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पश्चिम बंगाल में दहशत में बीजेपी कार्यकर्ता, घर छोड़ने को मजबूर, पार्टी कार्यालय को बनाया बसेरा*
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पश्चिम बंगाल एक ऐसा राज्य है जहां राजनीतिक हिंसा की संस्कृति अन्य भारतीय राज्यों की तुलना में कहीं अधिक है।यहां राजनीतिक हिंसा का लंबा इतिहास है, जो कई दशकों से चला आ रहा है और जिस ने राज्य की राजनीति पर जटिल और गहरा प्रभाव डाला है। हाल ही में खत्म हे लोकसभा चुनाव के दौरान भी हिंसक घटनाएं हावी रहीं। अब चुनाव खत्म होने के बाद भी हिंसा भड़कने का खतरा मंडरा रहा है।लगातार हमलों से भयभीत कई भाजपा कार्यकर्ता घर छोड़ने पर मजबूर हैं।इनमें कुछ ने पार्टी कार्यालयों में शरण ली रखी है। 2021 में हुए विधानसभा चुनाव और 2023 के पंचायत चुनाव के बाद भी बीजेपी कार्यकर्ताओं को बेघर होना पड़ा था, आज भी पश्चिम बंगाल में लोग उसी गंभीर स्थिति से गुजर रहे हैं।इसलिए कई भाजपाइयों ने अपने परिवार के साथ सुरक्षित स्थानों में शरण ली है। कई लोग वोट डालने के बाद घर छोड़ कहीं और चले गए। इसे लेकर विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने राज्यपाल को पत्र लिखा है। राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता और नंदीग्राम से भाजपा विधायक शुभेंदु अधिकारी ने राज्यपाल सीवी आनंद बोस को लिखे पत्र में कहा कि लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद 10,000 भाजपा कार्यकर्ता और उनके परिवार असुरक्षित हैं, जिनमें से कई लोग पार्टी कार्यालय में रुके हैं।
मणिपुर, मर्यादा, दूसरों के मत का सम्मान...बहुत कुछ बोल गए भागवत, इशारों-इशारों में किसे दिया संदेश?
#mohan_bhagwat_on_manipur_election_and_modi_govt

देश में लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद नई सरकार का गठन भी हो गया है। चुनावी नतीजों और सरकार के शपथ ग्रहण के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत का बड़ा बयान आया है।सोमवार नागपुर के एक कार्यक्रम में मोहन भागवत ने चुनाव में संघ को घसीटे जाने, चुनाव में मर्यादा, मणिपुर में अशांति, दूसरों के मत का सम्मान जैसे मुद्दों पर अपनी बात रखी। कार्यक्रम में बोलते हुए श्री भागवत ने नई सरकार और विपक्ष को भी सलाह दी।

मोदी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह के ठीक एक दिन बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मणिपुर, चुनाव,राजनीतिक दलों के रवैये पर बात की। भागवत ने सभी धर्मों को लेकर बयान दिया। उन्होंने कहा कि सभी धर्मों का सम्मान है।संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि चुनाव परिणाम आ चुके हैं। सरकार भी बन चुकी है। जो हुआ, क्यों हुआ, कैसे हुआ? ये लोकतंत्र के नियम हैं, समाज ने अपना मत दे दिया है, संघ के लोग इसमें नहीं पड़ते हैं। हम चुनाव में परिश्रम करते हैं। जो सेवा करता है वो मर्यादा से चलता है। काम करते सब लोग हैं लेकिन कुशलता का ध्यान रखना चाहिए। ऐसी मर्यादा रखकर काम करते हैं। मर्यादा ही अपना धर्म और संस्कृति है।

नागपुर में आरएसएस प्रशिक्षुओं की सभा को संबोधित करते हुए भागवत ने संसद इसलिए होती है क्योंकि सहमति हो. स्पर्धा की वजह से इसमें दिक्कत आती है. इसलिए बहुमत की बात होती है। चुनाव में संघ जैसे संगठन को भी घसीटा गया। कैसी-कैसी बातें की गईं। तकनीक का सहारा लेकर ऐसा किया गया। विद्या का उपयोग प्रबोधन करने के लिए होता है लेकिन आधुनिक तकनीक का गलत इस्तेमाल किया गया।

