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सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा बहाल करने वाली एक्ट को केंद्र सरकार द्वारा अस्वीकार करने पर उठाया सवाल


नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) का अल्पसंख्यक दर्जा बहाल करने के लिए एएमयू एक्ट में 1981 में किए गए संशोधन को केंद्र सरकार द्वारा अस्वीकार करने पर सवाल उठाया। 

सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि कानूनी संशोधन को सरकार कैसे अस्वीकार कर सकती है। सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ की अगुवाई कर रहे प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सरकार यह कैसे कह सकती है कि वह संशोधन की वैधता को स्वीकार नहीं करती।

चीफ जस्टिस ने कहा कि वह ये नहीं सुन सकते कि संसद ने जो संशोधन किये हैं उसे भारत सरकार स्वीकार नहीं करती। सरकार को संशोधन स्वीकार करना होगा। उसके पक्ष में खड़ा होना होगा। सरकार के पास विकल्प है वह चाहे तो संशोधन को बदल दें। लेकिन विधि अधिकारी ये नहीं कह सकते कि वह संसद के द्वारा किये गए संशोधन को स्वीकार नहीं करते। कोर्ट ने कहा नि:संदेह संसद सर्वोच्च है उसकी विधाई शक्ति सर्वोच्च है। वह जब चाहे कानून संशोधित कर सकती है।

'संशोधनों को करना चाहिए स्वीकार '

हालांकि कोर्ट द्वारा केंद्र के स्टैंड पर सवाल उठाए जाने पर केंद्र सरकार की पैरोकारी कर रहे सालिसिटर जनरल तुषार मेहता लगातार कहते रहे कि वह यहां सात सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष संवैधानिक सवाल का जवाब दे रहे हैं। मेहता ने कहा कि सरकार इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के साथ हैं उसे सही मानती है, जिसमें हाई कोर्ट ने 1981 के एएमयू एक्ट में किए गए संशोधन को रद कर दिया था। मेहता ने कहा कि एक विधि अधिकारी होने के नाते उन्हें जो दृष्टिकोण सही प्रतीत होता है वह कहना उनका अधिकार है। उन्होंने कोर्ट के समक्ष आपातकाल के दौरान किये गए कानूनी संशोधनों का हवाला भी दिया और कहा कि क्या विधि अधिकारी होने के चलते उन्हें उन संशोधनों को स्वीकार करना चाहिए।

'संविधान में हुआ था 44वां संशोधन'

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने उनकी दलीलें काटते हुए कहा इसीलिए संविधान में 44वां संशोधन हुआ था और जो आपातकाल के दौरान हुआ था उसे सुधारा गया था। मेहता ने कहा कि वह भी यही कह रहे हैं कि कोर्ट इस गलती को ठीक करे। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आप हमारी ही बात सिद्ध कर रहे हैं कि गलती सुधारने की शक्ति निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की संस्था के पास है। कोई हमेशा यह नहीं कह सकता कि आपातकाल में हमने जो किया था वह गलत था और वह हमेशा उसे सुधार सकते हैं।

'कपिल सिब्बल ने बीच में किया हस्तक्षेप'

इस दौरान एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे की मांग कर रहे ओल्ड ब्वायज एसोसिएशन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि उन्हें याद है आपातकाल के दौरान वे तत्कालीन अटार्नी जनरल के साथ कोर्ट में थे और उस वक्त अटार्नी जनरल ने आपातकाल के समय किये गए संशोधनों का कोर्ट में बचाव किया था। सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ आजकल एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुनवाई कर रही है।

कानून में किये गए संशोधनों का दिया गया हवाला

बुधवार को केंद्र सरकार की ओर से सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान न साबित करने के लिए 1920 के एएमयू एक्ट और समय समय पर उस कानून में किये गए संशोधनों का हवाला दिया। कहा 1951, 1965 और 1981 में हुए विभिन्न संशोधन हुए थे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पांच सदस्यीय पीठ के अजीज बाशा फैसले में एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान न मानने की दी गई व्यवस्था के बाद एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा बहाल करने वाले 1981 में हुए कानून संशोधन का हवाला देते हुए कहा कि ऐसा संशोधन उन्होंने पहली बार देखा है जिसमें कानून की प्रस्तावना में संशोधन करके ऐतिहासिक तथ्य को ही बदल दिया गया है।

'60 साल बाद बदल दिये गए ऐतिहासिक तथ्य' 

