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दुनिया प्रेम और मंगल की भाषा तब ही सुनती है, जब आपके पास शक्ति हो’, क्या हैं मोहन भागवत के बयान के मायने

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा है कि भारत विश्व का सबसे प्राचीन देश है और उसकी भूमिका ‘बड़े भाई’ की है। भारत विश्व में शांति, सौहार्द और धर्म का प्रचार करने वाला राष्ट्र है। इसके साथ-साथ संघ प्रमुख ने बताया कि भारत को शक्ति संपन्न होना क्यों जरूरी है। मोहन भागवत जयपुर के हरमाडा स्थित रविनाथ आश्रम में आज आयोजित एक समारोह में पहुंचे थे। सम्मान समारोह के बाद उन्होंने लोगों को संबोधित किया।

भारत को शक्ति संपन्न होना क्यों जरूरी?

मोहन भागवत ने कहा कि विश्व को धर्म सिखाना भारत का कर्तव्य है, लेकिन इसके लिए भी शक्ति की आवश्यकता होती है। पाकिस्तान पर हालिया कार्रवाई की चर्चा करते हुए कहा कि भारत किसी से द्वेष नहीं रखता, लेकिन विश्व प्रेम और मंगल की भाषा भी तब ही सुनता है जब आपके पास शक्ति हो। दुनिया आपकी बात तब ही सुनती है जब आपके पास शक्ति हो। यह दुनिया का स्वभाव है। इस स्वभाव को बदला नहीं जा सकता, इसलिए विश्व कल्याण के लिए हमें शक्ति संपन्न होने की आवश्यकता है। हमारी ताकत विश्व ने देखी है।

भागवत ने आगे कहा कि विश्व कल्याण हमारा धर्म है। विशेषकर हिंदू धर्म का तो यह पक्का कर्तव्य है। यह हमारी ऋषि परंपरा रही है, जिसे आज संत समाज आगे बढ़ा रहा है।

ऑपरेशन सिंदूर पर मोहन भागवत का पहला बयान, बोले-सरकार सैन्यबलों का हार्दिक अभिनंदन

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भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव पर राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ की ओर से भी बयान जारी किया गया है।संघ की तरफ से सरसंघचालक मोहन भागवत सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले के नाम से बयान वक्तव्य जारी किया है। संघ ने पाकिस्तान के खिलाफ इस ऑपरेशन को लेकर भारत सरकार के साथ ही सैन्य बलों की तारीफ की है।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने पहलगाम की कायरतापूर्ण आतंकवादी घटना के बाद कहा है कि पाक प्रायोजित आतंकवादियों एवं उनके समर्थक पारितंत्र पर की जा रही निर्णायक कार्रवाई “ऑपरेशन सिंदूर” के लिए भारत सरकार के नेतृत्व और सैन्यबलों का हार्दिक अभिनंदन। हिंदू यात्रियों के नृशंस हत्याकांड में आहत परिवारों को एवं समस्त देश को न्याय दिलाने हेतु हो रही इस कार्रवाई ने समूचे देश के स्वाभिमान एवं हिम्मत को बढ़ाया है।

पाकिस्तानी हमलों की निंदा

आरएसएस ने बयान में कहा गया है कि पाकिस्तानी सेना द्वारा भारत की सीमा पर धार्मिक स्थलों और नागरिक बस्ती क्षेत्र पर किए जा रहे हमलों की हम निंदा करते हैं और जो इन हमलों का शिकार हुए, उनके परिवारों के प्रति हार्दिक संवेदनाएं व्यक्त करते।संघ ने आगे कहा कि हमारा यह भी मानना है कि पाकिस्तान में आतंकियों, उनका ढॉंचा एवं सहयोगी तंत्र पर की जा रही सैनिक कार्रवाई देश की सुरक्षा के लिए आवश्यक एवं अपरिहार्य कदम है। राष्ट्रीय संकट की इस घड़ी में संपूर्ण देश तन-मन-धन से देश की सरकार एवं सैन्य बलों के साथ खड़ा है।

सूचनाओं का पालन करने की अपील

आरएसएस प्रमुख ने कहा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस चुनौतीपूर्ण अवसर पर समस्त देशवासियों से आह्वान करता है कि शासन और प्रशासन द्वारा दी जा रही सभी सूचनाओं का पूर्णतः अनुपालन सुनिश्चित करे। इसके साथ-साथ इस अवसर पर हम सबको अपने नागरिक कर्तव्य का निर्वहन करते हुए यह भी सावधानी रखनी है कि राष्ट्र विरोधी शक्तियों के सामाजिक एकता एवं समरसता को भंग करने के किसी भी षड्यंत्र को सफल न होने दें।

*Mohanbagan's young brigade to stop the Kerala storm*

Sports 

 Kalinga Super Cup 

 Khabar kolkata sports Desk : Junior footballers do not get the chance that way. As a result, you can not prove yourself. This time, the opportunity to satisfy the excitement is Dhiraj Singh, Raj Basfor, Sandeep Malik, Amandeep and a young footballer. In the quarter -finals of the Super Cup, Mohanbagan's team Bhubaneswar went on Thursday to play against Blastus. The only foreign Portugal is Nuno Miguel.

*In the first match of the Super Cup against Kerala Blasters 2-0 by the departure of East Bengal*

Sports

Khabar Kolkata Sports Desk: East Bengal lost 2-0 against Kerala Blasters in the first match of the Super Cup in Bhubaneswar on Sunday. As a result, the red-yellow brigade did not competition this season. East Bengal played in the first match of the tournament as a Super Cup defending champion. But they had to leave in the first match. Kerala Blasters will now face Mohanbagan Super Giant in the quarter -finals of the Super Cup. In the first half, Anwar Ali forgot the first attempt from the pass penalty, but the second time did not miss Blaster Jiminez. In the second half, Noah scored 2-0 in a shot. The ball in the hands of the proletariat could not be stopped. Noah missed the Blasters at the match injury time, but missed it.

