सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह कानून में बताई सुधार की जरुरत, कहा-पर्सनल लॉ के जरिए अड़ंगा नहीं लगाया जा सकता
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सुप्रीम कोर्ट ने देश में बढ़ते बाल विवाह के मामलों से जुड़ी याचिका पर फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पर्सनल लॉ के चलते बाल विवाह निषेध कानून का प्रभावित होना सही नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि कम उम्र में विवाह लोगों को अपने पसंद का जीवनसाथी चुनने के अधिकार से वंचित करता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि बाल विवाह निषेध कानून को पर्सनल लॉ से ऊपर रखने का मसला संसदीय कमिटी के पास लंबित है। इसलिए, वह उस पर अधिक टिप्पणी नहीं कर रहा।
भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिसरा की तीन सदस्यों वाली बेंच ने यह महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाया है। साथ ही, कुछ अहम दिशानिर्देश भी जारी किए हैं, ताकि बाल विवाह को रोकने के लिए बनाए गए कानून को बेहतर तरीके से लागू किया जा सके।
प्रधान न्यायाधीश ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि बाल विवाह की रोकथाम के कानून को ‘पर्सनल लॉ’ के जरिए प्रभावित नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि इस तरह की शादियां नाबालिगों की जीवन साथी चुनने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन हैं।
अदालत ने बाल विवाह कानून में भी कुछ खामियों की बात कही है। पीठ ने यह भी कहा कि बाल विवाह निषेध कानून में कुछ खामियां हैं। बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 बाल विवाह को रोकने और इसका उन्मूलन सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया था। इस अधिनियम ने 1929 के बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम का स्थान लिया।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि बाल विवाह कराने वाले अपराधियों को दंडित करना आखिरी विकल्प होना चाहिए। उससे पहले अधिकारियों को बाल विवाह रोकने और नाबालिगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर ध्यान देना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा – अलग-अलग समुदायों के हिसाब से बाल विवाह को रोकने की रणनीति पर काम किया जाना चाहिए। यह कानून तभी सफल होगा जब अलग-अलग क्षेत्रों के बीच एक समन्वय स्थापित होगा। साथ ही, कानून लागू करने वाले अधिकारियों का सही से प्रशिक्षण और उनकी क्षमता का निर्माण जरूरी है।
Oct 18 2024, 18:23