जम्मू-कश्मीर में चुनाव कब होंगे और राज्य का दर्जा कब वापस मिलेगा?', SC के सवाल पर केंद्र ने दिया ये जवाब, पढ़िए, पूरी खबर
जम्मू: जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को हटाने के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सर्वोच्च न्यायालय में निरंतर सुनवाई चल रही है। 29 अगस्त को हुई सुनवाई के चलते चीफ जस्टिस ने केंद्र सरकार से पूछा था कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव कब होंगे तथा राज्य का दर्जा कब वापस मिलेगा? इस पर केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को जवाब दिया है। केंद्र सरकार ने कहा, ''हम किसी भी वक़्त जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने को तैयार हैं। चुनाव कब हों ये राज्य चुनाव आयोग तथा केंद्रीय चुनाव आयोग तय करेगा। केंद्र ने कहा है कि मतदाता सूची अपडेट हो रही है। थोड़ा सा काम बचा है। पहली बार 3 स्तरीय पंचायती राज सिस्टम जम्मू कश्मीर मे लागू किया गया है। पहला चुनाव पंचायत का होगा। केंद्र के द्वारा कहा गया है कि प्रदेश में पत्थरबाजी की घटनाओं में 97.2 प्रतिशत की कमी आई है।
एसजी तुषार मेहता ने कहा है कि आतंकवादी घटनाओं में 45.2 प्रतिशत की कमी आई है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2018 की स्थिति की तुलना वर्ष 2023 की स्थिति से कर रहा हूं। घुसपैठ के मामलों में भी 90.2 प्रतिशत की कमी आई है। धारा 370 को हटाए जाने के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर 12वें दिन सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के चलते एसजी तुषार मेहता ने दलीलें आगे बढ़ाईं थीं। इसमें उन्होंने कहा था कि हम तीन मुख्य बिंदुओं पर दलील देंगे। इनमें पहला- अनुच्छेद 370 पर हमारी व्याख्या सही है।
दूसरा- राज्य पुनर्गठन अधिनियम तथा तीसरा अनुच्छेद 356 लागू होने पर विधायका की शक्ति के मापदंडों पर। सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि संविधान निर्माताओं ने कभी भी अनुच्छेद 370 को स्थायी तौर पर लाने का इरादा नहीं किया था। उन्होंने कहा कि सीमावर्ती राज्य होने के कारण विशेष राज्य का दर्जा बहाल रखने की दलील भी लचर है क्योंकि जम्मू कश्मीर इकलौता सीमावर्ती प्रदेश नहीं है।
सरकार ने बताया जस्टिस संजय किशन कौल ने पूछा कि यदि आप लद्दाख को अलग किए बिना पूरा ही केंद्र शासित प्रदेश बनाते तो क्या प्रभाव होता? एसजी मेहता ने कहा कि पहले अलग करना अनिवार्य और अपरिहार्य है। असम और त्रिपुरा को भी पहले अलग कर केंद्र शासित प्रदेश ही बनाया गया था. एक राज्य को केंद्र शासित प्रदेश नहीं घोषित किया जा सकता. CJI ने कहा कि चंडीगढ़ को पंजाब से ही विशिष्ट रूप से अलग कर केंद्रशासित बनाकर दोनों प्रदेशों की राजधानी बनाया गया. वहीं, पहले की सुनवाई के चलते अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा था कि इतिहास में गए बिना इस मुद्दे को समझना मुश्किल होगा.
इस के चलते उन्होंने 1950 में हुए चुनाव में पूरण लाल लखनपाल को चुनाव लड़ने से रोकने की घटना का जिक्र भी किया कि आखिर क्यों उनके चुनाव लडने की राह में रोड़े अटके. रमणी ने कहा कि जम्मू कश्मीर के मायनों में राजनीतिक एकता एवं संवैधानिक एकता में कोई अंतर नहीं है. 370 अस्थाई इंतजाम था. वो इंतजाम अब अंत पर पहुंच गया है.
जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि जब जम्मू कश्मीर की संविधान सभा पूरी व्यवस्था का हिस्सा थी तो आप उसे संविधान के दायरे से बाहर कैसे कह सकते हैं. इस पर एसजी तुषार मेहता ने कहा कि जब जम्मू कश्मीर की संविधान सभा 1957 में उपस्थित थी तो क्या विधान सभा सिफारिश कर सकती थी कि प्रदेश में जनता बुनियादी अधिकार नहीं होंगे?
Sep 01 2023, 12:38