डीएमके सांसद पर क्यों भड़के लोकसभा स्‍पीकर? दिया करारा जवाब

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सदन में बजट 2025-26 को लेकर चर्चा की जा रही है। सदन के बीच में द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डीएमके) सांसद दयानिधि मारन ने संस्कृत भाषा को लेकर एक बयान दिया। उनके इस बयान पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला भड़क गए। डीएमके सांसद दयानिधि मारन ने संसद में संस्कृत अनुवाद को पैसे की बर्बादी बताया, जिस पर लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने कड़ी फटकार लगाई और पूछा उन्हें क्या आपत्ति है।

दरअसल, डीएमके सांसद दयानिधि मारन ने सदन में हो रही बहस के अनुवाद में अन्य भाषाओं के साथ संस्कृत को शामिल करने को लेकर आपत्ति जताई है। दायन‍िध‍ि मारन ने संस्‍कृत‍ को पैसे की बर्बादी से जोड़ द‍िया। उन्‍होंने सदन में कहा कि आप संसद में भाषण को संस्कृत नें अनुवाद करके टैक्सपेयर्स के पैसों को क्यों बर्बाद कर रहे हैं। इस पर लोकसभा स्‍पीकर भड़क गए। स्पीकर ने उन्‍हें खरी-खरी सुना दी।

लोकसभा में प्रश्नकाल के तुरंत बाद स्‍पीकर ओम बिरला ने कहा, मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि छह और भाषाओं- बोडो, डोगरी, मैथिली, मणिपुरी, संस्कृत और उर्दू को उन भाषाओं में शामिल क‍िया गया है, ज‍िनमें संसद की कार्यवाही को ट्रांसलेट करने की सुव‍िधा उपलब्‍ध कराई जाएगी।

स्‍पीकर ने जैसे ही संस्‍कृत शब्‍द बोला, डीएमके के नेता नारेबाजी करने लगे। इस पर स्‍पीकर ने पूछा क‍ि आख‍िर आप लोगों की समस्‍या क्‍या है। इसके बाद डीएमके सांसद दयानिधि मारन ने कहा कि संस्कृत में भाषा ट्रांसलेट कराकर सरकार टैक्सपेयर के पैसे बर्बाद कर रही है। यह ठीक नहीं है। आरएसएस की विचारधारा के कारण लोकसभा की कार्यवाही का संस्कृत में ट्रांसलेट क‍िया जा रहा है।

इस पर लोकसभा स्‍पीकर ने दयान‍िध‍ि मारन को कड़ी फटकार लगा दी। कहा, माननीय सदस्य आप किस देश में जी रहे हैं। यह भारत है. संस्कृत भारत की प्राथमिक भाषा रही है। मैंने 22 भाषाओं के बारे में बात की, सिर्फ संस्कृत की नहीं। आपको संस्‍कृत पर ही क्‍यों आपत्‍त‍ि है भाई? 

बता दें कि सदन में पहले भाषण को बंगाली, गुजराती, कन्नड, मलयालम, पंजाबी और उड़िया समेत 10 भाषाओं में अनुवाद करने की सुविधा थी

रजनीकांत ने ऐसा क्या कहा, जिससे तमिलनाडु की सियासत में मचा बवाल

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सुपरस्‍टार रजनीकांत के एक भाषण से तमिलनाडु की सियासत में बवाल मच गया है। रजनीकांत ने एक किताब के विमोचन के मौके पर वरिष्ठ नेताओं के राजनीति में कुर्सी से चिपके रहने को लेकर एक बयान दिया था। इतना ही सुपरस्टार ने इसके लिए सीएम एमके स्टालिन की तारीफ भी की थी। रजनीकांत ने ऐसे विषय को छेड़ा है, जो बहस का मुद्दा तो है। जाहिर है, ऐसे में विवाद तो बढ़ेगा ही।

दरअसल 24 अगस्‍त को एक पुस्‍तक विमोचन समारोह में रजनीकांत ने इशारों में कहा कि डीएमके में कुछ ऐसा नेता हैं जो अपनी जगह छोड़ने को तैयार नहीं हैं। नए नेताओं के लिए रास्‍ता देने को तैयार नहीं है। रजनीकांत ने कहा, मुझे एक चीज बहुत हैरान करती है। स्‍कूल में नए स्‍टूडेंट्स को हैंडल करना कोई मुश्किल का काम नहीं होता लेकिन पुराने छात्रों (वरिष्‍ठ नेताओं) को संभालना बहुत कठिन है। यहां (डीएमके में) बहुत पुराने छात्र हैं। ये आम छात्र नहीं हैं। ये सभी असाधारण हैं। ये सभी रैंक होल्‍डर हैं और और कह रहे हैं कि क्‍लास नहीं छोड़ेंगे। खासकर दुरई मुरुगन को केस ले लीजिए। यदि हम उनसे कुछ कहेंगे तो वो जवाब देंगे कि गुड। लेकिन हम समझ नहीं पाएंगे कि ये उन्‍होंने ये बात प्रसन्‍नता में कही है या फ्रस्‍ट्रेशन में बोली है। 

रजनीकांत ने की स्‍टालिन की तारीफ

लगे हाथों रजनीकांत ने स्‍टालिन की तारीफ भी कर दी। उन्होंने कहा कि स्‍टालिन सर की यहां पर तारीफ करूंगा क्‍योंकि पता नहीं कैसे वो सारी चीजों को हैंडल करते हैं? रजनीकांत ने एम करुणानिधि पर लिखी पुस्तक के विमोचन के अवसर पर कहा कि एमके स्टालिन ने अपनी पिता की विरासत को बहुत ही अच्छे से संभाला है। उन्होंने कहा कि मेरे प्रिय मित्र स्टालिन मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही लगातार सभी चुनाव जीत रहे हैं। अभिनेता ने कहा कि किसी भी पार्टी के बड़े नेता या पार्टी के सरंक्षक के दिवंगत हो जाने के बाद पार्टी में बगावत हो जाती है। इस दौरान कई पार्टियां टूट भी जाती है, लेकिन स्टालिन इतनी आसानी से इसे आगे बढ़ा रहे हैं, ये वाकई काबिले तारीफ है।

दुरई मुरुगन ने रजनीकांत को घेरा

रजनीकांत का यह कमेंट डीएमके के सीनियर नेता दुरई मुरुगन को नागवार गुजरा। दुरई मुरुगन ने रविवार को कहा कि युवा कलाकारों को फिल्म जगत में कोई स्थान नहीं मिल रहा है। क्योंकि बूढ़े अभिनेता दाढ़ी बढ़ाने और सभी दांत टूटने के बाद भी अपनी सीट खाली नहीं कर रहे हैं।

उदयनिधि की बात को संभालने की कोशिश

तमिलनाडु में बढ़ते विवाद के बीच सीएम स्‍टालिन के बेटे और राज्‍य सरकार में मंत्री उदयनिधि स्‍टालिन बात को संभालते दिखे। उदयनिधि ने कहा कि युवा हमारे साथ आने को तैयार हैं। बस उनको स्‍पेस देने और गाइड करने की जरूरत है। सुपरस्‍टार रजनीकांत की स्‍पीच की हर जगह सराहना हो रही है। आप सबने टीवी पर उसको देखा है। जो उन्‍होंने कहा है वो मैं नहीं दोहराना चाहता क्‍योंकि यदि कुछ कहूंगा तो उसके अलग मायने निकाले जा सकते हैं।

केजरीवाल के लिए जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करेगा INDIA गठबंधन, दिल्ली CM की शिकायत करने वाली कांग्रेस भी होगी शामिल !

कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (सपा) और तृणमूल कांग्रेस (TMC) सहित विपक्षी गठबंधन आज यानी मंगलवार (30 जुलाई) को राष्ट्रीय राजधानी के जंतर-मंतर पर इंडिया ब्लॉक की एक रैली निकालने वाले हैं। जिसमें न्यायिक हिरासत में AAP सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की बिगड़ती सेहत पर आवाज़ उठाई जाएगी। आम आदमी पार्टी (AAP) के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने सोमवार को इसका ऐलान किया था। बता दें कि, AAP लगातार केंद्र की भाजपा पर जेल में केजरीवाल की 'हत्या की साजिश' रचने का इल्जाम लगा रही है। इसके लिए AAP ने केजरीवाल की मेडिकल रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि तीन जून से सात जुलाई के बीच मुख्यमंत्री का शुगर लेवल 34 बार गिरा है। एक प्रेस वार्ता में संजय सिंह से मंगलवार की रैली में शामिल होने वाले दलों के बारे में बताते हुए कहा कि, 'कांग्रेस, सपा, TMC, DMK, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI), झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार), शिवसेना (उद्धव बालासाहब ठाकरे) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन ये साड़ी पार्टियां केजरीवाल के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाएंगी।' उन्होंने कहा कि हम दो-तीन और दलों के साथ चर्चा कर रहे हैं। उन्होंने कहा था कि जंतर-मंतर में होने वाली रैली में शामिल होने वाले नेताओं का नाम मंगलवार को मालूम चलेगा। बता दें कि दिल्ली के कथित शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामलेमें ईडी ने 21 मार्च को केजरीवाल को अरेस्ट किया था। मजे की बात ये है कि, शराब घोटाले में केजरीवाल की लिखित शिकायत कांग्रेस ने ही की थी, लेकिन तब उनका गठबंधन नहीं था, अब दोनों INDIA ब्लॉक के सदस्य हैं, तो जाहिर है कांग्रेस केजरीवाल के पीछे खड़े होकर केंद्र पर निशाना साधेगी। वहीं, दिल्ली उच्च न्यायालय ने कथित शराब घोटाले से जुड़े CBI मामले में AAP सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की नियमित जमानत याचिका पर सोमवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। CBI ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए केजरीवाल को मामले का सूत्रधार करार दिया था। CBI ने कहा था कि अगर उन्हें रिहा किया जाता है तो वह गवाहों के प्रभावित कर सकते हैं। जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की बेंच ने दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार करने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। जांच एजेंसी की तरफ से पेश अधिवक्ता डीपी सिंह ने कहा 'उनकी (केजरीवाल) गिरफ्तारी के बिना जांच पूरी नहीं की जा सकती थी। हमने एक महीने के भीतर आरोप पत्र दाखिल कर दिया है। उनकी गिरफ्तारी के बाद हमें सबूत मिले। उनकी अपनी पार्टी के कार्यकर्ता खुद जवाब देने के लिए आगे आए।' इससे पहले दिन में सीबीआई ने मुख्यमंत्री और आप विधायक दुर्गेश पाठक समेत पांच अन्य के खिलाफ निचली अदालत में अपना अंतिम चार्जशीट दाखिल की थी, जिसमे केजरीवाल को घोटाले का किंगपिन बताया गया था।
बेटे की विरासत सौंपने की तैयारी में एमके स्टालिन, उदयनिधि को बना सकते हैं तमिलनाडु का डिप्टी सीएम

 एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली तमिलनाडु सरकार आगामी कैबिनेट विस्तार में मौजूदा खेल मंत्री उदयनिधि स्टालिन को उपमुख्यमंत्री के पद पर पदोन्नत करने पर विचार कर रही है। यह कदम उदयनिधि के सनातन धर्म पर दिए गए विवादित बयान के बाद उठाया गया है। सत्तारूढ़ DMK के कई वरिष्ठ नेताओं का मानना ​​है कि उदयनिधि को उपमुख्यमंत्री बनाना 2026 के विधानसभा चुनावों के लिए रणनीतिक है। 

