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क्या पेरिस ओलंपिक में पुरुष से हुआ महिला बॉक्सर का मैच? इटली की बॉक्सर ने 46 सेकेंड में छोड़ा गेम, अब उठ रहे सवाल

#paris_olympic_gender_controversy 

पेरिस ओलंपिक में महिला बॉक्सिंग के एक मैच में बड़ा विवाद खड़ा हो गया है।ये मुकाबला गुरुवार को इटली की एंजेला कैरिनी और अल्जीरिया की इमान खलीफ के बीच हो रहा था। इटली की महिला बॉक्सर एजेंला करिनी ने खलीफ़ के ख़िलाफ़ रिंग में उतरने के 46 सेकेंड बाद ही मुक़ाबला छोड़ दिया। इस मुकाबले में इमान खलीफ़ को जीत दी गई। खलीफ़ पेरिस ओलंपिक की उन दो एथलीट्स में शामिल हैं जिन्हें पिछले साल निर्धारित मानदंडों पर खरा न उतरने के कारण वर्ल्ड चैंपियनशिप में हिस्सा लेने की अनुमति नहीं मिली थी। लेकिन इस बार पेरिस ओलंपिक में इन दोनों खिलाड़ियों को अनुमति मिली है।

 25 साल की खलीफ महिलाओं की वेल्टरवेट इवेंट में हिस्सा ले रही हैं। राउंड ऑफ 16 के मुकाबले में खलीफ का मुकाबला इटली की एंजेला कैरिनी से हुआ। कैरिनी ने 46 सेकेंड में ही मैच को छोड़ने का फैसला कर लिया। खलीफ का मुक्का इतना जोरदार था कि जान बचाने के लिए कैरिनी ने मैच को छोड़ने का फैसला किया। विवाद इसलिए है क्योंकि इमान खेलीफ में पुरुषों वाले क्रोमोसोम हैं।

30 सेकेंड के भीतर ही खलीफ़ से चेहरे पर पंच खाने के बाद उनकी प्रतिद्वंद्वी करिनी अपना हेडगियर ठीक करने कोच के पास पहुंचीं। दोबारा मुक़ाबला शुरू होने के चंद सेकेंड के भीतर ही वो अपने कॉर्नर में लौट गईं और लड़ने से इनकार कर दिया। इसके बाद जैसे ही खलीफ़ को विजेता घोषित किया गया।

मुक़ाबले के बाद एंजेला ने कहा- मैंने कभी ऐसा मुक्का नहीं खाया। मेरा दिल टूट गया। मैं एक वॉरियर हूं, मैं अपने पिता के सम्मान की खातिर रिंग में उतरी थी, लेकिन अपनी सेहत की हिफाजत के लिए मैंने मैच से हटना जरूरी समझा। ये मैच सही था या गलत, ये फैसला करना मेरा काम नहीं है। मैंने सिर्फ अपना काम किया।रिंग में उतरी, पर मेरी नाक में इतना दर्द था कि मैंने हटने का फैसला किया। इतने एक्सपीरियंस के बावजूद मैं कह रही हूं कि इतना तेज पंच मैंने जिंदगी में कभी नहीं खाया।

दरअसल, जिस इमान के सामने एंजेला मैच से हटीं, उन्हें एक साल पहले इंटरनेशनल बॉक्सिंग एसोसिएशन (IBA) ने जेंडर टेस्ट में फेल कर दिया था। इंटरनेशनल बॉक्सिंग एसोसिएशन ने इमान को पिछले साल दिल्ली में हुई विमंस वर्ल्ड चैंपियनशिप के गोल्ड मेडल मैच में नहीं खेलने दिया था। अब ओलिंपिक में इमान के पहला मैच जीतने के बाद सोशल मीडिया पर सवाल उठ रहे हैं कि रिंग में महिला के सामने पुरुष को क्यों उतार दिया गया।

इंटरनेशनल बॉक्सिंग एसोसिएशन ने भी इंटरनेशनल ओलिंपिक कमेटी (IOC) पर सवाल उठाया है। इंटरनेशनल बॉक्सिंग एसोसिएशन ने कहा कि इंटरनेशनल ओलिंपिक कमेटी नियमों का उल्लंघन कर रही है। महिला खिलाड़ियों के साथ न्याय और उनकी सुरक्षा को दरकिनार किया गया है।

