पुण्यतिथि पर विशेष : मौत के पहले पत्नी की याद में गाना चाहते थे , राज कपूर ने 'ये रात भीगी-भीगी' गाना का ऑफर दिया तो रोने लगे थे मन्ना डे*
नयी दिल्ली : 8 जून 2013 को, चेस्ट इन्फेक्शन के कारण मन्ना डे को बेंगलुरु के एक अस्पताल में आईसीयू में भर्ती कराया गया था। उनके स्वास्थ्य में धीरे-धीरे सुधार हुआ और लगभग एक महीने बाद डॉक्टरों ने उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट से हटा दिया। बाद में, उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.
मन्ना डे की जिंदगी में सिर्फ कुछ ही महीने बचे थे लेकिन अभी उनकी एक ख्वाहिश पूरी होने को बाकी थी। उनका सपना था कि वो दिवंगत पत्नी सुलोचना की याद में एक प्रेम गीत रिकाॅर्ड कर सकें।
उनके एक करीबी ने बताया था कि मन्ना डे अपनी आखिरी सांस तक गाना चाहते थे। वो खराब स्वास्थ्य के बावजूद लंबे समय के बाद फिर से गाने के लिए उत्सुक थे। वो जिंदगी का आखिरी गाना पत्नी को सपर्मित करना चाहते थे।
हालांकि संगीत की दुनिया के इस नायाब हीरे की आखिरी इच्छा अधूरी रह गई। अक्टूबर 2013 के पहले सप्ताह में मन्ना डे को फिर से अस्पताल में भर्ती कराया गया, और 24 अक्टूबर को 94 साल की उम्र में कार्डियक अरेस्ट से उनकी मौत हो गई।
मन्ना डे वो थे, जिन्होंने इंडिया सिनेमा में संगीत का एक नया अध्याय जोड़ा था। पद्मश्री, पद्म भूषण और दादा साहेब फाल्के अवाॅर्ड से नवाजे गए मन्ना दा की आज 10वीं पुण्यतिथि है। 5 दशक के करियर में मन्ना डे ने कई उतार-चढ़ाव देखे लेकिन संगीत की दुनिया में आज भी मन्ना डे से मंझा हुआ कलाकार कोई नहीं।आइए जानते हैं आला दर्जे का सिंगर बनने के पीछा कैसा था मन्ना डे का संघर्ष
मन्ना डे के चाचा थे उनके पहले गुरु
मन्ना डे का जन्म 1 मई 1919 को कलकत्ता में एक बंगाली परिवार में हुआ था। बचपन से ही मन्ना डे मां-बाप से ज्यादा अपने चाचा संगीताचार्य कृष्ण चंद्र डे से प्रेरित रहते थे। उनके चाचा शास्त्रीय संगीत में पारंगत थे और इसी वजह से मन्ना डे का भी झुकाव संगीत की तरफ बचपन से था।
मन्ना डे के पिताजी का सपना था कि वो वकील बने क्योंकि घर में डॉक्टर भी थे और इंजीनियर भी। मगर इधर मन्ना डे पहले से ही संगीत में पूरी तरह से रम चुके थे। कॉलेज के दिनों से ही मन्ना डे अपने दोस्तों के साथ क्लास के पीछे के बेंच पर बैठ जाते थे। फिर बेंच पे खूब ताल दे देकर गाते थे।
इस बारे में जब कॉलेज के प्रिंसिपल को पता चला तो डांटने के बजाय उन्होंने उन लोगों को बहुत सपोर्ट किय। मन्ना डे के कोलकाता घर पर संगीत के सारे महारथी आते थे। उनके चाचा उन्हें बुलाया करते थे। रात-रात भर गाना बजाना हुआ करता था। उसी कमरे में उस्ताद साहब आते थे। यही वजह है कि बचपन से ही मन्ना डे को संगीत से लगाव था।
एक मात्र जिस फिल्म को गांधी जी ने देखा, उसी फिल्म से बतौर सोलो सिंगर मन्ना डे ने की थी शुरुआत
मन्ना डे ने अपने चाचा और उस्ताद दबीर खान से संगीत की शिक्षा ली थी। 1942 में पढ़ाई पूरी करने के बाद मन्ना डे अपने चाचा के साथ मुंबई आ गए। संगीत की अच्छी समझ होने के कारण उन्होंने फिल्मों में असिस्टेंट म्यूजिक डायरेक्टर के तौर पर काम करना शुरू किया। गायक के तौर पर मन्ना डे को सबसे बड़ा ब्रेक 1942 में रिलीज हुई फिल्म तमन्ना से मिला। इस फिल्म के गाने को मन्ना डे ने सुरैया के साथ मिलकर गाया।
गाने के बोल थे- जागो आई उषा पोंची बोले जागो। ये गाना उस समय का बड़ा हिट रहा। इसके बाद तो मन्ना डे की संगीत की गाड़ी चल पड़ी थी। 1943 में फिल्म राम राज्य रिलीज हुई थी, जिसमें मन्ना डे ने बतौर सोलो सिंगर एक गाने को अपनी आवाज दी थी। दिलचस्प बात ये है कि राम राज्य एकमात्र ऐसी फिल्म थी, जिसे महात्मा गांधी ने देखा था।
