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फिल्मों में विलेन बनते-बनते असलियत में कर डाला क्राइम, गिरफ्तार हुआ 600 करोड़ कमाने वाला ये एक्टर


नयी दिल्ली : फिल्मों में खूंखार विलेन का रोल निभाने वाले कई एक्टर्स असलियत में बेहतरीन इंसान होते हैं. हालांकि, हाल ही में एक सबसे सक्सेसफुल फिल्मी विलेन ने रियल लाइफ में ऐसी हरकत की है, जिसकी वजह से फिल्म इंडस्ट्री में हलचल मच गई है.

ये एक्टर रियल लाइफ में विलेन बनने की वजह से गिरफ्तार हो गया है लेकिन हैरानी की बात ये है उन्हें अपना क्राइम ही याद नहीं है. हम बात कर रहे हैं रजनीकांत की 600 करोड़ कमाने वाली फिल्म 'जेलर' में दिखाई दिए खूंखार विलेन 'वर्मन' की. ये किरदार एक्टर विनायकन ने निभाया था, जिन्हें हाल ही में पुलिस ने अरेस्ट किया है.

पुलिस स्टेशन में ही करने लगे हंगामा

दरअसल, गिरफ्तार होने वाले एक्टर और कोई नहीं बल्कि रजनीकांत की फिल्म 'जेलर' में खूंखार विलेन यानी एक्टर विनायक हैं. साउथ से सबसे मशहूर एक्टर्स में गिने जाने वाले विनायकन ने हाल ही में शराब के नशे में धुत होकर कांड कर डाला है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक विनायकन नशे की हालत में एक पुलिस स्टेशन पर पहुंच गए. वो इस कदर धुत थे कि उन्होंने पुलिसकर्मियों के सामने ही हंगामा करना शुरू कर दिया।

एक्टर को कई लोगों ने संभालने की कोशिश की लेकिन वो कंट्रोल से बाहर होते चले गए. वो स्टेशन पर ही पीते गए और सिगरेट फूंकने लगे.

याद नहीं अपनी हरकत

इस हरकत के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया. हैरानी की बात ये है कि जब सारा हंगामा खत्म होने के बाद एक्टर से पूछा गया कि उन्होंने ये सब क्यों किया तो एक्टर को कुछ याद ही नहीं था।

विनायकन ने कहा कि वो नहीं जानते कि पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार क्यों किया है. एक्टर की इस हरकत के बाद फैंस काफी निराश हैं. बता दें कि इससे पहले भी एक्टर कई बार अपनी हरकतों की वजह से विवादों में रह चुके हैं।

उन्होंने मी टू मूवमेंट के दौरान गलत कमेंट कर डाला था. उनका कहना था कि 'महिलाओं से संबंध बनाने के लिए पूछना अगर मीटू है तो मैं हमेशा ये करता रहूंगा।

गाजियाबाद की अरूषी अग्रवाल ने कभी ठुकराया था 1 करोड़ की जॉब का ऑफर, अब अरुषि ने खड़ी कर दी 50 करोड़ की कंपनी


गाजियाबाद :- सफलता की कुंजी कहती है कि जीवन में सफलता उसी के हिस्से में आती है, जो संघर्ष से नहीं घबराता है. संघर्ष में सफलता छिपी होती है. गाजियाबाद की अरुषि अग्रवाल को भी बड़े सपने देखने का काफी शौक था. लेकिन उन्हें नहीं पता था कि मेहनत और किस्मत उनके उन सभी सपनों को इतना जल्दी पूरा कर देगी।

ये कहानी है गाजियाबाद के नेहरू नगर में रहने वाली 27 वर्षीय अरुषि अग्रवाल की जो अब करोड़पति बन चुकी हैं. अरुषि अग्रवाल ने अपनी मेहनत के दम पर 50 करोड़ की कंपनी खड़ी कर दी।

इस कंपनी का नाम है टैलेंटडीक्रिप्ट. इस कंपनी को खड़ा करने से पहले अरुषि के पास कई नौकरियां के ऑफर आए, जिनमें एक बड़ी निजी कंपनी ने एक करोड़ रुपए के पैकेज में अरुषि को अपने साथ जोड़ना चाहा, लेकिन उन्होंने इस डील को ठुकरा दिया.

कॉलेज में ही बना लिया था सॉफ्टवेयर

मूल रूप से मुरादाबाद की रहने वाली अरुषि ने नोएडा के निजी कॉलेज से बीटेक और एमटेक की पढ़ाई की. वर्ष 2018 के अंत में अरुषि ने कोडिंग सीख कर सॉफ्टवेयर तैयार करना शुरू कर दिया था. अपनी कड़ी मेहनत के बाद सिर्फ डेढ़ साल में ही सॉफ्टवेयर टैलेंटडिक्रिप्ट बनकर तैयार हो गया, जिसने अरुषि को एक नया मुकाम दिलाया. 

इतना ही नहीं बल्कि देश के 75 महिला आंत्रप्रेन्योर में भारत सरकार की नीति आयोग की ओर से आरुषि को पुरस्कार भी मिल चुका है.

युवाओं को नौकरी दिलाने में करती हैं मदद

अरुषि की कंपनी टैलेंटडिक्रिफ्ट युवाओं को उनकी मनचाही नौकरी हासिल करने में मदद करती है. फिलहाल अमेरिका, जर्मनी, सिंगापुर, यूएई, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका नेपाल सहित अन्य देशों की 380 कंपनियां अरुषि की कंपनी की सेवाएं ले रही हैं. इस कंपनी में युवाओं को हैकाथॉन के जरिए वर्चुअल स्किल टेस्ट से गुजरना पड़ता है. स्किल टेस्ट पास करने के बाद सीधे कंपनियों के साथ लाइनअप करके युवाओं का इंटरव्यू होता है. इस इंटरव्यू के बाद युवा अपनी मनचाही नौकरी पाने की ओर बढ़ जाते हैं. अब तक सैकड़ो युवा टैलेंटडिक्रिप्ट के जरिए नौकरी पा चुके हैं.