वहीं, यह फैसला एमके स्टालिन की अपनी राजनीतिक यात्रा को दर्शाता है, क्योंकि उनके पिता एम करुणानिधि ने भी पहले उन्हें उपमुख्यमंत्री नियुक्त किया था। आज एमके स्टालिन पार्टी प्रमुख और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री दोनों हैं। उदयनिधि स्टालिन, जो वर्तमान में चेपक-तिरुवल्लिकेनी से विधायक हैं और युवा कल्याण और खेल विकास मामलों के मंत्री हैं, और अधिक जिम्मेदारियां संभालने के लिए तैयार हैं। मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि इस पदोन्नति का उद्देश्य एमके स्टालिन का कार्यभार कम करना है। हालांकि, अंतिम निर्णय का अधिकार पूरी तरह से एमके स्टालिन के पास है। यह भी बताया गया है कि उदयनिधि ने खुद अपनी मां से प्रभावित होकर उपमुख्यमंत्री पद की इच्छा व्यक्त की है, जो नहीं चाहती थीं कि उनके बेटे को करुणानिधि की सरकार में एमके स्टालिन के समान देरी का सामना करना पड़े। 

बता दें कि, उदयनिधि ने तमिल सिनेमा में सफल करियर के बाद 2019 में राजनीति में प्रवेश किया था। फैशन, प्रकाशन और फिल्म निर्माण में उनकी रुचि है और वे रेड जायंट्स नामक एक प्रोडक्शन कंपनी के मालिक हैं। उनकी पहली प्रमुख भूमिका 2012 में फिल्म "आधावन" में थी, जिसके लिए उन्हें फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ पुरुष अभिनेता पदार्पण पुरस्कार मिला। उनकी सबसे हालिया फिल्म "मामन" (2023) को आलोचकों की प्रशंसा मिली। उदयनिधि ने पिछले साल सनातन धर्म पर टिप्पणी करके विवाद खड़ा कर दिया था। जब उदयनिधि ने सनातन धर्म की तुलना डेंगू, मलेरिया और कोरोनावायरस जैसी बीमारियों से करते हुए कहा था कि इनका विरोध करने के बजाय इनका समूल नाश करने की आवश्यकता है। उनकी इन टिप्पणियों की भाजपा ने काफी आलोचना की थी, जबकि, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने उन्हें मौन समर्थन दिया था।

7 राज्यों में हुए उपचुनाव में “कुम्हलाया” कमल, आने वाले चुनावों से पहले आत्ममंथन की जरूरत

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लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद भारत की राजनीति करवट लेने लगी है। एनडीए के 293 सांसदों के साथ तीसरी बार सरकार बनाने के बाद भी बीजेपी कॉन्फिडेंट नजर नहीं आ रही है, जबकि 234 सीटें जीतने वाले विपक्ष के हौसले बुलंद हैं। हाल ही में संपन्न विधानसभा उपचुनाव के परिणाम सकी तस्दीक कर रहा है। देश के सात राज्यों की 13 विधानसभा सीटों पर 10 जुलाई को हुए उपचुनाव के नतीजे में इंडिया गठबंधन ने 10 सीटों पर जीत हासिल की है जबकि, बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के खाते में केवल दो सीटें आई हैं। वहीं, एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है। इंडिया गठबंधन में जहां कांग्रेस ने चार सीटों पर जीत का परचम फहराया है, वहीं तृणमूल कांग्रेस ने चार, डीएमके और आम आदमी पार्टी ने एक-एक सीट पर जीत हासिल की है।

लोकसभा के बाद हुए पहले चुनाव पर देश की निगाहें लगी थी। राजनीतिक विश्लेषकों से लेकर आम लोग भी इन चुनावों को बीजेपी की परीक्षा मान रहे थे। विधानसभा उपचुनाव में पंजाब की एक, हिमाचल प्रदेश की तीन, उत्तराखंड की दो, पश्चिम बंगाल की चार, मध्य प्रदेश, बिहार और तमिलनाडु की एक-एक सीट पर मतदान हुआ था। इन चुनाव में इंडिया’ गठबंधन में शामिल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक ने अपने उम्मीदवार उतारे थे। चुनाव नतीजों में बीजेपी पर इंडिया गठबंधन भारी पड़ा। बीजेपी के लिए हिमाचल में बीजेपी हमीरपुर सीट जीतने में कामयाब रही। वहीं, तमिलनाडु में विक्रवांडी विधानसभा सीट पर डीएमके उम्मीदवार अन्नियूर शिवा ने जीत हासिल की।

सबसे पहले बात मध्य प्रदेश की कर लेते हैं। जहां से बीजेपी के लिए एक शुभ समाचार आया है क्योंकि उसने कांग्रेस के गढ़ रहे छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में शामिल अमरवाड़ा सीट जीत ली है, जो कभी कांग्रेस के पास हुआ करती थी। बीजेपी को सबसे बड़ा झटका पश्चिम बंगाल में लगा है। जहां 4 सीटों पर हुए उप चुनाव में ममता बनर्जी की टीएमसी ने क्लीन स्वीप कर के बीजेपी को क्लीन बोल्ड कर दिया है। इनमें से तीन सीट ऐसी थी जो पहले बीजेपी के पास थीं। पश्चिम बंगाल में 2021 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 3 से 77 सीट का सफर तय किया था, लेकिन चार सीटों के इस उपचुनाव में उसके लिए संकेत अच्छे नहीं है। उपचुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि बंगाल में टीएमसी की राजनीतिक दीवारों का जोड़ और मजबूत हो गया है। 

सबसे बड़ा खेल बिहार में हुआ हैं। जहां जेडीयू और आरजेडी देखते रह गए और बाजी निर्दलीय उम्मीदवार ने मार ली। 13 में ये इकलौती ऐसी सीट है जहां निर्दलीय की सत्ता आई है। पंजाब में 1 सीट पर हुए उपचुनाव में झाड़ू का जादू चला गया और जालंधर पश्चिम विधानसभा सीट पर आम आदमी पार्टी को बड़ी जीत मिली है। कांग्रेस ने पहाड़ों में कमाल कर लिया क्योंकि हिमाचल प्रदेश की 3 सीट में उसे दो सीट पर जीत मिली है जबकि बीजेपी को एक जीत से संतोष करना पड़ा। लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड में क्लीन स्वीप करने वाली बीजेपी को उपचुनाव में कांग्रेस ने खाली हाथ भेजा है और दोनों सीटों पर जीत हासिल की है। इसके अलावा तमिलनाडु की विक्रवंदी विधानसभा सीट इंडिया गठबंधन की DMK के पास गई है।

अब सबसे बड़ी बात ये है कि आखिर बीजेपी को हुए नुकसान की वजह क्या है? दरअसल, 10 साल सत्ता में रहने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की छवि को धक्का लगा है। नीट एग्जाम और यूजीसी जैसे एग्जाम में धांधली के आरोप और बारिश में टपकते एयरपोर्ट जैसे मसलों पर सवाल खड़े हो रहे हैं। 10 साल सत्ता में रहने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की छवि करप्शन के मामले बेदाग रही। हालांकि, पेरपर लीक जैसे मुद्दों ने सरकार को छवि का खासा नुकसान पहुंचाया है। 

2014 के दौर को याद कीजिए। जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने थे, तब देश की जनता करप्शन और घोटालों की खबरों से परेशान थी। मनमोहन सिंह ऐसे प्रधानमंत्री के तौर प्रचारित हुए, जो कांग्रेस अध्यक्ष के मातहत के तौर पर काम करते हैं। विपक्ष ने बड़े घोटालों पर उनकी चुप्पी पर भी सवाल उठाए। कांग्रेस भी आरोपों का सटीक जवाब देने में सक्षम नहीं दिख रही थी। गुजरात में ब्रांड बन चुके नरेंद्र मोदी ने इस माहौल को भुनाया। बदलाव की इंतजार कर रही जनता ने समर्थन दिया और बीजेपी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। 

2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक और सर्जिकल स्ट्राइक ने पीएम मोदी की साख बढ़ाई। जनता ने उन्हें दूसरी बार सरकार बनाने का मौका दिया। मोदी 2.0 में धारा-370 हटाने और सीएए लागू करने जैसे बुलंद फैसले भी लिए। कोरोना के दौर में भी जनता नरेंद्र मोदी के साथ खड़ी रही। उन्होंने जैसा कहा, लोगों ने वैसा ही किया। यह उनकी लोकप्रियता का चरम था, जिसे देखकर विपक्ष समेत पूरी दुनिया दंग रह गई। किसान आंदोलन और कोरोना से हुई मौतों के बाद भी यूपी में बीजेपी की वापसी हुई। पिछले साल राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी भारतीय जनता पार्टी की बनी।

2024 के लोकसभा चुनाव में हालात बदल गए। बेहतर चुनाव प्रबंधन और अग्रेसिव कैंपेन के बाद भी बीजेपी पूर्ण बहुमत के 273 के आंकड़े तक नहीं पहुंच सकी। अब महंगाई, बेरोजगारी, पेपर लीक जैसे मुद्दों की छाया में हुए उपचुनाव के नतीजों ने भाजपा को कड़े संदेश दिए हैं। नतीजों ने कई संदेश दिए हैं। आने वाले चुनावों में भाजपा को संगठनात्मक खामियों को समय रहते दूर करना होगा। कार्यकर्ताओं में पुराना जोश भरना होगा। जनता से जुड़े मुद्दों पर त्वरित एक्शन लेकर साधना होगा।

हमारे मछुआरों को श्रीलंका से छुड़ाने में मदद करें..', सीएम स्टालिन ने विदेश मंत्री जयशंकर को लिखा पत्र

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तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और DMK प्रमुख एमके स्टालिन ने केंद्रीय विदेश मंत्री एस जयशंकर को पत्र लिखकर उनसे श्रीलंकाई नौसेना द्वारा गिरफ्तार किए गए भारतीय मछुआरों की रिहाई के लिए मदद मांगी है। मुख्यमंत्री का यह पत्र ऐसे वक़्त में आया है जब गुरुवार को श्रीलंकाई नौसेना ने तमिलनाडु के 13 मछुआरों को पकड़ लिया और उनकी तीन नावें भी जब्त कर लीं।

सीएम स्टालिन ने जयशंकर को लिखे पत्र में कहा कि, "अभी तक श्रीलंकाई अधिकारियों ने 173 मछली पकड़ने वाली नौकाओं और 80 मछुआरों को हिरासत में लिया है। इन हिरासतों से उनकी आजीविका पर गंभीर असर पड़ा है और उनके परिवारों को भारी परेशानी हुई है।मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में कहा कि, "इसलिए, मैं अनुरोध करता हूं कि विदेश मंत्रालय इस मामले को तत्काल सुलझाने के लिए एक मजबूत और समन्वित प्रयास करे। मैं यह भी अनुरोध करता हूं कि सभी मछुआरों और उनकी मछली पकड़ने वाली नौकाओं की तत्काल रिहाई सुनिश्चित करने के लिए उचित राजनयिक चैनल सक्रिय किए जाएं।"

पिछले महीने की शुरूआत में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने इस मुद्दे पर 19, 24 और 25 जून को जयशंकर को तीन पत्र लिखे थे। विदेश मंत्री ने उन्हें बताया था कि कोलंबो स्थित भारतीय उच्चायोग और जाफना स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास इस मुद्दे को श्रीलंकाई अधिकारियों के समक्ष तेजी से और लगातार उठा रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा पार करने तथा श्रीलंकाई जलक्षेत्र में मछली पकड़ने के आरोप में भारतीय मछुआरों को श्रीलंकाई नौसेना द्वारा गिरफ्तार किये जाने की घटनाएं नियमित रूप से होती रही हैं। बता दें कि, इसी वर्ष मार्च में भी ऐसी ही एक घटना घटी थी, जब श्रीलंकाई नौसेना ने अपने जलक्षेत्र में अवैध शिकार करने के आरोप में तमिलनाडु के 22 मछुआरों को गिरफ्तार कर लिया था और उनके सामान जब्त कर लिए थे।

राहुल गांधी के बचाव में उतरे ज्योतिर्लिंग मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद, बोले- इन लोगों को दंड मिलना चाहिए...

लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी द्वारा अपने भाषण विवाद खड़ा करने के कुछ दिनों बाद, ज्योतिर्लिंग मठ के 46वें शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने रविवार को कांग्रेस नेता की टिप्पणियों का समर्थन किया है। दरअसल, संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस के दौरान राहुल गांधी ने कहा था कि, जो लोग हिंसा करते हैं, वही पूरे समय हिंसा, हिंसा, नफरत, असत्य की बातें करते हैं। 

इसका जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि राहुल गांधी ने "पूरे हिंदू समुदाय को हिंसक" कहा है, ये बहुत गंभीर बात है। अब विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि राहुल गांधी का भाषण हिंदू धर्म के खिलाफ नहीं था। उन्होंने कहा कि, हमने राहुल गांधी का पूरा भाषण सुना। वह साफ तौर पर कह रहे हैं कि हिंदू धर्म में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है। शंकराचार्य ने कहा कि गांधीजी के बयान का केवल एक हिस्सा फैलाना सही नहीं है और इसके लिए जिम्मेदार लोगों को दंडित किया जाना चाहिए।

बता दें कि, राहुल की टिप्पणी से लोकसभा में हंगामा मच गया था, जिसके कारण स्पीकर ने उनके भाषण के कुछ हिस्सों को रिकॉर्ड से हटा दिया था। राहुल गांधी सत्र शुरू होने वाले दिन से ही संसद में NEET पर चर्चा की मांग कर उन्हें थे, उन्हें लोकसभा स्पीकर ने कहा भी था कि आपको मौका मिलेगा, पूरी डिटेल में बोलिएगा। पहले राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव हो जाने दीजिए, उसी दौरान आप NEET पर भी बोल सकते हैं। हालाँकि, इसको लेकर विपक्ष ने जमकर हंगामा किया था और 2 दिनों तक धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा नहीं हो पाई थी / फिर जब राहुल गांधी के बोलने का अवसर आया, तो वे भगवान शिव, ईसा मसीह, श्री गुरु नानक और इस्लाम में दुआ में हाथ उठाती तस्वीर लेकर संसद में पहुँच गए। NEET पर तो उन्होंने कम बोला, लेकिन विवाद मचाने वाली सामग्री ज्यादा बोल दी। 

ऐसा नहीं है कि, केवल हिन्दू हिंसक वाले बयान पर ही कोई विवाद हुआ हो, उस पर तो हिन्दू धर्मगुरु शंकराचार्य ने राहुल गांधी को क्लीन चिट भी दे दी है। किन्तु इस्लाम और सिख धर्म में अभय मुद्रा बताने वाले बयान पर भी राहुल गांधी की निंदा हुई है। इस्लाम और सिख धर्म के धर्माचार्यों ने कहा है कि, राहुल को बिना ज्ञान के नहीं बोलना चाहिए, हमारे धर्म में कोई अभय मुद्रा नहीं है। ऑल इंडिया सूफी सज्जादा नशीन काउंसिल के चेयरमैन सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहा है कि संसद में बोलते हुए राहुल गांधी ने कहा कि इस्लाम में ऐसा कुछ नहीं है, यहाँ मूर्ति पूजा नहीं होती है और न ही किसी तरह की मुद्रा होती है। इस्लाम में मुद्रा हराम है। वहीं, शीर्ष सिख संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (SGPC) ने भी कहा कि, पवित्र गुरबानी और गुरुओं की शिक्षाओं को पूर्ण ज्ञान के बिना राजनीतिक बहस का हिस्सा नहीं बनाया जाना चाहिए। गुरु साहिब ने ऐसी किसी मुद्रा या आसन को मान्यता नहीं दी है। 

इस्लाम और सिख धर्म के गुरुओं ने तो राहुल गांधी को फटकार लगा दी, लेकिन शंकराचार्य का कहना है कि, राहुल के बयान में हिन्दू विरोधी कुछ भी नहीं। ये वही शंकराचार्य हैं, जिन्होंने राम मंदिर के उद्घाटन पर भी सवाल उठाए थे। दरअसल, राहुल गांधी ने कहा था कि, ''जो लोग खुद को हिंदू कहते हैं, वे चौबीसों घंटे नफरत, हिंसा और असत्य में लिप्त रहते हैं।'' जिसके बाद राहुल गांधी ने फ़ौरन अपना बयान बदलते हुए कहा था कि, वे भाजपा-RSS कि बात कर रहे हैं, जो अपने आप को हिन्दू कहते हैं। हालाँकि, इससे पहले भी राहुल गांधी कई हिन्दू विरोधी बयान दे चुके हैं। जैसे एक बयान में उन्होंने कहा था कि, ''जो लोग मंदिर जाते हैं, वही बाहर आकर लड़की छेड़ते हैं।'' अब मंदिर केवल भाजपा या RSS के हिन्दू तो जाते नहीं। फिर एक बयान में उन्होंने कहा था कि, ''हमें इन हिन्दुत्ववादियों को एक बार फिर देश से बाहर निकालना है।'' अब कांग्रेस की साथी शिवसेना (उद्धव गुट) भी कहती है कि हमारा हिंदुत्व असली है, तो राहुल गांधी किन हिन्दुत्ववादियों की बात कर रहे थे ?

एक बार राहुल गांधी ने हिन्दू-हिंदुत्व को अलग अलग बता दिया था, एक बार ये भी कहा था कि, मैं किसी भी तरह के हिंदुत्व में यकीन नहीं करता। उनकी ही साथी पार्टी DMK के नेता सनातन के समूल नाश की बातें बार बार दोहरा रहे थे, कुछ कांग्रेस नेताओं ने भी उदयनिधि स्टालिन का समर्थन किया था, जिस पर राहुल मौन रहे थे। तो क्या सारे सनातन धर्म वाले भी भाजपा-RSS के लोग हैं ? आज राहुल गांधी ने इस्लाम और सिख समुदाय को लेकर एक भ्रामक बयान दिया, जिसके बाद उन्हें इन दोनों समुदायों से फटकार मिल गई, अब उम्मीद है कि वे इन दोनों समुदायों पर सोच समझकर बोलेंगे। हाँ, हिन्दुओं पर वे बोल सकते हैं, बार-बार लगातार, क्योंकि, भारत में हिन्दू नहीं रहते, यहाँ रहते हैं, यादव, जाट, दलित, ठाकुर, ब्राह्मण, कुर्मी, आदिवासी, बनिए और भी बहुत सारे लोग, लेकिन हिन्दू नहीं। और फिर बचे-कूचे अगर कुछ लोग विरोध करें भी, तो उन्हें समझाने के लिए शंकराचार्य तो हैं ही।

While the real estate moguls enjoy benefits & unprecedented privileges in this DMK regime, the houses of common men are razed down as illegal co
While the real estate moguls enjoy benefits & unprecedented privileges in this DMK regime, the houses of common men are razed down as illegal construction. A youth in Gummidipoondi near Chennai tried to self-immolate in his attempt to stop the government officials from demolishing his house built over a patta land. And the Housing Minister Thiru Muthusamy, who is also the Prohibition Minister of the State, is busy introducing 90ml bottles in TASMAC before Diwali. Speaks volumes on the priorities of this DMK Govt in TN.

While the real estate moguls enjoy benefits & unprecedented privileges in this DMK regime, the houses of common men are razed down as illegal construction. A youth in Gummidipoondi near Chennai trie

मद्रास उच्च न्यायालय ने वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण करने वालों को बेदखल करने की अनुमति देने वाले तमिलनाडु सरकार के कानून को किया असंवैधानिक घोषि

मद्रास उच्च न्यायालय ने वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण करने वालों को बेदखल करने की अनुमति देने वाले तमिलनाडु सरकार के कानून को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। अदालत के फैसले से वक्फ भूमि पर अवैध कब्जे को संबोधित करने के राज्य के प्रयासों को झटका लगा है। 2010 में तमिलनाडु (DMK) सरकार द्वारा अधिनियमित विवादास्पद कानून ने वक्फ संपत्तियों को 1976 के तमिलनाडु सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जेदारों की बेदखली) अधिनियम के दायरे में लाने के लिए 1995 के वक्फ अधिनियम में संशोधन किया। इस संशोधन ने वक्फ को सशक्त बनाया बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) अतिक्रमणकारियों को हटाने का आदेश देंगे।

मुख्य न्यायाधीश वी गंगापुरवाला और न्यायमूर्ति डी भरत चक्रवर्ती की पीठ ने 24 अप्रैल को 2010 के संशोधन को असंवैधानिक घोषित कर दिया। न्यायाधीशों ने माना कि वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण करने वालों को केवल केंद्रीय अधिनियम में 2013 के संशोधन के अनुसार स्थापित वक्फ न्यायाधिकरणों द्वारा ही बेदखल किया जा सकता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि 1995 का वक्फ अधिनियम एक केंद्रीय कानून है, और इस प्रकार, राज्य कानून इसे खत्म नहीं कर सकते। अदालत ने उन तर्कों को खारिज कर दिया कि राज्य और केंद्रीय कानून दोनों एक साथ अस्तित्व में रह सकते हैं, राज्य की इस दलील को खारिज कर दिया कि अतिक्रमणकारियों के खिलाफ राज्य कानून लागू करना उचित था। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि 1995 के वक्फ अधिनियम के मूल प्रावधान अतिक्रमण के मुद्दों को पर्याप्त रूप से संबोधित करने के लिए अपर्याप्त थे।

फैसला लिखते हुए, न्यायमूर्ति भरत चक्रवर्ती ने कहा कि, “वक्फ अधिनियम 1995 के मूल प्रावधान, वक्फ संपत्तियों के अतिक्रमण या अवैध कब्जे से निपटने के लिए पर्याप्त कड़े नहीं थे। इसलिए, सच्चर समिति ने सिफारिश की कि सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जेदारों की बेदखली) अधिनियम 1971 को वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर भी लागू किया जाना चाहिए, क्योंकि वे भी जनता के लाभ के लिए थे। हालाँकि तमिलनाडु सरकार 2010 में एक संशोधन लेकर आई, लेकिन अन्य राज्यों ने ऐसा नहीं किया। इसके बाद, अतिक्रमण हटाने में देश भर में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए संसद ने 2013 में वक्फ अधिनियम में संशोधन किया। संशोधन में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने वालों को केवल केंद्र सरकार के तहत निर्धारित प्रक्रियाओं के अनुसार ही बेदखल किया जा सकता है।