60 साल बाद ऐतिहासिक तथ्य बदल दिये गए। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि इसे दूसरे ढंग से भी देखा जा सकता है कि कानून की प्रस्तावना में संशोधन करके उसे ऐतिहासिक तथ्यों के अनुकूल किया गया है। तभी पीठ के दूसरे न्यायाधीश संजीव खन्ना ने मेहता से सवाल किया कि 1981 का कानून संशोधन संसद ने किया था, आप उसे स्वीकार करते हैं कि नहीं। मेहता ने जैसे ही नहीं, में जवाब दिया जस्टिस चंद्रचूड़ ने आपत्ति उठाते हुए उनसे सवालों की झड़ी लगा दी और कहा कि आप संसद के द्वारा किये गए संशोधन को कैसे अस्वीकर कर सकते हैं।

'अगले मंगलवार को फिर होगी बहस'

मामले में अगले मंगलवार को फिर बहस होगी। बुधवार को केंद्र सरकार ने कोर्ट द्वारा कल पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए बताया कि 1920 से 1950 से एएमयू और बीएचयू दोनों को एक - एक लाख रुपये सालाना सरकारी मदद मिलती थी कभी कभी दो लाख भी मिलती थी। यह भी बताया कि इस समय एएमयू को 1500 करोड़ की सालाना मदद मिलती है जबकि 30-40 करोड़ एएमयू अपनी तरफ से फीस आदि से जुटाता है। कोर्ट ने अभी यह तय नहीं किया है कि वह 1981 के कानून की वैधानिकता पर विचार करके फैसला देगा कि नहीं आज कोर्ट ने इस संबंध में पक्षकारों से विचार की चर्चा करते हुए इस संबंध में संकेत जरूर दिये।

बजट 2024: आगामी वित्त वर्ष 2024-25 में सामाजिक सरोकार पर सरकार करेगी अधिक खर्च, पीएम आवास और आयुष्मान भारत पर रहेगा फोकस

नई दिल्ली। आगामी वित्त वर्ष 2024-25 में सामाजिक सरोकार पर सरकार अधिक खर्च करने जा रही है। आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री आवास योजना, पेयजल जैसी अन्य सामाजिक सेवाओं से जुड़े मदों में सरकार चालू वित्त वर्ष की तुलना में पांच प्रतिशत अधिक राशि का आवंटन कर सकती है। चालू वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में सरकार ने सामाजिक सेवाओं से जुड़े मदों में 22.4 लाख करोड़ रुपए का आवंटन किया था।

6.6 लाख करोड़ का आवंटन

वित्त वर्ष 2013-14 में सामाजिक सेवाओं से जुड़े मदों में सिर्फ 6.6 लाख करोड़ का आवंटन किया गया था। इस हिसाब से वित्त वर्ष 2013-14 से लेकर चालू वित्त वर्ष में सामाजिक सरोकार से जुड़े मदों में सालाना 14.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी रही। आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक, आयुष्मान भारत मिशन के साथ स्वच्छता अभियान, पीएम आवास, पेयजल सुविधा जैसी स्कीम पर फोकस से व्यक्तिगत रूप से स्वास्थ्य पर होने वाले जेब से बाहर (आउट ऑफ पाकेट) खर्च में वित्त वर्ष 2014 से वित्त वर्ष 2019 के दौरान 16 प्रतिशत की कमी आई है।

40 प्रतिशत से अधिक लोगों के पास अपना घर नहीं

स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च के लिए कर्ज में कमी से लोगों की आय बढ़ी है और इससे ग्रामीण खपत में बढ़ोतरी हुई।सूत्रों के मुताबिक, आयुष्मान भारत में अभी पांच लाख रुपए तक के हेल्थ इंश्योरेंस का कवर दिया जाता है जिसे बढ़ाकर 7.5 लाख रुपए तक किया जा सकता है। सभी को आवास मुहैया कराने पर सरकार का विशेष जोर रह सकता है। नीति आयोग के मुताबिक, अब भी 40 प्रतिशत से अधिक लोगों के पास अपना घर नहीं है।

जीडीपी को बढ़ाने में मिलेगी मदद

आर्थिक जानकारों के मुताबिक, सामाजिक सरोकार जैसे मदों में खर्च की बढ़ोतरी से लोगों के जीवन स्तर को ऊपर ले जाने में मदद मिलती है जिससे लोगों की उत्पादकता बढ़ती है और देश के जीडीपी को बढ़ाने में मदद मिलती है। इसलिए सरकार का फोकस इस दिशा में है।

मनरेगा के मद में भी बढ़ोतरी संभव

चालू वित्त वर्ष के बजट के आरंभ में मनरेगा के मद में सिर्फ 60,000 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था जिसे पूरक अनुमोदन में बढ़ाकर 74,500 करोड़ कर दिया गया। लेकिन मनरेगा के मद में होने वाले खर्च को देखते हुए चालू वित्त वर्ष के आखिर तक इस मद में 98,000 करोड़ तक खर्च होने का अनुमान है। आगामी वित्त वर्ष के लिए सरकार इस खर्च को देखते हुए ही मनरेगा के मद में आवंटन करेगी।