दादा को मानती हैं अपना आइडल

आरुषि ने बताया कि वह अपने दादा ओमप्रकाश गुप्ता को अपना आइडल मानती हैं. शुरुआत में मन में काफी डाउट थे, लेकिन परिवार ने पूरा सहयोग दिया. आज इस कंपनी की सफलता के पीछे मेरे परिवार का हाथ है.

सर्दी के मौसम में बंद नाक की समस्या से है परेशान तो राहत पाने के लिए अपनाएं ये घरेलू नुस्खा,मिलेगी राहत


 दिल्ली:- सर्दियों का मौसम अब शुरू हो गया हैं। सर्दियों के मौसम में अक्सर लोगों को बंद नाक की समस्या का सामना करना पड़ता है। जिसके कारण और भी कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं। जैसे सांस लेने में परेशानी, नींद आना, सुस्ती, रोज के काम को ठीक से न कर पाना आदि। आप बंद नाक की समस्या से राहत पाने के लिए कुछ आसान घरेलू उपायों की मदद ले सकते है हैं, जो आपकी मदद करेंगे बंद नाक को खोलने में। आइए जानते हैं इन उपायों के बारें में।

 बंद नाक से राहत के उपाय 

 लहसुन 

लहसुन भी बंद को खोलने में मददगार साबित हो सकता है। इसके इस्तेमाल से भी बंद नाक की समस्या को दूर किया जा सकता है। इसके लिए आपको सबसे पहले लहसुन की 4 से 5 कली लेनी है और इसके बाद इसे पानी में उबालना और फिर गर्म पानी में थोड़ी से हल्दी और काली मिर्च डालें और इसका सेवन करें। ऐसा करने से आपको बहुत ही जल्द बंद नाक से आराम मिलेगा।

 भाप लें 

आप बंद नाक को खोलने के लिए भाप भी ले सकते हैं। भाप लेने से बहुत जल्द बंद नाक से आराम मिलता है। इसके लिए आपको सबसे पहले एक बर्तन में पानी लेना है और उसे गैस पर गर्म करना है। जब पानी गर्म हो जाए तो उस पानी से भाप लेनी है। क्योंकि गर्म पानी की हवा नाक और गला में जाएगी और फेफड़ों तक जाकर फेफड़ो को प्रभावित करेगी। ऐसा करने से आपको बंद नाक से बहुत आराम मिलेगा। आप दिन में 1 से 2 बार गर्म पानी की भाप ले सकते हैं।

अदरक

अदरक भी बंद को खोलने में मदद करती है। अदरक के अंदर एंटीऑक्सीडेंट तत्व पाए जाते हैं। जो बंद नाक को खोलने में मदद करते हैं। बंद नाक से राहत पाने के लिए आप अदरक की चाय पी सकते हैं या अदरक के पानी का भी सेवन भी कर सकते हैं।

नाक की सिंकाई

बंद नाक से राहत पाने के लिए आप नाक की गर्म पानी से सिकाई भी कर सकते है। सिकाई करने के लिए आपको पहले गर्म पानी करना है और फिर गर्म पानी में तौलिये को भिगोएं और नाक पर रखें। जब तक पानी ठंडा न हो जाए तब तक आपको ऐसा करना है। ऐसा करने से नाक में जमी गंदगी नाक से बाहर आ जाएगी। नाक की सिकाई आप दिन में 1 से 2 बार कर सकते हैं।

हल्दी

हल्दी भी बंद नाक से राहत देने में बहुत मदद करती है। इसके लिए आपको एक बर्तन में थोड़ा सा पानी लेना है और उसे गैस पर गर्म करना है जब पानी गर्म होने लगे तो उसके अंदर एक से दो चम्मच हल्दी डाल दें और जब हल्दी डालने के बाद पानी में उबाल आ जाए तो उस पानी की भाप लेनी है। हल्दी के पानी से भाप लेने से आपको बहुत ही जल्द बंद नाक से आराम मिलेगा। ऐसा आप दिन में एक बार रात को सोते समय कर सकते हैं।

पुण्यतिथि पर विशेष : मौत के पहले पत्नी की याद में गाना चाहते थे , राज कपूर ने 'ये रात भीगी-भीगी' गाना का ऑफर दिया तो रोने लगे थे मन्ना डे*


नयी दिल्ली : 8 जून 2013 को, चेस्ट इन्फेक्शन के कारण मन्ना डे को बेंगलुरु के एक अस्पताल में आईसीयू में भर्ती कराया गया था। उनके स्वास्थ्य में धीरे-धीरे सुधार हुआ और लगभग एक महीने बाद डॉक्टरों ने उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट से हटा दिया। बाद में, उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.

मन्ना डे की जिंदगी में सिर्फ कुछ ही महीने बचे थे लेकिन अभी उनकी एक ख्वाहिश पूरी होने को बाकी थी। उनका सपना था कि वो दिवंगत पत्नी सुलोचना की याद में एक प्रेम गीत रिकाॅर्ड कर सकें।

उनके एक करीबी ने बताया था कि मन्ना डे अपनी आखिरी सांस तक गाना चाहते थे। वो खराब स्वास्थ्य के बावजूद लंबे समय के बाद फिर से गाने के लिए उत्सुक थे। वो जिंदगी का आखिरी गाना पत्नी को सपर्मित करना चाहते थे।

हालांकि संगीत की दुनिया के इस नायाब हीरे की आखिरी इच्छा अधूरी रह गई। अक्टूबर 2013 के पहले सप्ताह में मन्ना डे को फिर से अस्पताल में भर्ती कराया गया, और 24 अक्टूबर को 94 साल की उम्र में कार्डियक अरेस्ट से उनकी मौत हो गई।