भागवत ने आगे कहा कि सरकार बन गई है। वही सरकार (एनडीए) फिर से आ गई है। पिछले 10 साल में बहुत कुछ अच्छा हुआ है। वैश्विक स्तर पर पहचान अच्छी हुई है। प्रतिष्ठा बढ़ी है। विज्ञान और संस्कृति के क्षेत्र में हम आगे बढ़ रहे हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हम चुनौतियों से मुक्त हो गए हैं। हमें अभी अन्य समस्याओं से राहत लेनी है।

इसी दौरान मोहन बागवत ने हिंसाग्रस्त मणिपुर का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि 10 साल पहले मणिपुर में शांति थी। ऐसा लगा था कि वहां बंदूक संस्कृति खत्म हो गई है, लेकिन राज्य में अचानक हिंसा बढ़ गई है। आरएसएस प्रमुख ने कहा,मणिपुर की स्थिति पर प्राथमिकता के साथ विचार करना होगा। चुनावी बयानबाजी से ऊपर उठकर राष्ट्र के सामने मौजूद समस्याओं पर ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने चुनावी बयानबाजी से बाहर आकर देश के सामने मौजूद समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा,मणिपुर पिछले एक साल से शांति स्थापित होने की प्रतीक्षा कर रहा है।

संघ प्रमुख के बयान को बीजेपी चीफ जेपी नड्डा के बयान से भी जोड़कर देखा जा रहा है। गौरतलब है कि नड्डा ने कुछ दिन पहले कहा था कि अब बीजेपी अब अपने पैरो पर खड़ी है। यही नहीं, इस बार के चुनाव में बीजेपी ने संघ से कोई मदद भी नहीं मांगी थी। पिछले दो चुनावों में संघ यूपी से लेकर बिहार तक काफी एक्टिव था। लेकिन इस बार आरएसएस यूपी से भी दूर रहा। सूत्रों के मुताबिक नड्डा के बयान के बाद तो स्वयंसेवक भी एक्टिव नहीं रहे। अब भागवत के बयान को चुनाव परिणाम के बाद नड्डा के बयान से ही जोड़ा जा रहा है।
यूरोपीय यूनियन के चुनाव में दक्षिणपंथी दलों की बड़ी जीत, इटली की पीएम मेलोनी किंग मेकर
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यूरोपीय संघ (ईयू) के चुनावों में धुर दक्षिणपंथी दलों को बड़ी सफलता मिली है। चुनाव में धुर दक्षिणपंथी दलों ने कई देशों की पारंपरिक सत्तारूढ़ ताकतों को बड़ा झटका दिया है, जिसमें फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की पार्टी को भी करारी हार का सामना करना पड़ा। वहीं, इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी की धुर दक्षिणपंथी पार्टी ब्रदर्स ऑफ इटली ईयू चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। जॉर्जिया मेलोनी की पार्टी की सीटें यूरोपीय संघ संसद में दोगुनी हो गई हैं। चुनावी नतीजों के बाद मेलोनी अपने देश के साथ-साथ यूरोप की मजबूत नेता के रूप में भी उभरकर सामने आई हैं।

जर्मनी की धुर दक्षिणपंथी पार्टी 'अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी' को भले ही अपने उम्मीदवारों से जुड़े घोटाले का सामना करना पड़ा हो लेकिन पार्टी ने देश के चांसलर ओलाफ शोल्ज की ‘‘सोशल डेमोक्रेट्स’ पार्टी को मात देने के लिए पर्याप्त सीट जुटा ली हैं।जर्मनी में ‘अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी' के कई शीर्ष उम्मीदवारों का नाम घोटालों में शामिल रहा लेकिन इसके बावजूद पार्टी का मत प्रतिशत बढ़ा। पार्टी ने 2019 में 11 प्रतिशत मत हासिल किए थे, जो बढ़कर 16.5 प्रतिशत हो गए। वहीं, जर्मनी के सत्तारूढ़ गठबंधन में तीन दलों का संयुक्त मत प्रतिशत मुश्किल से 30 प्रतिशत से ऊपर रहा।

मेलनी की ब्रदर्स ऑफ इटली पार्टी ने ईयू के चुनाव में इटली में 28.8 फीसदी वोट हासिल किए हैं। वो जिस गठबंधन में हैं उसमें शामिल फ्रोजा इटालिया पार्टी को 9.6 फीसदी व लेगा पार्टी को 9.1 फीसदी वोट मिले हैं। अब गठबंधन में मेलनी की स्थिति और मजबूत हुई है।

