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देशभर में वक्फ संशोधन अधिनियम लागू, केंद्र सरकार ने जारी की अधिसूचना


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वक्फ (संशोधन) अधिनियम-2025 आज से लागू होगा है। केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी की है। अधिसूचना के मुताबिक देश में 8 अप्रैल से वक्फ अधिनियम को प्रभावी कर दिया गया है। वक्फ संशोधन अधिनियम को लोकसभा और राज्यसभा से पारित होने के बाद राष्ट्रपति ने भी मंजूरी दे दी थी। इसके बाद यह तय नहीं था कि नया कानून कब से लागू होगा। 

अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय इसको लेकर अधिसूचना जारी कर दी है। मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम (2025 का 14) की धारा 1 की उपधारा (2) की शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र सरकार 8 अप्रैल-2025 से इस अधिनियम के प्रावधान लागू करती।

बता दें कि विपक्ष के विरोध और हंगामे के बीच ये बिल संसद के दोनों से पारित हुआ था। चार अप्रैल को राज्यसभा में इसके पक्ष में 128 और विपक्ष में 95 वोट पड़े थे। जबकि, लोकसभा में इसके पक्ष में 288 और विपक्ष में 232 वोट पड़े थे। दोनों सदनों में विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया था। विपक्षी दलों ने इसे असंवैधानिक करार दिया था। 

मुस्लिम संगठन कर रहे विरोध

वक्फ संशोधन अधिनियम-2025 को लेकर कई मुस्लिम संगठनों ने विरोध जताया है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य संगठनों का कहना है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों की स्वायत्तता और धार्मिक आजादी पर हमला है। उनका तर्क है कि इसमें गैर-मुस्लिम सदस्यों को वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में शामिल करने, ‘वक्फ बाय यूजर’ प्रावधान को हटाने, और जिला कलेक्टर को वक्फ संपत्तियों के स्वामित्व का निर्धारण करने का अधिकार देने जैसे बदलाव मुस्लिम समुदाय के हितों के खिलाफ हैं।

नए वक्फ कानून में क्या-क्या?

हर कोई अपनी संपत्ति 'वक्फ' नहीं कर सकेगा

कानून में एक महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि वक्फ द्वारा उपयोगकर्ता का खंड हटाया गया है, और यह साफ किया गया है कि वक्फ संपत्ति से संबंधित मामले अब पूर्वव्यापी तरीके से नहीं खोले जाएंगे, जब तक कि वे विवादित न हों या सरकारी संपत्ति न हों। इसके अलावा वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का समर्थन किया गया है, ताकि वे वक्फ मामलों में रुचि रखने वाले या विवादों में पक्षकार बन सकें।

वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम, महिला सदस्यों का नामांकन

नए कानून में वक्फ बोर्डों के संचालन में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं, जैसे कि अब बोर्ड में गैर-मुस्लिम और कम से कम दो महिला सदस्यों को नामित किया जाना प्रस्तावित है। इसके अलावा, केंद्रीय वक्फ परिषद में एक केंद्रीय मंत्री, तीन सांसद, दो पूर्व न्यायाधीश, चार 'राष्ट्रीय ख्याति' के व्यक्ति और वरिष्ठ सरकारी अधिकारी होंगे, जिनमें से कोई भी इस्लामी धर्म से संबंधित नहीं होगा।

सरकारी अधिकारी को जांच की शक्ति

बता दें कि अगस्त 2024 में संसद में जो विधेयक पेश किया गया था, उसमें वक्फ से जुड़े विवादों के मामलों में जिला कलेक्टर को जांच की शक्ति दी गई थी। हालांकि, जेपीसी ने जिला कलेक्टर वाली शक्ति को खत्म करने पर सहमति जता दी और राज्य सरकार को अब इन मामलों की जांच करने के लिए एक वरिष्ठ अधिकारी नामित करने का अधिकार देना प्रस्तावित कर दिया।

वक्फ संपत्ति का केंद्रीय डाटाबेस में पंजीकरण

मौजूदा कानून के तहत पंजीकृत हर वक्फ संपत्ति की जानकारी अधिनियम लागू होने के बाद छह महीने के अंदर सेंट्रल डाटाबेस में देना जरूरी है। इतना ही नहीं डाटाबेस में किसी भी सरकारी संपत्ति को जिलाधिकारी के पास चिह्नित किया जाएगा, जो कि बाद में इस मुद्दे पर जांच कर सकेंगे। कानून में शामिल इस संशोधन में कहा गया है कि अगर वक्फ संपत्ति को केंद्रीय पोर्टल में नहीं डाला जाता तो इससे वक्फ की जमीन पर अतिक्रमण होने या विवाद पैदा होने पर अदालत जाने का अधिकार खत्म हो जाएगा। हालांकि, एक अन्य स्वीकृत संशोधन अब मुतवल्ली (कार्यवाहक) को राज्य में वक्फ न्यायाधिकरण की संतुष्टि बाद कुछ स्थितियों में पंजीकरण के लिए अवधि बढ़ाने का अधिकार देगा। 

