केजरीवाल और सिसोदिया की हार पर कुमार विश्वास का बयान, कहा- आज न्याय हुआ है

#delhi_assembly_election_kumar_vishwas_reaction

दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे एग्जिट पोल के साथ जाते हुए दिखाई दे रहे हैं। अभी तक के रुझानों के मुताबिक, दिल्ली में बीजेपी ने आम आदमी पार्टी को जोरदार पटकनी दी है। सबसे बड़ी बात की आप के संयोजक को ही मुंह की खानी पड़ी है। अरविंद केजरीवाल चुनाव हार गए हैं।आम आदमी पार्टी की करारी हार पर कुमार विश्वास ने खुशी जाहिर की है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि भारतीय जनता पार्टी दिल्ली के लोगों के लिए काम करेगी। अरविंद केजरीवाल की हार को लेकर उन्होंने यहां तक कह दिया कि आज न्याय हुआ है।

कुमार विश्वास ने कहा "मैं भाजपा को जीत के लिए बधाई देता हूं और उम्मीद करता हूं कि वे दिल्ली के लोगों के लिए काम करेंगे। मुझे ऐसे व्यक्ति से कोई सहानुभूति नहीं है जिसने आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं के सपनों को कुचल दिया। दिल्ली अब उससे मुक्त हो चुकी है। उसने उन सपनों का इस्तेमाल अपनी निजी महत्वाकांक्षाओं के लिए किया। आज न्याय हुआ है। जब हमें जंगपुरा से मनीष सिसोदिया के हारने की खबर मिली तो मेरी पत्नी जो गैर-राजनीतिक हैं, रो पड़ीं।"

विश्वास ने आगे कहा, आम आदमी पार्टी के समस्त कार्यकर्ताओं को कहता हूं कि आपने जिकिसी भी लोग लालच में सब कुछ जानते हुए एक ऐसे व्यक्ति के समर्थन में काम किया जिसने अपने मित्रों की पीठ में छुरा घोंपा और लोगों को धोखा दिया। अपने साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने वाली महिलाओं को पिटवाया।अपनी निजी सुख और साधन के लिए जनता का पैसा खर्च किया। अब उससे आशा लगाने छोड़े. अब बाहर निकले अपना अपना जीवन देखें।

वहीं, कुमार विश्वास ने सोशल मीडिया एक्स पर भी तंज भरा ट्वीट किया है। जिसमें वीडियो के साथ उन्होंने लिखा है कि अहंकार ईश्वर का भोजन है। खुद को इतना शक्तिशाली मत समझो कि जिन्होंने हमें सिद्धियां दी हैं, उन्हीं को आप आंखें दिखाने लगो। याद रखिएगा कि आपकी सफलता के पीछे कृष्ण जैसे ऐसे असंख्य लोग हैं, जिनकी चुपचाप और अदृश्य शुभकामनाओं के कारण आप इस विजय रथ पर सवार हुए हैं। जब भी आपको यह लगने लगे कि आपने ये ऐतिहासिक सफलता आपने अपनी शक्ति के दम पर पा ली है तो आप बस उन लोगों के बारे में सोचिए, जिनके सहयोग के बिना आपकी ये यात्रा आसान नहीं होती।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप का बेहद खराब प्रदर्शन, इस बार क्यों नहीं चला केजरीवाल का जादू?

#delhiassemblyelectionresultreasonsaamadmipartybad_performence

आज दिल्ली विधानसभा चुनाव के घोषित हो रहे हैं। वोटों की गिनती जारी है।इन नतीजों में आम आदमी पार्टी को बड़ा झटका लग रहा है। भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में सरकार बनाते हुए दिख रही है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी बहुमत के आंकड़े को पार कर गई है। बीजेपी ने 36 के जादुई आंकड़े को पार करते हुए 41 सीटों पर बढ़त बना ली है। दिल्ली में सरकार बनाने के लिए 36 सीटों पर जीत दर्ज करनी होती है।

रूझानों में लगातार तीन बार दिल्ली की सत्ता संभालने वाली आम आदमी पार्टी की विदाई लगभग तय हो गई है। दिल्ली के चुनावी नतीजे आप प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए सदमे की तरह हैं, जो अपनी जीत का लगातार दावा कर रहे थे। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आम आदमी पार्टी के खराब प्रदर्शन की वजहें क्या हैं।

भ्रष्टाचार के आरोप

पार्टी के शीर्ष नेताओं, विशेषकर अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों और उनकी गिरफ्तारी ने पार्टी की छवि को गंभीर नुकसान पहुंचाया। अरविंद केजरीवाल को भी कथित शराब नीति घोटाले में जेल जाना पड़ा था। वह काफी समय तक तिहाड़ में रहे, जिससे कहीं न कहीं उनकी और पार्टी की छवि प्रभावित हुई। भाजपा जनता को यह बताने में कामयाब रही कि केजरीवाल उतने पाकसाफ नहीं हैं, जितना वह खुद को बताते हैं।

बतौर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर सीएम हाउस को संवारने पर पानी की तरह पैसा लगाने के आरोप लगे। इससे जनता में यह संदेश गया कि खुद को आम आदमी करार देने वाले सरकारी सुख-सुविधाओं का दोहन करने में पीछे नहीं हैं। इससे उनकी व्यक्तिगत छवि प्रभावित हुई।

नेतृत्व में अस्थिरता

केजरीवाल की गिरफ्तारी और बाद में इस्तीफे के कारण पार्टी के नेतृत्व में अस्थिरता आई। नए मुख्यमंत्री के रूप में आतिशी की नियुक्ति के बावजूद नेतृत्व में यह बदलाव पार्टी के लिए चुनौतीपूर्ण रहा। सबसे बड़ी बात ये रही कि अरविंद केजरीवाल की विश्वसनीयता में जबरदस्त तरीके से कमी आई।

जनता से किए वादों को पूरा नहीं किया

केजरीवाल ने जनता से बड़े-बड़े वादे दिए। केजरीवाल ने यमुना नदी को साफ़ करने, दिल्ली की सड़कों को पेरिस जैसा बनाने और साफ़ पानी उपलब्ध कराने जैसे जो तीन प्रमुख वादे किए थे, वे पूरे नहीं हुए। वादों को पूरा नहीं होने से जनता की नाराजगी असर चुनाव के परिणामों पर देखा जा सकता है।

कांग्रेस ने वोट काटे

बेशक कांग्रेस सीटों के हिसाब से दिल्ली में शायद एक सीट ही हासिल करे लेकिन उसने पूरी दिल्ली में आम आदमी पार्टी के वोटों को काटा है, जैसा आप ने हरियाणा विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ किया। 2013 के बाद कांग्रेस का वोट बैंक आम आदमी पार्टी की तरफ चला गया था, इसलिए कांग्रेस की वापसी से ‘आप’ को नुकसान हो रहा है। साथ ही 2024 के लोकसभा चुनावों में दिल्ली की सातों सीटों पर हार और पंजाब में केवल तीन सीटों पर जीत ने पार्टी के जनाधार में गिरावट को दिखाया, जिससे मतदाताओं का विश्वास कम हुआ।

आपसी कलह

आम आदमी पार्टी में आपसी कलह भी जनता के बीच उसकी छवि प्रभावित करने में महत्वपूर्ण रही। खासकर, स्वाति मालीवाल विवाद से पार्टी को काफी नुकसान पहुंचा।

बयानों ने घोली कड़वाहट

चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगियों के बयान भी कुछ हद तक जनता का मूड बदलने की वजह रहे। आप नेता भाजपा को गुंडों की पार्टी करार देते रहे। केजरीवाल ने यमुना के पानी में जहर जैसे बयान दिए, जो लोगों को पसंद नहीं आये।

दिल्ली में शुरुआती रुझानों में बीजेपी को बहुमत, पिछड़ रही आप

#delhiassemblyelectionresult2025

दिल्ली की सभी 70 सीटों पर वोटों की गिनती जारी है। शुरुआती रुझानों में भाजपा ने बहुमत हासिल कर लिया है। भाजपा 39 सीटों पर आगे है। आप ने 24 सीटों पर बढ़त बना रखी है। दो सीट पर कांग्रेस आगे है।

इन सीटों पर भाजपा ने बनाई बढ़त

रिठाला से भाजपा आगे चल रही है। ओखला सीट से भाजपा ने बढ़त बना ली है। चांदनी चौक से भाजपा आगे चल रही है। मुंडका से भाजपा और महरौली से भी भाजपा आगे चल रही है।

बुधवार को हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में लगभग 60.4% मतदान हुआ, जो 2020 में हुए 62% से ज्यादा वोटिंग की तुलना में दो प्रतिशत कम है. मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच है, जबकि कांग्रेस केंद्र शासित प्रदेश में अपनी पकड़ फिर से बनाने की कोशिश कर रही थी. चुनाव के बाद आए एग्जिट पोल्स में भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच जबरदस्त टक्कर दिखाई दी गई है. हालांकि दोनों ही पार्टियां अपनी-अपनी जीत के लिए आश्वस्त हैं.

आज़ादी के बाद दिल्ली की राजनीति: विकास, चुनौतियाँ और 2025 के चुनाव

#delhipoliticsovertheyears

दिल्ली, भारत की राजनीति का हृदय, आज़ादी के बाद से कई महत्वपूर्ण परिवर्तनों से गुज़री है। देश की राजधानी के रूप में, यह राजनीतिक आंदोलनों, सरकारी नीतियों और राष्ट्रीय चर्चाओं का केंद्र रही है। दिल्ली की राजनीति के परिवर्तनों को भारत की पूरी राजनीतिक यात्रा का आईना माना जा सकता है, जो एक नवगठित लोकतंत्र से लेकर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र तक के सफर का गवाह रही है। दशकों में दिल्ली की राजनीति ने कांग्रेस पार्टी के शासन से लेकर क्षेत्रीय ताकतों के उदय, और हाल ही में आम आदमी पार्टी (AAP) के एक राजनीतिक विक्राल के रूप में उभरने तक कई महत्वपूर्ण परिवर्तन देखे हैं। यह लेख दिल्ली की राजनीतिक यात्रा का विवरण प्रस्तुत करता है और विशेष रूप से 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव और उनके प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करता है।

आज़ादी के बाद दिल्ली की राजनीतिक यात्रा

प्रारंभिक वर्ष (1947-1960 के दशक)

आज़ादी के बाद, दिल्ली भारत की नई राज्यव्यवस्था का केंद्र बन गई। यह शहर नीति-निर्माण और प्रशासन का प्रमुख केंद्र था। जवाहरलाल नेहरू, जो भारत के पहले प्रधानमंत्री थे, एक प्रमुख शख्सियत थे जिन्होंने भारत की लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष प्रणाली की नींव रखी। नेहरू की कांग्रेस पार्टी ने पहले कुछ दशकों तक दिल्ली की राजनीति पर प्रभुत्व बनाए रखा, जो देश भर में कांग्रेस के प्रभाव को दर्शाता है। शुरुआती वर्षों में, भारतीय सरकार ने देश को पुनर्निर्माण करने, विभाजन, सांप्रदायिक तनाव और रियासतों के विलय जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया।

