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दिल्ली एम्स के रेजिडेंट डॉक्टरों ने वापस ली हड़ताल, कोर्ट की अपील पर 11 दिन बाद लौटे ड्यूटी पर

#delhi_city_ncr_strike_of_resident_doctors_of_delhi_aiims_ends 

दिल्ली एम्स के रेजिडेंट डॉक्टरों ने अपनी हड़ताल खत्म करने का एलान किया है। कोलकाता में प्रशिक्षु महिला डॉक्टर के साथ बर्बरता की घटना के बाद सभी डॉक्टर लगातार प्रदर्शन कर रहे थे। दिल्ली स्थित एम्स के रेजिडेंट डॉक्टरों ने भी चिकित्सकों की सुरक्षा को लेकर बीते 11 दिनों से हड़ताल पर थे। अब इन्होंने हड़ताल खत्म करने की घोषणा की है। सुप्रीम कोर्ट की अपील के बाद सभी डॉक्टर्स अपनी-अपनी ड्यूटी पर लौट गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले दिन में प्रदर्शनकारी डॉक्टरों से काम शुरू करने को कहा था और उन्हें आश्वासन दिया था कि काम पर लौटने के बाद उनके खिलाफ कोई प्रतिकूल कार्रवाई नहीं की जायेगी। एम्स रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट किया, ''हम सुप्रीम कोर्ट की अपील और आश्वासन, आरजी कर अस्पताल की घटना और डॉक्टरों की सुरक्षा के सिलसिले में उसके हस्तक्षेप के बाद काम पर लौट रहे हैं।''

एम्स रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने आगे कहा, ''हम अदालत की कार्रवाई की सराहना करते हैं और उसके निर्देशों का पालन करने का आह्वान करते हैं। मरीजों की देखभाल करना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता बनी हुई है।'' 

बता दें कि 12 अगस्त को डॉक्टर्स एसोसिएशन ने राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन शुरू किया था जिससे ओपीडी सेवाएं ठप हो गयी थीं।तब से अब तक लगातार ओपीडी और नियमित सर्जरी सेवाएं प्रभावित हैं। बताया जा रहा है कि अस्पतालों में रेजिडेंट डॉक्टरों के इतने दिनों तक की लंबी हड़ताल के कारण दिल्ली में अब तक दस हजार से अधिक मरीजों की नियमित सर्जरी टल चुकी थी। 11 दिनों की हड़ताल में दो दिन अवकाश रहा है।

मोदी ने सेक्युलर सिविल कोड का दांव क्यों खेला, क्या विपक्ष को चित्त कर सकेगी बीजेपी?

#narendra_modi_secular_civil_code

स्वतंत्रता दिवस के भाषण में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को नया नाम दिया।उन्होंने देश में मौजूद संहिता को कम्युनल सिविल कोड कहकर पुकारा और इसकी जगह सेक्युलर सिविल कोड की वकालत की। यूं तो यूसीसी बीजेपी का तो यह पुराना एजेंडा रहा ही है, साथ ही साथ पीएम मोदी ने भी कई मौकों पर इस मुद्दे को उठा रखा है। लेकिन विपक्ष को चित करने के लिए इस बार पीएम मोदी ने अपने सियासी पिटारे से एक नया तीर छोड़ा है। उन्होंने बड़ी ही चालाकी से इस बार यूनिफॉर्म सिविल कोड को सेकुलर सिविल कोड बता दिया है।

प्रधानमंत्री के इस बयान के मायने से लेकर टाइमिंग तक पर सवाल उठ रहे हैं।पॉलिटिकल एक्सपर्ट पीएम मोदी के इस कदम को बीजेपी के लिए आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर बड़ा मास्टर स्ट्रोक मान रहे हैं। अगर ध्यान से समझने की कोशिश हो तो इसे बड़ी रणनीति माना जाएगा। अगर थोड़ा पीछे चला जाए तो पता चलता है कि बीजेपी को सबसे ज्यादा हमले यह बोलकर होते हैं कि पार्टी सांप्रदायिक है, उसकी तरफ से हिंदू-मुस्लिम किया जाता है। 