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को भी चुनाव में करारी शिकस्त झेलनी पड़ी है। जिसके कारण मैक्रों ने राष्ट्रीय संसद को तुरंत भंग कर मध्यावधि चुनावों की घोषणा कर दी। मैक्रों के लिए यह बड़ा राजनीतिक जोखिम है, क्योंकि उनकी पार्टी को और अधिक नुकसान सहना पड़ सकता है। मैक्रों ने अपनी करारी शिकस्त को स्वीकार करते हुए कहा, 'मैं आपका जनादेश स्वीकार करता हूं, आपकी चिंताओं से वाकिफ हुआ हूं और मैं इन्हें हल किये बिना नहीं जाऊंगा।' उन्होंने कहा कि अचानक चुनाव की घोषणा करना केवल उनकी लोकतांत्रिक साख को रेखांकित करता है।
नहीं बचेंगे रियासी बस अटैक के गुनहगार, सेना ने जंगल को घेरा, ड्रोन भी उतारे गए, बड़े पैमाने पर चल रहा ऑपरेशन, एक्शन में मोदी-शाह


जम्‍मू कश्‍मीर के रियासी में रविवार शाम हुए आतंकी हमले के बाद सेना एक्शन में है। रविवार शाम को रियासी जिले में आतंकियों ने बड़ा हमला किया। आतंकवादियों ने तीर्थयात्रियों को ले जा रही बस पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी, जिससे बस खाई में गिर गई। इस घटना में 10 लोगों की मौत हो गई और 33 अन्य घायल हुए हैं। बस के ड्राइवर ने बड़ा साहस दिखाते हुए बस को वहां से तेजी से भगाता लिया। हालांकि इस बीच उसे भी गोली लग गई और वह बस से कंट्रोल खो बैठा और वह खाई में जा गिरी।

आतंकवादी हमला करने वाले गुनहगारों की तलाश तेज हो गई है। वहीं, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने जम्मू और रियासी के अस्पतालों में घायलों से मुलाकात की और सुरक्षा स्थिति की समीक्षा के लिए एक हाई लेवल बैठक की अध्यक्षता की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने आतंकी हमले को काफी गंभीरता से लिया है और सुरक्षाबलों को आतंकियों के खिलाफ सख्‍त कदम उठाने का निर्देश दिया है।




रियासी की सीनियर एसपी मोहिता शर्मा ने बताया, ‘शुरुआती रिपोर्ट के अनुसार, आतंकवादियों ने घात लगाकर शिव खोड़ी से कटरा के लिए रवाना हुई बस पर गोलीबारी की। हमले के कई घंटे बाद भी आतंकियों का नामो-निशान नहीं मिला है। इस हमले के तार पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ रहे हैं। आतंकियों को खोजने के लिए बड़े पैमाने पर सर्च ऑपरेशन चलाया जा रहा है। हमले के बाद आतंकी जंगल की तरफ भागे थे। ऐसे में रियासी के जंगल को घेर लिया गया है। वहां कमांडो और ड्रोन भी उतारे गए हैं।


इन आतंकियों से श्रद्धालुओं के ख़ून के एक-एक कतरे का हिसाब लेने के लिए सुरक्षाबल ने जमीन आसमान एक कर दिया है। पुलिस, सेना और सीआरपीएफ की 11 टीमें आतंकवादियों के खात्मे के लिए दो अलग-अलग तरह से संयुक्त रूप से काम कर रही हैं। इस गोलीबारी के बाद भी यात्री चुपचाप लेटे रहे, ताकि आतंकवादियों को ऐसा लगे कि वो सभी मर चुके हैं। मरने वाले यात्रियों में से 4 राजस्थान से थे, जिनमें एक 3 साल का बच्चा भी शामिल था। ये चारों लोग एक ही परिवार के थे। इसके अलावा, मरने वालों में 3 लोग उत्तर प्रदेश के थे। ड्राइवर और कंडक्टर रियासी के ही रहने वाले थे।
SC/ST का आरक्षण दूसरे समुदायों को देना दुखद, ये भाईचारा बिगाड़ने की साजिश - हरियाणा CM नायब सैनी ने दिया बयान



हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने धर्म आधारित आरक्षण को लेकर कांग्रेस की आलोचना करते हुए कहा कि SC और ST समुदाय का आरक्षण दूसरों को दे दिया गया है और यह समुदायों के बीच भाईचारे को बिगाड़ने की एक सोची-समझी साजिश है। सैनी ने संवाददाताओं से कहा कि, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि SC और ST का आरक्षण धर्म के आधार पर दूसरों को दे दिया गया है। कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने ऐसा किया है। यह देश में समुदायों के बीच व्याप्त भाईचारे को बिगाड़ने की एक सोची-समझी साजिश है।"