अब इंटरनेशनल ओलंपिक कमिटी ने एक बयान जारी करते हुए कहा है कि ओलंपिक खेल पेरिस 2024 के मुक्केबाजी टूर्नामेंट में भाग लेने वाले सभी एथलीट प्रतियोगिता की एलिजिबिलिटी और प्रवेश नियमों का पालन करते हैं, साथ ही पेरिस 2024 मुक्केबाजी इकाई की निर्धारित सभी लागू चिकित्सा नियमों का पालन करते हैं। पिछली ओलंपिक मुक्केबाजी प्रतियोगिताओं की तरह, एथलीटों का लिंग और आयु उनके पासपोर्ट पर आधारित है। इंटरनेशनल ओलंपिक कमिटी ने अपने बयान में आगे कहा कि हमने कुछ रिपोर्ट्स में दो महिला एथलीटों के ओलंपिक खेल पेरिस 2024 में प्रतिस्पर्धा करने के बारे में भ्रामक जानकारी देखी है। दोनों एथलीट कई सालों से महिला वर्ग में इंटरनेशनल मुक्केबाजी टूर्नामेंट्स में खेल रही हैं, जिनमें ओलंपिक खेल टोक्यो 2020, अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ (आईबीए) वर्ल्ड चैंपियनशिप और आईबीए की ओर से अनुमोदित टूर्नामेंट शामिल हैं। ये दोनों एथलीट इंटरनेशनल बॉक्सिंग एसोसिएशन के अचानक और मनमाने फैसले के शिकार हुई थीं। 2023 में इंटरनेशनल बॉक्सिंग एसोसिएशन वर्ल्ड चैंपियनशिप के अंत में उन्हें बिना किसी उचित प्रक्रिया के अचानक अयोग्य घोषित कर दिया गया था।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने सीबीआई को सौंपी पुराने राजिंदर नगर में तीन आईएएस अभ्यर्थियों की मौत की जांच, पुलिस को लगाई फटकार

दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को पुराने राजेंद्र नगर में राऊ के आईएएस स्टडी सर्कल में तीन सिविल सेवा अभ्यर्थियों की मौत की जांच सीबीआई को सौंप दी।

अदालत ने केंद्रीय निगरानी आयुक्त को निर्देश दिया कि वह सीबीआई जांच की निगरानी के लिए एक अधिकारी नियुक्त करें और यह सुनिश्चित करें कि यह समय पर हो। उच्च न्यायालय ने कहा, "घटना की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि जनता को जांच के संबंध में कोई संदेह नहीं है, यह अदालत जांच को सीबीआई को स्थानांतरित करती है।"

अदालत के आदेश में कहा गया, "चूंकि केंद्रीय सतर्कता आयुक्त पर्यवेक्षी शक्ति का प्रयोग करता है, इसलिए यह अदालत आयुक्त को जांच की निगरानी के लिए एक सदस्य नियुक्त करने का निर्देश देती है।"

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि दिल्ली में नालियां जैसी भौतिक बुनियादी सुविधाएं भी पर्याप्त नहीं हैं, लेकिन उनका रखरखाव भी खराब है और हाल की त्रासदियों से पता चला है कि नागरिक एजेंसियों को दिए गए उसके आदेशों का सही भावना से पालन नहीं किया जा रहा है और उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जा रहा है। 

सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने सिविल सेवा अभ्यर्थियों की मौत पर दिल्ली पुलिस और नगर निगम को फटकार लगाई। दिल्ली पुलिस द्वारा कोचिंग संस्थान के पास से गुजर रहे एसयूवी चालक को गिरफ्तार करने का जिक्र करते हुए अदालत ने कहा, "दया की बात है कि आपने बेसमेंट में घुसने के लिए वर्षा जल का चालान नहीं किया है, जिस तरह आपने एसयूवी चालक को वहां अपनी कार चलाने के लिए गिरफ्तार किया था।"

27 जुलाई की शाम पुराने राजिंदर नगर में राऊ के आईएएस स्टडी सर्कल के बेसमेंट के अंदर बारिश का पानी गिरने से तीन सिविल सेवा अभ्यर्थियों, श्रेया यादव, तान्या सोनी और नेविन डाल्विन की मौत हो गई। घटना के बाद से विभिन्न कोचिंग संस्थानों में नामांकित छात्र विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, और कोचिंग सेंटरों में बेहतर सुरक्षा उपायों की मांग कर रहे हैं जो उनके जीवन के लिए खतरा हैं। कार्यवाही के बाद बहुत से कोचिंग संस्थानों को सीज़ लिया गया है।

कोल्ड वॉर के बाद रूस-अमेरिका समेत सात देशों में कैदियों की अदला-बदली, जानें कैसे हुई डील

#us_and_russia_completed_their_largest_exchange_of_prisoners_in_post_soviet_history

रूस और पश्चिम देशों के बीच शीत युद्ध के दौर के बाद कैदियों की सबसे बड़ी अदला-बदली हुई है। गुरुवार को हुई इस अदला-बदली में कुल 24 लोगों को रिहा किया गया है।सात अलग-अलग देशों के 26 लोगों को एक बेहद जटिल समझौते के तहत रिहा किया गया।कैदियों की अदला-बदली की इस डील को तुर्किये की राजधानी अंकारा में कराया गया है।

पिछले 3 सालों में अमेरिका और रूस की बीच कैदियों की अदला-बदली से जुड़ी ये तीसरी डील है। इससे पहले अप्रैल 2022 और दिसंबर 2022 में दोनों देश के बीच कैदियों की अदला-बदली हुई थी। इसे शीत युद्ध के बाद से अब तक की सबसे बड़ी अदला-बदली माना जा रहा है। डील के तहत अमेरिका, रूस और जर्मनी सहित 7 देशों की जेलों में कैद 26 कैदी रिहा किए गए। उनमें रूस में कैद 16 लोग शामिल थे। तीन अमेरिकी, कई रूसी राजनीतिक कैदी, और एक 19 वर्षीय रूसी-जर्मन नागरिक जो रूसी सैन्य अड्डे की तस्वीरें लेने के कारण जेल में बंद था। बदले में, आठ रूसियों को भी रिहा कर दिया गया-उनमें से सबसे कुख्यात वादिम क्रासिकोव, संघीय सुरक्षा सेवा में एक कर्नल था, जिसे 2019 में बर्लिन में एक पूर्व चेचन विद्रोही की हत्या करने पर जर्मनी में जेल में डाल दिया गया था।