Pic: Courtesy by Social media

मुसलमानों के लिए भी खुले आरएसएस के दरवाजे, संघ प्रमुख भागवत ने शाखा में शामिल होने के लिए रखी शर्त

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने 4 दिवसीय दौरे वाराणसी पर हैं। इस दौरान उन्होंने कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया और उन्हें संबोधित किया। इस दौरान संघ प्रमुख का दिया एक बयान काफी चर्चा में है। मोहन भागवत ने मुसलमानों के शाखा में शामिल होने को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि कोई भी मुसलमान शाखा में शामिल हो सकता है बशर्ते वो भारत माता की जय के नारे लगाए और भगवा झंडा की इज्जत करे।

वाराणसी में मोहन भागवत लाजपत नगर कॉलोनी में आरएसएस की एक शाखा पर पहुंचे थे। सत्र के दौरान, एक स्वयंसेवक ने जब संघ प्रमुख से पूछा कि क्या वह अपने पड़ोसियों, जो मुस्लिम हैं, उनको शाखा में आमंत्रित कर सकता है और ला सकता है।

सभी पंथ, समुदाय और जाति के लोगों का संघ में स्वागत-भागवत

स्वयंसेवक के सवाल के जवाब में संघ प्रमुख ने कहा कि भारत माता की जय बोलने वाले और भगवा ध्वज का सम्मान करने वाले सभी लोगों के लिए शाखाओं के दरवाजे खुले हैं। संघ की विचारधारा में पूजा पद्धति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है। उन्होंने कहा कि खुद को औरंगजेब का वंशज मानने वालों को छोड़कर सभी भारतीयों का संघ की शाखाओं में स्वागत है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत के सभी पंथ, समुदाय और जातियों के लोगों का संघ की शाखाओं में स्वागत है।

हिंदू समाज में भारत में रहने वाला हर व्यक्ति शामिल-भागवत

इससे पहले मोहन भागवत ने शनिवार को आईआईटी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने कहा, समाज में मेलजोल और बराबरी होनी चाहिए। जाति या धर्म के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। मंदिर, पानी और दूसरी जरूरी चीजें सभी को बराबर मिलनी चाहिए। हिंदू समाज में भारत में रहने वाला हर व्यक्ति शामिल है, चाहे वह मुस्लिम हो या हिंदू, क्योंकि वे सभी भारत का हिस्सा हैं। इसका मतलब है कि हमें सभी को साथ लेकर चलना है।

बंगाल की धरती से मोहन भागवत ने किया हिंदुओं को एकजुट होने का आह्वान, दिया बड़ा बयान

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने पश्चिम बंगाल की धरती से कहा है कि हमें हिंदू समाज को एकजुट और संगठित करने की जरूरत है।उन्होंने हिंदू समाज को जिम्मेदार समुदाय बताते हुए कहा कि वह एकता को विविधता का प्रतीक मानते हैं। संघ प्रमुख ने ये बातें पश्चिम बंगाल के पूर्वी बर्धमान स्थित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही।

देश का जिम्मेदार समाज हिंदू-भागवत

पश्चिम बंगाल के ब‌र्द्धमान में संघ के मध्य बंग प्रांत की सभा को संबोधित करते हुए हिंदू समाज की एकता पर जोर दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ का उद्देश्य संपूर्ण हिंदू समाज को संगठित करना है, क्योंकि यह समाज भारत की सांस्कृतिक और नैतिक पहचान का प्रतीक है।भागवत ने कहा कि अक्सर लोगों द्वारा यह सवाल उठाया जाता है कि संघ सिर्फ हिंदू समाज पर ही क्यों ध्यान देता है। इसका उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि हिंदू समाज ही इस देश का जिम्मेदार समाज है, जो उत्तरदायित्व की भावना से परिपूर्ण है। इसलिए, इसे एकजुट करना आवश्यक है।

हिंदू ने विश्व की विविधता को अपनाया-भागवत

भागवत ने कहा, भारतवर्ष एक भौगोलिक इकाई नहीं है इसका आकार समय के साथ घट या बढ़ सकता है। इसे भारतवर्ष तब कहा जाता है जब यह अद्वितीय प्रकृति का प्रतीक हो। भारत का अपना चरित्र है। जिन लोगों को लगा कि इस प्रकृति के साथ नहीं रह सकते, उन्होंने अपना अलग देश बना लिया। जो लोग बचे रहे, वे चाहते थे कि भारत का सार बना रहे। यह सार क्या है? 15 अगस्त 1947 से अधिक पुराना है। यह हिंदू समाज है, जो विश्व की विविधता को अपनाकर फलता-फूलता है। यह प्रकृति विश्व की विविधता को स्वीकार करती है और उसके साथ आगे बढ़ती है। यह एक शाश्वत सत्य है जो कभी नहीं बदलता है।

इतिहास से सबक और समाज में एकता की आवश्यकता

अपने संबोधन में मोहन भागवत ने ऐतिहासिक आक्रमणों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत पर शासन करने वाले आक्रमणकारियों ने समाज के भीतर विश्वासघात के कारण सफलता पाई। उन्होंने सिकंदर से लेकर आधुनिक युग तक के विभिन्न आक्रमणों का उदाहरण देते हुए कहा कि समाज जब संगठित नहीं रहता, तब बाहरी ताकतें हावी हो जाती हैं। इसलिए, हिंदू समाज की एकजुटता सिर्फ वर्तमान की नहीं, बल्कि भविष्य की भी जरूरत है।

हिंदू पूरे देश की विविधता को एकजुट रखते हैं-भागवत

मोहन भागवत ने कहा कि भारत में कोई भी सम्राटों और महाराजाओं को याद नहीं करता, बल्कि अपने पिता का वचन पूरा करने के उद्देश्य से 14 साल के लिए वनवास जाने वाले राजा (भगवान राम) और उस व्यक्ति (भरत) को याद रखता है, जिसने अपने भाई की पादुकाएं सिंहासन पर रख दीं और वनवास से लौटने पर राज्य उसे राज सौंप दिया। उन्होंने कहा, ये विशेषताएं भारत को परिभाषित करती हैं। जो लोग इन मूल्यों का पालन करते हैं, वे हिंदू हैं और वे पूरे देश की विविधता को एकजुट रखते हैं। हम ऐसे कार्यों में शामिल नहीं होते जो दूसरों को आहत करते हों। शासक, प्रशासक और महापुरुष अपना काम करते हैं, लेकिन समाज को राष्ट्र की सेवा के लिए आगे रहना चाहिए।

बता दें कि पहले ममता बनर्जी सरकार ने आरएसएस की रैली को अनुमति नहीं दी थी। इस पर संघ ने कलकत्ता हाईकोर्ट का रास्ता खटखटाया था, जिसने उन्हें रैली की इजाजत दी।

कौन हैं मोहिनी जिसके लिए अपनी संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा छोड़ गए हैं रतन टाटा, वसीयत में बड़ा खुलासा