पॉलिटिकल एक्सपर्ट का ये भी मानना है कि पीएम मोदी का सेक्युलर सिविल कोड दरअसल धर्मनिरपेक्षता की बात करने वाली विपक्षी पार्टियों के खिलाफ दांव हैं, जिन्होंने हमेशा भाजपा के यूसीसी एजेंडे को निशाना बनाया है।दरअसल 1985 में सुप्रीम कोर्ट के शाहबानो फैसले के बाद जिस तरह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवहेलना की थी तभी से भाजपा यूसीसी की मांग बड़े पैमाने पर उठाती आई है।

1985 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि पांच बच्चों वाली तलाकशुदा मुस्लिम महिला शाहबानो के पूर्व पति को गुजारा भत्ता के रूप में प्रति माह 179 रुपये का भुगतान करना होगा। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मुस्लिम महिला (तलाक पर संरक्षण का अधिकार) अधिनियम, 1986 को लागू करके सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पलट दिया। इस कानून में कहा गया था कि महिलाओं के भरण-पोषण से संबंधित सीआरपीसी की धारा 125 मुस्लिम महिलाओं पर लागू नहीं है। यहीं से कम्युनल सिविल कोड पैदा हुआ, जो अब तक चला आ रहा है।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी राजीव सरकार के फैसले की आलोचना करते हुए परोक्ष रूप से यह कहा कि कांग्रेस ने एक वर्ग को खुश करने के लिए मुस्लिम महिलाओं के बीच धार्मिक भेदभाव किया। इसके बाद से ही राममंदिर निर्माण और जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 की समाप्ति के साथ-साथ यूसीसी भी भाजपा के मुख्य एजेंडे में शामिल हो गया।

देश में बहुत सी पार्टियां मुस्लिम समुदाय को यूसीसी का डर बनाकर उनका वोट लेती रही हैं, पर इससे होने वाले फायदे के बारे में सोचकर आंखें मूंद लेती रही है। अब गेंद विपक्ष के पाले में हैं। भारतीय जनता पार्टी को आगामी विधानसभा चुनावों में विपक्ष पर हमलावर होने का मौका मिल गया है।

जानकार मानते हैं कि सेकुलर शब्द का तोड़ निकालना विपक्ष के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। जिस बात को आधार बनाकर हमला हो रहा था, उसी को पीएम मोदी ने खत्म कर दिया। ऐसे में यूसीसी का विरोध करना ही विपक्ष को भारी पड़ सकता है।

किसी समस्‍या का समाधान जंग के मैदान में नहीं”, पीएम मोदी ने पोलैंड में दिया बड़ा संदेश

#pm_narendra_modi_joint_press_conference_in_poland_talk_about_peace

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दो दिवसीय दौरे पर पोलैंड में हैं। अपने दौरे के दूसरे दिन पीएम मोदी ने पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क के साथ साझा प्रेस वार्ता को संबोधित किया।पीएम मोदी ने इस दौरान पोलैंड का 2022 में यूक्रेन संघर्ष के दौरान मदद के लिए आभार भी जताया है। साथ रूस-यूक्रेन जंग और मिडिल ईस्‍ट में इजरायल और ईरान के बीच तनाव को लेकर बड़ा संदेश दिया। उन्होंने कहा कि किसी भी समस्या का समाधान रणभूमि में नहीं हो सकता।