उन्होंने कहा कि, "लोगों ने अब कांग्रेस का असली चेहरा देख लिया है और यह पार्टी देश से खत्म हो जाएगी। झूठ पर उन्होंने जो नींव रखी है, वह ढह जाएगी।" हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने 6 जून को विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता के नेतृत्व में हरियाणा विधानसभा परिसर में करनाल के विधायक के रूप में शपथ ली। नायब सिंह सैनी ने हाल ही में करनाल विधानसभा क्षेत्र में हुए विधानसभा उपचुनाव में जीत हासिल की थी। इससे पहले, वह कुरुक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र से सांसद के रूप में कार्यरत थे और लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा से ठीक पहले उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी।


उन्होंने हरियाणा भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। इससे पहले सोमवार को हरियाणा कांग्रेस ने हरियाणा विधानसभा में विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा और हरियाणा कांग्रेस प्रमुख उदय भान की अध्यक्षता में एक बैठक की। बैठक में लोकसभा चुनाव के नतीजों और आगामी हरियाणा विधानसभा चुनावों पर चर्चा होने की उम्मीद है। बैठक में हरियाणा के विधायकों और सांसदों के आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर रणनीति बनाने की उम्मीद है। पार्टी नेताओं ने विधानसभा चुनावों के लिए अपने आधार को मजबूत करने के लिए मजबूत और कमजोर बूथों का आकलन किया, साथ ही आभार व्यक्त करने के लिए बैठकें भी कीं। हरियाणा में साल के अंत में चुनाव होने की उम्मीद है।
जेपी नड्डा और 4 महीने बनें रहेंगे बीजेपी अध्यक्ष, मंत्रालय के साथ पार्टी का भी देखेंगे काम
#jp_nadda_will_remain_bjp_president_for_how_long


जेपी नड्डा नरेंद्र मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गए हैं। इसके बाद से सभी ये जानना चाहते हैं कि भाजपा का नया अध्यक्ष कौन बनेगा। इस बीच इसको लेकर बड़ी खबर मिल रही है। बताया जा रहा है कि नए अध्यक्ष की नियुक्ति होने तक जेपी नड्डा अध्यक्ष पद पर बने रहेंगे। सूत्रों के मुताबिक, भाजपा के अध्यक्ष का चुनाव सितंबर तक हो सकता है। कार्यकारी अध्यक्ष की नियुक्ति होने तक जेपी नड्डा पार्टी और मंत्रालय दोनों की देखरेख करते रहेंगे।

बीजेपी आलाकमान से जुड़े करीबी सूत्रों ने बताया कि पार्टी जल्द ही कार्यकारी अध्यक्ष की नियुक्ति करेगी। तब तक जेपी नड्डा ही अध्यक्ष बने रहेंगे। उन्होंने बताया कि अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया सितंबर तक पूरी हो सकती है। वहीं कार्यकारी अध्यक्ष को लेकर अभी कोई निर्णय नहीं हुआ है। ऐसे में कार्यकारी अध्यक्ष की नियुक्ति तक नड्डा मंत्रालय के साथ पार्टी का भी काम देखते रहेंगे।

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में चार साल से अधिक समय तक पार्टी का नेतृत्व करने वाले जेपी नड्डा को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में स्वास्थ्य मंत्रालय का प्रभार मनसुख मांडविया के पास था।वर्ष 2019 में बीजेपी का कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से पहले मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भी नड्डा के पास यही विभाग था। अमित शाह के केंद्रीय गृह मंत्री बनने के बाद नड्डा बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए थे।

जेपी नड्डा का बतौर बीजेपी अध्यक्ष तीन साल का कार्यकाल पिछले साल जनवरी में ही पूरा हो गया था, लेकिन फिर चुनावी साल को ध्यान में रखते हुए उनका कार्यकाल जून 2024 तक बढ़ा दिया गया, जो कि अब पूरा हो गया है।
पहली बार अल्पसंख्यक मामलों का मंत्री बना कोई बौद्ध, मोदी सरकार ने किरेन रिजिजू को सौंपा विभाग