अंतिम नहीं होगा न्यायाधिकरण का फैसला

वक्फ कानून, 1995 के तहत वक्फ न्यायाधिकरण को सिविल कोर्ट की तरह काम करने की स्वतंत्रता दी गई थी। इसका फैसला अंतिम और सर्वमान्य माना जाता था। इन्हें किसी भी सिविल कोर्ट में चुनौती नहीं दी सकती थी। ऐसे में वक्फ न्यायाधिकरण की ताकत को सिविल अदालत से ऊपर माना जाता था। हालांकि, कानून में अब वक्फ न्यायाधिकरण के गठन के तरीके को भी बदला जा रहा है। इसमें कहा गया है कि वक्फ न्यायाधिकरण में एक जिला जज होगा और एक संयुक्त सचिव रैंक का राज्य सरकार का अधिकारी सदस्य के तौर पर जुड़ा होगा। वक्फ संशोधन विधेयक में कहा गया कि न्यायाधिकरण का फैसला अंतिम नहीं होगा और इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकेगी।

बंगाल शिक्षक भर्ती मामले में राहुल गांधी की एंट्री, राष्ट्रपति को पत्र लिख की ये मांग


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सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में स्कूल सेवा आयोग के जरिए हुई करीब 25,000 शिक्षकों और गैर-शिक्षकों की बहाली को रद्द कर दिया है।बीते गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने स्कूल सेवा आयोग की 2016 की शिक्षक और गैर-शिक्षक भर्ती प्रक्रिया को रद्द करते हुए तीन महीने के भीतर नई भर्ती प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया। इससे पहले अप्रैल 2023 में कलकत्ता हाईकोर्ट ने भी यही फ़ैसला सुनाया था. उस फ़ैसले को सरकार और सेवा आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। शिक्षकों की भर्ती रद होने का मामला अब गरमाता जा रहा है। इस बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस मामले में राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखी है। राहुल गांधी ने इस मामले में राष्ट्रपति से हस्तक्षेप की मांग की है।

राहुल ने पत्र में क्या?

राहुल गांधी ने इस संबंध में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किया। राहुल ने अपने पोस्ट में लिखा, मैंने भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी को पत्र लिखकर पश्चिम बंगाल में हजारों योग्य स्कूल शिक्षकों के मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है, जिन्होंने न्यायपालिका द्वारा शिक्षक भर्ती प्रक्रिया को रद्द करने के बाद अपनी नौकरी खो दी है। उन्होंने आगे कहा, 'मैंने उनसे अनुरोध किया है कि वे सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का आग्रह करें कि निष्पक्ष तरीके से चुने गए उम्मीदवारों को जारी रखने की अनुमति दी जाए।

किसी को आपकी नौकरियां नहीं छीनने दूंगी-ममता बनर्जी

इससे पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को राज्य के बर्खास्त शिक्षकों से मुलाकात की थी। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के फैसले से प्रभावित हुए हजारों शिक्षकों ने अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए 'डिप्राइव्ड टीचर्स एसोसिएशन' नामक संगठन बनाया है। संगठन का दावा है कि उसके करीब 15 हजार सदस्य हैं। 

कोर्ट के आदेश के बाद एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु से मुलाक़ात की इच्छा जताई थी, लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खुद इस बैठक में शामिल होने की सहमति दी। सोमवार को नेताजी इंडोर स्टेडियम में ममता बनर्जी ने बर्खास्त शिक्षकों से मुलाकात के दौरान कहा था कि मैं पश्चिम बंगाल में नौकरी गंवाने वाले शिक्षकों के साथ खड़ी हूं, उनका सम्मान वापस दिलाने के लिए हरसंभव प्रयास करूंगी। जब तक मैं जिंदा हूं, किसी को भी आपकी नौकरियां नहीं छीनने दूंगी।

दुबई के क्राउन प्रिंस ने पीएम मोदी से की मुलाकात, जानें कैसी है भारत-यूएई की साझेदारी



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दुबई के क्राउन प्रिंस शेख हमदान बिन मोहम्मद अल मकतूम दो दिवसीय भारत दौरे पर हैं। मंगलवार को दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचने पर उनका भव्य स्वागत किया गया। शेख मोहम्मद अल मकतूम की यात्रा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण पर हो रही है। ये उनकी पहली आधिकारिक भारत यात्रा है। शेख हमदान के साथ कई मंत्री, वरिष्ठ सरकारी अधिकारी और एक हाई लेवल बिजनेस प्रतिनिधिमंडल भी भारत पहुंचा है।

क्राउन प्रिंस शेख हमदान ने दिल्ला में पीएम मोदी से मुलाकात की। पीएम मोदी से मुलाकात के बाद शेख मोहम्मद ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर ट्वीट कर अपनी खुशी व्यक्त की। उन्होंने लिखा कि आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर मुझे खुशी हुई। हमारी बातचीत ने यूएई और भारत के बीच संबंधों की मजबूती दो दिखाता है। उन्होंने कहा कि ये संबंध विश्वास पर आधारित हैं, जो इतिहास द्वारा आकारित हुए हैं और हमारे समान दृष्टिकोण से प्रेरित हैं, जिसमें अवसरों, नवाचार और स्थायी समृद्धि की दिशा में एक बेहतर भविष्य बनाने का लक्ष्य है। 