गुरुवार को पीएम मोदी और पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क ने साझा बयान भी जारी किया है। पीएम मोदी ने इस दौरान द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने में योगदान के लिए अपने पोलिश समकक्ष डोनाल्ड टस्क की प्रशंसा की है।पीएम मोदी ने पोलैंड में कहा कि इस वर्ष हम अपने राजनयिक संबंधों की सत्तरवीं वर्षगांठ मना रहे हैं। इस अवसर पर हमने संबंधों को रणनीतिक साझेदारी में बदलने करने का निर्णय लिया है। हम पोलैंड की कंपनियों को 'मेक इन इंडिया एंड मेक फोर द वर्ल्ड' से जुड़ने के लिए आमंत्रित करते हैं। भारत और पोलैंड अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी करीबी तालमेल के साथ आगे बढ़ते रहे हैं। हम दोनों सहमत हैं कि वैश्विक चुनौतियोंका सामना करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ तथा अन्य अंतराष्ट्रीय संस्थानों में रिफॉर्म वर्तमान समय की मांग है।

पीएम मोदी ने यूक्रेन संकट के दौर में पोलैंड के सहयोग का जिक्र करते हुए कहा, पोलैंड ने साल 2022 में यूक्रेन संकट के समय वहां फंसे भारतीयों को सुरक्षित निकालने की मुहिम में जो उदारता दिखाई, उसे भारत कभी भूल नहीं सकता है।

दुनिया के कई इलाकों में चल रहे संघर्ष को लेकर पीएम मोदी ने कहा कि किसी भी संकट में मासूम लोगों की जान की हानि पूरी मानवता के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है.। हम शांति और स्थिरता की जल्द से जल्द बहाली के लिए डायलॉग और डिप्लोमेसी का समर्थन करते हैं। इसके लिए भारत अपने मित्र देशों के साथ मिलकर हर संभव सहयोग देने के लिए तैयार हैं। पीएम मोदी ने आगे कहा कि यूक्रेन और पश्चिम एशिया में चल रहा संघर्ष हम सभी के लिए गहरी चिंता का विषय है। भारत का ये दृढ़ विश्वास है कि किसी भी समस्या का समाधान रणभूमि में नहीं हो सकता। किसी भी संकट में मासूम लोगों की जान की हानि संपूर्ण मानवता के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। हम शांति और स्थिरता की जल्द से जल्द बहाली के लिए बातचीत और कूटनीति का समर्थन करते हैं।

किसी समस्‍या का समाधान जंग के मैदान में नहीं”, पीएम मोदी ने पोलैंड में दिया बड़ा संदेश*
#pm_narendra_modi_joint_press_conference_in_poland_talk_about_peace

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दो दिवसीय दौरे पर पोलैंड में हैं। अपने दौरे के दूसरे दिन पीएम मोदी ने पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क के साथ साझा प्रेस वार्ता को संबोधित किया।पीएम मोदी ने इस दौरान पोलैंड का 2022 में यूक्रेन संघर्ष के दौरान मदद के लिए आभार भी जताया है। साथ रूस-यूक्रेन जंग और मिडिल ईस्‍ट में इजरायल और ईरान के बीच तनाव को लेकर बड़ा संदेश दिया। उन्होंने कहा कि किसी भी समस्या का समाधान रणभूमि में नहीं हो सकता। गुरुवार को पीएम मोदी और पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क ने साझा बयान भी जारी किया है। पीएम मोदी ने इस दौरान द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने में योगदान के लिए अपने पोलिश समकक्ष डोनाल्ड टस्क की प्रशंसा की है।पीएम मोदी ने पोलैंड में कहा कि इस वर्ष हम अपने राजनयिक संबंधों की सत्तरवीं वर्षगांठ मना रहे हैं। इस अवसर पर हमने संबंधों को रणनीतिक साझेदारी में बदलने करने का निर्णय लिया है। हम पोलैंड की कंपनियों को 'मेक इन इंडिया एंड मेक फोर द वर्ल्ड' से जुड़ने के लिए आमंत्रित करते हैं। भारत और पोलैंड अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी करीबी तालमेल के साथ आगे बढ़ते रहे हैं। हम दोनों सहमत हैं कि वैश्विक चुनौतियोंका सामना करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ तथा अन्य अंतराष्ट्रीय संस्थानों में रिफॉर्म वर्तमान समय की मांग है। पीएम मोदी ने यूक्रेन संकट के दौर में पोलैंड के सहयोग का जिक्र करते हुए कहा, पोलैंड ने साल 2022 में यूक्रेन संकट के समय वहां फंसे भारतीयों को सुरक्षित निकालने की मुहिम में जो उदारता दिखाई, उसे भारत कभी भूल नहीं सकता है। दुनिया के कई इलाकों में चल रहे संघर्ष को लेकर पीएम मोदी ने कहा कि किसी भी संकट में मासूम लोगों की जान की हानि पूरी मानवता के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है.। हम शांति और स्थिरता की जल्द से जल्द बहाली के लिए डायलॉग और डिप्लोमेसी का समर्थन करते हैं। इसके लिए भारत अपने मित्र देशों के साथ मिलकर हर संभव सहयोग देने के लिए तैयार हैं। पीएम मोदी ने आगे कहा कि यूक्रेन और पश्चिम एशिया में चल रहा संघर्ष हम सभी के लिए गहरी चिंता का विषय है। भारत का ये दृढ़ विश्वास है कि किसी भी समस्या का समाधान रणभूमि में नहीं हो सकता। किसी भी संकट में मासूम लोगों की जान की हानि संपूर्ण मानवता के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। हम शांति और स्थिरता की जल्द से जल्द बहाली के लिए बातचीत और कूटनीति का समर्थन करते हैं।
हरियाणा: JJP को एक और झटका, रामकरण काला कांग्रेस में शामिल, अब तक 5 MLA छोड़ चुके हैं पार्टी