यह समझौता पिछले दो वर्षों में रूस और अमेरिका के बीच कैदियों की अदला-बदली के लिए की गई बातचीत की श्रृंखला में नया है, लेकिन अन्य देशों से महत्वपूर्ण रियायतों की आवश्यकता वाला पहला सौदा है, जिसे राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने प्रशासन के अंतिम महीनों में एक कूटनीतिक उपलब्धि के रूप में घोषित किया था। अमेरिका को अपने नागरिकों की रिहाई के लिए एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। रूस ने पश्चिम में गंभीर अपराधों के लिए दोषी ठहराए गए अपने नागरिकों की रिहाई पत्रकारों, असंतुष्टों और अन्य पश्चिमी बंदियों को मुक्त करने के बदले में सुनिश्चित कर ली।

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इस डील में 18 महीने से ज्यादा का समय लगा। ये डील वादिम क्रासिकोव की मॉस्को की रिहाई पर निर्भर कर रही थी। वादिम बर्लिन पार्क में एक हत्या को अंजाम देने के लिए जर्मनी में आजीवन कारावास की सजा काट रहा था, डील मे उसको रिहा कर दिया गया है। इससे पहले कैदियों की अदला-बदली की चर्चा में जेल में बंद रूसी विपक्षी नेता एलेक्सी नवलनी भी शामिल थे, लेकिन फरवरी में उनकी मैत हो जाने के बाद यह प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ सका।

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने मॉस्को के वनुकोवो हवाई अड्डे पर लौटने वाले रूसियों से मुलाकात की।

इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में नहीं होगी एसआईटी जांच, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका

#supreme_court_declines_pleas_on_electoral_bonds_sit_investigation

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक पार्टियों को कॉरपोरेट कंपनियों से मिले राजनीतिक चंदे की 'स्पेशल इंवेस्टिगेटिव टीम' (एसआईटी) से जांच करवाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया।कोर्ट ने बॉन्ड स्कीम की जांच के लिए एक विशेष जांच टीम बनाने की मांग को सही नहीं माना।कोर्ट ने कहा कि निजी शिकायतों, मतलब किसी राजनीतिक दल और कॉरपोरेट संस्था के बीच एक दूसरे को फायदा पहुंचाने अलग-अलग दावों की जांच नहीं हो सकती है। ये बॉन्ड अब प्रतिबंधित है।

दरअसल, एनजीओ ‘कॉमन कॉज’ और ‘सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन’ (सीपीआईएल) की याचिका में राजनीतिक चंदे के जरिए कथित घूस देने की बात कही गई थी। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इलेक्टरोल बॉन्ड से दिए गए चंदे में करोड़ों रुपये का घोटाला हुआ है। इस मामले की सीबीआई या फिर कोई भी अन्य जांच एजेंसी जांच नहीं कर रही है। ऐसे में हम मांग करते हैं कि कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच करवाई जाए।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि यह मामला हवाला कांड, कोयला घोटाला की तरह है। इन मामलों में न केवल राजनीतिक दल बल्कि प्रमुख जांच एजेंसियां भी शामिल हैं। यह देश के इतिहास में सबसे खराब वित्तीय घोटालों में से एक है।

सीजेआई ने कहा कि सामान्य प्रक्रिया का पालन करें। हमने खुलासा करने का आदेश दिया है। हम एक निश्चित बिंदु तक पहुंच गए हैं, जहां हमने योजना को रद्द कर दिया है।मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इलेक्टोरल बांड की खरीद संसद के बनाए कानून के तहत हुई। उसी कानून के आधार पर राजनीतिक दलों को चंदा मिला। अब हमें तय करना है कि क्या इसके तहत दिए गए चंदे की जांच की ज़रूरत है। यह याचिकाएं यह मानते हुए दाखिल की गई हैं कि राजनीतिक दलों को चंदा फायदा कमाने के लिए दिया गया ताकि उन्हें सरकारी कॉन्ट्रैक्ट मिले या उनके हिसाब से सरकार की नीति बदले। याचिकाकर्ता यह भी मानते हैं कि सरकारी एजेंसियां जांच नहीं कर पाएंगी।

उन्होंने आगे कहा कि हमने याचिकाकर्ता से यह कहा कि यह सब आपकी धारणा है। अभी ऐसा नहीं लगता कि कोर्ट सीधे जांच करवाना शुरू कर दे। जिन मामलों में किसी को आशंका है, उनमें वह कानून का रास्ता ले सकता है। समाधान न होने पर वह कोर्ट जा सकता है।