अयोध्या के नए राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के लिए केंद्र सरकार की कैबिनेट ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का किया अभिनंदन,

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की ओर से कैबिनेट के सामने पेश प्रस्ताव में इसे भारत की आत्मा की प्राण प्रतिष्ठा बताया गया।

नई दिल्ली। अयोध्या के नए राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के लिए कैबिनेट ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अभिनंदन किया। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की ओर से कैबिनेट के सामने पेश प्रस्ताव में इसे भारत की आत्मा की प्राण प्रतिष्ठा बताया गया। कठिन अनुष्ठान के साथ प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के सफल आयोजन को ऐतिहासिक बताते हुए प्रधानमंत्री मोदी को युग प्रवर्तक बताया गया।

प्राण प्रतिष्ठा के साथ नए युग की शुरुआतः अनुराग ठाकुर

कैबिनेट में पारित प्रस्ताव की जानकारी देते हुए सूचना व प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि जनता के बीच लोकप्रियता को देखते हुए प्रधानमंत्री जननायक तो पहले से हैं, लेकिन प्राण प्रतिष्ठा के साथ नए युग की शुरुआत के बाद नवयुग प्रवर्तक के रूप में सामने आए हैं।कैबिनेट में बैठे मंत्रियों ने प्राण प्रतिष्ठा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन का उल्लेख करते हुए कहा कि हजार सालों तक बरकरार रहने वाले मंदिर निर्माण और इससे हजार सालों तक देश को दिशा मिलने का काम होने के बाद हुई हुई कैबिनेट की पहली बैठक को भी सहस्त्राब्दी की कैबिनेट (कैबिनेट ऑफ मिलेनियम) कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

कैबिनेट ने पीएम मोदी का आभार व्यक्त किया

कैबिनेट के सदस्यों ने कहा कि हम सिर्फ मंत्री के रूप में नहीं, बल्कि भारत के एक सामान्य नागरिक रूप में आभार व्यक्त करते हैं। अनुराग ठाकुर के अनुसार प्रस्ताव में कहा गया है कि प्राण प्रतिष्ठा के दौरान उमड़ा जनसैलाब और उनके भावनाओं का उभार अद्वितीय था। आपातकाल के खिलाफ आंदोलन के दौरान आम लोगों के बीच एकता जरूर देखी गई थी, लेकिन वह एकता सिर्फ एक तानाशाह के खिलाफ और प्रतिरोधी आंदोलन की थी। भगवान राम के लिए उभरा जन सैलाव एक नए युग के प्रवर्तन का संकेत है।

प्रस्ताव में राम जन्मभूमि आंदोलन की चर्चा

प्रस्ताव के अनुसार राम जन्मभूमि आंदोलन स्वतंत्र भारत का एकमात्र आंदोलन था, जिसमें पूरे देश के लोग एकजुट हुए थे और करोड़ों भारतीयों की भावनाएं जुड़ी हुई थी। प्राण प्रतिष्ठा के दिन भावनाओं का ज्वार भी इसी से जुड़ा है। राम को भारत की नियति बताने वाले प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन का उल्लेख करते हुए प्रस्ताव में कहा गया कि इस नियति का वास्तव में मिलन 22 जनवरी को हुआ है।इसके बाद हुई पहली बैठक में शामिल होने पर मंत्रियों ने खुद को सौभाग्यशाली बताया और कहा कि ऐसा सौभाग्य कई जन्मों में एक बार मिलता है। प्रस्ताव में कहा गया कि स्वतंत्र भारत में होने वाली कैबिनेट की बैठकों में ही नहीं, बल्कि अंग्रेजी शासन काल में वायसराय की एक्जीक्यूटिव कौंसिल की बैठकों में भी ऐसा अवसर नहीं आया होगा।

टाटा समूह ने यू.के. के वेल्स स्थित पोर्ट टैलबोट स्टील प्लांट को की बंद करने की घोषणा, कामगारों में हड़कंप, 3000 लोग होंगे बेरोजगार


नई दिल्ली। बड़ी खबर आ रही है, टाटा समूह ने यू.के. के वेल्स में स्थित पोर्ट टैलबोट स्टील प्लांट बंद करने की घोषणा कर दी। अब टाटा समूह की घोषणा के बाद यू.के. की स्टील इंडस्ट्री में हड़कंप मच गया है।

 टाटा की घोषणा से एक तरफ जहां इस स्टील यूनिट में काम करने वाले 3000 वर्करों की जॉब पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ यू.के. के सामने स्टील का बड़ा संकट खड़े होने का भी खतरा है।