#another_blow_to_jjp_mla_ramniwas_surjakheda_resigns_from_party 

हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। चुनावी बिगुल बजने के साथ ही इसके साइट इफेक्ट्स भी दिखने लगे हैं। हरियाणा के पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला को लगातार झटके मिल रहे हैं। अब उनकी पार्टी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के विधायक रामकरण काला उन्हें झटका दिया है। उन्होंने अपने समर्थकों के साथ दिल्ली में कांग्रेस की सदस्यता ले ली है। 

हरियाणा के शाहबाद से विधायक विधायक रामकरण काला ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष उदय भान सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा के मौजूदगी में कांग्रेस ज्वाइन की।

बीते दिनों में पार्टी के 4 विधायकों ने जेजेपी को अलविदा कर दिया। वहीं गुरुवार को जेजेपी को एक और झटका मिला। विधायक रामनिवास सुरजाखेड़ा ने इस्तीफा देकर जेजेपी को बैकफुट पर ला दिया है।जेजेपी के पांचवे विधायक रामनिवास सुरजाखेड़ा से पहले अनूप धानक, ईश्वर सिंह, देवेंद्र बबली और रामकरण काला पार्टी छोड़ चुके हैं।

बता दें कि अब तक बीजेपी-जेजेपी के 40 बड़े नेता कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। इन नेताओं में में ज्यादातर पूर्व विधायक। हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले जेजेपी के दस में से पांच विधायक पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं।

2019 के विधानसभा में जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) किंगमेकर बनकर उभरी थी। यही वजह थी कि बहुमत से दूर रही बीजेपी ने जेजेपी को नेता दुष्यंत चौटाला को डिप्टी सीएम का पद देकर सरकार बनाई थी। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि आने वाले दिनों में जेजेपी को कुछ और झटके लग सकते हैं। लोकसभा चुनावों में अकेले लड़ी जेजेपी को 1 फीसदी से कम वोट मिले थे। पार्टी के सभी कैंडिडेट की जमानत जब्त हो गई थी। जिन अन्य विधायकों के पार्टी छोड़ने की अटकलें हैं। उनमें राजकुमार गौतम, जोगीराम सिहाग, रामनिवास सुरजाखेड़ा के नाम चर्चा में हैं। ये विधायक पिछले काफी समय से बीजेपी के मंचों पर भी थे। ऐसे में अटकलें हैं कि ये भी दुष्यंत चौटाला का साथ छोड़ सकते हैं।

