति पर हावी थी, इस दशक में नए राजनीतिक बल उभरने लगे थे, जो 1990 के दशक में कांग्रेस की एकाधिकारवादी सत्ता को चुनौती देने लगे।

1990 का दशक: बीजेपी का उदय

1990 का दशक दिल्ली और भारत की राजनीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकाल था। सोवियत संघ के पतन और 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण ने राष्ट्रीय राजनीति में एक नए दौर की शुरुआत की। इस दशक में भारतीय जनता पार्टी (BJP) का उदय हुआ, जो अपनी हिंदुत्व विचारधारा और बढ़ती राष्ट्रवाद की भावना से जुड़ी थी। बीजेपी ने दिल्ली में महत्वपूर्ण कदम उठाए और स्थानीय और राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत की। 1993 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने महत्वपूर्ण जीत हासिल की और 1990 के दशक के मध्य तक वह दिल्ली में एक मजबूत राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरी। पार्टी, जिसका नेतृत्व अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं ने किया, ने खुद को कांग्रेस के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया और राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया।

हालांकि, कांग्रेस पार्टी, जो 1980 के दशक में कई संकटों का सामना करने के बावजूद कमजोर पड़ी थी, फिर भी दिल्ली की राजनीति में अपना प्रभुत्व बनाए रखे हुए थी, और स्थानीय निकायों में उसकी पकड़ मजबूत रही।

2000 का दशक: AAP का उदय और क्षेत्रीय राजनीति

2000 के दशक में दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी (AAP) का उदय हुआ। अरविंद केजरीवाल द्वारा 2012 में AAP की स्थापना के बाद, पार्टी ने भारतीय राजनीति में नया मोड़ दिया। केजरीवाल, जो पहले एक भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता थे, ने स्थापित राजनीतिक दलों से बढ़ती निराशा का फायदा उठाया और आम जनता की आवाज़ के रूप में खुद को प्रस्तुत किया।

AAP ने 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में शानदार शुरुआत की और 70 में से 28 सीटों पर कब्जा किया। हालांकि AAP बहुमत नहीं प्राप्त कर पाई, लेकिन उसने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई, और यह दिल्ली की राजनीति में एक नई राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी। केजरीवाल ने मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला, लेकिन 2014 में जन लोकपाल विधेयक पर असहमति के कारण उनकी सरकार ने इस्तीफा दे दिया।

2015 में AAP ने फिर से धमाकेदार वापसी की और 70 में से 67 सीटें जीतकर दिल्ली विधानसभा चुनावों में अभूतपूर्व सफलता हासिल की। यह जीत दिल्ली के मतदाताओं का एक बड़ा समर्थन था, और AAP ने अपनी राजनीति को शिक्षा, स्वास्थ्य और भ्रष्टाचार विरोधी नीतियों पर केंद्रित किया।

वर्तमान दिल्ली राजनीति (2020 का दशक)

वर्तमान में दिल्ली की राजनीति AAP और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा से भरी हुई है। जहां AAP ने शहर के शहरी मध्यवर्ग के बीच अपनी मजबूत पकड़ बनाई है, वहीं बीजेपी राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी पार्टी बनी हुई है। दोनों पार्टियाँ दिल्ली के विकास और शासन को लेकर विभिन्न दृष्टिकोणों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रही हैं। अरविंद केजरीवाल का नेतृत्व और AAP का शासन मॉडल शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण पर आधारित है। केजरीवाल के शासन में दिल्ली के सरकारी स्कूलों में सुधार हुआ है, और अस्पतालों में मुफ्त इलाज की व्यवस्था की गई है। पानी और बिजली जैसी बुनियादी सेवाओं में भी सुधार हुआ है।

दूसरी ओर, बीजेपी का अभियान राष्ट्रीय सुरक्षा, बुनियादी ढांचे के विकास और कानून-व्यवस्था पर केंद्रित है। पार्टी के समर्थक मध्यवर्ग और श्रमिक वर्ग के लोग हैं, जो बीजेपी के विकास और व्यापार समर्थक एजेंडे से प्रभावित होते हैं। बीजेपी हिंदू वोटरों के समर्थन को भी अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है, क्योंकि यह पार्टी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ी हुई है।

2025 दिल्ली चुनाव: एक महत्वपूर्ण मोड़*

2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इन्हें राष्ट्रीय राजनीति के रुझानों का संकेत माना जा रहा है। इन चुनावों का परिणाम न केवल दिल्ली के लिए, बल्कि पूरे देश की राजनीति के लिए भी प्रभावशाली हो सकता है। चुनाव के दौरान, दोनों पार्टियाँ अपने अभियानों को तेज कर चुकी हैं। बीजेपी ने AAP पर भ्रष्टाचार और शासन में अक्षम होने का आरोप लगाया है। भ्रष्टाचार के आरोप के खिलाफ अभियान AAP के खिलाफ बीजेपी की रणनीति का प्रमुख हिस्सा रहा है, जबकि AAP नेताओं ने इन आरोपों को राजनीतिक साजिश करार दिया है।

AAP ने अपनी नीतियों को केंद्रित किया है जो शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण पर आधारित हैं। केजरीवाल ने खुद को एक नए राजनीतिक युग का प्रतीक बताया है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ है और आम लोगों के कल्याण के लिए काम करता है।

2025 के चुनावों के लिए निकाले गए एग्जिट पोल मिश्रित परिणाम दिखा रहे हैं, जिसमें कुछ पोल बीजेपी की जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं, जबकि अन्य AAP की जीत की संभावना जता रहे हैं। चुनाव परिणाम निकट भविष्य में दिल्ली के राजनीतिक परिदृश्य को आकार देंगे।

दिल्ली की राजनीति ने कई दशकों में कई मोड़ लिए हैं, जिसमें कांग्रेस के एकछत्र शासन से लेकर AAP जैसे क्षेत्रीय दलों का उभार तक कई महत्वपूर्ण घटनाएँ शामिल हैं। 2025 का चुनाव दिल्ली के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण होगा। चुनावी परिणाम दिल्ली के विकास और पूरे देश की राजनीति के परिप्रेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण संकेत हो सकते हैं।

जैसे-जैसे दिल्ली के मतदाता शासन, भ्रष्टाचार और विकास जैसे मुद्दों पर विचार करेंगे, इन चुनावों का परिणाम दिल्ली की राजनीति के भविष्य को तय करेगा। दिल्ली का भविष्य, राज्य का दर्जा और इसके राष्ट्रीय राजनीति में स्थान पर आगे आने वाले वर्षों में महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगा।

इंडियन स्टेट वाले बयान को लेकर मुश्किल में राहुल गांधी, कोर्ट पहुंचा मामला

कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. उनके खिलाफ संभल की जिला अदालत में याचिका दायर की गई है. ये याचिका हिंदू शक्ति दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष और एवं हिंदूवादी नेता सिमरन गुप्ता के वकील सचिन गोयल की ओर से दायर की गई है जिसमें राहुल गांधी पर देशद्रोह के तहत FIR कराए जाने की मांग की गई है.

सिमरन गुप्ता की ओर से चंदौसी की जिला अदालत की MP/MLA कोर्ट में राहुल गांधी के विवादित बयान को लेकर याचिका दायर की गई है. याचिका में कहा गया है कि कांग्रेस सांसद ने 15 जनवरी को दिल्ली में कांग्रेस पार्टी के नए मुख्यालय के उद्घाटन के दौरान एक बयान दिया था. जिसमें राहुल ने कहा था कि उनकी लड़ाई सिर्फ बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से नहीं बल्कि इंडियन स्टेट से भी है. जिससे उसकी भावनाएं आहत हुई हैं.