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हाल ही में रतन टाटा वसीयत खोली गई। इस वसीयत को खोले जाने के बाद चौंकाने वाली बात सामने आई है। जिसमें 500 करोड़ रुपये की रकम को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। उन्होंने अपनी संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा यानी लगभग 500 करोड़ रुपये से ज्यादा एक ऐसी शख्सियत को दिया जिसके बारे में दुनिया कम ही जानती है। कहा जाता है कि इस मिस्ट्रीमैन की के संबंध रतन टाटा के साथ करीब 60 साल पुराने हैं। यह खबर टाटा परिवार के लिए भी चौंकाने वाली है। वैसे इस मामले में किसी का कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है।

रतन टाटा की वसीयत में जिस मिस्ट्रीमैन को 500 करोड़ रुपए की संपत्ति देने की बात कही गई है, वो मूल रूप से जमशेदपुर के रहने वाले ट्रैवल सेक्टर के बिजनेसमैन मोहिनी मोहन दत्ता है। वसीयत में देखकर टाटा परिवार के लोग भी काफी स्तब्ध बताए जा रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दत्ता और उनके परिवार के पास ट्रैवल एजेंसी स्टैलियन का स्वामित्व था, जिसे 2013 में ताज ग्रुप ऑफ होटल्स के पार्ट, ताज सर्विसेज के साथ विलय कर दिया गया था। मोहिनी दत्ता और उनके परिवार के पास स्टैलियन में 80% हिस्सेदारी थी, और शेष का स्वामित्व टाटा इंडस्ट्रीज के पास था। उन्होंने थॉमस कुक की पूर्व सहयोगी कंपनी टीसी ट्रैवल सर्विसेज के डायरेक्टर के रूप में भी काम किया है।

रतन टाटा के करीबी लोगों का कहना है कि दत्ता उनके पुराने साथी थे। परिवार समेत उनके करीबी लोग दत्ता को जानते थे। इस बारे में पूछे जाने पर मोहिनी दत्ता ने कोई जवाब नहीं दिया। रतन टाटा की वसीयत के एग्जीक्यूटर्स में उनकी सौतेली बहनें शिरीन और डीना जेजीभॉय भी शामिल हैं। उन्होंने भी इस पर कुछ नहीं कहा। एक और एग्जीक्यूटर डेरियस खंबाटा ने भी कोई टिप्पणी नहीं की। चौथे एग्जीक्यूटर मेहली मिस्त्री ने कहा, मैं इस व्यक्ति के बारे में कुछ नहीं कहना चाहता।

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि संपत्ति के वितरण पर गहन जांच हो सकती है। 74 वर्षीय मोहिनी मोहन दत्‍ता टाटा समूह के पूर्व कर्मचारी हैं। उनका दावा है कि वे रतन टाटा के करीबी थे और उनकी वसीयत से बड़ी राशि मिलने की उम्‍मीद भी कर रहे हैं। दत्‍ता ने रतन टाटा की संपत्ति को स्‍वीकार करने पर सहमति भी जता दी है। दत्‍ता का दावा है कि उनकी मुलाकात 24 साल की उम्र में रतन टाटा से हुई थी। सूत्रों का कहना है कि वैसे तो दत्‍ता ने रतन टाटा की ओर से गिफ्ट की गई संपत्ति को स्‍वीकार करने पर राजी हैं, लेकिन उनका मानना है कि यह रकम करीब 650 करोड़ रुपये होगी। इससे रतन टाटा के हितधारकों में चिंता बढ़ गई है।

ईसाई समाज को लेकर ऐसा क्या बोल गए मोहन भागवत, बिफर गए बिशप

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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत इन दिनों अपने बयानों को लेकर चर्चा में बने हुए हैं। अब मोहन भागवत के धर्मांतरण और आदिवासी समुदायों से संबंधित एक बयान पर बवाल मच गया है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने दावा किया है कि भारत के दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने ‘घर वापसी’ कार्यक्रम की सराहना करते हुए उनसे कहा था कि अगर संघ द्वारा धर्मांतरण पर काम नहीं किया गया होता तो आदिवासियों का एक वर्ग राष्ट्र-विरोधी हो गया होता। कैथोलिक बिशपों के एक निकाय ने भागवत के इस बयान की निंदा की है।

कैथोलिक बिशपों की संस्था सीबीसीआई ने जारी एक बयान में उन खबरों का हवाला दिया, जिनमें कथित तौर पर कहा गया है कि भागवत ने सोमवार को एक कार्यक्रम में दावा किया था कि मुखर्जी ने राष्ट्रपति रहते हुए 'घर वापसी' की सराहना की थी और उनसे कहा था कि यदि संघ ने धर्मांतरण पर काम नहीं किया होता तो आदिवासियों का एक वर्ग ‘‘राष्ट्र-विरोधी’’ हो गया होता। सीबीसीआई ने इन खबरों को चौंकाने वाला बताया। संस्था ने सवाल किया कि मुखर्जी के जीवित रहते भागवत ने इस बारे में कुछ क्यों नहीं बोला। सीबीसीआई कहा, हम 2.3 प्रतिशत ईसाई भारतीय नागरिक इस तरह के छलपूर्ण और दुर्भावनापूर्ण प्रचार से बहुत आहत महसूस कर रहे हैं।

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने यह बात इंदौर में राष्ट्रीय देवी अहिल्या पुरस्कार के वितरण समारोह में कही है। भागवत ने कहा, डॉ प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति थे, तब मैं पहली बार उनसे मिलने गया। संसद में घर वापसी को लेकर बहुत बड़ा हल्ला चल रहा थाय़ मैं तैयार हो कर गया कि वे बहुत कुछ पूछेंगे, बहुत बताना पड़ेगा। लेकिन उन्होंने कहा कि आप लोगों ने कुछ लोगों को वापस लाया और प्रेस कॉन्फ्रेंस की.. ऐसा कैसे करते हो आप? ऐसा करने से हो-हल्ला होता है क्योंकि वो राजनीति है। मैं भी अगर आज कांग्रेस पार्टी में होता, राष्ट्रपति नहीं होता, तो मैं भी संसद में यही करता।

आरएसएस प्रमुख ने आगे कहा, प्रणब मुखर्जी ने फिर कहा लेकिन आप लोगों ने ये जो काम किया है उसके कारण भारत के 30% आदिवासी… मैंने उनकी लाइन पकड़ ली और उनके बोलने के अंदाज से मुझे बहुत खुशी हुई। इस पर मैंने कहा ये लोग ईसाई बन जाते, तो वो बोले ईसाई नहीं, देशद्रोही बन जाते।