किरेन रिजिजू ने अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री के रूप में शपथ लेने के साथ विभाग को संभाल लिया है। अरुणाचल प्रदेश से भाजपा सांसद जनवरी 2006 में राज्य के गठन के बाद से अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री का पद संभालने वाले पहले बौद्ध मंत्री बन गए हैं। परम्परागत रूप से अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के रूप में केवल मुस्लिम राजनेताओं को ही नियुक्त किया जाता था। कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार ने 2006 में ये मंत्रालय बनाया था, इसके बाद से 2009 तक अब्दुल रहमान अंतुले की नियुक्ति के साथ इस परंपरा की शुरुआत की। इसके बाद कांग्रेस ने गाँधी परिवार के करीबी सलमान खुर्शीद को ये मंत्रालय सौंपा। इसके बाद कांग्रेस ने ही के रहमान खान को अल्पसंख्यक मंत्री बनाया।

2014 में भाजपा सत्ता में आई, तब तक ये परंपरा बन चुकी थी। मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में एक मुस्लिम महिला नजमा हेब्तुल्ला को इसका नेतृत्व सौंपा, उनका कार्यकाल लगभग 2 साल का रहा, फिर करीब 6 साल मुख़्तार अब्बास नकवी ने ये पद संभाला। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में स्मृति ईरानी ने कुछ दिन के लिए ये मंत्रालय संभाला। अब देश में पहली बार एक बौद्ध को अल्पसंख्यक मामलों का केंद्रीय मंत्री बनाया गया है, जो अपने आप में ऐतिहासिक है। भारत में बौद्ध समुदाय की आबादी लगभग 1 करोड़ है, वहीं मुस्लिम समुदाय करीब 25 से 30 करोड़ है। 


बता दें कि किरेन रिजिजू, जो पहले कानून मंत्री रह चुके हैं, अब अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय का कार्यभार संभालेंगे। केरल के ईसाई राजनेता जॉर्ज कुरियन को इस विभाग का राज्य मंत्री नियुक्त किया गया है। यह उल्लेख करना आवश्यक है कि भारत में 'धार्मिक अल्पसंख्यकों' में मुस्लिम सबसे बड़े बहुमत में हैं। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को 2006 में यूपीए सरकार द्वारा सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय से अलग करके बनाया गया था।
बद्रीनाथ में श्रद्धालुओं ने तोड़ा रिकॉर्ड, एक महीने में ही 5 लाख लोगों ने किए दर्शन

उत्तराखंड स्थित बद्रीनाथ धाम में इस बार श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी गई, क्योंकि एक महीने से भी कम समय में रिकॉर्ड तोड़ 5 लाख श्रद्धालुओं ने बाबा बद्री विशाल के दर्शन किए। उल्लेखनीय है कि इस साल बद्रीनाथ धाम में पिछले साल के 4.5 लाख श्रद्धालुओं की तुलना में 50,000 अधिक श्रद्धालु आए हैं। वहीं, सिखों के पवित्र तीर्थस्थल हेमकुंड साहिब में 55,000 से अधिक श्रद्धालु श्रद्धा प्रकट करने पहुंचे हैं। इस साल चार धाम यात्रा सर्किट में श्रद्धालुओं की तादाद में बढ़ोतरी देखी गई है, जिसमें बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री शामिल हैं। बद्रीनाथ में श्रद्धालुओं की संख्या में बढ़ोतरी के साथ उम्मीद है कि इस बार यात्रा के पिछले सभी रिकॉर्ड टूट जाएंगे। बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के उपाध्यक्ष किशोर पंवार ने कहा कि, "अब तक चार धाम में 19 लाख से अधिक श्रद्धालु आ चुके हैं। बद्रीनाथ में एक महीने से भी कम समय में पांच लाख श्रद्धालु भगवान बद्री विशाल के दर्शन कर चुके हैं और उम्मीद है कि और भी अधिक श्रद्धालु आएंगे।"
'हमने मोदी को कोई मोहब्बत का संदेश नहीं भेजा है..', पीएम शाहबाज़ की बधाई पर पाकिस्तानी रक्षामंत्री ने उगला जहर



प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ द्वारा नरेन्द्र मोदी को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में तीसरी बार निर्वाचित होने पर बधाई दिए जाने के बाद, रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने पड़ोसी देश को कोई "प्रेम का संदेश" भेजने की धारणा को दूर करने का प्रयास किया, जिसका पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण संबंधों का लंबा इतिहास रहा है।