‘राहुल का बयान देश की एकता के लिए खतरा’

सिमरन गुप्ता का कहना है कि 15 जनवरी को दिल्ली में कांग्रेस के नए मुख्यालय का उद्घाटन हुआ था. इस दौरान राहुल ने कहा था कि हमारी लड़ाई बीजेपी और आरएसएससे नहीं है, बल्कि इंडिया से भी है. गुप्ता का कहना है कि राहुल गांधी की टिप्पणी देश के लोगों का मजाक उड़ाती है और भारत की एकता और अखंडता के लिए खतरा पैदा करती है. राहुल की फितरत हमेशा आतंकवादियों और देशद्रोहियों का साथ देने की रही है. वह हमेशा हिंदुओं के लिए और देश के खिलाफ बोलते हैं.

असम में पहले से ही एक FIR दर्ज

सिमरन गुप्ता ने बताया कि उन्होंने इस मुद्दे पर 18 जनवरी को संभल के जिलाधिकारी और उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को एक पत्र भेजा था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसलिए उन्होंने आज (गुरुवार) राहुल गांधी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के लिए अदालत में आवेदन दायर किया है. इस बयान को लेकर राहुल के खिलाफ असम में पहले से ही एक FIR दर्ज कराई जा चुकी है.

विशेष MP/MLA कोर्ट में याचिका दायर

गुप्ता के वकील सचिन गोयल ने बताया कि यह मामला विशेष MP/MLA कोर्ट में एसीजेएम आदित्य सिंह के समक्ष धारा 173(4) बीएनएसएस एक्ट के तहत दाखिल किया गया है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस सांसद का बयान भारतीय लोकतंत्र और संविधान के प्रति अनादर को दर्शाता है और यह देश की एकता और अखंडता के खिलाफ है. इस तरह के बयान राष्ट्रीय हित के खिलाफ हैं. वकील ने दावा किया कि अदालत ने मामले को आगे की कार्यवाही के लिए स्वीकार कर लिया है. हालांकि अगली तारीख अभी जारी नहीं की गई है.

‘राम मंदिर निर्माण के बाद मिली आजादी’, भागवत के बयान पर भड़की कांग्रेस, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बोले –

नई दिल्ली- राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के राम मंदिर निर्माण के बाद आजादी मिलने वाले बयान पर सियासी घमासान मच गया है. छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के जरिए कांग्रेस ने संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ भाजपा पर हमला बोला है. भूपेश बघेल ने कहा कि मोहन भागवत का यह बयान स्पष्ट करता है कि वे संविधान को नहीं मानते हैं. यह बयान आजादी की लड़ाई लड़ने वाले लाखों भारतीयों का अपमान है. 

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा के साथ प्रेस वार्ता में संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर कहा यह स्पष्ट करता है कि वो संविधान को नहीं मानते हैं. राहुल गांधी ने कर इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि अगर यह बात दुनिया के किसी दूसरे देश में कही गई होती तो उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुका होता, उसे गिरफ्तार कर लिया गया होता, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ.

मोहन भागवत और उनके संगठन के लोग संविधान के बारे में समय-समय पर बयान देते रहते हैं इससे स्पष्ट हो जाता है कि वो संविधान को नहीं मानते, संविधान को बदल देना चाहते हैं. उनके सांसदों ने भी कहा कि हम संविधान बदलेंगे. इनको 52 साल लगा तिरंगा को अंगीकार करने में. आरएसएस का इतिहास आप सब जानते हैं कि जब लाखों भारतीय अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे, तो ये उनके भागीदार के रूप काम कर रहे थे.

भूपेश बघेल ने कहा कि ये हिटलर और मुसोलिनी के विचारों को मानने वाले लोग हैं, उस रास्ते पर चलने वाले लोग हैं. यह असहमति को भी बर्दाश्त नहीं कर सकते. उनको कुचल देना चाहते हैं, दबा देना चाहते हैं, इस विचारधारा के लोग हैं. दरअसल, यह सरकार आरएसएस की सरकार है. क्योंकि संविधान में न्याय की बात है, समानता की बात है, लोकतंत्र की रक्षा करने की बात है, और RSS इन विचारों को मानती नहीं और वहीं काम लगातार भारतीय जनता पार्टी की सरकार लगातार कर रही है. इनका पक्षपाती एजेंडा से देश क्या, दुनिया भली-भांति परिचित हो चुकी है.

अभी राहुल गांधी ने बयान दिया, उसको तोड़-मरोड़ कर ये लोग गलतबयानी कर रहे हैं. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 12 में राज का अर्थ उसके संस्थानों के रूप में परिभाषित की गई है. अब जितने भी जो न्याय, समानता और लोकतंत्र की रक्षा करने की जिम्मेदारी इन संस्थानों की है, उस पर ये लोग कब्जा कर लिए हैं. जिस प्रकार से ED, IT, CBI का दुरुपयोग हो रहा है. इसलिए राहुल गांधी ने कहा कि हमारी लड़ाई इन संगठनों से भी है, स्टेट का मतलब ही यही है.

इसलिए जो हमारी लड़ाई है, केवल RSS या BJP से नहीं, बल्कि जो संगठन से हैं, जो हमें न्याय दिलाती है, जो हिंदुस्तान की जनता को न्याय दिलाती है, उस पर कब्जा कर लिए हैं उसके खिलाफ भी हमारी लड़ाई है, और इसको लगातार ये लोग दूसरे ढंग से परिभाषित करने के दूसरे ढंग से व्याख्या करने के कोशिश कर रहे हैं. जो निंदनीय है. कम से कम RSS और BJP के लोग कांग्रेस के कार्यकर्ताओं-नेताओं को देशभक्ति का पाठ ना पढ़ाएं. हमें ना सिखाएं कि देशभक्ति क्या है.

भूपेश बघेल ने अंत में कहा कि राहुल गांधी का दृष्टिकोण है, लोकतांत्रिक है, समावेशी है, न्यायपूर्ण है. ये जो मूल सिद्धांत है, उसको लेकर आगे बढ़ रहे हैं, और इन सिद्धांतों के खिलाफ जो भी होगा, या जो भी रोड़ा अटकाएगा, उसके खिलाफ कांग्रेस पार्टी और हमारे नेता राहुल गांधी लड़ाई लड़ते रहेंगे.

आरएसएस की शाखा में आए थे आंबेडकर और गांधी', संघ का बड़ा दावा

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देश के संविधान के निर्माता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर एक बार फिर सुर्खियों में हैं। पिछले दिनों शीतकालीन सत्र के दौरान राज्यसभा में केन्द्रीय गृहमंत्री के दॉक्टर बीआर अंबेडकर पर दिए गए बयान के बाद पक्ष और विरक्ष में जमकर घमासान मचा। अंबेडकर को लेकर जारी सियासी विवाद के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने बड़ा दावा किया है। आरएसएस ने एक बयान जारी कर दावा किया है कि महात्मा गांधी और बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर संघ की शाखाओं में शामिल हो चुके हैं। संघ के मुताबिक, गांधी 1934 में संघ के एक शिविर में पहुंचे थे जबकि आंबेडकर ने 1940 में संघ की एक शाखा में भेंट दी थी। बता दें कि आरएसएस ने अपने दावे के समर्थन में पेपर की एक कटिंग भी दिखाई है।

देश के संविधान के निर्माता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने 85 साल पहले महाराष्ट्र में आरएसएस की एक शाखा का दौरा किया था। संघ की संचार शाखा विश्व संवाद केंद्र (वीएसके) ने बृहस्पतिवार को इसका खुलासा करते हुए दावा किया कि इस दौरान आंबेडकर ने स्वयंसेवकों से संबोधित करते हुए कहा था कि कुछ मुद्दों पर मतभेदों के बावजूद वह आरएसएस को आत्मीयता की भावना से देखते हैं।