मन्ना डे वो थे, जिन्होंने इंडिया सिनेमा में संगीत का एक नया अध्याय जोड़ा था। पद्मश्री, पद्म भूषण और दादा साहेब फाल्के अवाॅर्ड से नवाजे गए मन्ना दा की आज 10वीं पुण्यतिथि है। 5 दशक के करियर में मन्ना डे ने कई उतार-चढ़ाव देखे लेकिन संगीत की दुनिया में आज भी मन्ना डे से मंझा हुआ कलाकार कोई नहीं।आइए जानते हैं आला दर्जे का सिंगर बनने के पीछा कैसा था मन्ना डे का संघर्ष

मन्ना डे के चाचा थे उनके पहले गुरु

मन्ना डे का जन्म 1 मई 1919 को कलकत्ता में एक बंगाली परिवार में हुआ था। बचपन से ही मन्ना डे मां-बाप से ज्यादा अपने चाचा संगीताचार्य कृष्ण चंद्र डे से प्रेरित रहते थे। उनके चाचा शास्त्रीय संगीत में पारंगत थे और इसी वजह से मन्ना डे का भी झुकाव संगीत की तरफ बचपन से था।

मन्ना डे के पिताजी का सपना था कि वो वकील बने क्योंकि घर में डॉक्टर भी थे और इंजीनियर भी। मगर इधर मन्ना डे पहले से ही संगीत में पूरी तरह से रम चुके थे। कॉलेज के दिनों से ही मन्ना डे अपने दोस्तों के साथ क्लास के पीछे के बेंच पर बैठ जाते थे। फिर बेंच पे खूब ताल दे देकर गाते थे।

इस बारे में जब कॉलेज के प्रिंसिपल को पता चला तो डांटने के बजाय उन्होंने उन लोगों को बहुत सपोर्ट किय। मन्ना डे के कोलकाता घर पर संगीत के सारे महारथी आते थे। उनके चाचा उन्हें बुलाया करते थे। रात-रात भर गाना बजाना हुआ करता था। उसी कमरे में उस्ताद साहब आते थे। यही वजह है कि बचपन से ही मन्ना डे को संगीत से लगाव था।

एक मात्र जिस फिल्म को गांधी जी ने देखा, उसी फिल्म से बतौर सोलो सिंगर मन्ना डे ने की थी शुरुआत

मन्ना डे ने अपने चाचा और उस्ताद दबीर खान से संगीत की शिक्षा ली थी। 1942 में पढ़ाई पूरी करने के बाद मन्ना डे अपने चाचा के साथ मुंबई आ गए। संगीत की अच्छी समझ होने के कारण उन्होंने फिल्मों में असिस्टेंट म्यूजिक डायरेक्टर के तौर पर काम करना शुरू किया। गायक के तौर पर मन्ना डे को सबसे बड़ा ब्रेक 1942 में रिलीज हुई फिल्म तमन्ना से मिला। इस फिल्म के गाने को मन्ना डे ने सुरैया के साथ मिलकर गाया। 

गाने के बोल थे- जागो आई उषा पोंची बोले जागो। ये गाना उस समय का बड़ा हिट रहा। इसके बाद तो मन्ना डे की संगीत की गाड़ी चल पड़ी थी। 1943 में फिल्म राम राज्य रिलीज हुई थी, जिसमें मन्ना डे ने बतौर सोलो सिंगर एक गाने को अपनी आवाज दी थी। दिलचस्प बात ये है कि राम राज्य एकमात्र ऐसी फिल्म थी, जिसे महात्मा गांधी ने देखा था।

मन्ना डे को पद्मश्री, पद्म भूषण और दादा साहेब फाल्के से सम्मानित किया गया था।

टाइपकास्ट का हुए शिकार, स्पेशलिस्ट होना वरदान नहीं श्राप साबित हुआ

मन्ना डे को गायकी से बहुत ही ज्यादा लगाव था। संगीत उनके लिए श्रद्धा थी। यही वजह है कि जब भी किसी फिल्म निर्माता को फिल्म में शास्त्रीय संगीत गवाना होता, तो वो सिर्फ मन्ना डे को ही अप्रोच करते। लेकिन हमेशा ही ये बात चर्चा का विषय रही कि इतने शानदार गायकी के बाद भी मन्ना डे कभी ए-लिस्टर सिंगर नहीं बन सके।

दौर ऐसा भी था कि रफी, किशोर और मुकेश जैसे लीजेंडरी सिंगर की भी पहली पसंद मन्ना डे ही थे। इतनी ही नहीं, रफी साहब ने एक बार कहा था कि पूरी दुनिया मेरे गाने को सुनती है और मुझे बस सुकून मन्ना डे के ही गाने से मिलता है।

कठिन से कठिन गीत को मन्ना डे इतनी सहजता से गाते थे कि लगता ही नहीं था कि उन्होंने कोई एक्स्ट्रा एफर्ट लिया हो। शास्त्रीय संगीत में पारंगत होने के कारण ही मन्ना डे भी टाइपकास्ट का शिकार हुए और उनकी गायकी भी शास्त्रीय संगीत तक सिमट कर रह गई। इसी वजह से हल्के-फुल्के गानों के लिए उन्हें कंसीडर करना बंद ही कर दिया गया। जबकि उनका गाया ‘ऐ भाई जरा देख के चलो’ जैसा गाना बंपर हिट भी रहा था।

ये रात भीगी भीगी गाने के लिए राज कपूर ने की थी मन्ना डे के लिए सिफारिश

मन्ना डे सिर्फ टाइप कास्ट का ही शिकार नहीं हुए थे बल्कि ऐसा भी दौर था जब उनकी गायकी का भी अपमान किया गया। किस्सा फिल्म चोरी चोरी के गीत ‘ये रात भीगी­भीगी’ का है। इस गीत के लिए फिल्म निर्माता ए.वी. मय्यपन चेट्टियार लता के साथ मुकेश की आवाज चाहते थे। वो खासतौर पर इस गीत की रिकॉर्डिंग के लिए मद्रास से मुंबई आए थे।