सोमवार को एक न्यूज़ कार्यक्रम में आसिफ ने स्पष्ट किया, "मोदी को भारतीय प्रधानमंत्री बनने पर बधाई देना महज एक कूटनीतिक मजबूरी है।" उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने मोदी को कोई "मोहब्बत का संदेश" नहीं भेजा है। मोदी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता हैं, जिन्होंने कल तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली है। आसिफ ने कहा कि पाकिस्तान कभी नहीं भूलेगा कि मोदी भारत में "मुसलमानों के हत्यारे" हैं। उन्होंने इस साल की शुरुआत में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले शहबाज को मोदी द्वारा भेजी गई बधाई को याद किया।


इससे पहले प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने अपने भारतीय समकक्ष नरेंद्र मोदी को शपथ लेने पर बधाई दी। अपने निजी अकाउंट एक्स पर प्रधानमंत्री शहबाज ने लिखा: "भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने पर को बधाई।" पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने अपने भारतीय समकक्ष को बधाई ऐसे समय दी है जब एक दिन पहले ही मोदी ने लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली है। प्रधानमंत्री शहबाज के पोस्ट के जवाब में मोदी ने 72 वर्षीय शहबाज को धन्यवाद देते हुए कहा, "आपकी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद।"

इसके अलावा, पूर्व प्रधानमंत्री और सत्तारूढ़ पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के अध्यक्ष नवाज शरीफ ने भी पीएम मोदी को बधाई देते हुए कहा: "मोदी जी को तीसरी बार पदभार संभालने पर मेरी हार्दिक बधाई। हाल के चुनावों में आपकी पार्टी की सफलता आपके नेतृत्व में लोगों के विश्वास को दर्शाती है। आइए हम नफरत की जगह उम्मीद लाएं और दक्षिण एशिया के दो अरब लोगों की नियति को आकार देने के अवसर का लाभ उठाएं।"

पीएम मोदी ने नवाज़ द्वारा दिए गए बधाई संदेश का जवाब भी दिया। मोदी ने एक्स पर अपने पोस्ट में कहा: "आपके संदेश [नवाज़ शरीफ़] की सराहना करता हूँ। भारत के लोग हमेशा शांति, सुरक्षा और प्रगतिशील विचारों के पक्षधर रहे हैं। हमारे लोगों की भलाई और सुरक्षा को आगे बढ़ाना हमेशा हमारी प्राथमिकता रहेगी।" बता दें कि, पीएम मोदी, जवाहरलाल नेहरू के बाद प्रधानमंत्री के रूप में लगातार तीसरी बार शपथ लेने वाले पहले व्यक्ति हैं।


भारतीय चुनावों पर पाकिस्तानी प्रतिक्रिया

गौरतलब है कि, लोकसभा चुनावों में भाजपा की कम सीटें आने पर और कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन रहने पर पाकिस्तान के कई नेताओं ने ख़ुशी जताई है। पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक अब्दुल बासित ने अपने एक्स हैंडल पर लिखा हैं कि, ''सांप्रदायिक कट्टरता और भाजपा के प्रतिगामी “हिंदू राष्ट्र” को अस्वीकार करने के लिए भारत के लोग बहुत तारीफ के पात्र हैं।''  वहीं, पाकिस्तान की पिछली इमरान खान सरकार में सूचना मंत्री रहे फवाद चौधरी भी  भारत के चुनावों पर लगातार बयान दे रहे थे। वे तो खुले आम कांग्रेस नेता राहुल गांधी का समर्थन करते हुए कह चुके थे कि, किसी भी तरह मोदी सरकार को हटाना जरूरी है। वे राहुल गांधी के वीडियो और कांग्रेस के विज्ञापन भी अपने हैंडल से शेयर कर चुके हैं। नतीजों पर उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा था कि, ''चूंकि भारत के चुनाव पर मेरी हर भविष्यवाणी लगभग सही साबित हुई, इसलिए मैं यह कहने का साहस करता हूं कि मोदी निश्चित रूप से प्रधानमंत्री बनेंगे, लेकिन उनकी सरकार के कार्यकाल पूरा करने की संभावना लगभग शून्य है, यदि INDIA गठबंधन अपने पत्ते ठीक से खेलता है तो भारत में मध्यावधि चुनाव होंगे।''
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने चुनाव के बाद कहा, भ्रम में न रहें, विवादों से बचें और विपक्ष को विरोधी नहीं प्रतिपक्ष कहें



राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत लंबे समय से सार्वजनिक जीवन करीब मौन जैसी स्थिति में थे. चुनाव के तुरंत बाद नागपुर में संघ से ही जुड़े कार्यकर्ता विकास वर्ग द्वितीय के समापन कार्यक्रम में उन्होंने कुछ खरी-खरी बातें की हैं. जिसके बाद सियासी जगत में उसे लेकर चर्चाएं हैं. अपने अपने तरीके से ये समझने की कोशिश हो रही है कि उन्होंने ये बातें क्यों कहीं हैं. चूंकि संघ और बीजेपी का नाता इतना अटूट है लिहाजा भागवत की बातों को एक वर्ग सत्ता पक्ष को नसीहत के तौर पर देख रहा है तो दूसरा वर्ग इस तौर पर कि संघ देश में कटुता के माहौल में बदलाव चाहता है.