विश्व संवाद केंद्र के विदर्भ प्रांत ने एक बयान में कहा, डॉ. आंबेडकर ने 2 जनवरी, 1940 को सतारा जिले के कराड में आरएसएस की शाखा का दौरा किया था। यहां उन्होंने स्वयंसेवकों को संबोधित भी किया था। वीएसके ने संबंधित समाचार की एक क्लिपिंग के साथ कहा कि 9 जनवरी, 1940 को पुणे के मराठी दैनिक केसरी में डॉ. आंबेडकर के आरएसएस शाखा में आने के बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी।

“आंबेडकर और आरएसएस के बारे में गलत सूचना फैलाई गई”

बयान के मुताबिक, आरएसएस ने अपनी अब तक की यात्रा में कई चुनौतियों का सामना किया है और संगठन पर कई आरोप लगाए गए हैं, लेकिन उसने इन सभी आरोपों को गलत साबित किया है तथा एक सामाजिक संगठन के रूप में अपनी पहचान को फिर से पुष्ट किया है। इसमें कहा गया है कि आरएसएस पर विभिन्न कारणों से तीन बार प्रतिबंध लगाया गया, लेकिन हर बार यह बेदाग निकला। बयान के अनुसार, आरएसएस पर दलित विरोधी होने के आरोप लगे और डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर तथा आरएसएस के बारे में गलत सूचना फैलाई गई। लेकिन अब डॉ. आंबेडकर और आरएसएस के बारे में एक नया दस्तावेज सामने आया है, जो दोनों के बीच संबंधों को उजागर करता है।

“स्वयंसेवक नियमित रूप से आंबेडकर के संपर्क में थे”

वीएसके ने अपने बयान में कहा कि नौ जनवरी, 1940 को पुणे के मराठी दैनिक ‘केसरी’ में डॉ. आंबेडकर के आरएसएस शाखा का दौरा करने के बारे में एक खबर प्रकाशित हुई थी। बयान में उस समाचार की एक प्रति भी संलग्न की गई है। खबर में आरएसएस विचारक दत्तोपंत ठेंगड़ी की लिखी किताब ‘डॉ. आंबेडकर और सामाजिक क्रांति की यात्रा’ का संदर्भ दिया गया है, जिसमें आरएसएस और डॉ. आंबेडकर के बीच संबंधों के बारे में बताया गया है। खबर के अनुसार, किताब के आठवें अध्याय की शुरुआत में ठेंगड़ी कहते हैं कि डॉ. आंबेडकर को आरएसएस के बारे में पूरी जानकारी थी। अध्याय के मुताबिक, संघ के स्वयंसेवक नियमित रूप से आंबेडकर के संपर्क में रहते थे और उनसे चर्चा करते थे।

वीएसके ने किताब के हवाले से कहा, डॉ. आंबेडकर यह भी जानते थे कि आरएसएस हिंदुओं को एकजुट करने वाला एक अखिल भारतीय संगठन है। वह इस बात से भी वाकिफ थे कि हिंदुत्व के प्रति वफादार संगठनों, हिंदुओं को एकजुट करने वाले संगठनों और आरएसएस के बीच अंतर है। आरएसएस के विकास की गति को लेकर उनके मन में संदेह था। इस दृष्टि से डॉ. आंबेडकर और आरएसएस के बीच संबंधों का विश्लेषण करने की आवश्यकता है।

बेंगलुरु में आरएसएस की तीन दिवसीय बैठक शुरू, कई अहम मुद्दों पर होगी चर्चा

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में निर्णय लेने की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की तीन दिवसीय बैठक आज 21 मार्च से बेंगलुरु में शुरी हो गई है।संघ प्रमुख मोहन भागवत ने इस बैठक का उदघाटन किया। इस बैठक में 1482 प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं। 23 मार्च तक चलने वाली इस बैठक में आरएसएस से जुड़े 32 संगठनों के महासचिव भी शामिल होंगे, जिनमें भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और महासचिव बीएल संतोष भी शामिल होंगे।

संघ की प्रतिनिधि सभा की शुरूआत में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, तबलावादक जाकिर हुसैन, प्रीतीश नंदी सहित कई जानी मानी हस्तियों और संघ के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को श्रद्धांजलि दी गई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह मुकुंद सीआर ने कहा कि हम जब भी इस तरह बैठक करते हैं तो शुरुआत उन लोगों को श्रद्धांजलि देते हैं, जो इस दुनिया में नहीं रहे।

सह सरकार्यवाह मुकुंद ने कहा कि इस साल संघ की स्थापना के 100 साल पूरे हो जाएंगे, इसलिए बैठक में संघ के विस्तार पर बातचीत होगी साथ ही अब तक संघ ने कितना काम किया इस पर चर्चा होगी। इसका मूल्यांकन होगा कि जो सामाजिक बदलाव हम लाने की कोशिश कर रहे हैं, उसमें कितना सफल रहे।

संघ के मुख्य प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने बताया कि बैठक के दौरान बांग्लादेश और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी समारोह को लेकर प्रस्ताव पारित किया जाएगा। आंबेकर ने बताया कि संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले, संघ द्वारा किए गए कार्यों और उसके भविष्य की रूपरेखा का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करेंगे। क्षेत्रीय प्रमुख भी अपने कार्यों, कार्यक्रमों, भूमिका और भविष्य की योजनाओं को प्रस्तुत करेंगे, जिनकी समीक्षा की जाएगी।

क्या औरंगजेब की कब्र हटानी चाहिए? विवाद के बीच आया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बयान

महाराष्ट्र के नागपुर में इस समय मुगल बादशाह औरंगजेब की कब्र को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है. इसी बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की 3 दिवसीय बैठक के चलते अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस पीसी के दौरान सुनील आंबेकर से औरंगजेब को लेकर सवाल पूछा गया. उन से पूछा गया कि क्या अभी भी औरंगजेब प्रासंगिक है?

जहां इस वक्त औरंगजेब की कब्र को हटाने को लेकर बवाल मचा हुआ है. इसी बीच सुनील आंबेकर से जब नागपुर में हुई हिंसा और औरंगजेब की कब्र को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, किसी भी तरह की हिंसा समाज के लिए अच्छी नहीं है. पुलिस ने इस पर एक्शन लिया है. पुलिस इसकी जांच कर रही है. साथ ही मुगल बादशाह को लेकर उन्होंने कहा, औरंगजेब प्रासंगिक नहीं है.

संघ की तीन दिवसीय बैठक

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की 3 दिवसीय बैठक 21 से 23 मार्च तक कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में शुरू होने जा रही है, 19 मार्च को इस बैठक को लेकर अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस दौरान प्रचार प्रमुख ने 3 दिवसीय होने वाली बैठक को लेकर जानकारी दी. उन्होंने कहा, बैठक में देश भर से प्रतिनिधि शामिल होंगे. संघ के पदाधिकारी और कार्यकर्ता भी हिस्सा बनेंगे. उन्होंने जानकारी दी कि बैठक की शुरुआत 21 मार्च को सुबह 9 बजे होगी और 23 तारीख की शाम तक बैठक होगी. यह संघ की रचना में सबसे महत्वपूर्ण बैठक है.

