डिटेल में जानिए, भारत और मालदीव के रिश्तों में खटास आने का कारण, आखिर क्यों लगातार बिगड़ रहे हालात
मालदीव और भारत के बीच रिश्ते फिलहाल एकदम ठीक नजर नहीं आ रहे हैं। हालात भी ऐसे समय पर बन रहे हैं, जब मालदीव में बीते कुछ सालों से भारत विरोधी माहौल पनपता नजर आ रहा है। चीन के समर्थक माने जाने वाले राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू 15 मार्च तक भारतीय सैनिकों की वापसी की मांग उठा चुके हैं। अब सवाल है कि आखिर मुइज्जू भारत को क्यों तेवर दिखा रहे हैं? यहां डिटेल में पढ़िए ...
क्या मालदीव की राजनीति है वजह
राष्ट्रपति बनने से पहले मुइज्जू ने चुनाव ही 'इंडिया आउट' के मुद्दे पर लड़ा था। पीपुल्स नेशनल कांग्रेस और द प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव्स चीन समर्थित नीति का पालन कर रही है और हर उस चीज को हटाने पर उतारू है, जिसे वे भारतीय प्रभाव समझते हैं। सितंबर के अंत में मुइज्जू की पार्टी के समर्थकों ने माहौल बनाना शुरू कर दिया था कि इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की पार्टी पर भारत का प्रभाव है।
अब यहां भारत की तरफ से भेजे गए दो हेलीकॉप्टरों को सैन्य मौजदूगी की तरह दिखाने की कोशिश की गई। दरअसल, फरवरी 2021 में एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे, जिसके तहत भारत को मालदीव की राजधानी माले के पास हार्बर और डॉकयार्ड तैयार करना और उसका रखरखाव करना था। अब इसे लेकर भी कई तरह की अटकलें लगाई गईं।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, स्थानीय मीडिया का एक वर्ग यह दावा करता रहा कि यह प्रोजेक्ट बाद में भारतीय नेवल बेस बन जाएगा।
मुइज्जू की चीन यात्रा
खास बात है कि मालदीव के राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद मुइज्जू भारत से पहले चीन पहुंच गए। इससे पहले लंबे समय तक मालदीव के राष्ट्रपति पहले भारत का दौरा करते थे। अब मुइज्जू की चीन से वापसी होते ही भारतीय सैनिकों की वापसी की मांग और तेज हो गई।
कहा जाता है कि हिंद महासागर में मालदीव की मौजूदगी को देखते हुए चीन यहां अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। साथ ही मालदीव सबसे व्यस्त जलमार्गों में से एक पर भी है, जहां से चीन का करीब 80 फीसदी तेल आयात गुजरता है। इधर, ताजा दौरे पर मुइज्जू ने चीन के साथ 20 समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। चीन ने मालदीव को 130 मिलियन डॉलर की मदद देने का ऐलान किया है।
Jan 16 2024, 13:05