वहीं संगीतकार शंकर जयकिशन की जोड़ी इस गीत को लता के संग मन्ना डे से गवाना चाहती थी, इसलिए रिकॉडिंग रूम में मुकेश को न पाकर निर्माता मय्यपन तुरंत शंकर के पास गए और पूछा कि मुकेश कहां हैं? शंकर ने कहा कि इस गाने के लिए मन्ना डे परफेक्ट हैं, लेकिन वह नहीं माने तब राजकपूर ने निर्माता को समझाया और कहा कि यह गाना मन्ना ही रिकॉर्ड करेंगे। गाने की रिकॉर्डिंग हुई और गाना सुनकर मय्यपन के मुंह से भी यह निकल पड़ा कि उन्हें गर्व होगा, अगर यह गाना उनकी फिल्म से जुड़ेगा।

मन्ना डे ने एक इंटरव्यू में इस बात का खुलासा किया था, जब राज कपूर ने मुझे इस गाने के चुना तो मैं खुशी के मारे रोने लगा था। वो किसी दूसरी सिंगर की आवाज में ये गाना रिकॉर्ड करवा सकते थे, लेकिन इसके लिए उन्होंने सिर्फ मुझे चुना।

किशोर कुमार के साथ गाने से जब मन्ना डे ने कर दिया था इन्कार

बात है उस दौर की जब फिल्म पड़ोसन रिलीज हो गई थी। 1968 की इस फिल्म का एक गाना एक चतुर नार बहुत फेमस हुआ। इस गाने का आवाज दी थी, मन्ना डे, किशोर कुमार और महमूद ने। शुरुआत में इस गाने के लिए मन्ना डे ने मना कर दिया था। वजह थी कि ये गाना किशोर कुमार और महमूद पर फिल्माया गया था। साथ ही इस गाने में बीच-बीच में कुछ मजाकिया अंदाज वाले शब्द डाले गए थे, जिसे गाने के बीच में कहना था।

एक फ्रेम में किशोर कुमार के साथ मन्ना डे।

जब ये बात मन्ना डे को बताई गई, तो वो इस बात के लिए राजी नहीं हुए और इधर किशोर कुमार मजाकिया अंदाज वाले शब्द के लिए राजी हो गए। मन्ना डे का कहना था कि वह संगीत के साथ मजाक नहीं कर सकते। ऐसे में उनकी बात मान ली गई और गाने की रिकॉर्डिंग शुरू हुई। गाने की शुरुआत में तो सब कुछ मन्ना डे के मुताबिक ही हुआ, लेकिन जब बाद में किशोर कुमार ने मजाकिया अंदाज वाला गाना शुरू किया तो मन्ना डे चुप हो गए। उन्होंने पूछा कि ये कौन सा राग है। 

इस पर महमूद ने उन्हें समझाया कि फिल्म में सीन के लिए ऐसा करना पड़ेगा इसलिए किशोर दा ने इस तरीके से गाना गाया है। मन्ना डे फिर भी राजी नहीं हुए और उन्होंने किसी तरह अपने हिस्से का गाना गाया लेकिन उन्होंने उन शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया, जो उन्हें पसंद नहीं थे।

जब पत्नी ने दिखाई राह तब मन्ना डे ने की पंडित भीमसेन के साथ जुगलबंदी

एक बार पंडित भीमसेन जोशी के साथ मन्ना डे को गाने का मौका मिला। उनका नाम सुनते ही वो इतने नर्वस हो गए कि उन्होंने, पंडित भीमसेन के साथ गाने के लिए मना कर दिया। दरअसल, जो गाना उन्हें पंडित भीमसेन के साथ गाना था, उसने मन्ना डे को उन्हें हराना था। ये बात पता चलते ही उन्होंने गाने के लिए साफ मना कर दिया।

जब वो उस रात घर गए और पत्नी को बताया कि उन्हें पंडित भीमसेन के साथ गाने का मौका मिला था लेकिन उन्होंने मना कर दिया। इस बात उनकी पत्नी हैरान रह गई और कहीं कि आप इतना बड़ा मौका कैसे खो सकते हैं। उन्होंने कहा कि पंडित भीमसेन जैसी महारथी के साथ मैं कैसे गाना गा सकता हूं। इसके बाद उनकी पत्नी ने कहा कि आप भी शास्त्रीय संगीत में उम्दा हैं और उनके साथ गा सकते हैं। साथ ही इस गाने के लिए शंकर जयकिशन ने भी बहुत समझाया जिसके बाद मन्ना डे गाने के लिए मान गए।

अगले दिन जब वो रिकॉर्डिंग स्टूडियो पहुंचे तो पंडित भीमसेन देखते ही वो थर-थर कांपने लगें। आखिरकार किसी तरह गाने की रिकॉर्डिंग पूरी हुई और पंडित भीमसेन ने तारीफ करते हुए कहा कि ‘अरे भाई फिल्म में ही हराना है, असल में नहीं। तुम तो कॉम्प्टीटर बन गए।

मन्ना डे और राजेश खन्ना की जोड़ी रही बेमिसाल

​​​​​​​जिदंगी कैसी है पहेली हाय। इस गाने को मन्ना दा ने ही अपनी आवाज दी थी। आनंद फिल्म का ये गाना पहले फिल्म के बैकग्राउंड में बजने वाला था, लेकिन जब इस गाने को सुपरस्टार राजेश खन्ना ने सुना तो वो इसे सुनते ही मंत्रमुग्ध हो गए। इसके बाद राजेश खन्ना ने प्रोड्यूसर से कहा कि इस गाने का उन पर पिक्चराइज किया जाए ना कि बैकग्राउंड में। प्रोड्यूसर ने उनकी ये बात मान ली और बाद में ये गाना उन्हीं पर शूट हुआ।

इधर मन्ना डे भी राजेश खन्ना के एक्टिंग के दीवाने थे। वो कहते थे कि जब राजेश खन्ना मेरे गानों की लिप सिंक करते हैं तो ऐसा लगता है कि मानो वो खुद ही गा रहे हों। आनंद फिल्म ने मन्ना डे के साथ-साथ राजेश खन्ना को भी करियर में नई ऊंचाई दी थी।

