*जीवन में नियमन परमावश्यक: स्वामी चिदंबरानंद सरस्वती*
लखनऊ। ज्ञान हो याकि विज्ञान, लौकिक हो या अध्यात्म; जीवन के हर क्षेत्र में नियमन परम आवश्यक है। नियम पालन के बिना किसी भी विधा या क्षेत्र में सफलता असंभव है।
यह बात यहां जानकीपुरम विस्तार में महा लक्ष्मी लान में चल रही भागवत कथा के तीसरे दिन कथा मर्मज्ञ महामंडलेश्वर स्वामी चिदंबरानंद सरस्वती जी महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत पुराण एक संपूर्ण समाज शास्त्र है। इसमें समाज के प्रत्येक क्षेत्र में आने वाली हर समस्या का समाधान मौजूद है। शर्त है कि हम इसका गहराई से अवगाहन करें। उन्होंने याद दिलाया कि प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन की मान्यता थी कि जहां विज्ञान की सीमा समाप्त होती है वहां से अध्यात्म आरंभ होता है। जिस तरह वैज्ञानिक शोध में नियमों का पालन अनिवार्य शर्त है उसी प्रकार अध्यात्म बिना नियम कुछ हासिल नहीं होता।
परीक्षित -शुकदेव संवाद के माध्यम से श्रीमद्भागवत मानव और मानवता के कल्याण की विशद विवेचना प्रस्तुत करती है।
स्वामी जी ने कहा कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों में धर्म को श्रेष्ठ बताते हुए हमारे ऋषियों ने अर्थ यानी धन के अर्जन को जीवन में आवश्यक बताया है। किन्तु यह धनार्जन धर्माचरण का पालन करते हुए धर्मार्थ करना ही श्रेयस्कर है।
उन्होंने कहा कि धर्म एक बहुआयामी शब्द है और यह पसंद, मज़हब अथवा रिलीजन जैसे शब्दों से कतई भिन्न है। भारतीय संस्कृति सर्वे भवन्तु सुखिन: का उद्घोष करती है और संपूर्ण विश्व को एक परिवार मानती है।हम सबके कल्याण की कामना करते हैं परन्तु समाज अथवा राष्ट्र के नियमों व मान दण्डों की अवहेलना करने वाले को समर्थन नहीं दिया जा सकता। उन्होंने कहा कि कुछ प्राप्ति के धैर्य अनिवार्य शर्त है। विज्ञान में भी किसी नवीन शोध के लिए लंबे अरसे तक धैर्य पूर्वक लगे रहने पर ही फल प्राप्त होता है।
उन्होंने ध्रुव आख्यान के माध्यम से कथा क्रम को बढ़ाते हुए कहा कि यह सार्वभौमिक सत्य है कि किसी के सफल होने पर सबसे अधिक वही लोग गुणगान करने लगते हैं जो शुरुआत में असफलता की कामना करते रहते हैं।
निकटस्थ जनपदों सीतापुर, उन्नाव, हरदोई के अलावा लखनऊ के विभिन्न हिस्सों से आए श्रद्धालुओं के कारण आज कथा में श्रोताओं की भारी संख्या में उपस्थिति रही जिससे आयोजको में काफी उत्साह देखा गया।
Apr 23 2023, 16:30