खुशी की गारंटी नहीं हैं शादी,आज की महिलाएं नहीं करना चाहती हैं शादी, रहना चाहती हैं सिंगल, बढ़ रहा है ट्रेन्ड
नयी दिल्ली : आज की महिलाएं नहीं करना चाहती हैं शादी, रहना चाहती हैं सिंगल, बढ़ रहा है ट्रेन्ड। एक अध्ययन के अनुसार, जहां 49 फीसदी पुरुष अपने सिंगल स्टेटस से खुश हैं, वहीं 61 फीसदी महिलाएं सिंगल रहना चाहती हैं। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि सिंगल महिलाओं में लगभग 75 फीसदी महिलाएं ऐसी हैं, जिन्होंने अपने लिए साथी ढूंढने की कोशिश भी नहीं की, जबकि महिलाओं के मुकाबले ऐसे पुरुष केवल 65 फीसदी हैं।
कभी माना जाता था कि महिलाओं को विवाहित होना, सांस लेने के बराबर जरूरी है। लेकिन नए जमाने की महिलाएं अविवाहित यानी सिंगल रहना पसंद कर रही हैं। शिक्षा और आर्थिक आत्मनिर्भरता ने उनकी सोच और स्थिति को बदला है। लेकिन क्या सिर्फ यही एक वजह है या कारण और भी हैं?
40 वर्षीय सुनीता ने केवल इस वजह से सामाजिक समारोहों में जाना छोड़ दिया कि हर जगह लोग यही पूछते हैं कि “शादी के लड्डू कब खिला रही हो?” समाज में महिलाओं का सिंगल रहना एक तरह से वर्जित माना जाता रहा है। अगर किसी समारोह में कोई अविवाहित/सिंगल महिला दिख जाए तो उसके बारे में तरह-तरह की बातें की जाती हैं। कई बार तो ऐसी महिलाओं का उत्सवों में जाना भी मुश्किल हो जाता है।
वस्तुतः यह समाज का नियम है कि जो चीज आपके पास न हो, लोग उसी के बारे में पूछते हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से लड़कियों की रिश्तों में बंधने और कमिटमेंट में रहने की मानसिकता में तेजी से बदलाव आ रहा है।
शादी, जिसे सात जन्मों का बंधन माना जाता था, उससे लड़कियां दूर जा रही हैं। आज उन्हें अकेले रहना और आत्मविश्वास से जीना भा रहा है। जमाने की रीति-नीति को झुठलाती ये लड़कियां पहले से ज्यादा आत्मविश्वास से लबरेज दिखती हैं। आज उनकी प्राथमिकताएं भी बदल चुकी हैं।
हाल ही में हुए एक अध्ययन की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं सिंगल रहना ज्यादा पसंद करती हैं।
डाटा एनालिस्ट ‘मिंटेल’ द्वारा किए गए इस अध्ययन के अनुसार, जहां 49 फीसदी पुरुष अपने सिंगल स्टेटस से खुश हैं, वहीं 61 फीसदी महिलाएं सिंगल रहना चाहती हैं। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि सिंगल महिलाओं में लगभग 75 फीसदी महिलाएं ऐसी हैं, जिन्होंने अपने लिए साथी ढूंढने की कोशिश भी नहीं की, जबकि महिलाओं के मुकाबले ऐसे पुरुष केवल 65 फीसदी हैं।
अध्ययन के नतीजों से यह बात सामने आई कि रिश्तों को चलाने के लिए पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को ज्यादा काम और मेहनत करनी पड़ती है, क्योंकि एक तरह से गृहस्थी की जिम्मेदारी हमारे देश में महिलाओं के हिस्से में ही डाल दी जाती है। रिलेशनशिप एक्सपर्ट की मानें तो महिलाएं रिश्तों को निभाने के साथ-साथ घर के कामकाज, जैसे कि खाना बनाना, घर-परिवार का ध्यान रखना, बच्चों की परवरिश करना और रिश्तों में होने वाली छोटी-मोटी लड़ाइयों का निपटारा करने जैसी चीजों में इतना ज्यादा उलझ जाती हैं कि एक समय के बाद उनकी रिश्तों के प्रति रुचि ही खत्म हो जाती है।
उन्हें ये सब उलझन प्रतीत होने लगता है। वे अपना ‘मी’ टाइम मिस करने लगती हैं। नतीजतन, वे विवाह के बंधन से दूर भागने लगती हैं।
शादी और बच्चे को औरत की संपूर्णता से जोड़ने वाला यह दृष्टिकोण वक्त के साथ बदला है। अब सिर्फ शादी और बच्चे पैदा करना ही किसी महिला की प्राथमिकता नहीं रह गई है।