क्राउन प्रिंस से मुलाकात पर पीएम मोदी

नई दिल्ली में दुबई के क्राउन प्रिंस शेख हमदान से मुलाकात के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने भी खुशी जताते हुए भारत और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के बीच मजबूत द्विपक्षीय सहयोग पर जोर दिया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर कहा कि दुबई के क्राउन प्रिंस शेख हमदान बिन मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम से मिलकर खुशी हुई। दुबई ने भारत-यूएई व्यापक रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि यह विशेष यात्रा हमारी गहरी दोस्ती को दर्शाता है। साथ ही भविष्य में और भी मजबूत सहयोग का मार्ग प्रशस्त करती है।

एस जयशंकर और राजनाथ सिंह से भी होगी मुलाकात

विदेश मंत्रालय के एक आधिकारिक बयान के अनुसार यात्रा के दौरान शेख मोहम्मद अल मकतूम पीएम मोदी से मुलाकात करने के साथ-साथ विदेश मंत्री एस जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ बैठक करेंगे। वह भारत-यूएई संबंधों को मजबूत करने के लिए एक व्यापार गोलमेज सम्मेलन में भी भाग लेंगे। विदेश मंत्रालय ने बयान में कहा है कि क्राउन प्रिंस की यात्रा भारत-यूएई के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करेगी और दुबई के साथ हमारे बहुआयामी संबंधों को मजबूत करेगी।

कैसे हैं भारत-यूएई संबंध?

यूएई से भारत की नई दौर की यारी ने अगस्त 2015 में आकार लेना शुरू हुआ जब नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालने के बाद पहली बार इस अरब देश का दौरा किया। 1981 में इंदिरा गांधी की यात्रा के बाद 34 वर्षों में यह किसी भारतीय प्रधान मंत्री की पहली यात्रा थी।

भारत और यूएई के बीच व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (सीईपीए) ने 18 फरवरी 2025 को ही अपने हस्ताक्षर के तीन साल पूरे किए हैं। सीईपीए एक पूर्ण और गहन समझौता है जिस पर 18 फरवरी 2022 को पीएम मोदी और यूएई राष्ट्रपति और अबू धाबी के शासक महामहिम शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान के बीच एक वर्चुअल शिखर सम्मेलन के दौरान हस्ताक्षर किए गए थे। यह 1 मई 2022 से लागू हुआ।

सीईपीए पर साइन होने के बाद से, दोनों देशों के बीच व्यापार वित्त वर्ष 2020-21 में 43.3 बिलियन अमरीकी डॉलर से लगभग दोगुना होकर 2023-24 में 83.7 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया। अप्रैल से दिसंबर 2024 के दौरान यह 71.8 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंच गया। 2030 तक दोनों देशों के बीच गैर-तेल व्यापार को 100 बिलियन अमरीकी डॉलर के स्तर तक ले जाने के लक्ष्य है और आंकड़ें दिखा रहे हैं कि प्रगति उसी रास्ते पर हो रही है।

अगर भारत के निर्यात के संदर्भ में बात करें तो गैर-तेल निर्यात वित्त वर्ष 2023-24 में 27.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया- यानी सीईपीए के लागू होने के बाद से 25.6% की औसत वृद्धि दर्ज हुई है।

यूएई में सबसे बड़ा जातीय समुदाय भारतीय प्रवासी का

दोनों देशों के बीच इन सभी रणनीतिक संबंधों से परे सबसे बड़ा जुड़ाव ‘पीपुल टू पीपुल' स्तर पर है। यूएई में मौजूद भारतीय दूतावास की साइट के अनुसार भारतीय प्रवासी समुदाय यूएई में सबसे बड़ा जातीय समुदाय है जो वहां की आबादी का लगभग 30 प्रतिशत है। यूएई के रिकॉर्ड के अनुसार 2021 में निवासी भारतीय नागरिकों की संख्या 3.5 मिलियन यानी 35 लाख होने का अनुमान है। लगभग 20% प्रवासी अबू धाबी के अमीरात में हैं और बाकी दुबई सहित 6 उत्तरी अमीरात में हैं। यूएई में रहने वाले ये भारतीय प्रवासी भारत की इकनॉमी के लिए भी बड़ी अहमियत रखते हैं। यूएई में प्रवासी भारतीयों ने 2022 में 20 बिलियन डॉलर भारत वापस भेजा था।

CWC बैठक में खरगे का भाजपा-संघ पर जोरदार वार, सरदार पटेल की विरासत हड़पने का लगाया आरोप


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कांग्रेस अधिवेशन की शुरुआत गुजरात के अहमदाबाद में कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की बैठक के साथ हो गई है। इस बैठक में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, उनकी मां और कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे मौजूद रहे। हालांकि, गांधी परिवार की बेटी प्रियंका गांधी वाडरा इस दौरान नदारद दिखी। पार्टी अध्यक्ष खरगे ने मीटिंग की कमान संभाली।

देश के नायकों के खिलाफ साजिश रचने का आरोप

पहले दिन मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मंगलवार को बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर तीखा हमला बोला। मल्लिकार्जुन खरगे ने भाजपा और संघ पर सरदार पटेल की विरासत हड़पने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि भाजपा और संघ देश के नायकों के खिलाफ साजिश रच रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष के अनुसार, सरदार पटेल की विचारधारा संघ के खिलाफ थी और उन्होंने संघ पर प्रतिबंध भी लगाया था।