बता दें कि, पोर्ट टैलबोट में स्थित टाटा के यह प्लांट ब्लास्ट फर्नैस प्लाट है, जिसमें कोयले की मदद से कच्चे माल को पिघला कर स्टील का निर्माण किया जाता है और यदि टाटा अपना यह प्लांट बंद कर देता है, तो जी-20 देशों में सिर्फ यू.के. एक ऐसा देश होगा, जहां कच्चे माल से स्टील का निर्माण नहीं हो सकेगा।

टाटा यू.के. में स्टील के निर्माण के लिए पर्यावरण के लिहाज से सुरक्षित विकल्पों पर विचार कर रहा है। इस प्रक्रिया में बहुत कम वर्करों की जरूरत पड़ती है। इस मामले में टाटा के अधिकारियों और ट्रेड यूनियन के कर्मचारियों के बीच लंदन में एक मीटिंग भी हुई है।

हालांकि टाटा ने इस प्लांट को बंद करने की आधिकारिक घोषणा अभी नहीं की है, लेकिन अपने फैसले के बारे में प्रशासन को अवगत करवा दिया गया है।

बताते चलें कि, टाटा के यू.के. स्थित इस प्लांट आप्रेशन्स के जरिए कंपनी को वित्त वर्ष 2023-24 की जुलाई सितंबर तिमाही में 6511 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। कंपनी द्वारा एक्सचेंज को दी गई जानकारी में यह बताया गया है कि इस घाटे में 6358 करोड़ रुपए की बड़ी हिस्सेदारी इंपेयरमैंट चार्जिज की है।

यह चार्ज इस प्रोजैक्ट की डी कार्बोनाइजेशन के लिए लगाए गए हैं। कंपनी ने इलैक्ट्रिक आर्क इंडैक्शन पर आधारित प्रोजैक्ट का विश्लेषण किया है। कंपनी का कहना है कि नई टैक्नोलोजी के जरिए स्टील के निर्माण में खर्चा भी कम होगा और प्रदूषण से भी बचा जा सकेगा।

इस बीच लेबर पार्टी एम.पी. स्टीफन किनोक ने टाटा से अपील की है कि वह अपने फैसले के बारे में पुनर्विचार करे और ट्रेड यूनियनों से इस मामले में दोबारा बातचीत करे। उन्होंने कहा कि टाटा स्टील को सरकार ने इन 3000 नौकरियों के गठन के लिए ही 500 मिलियन पौंड की सहायता की थी और टाटा का इस तरीके से प्लांट बंद करने का फैसला ठीक नहीं है।

इस बीच वेल्स के फर्स्ट मिनिस्टर मार्क ड्रैकफर्ड ने इस मामले में तुरन्त ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सूनक को दखल देने की मांग की है और साथ ही उनसे मीटिंग के लिए समय भी मांगा है।

उन्होंने कहा कि वेल्स में इस तरीके स्टील प्लांट का बंद होना यू.के. की अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करेगा। मैंने इस मामले में जल्दी से जल्दी प्रधानमंत्री ऋषि सूनक से चर्चा के लिए समय मांगा है।

नीति आयोग द्वारा दिये गए रिपोर्ट, कि 9 साल में 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया को कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने किया खारिज, कहा यह झूठ

नई दिल्ली। कांग्रेस के संचार प्रभारी महासचिव जयराम रमेश ने बुधवार को देश में बहुआयामी गरीबी को लेकर नीति आयोग की रिपोर्ट के बाद केंद्र सरकार पर तंज कसा है। उन्होंने इसे गलत बताया।

एक समाचार एजेंसी से बात करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने नीति आयोग की उस रिपोर्ट को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया है कि पिछले नौ सालों में लगभग 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया है।

नीति आयोग की रिपोर्ट फर्जी है- कांग्रेस

उन्होंने कहा, "नीति आयोग की रिपोर्ट फर्जी है। यह रिपोर्ट झूठ है। नीति आयोग कोई स्वतंत्र संस्था नहीं है। नीति आयोग प्रधानमंत्री के लिए चीयरलीडर और ढोल बजाने वाला है। नीति आयोग द्वारा दिए गए आंकड़ों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। सभी विशेषज्ञों ने इसकी आलोचना की है।"

आयोग की रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगी

कांग्रेस सांसद ने आगे कहा कि आयोग की रिपोर्ट को लेकर पार्टी प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगी। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले नौ सालों में भारत में कम से कम 24.82 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं।

क्या कहती है नीति आयोग की रिपोर्ट

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में बहुआयामी गरीबी में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है, जो 2013-14 में 29.17 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 11.28 प्रतिशत हो गई है। इसमें 17.89 फीसदी अंक की कमी आई है।

यूपी में नौ सालों में 5.94 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले

उत्तर प्रदेश में पिछले नौ सालों के दौरान 5.94 करोड़ लोगों के गरीबी से बाहर निकलने के साथ ही गरीबों की संख्या में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। इसके बाद बिहार में 3.77 करोड़, मध्य प्रदेश में 2.30 करोड़ और राजस्थान में 1.87 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं।

कांग्रेस के 65 सालों के गरीबी हटाओ नारे खोखले- चंद्रशेखर

वहीं, केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कांग्रेस पर हमला करते हुए एक कार्यक्रम में कहा, "कांग्रेस के 65 सालों के गरीबी हटाओ के खोखले नारों के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने केंद्रित, मेहनती, दृढ़, भ्रष्टाचार मुक्त शासन और 'गरीब कल्याण' नीतियों के जरिए 25 करोड़ भारतीयों को गरीबी से बाहर निकाला है।

23 और 24 जनवरी को तमिलनाडु के महाबलीपुरम में होने वाली राज्यों के सचिवों के सम्मेलन में जल प्रबंधन पर होगी चर्चा

नई दिल्ली। क्या राज्यों के स्तर पर ऐसी एकल नियामक संस्था की जरूरत है जो भूजल के साथ-साथ नदियों-तालाबों की निगरानी और पानी की कीमत जैसे विषयों पर निर्णय करने में सक्षम हो।

 बर्बाद हो जाने वाले पानी के फिर से इस्तेमाल को कैसे बढ़ावा दिया जाए, पानी का बजट निर्धारण और प्रबंधन कैसे बेहतर हो... ऐसे तमाम सवालों पर केंद्र और राज्यों के बीच अगले सप्ताह अहम बातचीत होने वाली है। 

23 और 24 जनवरी को तमिलनाडु के महाबलीपुरम में जलशक्ति मंत्रालय का राष्ट्रीय वाटर मिशन राज्यों के सचिवों का एक सम्मेलन आयोजित करने जा रहा है, जिसमें 21 सिफारिशों पर विचार होगा। इस सम्मेलन में चर्चा के लिए जो मसला सबसे अहम है वह है जल प्रशासन और पानी की गुणवत्ता।

वाटर गर्वेनेंस को लेकर प्रजेंटेशन प्रस्तावित

2047 के दीर्घकालिक लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने पानी के उपयोग की दक्षता बढ़ाने को अपनी प्राथमिकता बनाया है। इसके लिए जल प्रशासन सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि पानी को लेकर जो तमाम सुधार आगे बढ़ाए जा रहे हैं, उनके लिए मौजूदा ढांचे से बात बनने वाली नहीं है। इस सम्मेलन में वाटर गर्वेनेंस को लेकर एक प्रजेंटेशन भी प्रस्तावित है। पानी के लिए बजटिंग और मैनेजमेंट (आपूर्ति और मांग, दोनों स्थितियों में) ऐसा विषय है जिस पर राज्यों को एक राय पर लाना आसान नहीं है।

पानी के उपयोग को लेकर सिफारिश

केंद्र सरकार के सूत्रों के अनुसार, हाल ही में ब्यूरो आफ वाटर यूज इफिशिएंसी की जो रिपोर्ट आई, उसकी कई सिफारिशों से राज्यों ने असहमति जताई है। इसके चलते रिपोर्ट पर बने एक्शन प्लान में केवल उन्हीं विषयों को शामिल किया गया है जिन पर राज्यों को कोई आपत्ति नहीं है। असहमति के बिंदुओं में कृषि के लिए पानी के उपयोग को लेकर सिफारिश भी है। पानी की सबसे अधिक खपत कृषि और उद्योगों में होती है, लेकिन ज्यादा बातें घरेलू उपयोग को सीमित करने पर केंद्रित होती हैं। कृषि में पानी का इस्तेमाल एक राजनीतिक मुद्दा है, जिस पर आम सहमति कायम करना आसान नहीं है।

जल स्त्रोतों के बेहतर आकलन में मिलेगी मदद

केंद्र सरकार के अधिकारियों का मानना है कि पानी का शुल्क वसूलना अहम मसला है, लेकिन यह अच्छी बात है कि इसे लेकर समझबूझ बढ़ रही है और राज्य भी अपनी जिम्मेदारी समझ रहे हैं। महाबलीपुरम में इस पर विस्तृत चर्चा होगी। इसी से संबंधित विषय जियो सेंसिंग, जियो मैपिंग और रिमोट सेंसिंग का इस्तेमाल है। इससे जल स्त्रोतों के बेहतर आकलन और नियोजन में मदद मिलेगी। चर्चा के अन्य बिंदुओं में जलाशयों और नदियों तथा अन्य स्त्रोतों की सफाई भी शामिल है। पिछली बैठक में इसको लेकर काम तेज करने की सिफारिश की गई थी।

