नैमिषारण्य में धार्मिक उत्साह: विमलानंद सरस्वती महाराज बने उत्तराधिकारी
संत समाज ने किया पट्टाभिषेकनैमिषारण्य
सीतापुर जिले के पावन तीर्थस्थल नैमिषारण्य में स्थित बाँके बिहारी रमण आश्रम के कथा प्रांगण में एक ऐतिहासिक और प्रेरणादायी कार्यक्रम का आयोजन हुआ । कई प्रतिष्ठित महामंडलेश्वरों और महंतों की गरिमामयी उपस्थिति में महामंडलेश्वर विद्यानंद सरस्वती और साध्वी मुमुक्षा ने विमलानंद सरस्वती महाराज का पट्टाभिषेक कर उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया ।
यह समारोह सनातन धर्म की अमर परंपरा को मजबूत करने का प्रतीक बन गया, जहां आध्यात्मिक गुरु परंपरा की निरंतरता को सभी ने हर्षोल्लास से स्वागत किया । आचार्य महामंडलेश्वर निर्वाण पीठाधीश्वर राजगुरु स्वामी विशोकानंद भारती जी महाराज, महामंडलेश्वर देवेंद्रानंद सरस्वती, महामंडलेश्वर विद्यानंद सरस्वती, महामंडलेश्वर विद्याचैतन्य सरस्वती तथा महामंडलेश्वर सदाशिवेंद्र सरस्वती ने विमलानंद सरस्वती महाराज को चादर ओढ़ाकर पट्टाभिषेक की रस्म पूरी की । इसके बाद 84 कोसी परिक्रमा के अध्यक्ष महंत नारायण दास, महंत बजरंग मुनि, महंत राजनारायण पांडेय, महंत सुरेश दास अवस्थी, महंत प्रीतम दास, महंत अंजनी दास, महंत मनमोहन दास, महंत पवन दास, रामानुज कुमारी माताजी, भाजपा जिला अध्यक्ष राजेश शुक्ला, विधायक रामकृष्ण भार्गव, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष मुनेंद्र अवस्थी तथा विश्व हिंदू परिषद के जिला अध्यक्ष विपुल सिंह ने माल्यार्पण कर अंगवस्त्र भेंट किए । इस पावन अवसर पर बड़ी संख्या में संतजन और स्थानीय भक्तों की उपस्थिति ने वातावरण को दिव्य ऊर्जा से भर दिया, जो सनातन संस्कृति की जीवंतता का जीवंत प्रमाण था । यह कार्यक्रम न केवल आश्रम की परंपरा को सशक्त बनाता है, बल्कि समाज में धार्मिक एकता और आध्यात्मिक जागरण का संदेश भी देता है ।विमल मिश्र से विमलानंद बन युवाओं के बने प्रेरकसीतापुर के पावन तीर्थ नैमिषारण्य में एक युवा हृदय ने सांसारिक मोह त्यागकर आध्यात्मिक यात्रा का संकल्प लिया । बजरंगी विमल मिश्र, जो विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में जानी जाते थे, अब स्वामी विमलानंद सरस्वती महाराज के नाम से सनातन धर्म की सेवा में समर्पित हो चुकी हैं । यह परिवर्तन न केवल एक व्यक्तिगत क्रांति है, बल्कि युवा पीढ़ी के लिए एक जीवंत प्रेरणा स्रोत बन गया है, जो दर्शाता है कि कैसे एक साधारण जीवन से शुरू होकर आध्यात्मिक नेतृत्व तक का सफर संभव है । वीएचपी से जुड़ने के बाद वे 'बजरंगी विमल मिश्र' के नाम से प्रसिद्ध हुईं, जहां उन्होंने नैमिषारण्य की हरियाली संरक्षण, 84 कोसी परिक्रमा के आयोजन और हिंदू एकता के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की । उनके सोशल मीडिया हैंडल्स पर राम भक्ति, पर्यावरण जागरूकता और सामाजिक सद्भाव के संदेशों की भरमार रही, जो युवाओं को जोड़ने का माध्यम बने । लेकिन आंतरिक आह्वान ने उन्हें सांसारिक बंधनों से मुक्त होने का मार्ग दिखाया। 15 अक्टूबर 2025 को, भभूत स्नान के बाद उन्होंने स्वयं का पिंडदान कर सन्यास की दीक्षा ली, जो सनातन परंपरा की एक दुर्लभ रस्म है ।
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