पटेल-पंडित नेहरू के संबंधों को गलत तरीके से दिखाने की कोशिश-खरगे

मल्लिकार्जुन खरगे ने आरोप लगाया कि पिछले कई वर्षों से देश में कांग्रेस पार्टी के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है और ये माहौल वो लोग बना रहे हैं जिनके पास अपनी उपलब्धियों के तौर पर दिखाने के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने भाजपा-आरएसएस पर हमला करते हुए कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के तौर पर दिखाने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं है। उन्होंने यह दिखाने की साजिश की कि सरदार पटेल और पंडित नेहरू के बीच अच्छे संबंध नहीं थे। जबकि सच्चाई यह है कि वे एक ही सिक्के के दो पहलू थे। कई घटनाएं और दस्तावेज उनके सौहार्दपूर्ण संबंधों के गवाह हैं। खरगे ने दावा किया कि दोनों के बीच लगभग रोजाना पत्राचार होता था। नेहरू जी सभी मामलों में उनकी सलाह लेते थे। नेहरू जी पटेल साहब का बहुत सम्मान करते थे। अगर उन्हें कोई सलाह लेनी होती तो वे खुद पटेल जी के घर जाते थे।

संघ का पटेल की विरासत पर दावा करना हास्यास्पद-खरगे

कांग्रेस अध्यक्ष ने आगे कहा कि पटेल की विचारधारा आरएसएस के विचारों के विपरीत थी और उन्होंने संगठन पर प्रतिबंध भी लगाया था, लेकिन यह हास्यास्पद है कि आज उस संघ के लोग सरदार पटेल की विरासत पर दावा करते हैं।' खरगे ने दावा किया कि महात्मा गांधी और सरदार पटेल ने ही बाबा साहब आंबेडकर को संविधान सभा का सदस्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। खुद आंबेडकर ने 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में अपने अंतिम भाषण में कहा था कि 'कांग्रेस पार्टी के समर्थन के बिना संविधान नहीं बनाया जा सकता था। लेकिन जब संविधान बनाया गया, तो आरएसएस ने गांधीजी, पंडित नेहरू, डॉ आंबेडकर और कांग्रेस की खूब आलोचना की। उन्होंने रामलीला मैदान में संविधान और इन नेताओं के पुतले जलाए।

जम्मू-कश्मीर विधानसभा में वक्फ कानून पर बवाल, नेकां और पीपुल्स कांफ्रेंस विधायक आपस में भिड़े

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जम्मू-कश्मीर विधानसभा में मंगलवार को लगातार दूसरे दिन नए वक्फ कानून पर हंगामा हुआ। इस दौरान नेकां और पीपुल्स कांफ्रेंस के बीच नोकझोंक हुई। नेकां और पीडीपी विधायकों के बीच भी बहस हुई। नेकां के विधायक वक्फ कानून पर विधानसभा में बहस की मांग पर अड़ गए। नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के विधायकों ने सदन में बिल पर चर्चा की मांग करते हुए नारेबाजी की।

यह लगातार दूसरा दिन था जब वक्फ संशोधन अधिनियम पर चर्चा की मांग को लेकर विपक्षी दलों के हंगामे के चलते सदन की कार्यवाही बाधित हुई। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की ओर से कानून का विरोध करते हुए एक नया प्रस्ताव मंगलवार को पेश किया गया, जिसके बाद हंगामा शुरू हो गया। पीडीपी विधायक वहीद उर रहमान पारा द्वारा मंगलवार को वक्फ संशोधन अधिनियम पर चर्चा के लिए एक नए प्रस्ताव दिया गया।

पीडीपी विधायक को सदन से बाहर निकाला

वक्फ अधिनियम पर हंगामे के बाद विधानसभा को दूसरे दिन फिर से स्थगित करना पड़ा और एक पीडीपी सदस्य वहीद पारा को मार्शलों के जरिए सदन से बाहर निकाल दिया गया। मंगलवार की सुबह जब सदन की कार्यवाही पुनः शुरू हुई तो पारा वक्फ अधिनियम के खिलाफ अपने प्रस्ताव की प्रति लेकर आसन के समीप आ गए और अध्यक्ष से बहस करने लगे तथा केंद्र सरकार को संदेश देने के लिए इसे पारित करने की मांग करने लगे। विधानसभा अध्यक्ष जब पारा को अपनी सीट पर लौटने के लिए कह रहे थे, तभी नेकां विधायक अब्दुल मजीद लारमी ने उन्हें पीछे धकेलने की कोशिश की। इसी दौरान अध्यक्ष ने मार्शल को आदेश दिया कि वहीद पारा को सदन से बाहर ले जाएं। हालांकि पारा को बाहर निकाले जाने के बाद भी हंगामा जारी रहा। कई नेशनल कॉन्फ्रेंस और निर्दलीय विधायक आसान के समीप पहुंचकर वक्फ संशोधन कानून पर चर्चा की मांग को लेकर नारेबाजी करते रहे। इस दौरान सज्जाद लोन और नेकां के सलमान सागर के बीच तीखी बहस भी हुई।