जानकार कहते हैं कि संघ और बीजेपी में आमतौर पर कभी कोई विवाद रहता नहीं. अगर कोई मतभेद आते भी हैं तो वो उसे पर्दे के पीछे ही सुलझा भी लेते हैं. वो ये भी मानते हैं कि संघ कभी बीजेपी के किसी कार्यविधि या गतिविधियों से हाथ नहीं खींचता, उसमें सहयोग भी देता है और नजर भी रखता है. उनका मानना है कि संघ और बीजेपी में मतभेद की खबरें जानबूझकर भ्रम में रखने के लिए फैलाई जाती हैं.


आरएसएस प्रमुख भागवत चुनावों के दौरान करीब शांत रहे, उससे पहले भी उन्होंने देश के हालात या मुद्दों पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी है. ये संयोग है कि केंद्र में दोबारा बीजेपी की अगुवाई और नरेंद्र मोदी की लीडरशिप में एनडीए की सरकार बनने के बाद उनका इतना दोटूक कहने वाला भाषण सामने आया है. पहली बार सार्वजनिक तौर पर किसी कार्यक्रम में ना केवल दिया गया बल्कि संघ ने उसे अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में प्रमुखता से जगह भी दी है.


एक्स में संघ के आधिकारिक हैंडल पर भागवत के भाषण को प्रमुखता से पोस्ट किया गया. अगर इसके लब्बो-लुआब को जानें तो इसके पांच प्वाइंट्स निकलते हैं.

बयानबाजी से बचें और काम करें, चुनाव मोड से निकलें
प्रत्यक्ष तौर पर देखें तो ऐसा लगता है कि जैसे उन्होंने ये कहा कि चुनाव प्रचार में जिस तरह एक दूसरे को लताड़ने, तकनीक का दुरुपयोग करने के साथ  असत्य को प्रसारित करने का जो काम हुआ है, वो ठीक नहीं है.

ऐसा लगता है कि उनकी इस बात के निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हैं, जिन पर विपक्ष ने नकारात्मक बयानबाजी करने, वैमनस्य फैलाने और तथ्यों से परे चुनाव प्रचार का आरोप लगाया है तो बीजेपी ने यही बात विपक्षी दलों के लिए कही. दरअसल भागवत अपनी इस बात से सभी को नसीहत दे रहे हैं कि अब चुनाव हो चुका है. चुनावों में आरोप प्रत्यारोप के बाद देश का माहौल तनावपूर्ण हो जाता है. उनके निशाने पर केवल बीजेपी को नहीं समझा जाना चाहिए बल्कि समूचे विपक्ष को भी माना जाना चाहिए.

मणिपुर की बात पर कौन है असल निशाने पर
मणिपुर में जो स्थिति है, वो करीब सालभर से बनी हुई है. वहां तनाव है. इसे लेकर राज्य के मुख्यमंत्री वीरेन सिंह पर सीधे आरोप लगे कि इस जातीय समस्या में एक वर्ग का साथ दे रहे हैं. वहां हो रही व्यापक हिंसा के बाद भी केंद्र को जो कार्रवाई करनी चाहिए, वो उन्होंने नहीं की, इसी वजह से मणिपुर लगातार आग में जल रहा है.

भागवत ने भाषण में कहा कि दस साल पहले मणिपुर अशांत था. फिर पिछले दस सालों तक शांत रहा. वहां का पुराना बंदूक कल्चर खत्म हो चुका था लेकिन फिर वो हिंसा की राह पर चल पड़ा. वो कहते हैं, अचानक जो कलह उपजा या उपजाया गाय, उस पर कौन ध्यान देगा. इस पर प्राथमिकता से विचार करना होगा.