हाई कोर्ट ने कहा कि, “संसदीय कानून का इरादा वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है, जिसके लिए कानून की एकरूपता और पूरे देश में इसके आवेदन की निरंतरता की आवश्यकता है। इस प्रकार केंद्रीय अधिनियम को इस विषय पर एक विस्तृत संहिता के रूप में बनाया गया है। इसलिए, राज्य अधिनियम 2013 में संशोधित वक्फ अधिनियम 1995 के प्रतिकूल है। न्यायाधीश वरिष्ठ वकील वी राघवाचारी और एसआर रघुनाथन के नेतृत्व में अधिवक्ताओं की एक सेना के साथ सहमत हुए, कि 2010 का संशोधन संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची III (समवर्ती सूची) के तहत शक्ति का प्रयोग करेगा, न कि सूची II (राज्य सूची) के तहत। इसमें कहा गया है, "इसलिए, केंद्रीय कानून के प्रति इसकी प्रतिकूलता को देखते हुए इसके लिए राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त की गई है।"

खंडपीठ ने कहा कि चूंकि केंद्रीय कानून में 2013 का संशोधन राज्य कानून में 2010 के संशोधन के बाद था, इसलिए यह माना जाना चाहिए कि संसद को राज्य संशोधन के बारे में अच्छी तरह से पता था, फिर भी, उसने जानबूझकर 1995 के वक्फ अधिनियम में संशोधन किया था। तमिलनाडु में वक्फ बोर्ड हिंदू और मंदिर की जमीन पर मालिकाना हक का दावा करता रहा है। 2022 में, तिरुचेंदुरई गांव के ग्रामीणों को तब झटका लगा, जब एक जमीन मालिक, जो अपनी जमीन बेचने की कोशिश कर रहा था, को सूचित किया गया कि उसे वक्फ बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) प्राप्त करना होगा।

अधिकारी के मुताबिक, तिरुचेंदुरई गांव की सारी जमीन अब वक्फ बोर्ड की है और अगर कोई जमीन बेचना चाहता है, तो उसे चेन्नई में बोर्ड से एनओसी लेनी होगी। गौर करने वाली बात तो ये है कि, उस गाँव में एक 1500 वर्ष पुराना मंदिर भी है, जो इस्लाम के संस्थापक मोहम्मद पैगम्बर (700 ईस्वी) से भी पहले का है, लेकिन वक़्फ़ बोर्ड ने उसे भी वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया है। कांग्रेस अपने घोषणापत्र में मठ और मंदिरों की जमीनों को मुसलमानों को फिर से बांटना चाहती है, लेकिन वक्फ और चर्च की संपत्तियों की बात नहीं करती है, क्योंकि वो पर्सनल लॉ की आड़ में बच जाएंगे। दरअसल, कांग्रेस ने घोषणापत्र में ये भी वादा किया है कि, वो पर्सनल लॉ को यथावत रखेगी, यानि उनकी संपत्ति और अधिकार की प्रक्रिया शरिया के हिसाब से ही चलेगी। बाकियों की संपत्ति का सर्वे भी होगा और बंटवारा भी।

क्या बीजेपी के 'मिशन साउथ ' से उन्हें द्रविड़ गढ़ तमिलनाडु में प्रवेश करने में मदद मिलेगी

आजतक तमिलनाडु ने ऐसा मुकाबला नहीं देखा है, लकिन शुक्रवार को जब 62.3 मिलियन मतदाता राज्य की 39 लोकसभा सीटों के लिए 950 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे तब इस मुकाबले का ज़ोर पता चलेगा । लोगों के अनुसार द्रविड़ मुनेत्र कज़गम (डीएमके), पिछली बार की तरह 38 सीटों पर गठबंधन सरकार के साथ अपनी जीत दायर करेगी। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपने पूर्व सहयोगी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) को दूसरे स्थान पर पहुंचाने के लिए एक गहन, मुखर और ऊर्जावान अभियान को पर्याप्त वोटों में बदल सकती है, और यदि यह तय है कि क्या ये वोट सीटों में तब्दील होंगे।

 विश्लेषकों का मानना है कि मुकाबले से डीएमके को फायदा हो सकता है। “वोटों का बंटवारा डीएमके के लिए फायदेमंद साबित होगा। द्रमुक विरोधी वोट पूरी तरह से अन्नाद्रमुक को नहीं जाएंगे और अन्नाद्रमुक विरोधी वोट पूरी तरह से द्रमुक को नहीं जाएंगे क्योंकि भाजपा का तीसरा विकल्प मौजूद है और भाजपा विरोधी वोट द्रमुक और अन्नाद्रमुक के बीच विभाजित हो जाएंगे, ”राजनीतिक विश्लेषक मालन नारायणन ने कहा। पोल्स के मेगा ओपिनियन पोल के अनुसार, दक्षिणी राज्य में इंडिया ब्लॉक 51% वोट शेयर के साथ 39 लोकसभा सीटों में से 30 सीटें जीतेगा, जबकि बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए 13% वोट शेयर के साथ पांच सीटें जीतेगा।

2019 में, DMK ने 33.52% वोट जीते; अन्नाद्रमुक, 19.39%; और भाजपा, 3.66%। लेकिन संख्याएँ भाजपा के लिए प्रतिनिधि नहीं हैं क्योंकि वह राज्य में अन्नाद्रमुक के नेतृत्व वाले गठबंधन का हिस्सा थी। इस बार बीजेपी ने कहा है कि वह इस हिस्सेदारी को काफी बढ़ाना चाहती है। कोयंबटूर से चुनाव लड़ रहे राज्य भाजपा अध्यक्ष के अन्नामलाई ने हाल ही में कहा, "भाजपा अपने दम पर 20% और अपने सहयोगियों के साथ लगभग 30% मतदान करेगी।"

1967 से तमिलनाडु द्रमुक और अन्नाद्रमुक के बीच झूलता रहा है। इस चुनाव को भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन ने दिलचस्प बना दिया है जिसमें (टीटीवी दिनाकरन) की अम्मा मक्कल मुनेत्र कड़गम (अन्नाद्रमुक से अलग हुई पार्टी), पट्टाली मक्कल काची और तमिल मनीला कांग्रेस, इंडिया जनानायगा काची और पुथिया नीधि काची शामिल हैं।

निश्चित रूप से, तमिल राष्ट्रवादी एस सीमान के नेतृत्व वाली नाम तमिझार काची (एनटीके), जो 2021 के विधानसभा चुनावों में डीएमके और एआईएडीएमके के बाद लगभग 7% वोट शेयर के साथ तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, भी मैदान में है।

अपने घोषणापत्र में, DMK ने राज्यपाल की नियुक्ति में मुख्यमंत्री की भूमिका और बाद की शक्तियों को प्रतिबंधित करने और राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 और नागरिकता संशोधन अधिनियम को रद्द करने की बात कही है। मुख्यमंत्री९(एमके स्टालिन) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर केंद्रीय धन जारी न करके और राज्यपालों के हस्तक्षेप के माध्यम से गैर-भाजपा शासित राज्यों को नियंत्रित करने का आरोप लगाया है। भाजपा ने राज्य में अपने विकास और हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाया है, हिंदी पट्टी में कल्याण के पहलू को कम कर दिया है, शायद तमिलनाडु के स्वस्थ सामाजिक संकेत के कारण इसने भ्रष्टाचार, वंशवाद शासन और सनातन धर्म के खिलाफ इसके कुछ नेताओं की टिप्पणियों के लिए द्रमुक पर भी निशाना साधा है।

प्रमुख विपक्षी दल अन्नाद्रमुक के लिए, 2022 में एडप्पादी पलानीस्वामी के पार्टी महासचिव के रूप में उभरने, ओ पनीरसेल्वम (ओपीएस) को बाहर करने के साथ ही सितंबर 2023 में एनडीए से अलग होने के बाद यह पहला बड़ा चुनाव है। दिलचस्प बात यह है कि सभी दल जो अन्नाद्रमुक का हिस्सा थे 2019 में देसिया मुरपोक्कू द्रविड़ कड़गम (डीएमडीके) के अलावा अन्य गठबंधन बीजेपी में शामिल हो गए हैं।  

अन्नाद्रमुक ने ज्यादातर मध्यम स्तर के पदाधिकारियों को बिना किसी वरिष्ठ और भारी वजन वाले उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा है। राजनीतिक विश्लेषक रामू मणिवन्नन ने कहा, “कैडरों को मैदान में उतारकर, वे उन तरीकों पर वापस चले गए हैं, जिनमें (एआईएडीएमके) पहले एमजीआर और (उनकी उत्तराधिकारी) जे.जयललिता के तहत काम करती थी।” "अन्नाद्रमुक खुद को एक कैडर आधारित पार्टी मानती है और कोई भारी-भरकम उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ रहा है, यह कार्यकर्ताओं को प्रेरित करने का एक तरीका है।" 

तमिलनाडु जो प्रधानमंत्री का पक्ष ले रहा है,'' केएस नरेंद्रन, राज्य उपाध्यक्ष, भाजपा ने कहा। “2019 तक, डीएमके ने मोदी विरोधी मूड बनाया था, लेकिन अब, लोगों को एहसास हो गया है कि एमजीआर के बाद, (मोदी) गरीबों के नेता हैं।” (एआईएडीएमके) के आयोजन सचिव डी जयकुमार ने कहा कि यह भाजपा का भ्रम है कि (एआईएडीएमके) कमजोर है। जयकुमार ने कहा, ''2021 के विधानसभा चुनाव में डीएमके और एआईएडीएमके के बीच अंतर केवल 2.5% था।'' “लोग पहले से ही तीन साल के डीएमके शासन से तंग आ चुके हैं। वे अन्नाद्रमुक को वापस चाहते हैं।

डीएमके सांसद टीकेएस एलंगोवन ने राज्य में पार्टी के तीन साल के शासन की तुलना भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के 10 साल से करते हुए कहा, "सत्ता विरोधी लहर हमारे खिलाफ नहीं बल्कि मोदी के खिलाफ है।" "मोदी द्वारा किए गए झूठे वादों की कीमत उन्हें चुकानी पड़ेगी।" राजनीतिक विश्लेषक मालन नारायणन ने कहा कि पहली बार तमिलनाडु में ऐसा मुकाबला देखने को मिल रहा है और उन्होंने कहा कि विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में अंतर कम हो सकता है।

शुक्रवार को मतदान से पहले, तमिलनाडु के मुख्य निर्वाचन अधिकारी सत्यब्रत साहू ने कहा कि राज्य के 68,321 मतदान केंद्रों में से 44,800 पर वेबकैम के जरिए निगरानी की जाएगी। चुनाव अधिकारियों ने 17 अप्रैल को अभियान समाप्त होने तक ₹1,300 करोड़ से अधिक की नकदी, शराब, ड्रग्स और मुफ्त चीजें जब्त की हैं।