सीएम अब्दुल्ला के रिजिजू से मिलने

बीते दिन नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ प्रस्ताव लाने की अपनी योजना दोहराई थी। पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के प्रमुख सज्जाद लोन सहित घाटी के प्रमुख नेताओं ने भी इस पर अपना पक्ष रखा। लोन ने अधिनियम पर खुली चर्चा की जरूरत पर जोर दिया और विधेयक पारित होने के तुरंत बाद केंद्रीय संसदीय मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू से मिलने के लिए सीएम अब्दुल्ला की आलोचना की। लोन का कहना था कि उनसे मिलने की कोई जरूरत नहीं थी। इससे बहुत गलत संदेश जाता है।

कल बिल की कॉपी फाड़ी गई थी

वहीं, सोमवार को वक्फ कानून पर जम्मू-कश्मीर विधानसभा में जमकर हंगामा हुआ। सत्ता पक्ष के विधायकों ने इसे मुस्लिम विरोधी करार दिया। भाजपा ने इसका विरोध किया। इससे मामला गरमा गया। दोनों पक्षों में तीखी नोक-झोंक हुई। इस दौरान एनसी के विधायक ने सदन में वक्फ कानून की कॉपी फाड़ दी। एक एनसी विधायक ने अपनी जैकेट फाड़कर सदन में लहराई। इसके बाद स्पीकर ने सदन की कार्रवाई पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी। एनसी समेत अन्य दलों ने वक्फ कानून के खिलाफ रेजोल्यूशन लाने की बात कही थी।

बिहार की राजनीति में पूर्व आईपीएस शिवदीप लांडे की इंट्री : अपनी नई पार्टी का किया एलान, सभी 243 विधान सभा सीटों पर उनकी पार्टी लड़ेगी चुनाव


डेस्क : बिहार कैडर के तेज तर्रार और सुपर कॉप के नाम से जाने जानेवाली 2006 बैच के IPS अधिकारी शिवदीप वामनराव लाण्डे ने 19 सितंबर 2024 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसकी जानकारी उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक के माध्यम से दी थी। इस्तीफा देने के पीछे उन्होंने कोई खास वजह नहीं बताई थी। अपने इस्तीफे में उन्होंने साफ कहा था कि वह आगे बिहार में ही रहेंगे और बिहार ही उनकी कर्मभूमि होगी।

पुलिस की नौकरी से इस्तीफा देने के बाद से ही इस बात के कयास लगाए जा रहे थे उनकी राजनीति में इंट्री होगी। लेकिन शिवदीप लांडे राजनीति में उतरने की बात से पहले इनकार करते रहे थे। लेकिन अब उनकी बिहार की राजनीति में इंट्री हो गई है। आज खुद उन्होंने प्रेस-वार्ता का आयोजन कर इस बात का एलान किया है। उन्होंने अपनी नई राजनीतिक पार्टी का नाम हिंद सेना पार्टी रखा है। पार्टी के ऐलान के साथ शिवदीप लांडे ने यह भी ऐलान किया है कि उनकी पार्टी बिहार 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। शिवदीप लांडे ने कहा कि उनकी पार्टी बिहार में कास्ट फैक्टर से हटकर सभी धर्म जात के लोगों के लिए काम करेगी और पार्टी में सभी को एक समान मौका मिलेगी। 

लांडे ने कहा कि उनकी पार्टी का उद्देश्य बिहार के हक के लिए संघर्ष करना और युवाओं को नेतृत्व में लाना है। शिवदीप लांडे ने प्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि, "मैं जब आईपीएस अधिकारी था, तब मेरी हर शुरुआत 'जय हिंद' से होती थी। इसलिए अपनी पार्टी के नाम में ‘हिंद’शब्द को शामिल किया। अब यह 'हिंद सेना' बिहार के अधिकारों की लड़ाई लड़ेगी।"

लांडे ने बताया कि उन्होंने पिछले एक महीने में बेतिया और बाघा को छोड़कर बिहार के लगभग सभी जिलों का दौरा किया। "गांवों में आज़ादी के 70 साल बाद भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। कई पहाड़ी गांवों में मोटर से पानी तक नहीं पहुंचा है, पक्के मकान नहीं हैं, और लोग दो वक्त की रोटी व पहनने के कपड़ों के लिए जूझ रहे हैं।" उनका कहना है कि बिहार के युवाओं में बदलाव की चाह दिखती है, लेकिन सवाल यह है कि बदलाव आए कैसे? उन्होंने कहा कि, लोकतंत्र के माध्यम से, वोट के जरिए, मूलभूत सुविधाओं की लड़ाई लड़ी जा सकती है।

शिवदीप लांडे ने कहा कि जो भी लोग 'हिंद सेना' से जुड़ेंगे, उन्हें तीन मूल सिद्धांतों मानवता, न्याय और सेवा का पालन करना होगा। उन्होंने कहा कि, "हमारी पार्टी संवेदनशील सोच रखने वाले लोगों का मंच होगी।" उन्होंने स्पष्ट किया कि पार्टी आगामी बिहार विधानसभा चुनाव लड़ेगी और 243 सीटों पर प्रत्याशी उतारने की तैयारी करेगी। उन्होंने साफ किया कि, "चेहरा भले ही कोई और हो, लेकिन हर प्रत्याशी के पीछे नाम शिवदीप लांडे का होगा।" फिलहाल, पार्टी बिहार के हर कोने में जाकर जनता की राय ले रही है और स्थानीय मुद्दों को समझ रही है।