प्रगति की समीक्षा

सम्मेलन में अब तक हुई प्रगति की समीक्षा की जाएगी। ब्यूरो की एक अन्य अहम सिफारिश यह भी थी कि किसी अन्य इस्तेमाल के मुकाबले स्टोर किए जा सके पेयजल को सबसे अधिक प्राथमिकता मिलनी चाहिए। खासकर उन क्षेत्रों की पहचान की जानी चाहिए जो पेयजल के लिहाज से बेहद खराब स्थिति में हैं। इन्हें वाटर ग्रिट से जोड़ने की जरूरत है।

जल जीवन मिशन इस साल दिसम्बर तक पूरा होने का आसार,साल के अंत तक तीन करोड़ नए कनेक्शन दिए जाएंगे,

 इस मिशन के तहत अब तक केंद्र सरकार ने पिछले बजट में 70 हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था की थी, जिसमें जनवरी मध्य तक लगभग 55 हज़ार करोड़ राज्यों को उपलब्ध कराया जा चुका है।

नई दिल्ली। प्रति सेकेंड एक कनेक्शन की मौजूदा रफ्तार के साथ इस साल दिसंबर तक जल जीवन मिशन लगभग पूरा होने के आसार हैं। पूरी ग्रामीण आबादी को टैप से पीने योग्य जल उपलब्ध कराने की केंद्र सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना आगामी अंतरिम बजट में भी सरकार की प्राथमिकता में बनी रहेगी।

जलशक्ति मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार, इस साल दिसंबर तक तीन करोड़ नए कनेक्शन दिए जा सकते हैं। इसलिए पूरे आसार हैं कि इस योजना को पिछले तीन सालों की तरह इस बार भी बजट में पूरा महत्व मिलेगा। केंद्र सरकार का जल जीवन मिशन अब तक 17 करोड़ ग्रामीण घरों को टैप के जरिये पेयजल के कनेक्शन उपलब्ध करा चुका है।

योजना के क्रियान्वयन में UP सबसे आगे

बकौल अधिकारी, पिछले दिनों इस योजना ने ग्रामीण कवरेज के लिहाज से 73 प्रतिशत का आंकड़ा पार कर लिया। 2023 इस योजना के लिए निर्णायक वर्ष रहा है, जब उत्तर प्रदेश सरीखे कुछ राज्यों की ओर से दिखाई गई अभूतपूर्व तेजी ने इस मिशन को अंजाम तक पहुंचाने का रास्ता तैयार किया। उत्तर प्रदेश इस योजना के क्रियान्वयन में सबसे आगे हैं, जहां प्रति सेकेंड दो कनेक्शन तक उपलब्ध कराए गए। इस मिशन की एक खास बात यह है कि केंद्र सरकार ने एक डैश बोर्ड के जरिये इसके क्रियान्वयन पर लगातार निगाह रखी।

कब शुरू हुआ था जल जीवन मिशन?

अधिकारी के अनुसार, कोविड और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पाइपों की लागत बढ़ने जैसे कारणों से मिशन को आगे बढ़ाने में दिक्कतें आई हैं, लेकिन यह इस साल दिसंबर तक लगभग पूरा होने के आसार हैं, जैसा कि मिशन की शुरुआत के समय लक्ष्य निर्धारित किया गया था। केंद्र सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में 19 करोड़ से कुछ अधिक घरों की गणना की है। 15 अगस्त, 2019 को इस मिशन की जब शुरुआत की गई थी तब केवल तीन करोड़ घरों में ही पाइप के जरिये पेयजल की आपूर्ति की सुविधा थी। जल जीवन मिशन ने अब तक लगभग 14 करोड़ से अधिक घरों में टैप के जरिये पानी पहुंचाने में सफलता हासिल की है।

मंत्रालय को उम्मीद है कि अगले साल कुछ लाख ही घर बचे होंगे। इस मिशन के लिए केंद्र सरकार ने पिछले बजट में 70 हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था की थी, जिसमें जनवरी मध्य तक लगभग 55 हजार करोड़ रुपये राज्यों को उपलब्ध कराए जा चुके हैं। राज्यों ने भी इतना ही योगदान किया है। 2022-23 में भी केंद्र और राज्यों के व्यय की लगभग ऐसी ही स्थिति थी।