दिल्ली को 1956 में एक केंद्रीय शासित प्रदेश के रूप में स्थापित किया गया, बजाय एक पूर्ण राज्य के, जिससे यह सीधे केंद्र सरकार के अधीन रहा। इसका मतलब था कि दिल्ली को अन्य राज्यों द्वारा प्राप्त स्वायत्तता नहीं मिलती थी, जिससे यह राजनीतिक रूप से अद्वितीय हो गई। इस प्रकार, दिल्ली की राजनीति मुख्य रूप से केंद्रीय सरकार की नीतियों से प्रभावित थी और क्षेत्रीय राजनीतिक ताकतों को अपनी पहचान बनाने का अवसर बहुत कम था।

1970 का दशक: आपातकाल और राजनीतिक असंतोष

1970 का दशक भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में आपातकाल की घोषणा ने भारत के लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण मोड़ पेश किया। आपातकाल, जिसे इंदिरा गांधी ने राजनीतिक अशांति और अपनी नेतृत्व क्षमता पर उठाए गए सवालों के जवाब में घोषित किया था, के परिणामस्वरूप व्यापक गिरफ्तारी, सेंसरशिप और नागरिक स्वतंत्रताओं का निलंबन हुआ। दिल्ली, जो केंद्र सरकार का मुख्यालय थी, इस दौरान राजनीतिक दमन का प्रमुख केंद्र बनी।

इस अवधि के दौरान जनता पार्टी का उदय हुआ, जो कांग्रेस के खिलाफ एक गठबंधन था और 1977 के चुनावों में कांग्रेस को हराकर सत्ता में आई। यह पहला मौका था जब कांग्रेस को भारत में अपनी समग्र प्रमुखता से वंचित किया गया था और दिल्ली में वैकल्पिक राजनीतिक आवाज़ें उभरने लगीं। जनता पार्टी का संक्षिप्त कार्यकाल समाप्त हुआ, और 1980 के दशक में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने फिर से अपनी पकड़ बनाई।

1980 का दशक: कांग्रेस का पुनरुत्थान और सिख दंगे

1980 का दशक इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के पुनरुत्थान का दौर था। उनके 1984 में हत्या के बाद दिल्ली की राजनीति में एक त्रासद घटना घटी— 1984 के सिख दंगे। उनकी हत्या के बाद जो हिंसा हुई, उसने दिल्ली की राजनीतिक और सामाजिक संरचना को गहरे तरीके से प्रभावित किया। दंगों को लेकर कांग्रेस पार्टी पर आरोप लगे हैं और यह मामला आज भी एक विवादित मुद्दा बना हुआ है। हालांकि, इस समय कांग्रेस दिल्ली की राजनीति में फिर से मजबूत हुई और राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला।

1980 का दशक शहरी राजनीति के स्वरूप में बदलाव लेकर आया। दिल्ली के एक महानगर के रूप में बढ़ते विकास और बढ़ती सामाजिक-आर्थिक विषमताओं ने राजनीतिक विमर्श को प्रभावित किया। जबकि कांग्रेस दिल्ली की राज्य राजनीति पर हावी थी, इस दशक में नए राजनीतिक बल उभरने लगे थे, जो 1990 के दशक में कांग्रेस की एकाधिकारवादी सत्ता को चुनौती देने लगे।

1990 का दशक: बीजेपी का उदय

1990 का दशक दिल्ली और भारत की राजनीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकाल था। सोवियत संघ के पतन और 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण ने राष्ट्रीय राजनीति में एक नए दौर की शुरुआत की। इस दशक में भारतीय जनता पार्टी (BJP) का उदय हुआ, जो अपनी हिंदुत्व विचारधारा और बढ़ती राष्ट्रवाद की भावना से जुड़ी थी। बीजेपी ने दिल्ली में महत्वपूर्ण कदम उठाए और स्थानीय और राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत की। 1993 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने महत्वपूर्ण जीत हासिल की और 1990 के दशक के मध्य तक वह दिल्ली में एक मजबूत राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरी। पार्टी, जिसका नेतृत्व अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं ने किया, ने खुद को कांग्रेस के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया और राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया।

हालांकि, कांग्रेस पार्टी, जो 1980 के दशक में कई संकटों का सामना करने के बावजूद कमजोर पड़ी थी, फिर भी दिल्ली की राजनीति में अपना प्रभुत्व बनाए रखे हुए थी, और स्थानीय निकायों में उसकी पकड़ मजबूत रही।

2000 का दशक: AAP का उदय और क्षेत्रीय राजनीति

2000 के दशक में दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी (AAP) का उदय हुआ। अरविंद केजरीवाल द्वारा 2012 में AAP की स्थापना के बाद, पार्टी ने भारतीय राजनीति में नया मोड़ दिया। केजरीवाल, जो पहले एक भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता थे, ने स्थापित राजनीतिक दलों से बढ़ती निराशा का फायदा उठाया और आम जनता की आवाज़ के रूप में खुद को प्रस्तुत किया।

AAP ने 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में शानदार शुरुआत की और 70 में से 28 सीटों पर कब्जा किया। हालांकि AAP बहुमत नहीं प्राप्त कर पाई, लेकिन उसने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई, और यह दिल्ली की राजनीति में एक नई राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी। केजरीवाल ने मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला, लेकिन 2014 में जन लोकपाल विधेयक पर असहमति के कारण उनकी सरकार ने इस्तीफा दे दिया।

2015 में AAP ने फिर से धमाकेदार वापसी की और 70 में से 67 सीटें जीतकर दिल्ली विधानसभा चुनावों में अभूतपूर्व सफलता हासिल की। यह जीत दिल्ली के मतदाताओं का एक बड़ा समर्थन था, और AAP ने अपनी राजनीति को शिक्षा, स्वास्थ्य और भ्रष्टाचार विरोधी नीतियों पर केंद्रित किया।

वर्तमान दिल्ली राजनीति (2020 का दशक)

वर्तमान में दिल्ली की राजनीति AAP और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा से भरी हुई है। जहां AAP ने शहर के शहरी मध्यवर्ग के बीच अपनी मजबूत पकड़ बनाई है, वहीं बीजेपी राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी पार्टी बनी हुई है। दोनों पार्टियाँ दिल्ली के विकास और शासन को लेकर विभिन्न दृष्टिकोणों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रही हैं। अरविंद केजरीवाल का नेतृत्व और AAP का शासन मॉडल शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण पर आधारित है। केजरीवाल के शासन में दिल्ली के सरकारी स्कूलों में सुधार हुआ है, और अस्पतालों में मुफ्त इलाज की व्यवस्था की गई है। पानी और बिजली जैसी बुनियादी सेवाओं में भी सुधार हुआ है।

दूसरी ओर, बीजेपी का अभियान राष्ट्रीय सुरक्षा, बुनियादी ढांचे के विकास और कानून-व्यवस्था पर केंद्रित है। पार्टी के समर्थक मध्यवर्ग और श्रमिक वर्ग के लोग हैं, जो बीजेपी के विकास और व्यापार समर्थक एजेंडे से प्रभावित होते हैं। बीजेपी हिंदू वोटरों के समर्थन को भी अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है, क्योंकि यह पार्टी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ी हुई है।

2025 दिल्ली चुनाव: एक महत्वपूर्ण मोड़*

2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इन्हें राष्ट्रीय राजनीति के रुझानों का संकेत माना जा रहा है। इन चुनावों का परिणाम न केवल दिल्ली के लिए, बल्कि पूरे देश की राजनीति के लिए भी प्रभावशाली हो सकता है। चुनाव के दौरान, दोनों पार्टियाँ अपने अभियानों को तेज कर चुकी हैं। बीजेपी ने AAP पर भ्रष्टाचार और शासन में अक्षम होने का आरोप लगाया है। भ्रष्टाचार के आरोप के खिलाफ अभियान AAP के खिलाफ बीजेपी की रणनीति का प्रमुख हिस्सा रहा है, जबकि AAP नेताओं ने इन आरोपों को राजनीतिक साजिश करार दिया है।

AAP ने अपनी नीतियों को केंद्रित किया है जो शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण पर आधारित हैं। केजरीवाल ने खुद को एक नए राजनीतिक युग का प्रतीक बताया है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ है और आम लोगों के कल्याण के लिए काम करता है।

2025 के चुनावों के लिए निकाले गए एग्जिट पोल मिश्रित परिणाम दिखा रहे हैं, जिसमें कुछ पोल बीजेपी की जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं, जबकि अन्य AAP की जीत की संभावना जता रहे हैं। चुनाव परिणाम निकट भविष्य में दिल्ली के राजनीतिक परिदृश्य को आकार देंगे।

दिल्ली की राजनीति ने कई दशकों में कई मोड़ लिए हैं, जिसमें कांग्रेस के एकछत्र शासन से लेकर AAP जैसे क्षेत्रीय दलों का उभार तक कई महत्वपूर्ण घटनाएँ शामिल हैं। 2025 का चुनाव दिल्ली के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण होगा। चुनावी परिणाम दिल्ली के विकास और पूरे देश की राजनीति के परिप्रेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण संकेत हो सकते हैं।

जैसे-जैसे दिल्ली के मतदाता शासन, भ्रष्टाचार और विकास जैसे मुद्दों पर विचार करेंगे, इन चुनावों का परिणाम दिल्ली की राजनीति के भविष्य को तय करेगा। दिल्ली का भविष्य, राज्य का दर्जा और इसके राष्ट्रीय राजनीति में स्थान पर आगे आने वाले वर्षों में महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगा।

दिल्ली में कौन करेगा राज, 2% कम मतदान के क्या हैं मायने?

#delhivotingpercentage_trend

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में आम आदमी पार्टी वोटों के लिहाज से पिछला रिकॉर्ड दोहरा पाएगी या फिर बीजेपी या कांग्रेस में से कोई और उससे आगे निकल जाएगी? इस सवाल का जवाब 8 फरवरी को मिलेगा, जब मतगणना के नतीजे आएंगे। इससे पहले एग्जिट पोल के नतीजे आ गए हैं। ज्यादातर एग्जिट पोल ने भाजपा की सरकार बनवा दी। आम आदमी पार्टी हैट्रिक जीत से चूकती नजर आ रही है। अब फाइनल नतीजों का इंतजार है।

दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों पर इस बार 60.44% मतदान हुआ है। सबसे ज्यादा 66.25% वोटिंग नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली में और सबसे कम 56.31% वोटिंग साउथ-ईस्ट दिल्ली में हुई। दिल्ली विधानसभा के पिछले 3 चुनावों के मुकाबले इस बार कम वोटिंग हुई है। साल 2013 में 65.63% वोटिंग हुई थी। 2015 में 67.12% और 2020 में 62.59% वोटिंग हुई थी। तीनों बार दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी थी। इस बार 60.44% वोटिंग हुई है

इसका मतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2020 से करीब 2.15 फीसदी कम। अब सवाल है कि कम वोटिंग के सियासी मायने क्या हैं, इससे किसकी सीटों पर असर पड़ेगा?