डीएमके सांसद पर क्यों भड़के लोकसभा स्‍पीकर? दिया करारा जवाब

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सदन में बजट 2025-26 को लेकर चर्चा की जा रही है। सदन के बीच में द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डीएमके) सांसद दयानिधि मारन ने संस्कृत भाषा को लेकर एक बयान दिया। उनके इस बयान पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला भड़क गए। डीएमके सांसद दयानिधि मारन ने संसद में संस्कृत अनुवाद को पैसे की बर्बादी बताया, जिस पर लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने कड़ी फटकार लगाई और पूछा उन्हें क्या आपत्ति है।

दरअसल, डीएमके सांसद दयानिधि मारन ने सदन में हो रही बहस के अनुवाद में अन्य भाषाओं के साथ संस्कृत को शामिल करने को लेकर आपत्ति जताई है। दायन‍िध‍ि मारन ने संस्‍कृत‍ को पैसे की बर्बादी से जोड़ द‍िया। उन्‍होंने सदन में कहा कि आप संसद में भाषण को संस्कृत नें अनुवाद करके टैक्सपेयर्स के पैसों को क्यों बर्बाद कर रहे हैं। इस पर लोकसभा स्‍पीकर भड़क गए। स्पीकर ने उन्‍हें खरी-खरी सुना दी।

लोकसभा में प्रश्नकाल के तुरंत बाद स्‍पीकर ओम बिरला ने कहा, मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि छह और भाषाओं- बोडो, डोगरी, मैथिली, मणिपुरी, संस्कृत और उर्दू को उन भाषाओं में शामिल क‍िया गया है, ज‍िनमें संसद की कार्यवाही को ट्रांसलेट करने की सुव‍िधा उपलब्‍ध कराई जाएगी।

स्‍पीकर ने जैसे ही संस्‍कृत शब्‍द बोला, डीएमके के नेता नारेबाजी करने लगे। इस पर स्‍पीकर ने पूछा क‍ि आख‍िर आप लोगों की समस्‍या क्‍या है। इसके बाद डीएमके सांसद दयानिधि मारन ने कहा कि संस्कृत में भाषा ट्रांसलेट कराकर सरकार टैक्सपेयर के पैसे बर्बाद कर रही है। यह ठीक नहीं है। आरएसएस की विचारधारा के कारण लोकसभा की कार्यवाही का संस्कृत में ट्रांसलेट क‍िया जा रहा है।

इस पर लोकसभा स्‍पीकर ने दयान‍िध‍ि मारन को कड़ी फटकार लगा दी। कहा, माननीय सदस्य आप किस देश में जी रहे हैं। यह भारत है. संस्कृत भारत की प्राथमिक भाषा रही है। मैंने 22 भाषाओं के बारे में बात की, सिर्फ संस्कृत की नहीं। आपको संस्‍कृत पर ही क्‍यों आपत्‍त‍ि है भाई? 

बता दें कि सदन में पहले भाषण को बंगाली, गुजराती, कन्नड, मलयालम, पंजाबी और उड़िया समेत 10 भाषाओं में अनुवाद करने की सुविधा थी

रजनीकांत ने ऐसा क्या कहा, जिससे तमिलनाडु की सियासत में मचा बवाल

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सुपरस्‍टार रजनीकांत के एक भाषण से तमिलनाडु की सियासत में बवाल मच गया है। रजनीकांत ने एक किताब के विमोचन के मौके पर वरिष्ठ नेताओं के राजनीति में कुर्सी से चिपके रहने को लेकर एक बयान दिया था। इतना ही सुपरस्टार ने इसके लिए सीएम एमके स्टालिन की तारीफ भी की थी। रजनीकांत ने ऐसे विषय को छेड़ा है, जो बहस का मुद्दा तो है। जाहिर है, ऐसे में विवाद तो बढ़ेगा ही।

दरअसल 24 अगस्‍त को एक पुस्‍तक विमोचन समारोह में रजनीकांत ने इशारों में कहा कि डीएमके में कुछ ऐसा नेता हैं जो अपनी जगह छोड़ने को तैयार नहीं हैं। नए नेताओं के लिए रास्‍ता देने को तैयार नहीं है। रजनीकांत ने कहा, मुझे एक चीज बहुत हैरान करती है। स्‍कूल में नए स्‍टूडेंट्स को हैंडल करना कोई मुश्किल का काम नहीं होता लेकिन पुराने छात्रों (वरिष्‍ठ नेताओं) को संभालना बहुत कठिन है। यहां (डीएमके में) बहुत पुराने छात्र हैं। ये आम छात्र नहीं हैं। ये सभी असाधारण हैं। ये सभी रैंक होल्‍डर हैं और और कह रहे हैं कि क्‍लास नहीं छोड़ेंगे। खासकर दुरई मुरुगन को केस ले लीजिए। यदि हम उनसे कुछ कहेंगे तो वो जवाब देंगे कि गुड। लेकिन हम समझ नहीं पाएंगे कि ये उन्‍होंने ये बात प्रसन्‍नता में कही है या फ्रस्‍ट्रेशन में बोली है। 

रजनीकांत ने की स्‍टालिन की तारीफ

लगे हाथों रजनीकांत ने स्‍टालिन की तारीफ भी कर दी। उन्होंने कहा कि स्‍टालिन सर की यहां पर तारीफ करूंगा क्‍योंकि पता नहीं कैसे वो सारी चीजों को हैंडल करते हैं? रजनीकांत ने एम करुणानिधि पर लिखी पुस्तक के विमोचन के अवसर पर कहा कि एमके स्टालिन ने अपनी पिता की विरासत को बहुत ही अच्छे से संभाला है। उन्होंने कहा कि मेरे प्रिय मित्र स्टालिन मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही लगातार सभी चुनाव जीत रहे हैं। अभिनेता ने कहा कि किसी भी पार्टी के बड़े नेता या पार्टी के सरंक्षक के दिवंगत हो जाने के बाद पार्टी में बगावत हो जाती है। इस दौरान कई पार्टियां टूट भी जाती है, लेकिन स्टालिन इतनी आसानी से इसे आगे बढ़ा रहे हैं, ये वाकई काबिले तारीफ है।

दुरई मुरुगन ने रजनीकांत को घेरा

रजनीकांत का यह कमेंट डीएमके के सीनियर नेता दुरई मुरुगन को नागवार गुजरा। दुरई मुरुगन ने रविवार को कहा कि युवा कलाकारों को फिल्म जगत में कोई स्थान नहीं मिल रहा है। क्योंकि बूढ़े अभिनेता दाढ़ी बढ़ाने और सभी दांत टूटने के बाद भी अपनी सीट खाली नहीं कर रहे हैं।

उदयनिधि की बात को संभालने की कोशिश

तमिलनाडु में बढ़ते विवाद के बीच सीएम स्‍टालिन के बेटे और राज्‍य सरकार में मंत्री उदयनिधि स्‍टालिन बात को संभालते दिखे। उदयनिधि ने कहा कि युवा हमारे साथ आने को तैयार हैं। बस उनको स्‍पेस देने और गाइड करने की जरूरत है। सुपरस्‍टार रजनीकांत की स्‍पीच की हर जगह सराहना हो रही है। आप सबने टीवी पर उसको देखा है। जो उन्‍होंने कहा है वो मैं नहीं दोहराना चाहता क्‍योंकि यदि कुछ कहूंगा तो उसके अलग मायने निकाले जा सकते हैं।

केजरीवाल के लिए जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करेगा INDIA गठबंधन, दिल्ली CM की शिकायत करने वाली कांग्रेस भी होगी शामिल !

कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (सपा) और तृणमूल कांग्रेस (TMC) सहित विपक्षी गठबंधन आज यानी मंगलवार (30 जुलाई) को राष्ट्रीय राजधानी के जंतर-मंतर पर इंडिया ब्लॉक की एक रैली निकालने वाले हैं। जिसमें न्यायिक हिरासत में AAP सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की बिगड़ती सेहत पर आवाज़ उठाई जाएगी। आम आदमी पार्टी (AAP) के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने सोमवार को इसका ऐलान किया था। बता दें कि, AAP लगातार केंद्र की भाजपा पर जेल में केजरीवाल की 'हत्या की साजिश' रचने का इल्जाम लगा रही है। इसके लिए AAP ने केजरीवाल की मेडिकल रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि तीन जून से सात जुलाई के बीच मुख्यमंत्री का शुगर लेवल 34 बार गिरा है। एक प्रेस वार्ता में संजय सिंह से मंगलवार की रैली में शामिल होने वाले दलों के बारे में बताते हुए कहा कि, 'कांग्रेस, सपा, TMC, DMK, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI), झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार), शिवसेना (उद्धव बालासाहब ठाकरे) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन ये साड़ी पार्टियां केजरीवाल के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाएंगी।' उन्होंने कहा कि हम दो-तीन और दलों के साथ चर्चा कर रहे हैं। उन्होंने कहा था कि जंतर-मंतर में होने वाली रैली में शामिल होने वाले नेताओं का नाम मंगलवार को मालूम चलेगा। बता दें कि दिल्ली के कथित शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामलेमें ईडी ने 21 मार्च को केजरीवाल को अरेस्ट किया था। मजे की बात ये है कि, शराब घोटाले में केजरीवाल की लिखित शिकायत कांग्रेस ने ही की थी, लेकिन तब उनका गठबंधन नहीं था, अब दोनों INDIA ब्लॉक के सदस्य हैं, तो जाहिर है कांग्रेस केजरीवाल के पीछे खड़े होकर केंद्र पर निशाना साधेगी। वहीं, दिल्ली उच्च न्यायालय ने कथित शराब घोटाले से जुड़े CBI मामले में AAP सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की नियमित जमानत याचिका पर सोमवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। CBI ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए केजरीवाल को मामले का सूत्रधार करार दिया था। CBI ने कहा था कि अगर उन्हें रिहा किया जाता है तो वह गवाहों के प्रभावित कर सकते हैं। जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की बेंच ने दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार करने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। जांच एजेंसी की तरफ से पेश अधिवक्ता डीपी सिंह ने कहा 'उनकी (केजरीवाल) गिरफ्तारी के बिना जांच पूरी नहीं की जा सकती थी। हमने एक महीने के भीतर आरोप पत्र दाखिल कर दिया है। उनकी गिरफ्तारी के बाद हमें सबूत मिले। उनकी अपनी पार्टी के कार्यकर्ता खुद जवाब देने के लिए आगे आए।' इससे पहले दिन में सीबीआई ने मुख्यमंत्री और आप विधायक दुर्गेश पाठक समेत पांच अन्य के खिलाफ निचली अदालत में अपना अंतिम चार्जशीट दाखिल की थी, जिसमे केजरीवाल को घोटाले का किंगपिन बताया गया था।
बेटे की विरासत सौंपने की तैयारी में एमके स्टालिन, उदयनिधि को बना सकते हैं तमिलनाडु का डिप्टी सीएम

 एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली तमिलनाडु सरकार आगामी कैबिनेट विस्तार में मौजूदा खेल मंत्री उदयनिधि स्टालिन को उपमुख्यमंत्री के पद पर पदोन्नत करने पर विचार कर रही है। यह कदम उदयनिधि के सनातन धर्म पर दिए गए विवादित बयान के बाद उठाया गया है। सत्तारूढ़ DMK के कई वरिष्ठ नेताओं का मानना ​​है कि उदयनिधि को उपमुख्यमंत्री बनाना 2026 के विधानसभा चुनावों के लिए रणनीतिक है। 

