अमिट स्याही बनाने का फॉर्मूला, वोटिंग के दौरान उंगली पर लगने वाली नीली यहां जाने इतिहास, ये क्यों नहीं मिटती?
रांची : 2024 लोकसभा चुनाव अपने अंतिम चरण में है। जहा छठे चरण का चुनाव कल 25 में को समाप्त हो गया वहीं सातवें और अंतिम चरण का चुनाव 1 जून को होना है। वोटिंग के बाद बाएं हाथ की तर्जनी उंगली पर नीली स्याही से एक निशान बनाया जाता है, जो लोकतंत्र के पर्व में शामिल होने का भी निशान माना जाता है। इसका प्रभाव नजर आ रहा है इंटरनेट मीडिया पर, जहां पहली बार मतदान करने वाले युवाओं से लेकर पुराने मतदाता तक कैमरे के आगे अपनी अंगुली में लगी स्याही को दिखाकर मताधिकार के प्रयोग का प्रदर्शन कर रहे हैं।
मतदान करने की इस पहचान का अपना ही एक किस्सा है। आज हम उंगली पर लगने वाले कि सियाही का रहस्य जानेंगे।पानी आधारित स्याही सिल्वर नाइट्रेट, कई तरह के डाई (रंगों) और कुछ सॉल्वैंट्स का एक कॉम्बिनेशन है। इसे लोग इलेक्शन इंक या इंडेलिबल इंक के नाम से जानते हैं। एक बार 40 सेकंड के अंदर उंगली के नाखून और त्वचा पर लागू होने पर यह करीब-करीब अमिट छाप छोड़ती है। यह चुनावी स्याही इतनी गहरी होती है कि किसी चीज से साफ नहीं होती और त्वचा की मृत कोशिकाओं के साथ ही निकलती है।
लोकतंत्र की अमिट स्याही का इतिहास दशकों पुराना और मैसूर राजवंश से जुड़ा है। जो कभी स्वयं शासक थे, आज उन्हीं की विरासत के निशान हर मतदाता की अंगुली पर मिलते हैं। गौरतलब है कि आजादी के बाद वर्ष 1952 में नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी में इस अमिट स्याही का आविष्कार किया गया था। परंतु यह एक रहस्य रहा है। इलेक्शन इंक पर कभी कोई पेटेंट नहीं लिया गया, ताकि इस पर अत्यधिक गोपनीयता बनी रहे। 1962 के बाद से यह रहस्य कभी सामने नहीं आया।
1962 में देश में तीसरे आम चुनाव हुए। उसके बाद से सभी संसदीय चुनावों में वोट करने वाले वोटर्स को चिह्नित करने के लिए अमिट स्याही का इस्तेमाल किया गया। मतदान के दोहराव, झूठे-फर्जी मतदान को रोकने में काम आने वाली यह स्याही दशकों से भारत के नागरिकों के सुरक्षित मतदान अधिकार की प्रतीक है। 10 मिलीग्राम की एक शीशी का उपयोग 700 मतदाताओं के लिए किया जा सकता है। अमिट स्याही का उपयोग 30 देशों में निर्वाचन प्रक्रिया में होता है।
May 27 2024, 10:45