जम्मू-कश्मीर चुनाव: कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस में गठबंधन, फारूक अब्दुल्ला ने किया एलान

#congress_national_conference_alliance_jammu_kashmir

जम्मू-कश्मीर में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इससे पहले कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के बीच गठबंधन हो गया है। एनसी प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने गुरुवार को इसका ऐलान किया। उन्होंने कहा कि नेकां और कांग्रेस गठबंधन को अंतिम रूप दिया गया, शाम तक चरणवार सूची प्रकाशित की जाएगी। दोनों पार्टियों के बीच सहमति कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के दौरे के दौरान बनी है।

कांग्रेस ने भी अपने एक्स अकाउंट से गठबंधन की घोषणा की है। जिसमें कहा कि आज पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी ने श्रीनगर में नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला और उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला से मुलाकात की। 

किसी के लिए कोई दरवाजा बंद नहीं- फारूक अब्दुल्ला

राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे से मुलाकात पर फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि हमारी मुलाकात बहुत अच्छी रही। हम सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। हम एकजुट हैं, सीपीआईएम समेत इंडिया गठबंधन की पार्टियां एकजुट हैं। उन्होंने पीडीपी पर कहा कि किसी के लिए कोई दरवाजा बंद नहीं हैं। एनसी प्रमुख ने कहा कि मुझे बहुत ख़ुशी है कि बैठक सौहार्दपूर्ण वातावरण में हुई। कांग्रेस, सीपीआईएम और एनसी एक साथ हैं।

तीन चरणों में होगा चुनाव

बता दें कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में अगले महीने विधानसभा के चुनाव होने हैं। तीन चरणों में वोटिंग होगी। 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को जनता वोट डालेगी। 4 अक्टूबर को नतीजे घोषित होंगे।

कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई का बड़ा दवा, बोले-लोगों का सेबी पर भरोसा अब नहीं रहा

#congress_protest_nationwide_against_sebi

हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) द्वारा जांच कराए जाने की मांग पर कांग्रेस बृहस्पतिवार को देश भर में प्रदर्शन कर रही है। हिंडनबर्ग रिपोर्ट को लेकर आज पार्टी के देशव्यापी आंदोलन पर कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई का कहना है, ''लोगों को सेबी पर जो भरोसा था, वह अब नहीं रहा। बार-बार हम देख रहे हैं कि सेबी इस मुद्दे पर उतनी गंभीर नहीं है, जितना होना चाहिए था।'' अडानी का मामला, हिंडनबर्ग रिपोर्ट से हमें इसके पीछे की वजह का संकेत मिल गया है।

कांग्रेस सांसद ने आगे कहा कि मैंने सोचा था कि केंद्रीय वित्त मंत्री सेबी चेयरमैन से स्पष्टीकरण मांगेंगे। लेकिन, वित्त मंत्री सेबी के जरिए अडानी को बचाने में लगे हैं, कांग्रेस इसका विरोध कर रही है। सेबी अध्यक्ष को इस्तीफा देना चाहिए और वित्त मंत्री को स्पष्टीकरण देना चाहिए और इस मुद्दे पर जेपीसी का गठन करना चाहिए।

बता दें कि हिंडनबर्ग रिसर्च ने इस महीने की शुरुआत में अपनी ताजा रिपोर्ट में आरोप लगाया है कि माधबी पुरी बुच और उनके पति के पास अडानी ग्रुप के पैसे के हेराफेरी घोटाले में इस्तेमाल किए गए अस्पष्ट विदेशी फंड में हिस्सेदारी थी। अमेरिकी इंवेस्टमेंट रिसर्च फर्म ने कहा था कि अडानी ग्रुप पर उसके जरिए 18 महीने पहले जारी किए गए रिपोर्ट के बाद भी सेबी ने ग्रुप के मॉरीशस और विदेशों में मौजूद उसकी संस्थाओं के कथित घोटाले पर कोई एक्शन नहीं लिया।

