UNSC में भारत चाहता है पक्की जगह, अब तक स्थायी सदस्य ना बन पाने की वजह सिर्फ चीन नहीं
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संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुए 7 दशक से ज्यादा वक्त बीत गए। तब से दुनिया बहुत बदल गई, लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का ढांचा नहीं बदला है। भारत लगातार सुरक्षा परिषद में सुधार की पुरजोर वकालत कर रहा है। यूएनएससी में अपनी स्थायी सदस्यता की दावेदारी कर रहा। अब उसकी दावेदारी को और मजबूती मिली है। अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन ने भी भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाए जाने का समर्थन किया है। रूस पहले से ही भारत की दावेदारी के सपोर्ट में रहा है। सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य में भारत के सामने सिर्फ चीन ही बाधा है।
आज के वैश्विक परिदृश्य को बेहतर ढंग से दर्शाने के लिए स्थायी सदस्यों की संख्या का विस्तार करने की मांग बढ़ रही है। खासकर भारत इसे पुरजोर तरीके से उठा रहा है। भारत का तर्क है कि 1945 में स्थापित 15-सदस्यीय परिषद 'पुराना है और 21वीं सदी के वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य का प्रतिनिधित्व करने में नाकाम है।
मौजूदा यूएनजीए सेशन में जी-4 देशों- भारत, जापान, ब्राजील और जर्मनी ने सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग को जबरदस्त तरीके से उठाया है। ये चारों देश सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए एक दूसरे की दावेदारी का समर्थन करते हैं। उनकी मांग है कि संयुक्त राष्ट्र में वर्तमान भू-राजनैतिक वास्तविकताओं की झलक दिखनी चाहिए ताकि यह वर्तमान के साथ-साथ भविष्य के लिए भी फिट रहे।
सवाल उठता है कि जब लगभग सभी देश भारत को स्थायी सदस्यता देने के पक्षधर हैं तो फिर पेंच फंसता कहां है? इस सवाल का जवाब चीन और अमेरिका हैं।
हां, भले ही पिछले हफ्ते अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूएनएससी की स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी का समर्थन किया था। हालांकि, भारत की इस समस्या के लिए बहुत हद तक अमेरिका भी जिम्मेदार है। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का सोशलिस्ट लोकतंत्र होने की वजह से हम तत्कालीन सोवियत संघ के ज्यादा नजदीक थे। जिस वजह से अमेरिका हमारे खिलाफ था। जैसा हम 1971 के भारत-पाक युद्ध में भी देख चुके हैं।
यही वजह है कि अमेरिका हर जगह भारत का न सिर्फ विरोध करता था बल्कि भारत के खिलाफ अपने सारे सहयोगी देशों को भी इस्तेमाल करता था। यही वजह है कि अमेरिका का बनाया हुआ भारत विरोधी माहौल लंबे समय तक कायम रहा। इसी सिलसिले में ब्रिटेन भी भारत की स्थायी सीट का विरोध करता था।
हालांकि, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूएनएससी की स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी का समर्थन किया था। उसके बाद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने संयुक्त राष्ट्र आम सभा के 79वें सत्र में ऐलान किया कि उनका देश भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाए जाने के पक्ष में हैं। अब ब्रिटेन के पीएम कीर स्टार्मर में भी इस बात का समर्थन किया है।
Sep 30 2024, 22:06