हिमाचल सहित इन राज्यों में शत-प्रतिशत कवरेज

मौजूदा समय तक गोवा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, गुजरात और हरियाणा समेत दस राज्यों ने शत-प्रतिशत कवरेज की सूचना केंद्र सरकार को दे दी है, जबकि राजस्थान, झारखंड और बंगाल उन राज्यों में शामिल हैं जहां कवरेज पचास प्रतिशत भी नहीं पहुंच सका है। जलशक्ति मंत्रालय ने जल जीवन मिशन में पिछड़ रहे राज्यों से क्रियान्वयन की रफ्तार तेज करने के लिए कहा है। अगर छत्तीसगढ़ और राजस्थान सत्ता परिवर्तन के बाद अपने यहां इस मिशन की रफ्तार बढ़ाते हैं तो लक्ष्य हासिल करना और सरल होगा। तेलंगाना का मामला अलग है जहां सौ प्रतिशत गांवों को कवर तो कर लिया गया है, लेकिन मिशन के नियमों के अनुसार, इन्हें ग्राम पंचायतों के माध्यम से सर्टिफाई नहीं किया है।

चालू वित्त वर्ष में उर्वरक सब्सिडी 34 प्रतिशत से घटकर 1.8 लाख करोड़ रुपये रहने की है उम्मीद : मनसुख मांडविया(केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडविया)

नई दिल्ली : केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडविया ने बुधवार को कहा कि वैश्विक कीमतों में गिरावट और यूरिया के कम आयात के कारण चालू वित्त वर्ष में सरकार का उर्वरक सब्सिडी बिल 30-34 प्रतिशत घटकर 1.7-1.8 लाख करोड़ रुपये रहने की संभावना है.

 पिछले वित्त वर्ष में यह सब्सिडी बिल 2.56 लाख करोड़ रुपये था. रसायन और उर्वरक मंत्री ने कहा कि देश में उर्वरक की कोई कमी नहीं है और लाल सागर संकट के बीच आयात बाधित नहीं हुआ है क्योंकि भारतीय नौसेना मालवाहक जहाजों की सुरक्षा कर रही है.

मांडविया ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि चालू वित्त वर्ष में यूरिया आयात 40-50 लाख टन का ही होने का अनुमान है, जो पिछले वर्ष आयात किए गए लगभग 75 लाख टन से कम है. आयात में इस कमी का कारण उच्च घरेलू उत्पादन और नैनो तरल यूरिया का बढ़ता उपयोग है. लाल सागर में समस्याओं के कारण आयात पर किसी प्रतिकूल प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर, मंत्री ने कहा, 'देश में उर्वरकों की कोई कमी नहीं है.

मांडविया ने संवाददाताओं से कहा, 'विदेश मंत्रालय आवश्यक हस्तक्षेप कर रहा है और हमारी नौसेना भारतीय मालवाहक जहाजों को सुरक्षा दे रही है.' निर्यातकों के अनुसार, लाल सागर संकट के कारण माल ढुलाई दरें 600 प्रतिशत तक बढ़ गई हैं, जिससे विश्व व्यापार को नुकसान होगा. 

लाल सागर और भूमध्य सागर को हिंद महासागर से जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण शिपिंग मार्ग, बाब-अल-मंडेब जलडमरूमध्य के आसपास अंतरराष्ट्रीय तनाव, यमन स्थित हूती आतंकवादियों के हालिया हमलों के कारण बढ़ गया है. सम्मेलन में मांडविया ने अपनी नई किताब 'फर्टिलाइजिंग द फ्यूचर: भारत मार्च टुवार्ड्स फर्टिलाइजर सेल्फ सफिशिएंसी' के बारे में भी बात की.

मंत्री ने कहा कि खरीफ (ग्रीष्मकालीन बुआई) सत्र की जरूरतों को पूरा करने के लिए देश में उर्वरकों की पर्याप्त उपलब्धता है. 

मौजूदा समय में, देश में 70 लाख टन यूरिया, 20 लाख टन डीएपी, 10 लाख टन एमओपी (म्यूरेट ऑफ पोटाश), 40 लाख टन एनपीके और 20 लाख टन एसएसपी (सिंगल सुपर फॉस्फेट) का भंडार है. उर्वरक सब्सिडी के बारे में पूछे जाने पर, मांडविया ने कहा कि सब्सिडी बिल लगभग 1.7-1.8 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है. उन्होंने कहा, 'वैश्विक कीमतों में गिरावट के कारण इस साल सब्सिडी कम रहने की उम्मीद है. हमने सब्सिडी कम करने के लिए खुदरा कीमतें नहीं बढ़ाई हैं.

ड्राइविंग लाइसेंस में बदलाव की जरूरत है या नही इसे सुलझाने के लिए न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने दिया 15 अप्रैल तक का समय

नई दिल्ली : केंद्र ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय को बताया कि सरकार द्वारा नियुक्त एक समिति ने उस कानूनी सवाल की जांच के बाद एक मसौदा रिपोर्ट प्रस्तुत की है कि क्या हल्के मोटर वाहन के लिए ड्राइविंग लाइसेंस रखने वाला व्यक्ति भी कानूनी तौर पर बिना भार वाले 7500 किलोग्राम तक का परिवहन वाहन चलाने का हकदार है. 