शिवदीप लांडे ने खुद को 'हिंद सेना' का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित किया है और कहा कि बिहार में उनका जनसंपर्क अभियान जारी रहेगा। बिहार की राजनीति में यह कदम क्या नया मोड़ लाएगा, यह आने वाले वक्त में देखने वाली बात होगी।

शेख हसीना ने भरी बांग्लादेश लौटने की हुंकार, बोलीं- मैं मरी नहीं...अल्लाह ने मुझे किसी कारण से जिंदा रखा


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पड़ोसी देश बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद भी राजनीतिक अस्थिरता का दौर कायम है। इस बीच सत्ता से बेदखल हो चुकी पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने एक बार फिर हुंकार भरी है। बांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना ने अपने समर्थकों से कहा कि वह अपने देश वापस आएंगी। बता दें कि पिछले साल अगस्त में अवामी लीग की अध्यक्ष शेख हसीना को हिंसक आंदोलन के बाद बांग्लादेश से भागकर भारत आना पड़ा था। उन्होंने फिलहाल भारत में शरण ली है।

सोशल मीडिया पर आवामी लीग के कार्यकर्ताओं से बात करते हुए हसीना ने कहा कि मैं मरी नहीं, इसका मतलब है कि मैं फिर से वापस बांग्लादेश आऊंगी। अल्लाह ने लोगों को संदेश दे दिया है। वापस आने के बाद अंतरिम सरकार और उनके लोगों को जेल से लेकर अदालत तक मैं घसीटूंगी।

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस पर निशाना साधते हुए शेख हसीना ने कहा कि वह ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने कभी लोगों से प्यार नहीं किया। उन्होंने ऊंची ब्याज दरों पर छोटी रकम उधार दी और उस पैसे का इस्तेमाल विदेश में ऐशो-आराम से रहने में किया। हम तब उनके दोगलेपन को समझ नहीं पाए, इसलिए हमने उनकी बहुत मदद की। लेकिन लोगों को कोई फायदा नहीं हुआ। उन्होंने अपने लिए अच्छा किया। फिर सत्ता की ऐसी लालसा पैदा की जो आज बांग्लादेश को जला रही है।

बांग्लादेश अब एक "आतंकवादी देश" बन गया-हसीना

शेख हसीना ने आगे कहा कि बांग्लादेश अब एक "आतंकवादी देश" बन गया है। उन्होंने कहा कि "हमारे नेताओं और कार्यकर्ताओं को इस तरह से मारा जा रहा है, जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। अवामी लीग, पुलिस, वकील, पत्रकार, कलाकार, हर किसी को निशाना बनाया जा रहा है।" इसके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने बांग्लादेश में मीडिया पर भी शिकंजा कसने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा, "बलात्कार, हत्या, डकैती, कुछ भी रिपोर्ट नहीं किया जा सकता। और अगर रिपोर्ट किया जाता है, तो टीवी चैनल या अखबार को निशाना बनाया जाएगा।

मैं जिंदा हूं और मैं जल्द ही बांग्लादेश आऊंगी-हसीना

बातचीत के दौरान आवामी लीग के कार्यकर्ताओं के एक सवाल के जवाब में हसीना ने कहा, अल्लाह ने मुझे किसी वजह से जिंदा रखा है और वह दिन जरूर आएगा जब न्याय होगा। मैं जिंदा हूं और मैं जल्द ही बांग्लादेश आऊंगी। आप सभी लोग धैर्य बनाकर रहें। आपके साथ न्याय होगा। जो भी लोग आपको मारने के लिए आ रहे हैं, उन्हें खोज-खोजकर लाया जाएगा।

पिता और परिवार की हत्या को याद कर हुईं भावुक

हसीना ने इस दौरान कार्यकर्ताओं से भावुक अपील करते हुए कहा कि मैं हर बार बच क्यों जाती हूं? आतंकवादियों ने मेरे पिता, माता और भाई को मार दिया, लेकिन उस वक्त भी मैं बच गई। उन्होंने आगे कहा मुझे मारने की पिछली बार भी कोशिश की गई, लेकिन मैं बच गई। अल्लाह की मर्जी क्या है, मुझे नहीं पता, लेकिन बांग्लादेश में कुछ जरूर अच्छा होने वाला है।

यूनुस ने फिर दोहराई हसीना के प्रत्यार्पण की मांग

शेख हसीना का यह बयान ऐसे वक्त में आया है, जब बिम्सटेक की बैठक में बांग्लादेश के चीफ एडवाइजर ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हसीना को सौंपने की अपील की थी। यूनुस का कहना था कि शेख हसीना पर बांग्लादेश में गंभीर आरोप लगे हैं, इसलिए उन्हें सौंपा जाए। अगस्त 2024 में तख्तापलट के बाद शेख हसीना भारत आ गई थीं।

टैरिफ वॉर के बीच एस जयशंकर और मार्को रुबियो के बीच हुई बातचीत, क्या मिलेगी राहत?