क्या है सियासी ट्रेंड?

दिल्ली में 2003, 2008, 2013 और 2015 के विधानसभा चुनावों में वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी देखी गई थी। 2003 में 4.43 प्रतिशत, 2008 में 4.1 प्रतिशत, 2013 में 8 प्रतिशत और 2015 में करीब 1.45 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी।

2013 छोड़ दिया जाए तो वोट बढ़ने की वजह से कभी सरकार का उलटफेर नहीं हुआ। हालांकि, सीटों की संख्या में जरूर कमी और बढ़ोतरी देखी गई। 2003 में 4.4 प्रतिशत वोट बढ़े तो सत्ताधारी कांग्रेस की सीटें 5 कम हो गई. 2008 में 4.1 प्रतिशत वोट बढ़े तो कांग्रेस की सीटों में 4 की कमी आई।

2013 में कांग्रेस 8 सीटों पर सिमट गई। वोट बढ़ने का सीधा फायदा बीजेपी और नई-नवेली आम आदमी पार्टी को हुआ। 2015 में 1.45 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई तो आम आदमी पार्टी की सीटें बढ़ कर 67 पर पहुंच गई।

कम वोटिंग के मायने

इन आंकड़ों से साफ है कि दिल्ली के चुनावों में जब-जब वोटिंग कम हुई है, आम आदमी पार्टी को घाटा हुआ है। इस बार भी वोटिंग कम ही है। ऐसे में यह तय है कि आम आदमी पार्टी की सीटें घटेंगी। ज्यादातर एग्जिट पोल भी यही अनुमान लगा रहे हैं। मगर आम आदमी पार्टी की सरकार नहीं ही बनेगी, यह कहना भी अभी अतिश्योक्ति ही होगी। इसकी सबसे बड़ी वजह है देर शाम तक हुई वोटिंग। एग्जिट पोल के नतीजे 6.30 के बाद जारी हो गए। इसका मतलब है कि सैंपल फाइनल वोटिंग आंकड़ा से नहीं लिया गया होगा। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि एग्जिट पोल के नतीजे क्या 8 फरवरी को सही साबित होते हैं?

दिल्ली की सत्ता में 27 साल बाद बीजेपी की वापसी, एग्जिट पोल्स में भाजपा सरकार का अनुमान

#delhiassemblyelection2025exit_polls

दिल्ली में वोटिंग खत्म हो चुकी है। आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस के बीच इस बार के चुनाव में कांटे की टक्कर देखने को मिली है। वोटिंग के बाद आए एग्जिट पोल्स में सत्तारूढ़ आप पार्टी के लिए मायूसी वाली खबर है। दिल्ली चुनाव को लेकर अधिकांश एग्जिट पोल में बीजेपी की सरकार बनने का अनुमान हैं। वहीं, सिर्फ एक एग्जिट पोल में आम आदमी पार्टी सत्ता में वापसी करती दिख रही है। वहीं अगर एग्जिट पोल्स का अनुमान सच साबित हुए तो 27 साल बाद बीजेपी दिल्ली में सत्ता में वापसी करती दिख रही है।

वीप्रीसाइड एग्जिट पोल में AAP की वापसी, बीजेपी को कितनी सीट

दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक ऐसा एग्जिट पोल है जिसमें आम आदमी पार्टी सत्ता में वापसी करती दिख रही है। WeePreside एग्जिट पोल के अनुसार आम आदमी पार्टी की सत्ता में वापसी दिख रही है। इस एग्जिट पोल में आम आदमी पार्टी को 46 से 52 सीट मिलने का अनुमान है। वहीं, बीजेपी को 18 से 23 सीट मिलने की बात कही गई है। कांग्रेस को 1 सीट मिलने का अनुमान है।

चाणक्या एग्जिट पोल में बीजेपी की सरकार

दिल्ली विधानसभा में चाणक्या एग्जिट पोल में भी बीजेपी की सरकार बनने का अनुमान है। चाणक्या एग्जिट पोल के अनुसार बीजेपी को 39-44 सीट मिलने का अनुमान है। वहीं, आप को 25 से 28 सीट मिलने का अनुमान है। वहीं, कांग्रेस को 2 से 3 सीट मिल सकती है।

पी-मार्क में बीजेपी को 39-49 सीट

पी-मार्क के एग्जिट पोल में इस बार बीजेपी की सरकार बनने का अनुमान है। इस एग्जिट पोल में इस बार बीजेपी को बड़ा बहुमत मिलने का अनुमान है। इस एग्जिट पोल के अनुसार बीजेपी को 39 से 49 सीट मिल सकती है। वहीं, आम आदमी पार्टी को 21 से 31 सीट मिलने का अनुमान है। वहीं, कांग्रेस के खाते में सिर्फ 1 सीट मिलने की बात कही गई है।

पीपल्स पल्स में बीजेपी की बल्ले-बल्ले

पीपल्स पल्स के एग्जिट पोल में आम आदमी पार्टी महज 10 से 19 सीटों पर सिमटती दिख रही है। वहीं, भाजपा 51-60 सीटों का बंपर आंकड़ा छू सकती है। इस सर्वे में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुलता दिख रहा।

जेवीसी एग्जिट पोल में बीजेपी सरकार

जेवीसी एग्जिट पोल में इस बार बीजेपी की सरकार बनने की बात कही गई है। एग्जिट पोल के अनुसार बीजेपी को इस बार 39 से 45 सीट मिल सकती है। वहीं, आम आदमी पार्टी को 22 से 31 सीट आने का अनुमान है। एग्जिट पोल में कांग्रेस को 0-2 सीट देखने को मिल रही है। वहीं, एक सीट अन्य के खाते में जा सकती है।

2020 एग्जिट पोल

इससे पहले दिल्ली में 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 62 सीटें मिलीं, जबकि भाजपा को आठ और कांग्रेस एक बार फिर कोई सीट हासिल नहीं कर पाई। यानी नतीजों में एग्जिट पोल्स की छाप एक बार फिर देखने को मिली। आठ सर्वे एजेंसियों ने एग्जिट पोल्स जारी किए। सभी एग्जिट पोल्स में आम आदमी पार्टी को बहुमत दिखाया गया और वही हुआ।

2025 एग्जिट पोल

2015 के विधानसभा चुनावों में छह सर्वे एजेंसियों के एग्जिट पोल में आम आदमी पार्टी को सीधा बहुमत मिलता दिखाया गया। हालांकि, किसी भी एग्जिट पोल में आप की प्रचंड जीत की संभावना नहीं दर्शाई गई थी। केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी को तब पोल ऑफ पोल्स में 45 सीटें मिलती दिख रही थीं। वहीं भाजपा को 24 और कांग्रेस को सिर्फ एक सीट का अनुमान लगाया गया था। आप को तब सबसे ज्यादा 53 सीटें मिलने का अनुमान एक्सिस माय इंडिया के एग्जिट पोल में लगाया गया था। वहीं, सबसे कम 35 सीटें मिलने का अनुमान इंडिया टीवी-सी वोटर के सर्वे में लगा था। हालांकि, नतीजों ने चुनावी विश्लेषकों को चौंका दिया। आप ने इस चुनाव में 67 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया।

दिल्ली में मतदान के बीच बवाल, सीलमपुर में बु्र्के में वोटिंग का आरोप, तो जंगपुरा में पैसे बांटने को लेकर हंगामा

#delhiassemblyelection

दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग हो रही है। सभी 70 सीटों पर लोग अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस बीच कुछ जगहों पर हंगामे की खबर है। सीलमपुर में बुर्के में मतदान को लेकर विवाद हो गया। वहीं जंगपुरा आम आदमी पार्टी ने भाजपा पर पैसे बांटने का आरोप लगाया है।

बुर्के को लेकर विवाद

दिल्ली के सीलमपुर इलाके में आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता आमने-सामने आ गए। बुर्के को लेकर यह विवाद शुरू हुआ है। बीजेपी का आरोप है कि यहां आप कार्यकर्ता बुर्के में फर्जी वोटिंग करवा रहे हैं। बीजेपी कार्यकर्ताओं के विरोध प्रदर्शन के बीच आप कार्यकर्ता भी सड़कों पर उतर आए।

सीलमपुर हंगामा मामले पर क्या बोले चुनाव अधिकारी?

सीलमपुर हंगामा मामले पर उत्तर पूर्वी जिला चुनाव अधिकारी ने कहा है कि पर्दा-नशीन महिला मतदाताओं के सत्यापन के लिए चुनाव आयोग के निर्देशों का पालन किया जा रहा है। इन मतदान केंद्रों पर 'पर्दानशीन' मतदाताओं का सत्यापन करने के लिए महिला मतदान अधिकारी मौजूद हैं और प्रत्येक मतदाता का सत्यापन किया जा रहा है, उसके बाद ही उन्हें मतदान करने की अनुमति दी जा रही है। कथित शिकायत की जांच के लिए चुनाव अधिकारियों को आर्यन पब्लिक स्कूल में भेजा गया और यह पाया गया कि आर्यन पब्लिक स्कूल में मतदान तय नियमों के अनुसार ही हो रहा है। विद्यालय के बाहर कुछ व्यक्तियों की ओर से शोर मचाया गया, जिसे समय रहते पुलिस फोर्स की ओर से नियंत्रित कर लिया गया।

आप ने भाजपा पर लगाया पैसे बांटने का आरोप

वहीं, आम आदमी पार्टी ने भाजपा पर पैसे बांटने का आरोप लगाया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, भाजपा जंगपुरा में मतदाताओं को सरेआम बिल्डिंग में ले जाकर पैसे बांट रही है। यह सब दिल्ली पुलिस और चुनाव आयोग की निगरानी में किया जा रहा है। आप ने चुनाव आयोग से इस मामले में कार्रवाई करने की मांग की है। वहीं, मनीष सिसोदिया ने कहा कि भाजपा प्रत्याशी पैसे बांट रहा है।

दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस-वे की बड़ी खबर: पहले 18 किमी तक यात्रा होगी पूरी तरह से टोल फ्री

दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस-वे (Delhi-Dehradun Expressway) खुलने का सभी को बेसब्री से इंतजार है. क्योंकि इस एक्सप्रेस-वे के खुलने से साढ़े छह घंटे का सफर आधे से भी ज्यादा कम हो जाएगा. यानि महज ढाई घंटे में आप दिल्ली से देहरादून पहुंच सकेंगे. पहले माना जा रहा था कि जनवरी में इसे खोल दिया जाएगा. लेकिन अभी इसे खुलने में जरा सी देर और लग सकती है. हालांकि, देहरादून में आशारोड़ी और डाट काली गुफा के बीच 3.5 किमी के हिस्से को अब ट्रैफिक (Traffic) के लिए पूरी तरह से खोल दिया गया है.