बता दें कि ‘घर वापसी’ शब्द का इस्तेमाल आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों मुसलमानों और ईसाइयों के हिंदू धर्म में लौटने के लिए करते हैं।संघ का मानना ये है कि सभी भारतीय मूल रूप से हिंदू हैं और इस प्रकार इस धर्मांतरण का अर्थ अनिवार्य रूप से ‘घर वापसी’ है।

प्रणब मुखर्जी के स्मारक के बगल में होगा मनमोहन सिंह का मेमोरियल, जानें कहां है वो 1.5 एकड़ जमीन

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केन्द्र की मोदी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मेमोरियल के लिए डेढ़ एकड़ जमीन को चिह्नित कर दी है। ये जमीन राष्ट्रीय स्मृति परिसर में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की समाधि के ठीक बगल में है। गृह मंत्रालय और शहरी मामलों के मंत्रालय ने मनमोहन सिंह के परिवार को आधिकारिक रूप से इस फैसले के बारे में सूचित किया है। साथ ही परिवार से एक ट्रस्ट रजिस्टर करने का अनुरोध किया गया है, क्योंकि ये सार्वजनिक भूमि के आवंटन के लिए अनिवार्य प्रक्रिया है। इस कदम से भूमि आवंटन की कानूनी औपचारिकताएं पूरी की जाएंगी।

सूत्रों के अनुसार, सिंह के परिवार के सदस्यों से साइट का निरीक्षण करने का अनुरोध किया गया है,लेकिन अभी तक उन्होंने ऐसा नहीं किया है। परिवार अभी शोक में है,इसलिए उन्होंने सरकार के प्रस्ताव पर कोई फैसला नहीं लिया है। सूत्र ने कहा कि मनमोहन सिंह परिवार तय करेगा कि उन्हें किस तरह का स्मारक चाहिए। इसमें समय लग सकता है। परिवार इस पर विचार करेगा कि वे किस तरह का स्मारक बनाना चाहते हैं। फिर वे सरकार को सूचित करेंगे।

टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस महीने की शुरूआत में ही मनमोहन सिंह के मेमोरियल के लिए जमीन चिह्नित करने के लिए अधिकारियों ने राष्ट्रीय स्मृति परिसर का दौरा किया था। राष्ट्रीय स्मृति यमुना किनारे विकसित की गई है। यह राष्ट्रपतियों, उपराष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों और पूर्व राष्ट्रपतियों, पूर्व उपराष्ट्रपतियों और पूर्व प्रधानमंत्रियों के अंतिम संस्कार और स्मारकों के लिए एक सामान्य स्थान है। वर्तमान में परिसर में सात नेताओं के स्मारक हैं। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी,पी वी नरसिम्हा राव,चंद्रशेखर और आई के गुजराल शामिल हैं। अब बचे दो स्थान मनमोहन सिंह और प्रणब मुखर्जी के लिए निर्धारित किए गए हैं।

बता दें कि मनमोहन सिंह की समाधि स्थल के लिए खूब विवाद हुआ था। केंद्र ने कांग्रेस पर दिग्गज नेता की मौत के बाद राजनीति करने का आरोप लगाया था। तो कांग्रेस ने भी सरकार पर हमला बोलते हुए ‘अपमान’ करने का आरोप लगाया था।

इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने बीजेपी सरकार पर कई तरह के आरोप लगाए थे। यहां तक की मनमोहन सिंह के निधन के बाद ही इस मामले पर दोनों दलों में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया था। जबकि खुद पीएम मोदी से लेकर केंद्र सरकार के सभी बड़े नेताओं की मौजूदगी में मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया गया था।

डॉ. मनमोहन सिंह ने 2004 से 2014 तक भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। वे एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री भी थे। उनके कार्यकाल के दौरान भारत ने आर्थिक विकास देखा। राष्ट्रीय स्मृति परिसर में स्मारक बनाने से लोगों को डॉ. सिंह के जीवन और कार्यों के बारे में जानने का अवसर मिलेगा। यह उनके योगदान को याद रखने और भावी पीढ़ियों को प्रेरित करने का एक तरीका होगा।

मोहन भागवत पर क्यों भड़के राहुल गांधी? बोले- किसी और देश में बयान दिया होता तो गिरफ्तार हो गए होते
#rahul_gandhi_slams_mohan_bhagwat_over_1947_independence_claims
कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत के आजादी वाले बयान पर कड़ी आपत्ति जताई है। राहुल ने कहा कि अगर भागवत ने ये बयान किसी और देश में दिया होता तो ये राजद्रोह के समान होता और भागवत को गिरफ्तार कर लिया गया होता।

कांग्रेस पार्टी के नए मुख्यालय के उद्घाटन पर पार्टी से जुड़े नेताओं को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने यह भी कहा, मोहन भागवत हर 2-3 दिन में देश को यह बताने की हिम्मत रखते हैं कि देश की आजादी के आंदोलन और संविधान के बारे में वह क्या सोचते हैं। उन्होंने कल जो कहा वह देशद्रोह की तरह है क्योंकि इसमें कहा गया कि संविधान अमान्य है। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई अमान्य थी।

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष ने आगे कहा, उन्हें (भागवत को) सार्वजनिक रूप से यह कहने की हिम्मत है, किसी अन्य देश में ऐसा होता तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता और उन पर केस चलाया जाता। यह कहना कि भारत को 1947 में आजादी नहीं मिली, हर एक भारतीय व्यक्ति का अपमान है। अब समय आ गया है कि हम इस बकवास को सुनना बंद करें, क्योंकि ये लोग सोचते हैं कि वे बस रटते रहेंगे और चिल्लाते रहेंगे।

*खरगे ने साधा निशाना*
कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भागवत के असली आजादी वाले बयान की निंदा की और कहा कि यदि वह ऐसे बयान देते रहे तो फिर देश में उनका घूमना-फिरना मुश्किल हो जाएगा। मल्लिकार्जुन खरगे ने आज कांग्रेस के नए मुख्यालय के उद्घाटन के अवसर पर कहा कि आरएसएस और बीजेपी के लोगों को (1947 में मिली) देश की आजादी याद नहीं है क्योंकि उनके वैचारिक पूर्वजों की ओर से आजादी की जंग में कोई योगदान नहीं दिया गया है।

*भागवत ने क्या कहा था?*
13 जनवरी को भागवत ने कहा था, अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि प्रतिष्ठा द्वादशी के रूप में मनाई जानी चाहिए, क्योंकि कई सदियों से दुश्मन का आक्रमण झेलने वाले देश को असली आजादी इसी दिन हासिल हुई थी।
दुनिया प्रेम और मंगल की भाषा तब ही सुनती है, जब आपके पास शक्ति हो’, क्या हैं मोहन भागवत के बयान के मायने

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा है कि भारत विश्व का सबसे प्राचीन देश है और उसकी भूमिका ‘बड़े भाई’ की है। भारत विश्व में शांति, सौहार्द और धर्म का प्रचार करने वाला राष्ट्र है। इसके साथ-साथ संघ प्रमुख ने बताया कि भारत को शक्ति संपन्न होना क्यों जरूरी है। मोहन भागवत जयपुर के हरमाडा स्थित रविनाथ आश्रम में आज आयोजित एक समारोह में पहुंचे थे। सम्मान समारोह के बाद उन्होंने लोगों को संबोधित किया।

भारत को शक्ति संपन्न होना क्यों जरूरी?

