पाकिस्तान, सऊदी समेत 25 मुस्लिम देश हो रहे एकजुट, मिलकर बनाएंगे 'मुस्लिम नाटो', भारत पर क्या होगा असर?
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आपने नाटो का नाम सुना ही होगा। नाटो यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन। ये एक ऐसा संगठन है जिसमें यूरोप और उत्तरी अमेरिका के 32 सदस्य हैं। इनमें ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन और तुर्किए शामिल हैं। इनका मकसद एक दूसरे की सामरिक मदद करना है। अब कुछ मुस्लिम देश भी इसी तर्ज पर एकजुट होने की कोशिश में लगे हैं।आतंकवाद और अन्य चुनौतियों से निपटने के लिए 25 से ज्यादा मुस्लिम देश नाटो की तर्ज पर एक संगठन बनाने की तैयारी कर रहे हैं। इसका नाम इस्लामिक नाटो और मुस्लिम नाटो हो सकता है।
करीब 9 साल पहले दिसंबर 2015 में इस्लामिक मिलिट्री काउंटर टेरेरिज्म कोलिशन (IMCTC) नाम की संस्था बनाई गई थी।आतंकवाद के खिलाफ एशिया और अफ्रीका के 42 मुस्लिम देशों ने इसे बनाया।आज भी एक्टिव है ये संस्था। इस बीच दुनिया के 25 ताकतवर मुस्लिम देश मिलकर नाटो जैसा मिलिट्री अलायंस बनाने की कोशिश कर रहे हैं।सऊदी अरब, पाकिस्तान, तुर्किए, मिस्त्र, संयुक्त अरब अमीरात, जॉर्डन, बहरीन, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और मलेशिया जैसे 10 बड़े मुस्लिम बहुमत वाले देश नए ‘मुस्लिम नाटो’ के कोर मेंबर यानी मुख्य सदस्य हो सकते हैं।
...दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सैन्य गठबंधन होगा
इनके अलावा इंडोनेशिया, ईरान, इराक, ओमान, कतर, कुवैत, मोरक्को, अल्जीरिया, ट्यूनीशिया और लीबिया इन 10 देशों को ‘मुस्लिम नाटो’ का प्रमुख पार्टनर देश बनाया जा सकता है। कोर मेंबर और पार्टनर देशों के अलावा ‘मुस्लिम नाटो’ में 5 और देशों को सदस्य बनाया जा सकता है। अजरबैजान, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और ब्रुनेई ‘मुस्लिम नाटो’ के एसोसिएट सदस्य हो सकते हैं।ऐसा हुआ तो नाटो के बाद ये दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सैन्य गठबंधन होगा।10 कोर मेंबर, 10 पार्टनर देश और 5 एसोसिएट सदस्य, यानी कुल 25 देशों की सेनाओं के बीच दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सैन्य गठबंधन हो सकता है।
क्या है इसके निर्माण के पीछे का मकसद?
नाटो की तरह संगठन बनाने के पीछे का मकसद ये है कि ये मुस्लिम देश मिलकर आतंकवाद रोधी ऑपरेशंस को अंजाम देंगे। अपनी-अपनी सेना को मॉडर्न बनाने के लिए एक-दूसरे की मदद करेंगे। अपने सदस्य देशों की आंतरिक स्थिरता के लिए बाहरी मुश्किलों से लड़ेंगे। हालांकि, कूटनीति के जानकारों को लगता है कि इनका मकसद एक दूसरे से खुफिया जानकारी शेयर करना और इस्लामिक एकजुटता को बढ़ावा देना है।
‘मुस्लिम नाटो’ एर्दोआन के दिमाग की उपज
मुस्लिम बहुल जनसंख्या वाले देशों के बीच नाटो जैसे सैन्य गठबंधन का विचार तुर्किए के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन का है। ऐसा करके एर्दोआन अरब देशों में सबसे शक्तिशाली और मुस्लिम दुनिया का खलीफा बनाना चाहते हैं। कुछ दिन पहले एर्दोआन ने तुर्किए की राजधानी इस्तांबुल में इस्लामिक स्कूल एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में बोलते हुए ‘मुस्लिम नाटो’ की पूरी योजना का खुलासा किया था। एर्दोआन ने कहा था, इजराइली अहंकार, इजराइली डाकुओं और इजराइली सरकार समर्थित आतंकवाद को रोकने वाला इकलौता जवाब इस्लामिक देशों के बीच सैन्य गठबंधन है। हमें ‘मुस्लिम नाटो’ बनाना होगा।
‘मुस्लिम नाटो’ बनाने के लिए एर्दोआन हर उस मुस्लिम देश से संपर्क कर रहे हैं। जिसे लगता है कि इजराइल उनके लिए खतरा बन सकता है। एर्दोआन ने इसी महीने मिस्त्र और सीरिया से संपर्क किया है। पिछले हफ्ते ही एर्दोआन ने अंकारा में मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सिसी की मेजबानी की। तुर्किए और मिस्त्र के बीच संबंध अच्छे नहीं रहे हैं। पिछले 12 साल में ये पहला मौका था, जब कोई मिस्र का राष्ट्रपति तुर्की पहुंचा था। एर्दोआन ने आपसी मतभेद भुलाकर अल सिसी के साथ ‘मुस्लिम नाटो’ को लेकर चर्चा की।
भारत पर क्या होगा असर?
अब सवाल ये है कि अगर 25 मुस्लिम देश अपने तमाम मतभेद भुलाकर मुस्लिम नाटो बनाने में कामयाब रहे, तो ये ग्रुप भारत को कैसे प्रभावित कर सकता है। जाहिर है कि मुस्लिम नाटो अगर वजूद मे आया, तो वहां आतंकवाद के पाकिस्तान जैसे समर्थक देश भारत को आतंकवाद की आग में झोंकने का प्रयास कर सकता है। इस संगठन के अस्तित्व में आने से कश्मीर विवाद को हवा मिल सकती है क्योंकि ये संगठन पाकिस्तान के पक्ष में दबाव बनाने का प्रयास कर सकता है।इसके साथ ही क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरा होगा क्योंकि मुस्लिम नाटो से पाकिस्तान को मजबूती मिल सकती है।
Oct 30 2024, 13:57