इसकी एक साइड की रोड पर पहले ही ट्रैफिक चालू कर दिया गया था, जिस पर गाड़ियां दोनों तरफ सरपट दौड़ रही थीं. अब एक्सप्रेसवे के इस हिस्से में दोनों तरफ की सड़क को यानी सभी 6 लेन को ट्रैफिक के लिए खोल दिया गया है. इस साढ़े तीन किमी के हिस्से में एक्सप्रेसवे के खुलने से स्थानीय लोगों को बड़ी सहूलियत होगी.

गेमचेंजर साबित होगा यह एक्सप्रेस-वे

दिल्ली से देहरादून जाने वाले लोगों की तादाद काफी ज्यादा है. खासकर उत्तराखंड की फेमस ट्रैवल डेस्टिनेशन्स और मंदिरों के दर्शन करने के लिए ज्यादातर लोग उत्तराखंड की राजधानी देहरादून होकर ही जाते हैं. हालांकि वर्तमान में दिल्ली से देहरादून जाने में 6.5 घंटे का समय लगता है. वहीं रास्ते में लोगों को भयंकर जाम का भी सामना करना पड़ता है. इसलिए नया दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे एक गेमचेंजर साबित हो सकता है.

कहां तक टोल फ्री होगा यह एक्सप्रेस-वे

दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे 210 किलोमीटर का होगा. यह एक्सप्रेसवे दिल्ली के अक्षरधाम से शुरू होगा और यहां से 18 किलोमीटर का रूट पूरी तरह से टोल फ्री होगा. 18 किलोमीटर तक कोई टोल बूथ नहीं होगा. वहीं इस पूरे एक्सप्रेसवे पर 16 एंट्री और एग्जिट पॉइंट होंगे, जो अलग-अलग रास्तों को एक-दूसरे से कनेक्ट करेंगे. इस एक्सप्रेस-वे का निर्माण 18 हजार करोड़ रुपये में हुआ है.

नई दिल्ली से कालकाजी और ओखला तक...दिल्ली की इन हॉट सीट पर टिकी सभी की नजरें

#delhiassemblyelection2025hot_seat

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में आज वोट डाले जा रहे हैं। 1.56 करोड़ मतदाताओं की वोटिंग के बाद 699 उम्मीदवारों की सियासी किस्मत तय कर देंगे। आठ फरवरी को मतगणना के बाद तय हो जाएगा कि दिल्ली में अगले पांच कौन राज करेगा।दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच कांटे का मुकाबला माना जा रहा है।

दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सभी 70 सीटों पर अपने-अपने प्रत्याशी उतार रखे हैं। बीजेपी दिल्ली की 68 सीट पर चुनाव लड़ रही है और दो सीटों पर उसके सहयोगी दल किस्मत आजमा रहे हैं, जिसमें एक सीट पर जेडीयू और एक सीट पर चिराग पासवान की एलजेपी (आर) के उम्मीदवार मैदान में हैं। जेडीयू बुराड़ी सीट पर तो एलजेपी (आर) देवली सीट पर चुनाव लड़ रही है। बसपा दिल्ली की 70 सीटों में से 69 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। बसपा ने बाबरपुर सीट पर अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम दो सीटों पर चुनाव लड़ रही, जिसमें एक सीट मुस्तफाबाद और दूसरी ओखला सीट है। इसके अलावा अजित पवार की एनसीपी ने 30 सीटों पर चुनाव लड़ा है। सीपीआई ने 6 सीट, तो सीपीएम दो सीटों पर चुनाव लड़ रही है। सीपीआई (माले) ने भी दिल्ली के दो सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं।

दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से जिन सीटों पर दिल्लीवासियों की खास निगाहें हैं जिनमें पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल से लेकर सीएम आतिशी और पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की सीटें शामिल हैं। इसके अलावा उन सीटों पर भी चर्चा हो रही है जहां से असदुद्दीन ओवैसी ने दिल्ली दंगों के दो आरोपियों को टिकट दिया है।

नई दिल्ली- जिन सीटों पर हर किसी की नजर रहेगी उनकी बात करें तो नई दिल्ली सीट इस सूची में सबसे ऊपर है। जहां 23 उम्मीदवार मैदान में हैं। नई दिल्ली विधानसभा सीट से 2008 में शीला दीक्षित निर्वाचित हुई थीं लेकिन 2013 से लगातार तीन बार आप संयोजक अरविंद केजरीवाल चुने जा रहे हैं। इस सीट पर सबसे ज्यादा चर्चा है क्योंकि यहां पूर्व सीएम केजरीवाल के मुकाबले बीजेपी के प्रवेश वर्मा और कांग्रेस के संदीप दीक्षित हैं। 2020 विधानसभा चुनाव में केजरीवाल के समर्थन में 46,758 वोट पड़े थे जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी बीजेपी के सुनील कुमार यादव को 25,061 वोट हासिल हुए थे।

जंगपुरा- जंगपुरा सीट की चर्चा तब शुरू हुई जब पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को आप ने यहां से टिकट दिया। मनीष सिसोदिया पटपड़गंज से चुनाव लड़ते आए हैं लेकिन इस बार उनकी सीट बदल दी गई। तीन बार के विधायक सिसोदिया के मुकाबले जंगपुरा में 2008 में इस सीट पर कांग्रेस के तरविंदर सिंह मारवाह ने चुनाव जीता था। जबकि 2013 में आप के मनिंदर सिंह धीर, 2015 और 2020 में प्रवीण कुमार को जीत हासिल हुई थी। अब मारवाह बीजेपी में हैं। इस बार बीजेपी ने उन्हें यहां से टिकट दिया है। जबकि कांग्रेस की ओर से फरहद सूरी मैदान में हैं।

कालकाजी- कालकाजी दिल्ली की हॉट सीटों में एक है। यहां से सीएम आतिशी विधायक हैं और इस बार की आप प्रत्याशी भी हैं। उनके मुकाबले बीजेपी ने अपने पूर्व सांसद रमेश बिधूड़ी तो कांग्रेस ने पूर्व विधायक अलका लांबा को टिकट दिया है। कालकाजी सीट पर 2008 का चुनाव कांग्रेस ने जीता था। 2013 में यह सीट अकाली दल को गई थी जिसके हरमीत सिंह कालका विजयी हुए थे। 2015 में आप ने अवतार सिंह को टिकट दिया जो पार्टी की उम्मीद पर खरे उतरे। पिछले चुनाव में आतिशी को प्रत्याशी बनाया गया था। वह करीब 11 हजार वोटों के अंतर से बीजेपी के धरमबीर से चुनाव जीत गई थीं।

ओखला- ओखला से आप के अमानतुल्लाह खान विधायक हैं। वह यहां से दो बार के विधायक हैं। इस पर चर्चा की बड़ी वजह यह है कि यहं से एआईएमआईएम ने दिल्ली दंगे के आरोपी शिफा उर रहमान खान को टिकट दिया है। बीजेपी ने मनीष चौधरी और कांग्रस ने अरीबा खान को प्रत्याशी बनाया है. अमानतुल्ला खान ने यह सीट 2020 में बडे़ मार्जिन से जीती थी। उन्हें 66 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे।

पटपड़गंज- पटपड़गंज की चर्चा मनीष सिसोदिया के इस सीट को छोड़ने और अवध ओझा को आप द्वारा प्रत्याशी बनाए जाने पर हो रही है। बीते तीन चुनाव से सिसोदिया इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

बिजवासन- बिजवासन विधानसभा सीट पर भी रोचक मुकाबला हो रहा है। यहां से आम आदमी पार्टी के दो पुराने विधायक दूसरी पार्टियों के टिकट पर मैदान में हैं। चंद महीने पहले तक आतिशी सरकार में मंत्री रहे कैलाश गलहोत भाजपा के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं, कांग्रेस के टिकट पर उतरे देवेंद्र सहरावत 2015 में बिजवासन सीट से आप के टिकट पर जीत दर्ज कर चुके हैं।

दिल्ली में वोटिंग जारी, बूथों पर लंबी कतार, जयशंकर, राहुल गांधी समेत कई दिग्गजों ने डाला वोट

#delhiassemblyelection_2025

दिल्ली विधासभा चुनाव के लिए वोटिंग जारी है। दिल्ली की सभी 70 सीटों पर वोटिंग हो रही है। 699 प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में आज कैद हो जाएगी।सबसे कम उम्मीदवार पटेल नगर और कस्तूरबा नगर में पांच-पांच हैं, जबकि नई दिल्ली सीट पर 23 उम्मीदवार हैं।लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने आज दिल्ली विधासभा चुनाव के लिए मतदान किया। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी अपना वोट डालने के लिए निर्माण भवन स्थित मतदान केंद्र पहुंचे थे।

पीएम मोदी की खास अपील

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के वोटरों से खास अपील की है। पीएम मोदी ने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा ‘दिल्ली विधानसभा चुनाव में आज सभी सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। यहां के मतदाताओं से मेरा आग्रह है कि वे लोकतंत्र के इस उत्सव में पूरे उत्साह के साथ हिस्सा लें और अपना कीमती वोट जरूर डालें। इस अवसर पर पहली बार वोट देने जा रहे सभी युवा साथियों को मेरी विशेष शुभकामनाएं। याद रखना है- पहले मतदान, फिर जलपान।

जनता बदलाव के मूड में है- जयशंकर

विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर और उनकी पत्नी क्योको जयशंकर ने एनडीएमसी स्कूल ऑफ साइंस एंड ह्यूमैनिटीज, तुगलक क्रिसेंट में स्थापित मतदान केंद्र पर अपना वोट डाला। विदेश मंत्री ने कहा, मैं शुरुआती दौर में मतदान करने वालों में से एक रहा हूं। मुझे लगता है कि जनता बदलाव के मूड में है।

भाजपा सांसद बांसुरी स्वराज ने वोट डाला

भाजपा सांसद बांसुरी स्वराज ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। वोट डालने पहुंची बांसुरी ने कहा, आज दिल्ली में लोकतंत्र का उत्सव है और मैं राष्ट्रीय राजधानी के मतदाताओं से अपील करती हूं कि वे बड़ी संख्या में बाहर आएं और अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करें ताकि दिल्ली विकसित राष्ट्र की विकसित राजधानी बन सके। आप देखेंगे, 8 फरवरी को कमल ही खिलेगा।

मनीष सिसोदिया ने किया मतदान

आप नेता और जंगपुरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक उम्मीदवार मनीष सिसोदिया ने नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र के लेडी इरविन सीनियर सेकेंडरी स्कूल में बने मतदान केंद्र पर अपना वोट डाला। उनकी पत्नी सीमा सिसोदिया भी यहीं मतदान किया। इस मौके पर मनीष सिसोदिया ने कहा, आज मैं अपने परिवार के साथ दिल्ली के लोगों के बेहतर जीवन के लिए वोट देने आया हूं। मैं दिल्ली के लोगों से अपील करूंगा कि वे अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए, अपने परिवारों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए, दिल्ली में बिजली और पानी के लिए वोट करें। ऐसी सरकार चुनें जो सबके लिए काम करे, ऐसी सरकार नहीं जो इधर-उधर की बातें और गुंडागर्दी करे।