ये कहकर भागवत साफतौर पर केंद्र की यूपीए सरकार और मणिपुर की पिछली राज्य सरकारों को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं. अगर वो कहते हैं कि दस सालों तक ये राज्य शांत रहा तो वो उसका श्रेय मौजूदा केंद्र और राज्य की सरकार को ही देते लग रहे हैं.  ये समझा जाना चाहिए कि संघ भी मानता है कि बाहरी तत्वों के जरिए मणिपुर में हिंसा का ये खेल खेला गया.  हालांकि वो चाहते हैं कि अब मणिपुर को प्राथमिकता में रखकर इससे निपटा जाए. हो सकता है कि भविष्य में आपको वहां संघ अपनी गतिविधियां बढ़ाते हुए व्यापक तौर पर काम करता नजर आए. अभी नार्थईस्ट में संघ काफी काम कर रहा है लेकिन उसकी वो मौजूदगी मणिपुर में नहीं है. राज्य में पिछले कुछ सालों में ईसाई मिशनरियों का प्रसार और असर भी बढ़ा है.

मैतेई मणिपुर का सबसे बड़ा समुदाय है. मैतेई का राजधानी इंफाल में प्रभुत्व है और इन्हें आमतौर पर मणिपुरी कहा जाता है. 2011 की जनगणना के अनुसार मैतेई राज्य की आबादी का 64.6 प्रतिशत हैं. हालांकि इसके बावजूद मणिपुर की भूमि के लगभग 10 प्रतिशत हिस्से पर ही उनका कब्जा है. कुकी आमतौर ईसाई हैं और उन्हें मैतेई बाहरी मानता है.

चुनाव के बाद सहमति बने

भागवत ने अपने भाषण में संसद से लेकर सियासी जगत में सत्ता पक्ष और विपक्ष में सहमति बनाने की बात अगर कर रहे हैं तो ये नसीहत तो मोदी सरकार को ज्यादा लगती है, जिन्होंने पिछले दस सालों में प्रचंड बहुमत के बाद विपक्ष के स्वर को अनसुना किया है, ये आरोप भी उन पर लगते रहे हैं.

लोकतंत्र में सत्ता पक्ष से सवाल करना जायज और स्वस्थ

लोकतंत्र की निशानी मानी जाती है. भागवत अगर ऐसा चाह रहे हैं तो कहना चाहिए कि मौजूदा हालात में उसे लगता है कि मोदी और उनके नेताओं को संसद और बाहर टकराव से बचते हुए काम करना चाहिए. हालांकि ये बात भी दीगर है कि वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद से पहली बार मोदी सरकार अल्पमत में है, लिहाजा विपक्ष के साथ टकराव के साथ चलना उनकी राह में दिक्कतें ज्यादा लाएगा.

विपक्ष को विरोधी नहीं प्रतिपक्ष कहें

पिछले दस सालों में देश के सियासी माहौल में कटुता बढ़ी है. सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच दूरी बढ़ी है. संघ प्रमुख भागवत ने भाषण में कहा कि विरोधी पार्टियों को विपक्ष की बजाए प्रतिपक्ष कहना चाहिए. प्रतिपक्ष का अर्थ होता है अपना ही दूसरा पक्ष. हमारी प्राचीन संस्कृति में सत्ता पक्ष से सवाल पूछने वाले दूसरे पक्ष को प्रतिपक्ष ही कहे जाने की परिपाटी थी. अपोजिशन अंग्रेजी का शब्द है, जिसका अर्थ विरोधी या विपक्ष होता है. अब तक हमारे संसदीय लोकतंत्र में सत्ता पक्ष के अलावा दूसरे पक्ष को विपक्ष ही कहते हैं लेकिन ये देखना चाहिए कि लोकतंत्र में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच पहले एक गरिमापूर्ण आचरण रहता आया था. जो पिछले कुछ दशकों में खत्म हुआ है. बेशक भागवत ये कहकर अगर सत्ता पक्ष को सहमति बनाने की नसीहत दे रहे हैं तो ऐसा नहीं कि विपक्ष को क्लीनचिट दे रहे हैं बल्कि उनसे भी विरोधी की बजाए एक अच्छे विपक्षी की तरह व्यवहार की अपेक्षा कर रहे हैं. हालांकि इस तरह की भावना हमारे देश के सियासी माहौल में आ पाएगी, ये बड़ा सवाल है.

तो कुल मिलाकर ये जरूर लग सकता है कि भागवत के निशाने पर मोदी और बीजेपी है लेकिन वास्तव ऐसा लगता नहीं. बल्कि वह अगर सत्ता पक्ष को कुछ संभलने की ताकीद कर रहे हैं तो विपक्ष को भी बेहतर होने की सलाह दे रहे हैं.