35 वर्षीय अकाउंटेंट प्रेरणा बताती हैं कि वे सिंगल वीमेन हैं। उन्हें विवाह करने की जरूरत कभी महसूस नहीं हुई।वह कहती हैं, “मेरी जिंदगी में भी बहुत से लोग और दोस्त हैं, जिनके साथ मैं खुश हूं।” उनके साथ उनकी ही एक दोस्त भी रहती हैं। दोनों अपनी जिंदगी में खुश हैं। अब तो घरवालों ने भी हारकर उन्हें शादी के लिए बोलना छोड़ दिया है।
मजरूह सुल्तानपुरी ने ठीक ही कहा है, “मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया।” शायद आज के समय में यह शे’र इन महिलाओं पर फिट बैठता है। लेकिन सिर्फ अकेले ही जीवन जीना, विवाह को नकारने का कारण नहीं है, कई अन्य पहलू भी हैं, जिन पर गौर करने की आवश्यकता है, ताकि आप यह जान सकें कि आखिर आज युवतियों का रुझान विवाह के प्रति कम क्यों हो रहा है।
कोई शिकायत नहीं जिंदगी से
अब महिलाएं करियर, सामाजिक रुतबा और मन-मुताबिक जिंदगी जीने को तवज्जो देने लगी हैं। यही वजह है कि कई महिलाएं शादी के बंधन में नहीं बंधना चाहतीं। हर किसी को अपने तरीके से जिंदगी जीने का हक है, मगर हमारे पुरुष प्रधान समाज में औरतों को हमेशा पुरुषों की मर्जी से चलना पड़ता है। लेकिन अब वक्त बदल रहा है। महिलाओं की शिक्षा और आर्थिक आत्मनिर्भरता ने उनकी स्थिति बदली है। सौ फीसदी न सही, लेकिन शिक्षित वर्ग की महिलाओं का एक बड़ा तबका अब अपनी शर्तों पर जिंदगी जी रहा है। समाज क्या कहेगा, इसकी चिंता छोड़कर ये महिलाएं वही करती हैं, जो उनका दिल कहता है। तभी तो आज अविवाहित महिलाओं की संख्या पहले की तुलना में काफी बढ़ी है।
खास बात यह है कि इन सिंगल वीमेंस को अपने अकेलेपन से कोई शिकायत नहीं है और ये जिंदगी की रेस में जीत दर्ज करते हुए आगे बढ़ रही हैं।
संपूर्णता और खुशी की गारंटी नहीं
‘पत्नी और मां बने बिना औरत अधूरी है!’ यह जुमला अब पुराने जमाने की बात हो गई है। 36 वर्षीय तनु कहती हैं, “मुझे नहीं लगता कि शादी संपूर्णता और खुशी की गारंटी है। मैंने अपने बहुत से दोस्तों को देखा है, जो शादीशुदा होने के बावजूद अकेलापन और खुद को प्यार से वंचित महसूस करते हैं। अपने अंदर की रिक्तता को आप खुद ही भर सकती हैं, कोई और नहीं। मैं अपने कॅरिअर में खुश हूं और अपने शौक पूरे करके संतुष्ट हूं।” आज अपने आस-पास टूट रहे वैवाहिक संबंधों को देखकर भी इन महिलाओं को अपने अकेले रहने के फैसले पर खुशी महसूस होती है।
तनु कहती हैं, “मैं घर से लेकर ऑफिस तक के काम में इतनी व्यस्त रहती हूं कि खुद के लिए भी फुरसत नहीं होती, तो अकेलापन कहां से महसूस होगा। वैसे भी घर में मम्मी-पापा सब हैं, तो कैसा अकेलापन।” इन महिलाओं को देखकर कहा जा सकता है कि कभी पति के दायरे में सिमटी रहने वाली भारतीय महिलाओं की सोच और जिंदगी अब तेजी से बदल रही है।
सफलता के लिए विवाहित होना जरूरी नहीं
पहले किसी महिला की सफलता-असफलता का अंदाजा उसकी वैवाहिक स्थिति से लगाया जाता था। मतलब अगर महिला की शादीशुदा जिंदगी सुखी है तो वह सफल है और अगर वह असफल है तो इसके पीछे का कारण उसकी डिस्टर्बिंग वैवाहिक जिंदगी है। लेकिन आज की महिलाएं यह जान चुकी हैं कि उनकी सफलता का विवाह से कोई लेना-देना नहीं है। कोई महिला कितनी सफल है, यह उसके कॅरिअर और आत्मनिर्भर होने से जुड़ा मुद्दा है, न कि विवाह से जुड़ा।
स्वतंत्र रहने की चाहत