वहीं, यह फैसला एमके स्टालिन की अपनी राजनीतिक यात्रा को दर्शाता है, क्योंकि उनके पिता एम करुणानिधि ने भी पहले उन्हें उपमुख्यमंत्री नियुक्त किया था। आज एमके स्टालिन पार्टी प्रमुख और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री दोनों हैं। उदयनिधि स्टालिन, जो वर्तमान में चेपक-तिरुवल्लिकेनी से विधायक हैं और युवा कल्याण और खेल विकास मामलों के मंत्री हैं, और अधिक जिम्मेदारियां संभालने के लिए तैयार हैं। मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि इस पदोन्नति का उद्देश्य एमके स्टालिन का कार्यभार कम करना है। हालांकि, अंतिम निर्णय का अधिकार पूरी तरह से एमके स्टालिन के पास है। यह भी बताया गया है कि उदयनिधि ने खुद अपनी मां से प्रभावित होकर उपमुख्यमंत्री पद की इच्छा व्यक्त की है, जो नहीं चाहती थीं कि उनके बेटे को करुणानिधि की सरकार में एमके स्टालिन के समान देरी का सामना करना पड़े। 

बता दें कि, उदयनिधि ने तमिल सिनेमा में सफल करियर के बाद 2019 में राजनीति में प्रवेश किया था। फैशन, प्रकाशन और फिल्म निर्माण में उनकी रुचि है और वे रेड जायंट्स नामक एक प्रोडक्शन कंपनी के मालिक हैं। उनकी पहली प्रमुख भूमिका 2012 में फिल्म "आधावन" में थी, जिसके लिए उन्हें फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ पुरुष अभिनेता पदार्पण पुरस्कार मिला। उनकी सबसे हालिया फिल्म "मामन" (2023) को आलोचकों की प्रशंसा मिली। उदयनिधि ने पिछले साल सनातन धर्म पर टिप्पणी करके विवाद खड़ा कर दिया था। जब उदयनिधि ने सनातन धर्म की तुलना डेंगू, मलेरिया और कोरोनावायरस जैसी बीमारियों से करते हुए कहा था कि इनका विरोध करने के बजाय इनका समूल नाश करने की आवश्यकता है। उनकी इन टिप्पणियों की भाजपा ने काफी आलोचना की थी, जबकि, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने उन्हें मौन समर्थन दिया था।

7 राज्यों में हुए उपचुनाव में “कुम्हलाया” कमल, आने वाले चुनावों से पहले आत्ममंथन की जरूरत

#the_results_of_by_elections_on_13_seats_in_7_states

लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद भारत की राजनीति करवट लेने लगी है। एनडीए के 293 सांसदों के साथ तीसरी बार सरकार बनाने के बाद भी बीजेपी कॉन्फिडेंट नजर नहीं आ रही है, जबकि 234 सीटें जीतने वाले विपक्ष के हौसले बुलंद हैं। हाल ही में संपन्न विधानसभा उपचुनाव के परिणाम सकी तस्दीक कर रहा है। देश के सात राज्यों की 13 विधानसभा सीटों पर 10 जुलाई को हुए उपचुनाव के नतीजे में इंडिया गठबंधन ने 10 सीटों पर जीत हासिल की है जबकि, बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के खाते में केवल दो सीटें आई हैं। वहीं, एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है। इंडिया गठबंधन में जहां कांग्रेस ने चार सीटों पर जीत का परचम फहराया है, वहीं तृणमूल कांग्रेस ने चार, डीएमके और आम आदमी पार्टी ने एक-एक सीट पर जीत हासिल की है।

लोकसभा के बाद हुए पहले चुनाव पर देश की निगाहें लगी थी। राजनीतिक विश्लेषकों से लेकर आम लोग भी इन चुनावों को बीजेपी की परीक्षा मान रहे थे। विधानसभा उपचुनाव में पंजाब की एक, हिमाचल प्रदेश की तीन, उत्तराखंड की दो, पश्चिम बंगाल की चार, मध्य प्रदेश, बिहार और तमिलनाडु की एक-एक सीट पर मतदान हुआ था। इन चुनाव में इंडिया’ गठबंधन में शामिल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक ने अपने उम्मीदवार उतारे थे। चुनाव नतीजों में बीजेपी पर इंडिया गठबंधन भारी पड़ा। बीजेपी के लिए हिमाचल में बीजेपी हमीरपुर सीट जीतने में कामयाब रही। वहीं, तमिलनाडु में विक्रवांडी विधानसभा सीट पर डीएमके उम्मीदवार अन्नियूर शिवा ने जीत हासिल की।

सबसे पहले बात मध्य प्रदेश की कर लेते हैं। जहां से बीजेपी के लिए एक शुभ समाचार आया है क्योंकि उसने कांग्रेस के गढ़ रहे छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में शामिल अमरवाड़ा सीट जीत ली है, जो कभी कांग्रेस के पास हुआ करती थी। बीजेपी को सबसे बड़ा झटका पश्चिम बंगाल में लगा है। जहां 4 सीटों पर हुए उप चुनाव में ममता बनर्जी की टीएमसी ने क्लीन स्वीप कर के बीजेपी को क्लीन बोल्ड कर दिया है। इनमें से तीन सीट ऐसी थी जो पहले बीजेपी के पास थीं। पश्चिम बंगाल में 2021 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 3 से 77 सीट का सफर तय किया था, लेकिन चार सीटों के इस उपचुनाव में उसके लिए संकेत अच्छे नहीं है। उपचुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि बंगाल में टीएमसी की राजनीतिक दीवारों का जोड़ और मजबूत हो गया है। 

सबसे बड़ा खेल बिहार में हुआ हैं। जहां जेडीयू और आरजेडी देखते रह गए और बाजी निर्दलीय उम्मीदवार ने मार ली। 13 में ये इकलौती ऐसी सीट है जहां निर्दलीय की सत्ता आई है। पंजाब में 1 सीट पर हुए उपचुनाव में झाड़ू का जादू चला गया और जालंधर पश्चिम विधानसभा सीट पर आम आदमी पार्टी को बड़ी जीत मिली है। कांग्रेस ने पहाड़ों में कमाल कर लिया क्योंकि हिमाचल प्रदेश की 3 सीट में उसे दो सीट पर जीत मिली है जबकि बीजेपी को एक जीत से संतोष करना पड़ा। लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड में क्लीन स्वीप करने वाली बीजेपी को उपचुनाव में कांग्रेस ने खाली हाथ भेजा है और दोनों सीटों पर जीत हासिल की है। इसके अलावा तमिलनाडु की विक्रवंदी विधानसभा सीट इंडिया गठबंधन की DMK के पास गई है।

अब सबसे बड़ी बात ये है कि आखिर बीजेपी को हुए नुकसान की वजह क्या है? दरअसल, 10 साल सत्ता में रहने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की छवि को धक्का लगा है। नीट एग्जाम और यूजीसी जैसे एग्जाम में धांधली के आरोप और बारिश में टपकते एयरपोर्ट जैसे मसलों पर सवाल खड़े हो रहे हैं। 10 साल सत्ता में रहने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की छवि करप्शन के मामले बेदाग रही। हालांकि, पेरपर लीक जैसे मुद्दों ने सरकार को छवि का खासा नुकसान पहुंचाया है। 

2014 के दौर को याद कीजिए। जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने थे, तब देश की जनता करप्शन और घोटालों की खबरों से परेशान थी। मनमोहन सिंह ऐसे प्रधानमंत्री के तौर प्रचारित हुए, जो कांग्रेस अध्यक्ष के मातहत के तौर पर काम करते हैं। विपक्ष ने बड़े घोटालों पर उनकी चुप्पी पर भी सवाल उठाए। कांग्रेस भी आरोपों का सटीक जवाब देने में सक्षम नहीं दिख रही थी। गुजरात में ब्रांड बन चुके नरेंद्र मोदी ने इस माहौल को भुनाया। बदलाव की इंतजार कर रही जनता ने समर्थन दिया और बीजेपी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। 

2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक और सर्जिकल स्ट्राइक ने पीएम मोदी की साख बढ़ाई। जनता ने उन्हें दूसरी बार सरकार बनाने का मौका दिया। मोदी 2.0 में धारा-370 हटाने और सीएए लागू करने जैसे बुलंद फैसले भी लिए। कोरोना के दौर में भी जनता नरेंद्र मोदी के साथ खड़ी रही। उन्होंने जैसा कहा, लोगों ने वैसा ही किया। यह उनकी लोकप्रियता का चरम था, जिसे देखकर विपक्ष समेत पूरी दुनिया दंग रह गई। किसान आंदोलन और कोरोना से हुई मौतों के बाद भी यूपी में बीजेपी की वापसी हुई। पिछले साल राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी भारतीय जनता पार्टी की बनी।

2024 के लोकसभा चुनाव में हालात बदल गए। बेहतर चुनाव प्रबंधन और अग्रेसिव कैंपेन के बाद भी बीजेपी पूर्ण बहुमत के 273 के आंकड़े तक नहीं पहुंच सकी। अब महंगाई, बेरोजगारी, पेपर लीक जैसे मुद्दों की छाया में हुए उपचुनाव के नतीजों ने भाजपा को कड़े संदेश दिए हैं। नतीजों ने कई संदेश दिए हैं। आने वाले चुनावों में भाजपा को संगठनात्मक खामियों को समय रहते दूर करना होगा। कार्यकर्ताओं में पुराना जोश भरना होगा। जनता से जुड़े मुद्दों पर त्वरित एक्शन लेकर साधना होगा।

हमारे मछुआरों को श्रीलंका से छुड़ाने में मदद करें..', सीएम स्टालिन ने विदेश मंत्री जयशंकर को लिखा पत्र

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तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और DMK प्रमुख एमके स्टालिन ने केंद्रीय विदेश मंत्री एस जयशंकर को पत्र लिखकर उनसे श्रीलंकाई नौसेना द्वारा गिरफ्तार किए गए भारतीय मछुआरों की रिहाई के लिए मदद मांगी है। मुख्यमंत्री का यह पत्र ऐसे वक़्त में आया है जब गुरुवार को श्रीलंकाई नौसेना ने तमिलनाडु के 13 मछुआरों को पकड़ लिया और उनकी तीन नावें भी जब्त कर लीं।

सीएम स्टालिन ने जयशंकर को लिखे पत्र में कहा कि, "अभी तक श्रीलंकाई अधिकारियों ने 173 मछली पकड़ने वाली नौकाओं और 80 मछुआरों को हिरासत में लिया है। इन हिरासतों से उनकी आजीविका पर गंभीर असर पड़ा है और उनके परिवारों को भारी परेशानी हुई है।मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में कहा कि, "इसलिए, मैं अनुरोध करता हूं कि विदेश मंत्रालय इस मामले को तत्काल सुलझाने के लिए एक मजबूत और समन्वित प्रयास करे। मैं यह भी अनुरोध करता हूं कि सभी मछुआरों और उनकी मछली पकड़ने वाली नौकाओं की तत्काल रिहाई सुनिश्चित करने के लिए उचित राजनयिक चैनल सक्रिय किए जाएं।"

पिछले महीने की शुरूआत में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने इस मुद्दे पर 19, 24 और 25 जून को जयशंकर को तीन पत्र लिखे थे। विदेश मंत्री ने उन्हें बताया था कि कोलंबो स्थित भारतीय उच्चायोग और जाफना स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास इस मुद्दे को श्रीलंकाई अधिकारियों के समक्ष तेजी से और लगातार उठा रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा पार करने तथा श्रीलंकाई जलक्षेत्र में मछली पकड़ने के आरोप में भारतीय मछुआरों को श्रीलंकाई नौसेना द्वारा गिरफ्तार किये जाने की घटनाएं नियमित रूप से होती रही हैं। बता दें कि, इसी वर्ष मार्च में भी ऐसी ही एक घटना घटी थी, जब श्रीलंकाई नौसेना ने अपने जलक्षेत्र में अवैध शिकार करने के आरोप में तमिलनाडु के 22 मछुआरों को गिरफ्तार कर लिया था और उनके सामान जब्त कर लिए थे।

राहुल गांधी के बचाव में उतरे ज्योतिर्लिंग मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद, बोले- इन लोगों को दंड मिलना चाहिए...

लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी द्वारा अपने भाषण विवाद खड़ा करने के कुछ दिनों बाद, ज्योतिर्लिंग मठ के 46वें शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने रविवार को कांग्रेस नेता की टिप्पणियों का समर्थन किया है। दरअसल, संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस के दौरान राहुल गांधी ने कहा था कि, जो लोग हिंसा करते हैं, वही पूरे समय हिंसा, हिंसा, नफरत, असत्य की बातें करते हैं। 

इसका जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि राहुल गांधी ने "पूरे हिंदू समुदाय को हिंसक" कहा है, ये बहुत गंभीर बात है। अब विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि राहुल गांधी का भाषण हिंदू धर्म के खिलाफ नहीं था। उन्होंने कहा कि, हमने राहुल गांधी का पूरा भाषण सुना। वह साफ तौर पर कह रहे हैं कि हिंदू धर्म में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है। शंकराचार्य ने कहा कि गांधीजी के बयान का केवल एक हिस्सा फैलाना सही नहीं है और इसके लिए जिम्मेदार लोगों को दंडित किया जाना चाहिए।

बता दें कि, राहुल की टिप्पणी से लोकसभा में हंगामा मच गया था, जिसके कारण स्पीकर ने उनके भाषण के कुछ हिस्सों को रिकॉर्ड से हटा दिया था। राहुल गांधी सत्र शुरू होने वाले दिन से ही संसद में NEET पर चर्चा की मांग कर उन्हें थे, उन्हें लोकसभा स्पीकर ने कहा भी था कि आपको मौका मिलेगा, पूरी डिटेल में बोलिएगा। पहले राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव हो जाने दीजिए, उसी दौरान आप NEET पर भी बोल सकते हैं। हालाँकि, इसको लेकर विपक्ष ने जमकर हंगामा किया था और 2 दिनों तक धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा नहीं हो पाई थी / फिर जब राहुल गांधी के बोलने का अवसर आया, तो वे भगवान शिव, ईसा मसीह, श्री गुरु नानक और इस्लाम में दुआ में हाथ उठाती तस्वीर लेकर संसद में पहुँच गए। NEET पर तो उन्होंने कम बोला, लेकिन विवाद मचाने वाली सामग्री ज्यादा बोल दी। 

ऐसा नहीं है कि, केवल हिन्दू हिंसक वाले बयान पर ही कोई विवाद हुआ हो, उस पर तो हिन्दू धर्मगुरु शंकराचार्य ने राहुल गांधी को क्लीन चिट भी दे दी है। किन्तु इस्लाम और सिख धर्म में अभय मुद्रा बताने वाले बयान पर भी राहुल गांधी की निंदा हुई है। इस्लाम और सिख धर्म के धर्माचार्यों ने कहा है कि, राहुल को बिना ज्ञान के नहीं बोलना चाहिए, हमारे धर्म में कोई अभय मुद्रा नहीं है। ऑल इंडिया सूफी सज्जादा नशीन काउंसिल के चेयरमैन सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहा है कि संसद में बोलते हुए राहुल गांधी ने कहा कि इस्लाम में ऐसा कुछ नहीं है, यहाँ मूर्ति पूजा नहीं होती है और न ही किसी तरह की मुद्रा होती है। इस्लाम में मुद्रा हराम है। वहीं, शीर्ष सिख संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (SGPC) ने भी कहा कि, पवित्र गुरबानी और गुरुओं की शिक्षाओं को पूर्ण ज्ञान के बिना राजनीतिक बहस का हिस्सा नहीं बनाया जाना चाहिए। गुरु साहिब ने ऐसी किसी मुद्रा या आसन को मान्यता नहीं दी है। 

इस्लाम और सिख धर्म के गुरुओं ने तो राहुल गांधी को फटकार लगा दी, लेकिन शंकराचार्य का कहना है कि, राहुल के बयान में हिन्दू विरोधी कुछ भी नहीं। ये वही शंकराचार्य हैं, जिन्होंने राम मंदिर के उद्घाटन पर भी सवाल उठाए थे। दरअसल, राहुल गांधी ने कहा था कि, ''जो लोग खुद को हिंदू कहते हैं, वे चौबीसों घंटे नफरत, हिंसा और असत्य में लिप्त रहते हैं।'' जिसके बाद राहुल गांधी ने फ़ौरन अपना बयान बदलते हुए कहा था कि, वे भाजपा-RSS कि बात कर रहे हैं, जो अपने आप को हिन्दू कहते हैं। हालाँकि, इससे पहले भी राहुल गांधी कई हिन्दू विरोधी बयान दे चुके हैं। जैसे एक बयान में उन्होंने कहा था कि, ''जो लोग मंदिर जाते हैं, वही बाहर आकर लड़की छेड़ते हैं।'' अब मंदिर केवल भाजपा या RSS के हिन्दू तो जाते नहीं। फिर एक बयान में उन्होंने कहा था कि, ''हमें इन हिन्दुत्ववादियों को एक बार फिर देश से बाहर निकालना है।'' अब कांग्रेस की साथी शिवसेना (उद्धव गुट) भी कहती है कि हमारा हिंदुत्व असली है, तो राहुल गांधी किन हिन्दुत्ववादियों की बात कर रहे थे ?

एक बार राहुल गांधी ने हिन्दू-हिंदुत्व को अलग अलग बता दिया था, एक बार ये भी कहा था कि, मैं किसी भी तरह के हिंदुत्व में यकीन नहीं करता। उनकी ही साथी पार्टी DMK के नेता सनातन के समूल नाश की बातें बार बार दोहरा रहे थे, कुछ कांग्रेस नेताओं ने भी उदयनिधि स्टालिन का समर्थन किया था, जिस पर राहुल मौन रहे थे। तो क्या सारे सनातन धर्म वाले भी भाजपा-RSS के लोग हैं ? आज राहुल गांधी ने इस्लाम और सिख समुदाय को लेकर एक भ्रामक बयान दिया, जिसके बाद उन्हें इन दोनों समुदायों से फटकार मिल गई, अब उम्मीद है कि वे इन दोनों समुदायों पर सोच समझकर बोलेंगे। हाँ, हिन्दुओं पर वे बोल सकते हैं, बार-बार लगातार, क्योंकि, भारत में हिन्दू नहीं रहते, यहाँ रहते हैं, यादव, जाट, दलित, ठाकुर, ब्राह्मण, कुर्मी, आदिवासी, बनिए और भी बहुत सारे लोग, लेकिन हिन्दू नहीं। और फिर बचे-कूचे अगर कुछ लोग विरोध करें भी, तो उन्हें समझाने के लिए शंकराचार्य तो हैं ही।

While the real estate moguls enjoy benefits & unprecedented privileges in this DMK regime, the houses of common men are razed down as illegal co
While the real estate moguls enjoy benefits & unprecedented privileges in this DMK regime, the houses of common men are razed down as illegal construction. A youth in Gummidipoondi near Chennai tried to self-immolate in his attempt to stop the government officials from demolishing his house built over a patta land. And the Housing Minister Thiru Muthusamy, who is also the Prohibition Minister of the State, is busy introducing 90ml bottles in TASMAC before Diwali. Speaks volumes on the priorities of this DMK Govt in TN.

While the real estate moguls enjoy benefits & unprecedented privileges in this DMK regime, the houses of common men are razed down as illegal construction. A youth in Gummidipoondi near Chennai trie

मद्रास उच्च न्यायालय ने वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण करने वालों को बेदखल करने की अनुमति देने वाले तमिलनाडु सरकार के कानून को किया असंवैधानिक घोषि

मद्रास उच्च न्यायालय ने वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण करने वालों को बेदखल करने की अनुमति देने वाले तमिलनाडु सरकार के कानून को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। अदालत के फैसले से वक्फ भूमि पर अवैध कब्जे को संबोधित करने के राज्य के प्रयासों को झटका लगा है। 2010 में तमिलनाडु (DMK) सरकार द्वारा अधिनियमित विवादास्पद कानून ने वक्फ संपत्तियों को 1976 के तमिलनाडु सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जेदारों की बेदखली) अधिनियम के दायरे में लाने के लिए 1995 के वक्फ अधिनियम में संशोधन किया। इस संशोधन ने वक्फ को सशक्त बनाया बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) अतिक्रमणकारियों को हटाने का आदेश देंगे।

मुख्य न्यायाधीश वी गंगापुरवाला और न्यायमूर्ति डी भरत चक्रवर्ती की पीठ ने 24 अप्रैल को 2010 के संशोधन को असंवैधानिक घोषित कर दिया। न्यायाधीशों ने माना कि वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण करने वालों को केवल केंद्रीय अधिनियम में 2013 के संशोधन के अनुसार स्थापित वक्फ न्यायाधिकरणों द्वारा ही बेदखल किया जा सकता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि 1995 का वक्फ अधिनियम एक केंद्रीय कानून है, और इस प्रकार, राज्य कानून इसे खत्म नहीं कर सकते। अदालत ने उन तर्कों को खारिज कर दिया कि राज्य और केंद्रीय कानून दोनों एक साथ अस्तित्व में रह सकते हैं, राज्य की इस दलील को खारिज कर दिया कि अतिक्रमणकारियों के खिलाफ राज्य कानून लागू करना उचित था। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि 1995 के वक्फ अधिनियम के मूल प्रावधान अतिक्रमण के मुद्दों को पर्याप्त रूप से संबोधित करने के लिए अपर्याप्त थे।

फैसला लिखते हुए, न्यायमूर्ति भरत चक्रवर्ती ने कहा कि, “वक्फ अधिनियम 1995 के मूल प्रावधान, वक्फ संपत्तियों के अतिक्रमण या अवैध कब्जे से निपटने के लिए पर्याप्त कड़े नहीं थे। इसलिए, सच्चर समिति ने सिफारिश की कि सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जेदारों की बेदखली) अधिनियम 1971 को वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर भी लागू किया जाना चाहिए, क्योंकि वे भी जनता के लाभ के लिए थे। हालाँकि तमिलनाडु सरकार 2010 में एक संशोधन लेकर आई, लेकिन अन्य राज्यों ने ऐसा नहीं किया। इसके बाद, अतिक्रमण हटाने में देश भर में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए संसद ने 2013 में वक्फ अधिनियम में संशोधन किया। संशोधन में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने वालों को केवल केंद्र सरकार के तहत निर्धारित प्रक्रियाओं के अनुसार ही बेदखल किया जा सकता है।