केजरीवाल और सिसोदिया की हार पर कुमार विश्वास का बयान, कहा- आज न्याय हुआ है

#delhi_assembly_election_kumar_vishwas_reaction

दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे एग्जिट पोल के साथ जाते हुए दिखाई दे रहे हैं। अभी तक के रुझानों के मुताबिक, दिल्ली में बीजेपी ने आम आदमी पार्टी को जोरदार पटकनी दी है। सबसे बड़ी बात की आप के संयोजक को ही मुंह की खानी पड़ी है। अरविंद केजरीवाल चुनाव हार गए हैं।आम आदमी पार्टी की करारी हार पर कुमार विश्वास ने खुशी जाहिर की है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि भारतीय जनता पार्टी दिल्ली के लोगों के लिए काम करेगी। अरविंद केजरीवाल की हार को लेकर उन्होंने यहां तक कह दिया कि आज न्याय हुआ है।

कुमार विश्वास ने कहा "मैं भाजपा को जीत के लिए बधाई देता हूं और उम्मीद करता हूं कि वे दिल्ली के लोगों के लिए काम करेंगे। मुझे ऐसे व्यक्ति से कोई सहानुभूति नहीं है जिसने आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं के सपनों को कुचल दिया। दिल्ली अब उससे मुक्त हो चुकी है। उसने उन सपनों का इस्तेमाल अपनी निजी महत्वाकांक्षाओं के लिए किया। आज न्याय हुआ है। जब हमें जंगपुरा से मनीष सिसोदिया के हारने की खबर मिली तो मेरी पत्नी जो गैर-राजनीतिक हैं, रो पड़ीं।"

विश्वास ने आगे कहा, आम आदमी पार्टी के समस्त कार्यकर्ताओं को कहता हूं कि आपने जिकिसी भी लोग लालच में सब कुछ जानते हुए एक ऐसे व्यक्ति के समर्थन में काम किया जिसने अपने मित्रों की पीठ में छुरा घोंपा और लोगों को धोखा दिया। अपने साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने वाली महिलाओं को पिटवाया।अपनी निजी सुख और साधन के लिए जनता का पैसा खर्च किया। अब उससे आशा लगाने छोड़े. अब बाहर निकले अपना अपना जीवन देखें।

वहीं, कुमार विश्वास ने सोशल मीडिया एक्स पर भी तंज भरा ट्वीट किया है। जिसमें वीडियो के साथ उन्होंने लिखा है कि अहंकार ईश्वर का भोजन है। खुद को इतना शक्तिशाली मत समझो कि जिन्होंने हमें सिद्धियां दी हैं, उन्हीं को आप आंखें दिखाने लगो। याद रखिएगा कि आपकी सफलता के पीछे कृष्ण जैसे ऐसे असंख्य लोग हैं, जिनकी चुपचाप और अदृश्य शुभकामनाओं के कारण आप इस विजय रथ पर सवार हुए हैं। जब भी आपको यह लगने लगे कि आपने ये ऐतिहासिक सफलता आपने अपनी शक्ति के दम पर पा ली है तो आप बस उन लोगों के बारे में सोचिए, जिनके सहयोग के बिना आपकी ये यात्रा आसान नहीं होती।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप का बेहद खराब प्रदर्शन, इस बार क्यों नहीं चला केजरीवाल का जादू?

#delhiassemblyelectionresultreasonsaamadmipartybad_performence

आज दिल्ली विधानसभा चुनाव के घोषित हो रहे हैं। वोटों की गिनती जारी है।इन नतीजों में आम आदमी पार्टी को बड़ा झटका लग रहा है। भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में सरकार बनाते हुए दिख रही है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी बहुमत के आंकड़े को पार कर गई है। बीजेपी ने 36 के जादुई आंकड़े को पार करते हुए 41 सीटों पर बढ़त बना ली है। दिल्ली में सरकार बनाने के लिए 36 सीटों पर जीत दर्ज करनी होती है।

रूझानों में लगातार तीन बार दिल्ली की सत्ता संभालने वाली आम आदमी पार्टी की विदाई लगभग तय हो गई है। दिल्ली के चुनावी नतीजे आप प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए सदमे की तरह हैं, जो अपनी जीत का लगातार दावा कर रहे थे। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आम आदमी पार्टी के खराब प्रदर्शन की वजहें क्या हैं।

भ्रष्टाचार के आरोप

पार्टी के शीर्ष नेताओं, विशेषकर अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों और उनकी गिरफ्तारी ने पार्टी की छवि को गंभीर नुकसान पहुंचाया। अरविंद केजरीवाल को भी कथित शराब नीति घोटाले में जेल जाना पड़ा था। वह काफी समय तक तिहाड़ में रहे, जिससे कहीं न कहीं उनकी और पार्टी की छवि प्रभावित हुई। भाजपा जनता को यह बताने में कामयाब रही कि केजरीवाल उतने पाकसाफ नहीं हैं, जितना वह खुद को बताते हैं।

बतौर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर सीएम हाउस को संवारने पर पानी की तरह पैसा लगाने के आरोप लगे। इससे जनता में यह संदेश गया कि खुद को आम आदमी करार देने वाले सरकारी सुख-सुविधाओं का दोहन करने में पीछे नहीं हैं। इससे उनकी व्यक्तिगत छवि प्रभावित हुई।

नेतृत्व में अस्थिरता

केजरीवाल की गिरफ्तारी और बाद में इस्तीफे के कारण पार्टी के नेतृत्व में अस्थिरता आई। नए मुख्यमंत्री के रूप में आतिशी की नियुक्ति के बावजूद नेतृत्व में यह बदलाव पार्टी के लिए चुनौतीपूर्ण रहा। सबसे बड़ी बात ये रही कि अरविंद केजरीवाल की विश्वसनीयता में जबरदस्त तरीके से कमी आई।

जनता से किए वादों को पूरा नहीं किया

केजरीवाल ने जनता से बड़े-बड़े वादे दिए। केजरीवाल ने यमुना नदी को साफ़ करने, दिल्ली की सड़कों को पेरिस जैसा बनाने और साफ़ पानी उपलब्ध कराने जैसे जो तीन प्रमुख वादे किए थे, वे पूरे नहीं हुए। वादों को पूरा नहीं होने से जनता की नाराजगी असर चुनाव के परिणामों पर देखा जा सकता है।

कांग्रेस ने वोट काटे

बेशक कांग्रेस सीटों के हिसाब से दिल्ली में शायद एक सीट ही हासिल करे लेकिन उसने पूरी दिल्ली में आम आदमी पार्टी के वोटों को काटा है, जैसा आप ने हरियाणा विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ किया। 2013 के बाद कांग्रेस का वोट बैंक आम आदमी पार्टी की तरफ चला गया था, इसलिए कांग्रेस की वापसी से ‘आप’ को नुकसान हो रहा है। साथ ही 2024 के लोकसभा चुनावों में दिल्ली की सातों सीटों पर हार और पंजाब में केवल तीन सीटों पर जीत ने पार्टी के जनाधार में गिरावट को दिखाया, जिससे मतदाताओं का विश्वास कम हुआ।

आपसी कलह

आम आदमी पार्टी में आपसी कलह भी जनता के बीच उसकी छवि प्रभावित करने में महत्वपूर्ण रही। खासकर, स्वाति मालीवाल विवाद से पार्टी को काफी नुकसान पहुंचा।

बयानों ने घोली कड़वाहट

चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगियों के बयान भी कुछ हद तक जनता का मूड बदलने की वजह रहे। आप नेता भाजपा को गुंडों की पार्टी करार देते रहे। केजरीवाल ने यमुना के पानी में जहर जैसे बयान दिए, जो लोगों को पसंद नहीं आये।

दिल्ली में शुरुआती रुझानों में बीजेपी को बहुमत, पिछड़ रही आप

#delhiassemblyelectionresult2025

दिल्ली की सभी 70 सीटों पर वोटों की गिनती जारी है। शुरुआती रुझानों में भाजपा ने बहुमत हासिल कर लिया है। भाजपा 39 सीटों पर आगे है। आप ने 24 सीटों पर बढ़त बना रखी है। दो सीट पर कांग्रेस आगे है।

इन सीटों पर भाजपा ने बनाई बढ़त

रिठाला से भाजपा आगे चल रही है। ओखला सीट से भाजपा ने बढ़त बना ली है। चांदनी चौक से भाजपा आगे चल रही है। मुंडका से भाजपा और महरौली से भी भाजपा आगे चल रही है।

बुधवार को हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में लगभग 60.4% मतदान हुआ, जो 2020 में हुए 62% से ज्यादा वोटिंग की तुलना में दो प्रतिशत कम है. मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच है, जबकि कांग्रेस केंद्र शासित प्रदेश में अपनी पकड़ फिर से बनाने की कोशिश कर रही थी. चुनाव के बाद आए एग्जिट पोल्स में भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच जबरदस्त टक्कर दिखाई दी गई है. हालांकि दोनों ही पार्टियां अपनी-अपनी जीत के लिए आश्वस्त हैं.

आज़ादी के बाद दिल्ली की राजनीति: विकास, चुनौतियाँ और 2025 के चुनाव

#delhipoliticsovertheyears

दिल्ली, भारत की राजनीति का हृदय, आज़ादी के बाद से कई महत्वपूर्ण परिवर्तनों से गुज़री है। देश की राजधानी के रूप में, यह राजनीतिक आंदोलनों, सरकारी नीतियों और राष्ट्रीय चर्चाओं का केंद्र रही है। दिल्ली की राजनीति के परिवर्तनों को भारत की पूरी राजनीतिक यात्रा का आईना माना जा सकता है, जो एक नवगठित लोकतंत्र से लेकर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र तक के सफर का गवाह रही है। दशकों में दिल्ली की राजनीति ने कांग्रेस पार्टी के शासन से लेकर क्षेत्रीय ताकतों के उदय, और हाल ही में आम आदमी पार्टी (AAP) के एक राजनीतिक विक्राल के रूप में उभरने तक कई महत्वपूर्ण परिवर्तन देखे हैं। यह लेख दिल्ली की राजनीतिक यात्रा का विवरण प्रस्तुत करता है और विशेष रूप से 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव और उनके प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करता है।

आज़ादी के बाद दिल्ली की राजनीतिक यात्रा

प्रारंभिक वर्ष (1947-1960 के दशक)

आज़ादी के बाद, दिल्ली भारत की नई राज्यव्यवस्था का केंद्र बन गई। यह शहर नीति-निर्माण और प्रशासन का प्रमुख केंद्र था। जवाहरलाल नेहरू, जो भारत के पहले प्रधानमंत्री थे, एक प्रमुख शख्सियत थे जिन्होंने भारत की लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष प्रणाली की नींव रखी। नेहरू की कांग्रेस पार्टी ने पहले कुछ दशकों तक दिल्ली की राजनीति पर प्रभुत्व बनाए रखा, जो देश भर में कांग्रेस के प्रभाव को दर्शाता है। शुरुआती वर्षों में, भारतीय सरकार ने देश को पुनर्निर्माण करने, विभाजन, सांप्रदायिक तनाव और रियासतों के विलय जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया।