दिल्ली के शेल्टर होम आशा किरण में 20 दिन में 13 लोगों की मौत, केजरीवाल सरकार ने दिए जांच के आदेश

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दिल्ली के रोहिणी इलाके से एक सनसनीखेज मामला सामने आया है।मेंटली चैलेंज्ड के लिए बनाए गए शेल्टर होम आशा किरण में 20 दिनों में 13 बच्चों की रहस्मय तरीके से मौत हो गई है। मामला सामने आते ही प्राशासन से लेकर सरकार तक में हड़कंप मच गई। हरकत में आते हुए दिल्ली के आम आदमी पार्टी की मंत्री आतिशी ने तुरंत मजिस्ट्रियल जांच का आदेश दिया है।

दिल्ली सरकार मंत्री आतिशी ने शेल्टर होम में हो रही मौतों के मामले में एडिशनल चीफ सेक्रेटरी की राजस्व मंत्री को जांच करने का निर्देश दिया है और साथ ही 48 घंटे में इस जांच की रिपोर्ट भी मांगी है। आतिशी ने आदेश देते हुए कहा है कि रोहिणी में स्थित आशा किरण होम के बारे में अखबार में छपा हुआ है। आतिशी ने लिखा है कि मुझे पता चला है, ‘इस साल जनवरी से लेकर अब तक 20 बच्चों की रहस्मय तरीके से मौत हो चुकी है। हम इस तरह की चूक बर्दाश्त नहीं कर सकते, इसलिए जांच के आदेश दे रहे हैं।

आतिशी ने कहा, ये मौतें कथित तौर पर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और कुपोषण के कारण हुई हैं। यह दर्शाता है कि इन बच्चों को अपेक्षित सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। राजधानी दिल्ली में ऐसी बुरी खबर सुनना बहुत चौंकाने वाला है और अगर यह सच पाया जाता है तो हम इस तरह की चूक बर्दाश्त नहीं कर सकते।

आतिशी ने इस मामले में कहा कि इस मामले की गहन जांच की जानी चाहिए ताकि सभी शेल्टर होम की स्थिति में सुधार लाने और शेल्टर होम में रहने वालों को बेहतर सुविधाएं प्रदान करने के लिए पूरी व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए कठोर कदम उठाए जा सकें। आगे आतिशी ने कहा कि अगर ये मामला सही साबित होता है को इस मामले में जिन लोगों ने लापरवाही हुई है, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी और आगे चलकर ऐसी घटना पर रोक लगाए जाने को लेकर जरूरी कदम उठाए जाएंगे।

कमला हैरिस पर नस्लीय टिप्पणी का ट्रंप पर क्या होगा असर? कहीं भारतीयों और अश्वेतों की नाराजगी ना झेलनी पड़ जाए

#donald_trump_attacks_on_kamala_harris

अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने हैं। राष्ट्रपति पद की जंग हर दिन एक नया रंग दिखा रही है।डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने के एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं।रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप लगातार डेमोक्रेटिक उम्मीदवार कमला हैरिस पर लगातार हमलावर है। इस बार डोनाल्ड ट्रंप ने कमला हैरिस की नस्लीय पहचान पर सवाल उठाते नजर आ रहे हैं। ट्रंप ने आरोप लगाया कि कमला हैरिस अश्वेत पहचान का इस्तेमाल चुनावी फायदे के लिए कर रहीं हैं, जबकि कुछ दिन पहले तक वो भारतीय मूल की थीं।

डोनाल्ड ट्रंप ने शिकागो में नेशनल एसोसिएशन ऑफ ब्लैक जर्नलिस्ट्स कन्वेंशन को संबोधित करते हुए कहा था कि वह (कमला हैरिस) हमेशा से खुद को भारत से जुड़ा हुआ बताती थीं। वह भारतीय संस्कृति का प्रचार करती थीं, लेकिन अब वह अचानक से अश्वेत हो गई हैं। वह अश्वेत कब से हो गईं? अब वह चाहती हैं कि उन्हें अश्वेत के तौर पर पहचाना जाए। ट्रंप ने कहा था, 'मुझे नहीं पता कि वह भारतीय है या अश्वेत है? मैं भारतीयों और अश्वेतों दोनों का ही सम्मान करता हूं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि हैरिस के मन में इन्हें लेकर सम्मान की भावना है? क्योंकि वह हमेशा से भारतीय थीं और खुद को भारत से जुड़ा हुआ बताती थी लेकिन अब वह अचानक से अश्वेत हो गई हैं।'

अब सवाल ये उठता है कि ट्रंप की इस टिप्पणी में कितना दम है? क्या कमला हैरिस के अश्वेत होने का चुनावी फायदेमिल सकता है? तो बता दें कि ऐसा संभव है। दरअसल, अमेरिकी चुनाव में श्वेतों के अलावा अश्वेतों, दक्षिण एशियाई मूल के लोगों का एक अच्छा-खासा वोटबैंक है। बाइडन के राष्ट्रपति चुनाव से पीछे हटने के बाद कमला हैरिस ने डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी संभाली है। उन्हें लगातार अश्वेतों और दक्षिण एशियाई मूल के लोगों का समर्थन मिल रहा है। हाल ही में हुए एक सर्वे में कमला हैरिस की रेटिंग में बढ़ोतरी भी दर्ज की गई थी। 