हाई कोर्ट ने कहा कि, “संसदीय कानून का इरादा वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है, जिसके लिए कानून की एकरूपता और पूरे देश में इसके आवेदन की निरंतरता की आवश्यकता है। इस प्रकार केंद्रीय अधिनियम को इस विषय पर एक विस्तृत संहिता के रूप में बनाया गया है। इसलिए, राज्य अधिनियम 2013 में संशोधित वक्फ अधिनियम 1995 के प्रतिकूल है। न्यायाधीश वरिष्ठ वकील वी राघवाचारी और एसआर रघुनाथन के नेतृत्व में अधिवक्ताओं की एक सेना के साथ सहमत हुए, कि 2010 का संशोधन संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची III (समवर्ती सूची) के तहत शक्ति का प्रयोग करेगा, न कि सूची II (राज्य सूची) के तहत। इसमें कहा गया है, "इसलिए, केंद्रीय कानून के प्रति इसकी प्रतिकूलता को देखते हुए इसके लिए राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त की गई है।"

खंडपीठ ने कहा कि चूंकि केंद्रीय कानून में 2013 का संशोधन राज्य कानून में 2010 के संशोधन के बाद था, इसलिए यह माना जाना चाहिए कि संसद को राज्य संशोधन के बारे में अच्छी तरह से पता था, फिर भी, उसने जानबूझकर 1995 के वक्फ अधिनियम में संशोधन किया था। तमिलनाडु में वक्फ बोर्ड हिंदू और मंदिर की जमीन पर मालिकाना हक का दावा करता रहा है। 2022 में, तिरुचेंदुरई गांव के ग्रामीणों को तब झटका लगा, जब एक जमीन मालिक, जो अपनी जमीन बेचने की कोशिश कर रहा था, को सूचित किया गया कि उसे वक्फ बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) प्राप्त करना होगा।

अधिकारी के मुताबिक, तिरुचेंदुरई गांव की सारी जमीन अब वक्फ बोर्ड की है और अगर कोई जमीन बेचना चाहता है, तो उसे चेन्नई में बोर्ड से एनओसी लेनी होगी। गौर करने वाली बात तो ये है कि, उस गाँव में एक 1500 वर्ष पुराना मंदिर भी है, जो इस्लाम के संस्थापक मोहम्मद पैगम्बर (700 ईस्वी) से भी पहले का है, लेकिन वक़्फ़ बोर्ड ने उसे भी वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया है। कांग्रेस अपने घोषणापत्र में मठ और मंदिरों की जमीनों को मुसलमानों को फिर से बांटना चाहती है, लेकिन वक्फ और चर्च की संपत्तियों की बात नहीं करती है, क्योंकि वो पर्सनल लॉ की आड़ में बच जाएंगे। दरअसल, कांग्रेस ने घोषणापत्र में ये भी वादा किया है कि, वो पर्सनल लॉ को यथावत रखेगी, यानि उनकी संपत्ति और अधिकार की प्रक्रिया शरिया के हिसाब से ही चलेगी। बाकियों की संपत्ति का सर्वे भी होगा और बंटवारा भी।

क्या बीजेपी के 'मिशन साउथ ' से उन्हें द्रविड़ गढ़ तमिलनाडु में प्रवेश करने में मदद मिलेगी

आजतक तमिलनाडु ने ऐसा मुकाबला नहीं देखा है, लकिन शुक्रवार को जब 62.3 मिलियन मतदाता राज्य की 39 लोकसभा सीटों के लिए 950 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे तब इस मुकाबले का ज़ोर पता चलेगा । लोगों के अनुसार द्रविड़ मुनेत्र कज़गम (डीएमके), पिछली बार की तरह 38 सीटों पर गठबंधन सरकार के साथ अपनी जीत दायर करेगी। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपने पूर्व सहयोगी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) को दूसरे स्थान पर पहुंचाने के लिए एक गहन, मुखर और ऊर्जावान अभियान को पर्याप्त वोटों में बदल सकती है, और यदि यह तय है कि क्या ये वोट सीटों में तब्दील होंगे।

 विश्लेषकों का मानना है कि मुकाबले से डीएमके को फायदा हो सकता है। “वोटों का बंटवारा डीएमके के लिए फायदेमंद साबित होगा। द्रमुक विरोधी वोट पूरी तरह से अन्नाद्रमुक को नहीं जाएंगे और अन्नाद्रमुक विरोधी वोट पूरी तरह से द्रमुक को नहीं जाएंगे क्योंकि भाजपा का तीसरा विकल्प मौजूद है और भाजपा विरोधी वोट द्रमुक और अन्नाद्रमुक के बीच विभाजित हो जाएंगे, ”राजनीतिक विश्लेषक मालन नारायणन ने कहा। पोल्स के मेगा ओपिनियन पोल के अनुसार, दक्षिणी राज्य में इंडिया ब्लॉक 51% वोट शेयर के साथ 39 लोकसभा सीटों में से 30 सीटें जीतेगा, जबकि बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए 13% वोट शेयर के साथ पांच सीटें जीतेगा।

2019 में, DMK ने 33.52% वोट जीते; अन्नाद्रमुक, 19.39%; और भाजपा, 3.66%। लेकिन संख्याएँ भाजपा के लिए प्रतिनिधि नहीं हैं क्योंकि वह राज्य में अन्नाद्रमुक के नेतृत्व वाले गठबंधन का हिस्सा थी। इस बार बीजेपी ने कहा है कि वह इस हिस्सेदारी को काफी बढ़ाना चाहती है। कोयंबटूर से चुनाव लड़ रहे राज्य भाजपा अध्यक्ष के अन्नामलाई ने हाल ही में कहा, "भाजपा अपने दम पर 20% और अपने सहयोगियों के साथ लगभग 30% मतदान करेगी।"

1967 से तमिलनाडु द्रमुक और अन्नाद्रमुक के बीच झूलता रहा है। इस चुनाव को भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन ने दिलचस्प बना दिया है जिसमें (टीटीवी दिनाकरन) की अम्मा मक्कल मुनेत्र कड़गम (अन्नाद्रमुक से अलग हुई पार्टी), पट्टाली मक्कल काची और तमिल मनीला कांग्रेस, इंडिया जनानायगा काची और पुथिया नीधि काची शामिल हैं।

निश्चित रूप से, तमिल राष्ट्रवादी एस सीमान के नेतृत्व वाली नाम तमिझार काची (एनटीके), जो 2021 के विधानसभा चुनावों में डीएमके और एआईएडीएमके के बाद लगभग 7% वोट शेयर के साथ तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, भी मैदान में है।

अपने घोषणापत्र में, DMK ने राज्यपाल की नियुक्ति में मुख्यमंत्री की भूमिका और बाद की शक्तियों को प्रतिबंधित करने और राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 और नागरिकता संशोधन अधिनियम को रद्द करने की बात कही है। मुख्यमंत्री९(एमके स्टालिन) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर केंद्रीय धन जारी न करके और राज्यपालों के हस्तक्षेप के माध्यम से गैर-भाजपा शासित राज्यों को नियंत्रित करने का आरोप लगाया है। भाजपा ने राज्य में अपने विकास और हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाया है, हिंदी पट्टी में कल्याण के पहलू को कम कर दिया है, शायद तमिलनाडु के स्वस्थ सामाजिक संकेत के कारण इसने भ्रष्टाचार, वंशवाद शासन और सनातन धर्म के खिलाफ इसके कुछ नेताओं की टिप्पणियों के लिए द्रमुक पर भी निशाना साधा है।

प्रमुख विपक्षी दल अन्नाद्रमुक के लिए, 2022 में एडप्पादी पलानीस्वामी के पार्टी महासचिव के रूप में उभरने, ओ पनीरसेल्वम (ओपीएस) को बाहर करने के साथ ही सितंबर 2023 में एनडीए से अलग होने के बाद यह पहला बड़ा चुनाव है। दिलचस्प बात यह है कि सभी दल जो अन्नाद्रमुक का हिस्सा थे 2019 में देसिया मुरपोक्कू द्रविड़ कड़गम (डीएमडीके) के अलावा अन्य गठबंधन बीजेपी में शामिल हो गए हैं।  

अन्नाद्रमुक ने ज्यादातर मध्यम स्तर के पदाधिकारियों को बिना किसी वरिष्ठ और भारी वजन वाले उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा है। राजनीतिक विश्लेषक रामू मणिवन्नन ने कहा, “कैडरों को मैदान में उतारकर, वे उन तरीकों पर वापस चले गए हैं, जिनमें (एआईएडीएमके) पहले एमजीआर और (उनकी उत्तराधिकारी) जे.जयललिता के तहत काम करती थी।” "अन्नाद्रमुक खुद को एक कैडर आधारित पार्टी मानती है और कोई भारी-भरकम उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ रहा है, यह कार्यकर्ताओं को प्रेरित करने का एक तरीका है।" 

तमिलनाडु जो प्रधानमंत्री का पक्ष ले रहा है,'' केएस नरेंद्रन, राज्य उपाध्यक्ष, भाजपा ने कहा। “2019 तक, डीएमके ने मोदी विरोधी मूड बनाया था, लेकिन अब, लोगों को एहसास हो गया है कि एमजीआर के बाद, (मोदी) गरीबों के नेता हैं।” (एआईएडीएमके) के आयोजन सचिव डी जयकुमार ने कहा कि यह भाजपा का भ्रम है कि (एआईएडीएमके) कमजोर है। जयकुमार ने कहा, ''2021 के विधानसभा चुनाव में डीएमके और एआईएडीएमके के बीच अंतर केवल 2.5% था।'' “लोग पहले से ही तीन साल के डीएमके शासन से तंग आ चुके हैं। वे अन्नाद्रमुक को वापस चाहते हैं।

डीएमके सांसद टीकेएस एलंगोवन ने राज्य में पार्टी के तीन साल के शासन की तुलना भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के 10 साल से करते हुए कहा, "सत्ता विरोधी लहर हमारे खिलाफ नहीं बल्कि मोदी के खिलाफ है।" "मोदी द्वारा किए गए झूठे वादों की कीमत उन्हें चुकानी पड़ेगी।" राजनीतिक विश्लेषक मालन नारायणन ने कहा कि पहली बार तमिलनाडु में ऐसा मुकाबला देखने को मिल रहा है और उन्होंने कहा कि विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में अंतर कम हो सकता है।

शुक्रवार को मतदान से पहले, तमिलनाडु के मुख्य निर्वाचन अधिकारी सत्यब्रत साहू ने कहा कि राज्य के 68,321 मतदान केंद्रों में से 44,800 पर वेबकैम के जरिए निगरानी की जाएगी। चुनाव अधिकारियों ने 17 अप्रैल को अभियान समाप्त होने तक ₹1,300 करोड़ से अधिक की नकदी, शराब, ड्रग्स और मुफ्त चीजें जब्त की हैं।