आरएसएस नेता भैयाजी जोशी ने ऐसा क्या कहा, भड़क गए संजय राउत

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देश में इन दिनों भाषा को लेकर सियासी पारा चढ़ा हुआ है। दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन भाषा को लेकर लगातार केन्द्र सरकार पर हमलावर है। स्टालिन तीन-भाषा नीति के माध्यम से हिंदी थोपने का आरोप लगा रहे हैं। इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) नेता सुरेश भैयाजी जोशी ने महाराष्ट्र के मुंबई में बड़ा बयान दिया है। आरएसएस नेता सुरेश भैयाजी जोशी ने कहा कि मुंबई आने के लिए मराठी सीखने की जरूरत नहीं है।

भैयाजी ने ठाणे में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि मुंबई की कोई एक भाषा नहीं है। मुंबई के अलग-अलग भागों में अलग-अलग भाषा बोली जाती है। घाटकोपर परिसर के लोग गुजराती बोलते हैं, गिरगांव में हिंदी बोलने वाले कम मिलेंगे, वहां लोग मराठी बोलते हैं। इसलिए मुंबई आने वालों को मराठी भाषा सीखनी चाहिए ऐसा नहीं है।

ठाणे में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए शिवसेना (UBT) के नेता संजय राउत ने भाजपा और आरएसएस को सुना दिया। उन्होंने भाजपा के मार्गदर्शक, पॉलिसी मेकर और आरएसएस के नेता भैयाजी जोशी का जिक्र करते हुए चैलेंज किया कि क्या ऐसी बातें आप लखनऊ जाकर कह सकते हैं?

राउत ने कहा, 'वह (भैयाजी) कल महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई आए थे। यहां आकर ऐलान कर दिया कि महाराष्ट्र की राजधानी की भाषा मराठी नहीं है। मराठी नहीं हो सकती। यहां कोई भी आकर मराठी के बिना रह सकते हैं, काम कर सकते हैं।' उद्धव सेना के वरिष्ठ नेता ने सवाल पूछते हुए कहा कि आपको (भैयाजी जोशी) इस प्रकार का बयान देने का अधिकार किसने दिया?

आरएसएस को राउत की चुनौती

शिवसेना नेता ने आगे तंज कसते हुए कहा कि क्या आप कोलकाता में जाकर बोल सकते हैं कि कलकत्ता की भाषा बंगाली नहीं है? क्या आप कोच्चि और त्रिवेंद्रम में जाकर बोल सकते हो कि यहां की भाषा मलयाली नहीं है। क्या आप लखनऊ जाकर योगी जी के सामने खड़े होकर बोल सकते हैं कि लखनऊ की भाषा हिंदी नहीं है। क्या आप पटना में जाकर नीतीश कुमार जी के सामने बोल सकते हो कि पटना की भाषा हिंदी नहीं है। क्या आप चेन्नई में जाकर बोल सकते हो कि यहां की भाषा तमिल या तेलुगु नहीं है? क्या पंजाब में जाकर बोल सकते हों कि यहां की भाषा पंजाबी नहीं है।

मुंबई को महाराष्ट्र से तोड़ने की कोशिश-राउत

राउत ने कहा कि आप की मंशा मुंबई को महाराष्ट्र से तोड़ने की है। हमने मराठी भाषा के लिए बलिदान दिया है। हमारे लोग शहीद हो गए। शिवाजी महाराज ने मराठा राज्य स्थापित किया क्योंकि उनकी भाषा मराठी थी।

ED की कार्रवाई के खिलाफ कांग्रेस का प्रदर्शन: भूपेश, महंत, बैज बोले– हम अंग्रेजों से नहीं डरे, ED, IT से क्या डरेंगे,केंद्र सरकार के खिलाफ लड़ेगे

रायपुर-  छत्तीसगढ़ कांग्रेस कमेटी ने ED की कार्रवाई के खिलाफ राजधानी के राजीव गांधी चौक पर धरना प्रदर्शन किया. दरअसल आज ईडी ने फिर महामंत्री मलकीत सिंह गैदू को पूछताछ के लिए बुलाया था. वहीं ED दफ्तर से ठीक 100 मीटर की दूरी पर कांग्रेस ने राज्य स्तरीय विरोध प्रदर्शन कर बड़ी सभा की, जिसमें कांग्रेस प्रदेश सह-प्रभारी, पीसीसी चीफ दीपक बैज, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत, गैदू समेत पूर्व मंत्री, विधायक, यूथ कांग्रेस, महिला कांग्रेस और NSUI के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में शामिल हुए।

बता दें कि कुछ दिनों पहले ED की टीम ने रायपुर स्थित राजीव (कांग्रेस) भवन में दबिश दी थी और सुकमा, कोंटा में बनाए गए कांग्रेस भवन को लेकर महामंत्री गैदू से पूछताछ की थी. वहीं नोटिस थमाकर वापस लौट गई थी. पीसीसी चीफ को नोटिस थमाने और कांग्रेस के महामंत्री से दायरे से बाहर निजी सवाल करने का कांग्रेस ने विरोध जताया. सभा में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, दीपक बैज और नेता प्रतिपक्ष चरण दास महंत ने ED और बीजेपी को घेरा. सभी ने केंद्र सरकार के खिलाफ आजादी की दूसरी लड़ाई लड़ने की बात कही. कांग्रेसी नेताओं ने कहा, हम अंग्रेजों से नहीं डरे, ED, IT से क्या डरेंगे.

RSS के 12 मंजिला 5 स्टार कार्यालय की जांच करें ED : भूपेश बघेल

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि केंद्रीय एजेंसियां वहां नहीं जाती जहां गड़बड़ियां हुई है. ये वहां जाती है जहां इनके आका कहते हैं. इनका उद्देश्य जांच करना नहीं, बल्कि कांग्रेस नेताओं को बदनाम करना और नेताओं को जांच के दायरे में लाना है. उन्होंने ED से RSS के 12 मंजिला कार्यालय कुशाभाऊ ठाकरे परिसर बीजेपी कार्यालय और एकात्म परिसर की जांच करने की बात कही.

छापा मारने की सूची ईडी, सीबीआई या IT को भेजती है सरकार : महंत

नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत ने सरकार पर निशाना साधते हुए कार्यकर्ताओं और नेताओं से कहा कि आप सभी तैयार रहिए. आने वाले समय में ये कही भी पहुंच सकते हैं. किनके घर छापा मारना है इसकी सूची सरकार तैयार कर ED या CBI या IT को भेजते हैं. उन्होंने कहा, सभी संस्थाओं का सम्मान करते हैं, लेकिन विपक्ष के साथ ऐसा व्यवहार अस्वीकार्य है.

बंटोगे तो कटोगे : अमरजीत भगत

पूर्व मंत्री अमरजीत भगत के भाषण से एक बार फिर पार्टी में एकजुटता की आवश्यकता नजर आई. भगत ने अपने भाषण में बीजेपी के बंटोगे तो कटोगे नारे को शामिल करते हुए कांग्रेसी नेताओं को एकजुट रहने की जरूरत बताई. भगत ने कहा कि शुरुआत में ही एक साथ विरोध किया जाता तो आज ये स्थिति नहीं आती. उन्होंने कहा कि सेफ रहना है तो एकजुट होना होगा.

बीजेपी लोकतंत्र को दबाने की हदें पार कर रही : दीपक बैज

सभा को संबोधित करते हुए पीसीसी चीफ दीपक बैज ने केंद्र सरकार के खिलाफ आजादी की दूसरी लड़ाई लड़ने की बात कही. उन्होंने बीजेपी पर लोकतंत्र को दबाने की हदे पार करने का आरोप लगाया. साथ ही ED से प्रदेश के समस्त बीजेपी कार्यालयों की जांच की मांग की. बैज ने कहा कि इनकी निगाहें कही और निशाना कही है. ED-IT को नहीं पता की ये झीरम घाटी में गोली खाया हुआ गैदू है. हम अंग्रेजों से नहीं डरे, ED, IT से भी नहीं डरेंगे. हम बड़े प्रदर्शन करेंगे, सदन के अंदर और सदन के बाहर लड़ाई लड़ेंगे.

महाकुंभ में लगाई डुबकी फिर सपने में आई मां… 32 साल बाद साधू बन पहुंचा घर

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ के समापन में 7 दिन का समय बाकी है. इससे पहले महाकुंभ में आया 32 साल से लापता शख्स उसके परिवार को मिल गया. 1992 में जो शख्स लापता हुआ था. वह महाकुंभ मेले में स्नान करने आया. स्नान करने के बाद सपने में अपनी मां को देखा तो महाकुंभ से लगभग 160 किलोमीटर का सफर तय कर वह 32 साल बाद अपने घर पहुंच गया, जिसे देखकर उसकी मां, पत्नी, बच्चे और भाई-बहन सभी बेहद खुश हो गए.