जब जेल जाते-जाते बच गए मन्ना डे

किस्सा है नवाबों के शहर लखनऊ का। शहर के चारबाग स्टेशन पर एक संगीत समारोह का आयोजन होना था। जिसमें मन्ना डे, टुनटुन जैसी हस्तियां शामिल होने वाली थी। इस शो के जमकर टिकट भी बिके थे। जब एक तरफ वक्त आया आयोजन शुरू होने को तो वहीं दूसरी तरफ आयोजक ही रफूचक्कर हो गए। जब ये बात लोगों को पता चली तो वो इस बात से बहुत नाराज हो गए और मन्ना डे पर शिकायत दर्ज करा दी। साथ ही उन्हें जेल भेजे जाने की डिमांड की गई। हालांकि कुछ समय बाद वो भागे हुए कार्यकर्ता पकड़ लिए गए और मन्ना डे को राहत मिली।

90 के दशक में संगीत को कहा अलविदा

​​​​​​​सिंगिंग करियर में मन्ना डे ने कई भाषाओं में बेमिसाल गाने गाए हैं। लेकिन 90 के दशक में उन्होंने म्यूजिक इंडस्ट्री से पूरी तरह से दूरी बना ली थी। साल 1991 में आई फिल्म प्रहार के गाने 'हमारी मुट्ठी में' गाने को उन्होंने अंतिम बार अपनी आवाज दी थी।

हेल्‍थ इंश्‍योरेंस होते हुए भी कट जाएगी जेब अगर न समझा डिडक्टिबल्स का खेल


नई दिल्‍ली : इंश्‍योरेंस आज हर किसी के लिए जरूरी हो गया है. खासकर, हेल्‍थ इंश्‍योरेंस. कोरोना महामारी में इसकी अहमियत का अहसास हर किसी को हो गया. यही कारण है कि महामारी बीतने के बाद हेल्‍थ इंश्‍योरेंस लेने वालों की तादात बढ़ी है.लेकिन, कोई भी बीमा पॉलिसी लेने से ही आपको पूरा फायदा नहीं होगा।

पॉलिसी का पूरा लाभ लेने के लिए जरूरी है कि आप उसके नियम, शर्तों और टर्म्‍स को भलीभांती पॉलिसी लेते वक्‍त समझें.अगर आपने ये काम नहीं किया तो क्‍लेम लेते वक्‍त आप खुद को ठगा सा महसूस करेंगे. 

हेल्‍थ इंश्‍योरेंस में ऐसा ही एक टर्म है इंश्योरेंस डिडक्टिबल इसका इस्‍तेमाल स्‍वास्‍थ्‍य बीमा पॉलिसी में खूब होता है. साथ ही डिडक्टिबल पॉलिसीधारक को खूब चक्‍करधिन्‍नी भी बनाते हैं.

आइये, सबसे पहले जानते हैं कि आखिर ये डिडक्टिबल आखिर क्‍या बला है.

सरल शब्‍दों में कहें तो डिडक्टिबल वह निश्चित राशि है, जिसका भुगतान बीमाधारक को पॉलिसी लाभ शुरू होने से पहले अपनी जेब से करना होता है. बीमा कंपनी आपके द्वारा क्‍लेम की गई राशि का भुगतान तभी करने के लिए उत्तरदायी होती है, जब वह डिडक्टिबल से ज्‍यादा हो.

आप इसे ऐसे समझिए. पॉलिसी का डिडक्टिबल 30,000 रुपये है और बीमाधारक ने 40,000 रुपये का क्‍लेम किया है. ऐसे में बीमा कंपनी केवल 10,000 रुपये का भुगतान करेगी और 30 हजार रुपये बीमाधारक को अपनी जेब से देने पड़ जाएंगे. 

वहीं, अगर क्‍लेम राशि 20 हजार रुपये है तो बीमा कंपनी एक भी पैसे का भुगतान नहीं करेगी क्‍योंकि यह डिडक्टिबल से यानी 30,000 रुपये से कम है.

दो तरह के होते हैं डिडक्टिबल्स

ये दो तरह के होते हैं. अनिवार्य कटौती और स्‍वैच्छिक कटौती. अनिवार्य कटौती योग्य या डिडक्टिबल्स वह निश्चित राशि है, जिसका भुगतान पॉलिसीधारक को क्लेम दायर करने से पहले करना होता है.यह अनिवार्य होता है और इसकी सीमा बीमा कंपनी तय करती है. इसलिए पॉलिसी लेते वक्‍त यह जरूर जान लें कि कंपनी ने डिडक्टिबल कितना तय कर रखा है.

प्रीमियम राशि को कम करने के लिए बीमा कंपनियां पॉलिसीधारक को स्वेच्छा से कटौती योग्य राशि चुनने का विकल्प देती हैं. पॉलिसीधारक वित्तीय सामर्थ्य और चिकित्सा खर्चों के आधार पर उस राशि का चुनाव कर सकता है, जिसका भुगतान उसे करना होगा. अगर पॉलिसीधारक कटौती योग्‍य ज्‍यादा राशि का विकल्‍प चुनता है तो उसे कम प्रीमियम देना होता है.

डिडक्टिबल्स किसे फायदा? 

डिडक्टिबल्स बीमा कंपनियों और पॉलिसीधारक, दोनों को ही कुछ न कुछ लाभ देते हैं. दरअसल, बीमाधारक एक सीमा तक खर्च होने के बाद ही खर्च का क्‍लेम कर सकता है. इससे बीमा कंपनियों को छोटे-छोटे खर्च के लिए लोगों को पैसा नहीं देना पड़ता है. इससे उनका अच्‍छा खासा पैसा और मेहनत बच जाती है. पॉलिसीधारक भी इस क्‍लॉज के कारण छोटे क्‍लेम नहीं करता. इससे उसे नो क्‍लेम बोनस का फायदा मिलने की उम्‍मीद बढ़ जाती है।

दुनिया में कई ऐसे देश जहां फ्री में होती है स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाई, विदेशी बच्चों को भी दी जाती है मुफ्त शिक्षा


नई दिल्ली :: भारत में बच्चों को एजुकेशन दिलवाना दिन-पर-दिन महंगा होता जा रहा है. वहीं, दुनिया में ऐसे कई देश हैं, जहां बच्‍चों को फ्री एजुकेशन दी जाती है या बहुत ही कम खर्च आता है।आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही देशों के बारे में जहां स्‍टूडेंट्स को बिना पैसे खर्च किए पूरी शिक्षा मिलती है.