दिल्ली को 1956 में एक केंद्रीय शासित प्रदेश के रूप में स्थापित किया गया, बजाय एक पूर्ण राज्य के, जिससे यह सीधे केंद्र सरकार के अधीन रहा। इसका मतलब था कि दिल्ली को अन्य राज्यों द्वारा प्राप्त स्वायत्तता नहीं मिलती थी, जिससे यह राजनीतिक रूप से अद्वितीय हो गई। इस प्रकार, दिल्ली की राजनीति मुख्य रूप से केंद्रीय सरकार की नीतियों से प्रभावित थी और क्षेत्रीय राजनीतिक ताकतों को अपनी पहचान बनाने का अवसर बहुत कम था।

1970 का दशक: आपातकाल और राजनीतिक असंतोष

1970 का दशक भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में आपातकाल की घोषणा ने भारत के लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण मोड़ पेश किया। आपातकाल, जिसे इंदिरा गांधी ने राजनीतिक अशांति और अपनी नेतृत्व क्षमता पर उठाए गए सवालों के जवाब में घोषित किया था, के परिणामस्वरूप व्यापक गिरफ्तारी, सेंसरशिप और नागरिक स्वतंत्रताओं का निलंबन हुआ। दिल्ली, जो केंद्र सरकार का मुख्यालय थी, इस दौरान राजनीतिक दमन का प्रमुख केंद्र बनी।

इस अवधि के दौरान जनता पार्टी का उदय हुआ, जो कांग्रेस के खिलाफ एक गठबंधन था और 1977 के चुनावों में कांग्रेस को हराकर सत्ता में आई। यह पहला मौका था जब कांग्रेस को भारत में अपनी समग्र प्रमुखता से वंचित किया गया था और दिल्ली में वैकल्पिक राजनीतिक आवाज़ें उभरने लगीं। जनता पार्टी का संक्षिप्त कार्यकाल समाप्त हुआ, और 1980 के दशक में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने फिर से अपनी पकड़ बनाई।

1980 का दशक: कांग्रेस का पुनरुत्थान और सिख दंगे

1980 का दशक इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के पुनरुत्थान का दौर था। उनके 1984 में हत्या के बाद दिल्ली की राजनीति में एक त्रासद घटना घटी— 1984 के सिख दंगे। उनकी हत्या के बाद जो हिंसा हुई, उसने दिल्ली की राजनीतिक और सामाजिक संरचना को गहरे तरीके से प्रभावित किया। दंगों को लेकर कांग्रेस पार्टी पर आरोप लगे हैं और यह मामला आज भी एक विवादित मुद्दा बना हुआ है। हालांकि, इस समय कांग्रेस दिल्ली की राजनीति में फिर से मजबूत हुई और राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला।

1980 का दशक शहरी राजनीति के स्वरूप में बदलाव लेकर आया। दिल्ली के एक महानगर के रूप में बढ़ते विकास और बढ़ती सामाजिक-आर्थिक विषमताओं ने राजनीतिक विमर्श को प्रभावित किया। जबकि कांग्रेस दिल्ली की राज्य राजनीति पर हावी थी, इस दशक में नए राजनीतिक बल उभरने लगे थे, जो 1990 के दशक में कांग्रेस की एकाधिकारवादी सत्ता को चुनौती देने लगे।

1990 का दशक: बीजेपी का उदय

1990 का दशक दिल्ली और भारत की राजनीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकाल था। सोवियत संघ के पतन और 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण ने राष्ट्रीय राजनीति में एक नए दौर की शुरुआत की। इस दशक में भारतीय जनता पार्टी (BJP) का उदय हुआ, जो अपनी हिंदुत्व विचारधारा और बढ़ती राष्ट्रवाद की भावना से जुड़ी थी। बीजेपी ने दिल्ली में महत्वपूर्ण कदम उठाए और स्थानीय और राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत की। 1993 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने महत्वपूर्ण जीत हासिल की और 1990 के दशक के मध्य तक वह दिल्ली में एक मजबूत राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरी। पार्टी, जिसका नेतृत्व अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं ने किया, ने खुद को कांग्रेस के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया और राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया।

हालांकि, कांग्रेस पार्टी, जो 1980 के दशक में कई संकटों का सामना करने के बावजूद कमजोर पड़ी थी, फिर भी दिल्ली की राजनीति में अपना प्रभुत्व बनाए रखे हुए थी, और स्थानीय निकायों में उसकी पकड़ मजबूत रही।

2000 का दशक: AAP का उदय और क्षेत्रीय राजनीति

2000 के दशक में दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी (AAP) का उदय हुआ। अरविंद केजरीवाल द्वारा 2012 में AAP की स्थापना के बाद, पार्टी ने भारतीय राजनीति में नया मोड़ दिया। केजरीवाल, जो पहले एक भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता थे, ने स्थापित राजनीतिक दलों से बढ़ती निराशा का फायदा उठाया और आम जनता की आवाज़ के रूप में खुद को प्रस्तुत किया।

AAP ने 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में शानदार शुरुआत की और 70 में से 28 सीटों पर कब्जा किया। हालांकि AAP बहुमत नहीं प्राप्त कर पाई, लेकिन उसने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई, और यह दिल्ली की राजनीति में एक नई राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी। केजरीवाल ने मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला, लेकिन 2014 में जन लोकपाल विधेयक पर असहमति के कारण उनकी सरकार ने इस्तीफा दे दिया।

2015 में AAP ने फिर से धमाकेदार वापसी की और 70 में से 67 सीटें जीतकर दिल्ली विधानसभा चुनावों में अभूतपूर्व सफलता हासिल की। यह जीत दिल्ली के मतदाताओं का एक बड़ा समर्थन था, और AAP ने अपनी राजनीति को शिक्षा, स्वास्थ्य और भ्रष्टाचार विरोधी नीतियों पर केंद्रित किया।

वर्तमान दिल्ली राजनीति (2020 का दशक)

वर्तमान में दिल्ली की राजनीति AAP और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा से भरी हुई है। जहां AAP ने शहर के शहरी मध्यवर्ग के बीच अपनी मजबूत पकड़ बनाई है, वहीं बीजेपी राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी पार्टी बनी हुई है। दोनों पार्टियाँ दिल्ली के विकास और शासन को लेकर विभिन्न दृष्टिकोणों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रही हैं। अरविंद केजरीवाल का नेतृत्व और AAP का शासन मॉडल शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण पर आधारित है। केजरीवाल के शासन में दिल्ली के सरकारी स्कूलों में सुधार हुआ है, और अस्पतालों में मुफ्त इलाज की व्यवस्था की गई है। पानी और बिजली जैसी बुनियादी सेवाओं में भी सुधार हुआ है।

दूसरी ओर, बीजेपी का अभियान राष्ट्रीय सुरक्षा, बुनियादी ढांचे के विकास और कानून-व्यवस्था पर केंद्रित है। पार्टी के समर्थक मध्यवर्ग और श्रमिक वर्ग के लोग हैं, जो बीजेपी के विकास और व्यापार समर्थक एजेंडे से प्रभावित होते हैं। बीजेपी हिंदू वोटरों के समर्थन को भी अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है, क्योंकि यह पार्टी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ी हुई है।

2025 दिल्ली चुनाव: एक महत्वपूर्ण मोड़*

2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इन्हें राष्ट्रीय राजनीति के रुझानों का संकेत माना जा रहा है। इन चुनावों का परिणाम न केवल दिल्ली के लिए, बल्कि पूरे देश की राजनीति के लिए भी प्रभावशाली हो सकता है। चुनाव के दौरान, दोनों पार्टियाँ अपने अभियानों को तेज कर चुकी हैं। बीजेपी ने AAP पर भ्रष्टाचार और शासन में अक्षम होने का आरोप लगाया है। भ्रष्टाचार के आरोप के खिलाफ अभियान AAP के खिलाफ बीजेपी की रणनीति का प्रमुख हिस्सा रहा है, जबकि AAP नेताओं ने इन आरोपों को राजनीतिक साजिश करार दिया है।

AAP ने अपनी नीतियों को केंद्रित किया है जो शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण पर आधारित हैं। केजरीवाल ने खुद को एक नए राजनीतिक युग का प्रतीक बताया है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ है और आम लोगों के कल्याण के लिए काम करता है।

2025 के चुनावों के लिए निकाले गए एग्जिट पोल मिश्रित परिणाम दिखा रहे हैं, जिसमें कुछ पोल बीजेपी की जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं, जबकि अन्य AAP की जीत की संभावना जता रहे हैं। चुनाव परिणाम निकट भविष्य में दिल्ली के राजनीतिक परिदृश्य को आकार देंगे।

दिल्ली की राजनीति ने कई दशकों में कई मोड़ लिए हैं, जिसमें कांग्रेस के एकछत्र शासन से लेकर AAP जैसे क्षेत्रीय दलों का उभार तक कई महत्वपूर्ण घटनाएँ शामिल हैं। 2025 का चुनाव दिल्ली के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण होगा। चुनावी परिणाम दिल्ली के विकास और पूरे देश की राजनीति के परिप्रेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण संकेत हो सकते हैं।

जैसे-जैसे दिल्ली के मतदाता शासन, भ्रष्टाचार और विकास जैसे मुद्दों पर विचार करेंगे, इन चुनावों का परिणाम दिल्ली की राजनीति के भविष्य को तय करेगा। दिल्ली का भविष्य, राज्य का दर्जा और इसके राष्ट्रीय राजनीति में स्थान पर आगे आने वाले वर्षों में महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगा।

दिल्ली में कौन करेगा राज, 2% कम मतदान के क्या हैं मायने?

#delhivotingpercentage_trend

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में आम आदमी पार्टी वोटों के लिहाज से पिछला रिकॉर्ड दोहरा पाएगी या फिर बीजेपी या कांग्रेस में से कोई और उससे आगे निकल जाएगी? इस सवाल का जवाब 8 फरवरी को मिलेगा, जब मतगणना के नतीजे आएंगे। इससे पहले एग्जिट पोल के नतीजे आ गए हैं। ज्यादातर एग्जिट पोल ने भाजपा की सरकार बनवा दी। आम आदमी पार्टी हैट्रिक जीत से चूकती नजर आ रही है। अब फाइनल नतीजों का इंतजार है।

दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों पर इस बार 60.44% मतदान हुआ है। सबसे ज्यादा 66.25% वोटिंग नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली में और सबसे कम 56.31% वोटिंग साउथ-ईस्ट दिल्ली में हुई। दिल्ली विधानसभा के पिछले 3 चुनावों के मुकाबले इस बार कम वोटिंग हुई है। साल 2013 में 65.63% वोटिंग हुई थी। 2015 में 67.12% और 2020 में 62.59% वोटिंग हुई थी। तीनों बार दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी थी। इस बार 60.44% वोटिंग हुई है

इसका मतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2020 से करीब 2.15 फीसदी कम। अब सवाल है कि कम वोटिंग के सियासी मायने क्या हैं, इससे किसकी सीटों पर असर पड़ेगा?