हमारे देश का परिवारिक ढांचा ऐसा है, जिसमें पढ़ी-लिखी और कामकाजी महिलाओं को भी आजादी नहीं मिल पाती है। उन पर तरह-तरह की पाबंदियां होती हैं। उन्हें हर बात का हिसाब देना पड़ता है। अगर वे बाहर काम करती हैं तो उन्हें घरेलू कामों से भी राहत नहीं दी जाती है। इसके अलावा उन्हें अपनी आय में से अपने ही ऊपर पैसे खर्च करने से पहले पूछना पड़ता है।
शादीशुदा होने की स्थिति में भी उनके पैसे पर पति का ही अधिकार होता है। इस सबसे बचने के लिए ही आजकल लड़कियां सिंगल रहना ज्यादा पसंद करती हैं।
आड़े आती है अधिक उम्र
कई लड़कियां तो पढ़ाई करने, जॉब में सेट होने या कुछ करने की चाहत में भी सिंगल रह जाती हैं, क्योंकि जब तक वे अपने इस सपने को पूरा करती हैं, उनकी उम्र निकल जाती है और फिर उन्हें अच्छे रिश्ते नहीं मिल पाते। इसलिए विवाह करने की इच्छा होने के बावजूद सिंगल रहना उनकी मजबूरी बन जाती है।
भारत में रिश्तों का परिदृश्य तेजी से और लगातार बदल रहा है। पिछले कुछ सालों में यह परंपरागत समाज की तुलना में आधुनिक ढांचे की ओर बढ़ रहा है। शादी और रिश्तों से जुड़े अलग-अलग सवालों को लेकर किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि भारतीय महिलाएं विशेष रूप से सिंगल रहना पसंद कर रही हैं।
आज वे केवल सामाजिक मांगों के कारण रिश्ते में बंधने की जल्दबाजी नहीं कर रही हैं। सर्वे के अनुसार, देश भर की लगभग 81 प्रतिशत महिलाओं ने महसूस किया कि अविवाहित होने और अकेले रहने में अधिक आसानी होती है, यहां तक कि किसी के साथ डेटिंग करते समय भी। इनमें से लगभग 63 प्रतिशत ने कहा कि वे केवल अपने साथी की पसंद को वरीयता नहीं देंगी, बल्कि खुद के प्रति भी सच्ची रहेंगी।
सर्वे में यह भी पता चला कि 83 प्रतिशत महिलाएं तब तक इंतजार कर सकती हैं, जब तक कि उन्हें सही साथी न मिले। यानी अब महिलाओं को शादी या जीवन-साथी के लिए कोई जल्दबाजी नहीं है। भारत में अब महिलाएं जागरूक हो रही हैं। वे रिश्ते में किसी तरह का समझौता नहीं करना चाह रही हैं। अब जमाना वह नहीं रहा कि वे स्वयं को घुट-घुटकर दम तोड़ती देखती रहें।
महिलाएं शादी क्यों नहीं करना चाहती हैं यह उनकी पसंद है।
समाजशास्त्री डॉ. मंजू वर्मा कहती हैं, आधुनिक जीवन-शैली को अपनाने वाली महिलाओं ने अपनी मूल प्रकृति कोमलता, ममता, संवेदना और भावात्मक आवेग की प्रचुरता को दबाते हुए एकाकी जीवन-शैली को अपनाया और इसमें उसका साथ दिया देश की राजनीतिक चेतना एवं कानूनी अधिकारों ने। इसके अलावा महिलाओं में बढ़ती आर्थिक आत्मनिर्भरता और लिव इन रिलेशन के बढ़ते चलन के कारण भी महिलाएं अब शादी को जरूरी नहीं मानतीं।
शादी के रिश्ते में बंधने पर कई तरह की जिम्मेदारियां आ जाती हैं। ऐसे में कुछ महिलाएं परिवार और बच्चों की जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहतीं, इसलिए भी शादी से दूर रहती हैं, या फिर शादी के बाद हुई किसी दुर्घटना के भयाभय अनुभव के कारण भी वे एकाकी जीवन को प्राथमिकता देती हैं।
दूसरी तरफ एकल परिवार के बढ़ते चलन के कारण अपना स्पेस शेयर करने, एडजस्टमेंट करने और त्याग करने जैसे शब्द उन्हें बहुत भारी लगते हैं। वे किसी अन्य के लिए किसी भी तरह का त्याग नहीं कर पाएंगी, इस डर से भी वे शादी से दूर रहती हैं। फिर तयशुदा लीक से हटकर भौतिकता के इस युग में अपने लिए सभी सामाजिक-धार्मिक वर्जनाएं तोड़ते हुए जीवन में समस्त सुख-साधन और अपनी आजादी को तलाशने में जुट जाती हैं।
Nov 08 2023, 22:48