जर्मनी

जर्मनी एक ऐसा देश है जहां न सिर्फ स्‍थानीय स्टूडेंट्स, बल्कि विदेशी बच्चों को भी फ्री में एजुकेशन दी जाती है. यहां सरकारी यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट्स से ट्यूशन फीस के नाम पर भी फीस नहीं ली जाती है।

हालांकि, कुछ विश्वविद्यालय 11,000 रुपये तक एडमिनिस्ट्रेशन फीस लेते हैं. इस देश में लगभग 300 गवर्नमेंट यूनिवर्सिटीज हैं, जो 1000 से ज्यादा स्टडी प्रोग्राम ऑफर करते हैं।

नॉर्वे

नॉर्वे में भी स्‍थानीय और विदेशी बच्चों को मुफ्त शिक्षा जी जाती है है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यहां स्कूल एजुकेशन से लेकर डॉक्टरेट तक की पढ़ाई के लिए स्टूडेंट्स को एक रुप फीस नहीं भरनी होती है. हालांकि, यहां पढ़ने आने वाले स्टूडेंट्स को इस देश की भाषा आनी जरूरी है. यहां गवर्नमेंट यूनिवर्सिटीज में विदेशी स्‍टूडेंट्स को पर सेमेस्टर 30-60 यूरो फीस लगती है. यह फीस स्‍टूडेंट्स यूनियन के लिए ली जाती है, जिसके बदले हेल्थ, काउंसलिंग, स्पोर्ट्स एक्टिविटीज और कैंप्स फैसिलिटी मिलती है.

स्वीडन

स्वीडन अपनी बेहतरीन शिक्षा शैली के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. फ्री एजुकेशन दिया जाता है, लेकिन केवल यूरोपीय यूनियन/यूरोपीय इकोनॉमिक एरिया और स्वीडन के स्थाई निवासी स्‍टूडेंट्स के लिए ही यह सुविधा है. हालांकि, विदेशी छात्रों को ट्यूशन फीस बहुत कम देनी पड़ती है. हर साल लाखों स्‍टूडेंट्स यहां पढ़ाई करने के लिए जाते हैं. वहीं, विदेशी छात्रों के लिए स्वीडन में पीएचडी की पढ़ाई बिल्कुल फ्री है.

फिनलैंड

फिनलैंड भी छात्रों को मुफ्त शिक्षा देता है. यहां छात्रों को बैचलर्स और मास्टर्स में कोई फीस नहीं देनी पड़ती. पीएचडी की पढ़ाई करने वालों मुफ्त शिक्षा के साथ ही सरकार सैलरी भी देती है. यहां यूरोपीयन स्‍टूडेंट्स के अलावा बाहर के स्टूडेंट्स स्वीडीश या फिनिश लैंग्वेज में कोई कोर्स करते हैं तो उन्‍हें किसी तरह की फीस नहीं देनी पड़ती है.

हेल्थ टिप्स:शरीर में ऑक्सीजन लेवल बढ़ाने के लिए खाएं ये सुपरफ़ूड जो आपके ऑक्सीजन लेवल बढ़ाने में करेंगे मदद

दिल्ली:- शरीर के लिए ऑक्सीजन कितना जरुरी है ये तो हम सभी जानते हैं, ऑक्सीजन के बिना मनुष्य का जिन्दा रहना मुश्किल है। मानव शरीर के समुचित कार्य के लिए ऑक्सीजन आवश्यक है। इसके बिना आप जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।

शरीर में हमेशा ऑक्सीजन का एक ऑप्टिमम लेवल जरुरी होता है। इसमें कमी आने पर शरीर को बहुत नुकसान हो सकती है और व्यक्ति की जान भी जा सकती है। मस्तिष्क ऑक्सीजन के स्तर में परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होता है। 

ऑक्सीजन संज्ञानात्मक कार्य, एकाग्रता और समग्र मस्तिष्क स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। ऑक्सीजन की कमी से संज्ञानात्मक हानि और अन्य तंत्रिका संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। लाल रक्त कोशिकाओं द्वारा रक्तप्रवाह में ऑक्सीजन का परिवहन किया जाता है, और इसकी उपलब्धता हृदय स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करता है कि अंगों और ऊतकों को पर्याप्त ऑक्सीजन की आपूर्ति मिले।

पत्तेदार साग

पालक, केल और अन्य पत्तेदार साग जैसे खाद्य पदार्थ एंटीऑक्सिडेंट, विटामिन और खनिजों से भरपूर होते हैं। उनमें विटामिन सी जैसे पोषक तत्व होते हैं, जो प्रतिरक्षा कार्य का समर्थन करते हैं, और विटामिन के, जो रक्त के थक्के और हड्डियों के स्वास्थ्य में भूमिका निभाते हैं।

जामुन

ब्लूबेरी, स्ट्रॉबेरी और रास्पबेरी जैसे जामुन एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं। एंटीऑक्सिडेंट समग्र स्वास्थ्य का समर्थन करते हुए कोशिकाओं को ऑक्सीडेटिव तनाव और सूजन से बचाने में मदद करते हैं।

फैटी मछली

सैल्मन, मैकेरल और ट्राउट जैसी वसायुक्त मछलियाँ ओमेगा-3 फैटी एसिड के उत्कृष्ट स्रोत हैं। ओमेगा-3एस में सूजन-रोधी गुण होते हैं और यह हृदय संबंधी स्वास्थ्य में योगदान दे सकता है। अच्छा हृदय स्वास्थ्य रक्तप्रवाह में कुशल ऑक्सीजन परिवहन का समर्थन करता है।