मोहन भागवत ने कहा कि विश्व को धर्म सिखाना भारत का कर्तव्य है, लेकिन इसके लिए भी शक्ति की आवश्यकता होती है। पाकिस्तान पर हालिया कार्रवाई की चर्चा करते हुए कहा कि भारत किसी से द्वेष नहीं रखता, लेकिन विश्व प्रेम और मंगल की भाषा भी तब ही सुनता है जब आपके पास शक्ति हो। दुनिया आपकी बात तब ही सुनती है जब आपके पास शक्ति हो। यह दुनिया का स्वभाव है। इस स्वभाव को बदला नहीं जा सकता, इसलिए विश्व कल्याण के लिए हमें शक्ति संपन्न होने की आवश्यकता है। हमारी ताकत विश्व ने देखी है।

भागवत ने आगे कहा कि विश्व कल्याण हमारा धर्म है। विशेषकर हिंदू धर्म का तो यह पक्का कर्तव्य है। यह हमारी ऋषि परंपरा रही है, जिसे आज संत समाज आगे बढ़ा रहा है।

ऑपरेशन सिंदूर पर मोहन भागवत का पहला बयान, बोले-सरकार सैन्यबलों का हार्दिक अभिनंदन

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भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव पर राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ की ओर से भी बयान जारी किया गया है।संघ की तरफ से सरसंघचालक मोहन भागवत सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले के नाम से बयान वक्तव्य जारी किया है। संघ ने पाकिस्तान के खिलाफ इस ऑपरेशन को लेकर भारत सरकार के साथ ही सैन्य बलों की तारीफ की है।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने पहलगाम की कायरतापूर्ण आतंकवादी घटना के बाद कहा है कि पाक प्रायोजित आतंकवादियों एवं उनके समर्थक पारितंत्र पर की जा रही निर्णायक कार्रवाई “ऑपरेशन सिंदूर” के लिए भारत सरकार के नेतृत्व और सैन्यबलों का हार्दिक अभिनंदन। हिंदू यात्रियों के नृशंस हत्याकांड में आहत परिवारों को एवं समस्त देश को न्याय दिलाने हेतु हो रही इस कार्रवाई ने समूचे देश के स्वाभिमान एवं हिम्मत को बढ़ाया है।

पाकिस्तानी हमलों की निंदा

आरएसएस ने बयान में कहा गया है कि पाकिस्तानी सेना द्वारा भारत की सीमा पर धार्मिक स्थलों और नागरिक बस्ती क्षेत्र पर किए जा रहे हमलों की हम निंदा करते हैं और जो इन हमलों का शिकार हुए, उनके परिवारों के प्रति हार्दिक संवेदनाएं व्यक्त करते।संघ ने आगे कहा कि हमारा यह भी मानना है कि पाकिस्तान में आतंकियों, उनका ढॉंचा एवं सहयोगी तंत्र पर की जा रही सैनिक कार्रवाई देश की सुरक्षा के लिए आवश्यक एवं अपरिहार्य कदम है। राष्ट्रीय संकट की इस घड़ी में संपूर्ण देश तन-मन-धन से देश की सरकार एवं सैन्य बलों के साथ खड़ा है।

सूचनाओं का पालन करने की अपील

आरएसएस प्रमुख ने कहा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस चुनौतीपूर्ण अवसर पर समस्त देशवासियों से आह्वान करता है कि शासन और प्रशासन द्वारा दी जा रही सभी सूचनाओं का पूर्णतः अनुपालन सुनिश्चित करे। इसके साथ-साथ इस अवसर पर हम सबको अपने नागरिक कर्तव्य का निर्वहन करते हुए यह भी सावधानी रखनी है कि राष्ट्र विरोधी शक्तियों के सामाजिक एकता एवं समरसता को भंग करने के किसी भी षड्यंत्र को सफल न होने दें।

*Mohanbagan's young brigade to stop the Kerala storm*

Sports 

 Kalinga Super Cup 

 Khabar kolkata sports Desk : Junior footballers do not get the chance that way. As a result, you can not prove yourself. This time, the opportunity to satisfy the excitement is Dhiraj Singh, Raj Basfor, Sandeep Malik, Amandeep and a young footballer. In the quarter -finals of the Super Cup, Mohanbagan's team Bhubaneswar went on Thursday to play against Blastus. The only foreign Portugal is Nuno Miguel.

*In the first match of the Super Cup against Kerala Blasters 2-0 by the departure of East Bengal*

Sports

Khabar Kolkata Sports Desk: East Bengal lost 2-0 against Kerala Blasters in the first match of the Super Cup in Bhubaneswar on Sunday. As a result, the red-yellow brigade did not competition this season. East Bengal played in the first match of the tournament as a Super Cup defending champion. But they had to leave in the first match. Kerala Blasters will now face Mohanbagan Super Giant in the quarter -finals of the Super Cup. In the first half, Anwar Ali forgot the first attempt from the pass penalty, but the second time did not miss Blaster Jiminez. In the second half, Noah scored 2-0 in a shot. The ball in the hands of the proletariat could not be stopped. Noah missed the Blasters at the match injury time, but missed it.