हालांकि, माधवी बुच और उनके पति धवल बुच ने हिंडनबर्ग के आरोपों को निराधार बताया है और कहा है कि उनके वित्तीय लेनदेन एक खुली किताब की तरह हैं। अडानी ग्रुप ने भी चुनिंदा सार्वजनिक जानकारी के आधार पर हिंडनबर्ग के आरोपों को दुर्भावनापूर्ण और बदनाम करने वाला बताया।

बांग्लादेश में बाढ़ की स्थिति पर विदेश मंत्रालय का बयान, कहा- भारतीय बांध से पानी छोड़ना कारण नहीं

#national_external_affairs_ministry_gave_clarification_on_flood_in_bangladesh 

बांग्लादेश को हिंसा के बाद एक नई परेशानी ने घेर लिया है। देश के कई इलाके भयंकर बाढ़ की चपेट में हैं। हालांकि, विनाशकारी बाढ़ को लेकर वहां के कुछ संगठन भारत पर दोष मढ़ रहे हैं।सीमावर्ती जिलों में हाल में आई बाढ़ को लेकर बांग्लादेश ने भारत पर आरोप लगाया था कि त्रिपुरा के डंबूर बांध के खुलने के कारण वहां बाढ़ आई है। इस पर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है और बांग्लादेश के आरोपों को गलत बताया है।

भारत सरकार ने बांग्लादेश के पूर्वी सीमावर्ती जिलों में बाढ़ की स्थिति के लिए डुम्बूर बांध से पानी छोड़े जाने को जिम्मेदार ठहराने वाली खबरों को तथ्यात्मक रूप से गलत बताया है। डुम्बूर बांध त्रिपुरा की गुमती नदी पर बना है। भारत सरकार ने साफ किया है कि इस क्षेत्र में आई बाढ़ की मुख्य वजह पिछले दिनों में गुमती नदी के जलग्रहण क्षेत्रों में हुई मूसलाधार बारिश है।

विदेश मंत्रालय ने इसको लेकर एक विज्ञप्ति जारी की है। विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि डुम्बूर बांध बांग्लादेश की सीमा से करीब 120 किलोमीटर ऊपर की ओर स्थित है और इसकी ऊंचाई केवल 30 मीटर है। इस बांध का उपयोग बिजली उत्पादन के लिए किया जाता है, जिसमें से 40 मेगावाट बिजली बांग्लादेश को भी दी जाती है। ऐसे में बाढ़ की स्थिति के लिए बांध से पानी छोड़े जाने को जिम्मेदार ठहराना बिल्कुल गलत है।

विज्ञप्ति में कहा गया है, नदी के लगभग 120 किलोमीटर मार्ग पर अमरपुर, सोनामुरा और सोनामुरा 2 में हमारे पास तीन जल स्तर निगरानी स्थल हैं। 21 अगस्त से पूरे त्रिपुरा और बांग्लादेश के आसपास के जिलों में भारी बारिश जारी है। भारी जल प्रवाह की स्थिति में, पानी का स्वतः रिसाव देखा गया है।

विदेश मंत्रालय ने आगे कहा, अमरपुर स्टेशन एक द्विपक्षीय प्रोटोकॉल का हिस्सा है जिसके तहत हम बांग्लादेश को वास्तविक समय पर बाढ़ डेटा भेज रहे हैं। 21 अगस्त 2024 को 3 बजे तक बांग्लादेश को डेटा प्रदान किया गया। 6 बजे बाढ़ के कारण बिजली गुल हो गई, जिससे संचार की समस्याएं पैदा हुईं। फिर भी, हमने डेटा के तत्काल हस्तांतरण के लिए बनाए गए अन्य माध्यमों से संचार बनाए रखने का प्रयास किया।