दरअसल जमालपुर के रहने वाले अमरनाथ गुप्ता 1992 में अयोध्या ढांचा विध्वंस के दौरान कार सेवकों की टोली में गए थे. अयोध्या से ट्रेन से मिर्जापुर वापस हो रहे थे. इस दौरान जौनपुर में ट्रेन पर पथराव होने लगा. वहां से उतरकर किसी तरह वाराणसी से जमालपुर अपने घर पहुंचे. घर पहुंचने पर अमरनाथ को पुलिस ने गिरफ्तार कर मिर्जापुर की जेल में बंद कर दिया था. कुछ दिन जेल काटने के बाद जेल से छूटकर घर पहुंचे. घर पर जब मन नहीं लगा तो परिवार को बिना बताए अयोध्या निकल गए थे.

सपने में नजर आई मां

अयोध्या से वृंदावन पहुंचकर बाबा किशोर दास से दीक्षा लेकर उनके जयपुर आश्रम में रहने लगे. एक हफ्ते पहले महाकुंभ स्नान करने आए. स्नान करने के बाद रात में सो रहे थे. इस दौरान उन्होंने अपनी मां को सपने में देखा तो रविवार को मां से मिलने घर पहुंच गए. अब उनको देखने के लिए आसपास के लोग पहुंच रहे हैं. मुंबई में नौकरी कर रहे भाई विजय कुमार, चचेरे भाई त्रिलोकी, संत कुमार और राजू भी उनसे मिलने के लिए जमालपुर आ रहे हैं.

क्या है अमरनाथ की कहानी?

अयोध्या ढांचा विध्वंस के सालों से लापता अमरनाथ गुप्ता जिनकी उम्र 72 साल हो चुकी है. पढ़ाई के दौरान ही विश्व हिंदू परिषद (RSS) के साथ जुड़ गए थे. 95 साल की बूढ़ी मां प्यारी देवी, पत्नी चंद्रावती, बेटा अतुल बेटी अर्चना, अंजना मोनी समेत सात बहनें उन्हें पाकर बेहद खुश हैं. अमरनाथ गुप्ता ने बताया कि अयोध्या ढांचा विध्वंस के समय टोली में कार सेवकों के साथ गया था. वहां से लौटने के दौरान जौनपुर में ट्रेन में पथराव होने लगा. वहां सुधार कर किसी तरह वाराणसी से जमालपुर घर पहुंचे तो पुलिस ने गिरफ्तार कर मिर्जापुर जेल में बंद कर दिया था. फिर वहां से लौटने के बाद जब मन नहीं लगा तो वह घर से बिना किसी को बताए निकल गए थे.

बंगाल की धरती से मोहन भागवत ने किया हिंदुओं को एकजुट होने का आह्वान, दिया बड़ा बयान

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने पश्चिम बंगाल की धरती से कहा है कि हमें हिंदू समाज को एकजुट और संगठित करने की जरूरत है।उन्होंने हिंदू समाज को जिम्मेदार समुदाय बताते हुए कहा कि वह एकता को विविधता का प्रतीक मानते हैं। संघ प्रमुख ने ये बातें पश्चिम बंगाल के पूर्वी बर्धमान स्थित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही।

देश का जिम्मेदार समाज हिंदू-भागवत

पश्चिम बंगाल के ब‌र्द्धमान में संघ के मध्य बंग प्रांत की सभा को संबोधित करते हुए हिंदू समाज की एकता पर जोर दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ का उद्देश्य संपूर्ण हिंदू समाज को संगठित करना है, क्योंकि यह समाज भारत की सांस्कृतिक और नैतिक पहचान का प्रतीक है।भागवत ने कहा कि अक्सर लोगों द्वारा यह सवाल उठाया जाता है कि संघ सिर्फ हिंदू समाज पर ही क्यों ध्यान देता है। इसका उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि हिंदू समाज ही इस देश का जिम्मेदार समाज है, जो उत्तरदायित्व की भावना से परिपूर्ण है। इसलिए, इसे एकजुट करना आवश्यक है।

हिंदू ने विश्व की विविधता को अपनाया-भागवत

भागवत ने कहा, भारतवर्ष एक भौगोलिक इकाई नहीं है इसका आकार समय के साथ घट या बढ़ सकता है। इसे भारतवर्ष तब कहा जाता है जब यह अद्वितीय प्रकृति का प्रतीक हो। भारत का अपना चरित्र है। जिन लोगों को लगा कि इस प्रकृति के साथ नहीं रह सकते, उन्होंने अपना अलग देश बना लिया। जो लोग बचे रहे, वे चाहते थे कि भारत का सार बना रहे। यह सार क्या है? 15 अगस्त 1947 से अधिक पुराना है। यह हिंदू समाज है, जो विश्व की विविधता को अपनाकर फलता-फूलता है। यह प्रकृति विश्व की विविधता को स्वीकार करती है और उसके साथ आगे बढ़ती है। यह एक शाश्वत सत्य है जो कभी नहीं बदलता है।

इतिहास से सबक और समाज में एकता की आवश्यकता

अपने संबोधन में मोहन भागवत ने ऐतिहासिक आक्रमणों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत पर शासन करने वाले आक्रमणकारियों ने समाज के भीतर विश्वासघात के कारण सफलता पाई। उन्होंने सिकंदर से लेकर आधुनिक युग तक के विभिन्न आक्रमणों का उदाहरण देते हुए कहा कि समाज जब संगठित नहीं रहता, तब बाहरी ताकतें हावी हो जाती हैं। इसलिए, हिंदू समाज की एकजुटता सिर्फ वर्तमान की नहीं, बल्कि भविष्य की भी जरूरत है।

हिंदू पूरे देश की विविधता को एकजुट रखते हैं-भागवत

मोहन भागवत ने कहा कि भारत में कोई भी सम्राटों और महाराजाओं को याद नहीं करता, बल्कि अपने पिता का वचन पूरा करने के उद्देश्य से 14 साल के लिए वनवास जाने वाले राजा (भगवान राम) और उस व्यक्ति (भरत) को याद रखता है, जिसने अपने भाई की पादुकाएं सिंहासन पर रख दीं और वनवास से लौटने पर राज्य उसे राज सौंप दिया। उन्होंने कहा, ये विशेषताएं भारत को परिभाषित करती हैं। जो लोग इन मूल्यों का पालन करते हैं, वे हिंदू हैं और वे पूरे देश की विविधता को एकजुट रखते हैं। हम ऐसे कार्यों में शामिल नहीं होते जो दूसरों को आहत करते हों। शासक, प्रशासक और महापुरुष अपना काम करते हैं, लेकिन समाज को राष्ट्र की सेवा के लिए आगे रहना चाहिए।

बता दें कि पहले ममता बनर्जी सरकार ने आरएसएस की रैली को अनुमति नहीं दी थी। इस पर संघ ने कलकत्ता हाईकोर्ट का रास्ता खटखटाया था, जिसने उन्हें रैली की इजाजत दी।