मन्ना डे को पद्मश्री, पद्म भूषण और दादा साहेब फाल्के से सम्मानित किया गया था।
टाइपकास्ट का हुए शिकार, स्पेशलिस्ट होना वरदान नहीं श्राप साबित हुआ
मन्ना डे को गायकी से बहुत ही ज्यादा लगाव था। संगीत उनके लिए श्रद्धा थी। यही वजह है कि जब भी किसी फिल्म निर्माता को फिल्म में शास्त्रीय संगीत गवाना होता, तो वो सिर्फ मन्ना डे को ही अप्रोच करते। लेकिन हमेशा ही ये बात चर्चा का विषय रही कि इतने शानदार गायकी के बाद भी मन्ना डे कभी ए-लिस्टर सिंगर नहीं बन सके।
दौर ऐसा भी था कि रफी, किशोर और मुकेश जैसे लीजेंडरी सिंगर की भी पहली पसंद मन्ना डे ही थे। इतनी ही नहीं, रफी साहब ने एक बार कहा था कि पूरी दुनिया मेरे गाने को सुनती है और मुझे बस सुकून मन्ना डे के ही गाने से मिलता है।
कठिन से कठिन गीत को मन्ना डे इतनी सहजता से गाते थे कि लगता ही नहीं था कि उन्होंने कोई एक्स्ट्रा एफर्ट लिया हो। शास्त्रीय संगीत में पारंगत होने के कारण ही मन्ना डे भी टाइपकास्ट का शिकार हुए और उनकी गायकी भी शास्त्रीय संगीत तक सिमट कर रह गई। इसी वजह से हल्के-फुल्के गानों के लिए उन्हें कंसीडर करना बंद ही कर दिया गया। जबकि उनका गाया ‘ऐ भाई जरा देख के चलो’ जैसा गाना बंपर हिट भी रहा था।
ये रात भीगी भीगी गाने के लिए राज कपूर ने की थी मन्ना डे के लिए सिफारिश
मन्ना डे सिर्फ टाइप कास्ट का ही शिकार नहीं हुए थे बल्कि ऐसा भी दौर था जब उनकी गायकी का भी अपमान किया गया। किस्सा फिल्म चोरी चोरी के गीत ‘ये रात भीगीभीगी’ का है। इस गीत के लिए फिल्म निर्माता ए.वी. मय्यपन चेट्टियार लता के साथ मुकेश की आवाज चाहते थे। वो खासतौर पर इस गीत की रिकॉर्डिंग के लिए मद्रास से मुंबई आए थे।
वहीं संगीतकार शंकर जयकिशन की जोड़ी इस गीत को लता के संग मन्ना डे से गवाना चाहती थी, इसलिए रिकॉडिंग रूम में मुकेश को न पाकर निर्माता मय्यपन तुरंत शंकर के पास गए और पूछा कि मुकेश कहां हैं? शंकर ने कहा कि इस गाने के लिए मन्ना डे परफेक्ट हैं, लेकिन वह नहीं माने तब राजकपूर ने निर्माता को समझाया और कहा कि यह गाना मन्ना ही रिकॉर्ड करेंगे। गाने की रिकॉर्डिंग हुई और गाना सुनकर मय्यपन के मुंह से भी यह निकल पड़ा कि उन्हें गर्व होगा, अगर यह गाना उनकी फिल्म से जुड़ेगा।
मन्ना डे ने एक इंटरव्यू में इस बात का खुलासा किया था, जब राज कपूर ने मुझे इस गाने के चुना तो मैं खुशी के मारे रोने लगा था। वो किसी दूसरी सिंगर की आवाज में ये गाना रिकॉर्ड करवा सकते थे, लेकिन इसके लिए उन्होंने सिर्फ मुझे चुना।
किशोर कुमार के साथ गाने से जब मन्ना डे ने कर दिया था इन्कार
बात है उस दौर की जब फिल्म पड़ोसन रिलीज हो गई थी। 1968 की इस फिल्म का एक गाना एक चतुर नार बहुत फेमस हुआ। इस गाने का आवाज दी थी, मन्ना डे, किशोर कुमार और महमूद ने। शुरुआत में इस गाने के लिए मन्ना डे ने मना कर दिया था। वजह थी कि ये गाना किशोर कुमार और महमूद पर फिल्माया गया था। साथ ही इस गाने में बीच-बीच में कुछ मजाकिया अंदाज वाले शब्द डाले गए थे, जिसे गाने के बीच में कहना था।
एक फ्रेम में किशोर कुमार के साथ मन्ना डे।
जब ये बात मन्ना डे को बताई गई, तो वो इस बात के लिए राजी नहीं हुए और इधर किशोर कुमार मजाकिया अंदाज वाले शब्द के लिए राजी हो गए। मन्ना डे का कहना था कि वह संगीत के साथ मजाक नहीं कर सकते। ऐसे में उनकी बात मान ली गई और गाने की रिकॉर्डिंग शुरू हुई। गाने की शुरुआत में तो सब कुछ मन्ना डे के मुताबिक ही हुआ, लेकिन जब बाद में किशोर कुमार ने मजाकिया अंदाज वाला गाना शुरू किया तो मन्ना डे चुप हो गए। उन्होंने पूछा कि ये कौन सा राग है।