Pic: Courtesy by Social media

मुसलमानों के लिए भी खुले आरएसएस के दरवाजे, संघ प्रमुख भागवत ने शाखा में शामिल होने के लिए रखी शर्त

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने 4 दिवसीय दौरे वाराणसी पर हैं। इस दौरान उन्होंने कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया और उन्हें संबोधित किया। इस दौरान संघ प्रमुख का दिया एक बयान काफी चर्चा में है। मोहन भागवत ने मुसलमानों के शाखा में शामिल होने को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि कोई भी मुसलमान शाखा में शामिल हो सकता है बशर्ते वो भारत माता की जय के नारे लगाए और भगवा झंडा की इज्जत करे।

वाराणसी में मोहन भागवत लाजपत नगर कॉलोनी में आरएसएस की एक शाखा पर पहुंचे थे। सत्र के दौरान, एक स्वयंसेवक ने जब संघ प्रमुख से पूछा कि क्या वह अपने पड़ोसियों, जो मुस्लिम हैं, उनको शाखा में आमंत्रित कर सकता है और ला सकता है।

सभी पंथ, समुदाय और जाति के लोगों का संघ में स्वागत-भागवत

स्वयंसेवक के सवाल के जवाब में संघ प्रमुख ने कहा कि भारत माता की जय बोलने वाले और भगवा ध्वज का सम्मान करने वाले सभी लोगों के लिए शाखाओं के दरवाजे खुले हैं। संघ की विचारधारा में पूजा पद्धति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है। उन्होंने कहा कि खुद को औरंगजेब का वंशज मानने वालों को छोड़कर सभी भारतीयों का संघ की शाखाओं में स्वागत है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत के सभी पंथ, समुदाय और जातियों के लोगों का संघ की शाखाओं में स्वागत है।

हिंदू समाज में भारत में रहने वाला हर व्यक्ति शामिल-भागवत

इससे पहले मोहन भागवत ने शनिवार को आईआईटी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने कहा, समाज में मेलजोल और बराबरी होनी चाहिए। जाति या धर्म के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। मंदिर, पानी और दूसरी जरूरी चीजें सभी को बराबर मिलनी चाहिए। हिंदू समाज में भारत में रहने वाला हर व्यक्ति शामिल है, चाहे वह मुस्लिम हो या हिंदू, क्योंकि वे सभी भारत का हिस्सा हैं। इसका मतलब है कि हमें सभी को साथ लेकर चलना है।

बंगाल की धरती से मोहन भागवत ने किया हिंदुओं को एकजुट होने का आह्वान, दिया बड़ा बयान

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने पश्चिम बंगाल की धरती से कहा है कि हमें हिंदू समाज को एकजुट और संगठित करने की जरूरत है।उन्होंने हिंदू समाज को जिम्मेदार समुदाय बताते हुए कहा कि वह एकता को विविधता का प्रतीक मानते हैं। संघ प्रमुख ने ये बातें पश्चिम बंगाल के पूर्वी बर्धमान स्थित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही।

देश का जिम्मेदार समाज हिंदू-भागवत

पश्चिम बंगाल के ब‌र्द्धमान में संघ के मध्य बंग प्रांत की सभा को संबोधित करते हुए हिंदू समाज की एकता पर जोर दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ का उद्देश्य संपूर्ण हिंदू समाज को संगठित करना है, क्योंकि यह समाज भारत की सांस्कृतिक और नैतिक पहचान का प्रतीक है।भागवत ने कहा कि अक्सर लोगों द्वारा यह सवाल उठाया जाता है कि संघ सिर्फ हिंदू समाज पर ही क्यों ध्यान देता है। इसका उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि हिंदू समाज ही इस देश का जिम्मेदार समाज है, जो उत्तरदायित्व की भावना से परिपूर्ण है। इसलिए, इसे एकजुट करना आवश्यक है।

हिंदू ने विश्व की विविधता को अपनाया-भागवत

भागवत ने कहा, भारतवर्ष एक भौगोलिक इकाई नहीं है इसका आकार समय के साथ घट या बढ़ सकता है। इसे भारतवर्ष तब कहा जाता है जब यह अद्वितीय प्रकृति का प्रतीक हो। भारत का अपना चरित्र है। जिन लोगों को लगा कि इस प्रकृति के साथ नहीं रह सकते, उन्होंने अपना अलग देश बना लिया। जो लोग बचे रहे, वे चाहते थे कि भारत का सार बना रहे। यह सार क्या है? 15 अगस्त 1947 से अधिक पुराना है। यह हिंदू समाज है, जो विश्व की विविधता को अपनाकर फलता-फूलता है। यह प्रकृति विश्व की विविधता को स्वीकार करती है और उसके साथ आगे बढ़ती है। यह एक शाश्वत सत्य है जो कभी नहीं बदलता है।

इतिहास से सबक और समाज में एकता की आवश्यकता

अपने संबोधन में मोहन भागवत ने ऐतिहासिक आक्रमणों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत पर शासन करने वाले आक्रमणकारियों ने समाज के भीतर विश्वासघात के कारण सफलता पाई। उन्होंने सिकंदर से लेकर आधुनिक युग तक के विभिन्न आक्रमणों का उदाहरण देते हुए कहा कि समाज जब संगठित नहीं रहता, तब बाहरी ताकतें हावी हो जाती हैं। इसलिए, हिंदू समाज की एकजुटता सिर्फ वर्तमान की नहीं, बल्कि भविष्य की भी जरूरत है।

हिंदू पूरे देश की विविधता को एकजुट रखते हैं-भागवत

मोहन भागवत ने कहा कि भारत में कोई भी सम्राटों और महाराजाओं को याद नहीं करता, बल्कि अपने पिता का वचन पूरा करने के उद्देश्य से 14 साल के लिए वनवास जाने वाले राजा (भगवान राम) और उस व्यक्ति (भरत) को याद रखता है, जिसने अपने भाई की पादुकाएं सिंहासन पर रख दीं और वनवास से लौटने पर राज्य उसे राज सौंप दिया। उन्होंने कहा, ये विशेषताएं भारत को परिभाषित करती हैं। जो लोग इन मूल्यों का पालन करते हैं, वे हिंदू हैं और वे पूरे देश की विविधता को एकजुट रखते हैं। हम ऐसे कार्यों में शामिल नहीं होते जो दूसरों को आहत करते हों। शासक, प्रशासक और महापुरुष अपना काम करते हैं, लेकिन समाज को राष्ट्र की सेवा के लिए आगे रहना चाहिए।

बता दें कि पहले ममता बनर्जी सरकार ने आरएसएस की रैली को अनुमति नहीं दी थी। इस पर संघ ने कलकत्ता हाईकोर्ट का रास्ता खटखटाया था, जिसने उन्हें रैली की इजाजत दी।

कौन हैं मोहिनी जिसके लिए अपनी संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा छोड़ गए हैं रतन टाटा, वसीयत में बड़ा खुलासा