2020 के राष्ट्रपति चुनाव में जो बाइडेन को करीब 65 फीसदी भारतीय अमेरिकी वोट मिले थे। अब जबकि बाइडेन रेस में नहीं हैं तो उम्मीद जताई जा रही है कि कमला हैरिस के लिए यह समर्थन बढ़ सकता है। वहीं, रिपब्लिकन पार्टी की बात करें तो 2020 में ट्रंप को महज 28 फीसदी भारतीय अमेरिकी वोटर्स का साथ मिला था, जिसमें फिलहाल कोई खास बढ़ोतरी नहीं दिखाई दे रही है। एक रिसर्च के मुताबिक फिलहाल केवल 29 फीसदी भारतीय अमेरिकी ही ट्रंप का समर्थन कर रहे हैं।

ऐसे में कहा जा सकता है कि अश्वेतों और दक्षिण एशियाई मूल के लोगों के बीच कमला हैरिस की बढ़ती लोकप्रियता के बीच डोनाल्ड ट्रंप ने खुद अपने पैरों में कुल्हाड़ी मार ली है। डोनाल्ड ट्रंप की ये टिप्पणी भारतीय और अश्वेत अमेरिकियों दोनों को ही नाराज़ कर सकती है। ऐसे में किसी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की ओर से की गई इस तरह की टिप्पणी चुनाव में बड़ी गलती साबित हो सकती है।

अमेरिका में रह रहे भारतीय अमेरिकी और अश्वेत वोटर्स ने अगर कमला हैरिस की नस्लीय पहचान को लेकर ट्रंप की टिप्पणी से खुद को जोड़ना शुरू कर दिया तो मुमकिन है कि यह उनके लिए नुकसानदायक हो।

कमला हैरिस पर नस्लीय टिप्पणी का ट्रंप पर क्या होगा असर? कहीं भारतीयों और अश्वेतों की नाराजगी ना झेलनी पड़ जाए

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अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने हैं। राष्ट्रपति पद की जंग हर दिन एक नया रंग दिखा रही है।डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने के एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं।रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप लगातार डेमोक्रेटिक उम्मीदवार कमला हैरिस पर लगातार हमलावर है। इस बार डोनाल्ड ट्रंप ने कमला हैरिस की नस्लीय पहचान पर सवाल उठाते नजर आ रहे हैं। ट्रंप ने आरोप लगाया कि कमला हैरिस अश्वेत पहचान का इस्तेमाल चुनावी फायदे के लिए कर रहीं हैं, जबकि कुछ दिन पहले तक वो भारतीय मूल की थीं।

डोनाल्ड ट्रंप ने शिकागो में नेशनल एसोसिएशन ऑफ ब्लैक जर्नलिस्ट्स कन्वेंशन को संबोधित करते हुए कहा था कि वह (कमला हैरिस) हमेशा से खुद को भारत से जुड़ा हुआ बताती थीं। वह भारतीय संस्कृति का प्रचार करती थीं, लेकिन अब वह अचानक से अश्वेत हो गई हैं। वह अश्वेत कब से हो गईं? अब वह चाहती हैं कि उन्हें अश्वेत के तौर पर पहचाना जाए। ट्रंप ने कहा था, 'मुझे नहीं पता कि वह भारतीय है या अश्वेत है? मैं भारतीयों और अश्वेतों दोनों का ही सम्मान करता हूं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि हैरिस के मन में इन्हें लेकर सम्मान की भावना है? क्योंकि वह हमेशा से भारतीय थीं और खुद को भारत से जुड़ा हुआ बताती थी लेकिन अब वह अचानक से अश्वेत हो गई हैं।'

अब सवाल ये उठता है कि ट्रंप की इस टिप्पणी में कितना दम है? क्या कमला हैरिस के अश्वेत होने का चुनावी फायदेमिल सकता है? तो बता दें कि ऐसा संभव है। दरअसल, अमेरिकी चुनाव में श्वेतों के अलावा अश्वेतों, दक्षिण एशियाई मूल के लोगों का एक अच्छा-खासा वोटबैंक है। बाइडन के राष्ट्रपति चुनाव से पीछे हटने के बाद कमला हैरिस ने डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी संभाली है। उन्हें लगातार अश्वेतों और दक्षिण एशियाई मूल के लोगों का समर्थन मिल रहा है। हाल ही में हुए एक सर्वे में कमला हैरिस की रेटिंग में बढ़ोतरी भी दर्ज की गई थी। 

2020 के राष्ट्रपति चुनाव में जो बाइडेन को करीब 65 फीसदी भारतीय अमेरिकी वोट मिले थे। अब जबकि बाइडेन रेस में नहीं हैं तो उम्मीद जताई जा रही है कि कमला हैरिस के लिए यह समर्थन बढ़ सकता है। वहीं, रिपब्लिकन पार्टी की बात करें तो 2020 में ट्रंप को महज 28 फीसदी भारतीय अमेरिकी वोटर्स का साथ मिला था, जिसमें फिलहाल कोई खास बढ़ोतरी नहीं दिखाई दे रही है। एक रिसर्च के मुताबिक फिलहाल केवल 29 फीसदी भारतीय अमेरिकी ही ट्रंप का समर्थन कर रहे हैं।