क्या है सियासी ट्रेंड?

दिल्ली में 2003, 2008, 2013 और 2015 के विधानसभा चुनावों में वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी देखी गई थी। 2003 में 4.43 प्रतिशत, 2008 में 4.1 प्रतिशत, 2013 में 8 प्रतिशत और 2015 में करीब 1.45 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी।

2013 छोड़ दिया जाए तो वोट बढ़ने की वजह से कभी सरकार का उलटफेर नहीं हुआ। हालांकि, सीटों की संख्या में जरूर कमी और बढ़ोतरी देखी गई। 2003 में 4.4 प्रतिशत वोट बढ़े तो सत्ताधारी कांग्रेस की सीटें 5 कम हो गई. 2008 में 4.1 प्रतिशत वोट बढ़े तो कांग्रेस की सीटों में 4 की कमी आई।

2013 में कांग्रेस 8 सीटों पर सिमट गई। वोट बढ़ने का सीधा फायदा बीजेपी और नई-नवेली आम आदमी पार्टी को हुआ। 2015 में 1.45 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई तो आम आदमी पार्टी की सीटें बढ़ कर 67 पर पहुंच गई।

कम वोटिंग के मायने

इन आंकड़ों से साफ है कि दिल्ली के चुनावों में जब-जब वोटिंग कम हुई है, आम आदमी पार्टी को घाटा हुआ है। इस बार भी वोटिंग कम ही है। ऐसे में यह तय है कि आम आदमी पार्टी की सीटें घटेंगी। ज्यादातर एग्जिट पोल भी यही अनुमान लगा रहे हैं। मगर आम आदमी पार्टी की सरकार नहीं ही बनेगी, यह कहना भी अभी अतिश्योक्ति ही होगी। इसकी सबसे बड़ी वजह है देर शाम तक हुई वोटिंग। एग्जिट पोल के नतीजे 6.30 के बाद जारी हो गए। इसका मतलब है कि सैंपल फाइनल वोटिंग आंकड़ा से नहीं लिया गया होगा। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि एग्जिट पोल के नतीजे क्या 8 फरवरी को सही साबित होते हैं?

दिल्ली की सत्ता में 27 साल बाद बीजेपी की वापसी, एग्जिट पोल्स में भाजपा सरकार का अनुमान

#delhiassemblyelection2025exit_polls

दिल्ली में वोटिंग खत्म हो चुकी है। आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस के बीच इस बार के चुनाव में कांटे की टक्कर देखने को मिली है। वोटिंग के बाद आए एग्जिट पोल्स में सत्तारूढ़ आप पार्टी के लिए मायूसी वाली खबर है। दिल्ली चुनाव को लेकर अधिकांश एग्जिट पोल में बीजेपी की सरकार बनने का अनुमान हैं। वहीं, सिर्फ एक एग्जिट पोल में आम आदमी पार्टी सत्ता में वापसी करती दिख रही है। वहीं अगर एग्जिट पोल्स का अनुमान सच साबित हुए तो 27 साल बाद बीजेपी दिल्ली में सत्ता में वापसी करती दिख रही है।

वीप्रीसाइड एग्जिट पोल में AAP की वापसी, बीजेपी को कितनी सीट

दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक ऐसा एग्जिट पोल है जिसमें आम आदमी पार्टी सत्ता में वापसी करती दिख रही है। WeePreside एग्जिट पोल के अनुसार आम आदमी पार्टी की सत्ता में वापसी दिख रही है। इस एग्जिट पोल में आम आदमी पार्टी को 46 से 52 सीट मिलने का अनुमान है। वहीं, बीजेपी को 18 से 23 सीट मिलने की बात कही गई है। कांग्रेस को 1 सीट मिलने का अनुमान है।

चाणक्या एग्जिट पोल में बीजेपी की सरकार

दिल्ली विधानसभा में चाणक्या एग्जिट पोल में भी बीजेपी की सरकार बनने का अनुमान है। चाणक्या एग्जिट पोल के अनुसार बीजेपी को 39-44 सीट मिलने का अनुमान है। वहीं, आप को 25 से 28 सीट मिलने का अनुमान है। वहीं, कांग्रेस को 2 से 3 सीट मिल सकती है।

पी-मार्क में बीजेपी को 39-49 सीट

पी-मार्क के एग्जिट पोल में इस बार बीजेपी की सरकार बनने का अनुमान है। इस एग्जिट पोल में इस बार बीजेपी को बड़ा बहुमत मिलने का अनुमान है। इस एग्जिट पोल के अनुसार बीजेपी को 39 से 49 सीट मिल सकती है। वहीं, आम आदमी पार्टी को 21 से 31 सीट मिलने का अनुमान है। वहीं, कांग्रेस के खाते में सिर्फ 1 सीट मिलने की बात कही गई है।

पीपल्स पल्स में बीजेपी की बल्ले-बल्ले

पीपल्स पल्स के एग्जिट पोल में आम आदमी पार्टी महज 10 से 19 सीटों पर सिमटती दिख रही है। वहीं, भाजपा 51-60 सीटों का बंपर आंकड़ा छू सकती है। इस सर्वे में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुलता दिख रहा।

जेवीसी एग्जिट पोल में बीजेपी सरकार

जेवीसी एग्जिट पोल में इस बार बीजेपी की सरकार बनने की बात कही गई है। एग्जिट पोल के अनुसार बीजेपी को इस बार 39 से 45 सीट मिल सकती है। वहीं, आम आदमी पार्टी को 22 से 31 सीट आने का अनुमान है। एग्जिट पोल में कांग्रेस को 0-2 सीट देखने को मिल रही है। वहीं, एक सीट अन्य के खाते में जा सकती है।

2020 एग्जिट पोल

इससे पहले दिल्ली में 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 62 सीटें मिलीं, जबकि भाजपा को आठ और कांग्रेस एक बार फिर कोई सीट हासिल नहीं कर पाई। यानी नतीजों में एग्जिट पोल्स की छाप एक बार फिर देखने को मिली। आठ सर्वे एजेंसियों ने एग्जिट पोल्स जारी किए। सभी एग्जिट पोल्स में आम आदमी पार्टी को बहुमत दिखाया गया और वही हुआ।

2025 एग्जिट पोल

2015 के विधानसभा चुनावों में छह सर्वे एजेंसियों के एग्जिट पोल में आम आदमी पार्टी को सीधा बहुमत मिलता दिखाया गया। हालांकि, किसी भी एग्जिट पोल में आप की प्रचंड जीत की संभावना नहीं दर्शाई गई थी। केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी को तब पोल ऑफ पोल्स में 45 सीटें मिलती दिख रही थीं। वहीं भाजपा को 24 और कांग्रेस को सिर्फ एक सीट का अनुमान लगाया गया था। आप को तब सबसे ज्यादा 53 सीटें मिलने का अनुमान एक्सिस माय इंडिया के एग्जिट पोल में लगाया गया था। वहीं, सबसे कम 35 सीटें मिलने का अनुमान इंडिया टीवी-सी वोटर के सर्वे में लगा था। हालांकि, नतीजों ने चुनावी विश्लेषकों को चौंका दिया। आप ने इस चुनाव में 67 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया।

दिल्ली में मतदान के बीच बवाल, सीलमपुर में बु्र्के में वोटिंग का आरोप, तो जंगपुरा में पैसे बांटने को लेकर हंगामा

#delhiassemblyelection

दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग हो रही है। सभी 70 सीटों पर लोग अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस बीच कुछ जगहों पर हंगामे की खबर है। सीलमपुर में बुर्के में मतदान को लेकर विवाद हो गया। वहीं जंगपुरा आम आदमी पार्टी ने भाजपा पर पैसे बांटने का आरोप लगाया है।

बुर्के को लेकर विवाद

दिल्ली के सीलमपुर इलाके में आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता आमने-सामने आ गए। बुर्के को लेकर यह विवाद शुरू हुआ है। बीजेपी का आरोप है कि यहां आप कार्यकर्ता बुर्के में फर्जी वोटिंग करवा रहे हैं। बीजेपी कार्यकर्ताओं के विरोध प्रदर्शन के बीच आप कार्यकर्ता भी सड़कों पर उतर आए।

सीलमपुर हंगामा मामले पर क्या बोले चुनाव अधिकारी?

सीलमपुर हंगामा मामले पर उत्तर पूर्वी जिला चुनाव अधिकारी ने कहा है कि पर्दा-नशीन महिला मतदाताओं के सत्यापन के लिए चुनाव आयोग के निर्देशों का पालन किया जा रहा है। इन मतदान केंद्रों पर 'पर्दानशीन' मतदाताओं का सत्यापन करने के लिए महिला मतदान अधिकारी मौजूद हैं और प्रत्येक मतदाता का सत्यापन किया जा रहा है, उसके बाद ही उन्हें मतदान करने की अनुमति दी जा रही है। कथित शिकायत की जांच के लिए चुनाव अधिकारियों को आर्यन पब्लिक स्कूल में भेजा गया और यह पाया गया कि आर्यन पब्लिक स्कूल में मतदान तय नियमों के अनुसार ही हो रहा है। विद्यालय के बाहर कुछ व्यक्तियों की ओर से शोर मचाया गया, जिसे समय रहते पुलिस फोर्स की ओर से नियंत्रित कर लिया गया।

आप ने भाजपा पर लगाया पैसे बांटने का आरोप

वहीं, आम आदमी पार्टी ने भाजपा पर पैसे बांटने का आरोप लगाया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, भाजपा जंगपुरा में मतदाताओं को सरेआम बिल्डिंग में ले जाकर पैसे बांट रही है। यह सब दिल्ली पुलिस और चुनाव आयोग की निगरानी में किया जा रहा है। आप ने चुनाव आयोग से इस मामले में कार्रवाई करने की मांग की है। वहीं, मनीष सिसोदिया ने कहा कि भाजपा प्रत्याशी पैसे बांट रहा है।

दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस-वे की बड़ी खबर: पहले 18 किमी तक यात्रा होगी पूरी तरह से टोल फ्री

दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस-वे (Delhi-Dehradun Expressway) खुलने का सभी को बेसब्री से इंतजार है. क्योंकि इस एक्सप्रेस-वे के खुलने से साढ़े छह घंटे का सफर आधे से भी ज्यादा कम हो जाएगा. यानि महज ढाई घंटे में आप दिल्ली से देहरादून पहुंच सकेंगे. पहले माना जा रहा था कि जनवरी में इसे खोल दिया जाएगा. लेकिन अभी इसे खुलने में जरा सी देर और लग सकती है. हालांकि, देहरादून में आशारोड़ी और डाट काली गुफा के बीच 3.5 किमी के हिस्से को अब ट्रैफिक (Traffic) के लिए पूरी तरह से खोल दिया गया है.

