बिना अनुभव के गठबंधन सरकार चलना नरेन्द्र मोदी के लिए होगा कितना मुश्किल, नीतीश और नायडू बन सकते हैं बड़ी चुनौती
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दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नतीजे मंगलवार को सामने आ गए। हालांकि ये नतीजे चौंकाने वाले रहे। पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने 2014 और 2019 दोनों में आसानी से बहुमत हासिल कर लिया था। लेकिन, एक दशक में पहली बार है, जब बीजेपी ने बहुमत का आंकड़ा पार नहीं कर पाई है। हालांकि, एनडीए 292 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब हो गई। वहीं, आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू और बिहार में नीतीश कुमार ने अपने-अपने राज्यों में शानदार जीत हासिल की। इसके बाद दोनों किंगमेकर बनकर उभरे हैं। अब बीजेपी 10 साल बाद अपने सहयोगियों, खासकर टीडीपी और जेडी(यू) पर निर्भर होगी। केन्द्र में भाजपा नीत एनडीए की सरकार के लिए दो सहयोगी दलों की सबसे बड़ी भूमिका होगी। इनमें एक हैं भाजपा के पुराने साथी हैं बिहार के सीएम नीतीश कुनार के नेतृत्व वाली जेडीयू और दूसरी है आंध्र प्रदेश में सरकार बनाने जा रही टीडीपी।इनकी सहमति और सहयोग के बिना भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की सरकार की कल्पना ही संभव नहीं है। फिलहाल दोनों ओर से किसी तरह के तिकड़म की सुगबुहाट तो नहीं दिखती, लेकिन नरेन्द्र मोदी के प्रति अतीत में दोनों की जैसी मंशा रही है, उसके बीज अब भी उनमें कहीं दबे-छिपे हैं तो किसी भी वक्त वह प्रस्फुटित हो सकते हैं। भाजपा के नेतृत्व में सरकार बन जाएगी, इसमें शक नहीं है। पर, सरकार कितने दबाव में चलेगी, यह सभी को पता है। नरेंद्र मोदी के दिल्ली आने के बाद नीतीश कुमार और नायडू के संबंध बीजेपी से बहुत कड़वाहट भरे भी रहे हैं। नायडू और नीतीश 2014 में नरेंद्र मोदी के पहली बार प्रधानमंत्री बनने पर बीजेपी के विरोधी खेमे में रह चुके हैं और इस लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एनडीए में वापसी की है। *नरेन्द्र मोदी और चंद्रबाबू नायडू में कैसे रहे संबंध?* साल 2002 में गुजरात में हुए दंगे के बाद चंद्रबाबू नायडू एनडीए के पहले ऐसे नेता थे, जिन्होंने बतौर मुख्यामंत्री नरेंद्र मोदी के इस्तीफ़े की मांग की थी। अप्रैल 2002 में टीडीपी ने मोदी के ख़िलाफ़ हिंसा को रोकने और सांप्रदायिक दंगों के पीड़ितों को राहत देने में में बुरी तरह फेल होने को लेकर एक प्रस्ताव भी पारित किया था। यही नहीं, साल 2018 में चंद्रबाबू नायडू ने आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर एनडीए का साथ छोड़ दिया था और केंद्र में अपने दो मंत्रियों को भी हटा दिया। नायडू उस समय मोदी सरकार के ख़िलाफ़ सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाए थे। ये अविश्वास प्रस्ताव तो पास नहीं हो पाया लेकिन अपने 16 सांसदों के साथ एनडीए से निकल गए थे। साल 2019 में गठबंधन से निकलने के बाद चंद्रबाबू नायडू ने एक ट्वीट कर कहा था, "मोदी ने योजनाबद्ध तरीक़े से भारत के प्रतिष्ठित संस्थानों को नष्ट कर दिया है। बीजेपी सरकार के शासन में संस्थागत स्वायत्तता और लोकतंत्र पर हमला हुआ है। अब, जब से आंध्र में टीडीपी की 16 सीटें आई हैं और अब जब नायडू किंगमेकर की भूमिका में दिख रह हैं तो सोशल मीडिया पर नरेंद्र मोदी का साल 2019 में आंध्र प्रदेश में दिया गया भाषण ख़ूब शेयर किया जा रहा है। इस भाषण में नरेंद्र मोदी ने चंद्रबाबू नायडू को “अपने ससुर के पीठ में छूरा भोंकने वाला बताया था।” उन्होंने राज्य में एक चुनावी रैली में कहा था, “वो (चंद्रबाबू नायडू) ख़ुद को मुझसे सीनियर मानते हैं, अच्छी बात है आप सीनियर हैं. लेकिन आप सीनियर हैं, पार्टी बदलने में, अपने ससुर की पीठ में छूरा भोंकने में और आप सीनियर हैं एक के बाद एक चुनाव हारने में...उसमें तो मैं सीनियर नहीं हूँ। *नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के रिश्ते जगजाहिर* नरेंद्र मोदी से नीतीश कुमार के बीच के रिश्ते जगजाहिर है। दोनों के एक साथ एक मंठ पर दिख जाना सिवाय राजनैतिक मजबूरी के और कुछ नहीं है।भाजपा ने 2013 में जब नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने की घोषणा की तो नीतीश कुमार ने भाजपा से रिश्ते तोड़ लिए थे। हालांकि 2017 में वे भाजपा के साथ आ गए, लेकिन नरेंद्र मोदी के प्रति उनके मन की नफरत नहीं गई। यही वजह रही कि 2022 में नीतीश ने आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन से हाथ मिला लिया और नरेंद्र मोदी को सत्ता से बेदखल करने के लिए चंद्रबाबू नायडू की तरह विपक्षी एकता का अभियान शुरू कर दिया। भाजपा के खिलाफ आज जो इंडी अलायंस वजूद में हैं, उसकी बुनियाद रखने का श्रेय नीतीश कुमार को ही जाता है। हालांकि अपनी मजबूरियों के कारण नीतीश फिर पलट गए और भाजपा से हाथ मिला कर बिहार में सीएम की अपनी कुर्सी सुरक्षित कर ली। नरेन्द्र मोदी के साथ कड़वाहट भरे रिश्ते रिश्ते रख चुके दो दिग्गज आज तीसरी बार बीजेपी के नेतृत्व में सरकार बनाने को राजी तो हो रहे हैं। ऐसे में चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार को अपने साथ लेकर चलना नरेन्द्र मोदी के सामने सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी और चुनौती होगी।खासकर तब जब नरेंद्र मोदी के पास गठबंधन सरकार चलाने का अनुभव नहीं है। गुजरात में जब वह मुख्यमंत्री थे, तब भी प्रचंड बहुमत वाली सरकार थी। हक़ीक़त यह है कि बीजेपी की कमान मोदी के पास आने के बाद से एनडीए का कुनबा छोटा होता गया। अकाली दल और शिव सेना बीजेपी के दशकों पुराने सहयोगी रहे थे लेकिन दोनों कब का अलग हो चुके हैं। इस बार जब नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे तो उन्हें सरकार चलाने के लिए सबको साथ लेकर चलना होगा। जो किसी चुनौती से कम नहीं है।
Jun 05 2024, 17:45