ऐसे में कहा जा सकता है कि अश्वेतों और दक्षिण एशियाई मूल के लोगों के बीच कमला हैरिस की बढ़ती लोकप्रियता के बीच डोनाल्ड ट्रंप ने खुद अपने पैरों में कुल्हाड़ी मार ली है। डोनाल्ड ट्रंप की ये टिप्पणी भारतीय और अश्वेत अमेरिकियों दोनों को ही नाराज़ कर सकती है। ऐसे में किसी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की ओर से की गई इस तरह की टिप्पणी चुनाव में बड़ी गलती साबित हो सकती है।

अमेरिका में रह रहे भारतीय अमेरिकी और अश्वेत वोटर्स ने अगर कमला हैरिस की नस्लीय पहचान को लेकर ट्रंप की टिप्पणी से खुद को जोड़ना शुरू कर दिया तो मुमकिन है कि यह उनके लिए नुकसानदायक हो।

लोकसभा में एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों की समीक्षा, एनईपी को लेकर विपक्ष ने सरकार पर निशाना साधा

संसद के चल रहे मानसून सत्र में लोकसभा में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) पाठ्यक्रम में किए गए हालिया बदलावों पर विपक्षी दलों और सत्तारूढ़ सरकार के बीच तीखी बहस देखी गई। यह चर्चा लोकसभा में शिक्षा मंत्रालय के लिए अनुदान की मांग पर बहस के दौरान हुई, जिसे बाद में बिना किसी बदलाव के ध्वनि मत से पारित कर दिया गया।

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने मौजूदा पाठ्यपुस्तकों में हेराफेरी के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर सवाल उठाया। “सरकार की नीतियों और मुसलमानों के निरंतर शिक्षा पिछड़ेपन के बीच सीधा संबंध निकाला जा सकता है। उच्च शिक्षा और स्कूली शिक्षा दोनों में, मुसलमान औपचारिक शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं, लेकिन सरकारी उदासीनता और लापरवाही के कारण, मुस्लिम शिक्षा प्रणाली किसी भी अन्य समुदाय के बच्चों की तुलना में जल्दी छोड़ देते हैं, ”ओवैसी ने कहा।

कांग्रेस सांसद और सदन में सचेतक मोहम्मद जावेद ने भी दोहराया कि मुगलों की ऐतिहासिक उपस्थिति को केवल पाठ्यपुस्तकों से उनका नाम हटाकर नहीं मिटाया जा सकता। जावेद ने कहा, ''मुगल यहां 330 साल से थे, सिर्फ नाम हटा देने से वे नहीं हटेंगे। "अगर इस देश में मुस्लिम नहीं होते तो बीजेपी अपना खाता भी नहीं खोल पाती।" उन्होंने अपना मौखिक हमला जारी रखते हुए बीजेपी से पेपर लीक के हालिया मामलों पर सरकार से भेदभाव और आलोचना न करने को कहा। उन्होंने कहा, "संसद के बाहर, टेस्ट पेपर लीक हो रहे हैं और संसद के अंदर, छत लीक हो रही है..."।

न केवल पाठ्यपुस्तक संशोधन मुद्दा, बल्कि विपक्ष ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी) पर भी सरकार को घेरने की कोशिश की। विपक्षी दल के सांसदों की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देते हुए, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने एनईपी का बचाव करते हुए कहा कि यह जवाबदेही, सामर्थ्य, पहुंच, समानता और गुणवत्ता के सिद्धांतों पर आधारित है। मैंने 2013-14 के बाद से उच्च शिक्षा पर 63% और प्राथमिक शिक्षा पर 40% खर्च के विस्तार पर प्रकाश डाला है। प्रधान ने यह भी कहा कि नए शिक्षा पैटर्न में 5+3+3+4 प्रणाली शामिल है और कहा कि महिला शिक्षकों की संख्या 36 लाख से बढ़कर 48 लाख हो गई है।

एनसीईआरटी पाठ्यक्रम पर विवाद को संबोधित करते हुए प्रधान ने कहा, “भारतीय शिक्षा प्रणाली में पश्चिमी प्रभाव को हटाना होगा?”, उन्होंने कहा। “राष्ट्रीय शिक्षा नीति केवल 60 पन्नों का नीति दस्तावेज नहीं है। यह भारत के पुनर्निर्माण, विश्व में भाईचारा बढ़ाने और वैश्विक समस्याओं के समाधान का एक दार्शनिक तत्व है। पूरा देश आज सर्वसम्मति से इसे स्वीकार करता है, ”प्रधान ने कहा।

इसी तरह की भावना व्यक्त करते हुए, भाजपा सांसद संबित पात्रा ने विपक्षी दलों पर आरक्षण के संबंध में पाखंड का आरोप लगाया और दावा किया कि कांग्रेस शासन के दौरान जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए कोटा हटा दिया गया था। पात्रा ने कहा, ''कांग्रेस को (इसके लिए) जवाब देना होगा।''