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हाल ही में रतन टाटा वसीयत खोली गई। इस वसीयत को खोले जाने के बाद चौंकाने वाली बात सामने आई है। जिसमें 500 करोड़ रुपये की रकम को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। उन्होंने अपनी संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा यानी लगभग 500 करोड़ रुपये से ज्यादा एक ऐसी शख्सियत को दिया जिसके बारे में दुनिया कम ही जानती है। कहा जाता है कि इस मिस्ट्रीमैन की के संबंध रतन टाटा के साथ करीब 60 साल पुराने हैं। यह खबर टाटा परिवार के लिए भी चौंकाने वाली है। वैसे इस मामले में किसी का कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है।

रतन टाटा की वसीयत में जिस मिस्ट्रीमैन को 500 करोड़ रुपए की संपत्ति देने की बात कही गई है, वो मूल रूप से जमशेदपुर के रहने वाले ट्रैवल सेक्टर के बिजनेसमैन मोहिनी मोहन दत्ता है। वसीयत में देखकर टाटा परिवार के लोग भी काफी स्तब्ध बताए जा रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दत्ता और उनके परिवार के पास ट्रैवल एजेंसी स्टैलियन का स्वामित्व था, जिसे 2013 में ताज ग्रुप ऑफ होटल्स के पार्ट, ताज सर्विसेज के साथ विलय कर दिया गया था। मोहिनी दत्ता और उनके परिवार के पास स्टैलियन में 80% हिस्सेदारी थी, और शेष का स्वामित्व टाटा इंडस्ट्रीज के पास था। उन्होंने थॉमस कुक की पूर्व सहयोगी कंपनी टीसी ट्रैवल सर्विसेज के डायरेक्टर के रूप में भी काम किया है।

रतन टाटा के करीबी लोगों का कहना है कि दत्ता उनके पुराने साथी थे। परिवार समेत उनके करीबी लोग दत्ता को जानते थे। इस बारे में पूछे जाने पर मोहिनी दत्ता ने कोई जवाब नहीं दिया। रतन टाटा की वसीयत के एग्जीक्यूटर्स में उनकी सौतेली बहनें शिरीन और डीना जेजीभॉय भी शामिल हैं। उन्होंने भी इस पर कुछ नहीं कहा। एक और एग्जीक्यूटर डेरियस खंबाटा ने भी कोई टिप्पणी नहीं की। चौथे एग्जीक्यूटर मेहली मिस्त्री ने कहा, मैं इस व्यक्ति के बारे में कुछ नहीं कहना चाहता।

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि संपत्ति के वितरण पर गहन जांच हो सकती है। 74 वर्षीय मोहिनी मोहन दत्‍ता टाटा समूह के पूर्व कर्मचारी हैं। उनका दावा है कि वे रतन टाटा के करीबी थे और उनकी वसीयत से बड़ी राशि मिलने की उम्‍मीद भी कर रहे हैं। दत्‍ता ने रतन टाटा की संपत्ति को स्‍वीकार करने पर सहमति भी जता दी है। दत्‍ता का दावा है कि उनकी मुलाकात 24 साल की उम्र में रतन टाटा से हुई थी। सूत्रों का कहना है कि वैसे तो दत्‍ता ने रतन टाटा की ओर से गिफ्ट की गई संपत्ति को स्‍वीकार करने पर राजी हैं, लेकिन उनका मानना है कि यह रकम करीब 650 करोड़ रुपये होगी। इससे रतन टाटा के हितधारकों में चिंता बढ़ गई है।

ईसाई समाज को लेकर ऐसा क्या बोल गए मोहन भागवत, बिफर गए बिशप

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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत इन दिनों अपने बयानों को लेकर चर्चा में बने हुए हैं। अब मोहन भागवत के धर्मांतरण और आदिवासी समुदायों से संबंधित एक बयान पर बवाल मच गया है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने दावा किया है कि भारत के दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने ‘घर वापसी’ कार्यक्रम की सराहना करते हुए उनसे कहा था कि अगर संघ द्वारा धर्मांतरण पर काम नहीं किया गया होता तो आदिवासियों का एक वर्ग राष्ट्र-विरोधी हो गया होता। कैथोलिक बिशपों के एक निकाय ने भागवत के इस बयान की निंदा की है।

कैथोलिक बिशपों की संस्था सीबीसीआई ने जारी एक बयान में उन खबरों का हवाला दिया, जिनमें कथित तौर पर कहा गया है कि भागवत ने सोमवार को एक कार्यक्रम में दावा किया था कि मुखर्जी ने राष्ट्रपति रहते हुए 'घर वापसी' की सराहना की थी और उनसे कहा था कि यदि संघ ने धर्मांतरण पर काम नहीं किया होता तो आदिवासियों का एक वर्ग ‘‘राष्ट्र-विरोधी’’ हो गया होता। सीबीसीआई ने इन खबरों को चौंकाने वाला बताया। संस्था ने सवाल किया कि मुखर्जी के जीवित रहते भागवत ने इस बारे में कुछ क्यों नहीं बोला। सीबीसीआई कहा, हम 2.3 प्रतिशत ईसाई भारतीय नागरिक इस तरह के छलपूर्ण और दुर्भावनापूर्ण प्रचार से बहुत आहत महसूस कर रहे हैं।

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने यह बात इंदौर में राष्ट्रीय देवी अहिल्या पुरस्कार के वितरण समारोह में कही है। भागवत ने कहा, डॉ प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति थे, तब मैं पहली बार उनसे मिलने गया। संसद में घर वापसी को लेकर बहुत बड़ा हल्ला चल रहा थाय़ मैं तैयार हो कर गया कि वे बहुत कुछ पूछेंगे, बहुत बताना पड़ेगा। लेकिन उन्होंने कहा कि आप लोगों ने कुछ लोगों को वापस लाया और प्रेस कॉन्फ्रेंस की.. ऐसा कैसे करते हो आप? ऐसा करने से हो-हल्ला होता है क्योंकि वो राजनीति है। मैं भी अगर आज कांग्रेस पार्टी में होता, राष्ट्रपति नहीं होता, तो मैं भी संसद में यही करता।

आरएसएस प्रमुख ने आगे कहा, प्रणब मुखर्जी ने फिर कहा लेकिन आप लोगों ने ये जो काम किया है उसके कारण भारत के 30% आदिवासी… मैंने उनकी लाइन पकड़ ली और उनके बोलने के अंदाज से मुझे बहुत खुशी हुई। इस पर मैंने कहा ये लोग ईसाई बन जाते, तो वो बोले ईसाई नहीं, देशद्रोही बन जाते।