आज़ादी के बाद दिल्ली की राजनीति: विकास, चुनौतियाँ और 2025 के चुनाव

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दिल्ली, भारत की राजनीति का हृदय, आज़ादी के बाद से कई महत्वपूर्ण परिवर्तनों से गुज़री है। देश की राजधानी के रूप में, यह राजनीतिक आंदोलनों, सरकारी नीतियों और राष्ट्रीय चर्चाओं का केंद्र रही है। दिल्ली की राजनीति के परिवर्तनों को भारत की पूरी राजनीतिक यात्रा का आईना माना जा सकता है, जो एक नवगठित लोकतंत्र से लेकर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र तक के सफर का गवाह रही है। दशकों में दिल्ली की राजनीति ने कांग्रेस पार्टी के शासन से लेकर क्षेत्रीय ताकतों के उदय, और हाल ही में आम आदमी पार्टी (AAP) के एक राजनीतिक विक्राल के रूप में उभरने तक कई महत्वपूर्ण परिवर्तन देखे हैं। यह लेख दिल्ली की राजनीतिक यात्रा का विवरण प्रस्तुत करता है और विशेष रूप से 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव और उनके प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करता है।

आज़ादी के बाद दिल्ली की राजनीतिक यात्रा

प्रारंभिक वर्ष (1947-1960 के दशक)

आज़ादी के बाद, दिल्ली भारत की नई राज्यव्यवस्था का केंद्र बन गई। यह शहर नीति-निर्माण और प्रशासन का प्रमुख केंद्र था। जवाहरलाल नेहरू, जो भारत के पहले प्रधानमंत्री थे, एक प्रमुख शख्सियत थे जिन्होंने भारत की लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष प्रणाली की नींव रखी। नेहरू की कांग्रेस पार्टी ने पहले कुछ दशकों तक दिल्ली की राजनीति पर प्रभुत्व बनाए रखा, जो देश भर में कांग्रेस के प्रभाव को दर्शाता है। शुरुआती वर्षों में, भारतीय सरकार ने देश को पुनर्निर्माण करने, विभाजन, सांप्रदायिक तनाव और रियासतों के विलय जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया।

दिल्ली को 1956 में एक केंद्रीय शासित प्रदेश के रूप में स्थापित किया गया, बजाय एक पूर्ण राज्य के, जिससे यह सीधे केंद्र सरकार के अधीन रहा। इसका मतलब था कि दिल्ली को अन्य राज्यों द्वारा प्राप्त स्वायत्तता नहीं मिलती थी, जिससे यह राजनीतिक रूप से अद्वितीय हो गई। इस प्रकार, दिल्ली की राजनीति मुख्य रूप से केंद्रीय सरकार की नीतियों से प्रभावित थी और क्षेत्रीय राजनीतिक ताकतों को अपनी पहचान बनाने का अवसर बहुत कम था।

1970 का दशक: आपातकाल और राजनीतिक असंतोष

1970 का दशक भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में आपातकाल की घोषणा ने भारत के लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण मोड़ पेश किया। आपातकाल, जिसे इंदिरा गांधी ने राजनीतिक अशांति और अपनी नेतृत्व क्षमता पर उठाए गए सवालों के जवाब में घोषित किया था, के परिणामस्वरूप व्यापक गिरफ्तारी, सेंसरशिप और नागरिक स्वतंत्रताओं का निलंबन हुआ। दिल्ली, जो केंद्र सरकार का मुख्यालय थी, इस दौरान राजनीतिक दमन का प्रमुख केंद्र बनी।

इस अवधि के दौरान जनता पार्टी का उदय हुआ, जो कांग्रेस के खिलाफ एक गठबंधन था और 1977 के चुनावों में कांग्रेस को हराकर सत्ता में आई। यह पहला मौका था जब कांग्रेस को भारत में अपनी समग्र प्रमुखता से वंचित किया गया था और दिल्ली में वैकल्पिक राजनीतिक आवाज़ें उभरने लगीं। जनता पार्टी का संक्षिप्त कार्यकाल समाप्त हुआ, और 1980 के दशक में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने फिर से अपनी पकड़ बनाई।

1980 का दशक: कांग्रेस का पुनरुत्थान और सिख दंगे

1980 का दशक इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के पुनरुत्थान का दौर था। उनके 1984 में हत्या के बाद दिल्ली की राजनीति में एक त्रासद घटना घटी— 1984 के सिख दंगे। उनकी हत्या के बाद जो हिंसा हुई, उसने दिल्ली की राजनीतिक और सामाजिक संरचना को गहरे तरीके से प्रभावित किया। दंगों को लेकर कांग्रेस पार्टी पर आरोप लगे हैं और यह मामला आज भी एक विवादित मुद्दा बना हुआ है। हालांकि, इस समय कांग्रेस दिल्ली की राजनीति में फिर से मजबूत हुई और राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला।

1980 का दशक शहरी राजनीति के स्वरूप में बदलाव लेकर आया। दिल्ली के एक महानगर के रूप में बढ़ते विकास और बढ़ती सामाजिक-आर्थिक विषमताओं ने राजनीतिक विमर्श को प्रभावित किया। जबकि कांग्रेस दिल्ली की राज्य राजनीति पर हावी थी, इस दशक में नए राजनीतिक बल उभरने लगे थे, जो 1990 के दशक में कांग्रेस की एकाधिकारवादी सत्ता को चुनौती देने लगे।

1990 का दशक: बीजेपी का उदय

1990 का दशक दिल्ली और भारत की राजनीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकाल था। सोवियत संघ के पतन और 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण ने राष्ट्रीय राजनीति में एक नए दौर की शुरुआत की। इस दशक में भारतीय जनता पार्टी (BJP) का उदय हुआ, जो अपनी हिंदुत्व विचारधारा और बढ़ती राष्ट्रवाद की भावना से जुड़ी थी। बीजेपी ने दिल्ली में महत्वपूर्ण कदम उठाए और स्थानीय और राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत की। 1993 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने महत्वपूर्ण जीत हासिल की और 1990 के दशक के मध्य तक वह दिल्ली में एक मजबूत राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरी। पार्टी, जिसका नेतृत्व अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं ने किया, ने खुद को कांग्रेस के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया और राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया।

हालांकि, कांग्रेस पार्टी, जो 1980 के दशक में कई संकटों का सामना करने के बावजूद कमजोर पड़ी थी, फिर भी दिल्ली की राजनीति में अपना प्रभुत्व बनाए रखे हुए थी, और स्थानीय निकायों में उसकी पकड़ मजबूत रही।

2000 का दशक: AAP का उदय और क्षेत्रीय राजनीति

2000 के दशक में दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी (AAP) का उदय हुआ। अरविंद केजरीवाल द्वारा 2012 में AAP की स्थापना के बाद, पार्टी ने भारतीय राजनीति में नया मोड़ दिया। केजरीवाल, जो पहले एक भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता थे, ने स्थापित राजनीतिक दलों से बढ़ती निराशा का फायदा उठाया और आम जनता की आवाज़ के रूप में खुद को प्रस्तुत किया।

AAP ने 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में शानदार शुरुआत की और 70 में से 28 सीटों पर कब्जा किया। हालांकि AAP बहुमत नहीं प्राप्त कर पाई, लेकिन उसने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई, और यह दिल्ली की राजनीति में एक नई राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी। केजरीवाल ने मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला, लेकिन 2014 में जन लोकपाल विधेयक पर असहमति के कारण उनकी सरकार ने इस्तीफा दे दिया।

2015 में AAP ने फिर से धमाकेदार वापसी की और 70 में से 67 सीटें जीतकर दिल्ली विधानसभा चुनावों में अभूतपूर्व सफलता हासिल की। यह जीत दिल्ली के मतदाताओं का एक बड़ा समर्थन था, और AAP ने अपनी राजनीति को शिक्षा, स्वास्थ्य और भ्रष्टाचार विरोधी नीतियों पर केंद्रित किया।

वर्तमान दिल्ली राजनीति (2020 का दशक)