दाने और बीज

बादाम, अखरोट और अलसी जैसे मेवे और बीज, विटामिन ई और मैग्नीशियम सहित विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व प्रदान करते हैं। विटामिन ई एक एंटीऑक्सीडेंट है, जबकि मैग्नीशियम श्वसन मांसपेशियों सहित मांसपेशियों और तंत्रिका कार्यों का समर्थन करता है।

खट्टे फल

संतरे, अंगूर और नींबू जैसे खट्टे फल विटामिन सी से भरपूर होते हैं। विटामिन सी अपने प्रतिरक्षा-बढ़ाने वाले गुणों के लिए जाना जाता है और श्वसन प्रणाली के स्वास्थ्य का समर्थन करने में मदद कर सकता है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि उचित ऑक्सीजन स्तर को बनाए रखने में मुख्य रूप से समग्र जीवनशैली विकल्प शामिल हैं, जिसमें नियमित व्यायाम, उचित हाइड्रेशन और धूम्रपान से बचना या पर्यावरण प्रदूषकों के संपर्क में आना शामिल है। इसके अतिरिक्त, फलों, सब्जियों, साबुत अनाज और कम वसा वाले प्रोटीन से भरपूर आहार समग्र स्वास्थ्य और कल्याण में योगदान देता है।

दिल्ली: वर्ल्ड कप के बीच दु:खद खबर,पूर्व कप्तान बिशन सिंह बेदी का निधन,वर्ल्‍डकप के मैच में 8 ओवर मेडल फेंककर किया था कमाल


नई दिल्ली :- भारतीय टीम के महान स्पिनरों में से एक बिशन सिंह बेदी का सोमवार को 77 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. बाएं हाथ के स्पिनर बिशन की सांप की तरह बलखाती एक समय विपक्षी बल्‍लेबाजों के लिए काल हुआ करती थी।

यह उस समय की बात थी जब बिशन बेदी, चंद्रेशखर, ईरापल्‍ली प्रसन्‍नाा और वेंकटराघवन की स्पिन चौकड़ी का विश्‍व क्रिकेट में राह हुआ करता था, भारतीय टीम के कप्‍तान बिशन बेदी इस चौकड़ी के फ्रंटलाइन स्पिनर थे।

67 टेस्‍ट में भारत की ओर से 266 विकेट लेने वाले 'बिशन पाजी' कप्‍तान के तौर पर हमेशा अपने प्‍लेयर्स के साथ खड़े रहे. प्‍लेयर्स के हित में जरूरत पड़ने पर वे क्रिकेट प्रशासन के सामने खड़े होने से भी नहीं चूके. शायद यही कारण रहा कि अपने दौर के खिलाड़ि‍यों का काफी सम्‍मान उन्‍हें हासिल रहा उनके नेतृत्‍व में भारतीय टीम ने देश में दिग्‍गज टीमों को तो शिकस्‍त दी ही, विदेशों में भी टीम के प्रदर्शन में सुधार भी इसी दौर में आया।

बेदी सहित भारत की स्पिन चौकड़ी को अपनी फ्लाइट के जरिये विपक्षी बल्‍लेबाजों को छलना बखूबी आता था. विकेट लेने के बाद इन स्पिनरों का जश्‍न मनाने का अंदाज भी अलग होता था. क्रिकेट से संन्‍यास लेने के बाद बिशन ने अपने स्पिन गेंदबाजों को तैयार करने में भी योगदान दिए.

मनिंदर सिंह और मुरली कार्तिक जैसे स्पिनरों ने बेदी के मार्गदर्शन में अपनी खेल कौशल को तराशा. करियर रिकॉर्ड की बात करें तो बेदी ने 67 टेस्‍ट और 10 वनडे भारत की ओर से खेले. टेस्‍ट क्रिकेट में 28.71 के औसत से 266 और वनडे में 48.57 के औसत से सात विकेट उनके नाम पर हैं.टेस्‍ट क्रिकेट में वे 14 बार पारी में पांच या इससे अधिक और एक बार मैच में 10 या इससे अधिक विकेट लेने में सफल रहे.

बेशक बेदी वनडे क्रिकेट ज्‍यादा क्रिकेट नहीं खेले और इस फॉर्मेट के उनके रिकॉर्ड बहुत प्रभावशाली नहीं है लेकिन वर्ल्‍डकप में सबसे कंजूस गेंदबाजी विश्‍लेषण में से एक 'स्पिन के इस सरदार' के नाम पर दर्ज है. 

1975 के वर्ल्‍डकप में ईस्‍ट अफ्रीका के खिलाफ बेदी ने अपने 10 ओवर में 8 मेडन रखते हुए 6 विकेट लेकर एक विकेट लिया था. वनडे में 12 ओवर के स्‍पैल में 8 ओवर मेडन रखना बेदी जैसे करिश्‍माई स्पिनर के बूते की ही बात थी.

1976-77 के बहुचर्चित वेसलीन कांड में इंग्‍लैंड जैसी टीम के खिलाफ शिकायत दर्ज करना बिशन सिंह बेदी जैसे खिलाड़ी के बूते की ही बात थी. भारत के दौरे पर आई उस इंग्‍लैंड टीम में तेज गेंदबाज जॉन लीवर शामिल थे. इस टेस्‍ट सीरीज के तहत मद्रास (अब चेन्‍नई) में लीवर हैडबेंड लगाकर मैदान में उतरे थे. 

मैच में अपनी स्विंग से लीवर ने भारतीय बैटरों को खासा परेशान किया था. लीवर की इस कामयाबी के बीच बेदी ने सनसनीखेज आरोप लगाया था कि लीवर में अपने हैडबेंड में वेसलीन लगाया था, इससे उन्‍हें गेंद को ज्‍यादा स्विंग कराने और विकेट लेने में मदद मिली. 