बता दें कि ‘घर वापसी’ शब्द का इस्तेमाल आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों मुसलमानों और ईसाइयों के हिंदू धर्म में लौटने के लिए करते हैं।संघ का मानना ये है कि सभी भारतीय मूल रूप से हिंदू हैं और इस प्रकार इस धर्मांतरण का अर्थ अनिवार्य रूप से ‘घर वापसी’ है।

प्रणब मुखर्जी के स्मारक के बगल में होगा मनमोहन सिंह का मेमोरियल, जानें कहां है वो 1.5 एकड़ जमीन

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केन्द्र की मोदी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मेमोरियल के लिए डेढ़ एकड़ जमीन को चिह्नित कर दी है। ये जमीन राष्ट्रीय स्मृति परिसर में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की समाधि के ठीक बगल में है। गृह मंत्रालय और शहरी मामलों के मंत्रालय ने मनमोहन सिंह के परिवार को आधिकारिक रूप से इस फैसले के बारे में सूचित किया है। साथ ही परिवार से एक ट्रस्ट रजिस्टर करने का अनुरोध किया गया है, क्योंकि ये सार्वजनिक भूमि के आवंटन के लिए अनिवार्य प्रक्रिया है। इस कदम से भूमि आवंटन की कानूनी औपचारिकताएं पूरी की जाएंगी।

सूत्रों के अनुसार, सिंह के परिवार के सदस्यों से साइट का निरीक्षण करने का अनुरोध किया गया है,लेकिन अभी तक उन्होंने ऐसा नहीं किया है। परिवार अभी शोक में है,इसलिए उन्होंने सरकार के प्रस्ताव पर कोई फैसला नहीं लिया है। सूत्र ने कहा कि मनमोहन सिंह परिवार तय करेगा कि उन्हें किस तरह का स्मारक चाहिए। इसमें समय लग सकता है। परिवार इस पर विचार करेगा कि वे किस तरह का स्मारक बनाना चाहते हैं। फिर वे सरकार को सूचित करेंगे।

टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस महीने की शुरूआत में ही मनमोहन सिंह के मेमोरियल के लिए जमीन चिह्नित करने के लिए अधिकारियों ने राष्ट्रीय स्मृति परिसर का दौरा किया था। राष्ट्रीय स्मृति यमुना किनारे विकसित की गई है। यह राष्ट्रपतियों, उपराष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों और पूर्व राष्ट्रपतियों, पूर्व उपराष्ट्रपतियों और पूर्व प्रधानमंत्रियों के अंतिम संस्कार और स्मारकों के लिए एक सामान्य स्थान है। वर्तमान में परिसर में सात नेताओं के स्मारक हैं। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी,पी वी नरसिम्हा राव,चंद्रशेखर और आई के गुजराल शामिल हैं। अब बचे दो स्थान मनमोहन सिंह और प्रणब मुखर्जी के लिए निर्धारित किए गए हैं।

बता दें कि मनमोहन सिंह की समाधि स्थल के लिए खूब विवाद हुआ था। केंद्र ने कांग्रेस पर दिग्गज नेता की मौत के बाद राजनीति करने का आरोप लगाया था। तो कांग्रेस ने भी सरकार पर हमला बोलते हुए ‘अपमान’ करने का आरोप लगाया था।

इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने बीजेपी सरकार पर कई तरह के आरोप लगाए थे। यहां तक की मनमोहन सिंह के निधन के बाद ही इस मामले पर दोनों दलों में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया था। जबकि खुद पीएम मोदी से लेकर केंद्र सरकार के सभी बड़े नेताओं की मौजूदगी में मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया गया था।

डॉ. मनमोहन सिंह ने 2004 से 2014 तक भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। वे एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री भी थे। उनके कार्यकाल के दौरान भारत ने आर्थिक विकास देखा। राष्ट्रीय स्मृति परिसर में स्मारक बनाने से लोगों को डॉ. सिंह के जीवन और कार्यों के बारे में जानने का अवसर मिलेगा। यह उनके योगदान को याद रखने और भावी पीढ़ियों को प्रेरित करने का एक तरीका होगा।

मोहन भागवत पर क्यों भड़के राहुल गांधी? बोले- किसी और देश में बयान दिया होता तो गिरफ्तार हो गए होते
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कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत के आजादी वाले बयान पर कड़ी आपत्ति जताई है। राहुल ने कहा कि अगर भागवत ने ये बयान किसी और देश में दिया होता तो ये राजद्रोह के समान होता और भागवत को गिरफ्तार कर लिया गया होता।

कांग्रेस पार्टी के नए मुख्यालय के उद्घाटन पर पार्टी से जुड़े नेताओं को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने यह भी कहा, मोहन भागवत हर 2-3 दिन में देश को यह बताने की हिम्मत रखते हैं कि देश की आजादी के आंदोलन और संविधान के बारे में वह क्या सोचते हैं। उन्होंने कल जो कहा वह देशद्रोह की तरह है क्योंकि इसमें कहा गया कि संविधान अमान्य है। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई अमान्य थी।

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष ने आगे कहा, उन्हें (भागवत को) सार्वजनिक रूप से यह कहने की हिम्मत है, किसी अन्य देश में ऐसा होता तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता और उन पर केस चलाया जाता। यह कहना कि भारत को 1947 में आजादी नहीं मिली, हर एक भारतीय व्यक्ति का अपमान है। अब समय आ गया है कि हम इस बकवास को सुनना बंद करें, क्योंकि ये लोग सोचते हैं कि वे बस रटते रहेंगे और चिल्लाते रहेंगे।

*खरगे ने साधा निशाना*
कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भागवत के असली आजादी वाले बयान की निंदा की और कहा कि यदि वह ऐसे बयान देते रहे तो फिर देश में उनका घूमना-फिरना मुश्किल हो जाएगा। मल्लिकार्जुन खरगे ने आज कांग्रेस के नए मुख्यालय के उद्घाटन के अवसर पर कहा कि आरएसएस और बीजेपी के लोगों को (1947 में मिली) देश की आजादी याद नहीं है क्योंकि उनके वैचारिक पूर्वजों की ओर से आजादी की जंग में कोई योगदान नहीं दिया गया है।

*भागवत ने क्या कहा था?*
13 जनवरी को भागवत ने कहा था, अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि प्रतिष्ठा द्वादशी के रूप में मनाई जानी चाहिए, क्योंकि कई सदियों से दुश्मन का आक्रमण झेलने वाले देश को असली आजादी इसी दिन हासिल हुई थी।