इस पर महमूद ने उन्हें समझाया कि फिल्म में सीन के लिए ऐसा करना पड़ेगा इसलिए किशोर दा ने इस तरीके से गाना गाया है। मन्ना डे फिर भी राजी नहीं हुए और उन्होंने किसी तरह अपने हिस्से का गाना गाया लेकिन उन्होंने उन शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया, जो उन्हें पसंद नहीं थे।
जब पत्नी ने दिखाई राह तब मन्ना डे ने की पंडित भीमसेन के साथ जुगलबंदी
एक बार पंडित भीमसेन जोशी के साथ मन्ना डे को गाने का मौका मिला। उनका नाम सुनते ही वो इतने नर्वस हो गए कि उन्होंने, पंडित भीमसेन के साथ गाने के लिए मना कर दिया। दरअसल, जो गाना उन्हें पंडित भीमसेन के साथ गाना था, उसने मन्ना डे को उन्हें हराना था। ये बात पता चलते ही उन्होंने गाने के लिए साफ मना कर दिया।
जब वो उस रात घर गए और पत्नी को बताया कि उन्हें पंडित भीमसेन के साथ गाने का मौका मिला था लेकिन उन्होंने मना कर दिया। इस बात उनकी पत्नी हैरान रह गई और कहीं कि आप इतना बड़ा मौका कैसे खो सकते हैं। उन्होंने कहा कि पंडित भीमसेन जैसी महारथी के साथ मैं कैसे गाना गा सकता हूं। इसके बाद उनकी पत्नी ने कहा कि आप भी शास्त्रीय संगीत में उम्दा हैं और उनके साथ गा सकते हैं। साथ ही इस गाने के लिए शंकर जयकिशन ने भी बहुत समझाया जिसके बाद मन्ना डे गाने के लिए मान गए।
अगले दिन जब वो रिकॉर्डिंग स्टूडियो पहुंचे तो पंडित भीमसेन देखते ही वो थर-थर कांपने लगें। आखिरकार किसी तरह गाने की रिकॉर्डिंग पूरी हुई और पंडित भीमसेन ने तारीफ करते हुए कहा कि ‘अरे भाई फिल्म में ही हराना है, असल में नहीं। तुम तो कॉम्प्टीटर बन गए।
मन्ना डे और राजेश खन्ना की जोड़ी रही बेमिसाल
जिदंगी कैसी है पहेली हाय। इस गाने को मन्ना दा ने ही अपनी आवाज दी थी। आनंद फिल्म का ये गाना पहले फिल्म के बैकग्राउंड में बजने वाला था, लेकिन जब इस गाने को सुपरस्टार राजेश खन्ना ने सुना तो वो इसे सुनते ही मंत्रमुग्ध हो गए। इसके बाद राजेश खन्ना ने प्रोड्यूसर से कहा कि इस गाने का उन पर पिक्चराइज किया जाए ना कि बैकग्राउंड में। प्रोड्यूसर ने उनकी ये बात मान ली और बाद में ये गाना उन्हीं पर शूट हुआ।
इधर मन्ना डे भी राजेश खन्ना के एक्टिंग के दीवाने थे। वो कहते थे कि जब राजेश खन्ना मेरे गानों की लिप सिंक करते हैं तो ऐसा लगता है कि मानो वो खुद ही गा रहे हों। आनंद फिल्म ने मन्ना डे के साथ-साथ राजेश खन्ना को भी करियर में नई ऊंचाई दी थी।
जब जेल जाते-जाते बच गए मन्ना डे
किस्सा है नवाबों के शहर लखनऊ का। शहर के चारबाग स्टेशन पर एक संगीत समारोह का आयोजन होना था। जिसमें मन्ना डे, टुनटुन जैसी हस्तियां शामिल होने वाली थी। इस शो के जमकर टिकट भी बिके थे। जब एक तरफ वक्त आया आयोजन शुरू होने को तो वहीं दूसरी तरफ आयोजक ही रफूचक्कर हो गए। जब ये बात लोगों को पता चली तो वो इस बात से बहुत नाराज हो गए और मन्ना डे पर शिकायत दर्ज करा दी। साथ ही उन्हें जेल भेजे जाने की डिमांड की गई। हालांकि कुछ समय बाद वो भागे हुए कार्यकर्ता पकड़ लिए गए और मन्ना डे को राहत मिली।
90 के दशक में संगीत को कहा अलविदा
सिंगिंग करियर में मन्ना डे ने कई भाषाओं में बेमिसाल गाने गाए हैं। लेकिन 90 के दशक में उन्होंने म्यूजिक इंडस्ट्री से पूरी तरह से दूरी बना ली थी। साल 1991 में आई फिल्म प्रहार के गाने 'हमारी मुट्ठी में' गाने को उन्होंने अंतिम बार अपनी आवाज दी थी।
Oct 24 2023, 21:55