#s_jaishankar_called_the_us_foreign_minister

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर से दुनियाभर में हड़कंप मचा हुआ है। डोनाल्ड ट्रंप ने भारत समेत 100 से ज्यादा देशों पर टैरिफ लगाने की घोषणा की है। जिसके बाद से दुनियाभर के बाजारों में इसका जोरदार असर देखा जा रहा है। ट्रंप के जवाबी टैरिफ लगाए जाने को लेकर वैश्विक चिंताओं के बीच भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने अमेरिकी समकक्ष मार्को रुबियो से बात की है। एस जयशंकर और अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो के बीच फोन पर बातचीत हुई।

जयशंकर ने सोशल मीडिया पोस्ट में बताया कि उन्होंने और रुबियो ने द्विपक्षीय व्यापार समझौते को जल्द से जल्द पूरा करने की अहमियत पर बात की। दोनों पक्षों ने इस बात पर सहमति जताई कि इस व्यापार समझौते को जल्दी से अंतिम रूप दिया जाए। जयशंकर ने कहा, हमने द्विपक्षीय व्यापार समझौते की जल्द समाप्ति पर बात की है। मुझे उम्मीद है कि हम इस दिशा में जल्द आगे बढ़ेंगे।उन्होंने यह भी कहा कि वह रुबियो के साथ संपर्क में बने रहेंगे। 

जयशंकर और रुबियो के बीच यह बातचीत उस दिन हुई जब ट्रंप की ओर से रेसिप्रोकल टैरिफ लगाए जाने और संभावित व्यापार युद्ध की आशंका के चलते वैश्विक बाजार में गिरावट दर्ज की गई। यह अमेरिका द्वारा पिछले सप्ताह भारत सहित कई देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ (भारत पर 26%) लगाए जाने के बाद दोनों देशों के बीच पहली उच्च स्तरीय बातचीत थी।

बता दें कि चीन और कुछ अन्य देशों के उलट भारत ने रेसिप्रोकल टैरिफ नहीं लगाया है और इसके बजाय ऐसा व्यापार समझौता करने का रास्ता चुना है जो दोनों देशों के हितों और संवेदनशीलताओं को साध सके। चल रही बातचीत का मुख्य फोकस बाजार तक पहुंच बढ़ाने, टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करने और सप्लाई चेन के एकीकरण को मजबूत करने पर है।

ट्रंप ने ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के तहत उन सभी देशों और साझेदारों पर जवाबी टैरिफ लगाने का ऐलान किया है, जो अमेरिका से आयातित सामान पर टैरिफ लगा रहे हैं। इस फैसले के पीछे ट्रंप प्रशासन का मकसद व्यापार घाटे को कम करना और निर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देना है। भारत पर अमेरिका ने 26 प्रतिशत टैरिफ लगाया है, जो पहले से लागू शुल्क के ज्यादा होगा।

सुप्रीम कोर्ट की तमिलनाडु राज्यपाल को फटकार, कहा- बिल रोकना मनमान, जानें पूरा मामला


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तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार को मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के 10 जरूरी बिलों को राज्यपाल की ओर से रोके जाने को अवैध बताया है। कोर्ट ने कहा कि यह मनमाना कदम है और कानून के नजरिए से सही नहीं। अदालत ने कहा कि राज्यपाल सहमति रोके बिना विधेयकों को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित नहीं कर सकते। बता दें कि राज्य विधानसभा द्वारा पास किए गए कई विधेयकों को राज्यपाल ने मंजूरी नहीं दी थी। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। इसमें राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति से जुड़े विधेयक भी शामिल थे।

कोर्ट ने राज्यपाल को लगाई फटकार

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने तमिलनाडु के राज्यपाल आर. एन. रवि के विधेयकों को लंबे समय तक टाले रखने वाले मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा, इन 10 बिलों को लेकर राज्यपाल और राष्ट्रपति ने जो भी कदम उठाए, वे सब कानूनी रूप से अमान्य हैं। कोर्ट ने फैसला दिया कि ये बिल उस तारीख से मंजूर माने जाएंगे, जिस दिन तमिलनाडु विधानसभा ने इन्हें दोबारा पास करके राज्यपाल के पास भेजा था। कोर्ट ने राज्यपाल की आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने ईमानदारी से काम नहीं किया। इसका मतलब है कि राज्यपाल ने संविधान के हिसाब से अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई।

“राज्यपालों को राजनीतिक दल की तरफ से संचालित नहीं होना चाहिए”

राज्यपाल को एक दोस्त, दार्शनिक और राह दिखाने वाले की तरह होना चाहिए। आप संविधान की शपथ लेते हैं। आपको किसी राजनीतिक दल की तरफ से संचालित नहीं होना चाहिए। आपको उत्प्रेरक बनना चाहिए, अवरोधक नहीं। राज्यपाल को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई बाधा पैदा न हो।

“राज्यपालों को राजनीतिक कारणों से विधानसभा में बाधा नहीं बनना चाहिए”

अदालत ने कहा कि राज्यपाल को संसदीय लोकतंत्र की स्थापित परंपराओं के प्रति उचित सम्मान के साथ काम करना चाहिए. साथ ही, विधानसभा के माध्यम से व्यक्त की जा रही लोगों की इच्छा और लोगों के प्रति जवाबदेह निर्वाचित सरकार का सम्मान करना चाहिए। सर्वोच्च अदालत ने सबसे तल्ख टिप्पणी ये की कि राज्यपालों को राजनीतिक कारणों से विधानसभा के कामकाज में बाधा नहीं बनना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किए अधिकार

इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल और राज्य सरकार के अधिकारों को स्पष्ट किया है। कोर्ट ने यह भी बताया है कि राज्यपाल को किस तरह से विधेयकों पर कार्रवाई करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल को निर्देश दिया कि उन्हें अपने विकल्पों का इस्तेमाल तय समय-सीमा में करना होगा, वरना उनके उठाए गए कदमों की कानूनी समीक्षा की जाएगी।

कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल बिल रोकें या राष्ट्रपति के पास भेजें, उन्हें यह काम मंत्रिपरिषद की सलाह से एक महीने के अंदर करना होगा। विधानसभा बिल को दोबारा पास कर भेजती है, तो राज्यपाल को एक महीने के अंदर मंजूरी देनी होगी। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि वह राज्यपाल की शक्तियों को कमजोर नहीं कर रहा, लेकिन राज्यपाल की सारी कार्रवाई संसदीय लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुसार होनी चाहिए।

तमिलनाडु सरकार ने विशेष सत्र में पारित किए गए थे बिल राज्यपाल आरएन रवि ने तमिलनाडु सरकार की ओर से पारित 12 में से 10 बिलों को 13 नवंबर 2023 को बिना कारण बताए विधानसभा में लौटा दिया था और 2 बिलों को राष्ट्रपति के पास भेज दिया था। इसके बाद 18 नवंबर को तमिलनाडु विधानसभा के विशेष सत्र में इन 10 बिलों को फिर से पारित किया गया और गवर्नर की मंजूरी के लिए गवर्नर सेक्रेटेरिएट भेजा गया।बिल पर साइन न करने का विवाद नवंबर 2023 में भी सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच था।

शिक्षक भर्ती मामले में ममता सरकार को राहत, सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच पर लगाई रोक


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शिक्षक भर्ती मामले में पश्चिम बंगाल सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। पश्चिम बंगाल में शिक्षकों और स्कूल कर्मचारियों के लिए अतिरिक्त पद बनाने के मामले की सीबीआई जांच नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया है। बंगाल सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें शिक्षकों और स्कूल कर्मचारियों के अतिरिक्त पद बनाने के राज्य सरकार के 2022 के फैसले की सीबीआई जांच का आदेश दिया गया था। सर्वोच्च अदालत ने हाई कोर्ट द्वारा दिए गए सीबीआई जांच के आदेश को रद्द कर दिया है। उच्चतम न्यायालय ने हालांकि कहा कि पश्चिम बंगाल में 25,753 शिक्षकों और कर्मचारियों की नियुक्ति के अन्य पहलुओं के संबंध में सीबीआई जांच जारी रहेगी।

 

कोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से सुपरन्यूमेरी पोस्ट बनाने के फैसले की सीबीआई जांच के हाई कोर्ट के आदेश को रद्द किया। दरअसल बंगाल सरकार ने दागी उम्मीदवारों को समायोजित करने के लिए अतिरिक्त शिक्षक पदों का सृजन किया था। कलकत्ता कोर्ट ने 25 हजार से ज्यादा शिक्षकों की नियुक्ति रद्द करने के साथ-साथ इन पोस्ट के सृजन के ममता सरकार के फैसले की भी सीबीआई जांच का आदेश दिया था।

आज सुप्रीम कोर्ट ने अतिरिक्त पदों बनाने के फैसले की सीबीआई जांच के हाई कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया कि आज का आदेश अतिरिक्त पदों के सृजन की जांच करने के मामले तक सीमित है और किसी भी तरह से इस पूरे घोटाले के अन्य पहलुओं में जो सीबीआई जांच कर रही है या चार्जशीट दाखिल कर रही है , उस पर इसका कोई असर नहीं होगा।

बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट शिक्षक भर्ती को रद्द कर चुका है। शीर्ष अदालत ने 3 अप्रैल को बंगाल में सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में 25,753 शिक्षकों और कर्मचारियों की नियुक्ति को अमान्य करार दिया था। इन कर्मचारियों का चयन 2016 में राज्य स्कूल सेवा आयोग के एक भर्ती अभियान के माध्यम से चुना गया था।

सोमवार को इस फैसले से प्रभावित शिक्षकों से सीएम ममता बनर्जी ने मुलाकात की। सीएम ने कहा कि हम कोर्ट के आदेश से बंधे हुए हैं। यह फैसला उनके लिए अन्याय है जो काबिल हैं। सीएम ने नेताजी इनडोर स्टेडियम में शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा कि आप लोग यह मत समझिए कि हमने फैसला स्वीकार कर लिया है। हम पत्थरदिल नहीं है। मुझे ऐसा कहने के लिए वे जेल में भी डाल सकते हैं। वहीं इस मामले में शिक्षकों ने कहा कि घोटाल में सीएम, उनका मंत्रिमंडल और आयोग भी शामिल हैं। नौकरियों के बदले रिश्वत ली गई है। सीएम ने आज हमें लॉलीपॉप दिया है। वहीं सरकार इस फैसले के खिलाफ जल्द ही समीक्षा याचिका दायर कर सकती है।