इंग्‍लैंड उस समय विश्‍व क्रि केट की बड़ी ताकत हुआ करता था, ऐसे में बेदी के आरोपों को ज्‍यादा गंभीरता से नहीं लिया गया. हालांकि बाद में विश्‍व क्रिकेट में आई बॉल टेम्‍परिंग की घटनाओं ने इस बात की पुष्टि की कि 'कृत्रिम कारणों' से गेंद को अधिक स्विंग कराया जा सकता है. भारतीय क्रिकेट में बाद में बेदी के स्‍तर और उसके ऊपर के कई खिलाड़ी हुए लेकिन अपने प्‍लेयर्स के हित में बहादुरी से खड़े होने उनके जैसे टीम मैन बिरले ही होंगे।

त्यौहारी मौसम के बीच बारिश बनी बड़ी बाधा, कोलकाता-त्रिपुरा तक भारी वर्षा

नई दिल्ली : त्यौहारी मौसम के बीच बारिश बड़ी बाधा बन कर आई है। कई राज्यों में हल्की बूंदाबांदी हो रही है। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में आज भारी बारिश हुई।

भारत मौसम विज्ञान विभाग आईएमडी ने बताया कि त्रिपुरा में 24 अक्टूबर को अलग-अलग स्थानों पर भारी बारिश होने की संभावना है। इसको लेकर IMD ने ऑरेंज अलर्ट जारी कर दिया है।

चक्रवात 'तेज' से बिगड़ेगा मौसम का माहौल

वहीं, चक्रवात 'तेज' के 24 अक्टूबर (मंगलवार) तक अल गैदा के करीब यमन तट को पार करने की संभावना है। अरब सागर के दक्षिण-पश्चिम में बन रहे चक्रवात तेज के उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ने की बहुत संभावना है। इस बीच आईएमडी भुवनेश्वर के वरिष्ठ वैज्ञानिक उमा शंकर दास ने बताया कि 'रविवार का डीप डीप्रेशन जो पूर्वोत्तर दिशा में 13 किमी/घंटा की गति से आगे बढ़ा है, अगले 6 घंटों में इसके अत्यधिक चक्रवाती तूफान में तब्दील होने की संभावना है।

आज शाम तक समुद्र की स्थिति बहुत खराब हो जाएगी और कल यानी मंगलवार से समुद्र की स्थिति और खराब हो जाएगी। आईएमडी ने मछुआरों को 25 अक्टूबर तक पश्चिम मध्य बंगाल की खाड़ी और 26 अक्टूबर तक उत्तरी बंगाल की खाड़ी में न जाने की सलाह दी है। 

उमा शंकर दास ने आगे बताया कि यह समय धान की कटाई का होता है और इसलिए लोगों को तेजी और सुरक्षित के साथ धान काटने और उन्हें रखने की भी सलाह दी है।

तीन दिनों में बांग्लादेश और आसपास की ओर बढ़ेगा 'तेज'

मौसम विभाग के मुताबिक, अगले तीन दिनों के दौरान बांग्लादेश और आसपास के पश्चिम बंगाल तटों की ओर उत्तर-उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ने की संभावना है। इससे पहले आईएमडी ने चेतवानी दी कि अरब सागर के ऊपर अत्यंत भीषण चक्रवाती तूफान 'तेज'का आगमन हुआ है। इससे बंगाल की खाड़ी के ऊपर डिप्रेशन बना हुआ है। 

पश्चिम मध्य और उससे सटे दक्षिण पश्चिम अरब के ऊपर अत्यंत गंभीर चक्रवाती तूफान तेज एक अत्यंत गंभीर चक्रवाती तूफान में बदल गया है।

दुखद : वाघ बकरी चाय के मालिक पराग देसाई का निधन, मॉर्निंग वॉक के दौरान आवारा कुत्तों ने ली जान


नई दिल्ली :- वाघ बकरी चाय समूह के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर पराग देसाई का निधन हो गया है। वह 50 साल के थे। 15 अक्टूबर को मॉर्निंग वॉक पर निकले पराग देसाई पर स्ट्रीट डॉग्स ने हमला कर दिया था।

खुद को डॉग अटैक से बचाने में वह फिसलकर गिर गए थे और उन्हें ब्रेन हेमरेज हो गया था। इलाज के दौरान रविवार सुबह अहमदाबाद में उनका निधन हुआ है। 

सूत्रों के मुताबिक, पराग देसाई इस्कॉन अम्बली रोड पर मॉर्निंग वॉक के दौरान डॉग अटैक में घायल हुए थे। गिरने के बाद उनके सिर में गंभीर चोट आई थीं। उन्हें तत्काल शेल्बी हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया था। इसके बाद उन्हें सर्जरी के लिए जायडस हॉस्पिटल में शिफ्ट किया गया, जहां 22 अक्टूबर को उनका निधन हो गया। 

पराग देसाई, रसेस देसाई के बेटे हैं, जो कि वाघ बकरी ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। वाघ बकरी चाय में पराग सेल्स, मार्केटिंग और एक्सपोर्ट्स का काम देखते थे।

न्यूयार्क से किया था एमबीए

पराग देसाई ने न्यूयार्क स्थित लॉन आइलैंड यूनिवर्सिटी से एमबीए की पढ़ाई पूरी किए थे। वह अपने परिवार की चौथी पीढ़ी थे जो चाय के कारोबार से जुड़े थे। उनकी अगुवाई में कंपनी ने कई नए मुकाम को छूने में सफल रही है। बिजनेस के साथ-साथ पराग देसाई की गहरी दिलचस्पी वाइल्डलाइफ में थी। 

1995 में कंपनी को किया था ज्वाइन

वाघ बकरी चाय से पराग देसाई 1995 में जुड़े थे। तब कंपनी का कुल कारोबार 100 करोड़ रुपये से भी कम था। लेकिन आज सालाना टर्न ओवर 2000 करोड़ रुपये को पार कर गया है। 

भारत के 24 राज्यों के साथ-साथ दुनिया के 60 देशों वाघ बकरी चाय को एक्सपोर्ट किया जा रहा है। ये देसाई का ही प्लान था जिसकी वजह से कंपनी की ब्रांडिंग मजबूत हुई।