प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए केंद्र को 15 अप्रैल तक का समय दिया और कहा कि यदि मामला अनसुलझा रहता है तो वह याचिकाओं पर सुनवाई करेगी और फैसला सुनाएगी.

पीठ ने कहा, 'दरअसल, यह आधा सुना हुआ मामला है. हमने इसे काफी हद तक सुना है... हम आपको (सरकार को) मामले को सुलझाने के लिए समय देंगे. अगर इसका समाधान नहीं हुआ तो हम मामले की सुनवाई करेंगे और कानून बनाएंगे.' 

पीठ में न्यायमूर्ति ऋषिकेष रॉय, न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा, न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति मनोज सिन्हा भी शामिल हैं. न्यायालय ने कहा, 'अंततः, अगर संसद हस्तक्षेप करना चाहती है, तो वह हमेशा ऐसा कर सकती है।पीठ ने रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के लिए फरवरी के मध्य तक का समय दिया और सरकार से वादी पक्षों को इसकी प्रतियां उपलब्ध कराने को कहा. 

इसमें कहा गया है कि याचिकाओं को अब 16 अप्रैल को निर्देश पारित करने के लिए रखा जाएगा और सुनवाई 23 अप्रैल से शुरू होगी। शीर्ष अदालत ने कहा, 'अटॉर्नी जनरल का कहना है कि सरकार द्वारा नियुक्त समिति की मसौदा रिपोर्ट प्राप्त हो गई है.

 वह इसकी जांच के लिए समय देने का अनुरोध करेंगे। कार्यवाही अब 16 अप्रैल को निर्देशों के लिए सूचीबद्ध की जाएगी और समझा जाता है कि यदि उस दिन भारत संघ द्वारा मुद्दे का समाधान नहीं किया जाता है, तो कार्यवाही 23 अप्रैल 2024 को सुनवाई के शेष भाग के समापन के लिए सूचीबद्ध की जाएगी.'

जयाप्रदा के खिलाफ आचार संहिता उल्लंघन के दो मामलों में एक बार फिर NBW जारी, कोर्ट ने जमानत अनुबंध भी क‍िए समाप्‍त


नई दिल्ली : फिल्म अभिनेत्री एवं पूर्व सांसद जयाप्रदा के खिलाफ आचार संहिता उल्लंघन के दो मामलों में एक बार फिर गैर जमानती वारंट जारी किया गया हैं। न्यायालय ने उनके जमानत का अनुबंध भी समाप्त कर दिए है।

जयाप्रदा के खिलाफ आचार संहिता उल्लंघन के मामले वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के हैं। तब जयाप्रदा रामपुर सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं। वह चुनाव हार गई थीं, उनके खिलाफ स्वार और केमरी थाने में चुनाव आचार संहिता उल्लंघन की प्राथमिकी दर्ज की गई थी। 

इनमें स्वार में दर्ज प्राथमिकी में उन पर आचार संहिता के बावजूद 19 अप्रैल को नूरपुर गांव में सड़क का उद्घाटन करने का आरोप है।

केमरी थाने का है दूसरा मामला

दूसरा मामला केमरी थाना का है, जिसमें उन पर पिपलिया मिश्र गांव में आयोजित जनसभा में आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप है। दोनों मामलों की सुनवाई एमपी-एमएलए स्पेशल कोर्ट (मजिस्ट्रेट ट्रायल) में चल रही है। इन मामलों में पिछली कई तारीखों से वह कोर्ट में पेश नहीं हो रही थीं, जिस पर उनके खिलाफ चार बार गैर जमानती वारंट जारी किए गए थे। साथ ही न्यायालय ने उनकी गिरफ्तारी के लिए विशेष पुलिस निरीक्षक तैनाती के आदेश जारी किए थे।

25 जनवरी को होगी सुनवाई

पुलिस अधीक्षक की ओर से उनकी गिरफ्तारी को विशेष टीम गठित की थी, जो दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और हरियाणा तक गई पर टीम उन्हें पकड़ नहीं सकी। बुधवार को पुलिस की ओर से बनाई टीम और उनकी ओर से गिरफ्तारी के प्रयास से संबंधित रिपोर्ट कोर्ट में पेश की गई। वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी अमरनाथ तिवारी ने बताया कि न्यायालय ने एक बार फिर जयाप्रदा के गैर जमानती वारंट जारी करते हुए उनके जमानत अनुबंध समाप्त कर दिए हैं। अब 25 जनवरी को सुनवाई होगी।