बयान नें आगे कहा गया है कि भारत और बांग्लादेश के बीच साझा नदियों में बाढ़ एक आम समस्या है, जो दोनों देशों के लोगों को प्रभावित करती है। इसके समाधान के लिए दोनों देशों के बीच सहयोग जरूरी है। भारत और बांग्लादेश के बीच 54 साझा क्रॉस-बॉर्डर नदियों के साथ, नदी जल सहयोग द्विपक्षीय संबंधों का अहम हिस्सा है। भारत सरकार जल संसाधनों और नदी जल प्रबंधन के मुद्दों को द्विपक्षीय विचार-विमर्श और तकनीकी पूर्ण चर्चाओं के माध्यम से सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध है।

असम में अब काजी नहीं कर सकेंगे मुस्लिमों की शादी का रजिस्ट्रेशन, बदलेगा 90 साल पुराना कानून

#registration_of_muslim_marriages_in_assam_will_be_done_by_govt_not_qazi

असम की हिमंत बिस्वा सरमा सरकार मुस्लिम पर्सनल लॉ के कुछ प्रावधानों को रद्द करने वाली है। दरअसल, असम की हिमंत बिस्वा सरमा सरकार गुरुवार को विधानसभा में मुस्लिम मैरिज एंड डिवोर्स रजिस्ट्रेशन बिल 2024 पेश करेगी। एक बार लागू होने के बाद, यह कानून मुस्लिम विवाह और तलाक को दर्ज करने वाले काजियों की भूमिका को खत्म कर देगा। इससे पहले बुधवार को असम कैबिनेट इस बिल को मंजूरी दे चुकी है। अब इसे सदन में पेश किया जाएगा। 

राज्य के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा- बिल में 2 विशेष प्रावधान हैं। पहला- मुस्लिम शादी का रजिस्ट्रेशन अब काजी नहीं सरकार करेगी। दूसरा- बाल विवाह के पंजीकरण को अवैध माना जाएगा। सीएम हिमंत ने कहा कि अब तक काजी नाबालिग लड़कियों की शादियां भी रजिस्टर्ड करते थे। अब ऐसा नहीं होगा। अब बाल विवाह रजिस्ट्रेशन बिल्कुल नहीं होगा। हम बाल विवाह की बुराई को खत्म करना चाहते हैं। उन्होंने ये भी कहा कि नया बिल इस्लामिक निकाह सिस्टम में बदलाव नहीं करेगा। केवल रजिस्ट्रेशन पार्ट में ही बदलाव होगा। शादी और तलाक रजिस्ट्रार ऑफिस में रजिस्टर्ड होंगे।

नए बिल के पास होकर कानून बनने के बाद जिला आयुक्तों और रजिस्ट्रारों को मौजूदा वक्त में 94 काजियों के पास मौजूद रजिस्ट्रेशन के रिकॉर्ड को अपने कब्जे में लेने का अधिकार होगा। जिन्हें 1935 के ब्रिटिश युग के कानून द्वारा वैध बनाया गया था। 90 साल पहले अंग्रेजों के दौर में 1935 के कानून में निकाह और तलाक के लिए रजिस्ट्रेशन का जिक्र किया गया था। इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक बनाया गया था। यह अधिनियम मुस्लिम विवाह और तलाक के पंजीकरण की प्रक्रिया निर्धारित करता था। साल 2010 में इसमें बदलाव किया गया और रजिस्ट्रेशन को ऐच्छिक न रखकर, अनिवार्य किया गया। 1935 के कानून में विशेष स्थिति में कम उम्र में निकाह करने की अनुमति दी जाती।

