कतरनी चूरा के स्वाद का दीवाना है बिहार, जानें कैसे होता है तैयार
मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती”, यह महज गाने के बोल नहीं बल्कि किसानों के जीवन को चलाने वाला चरखा है. इसी धरती पर उपजे अनाज से बिहार ही नहीं बल्कि देश के कई राज्य सुगंधित हो रहे हैं. बात मकरसंक्रांति के त्योहार की हो तो सबसे पहले चूरा दही का नाम सुनकर मुंह में पानी आ जाता है. ऐसे में भागलपुर का कतरनी चूरा अपनी सौंधी खुशबू से लोगों को दीवाना बना देता है. इसके स्वाद के लोग कायल हैं. भागलपुर व बांका के क्षेत्र में कतरनी धान से तैयार किए गए चूरे को विदेशों में भी भेजा जाता है.
भागलपुरी कतरनी चूरे की खासियत इसकी सौंधी खुशबू और मीठा स्वाद है जो केवल यहां की मिट्टी से ही मिलता है. भागलपुर के जगदीशपुर और सुलतानगंज में 1200 एकड़ व बांका में 1050 एकड़ में कतरनी धान की खेती होती है. सुल्तानगंज के आभा रतनपुर गांव पहुंचकर कतरनी चूरा के तैयार होने की विधि को जानने का प्रयास किया. चूरा मील में मौजूद किसान प्रणीत उर्फ सोना जी ने बताया कि हमारे यहां प्रदेश की मिट्टी से खुशबू वाला चावल और चूरा तैयार होता है. महाभारत काल में धृतराष्ट्र को यहां प्रदेश से ही सुगंधित चावल भेजा जाता था. हमारे यहां की मिट्टी की यह गुणवत्ता है कि यह इतनी खुशबू करती है, इसमें किसी भी फ्लेवर का इस्तेमाल नहीं किया जाता. चूरा पहले स्टीम में जाने के बाद चिपडे होने वाले मशीन में जाकर बाहर निकलता है.
क्यों बड़ी डिमांड?
किसान प्रणीत ने कहा कि यहां के कतरनी में खुशबू होती है. बाकी अन्य जगहों पर भी लोग कतरनी लगाते हैं लेकिन उसमें खुशबू कम होती है. हमारे यहां लोगों की भीड़ लगी है यह इतना टेस्टी चूरा है कि इसका वर्णन नहीं किया जा सकता. खाते ही ये मुंह में घुल जाता है. यही गुणवत्ता के कारण लोग कतरनी चूरा खरीदने के लिए उमड़ पड़े हैं. पिछले साल कतरनी चूड़ा 130 रुपए किलो बिकता था इस बार उसमें 10 रुपए की बढ़ोतरी हो गई है.
ये है बनाने का प्रोसेस
किसान प्रणीत ने बताया कि हमारे पास एपीओ है. उसके तहत महिलाएं खेत से धान को काटकर लाती है, फिर हम लोग उसे मशीन से तैयार करते हैं. पहले ड्रायर में हवा से उसे साफ किया जाता है फिर पानी में कुछ घंटे फूलाने के बाद उसे धोते हैं. 4 घंटे पानी में फूलता है फिर 12 घंटे हम उसे आराम देते हैं. उसके बाद बॉयलर के थ्रू मशीन में जाता है, भट्टी में बालू के बीच उसे भूंजा जाता है जिसे हम लोग स्टीम कहते हैं. फिर मशीन में चूरा पंच होता है और उसकी पैकेजिंग होती है और उसके बाद मार्केट में भेजा जाता है.
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