उन्होंने कौशल और नवाचार के माध्यम से वैश्विक समाधान प्रदाता बनने की सरकार की प्रतिबद्धता पर जोर देते हुए शिक्षा के लिए बजट आवंटन में ₹1.48 लाख करोड़ की वृद्धि पर प्रकाश डाला।

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद प्रतिमा मंडल ने भी महत्वपूर्ण मुस्लिम शासकों पर अध्याय हटाने के लिए सरकार पर सवाल उठाया। मंडल ने कहा, "मौजूदा सरकार के तहत पाठ्यपुस्तकों का व्यवस्थित संशोधन हमारे बच्चों की बौद्धिक अखंडता के लिए खतरा पैदा करता है।" उन्होंने 2018 में डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को पाठ्यक्रम से हटाने का भी संदर्भ दिया, यह देखते हुए कि इसे 2022-23 तक पाठ्यपुस्तकों से पूरी तरह से बाहर कर दिया गया था।

उन्होंने कहा, "मुस्लिम नियमों, गुजरात दंगों पर अध्यायों को हटाने की शिक्षाविदों द्वारा व्यापक रूप से आलोचना की गई है... ये बदलाव बौद्धिक ठहराव, राजनीतिक हेरफेर को बढ़ावा दे रहे हैं और भारतीय छात्रों की बुद्धि को निशाना बना रहे हैं।"

दूसरी ओर, भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या ने सरकार की पहल की सराहना करते हुए तर्क दिया कि एनईपी महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान करती है और मातृभाषा में शिक्षा से कई लोगों को लाभ होगा। उन्होंने मंडल आयोग की रिपोर्ट को दस साल तक लागू करने में विफल रहने के लिए कांग्रेस की आलोचना की और दावा किया, "अगर कोई पार्टी है जो एससी, एसटी, ओबीसी विरोधी है, तो वह कांग्रेस है।"

NEET-UG 2024 पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला: 'पवित्रता का कोई प्रणालीगत उल्लंघन नहीं' NTA को 'फ्लिप-फ्लॉप' से बचने की दी हिदायत

NEET-UG 2024 फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार, 2 अगस्त को कहा कि नेशनल टेस्टिंग एजेंसी या NTA को NEET-UG 2024 परीक्षा के संबंध में किए गए "फ्लिप-फ्लॉप" से बचना चाहिए। इसमें कहा गया है कि एक राष्ट्रीय परीक्षा में इस तरह की ''उलझन'' छात्रों के हितों की पूर्ति नहीं करती है। पेपर के आरोपों और परीक्षा में अन्य अनियमितताओं पर बढ़ते विवाद के बावजूद, सुप्रीम कोर्ट 2024 एनईईटी-यूजी मेडिकल प्रवेश परीक्षा को रद्द नहीं करने के कारणों पर अपना फैसला सुना रही थी ।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने यह भी कहा कि विशेषज्ञ समिति को परीक्षा प्रणाली में कमियों को दूर करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसने अपने फैसले में एनटीए की संरचनात्मक प्रक्रियाओं की सभी कमियों को उजागर किया है, ''छात्रों की भलाई के लिए हम इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते।'' शीर्ष अदालत ने कहा कि जो मुद्दे उठे हैं, उन्हें केंद्र द्वारा इसी साल सुधारा जाना चाहिए ताकि इसकी पुनरावृत्ति न हो।

हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि NEET-UG 2024 के पेपरों में कोई प्रणालीगत उल्लंघन नहीं हुआ था और लीक केवल पटना और हज़ारीबाग़ तक ही सीमित था।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि केंद्र द्वारा गठित समिति परीक्षा प्रणाली की साइबर सुरक्षा में संभावित कमजोरियों की पहचान करने, परीक्षा केंद्रों की बढ़ी हुई पहचान जांच की प्रक्रियाओं, सीसीटीवी कैमरे की निगरानी के लिए तकनीकी प्रगति के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करने पर भी विचार कर रही है। पीठ ने कई निर्देश भी जारी किए और एनटीए के कामकाज की समीक्षा करने और परीक्षा सुधारों की सिफारिश करने के लिए इसरो के पूर्व प्रमुख के राधाकृष्णन की अध्यक्षता में केंद्र द्वारा नियुक्त समति के दायरे का विस्तार किया।

इसमें कहा गया है कि चूंकि पैनल का दायरा बढ़ा दिया गया है, इसलिए समिति परीक्षा प्रणाली में कमियों को दूर करने के विभिन्न उपायों पर 30 सितंबर तक अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। पीठ ने कहा कि राधाकृष्णन पैनल को परीक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए तकनीकी प्रगति को अपनाने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया तैयार करने पर विचार करना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि एनईईटी-यूजी परीक्षा के दौरान जो मुद्दे उठे हैं, उन्हें केंद्र द्वारा ठीक किया जाना चाहिए।