असम कैबिनेट ने जुलाई की शुरुआत में प्रस्तावित अनिवार्य पंजीकरण कानून के लिए रास्ता साफ करने के लिए असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम, 1935 को निरस्त करने के लिए एक विधेयक को मंजूरी दी थी।1935 के कानून के तहत स्पेशल कंडीशन में कम उम्र में निकाह करने की अनुमति दी जाती थी। जुलाई में जारी इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन रिपोर्ट ने बाल विवाह से निपटने के लिए असम सरकार के प्रयासों की सराहना की। रिपोर्ट में कहा गया कि कानूनी कार्रवाई के जरिए असम में बाल विवाह के मामलों को कम किया है।

असम में अब काजी नहीं कर सकेंगे मुस्लिमों की शादी का रजिस्ट्रेशन, बदलेगा 90 साल पुराना कानून

#registration_of_muslim_marriages_in_assam_will_be_done_by_govt_not_qazi

असम की हिमंत बिस्वा सरमा सरकार मुस्लिम पर्सनल लॉ के कुछ प्रावधानों को रद्द करने वाली है। दरअसल, असम की हिमंत बिस्वा सरमा सरकार गुरुवार को विधानसभा में मुस्लिम मैरिज एंड डिवोर्स रजिस्ट्रेशन बिल 2024 पेश करेगी। एक बार लागू होने के बाद, यह कानून मुस्लिम विवाह और तलाक को दर्ज करने वाले काजियों की भूमिका को खत्म कर देगा। इससे पहले बुधवार को असम कैबिनेट इस बिल को मंजूरी दे चुकी है। अब इसे सदन में पेश किया जाएगा। 

राज्य के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा- बिल में 2 विशेष प्रावधान हैं। पहला- मुस्लिम शादी का रजिस्ट्रेशन अब काजी नहीं सरकार करेगी। दूसरा- बाल विवाह के पंजीकरण को अवैध माना जाएगा। सीएम हिमंत ने कहा कि अब तक काजी नाबालिग लड़कियों की शादियां भी रजिस्टर्ड करते थे। अब ऐसा नहीं होगा। अब बाल विवाह रजिस्ट्रेशन बिल्कुल नहीं होगा। हम बाल विवाह की बुराई को खत्म करना चाहते हैं। उन्होंने ये भी कहा कि नया बिल इस्लामिक निकाह सिस्टम में बदलाव नहीं करेगा। केवल रजिस्ट्रेशन पार्ट में ही बदलाव होगा। शादी और तलाक रजिस्ट्रार ऑफिस में रजिस्टर्ड होंगे।

नए बिल के पास होकर कानून बनने के बाद जिला आयुक्तों और रजिस्ट्रारों को मौजूदा वक्त में 94 काजियों के पास मौजूद रजिस्ट्रेशन के रिकॉर्ड को अपने कब्जे में लेने का अधिकार होगा। जिन्हें 1935 के ब्रिटिश युग के कानून द्वारा वैध बनाया गया था। 90 साल पहले अंग्रेजों के दौर में 1935 के कानून में निकाह और तलाक के लिए रजिस्ट्रेशन का जिक्र किया गया था। इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक बनाया गया था। यह अधिनियम मुस्लिम विवाह और तलाक के पंजीकरण की प्रक्रिया निर्धारित करता था। साल 2010 में इसमें बदलाव किया गया और रजिस्ट्रेशन को ऐच्छिक न रखकर, अनिवार्य किया गया। 1935 के कानून में विशेष स्थिति में कम उम्र में निकाह करने की अनुमति दी जाती।

असम कैबिनेट ने जुलाई की शुरुआत में प्रस्तावित अनिवार्य पंजीकरण कानून के लिए रास्ता साफ करने के लिए असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम, 1935 को निरस्त करने के लिए एक विधेयक को मंजूरी दी थी।1935 के कानून के तहत स्पेशल कंडीशन में कम उम्र में निकाह करने की अनुमति दी जाती थी। जुलाई में जारी इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन रिपोर्ट ने बाल विवाह से निपटने के लिए असम सरकार के प्रयासों की सराहना की। रिपोर्ट में कहा गया कि कानूनी कार्रवाई के जरिए असम में बाल विवाह के मामलों को कम किया है।