वर्तमान में दिल्ली की राजनीति AAP और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा से भरी हुई है। जहां AAP ने शहर के शहरी मध्यवर्ग के बीच अपनी मजबूत पकड़ बनाई है, वहीं बीजेपी राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी पार्टी बनी हुई है। दोनों पार्टियाँ दिल्ली के विकास और शासन को लेकर विभिन्न दृष्टिकोणों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रही हैं। अरविंद केजरीवाल का नेतृत्व और AAP का शासन मॉडल शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण पर आधारित है। केजरीवाल के शासन में दिल्ली के सरकारी स्कूलों में सुधार हुआ है, और अस्पतालों में मुफ्त इलाज की व्यवस्था की गई है। पानी और बिजली जैसी बुनियादी सेवाओं में भी सुधार हुआ है।

दूसरी ओर, बीजेपी का अभियान राष्ट्रीय सुरक्षा, बुनियादी ढांचे के विकास और कानून-व्यवस्था पर केंद्रित है। पार्टी के समर्थक मध्यवर्ग और श्रमिक वर्ग के लोग हैं, जो बीजेपी के विकास और व्यापार समर्थक एजेंडे से प्रभावित होते हैं। बीजेपी हिंदू वोटरों के समर्थन को भी अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है, क्योंकि यह पार्टी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ी हुई है।

2025 दिल्ली चुनाव: एक महत्वपूर्ण मोड़*

2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इन्हें राष्ट्रीय राजनीति के रुझानों का संकेत माना जा रहा है। इन चुनावों का परिणाम न केवल दिल्ली के लिए, बल्कि पूरे देश की राजनीति के लिए भी प्रभावशाली हो सकता है। चुनाव के दौरान, दोनों पार्टियाँ अपने अभियानों को तेज कर चुकी हैं। बीजेपी ने AAP पर भ्रष्टाचार और शासन में अक्षम होने का आरोप लगाया है। भ्रष्टाचार के आरोप के खिलाफ अभियान AAP के खिलाफ बीजेपी की रणनीति का प्रमुख हिस्सा रहा है, जबकि AAP नेताओं ने इन आरोपों को राजनीतिक साजिश करार दिया है।

AAP ने अपनी नीतियों को केंद्रित किया है जो शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण पर आधारित हैं। केजरीवाल ने खुद को एक नए राजनीतिक युग का प्रतीक बताया है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ है और आम लोगों के कल्याण के लिए काम करता है।

2025 के चुनावों के लिए निकाले गए एग्जिट पोल मिश्रित परिणाम दिखा रहे हैं, जिसमें कुछ पोल बीजेपी की जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं, जबकि अन्य AAP की जीत की संभावना जता रहे हैं। चुनाव परिणाम निकट भविष्य में दिल्ली के राजनीतिक परिदृश्य को आकार देंगे।

दिल्ली की राजनीति ने कई दशकों में कई मोड़ लिए हैं, जिसमें कांग्रेस के एकछत्र शासन से लेकर AAP जैसे क्षेत्रीय दलों का उभार तक कई महत्वपूर्ण घटनाएँ शामिल हैं। 2025 का चुनाव दिल्ली के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण होगा। चुनावी परिणाम दिल्ली के विकास और पूरे देश की राजनीति के परिप्रेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण संकेत हो सकते हैं।

जैसे-जैसे दिल्ली के मतदाता शासन, भ्रष्टाचार और विकास जैसे मुद्दों पर विचार करेंगे, इन चुनावों का परिणाम दिल्ली की राजनीति के भविष्य को तय करेगा। दिल्ली का भविष्य, राज्य का दर्जा और इसके राष्ट्रीय राजनीति में स्थान पर आगे आने वाले वर्षों में महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगा।

इंडियन स्टेट वाले बयान को लेकर मुश्किल में राहुल गांधी, कोर्ट पहुंचा मामला

कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. उनके खिलाफ संभल की जिला अदालत में याचिका दायर की गई है. ये याचिका हिंदू शक्ति दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष और एवं हिंदूवादी नेता सिमरन गुप्ता के वकील सचिन गोयल की ओर से दायर की गई है जिसमें राहुल गांधी पर देशद्रोह के तहत FIR कराए जाने की मांग की गई है.

सिमरन गुप्ता की ओर से चंदौसी की जिला अदालत की MP/MLA कोर्ट में राहुल गांधी के विवादित बयान को लेकर याचिका दायर की गई है. याचिका में कहा गया है कि कांग्रेस सांसद ने 15 जनवरी को दिल्ली में कांग्रेस पार्टी के नए मुख्यालय के उद्घाटन के दौरान एक बयान दिया था. जिसमें राहुल ने कहा था कि उनकी लड़ाई सिर्फ बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से नहीं बल्कि इंडियन स्टेट से भी है. जिससे उसकी भावनाएं आहत हुई हैं.

‘राहुल का बयान देश की एकता के लिए खतरा’

सिमरन गुप्ता का कहना है कि 15 जनवरी को दिल्ली में कांग्रेस के नए मुख्यालय का उद्घाटन हुआ था. इस दौरान राहुल ने कहा था कि हमारी लड़ाई बीजेपी और आरएसएससे नहीं है, बल्कि इंडिया से भी है. गुप्ता का कहना है कि राहुल गांधी की टिप्पणी देश के लोगों का मजाक उड़ाती है और भारत की एकता और अखंडता के लिए खतरा पैदा करती है. राहुल की फितरत हमेशा आतंकवादियों और देशद्रोहियों का साथ देने की रही है. वह हमेशा हिंदुओं के लिए और देश के खिलाफ बोलते हैं.

असम में पहले से ही एक FIR दर्ज

सिमरन गुप्ता ने बताया कि उन्होंने इस मुद्दे पर 18 जनवरी को संभल के जिलाधिकारी और उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को एक पत्र भेजा था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसलिए उन्होंने आज (गुरुवार) राहुल गांधी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के लिए अदालत में आवेदन दायर किया है. इस बयान को लेकर राहुल के खिलाफ असम में पहले से ही एक FIR दर्ज कराई जा चुकी है.

विशेष MP/MLA कोर्ट में याचिका दायर

गुप्ता के वकील सचिन गोयल ने बताया कि यह मामला विशेष MP/MLA कोर्ट में एसीजेएम आदित्य सिंह के समक्ष धारा 173(4) बीएनएसएस एक्ट के तहत दाखिल किया गया है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस सांसद का बयान भारतीय लोकतंत्र और संविधान के प्रति अनादर को दर्शाता है और यह देश की एकता और अखंडता के खिलाफ है. इस तरह के बयान राष्ट्रीय हित के खिलाफ हैं. वकील ने दावा किया कि अदालत ने मामले को आगे की कार्यवाही के लिए स्वीकार कर लिया है. हालांकि अगली तारीख अभी जारी नहीं की गई है.

‘राम मंदिर निर्माण के बाद मिली आजादी’, भागवत के बयान पर भड़की कांग्रेस, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बोले –

नई दिल्ली- राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के राम मंदिर निर्माण के बाद आजादी मिलने वाले बयान पर सियासी घमासान मच गया है. छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के जरिए कांग्रेस ने संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ भाजपा पर हमला बोला है. भूपेश बघेल ने कहा कि मोहन भागवत का यह बयान स्पष्ट करता है कि वे संविधान को नहीं मानते हैं. यह बयान आजादी की लड़ाई लड़ने वाले लाखों भारतीयों का अपमान है. 

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा के साथ प्रेस वार्ता में संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर कहा यह स्पष्ट करता है कि वो संविधान को नहीं मानते हैं. राहुल गांधी ने कर इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि अगर यह बात दुनिया के किसी दूसरे देश में कही गई होती तो उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुका होता, उसे गिरफ्तार कर लिया गया होता, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ.

मोहन भागवत और उनके संगठन के लोग संविधान के बारे में समय-समय पर बयान देते रहते हैं इससे स्पष्ट हो जाता है कि वो संविधान को नहीं मानते, संविधान को बदल देना चाहते हैं. उनके सांसदों ने भी कहा कि हम संविधान बदलेंगे. इनको 52 साल लगा तिरंगा को अंगीकार करने में. आरएसएस का इतिहास आप सब जानते हैं कि जब लाखों भारतीय अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे, तो ये उनके भागीदार के रूप काम कर रहे थे.