23 जुलाई को, शीर्ष अदालत ने विवादों से घिरी परीक्षा को रद्द करने और दोबारा परीक्षा कराने की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है कि इसकी पवित्रता के "प्रणालीगत उल्लंघन" के कारण इसे "विकृत" किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुनाते हुए कहा कि इसके विस्तृत कारणों का पालन किया जाएगा।

अंतरिम फैसला संकटग्रस्त एनडीए सरकार और एनटीए के लिए एक झटका था, जो प्रतिष्ठित परीक्षा में प्रश्न पत्र लीक, धोखाधड़ी और प्रतिरूपण जैसे कथित बड़े पैमाने पर कदाचार को लेकर सड़कों और संसद में कड़ी आलोचना और विरोध का सामना कर रहे थे।

परीक्षा 5 मई को आयोजित किया गया था । एमबीबीएस, बीडीएस, आयुष और अन्य संबंधित पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए 2024 में 23 लाख से अधिक छात्रों ने राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा-अंडरग्रेजुएट (एनईईटी-यूजी) दी।

नीट-यूजी विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी, कहा- लीक सिर्फ पटना और हजारीबाग तक सीमित

#neet_ug_2024_supreme_court_said_that_there_is_no_large_scale_paper_leak

नीट यूजी 2024 परीक्षा पेपर लीक मामले में सुनवाई के दौरान आज, 2 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की।सुप्रीम कोर्ट ने आज नीट यूजी को पेपर लीक के आरोपों के बावजूद रद्द क्यों नहीं की, इसकी जानकारी दी है। साथ ही सरकार द्वारा बनाई गई कमेटी के लिए काम करने का दायरा भी तय किया है।सुप्रीम कोर्ट ने नीट यूजी मामले पर अपने फैसले में कहा कि पेपर लीक व्यापक स्तर पर नहीं हुआ है। इसलिए नीट की दोबारा परीक्षा कराने की मांग खारिज की जाती है। सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई की बेंच ने साफ तौर पर कहा कि अदालत का निष्कर्ष है कि नीट पेपर लीक सिस्टेमेटिकन नहीं है।

सीजेआई ने कहा कि सिस्टमैटिक ब्रीच नहीं था। पेपर लीक सिर्फ पटना और हजारीबाग तक सीमित था।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परीक्षा के आयोजन में कोई व्यवस्थागत कमी नहीं पाई गई। अगर परीक्षा को रद्द किया जाता, तो लाख स्टूडेंट्स इससे प्रभावित होते, जो परीक्षा में शामिल हुए थे। वहीं एग्जाम पास करने वाले छात्रों पर इसका विपरीत असर पड़ता। ऐसे में पूरी जांच और सभी बिंदुओं पर विचार के बाद परीक्षा नहीं रद्द करने का फैसला किया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने नीट पेपर लीक, गलत प्रश्न पत्र के वितरण और भौतिकी के एक प्रश्न के गलत विकल्प के लिए अंक देने के मामले में एनटीए यानी नेशनल टेस्टिंग एजेंसी की ढुलमुल नीति की आलोचना की।कोर्ट ने कहा कि एनटीए को बार-बार अपने फैसले नहीं बदलने चाहिए क्योंकि यह केंद्रीय संस्था पर अच्छा नहीं लगता।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सरकार द्वारा गठित कमेटी को किसी भी गड़बड़ी को “रोकने और उसका पता लगाने” के लिए कदम सुझाने चाहिए। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि एनटीए के साथ मिलकर कमेटी को एक ऐसा तरीका भी ढूंढना चाहिए, जिससे पेपर बनाने से लेकर उसकी जांच करने तक, हर प्रक्रिया पर कड़ी नजर रखी जा सके। साथ ही, प्रश्न पत्रों के रखरखाव और स्टोरेज आदि की जांच के लिए एक एसओपी को भी सुव्यवस्थित किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी से कहा कि कमेटी काम के दौरान एग्जाम सिक्योरिटी, स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर तय करना, एग्जाम सेन्टर के अलॉट करने की प्रकिया की समीक्षा, परीक्षा केन्द्र की सीसीटीवी मॉनिटरिंग, पेपर में गड़बड़ी नहीं हो, ये सुनिश्चित करना, शिकायतों के निवारण की व्यवस्था करना, प्रश्नपत्रों में हेराफेरी न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए लॉजिस्टिक को सुरक्षित करना और पेपर को खुले ई-रिक्शा के बजाय रियल टाइम इलेक्ट्रॉनिक लॉक सिस्टम के साथ बंद वाहन में भेजे जाने की व्यवस्था पर विचार करे।

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि पूरी परीक्षा की गरिमा प्रभावित नहीं हुई। कोर्ट ने कमेटी की रिपोर्ट तय करने के लिए 30 सितंबर 2024 तक का वक़्त दिया। दरअसल केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया था कि भविष्य में प्रतियोगी परीक्षाओं में नीट जैसी गड़बड़ी को रोकने के लिए इसरो के पूर्व चेयरमैन के राधाकृष्णन की अध्यक्षता में कमिटी गठित होगी। कोर्ट ने आज उसी कमेटी का दायरा तय किया है।