श्रद्धांजलि समारोह व षोडशी भंडारा: परमार्थ निकेतन गंगा तट पर उमड़ा संत समाज,ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी को भावभीनी श्रद्
ऋषिकेश। भारत की प्राचीन, अक्षुण्ण और दिव्य सनातन संत परंपरा के उज्ज्वल नक्षत्र, परम पूज्य, परम विरक्त, ऋषितुल्य संत ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी महाराज की पावन स्मृति में आज परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश के मां गंगा के पावन तट पर राष्ट्रव्यापी श्रद्धांजलि समारोह एवं षोडशी भंडारा का भव्य आयोजन किया गया। यह आयोजन केवल एक श्रद्धांजलि नहीं यह आयोजन केवल एक श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि सनातन धर्म की जीवंत चेतना, संत परंपरा की अखंड धारा और तपस्वी जीवन मूल्यों का दिव्य उत्सव बन गया, जिसमें देशभर से पधारे संत-महात्माओं, महामण्डलेश्वरवृंद, आचार्यों एवं असंख्य श्रद्धालुओं की सहभागिता से संपूर्ण वातावरण आध्यात्मिक आलोक से आलोकित हो उठा। गंगा तट पर सजीव हुई सनातन संस्कृति प्रातःकाल से ही परमार्थ निकेतन में केसरिया वस्त्रों में दीप्तिमान संतों का सान्निध्य उमड़ पड़ा। वेद मंत्रों की गूंज, गंगा की अविरल धारा और श्रद्धालुओं की नम्र नमन भावनाओं के बीच ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सनातन संस्कृति स्वयं सजीव होकर साक्षी बन गई हो। सनातन धर्म की अमूल्य धरोहर बताया देश के विभिन्न पीठों, अखाड़ों और आश्रमों से पधारे पूज्य संतों एवं महामण्डलेश्वरवृंद ने एक स्वर में ब्रह्मलीन स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी महाराज को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए उनके विरक्ति, तपस्या और साधनामय जीवन को सनातन धर्म की अमूल्य धरोहर बताया। तपस्या और विरक्ति का जीवंत शास्त्र था उनका जीवन संतों ने अपने उद्बोधनों में कहा कि ब्रह्मलीन स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी महाराज का संपूर्ण जीवन विरक्ति, साधना और मौन उपदेश का साक्षात उदाहरण था। उन्होंने न कभी स्वयं का प्रचार किया और न ही बाह्य प्रदर्शन को महत्व दिया।उनका सान्निध्य ही साधना बन जाता था और उनकी दृष्टि ही दीक्षा।गीता जयंती एवं मोक्षदा एकादशी जैसे परम पावन दिवस पर उनका ब्रह्मलीन होना संत समाज ने दिव्य विधान बताया, जो उनके कर्मयोग, त्याग और वैराग्य का साकार प्रमाण है। पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी का भावपूर्ण संदेश परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा—“संत देह से विदा हो सकते हैं, चेतना से कभी नहीं। वे दृश्य से अदृश्य की यात्रा करते हैं और युगों की स्मृति बन जाते हैं।” अध्यक्षता व संतों की गरिमामयी उपस्थिति इस श्रद्धांजलि समारोह की अध्यक्षता निर्वाण पीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर श्री श्री 1008 स्वामी विशोकानन्द भारती जी महाराज (श्री सोमेश्वर धाम, कनखल, हरिद्वार) ने की। कार्यक्रम पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज के नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में संपन्न हुआ। दशनाम अखाड़े के पूज्य संतों की गरिमामयी उपस्थिति रही कार्यक्रम में योगऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज, गोविन्ददेव गिरि जी महाराज, अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत रवीन्द्र पुरी जी महाराज, साध्वी भगवती सरस्वती जी सहित देशभर के प्रमुख महामण्डलेश्वरवृंद, आचार्यगण एवं दशनाम अखाड़े के पूज्य संतों की गरिमामयी उपस्थिति रही। विशाल षोडशी भंडारा एवं पर्यावरण संदेश श्रद्धांजलि समारोह के उपरांत गंगा तट पर विशाल षोडशी भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें सैकड़ों संतों, श्रद्धालुओं और आगंतुकों ने प्रेमपूर्वक प्रसाद ग्रहण किया।इस अवसर पर सभी पूज्य संतों एवं अतिथियों को रुद्राक्ष के पौधे भेंट कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दिया गया। देशभर से आ रहे हैं श्रद्धांजलि संदेश मानस मर्मज्ञ मोरारी बापू, रमेशभाई ओझा, भाईश्री, देव संस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्ड्या, स्वामीनारायण आश्रम सहित देशभर के संतों, आश्रमों और भक्तों के भावभीने संदेश इस बात का प्रमाण हैं कि ब्रह्मलीन स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी संत परंपरा की आत्मा थे। सनातन चेतना का अमर प्रकाश यह आयोजन इस सत्य को पुनः स्थापित करता है कि सनातन धर्म अतीत नहीं, सतत प्रवाहित वर्तमान है।ब्रह्मलीन स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी महाराज भले ही स्थूल रूप में हमारे मध्य न हों, किंतु उनकी तपस्या, साधना और जीवन-दर्शन युगों-युगों तक सनातन चेतना के रूप में जीवित रहेगा।
8 hours ago
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