भूपेश बघेल ने कहा कि ये हिटलर और मुसोलिनी के विचारों को मानने वाले लोग हैं, उस रास्ते पर चलने वाले लोग हैं. यह असहमति को भी बर्दाश्त नहीं कर सकते. उनको कुचल देना चाहते हैं, दबा देना चाहते हैं, इस विचारधारा के लोग हैं. दरअसल, यह सरकार आरएसएस की सरकार है. क्योंकि संविधान में न्याय की बात है, समानता की बात है, लोकतंत्र की रक्षा करने की बात है, और RSS इन विचारों को मानती नहीं और वहीं काम लगातार भारतीय जनता पार्टी की सरकार लगातार कर रही है. इनका पक्षपाती एजेंडा से देश क्या, दुनिया भली-भांति परिचित हो चुकी है.

अभी राहुल गांधी ने बयान दिया, उसको तोड़-मरोड़ कर ये लोग गलतबयानी कर रहे हैं. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 12 में राज का अर्थ उसके संस्थानों के रूप में परिभाषित की गई है. अब जितने भी जो न्याय, समानता और लोकतंत्र की रक्षा करने की जिम्मेदारी इन संस्थानों की है, उस पर ये लोग कब्जा कर लिए हैं. जिस प्रकार से ED, IT, CBI का दुरुपयोग हो रहा है. इसलिए राहुल गांधी ने कहा कि हमारी लड़ाई इन संगठनों से भी है, स्टेट का मतलब ही यही है.

इसलिए जो हमारी लड़ाई है, केवल RSS या BJP से नहीं, बल्कि जो संगठन से हैं, जो हमें न्याय दिलाती है, जो हिंदुस्तान की जनता को न्याय दिलाती है, उस पर कब्जा कर लिए हैं उसके खिलाफ भी हमारी लड़ाई है, और इसको लगातार ये लोग दूसरे ढंग से परिभाषित करने के दूसरे ढंग से व्याख्या करने के कोशिश कर रहे हैं. जो निंदनीय है. कम से कम RSS और BJP के लोग कांग्रेस के कार्यकर्ताओं-नेताओं को देशभक्ति का पाठ ना पढ़ाएं. हमें ना सिखाएं कि देशभक्ति क्या है.

भूपेश बघेल ने अंत में कहा कि राहुल गांधी का दृष्टिकोण है, लोकतांत्रिक है, समावेशी है, न्यायपूर्ण है. ये जो मूल सिद्धांत है, उसको लेकर आगे बढ़ रहे हैं, और इन सिद्धांतों के खिलाफ जो भी होगा, या जो भी रोड़ा अटकाएगा, उसके खिलाफ कांग्रेस पार्टी और हमारे नेता राहुल गांधी लड़ाई लड़ते रहेंगे.

आरएसएस की शाखा में आए थे आंबेडकर और गांधी', संघ का बड़ा दावा

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देश के संविधान के निर्माता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर एक बार फिर सुर्खियों में हैं। पिछले दिनों शीतकालीन सत्र के दौरान राज्यसभा में केन्द्रीय गृहमंत्री के दॉक्टर बीआर अंबेडकर पर दिए गए बयान के बाद पक्ष और विरक्ष में जमकर घमासान मचा। अंबेडकर को लेकर जारी सियासी विवाद के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने बड़ा दावा किया है। आरएसएस ने एक बयान जारी कर दावा किया है कि महात्मा गांधी और बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर संघ की शाखाओं में शामिल हो चुके हैं। संघ के मुताबिक, गांधी 1934 में संघ के एक शिविर में पहुंचे थे जबकि आंबेडकर ने 1940 में संघ की एक शाखा में भेंट दी थी। बता दें कि आरएसएस ने अपने दावे के समर्थन में पेपर की एक कटिंग भी दिखाई है।

देश के संविधान के निर्माता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने 85 साल पहले महाराष्ट्र में आरएसएस की एक शाखा का दौरा किया था। संघ की संचार शाखा विश्व संवाद केंद्र (वीएसके) ने बृहस्पतिवार को इसका खुलासा करते हुए दावा किया कि इस दौरान आंबेडकर ने स्वयंसेवकों से संबोधित करते हुए कहा था कि कुछ मुद्दों पर मतभेदों के बावजूद वह आरएसएस को आत्मीयता की भावना से देखते हैं।

विश्व संवाद केंद्र के विदर्भ प्रांत ने एक बयान में कहा, डॉ. आंबेडकर ने 2 जनवरी, 1940 को सतारा जिले के कराड में आरएसएस की शाखा का दौरा किया था। यहां उन्होंने स्वयंसेवकों को संबोधित भी किया था। वीएसके ने संबंधित समाचार की एक क्लिपिंग के साथ कहा कि 9 जनवरी, 1940 को पुणे के मराठी दैनिक केसरी में डॉ. आंबेडकर के आरएसएस शाखा में आने के बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी।

“आंबेडकर और आरएसएस के बारे में गलत सूचना फैलाई गई”

बयान के मुताबिक, आरएसएस ने अपनी अब तक की यात्रा में कई चुनौतियों का सामना किया है और संगठन पर कई आरोप लगाए गए हैं, लेकिन उसने इन सभी आरोपों को गलत साबित किया है तथा एक सामाजिक संगठन के रूप में अपनी पहचान को फिर से पुष्ट किया है। इसमें कहा गया है कि आरएसएस पर विभिन्न कारणों से तीन बार प्रतिबंध लगाया गया, लेकिन हर बार यह बेदाग निकला। बयान के अनुसार, आरएसएस पर दलित विरोधी होने के आरोप लगे और डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर तथा आरएसएस के बारे में गलत सूचना फैलाई गई। लेकिन अब डॉ. आंबेडकर और आरएसएस के बारे में एक नया दस्तावेज सामने आया है, जो दोनों के बीच संबंधों को उजागर करता है।

“स्वयंसेवक नियमित रूप से आंबेडकर के संपर्क में थे”

वीएसके ने अपने बयान में कहा कि नौ जनवरी, 1940 को पुणे के मराठी दैनिक ‘केसरी’ में डॉ. आंबेडकर के आरएसएस शाखा का दौरा करने के बारे में एक खबर प्रकाशित हुई थी। बयान में उस समाचार की एक प्रति भी संलग्न की गई है। खबर में आरएसएस विचारक दत्तोपंत ठेंगड़ी की लिखी किताब ‘डॉ. आंबेडकर और सामाजिक क्रांति की यात्रा’ का संदर्भ दिया गया है, जिसमें आरएसएस और डॉ. आंबेडकर के बीच संबंधों के बारे में बताया गया है। खबर के अनुसार, किताब के आठवें अध्याय की शुरुआत में ठेंगड़ी कहते हैं कि डॉ. आंबेडकर को आरएसएस के बारे में पूरी जानकारी थी। अध्याय के मुताबिक, संघ के स्वयंसेवक नियमित रूप से आंबेडकर के संपर्क में रहते थे और उनसे चर्चा करते थे।

वीएसके ने किताब के हवाले से कहा, डॉ. आंबेडकर यह भी जानते थे कि आरएसएस हिंदुओं को एकजुट करने वाला एक अखिल भारतीय संगठन है। वह इस बात से भी वाकिफ थे कि हिंदुत्व के प्रति वफादार संगठनों, हिंदुओं को एकजुट करने वाले संगठनों और आरएसएस के बीच अंतर है। आरएसएस के विकास की गति को लेकर उनके मन में संदेह था। इस दृष्टि से डॉ. आंबेडकर और आरएसएस के बीच संबंधों का विश्लेषण करने की आवश्यकता है।