इसकी एक साइड की रोड पर पहले ही ट्रैफिक चालू कर दिया गया था, जिस पर गाड़ियां दोनों तरफ सरपट दौड़ रही थीं. अब एक्सप्रेसवे के इस हिस्से में दोनों तरफ की सड़क को यानी सभी 6 लेन को ट्रैफिक के लिए खोल दिया गया है. इस साढ़े तीन किमी के हिस्से में एक्सप्रेसवे के खुलने से स्थानीय लोगों को बड़ी सहूलियत होगी.

गेमचेंजर साबित होगा यह एक्सप्रेस-वे

दिल्ली से देहरादून जाने वाले लोगों की तादाद काफी ज्यादा है. खासकर उत्तराखंड की फेमस ट्रैवल डेस्टिनेशन्स और मंदिरों के दर्शन करने के लिए ज्यादातर लोग उत्तराखंड की राजधानी देहरादून होकर ही जाते हैं. हालांकि वर्तमान में दिल्ली से देहरादून जाने में 6.5 घंटे का समय लगता है. वहीं रास्ते में लोगों को भयंकर जाम का भी सामना करना पड़ता है. इसलिए नया दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे एक गेमचेंजर साबित हो सकता है.

कहां तक टोल फ्री होगा यह एक्सप्रेस-वे

दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे 210 किलोमीटर का होगा. यह एक्सप्रेसवे दिल्ली के अक्षरधाम से शुरू होगा और यहां से 18 किलोमीटर का रूट पूरी तरह से टोल फ्री होगा. 18 किलोमीटर तक कोई टोल बूथ नहीं होगा. वहीं इस पूरे एक्सप्रेसवे पर 16 एंट्री और एग्जिट पॉइंट होंगे, जो अलग-अलग रास्तों को एक-दूसरे से कनेक्ट करेंगे. इस एक्सप्रेस-वे का निर्माण 18 हजार करोड़ रुपये में हुआ है.

नई दिल्ली से कालकाजी और ओखला तक...दिल्ली की इन हॉट सीट पर टिकी सभी की नजरें

#delhiassemblyelection2025hot_seat

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में आज वोट डाले जा रहे हैं। 1.56 करोड़ मतदाताओं की वोटिंग के बाद 699 उम्मीदवारों की सियासी किस्मत तय कर देंगे। आठ फरवरी को मतगणना के बाद तय हो जाएगा कि दिल्ली में अगले पांच कौन राज करेगा।दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच कांटे का मुकाबला माना जा रहा है।

दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सभी 70 सीटों पर अपने-अपने प्रत्याशी उतार रखे हैं। बीजेपी दिल्ली की 68 सीट पर चुनाव लड़ रही है और दो सीटों पर उसके सहयोगी दल किस्मत आजमा रहे हैं, जिसमें एक सीट पर जेडीयू और एक सीट पर चिराग पासवान की एलजेपी (आर) के उम्मीदवार मैदान में हैं। जेडीयू बुराड़ी सीट पर तो एलजेपी (आर) देवली सीट पर चुनाव लड़ रही है। बसपा दिल्ली की 70 सीटों में से 69 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। बसपा ने बाबरपुर सीट पर अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम दो सीटों पर चुनाव लड़ रही, जिसमें एक सीट मुस्तफाबाद और दूसरी ओखला सीट है। इसके अलावा अजित पवार की एनसीपी ने 30 सीटों पर चुनाव लड़ा है। सीपीआई ने 6 सीट, तो सीपीएम दो सीटों पर चुनाव लड़ रही है। सीपीआई (माले) ने भी दिल्ली के दो सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं।

दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से जिन सीटों पर दिल्लीवासियों की खास निगाहें हैं जिनमें पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल से लेकर सीएम आतिशी और पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की सीटें शामिल हैं। इसके अलावा उन सीटों पर भी चर्चा हो रही है जहां से असदुद्दीन ओवैसी ने दिल्ली दंगों के दो आरोपियों को टिकट दिया है।

नई दिल्ली- जिन सीटों पर हर किसी की नजर रहेगी उनकी बात करें तो नई दिल्ली सीट इस सूची में सबसे ऊपर है। जहां 23 उम्मीदवार मैदान में हैं। नई दिल्ली विधानसभा सीट से 2008 में शीला दीक्षित निर्वाचित हुई थीं लेकिन 2013 से लगातार तीन बार आप संयोजक अरविंद केजरीवाल चुने जा रहे हैं। इस सीट पर सबसे ज्यादा चर्चा है क्योंकि यहां पूर्व सीएम केजरीवाल के मुकाबले बीजेपी के प्रवेश वर्मा और कांग्रेस के संदीप दीक्षित हैं। 2020 विधानसभा चुनाव में केजरीवाल के समर्थन में 46,758 वोट पड़े थे जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी बीजेपी के सुनील कुमार यादव को 25,061 वोट हासिल हुए थे।

जंगपुरा- जंगपुरा सीट की चर्चा तब शुरू हुई जब पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को आप ने यहां से टिकट दिया। मनीष सिसोदिया पटपड़गंज से चुनाव लड़ते आए हैं लेकिन इस बार उनकी सीट बदल दी गई। तीन बार के विधायक सिसोदिया के मुकाबले जंगपुरा में 2008 में इस सीट पर कांग्रेस के तरविंदर सिंह मारवाह ने चुनाव जीता था। जबकि 2013 में आप के मनिंदर सिंह धीर, 2015 और 2020 में प्रवीण कुमार को जीत हासिल हुई थी। अब मारवाह बीजेपी में हैं। इस बार बीजेपी ने उन्हें यहां से टिकट दिया है। जबकि कांग्रेस की ओर से फरहद सूरी मैदान में हैं।

कालकाजी- कालकाजी दिल्ली की हॉट सीटों में एक है। यहां से सीएम आतिशी विधायक हैं और इस बार की आप प्रत्याशी भी हैं। उनके मुकाबले बीजेपी ने अपने पूर्व सांसद रमेश बिधूड़ी तो कांग्रेस ने पूर्व विधायक अलका लांबा को टिकट दिया है। कालकाजी सीट पर 2008 का चुनाव कांग्रेस ने जीता था। 2013 में यह सीट अकाली दल को गई थी जिसके हरमीत सिंह कालका विजयी हुए थे। 2015 में आप ने अवतार सिंह को टिकट दिया जो पार्टी की उम्मीद पर खरे उतरे। पिछले चुनाव में आतिशी को प्रत्याशी बनाया गया था। वह करीब 11 हजार वोटों के अंतर से बीजेपी के धरमबीर से चुनाव जीत गई थीं।

ओखला- ओखला से आप के अमानतुल्लाह खान विधायक हैं। वह यहां से दो बार के विधायक हैं। इस पर चर्चा की बड़ी वजह यह है कि यहं से एआईएमआईएम ने दिल्ली दंगे के आरोपी शिफा उर रहमान खान को टिकट दिया है। बीजेपी ने मनीष चौधरी और कांग्रस ने अरीबा खान को प्रत्याशी बनाया है. अमानतुल्ला खान ने यह सीट 2020 में बडे़ मार्जिन से जीती थी। उन्हें 66 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे।

पटपड़गंज- पटपड़गंज की चर्चा मनीष सिसोदिया के इस सीट को छोड़ने और अवध ओझा को आप द्वारा प्रत्याशी बनाए जाने पर हो रही है। बीते तीन चुनाव से सिसोदिया इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

बिजवासन- बिजवासन विधानसभा सीट पर भी रोचक मुकाबला हो रहा है। यहां से आम आदमी पार्टी के दो पुराने विधायक दूसरी पार्टियों के टिकट पर मैदान में हैं। चंद महीने पहले तक आतिशी सरकार में मंत्री रहे कैलाश गलहोत भाजपा के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं, कांग्रेस के टिकट पर उतरे देवेंद्र सहरावत 2015 में बिजवासन सीट से आप के टिकट पर जीत दर्ज कर चुके हैं।

दिल्ली में वोटिंग जारी, बूथों पर लंबी कतार, जयशंकर, राहुल गांधी समेत कई दिग्गजों ने डाला वोट

#delhiassemblyelection_2025

दिल्ली विधासभा चुनाव के लिए वोटिंग जारी है। दिल्ली की सभी 70 सीटों पर वोटिंग हो रही है। 699 प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में आज कैद हो जाएगी।सबसे कम उम्मीदवार पटेल नगर और कस्तूरबा नगर में पांच-पांच हैं, जबकि नई दिल्ली सीट पर 23 उम्मीदवार हैं।लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने आज दिल्ली विधासभा चुनाव के लिए मतदान किया। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी अपना वोट डालने के लिए निर्माण भवन स्थित मतदान केंद्र पहुंचे थे।

पीएम मोदी की खास अपील

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के वोटरों से खास अपील की है। पीएम मोदी ने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा ‘दिल्ली विधानसभा चुनाव में आज सभी सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। यहां के मतदाताओं से मेरा आग्रह है कि वे लोकतंत्र के इस उत्सव में पूरे उत्साह के साथ हिस्सा लें और अपना कीमती वोट जरूर डालें। इस अवसर पर पहली बार वोट देने जा रहे सभी युवा साथियों को मेरी विशेष शुभकामनाएं। याद रखना है- पहले मतदान, फिर जलपान।

जनता बदलाव के मूड में है- जयशंकर

विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर और उनकी पत्नी क्योको जयशंकर ने एनडीएमसी स्कूल ऑफ साइंस एंड ह्यूमैनिटीज, तुगलक क्रिसेंट में स्थापित मतदान केंद्र पर अपना वोट डाला। विदेश मंत्री ने कहा, मैं शुरुआती दौर में मतदान करने वालों में से एक रहा हूं। मुझे लगता है कि जनता बदलाव के मूड में है।

भाजपा सांसद बांसुरी स्वराज ने वोट डाला

भाजपा सांसद बांसुरी स्वराज ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। वोट डालने पहुंची बांसुरी ने कहा, आज दिल्ली में लोकतंत्र का उत्सव है और मैं राष्ट्रीय राजधानी के मतदाताओं से अपील करती हूं कि वे बड़ी संख्या में बाहर आएं और अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करें ताकि दिल्ली विकसित राष्ट्र की विकसित राजधानी बन सके। आप देखेंगे, 8 फरवरी को कमल ही खिलेगा।

मनीष सिसोदिया ने किया मतदान

आप नेता और जंगपुरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक उम्मीदवार मनीष सिसोदिया ने नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र के लेडी इरविन सीनियर सेकेंडरी स्कूल में बने मतदान केंद्र पर अपना वोट डाला। उनकी पत्नी सीमा सिसोदिया भी यहीं मतदान किया। इस मौके पर मनीष सिसोदिया ने कहा, आज मैं अपने परिवार के साथ दिल्ली के लोगों के बेहतर जीवन के लिए वोट देने आया हूं। मैं दिल्ली के लोगों से अपील करूंगा कि वे अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए, अपने परिवारों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए, दिल्ली में बिजली और पानी के लिए वोट करें। ऐसी सरकार चुनें जो सबके लिए काम करे, ऐसी सरकार नहीं जो इधर-उधर की बातें और गुंडागर्दी करे।