जीव और ब्रह्म का महा मिलन ही रास लीला है-पं.निर्मल शुक्ल
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संजय द्विवेदी, प्रयागराज।श्रीमद् भागवत कथा में वर्णित रास लीला के पांच अध्यायो को विद्वानो ने भागवत रूपी शरीर के पांच प्राणों की उपमा दिया है।यह प्रसंग भागवत का सबसे गूढ़ रहस्यों से परिपूर्ण और अध्यात्म की पराकाष्ठा है।रास लीला शरद पूर्णिमा की तिथि को सम्पन्न होती है वैसे तो वर्ष में 12 पूर्णिमा आती हैं किन्तु शरद पूर्णिमा की बात ही अलग है।गर्मी के दिनों में आकाश मंडल धूल से भरा रहता है ठण्डी में ओर और वर्षा ऋतु में मेघों से आच्छादित रहने के कारण चंद्रमा की किरणें अबाध रूप से धरती का स्पर्श नही कर पाती।
शरद पूर्णिमा की रात को धूल ओस मेघ और कुहरे से मुक्त होती है चन्द्र देव अपनी सोलहो कलाओं के साथ पृथ्वी का स्पर्श करते हैं।धरती चार महीने की वर्षा से धुल कर स्वक्ष हो जाती है चंद्रमा रस राज है इसलिए पूर्णिमा की तिथि को संसार में रस वृद्धि होती है यहां तक कि जलाशयों के स्वामी समुद्र में भी इस दिन ज्वार आ जाता है।हमारा शरीर भी एक जलाशय ही है शरीर में 75 प्रतिशत जल ही भरा है इसलिए हमारा शरीर भी शरद पूर्णिमा की रात को उद्वेलित होता है। भगवान कृष्ण ने इन गोपियों को पूर्व जन्म में वरदान दिया था कि मैं कृष्णावतार में तुम्हें आलिंगन सुख प्रदान करूंगा।
आज यमुना तट पर जब भगवान कृष्ण ने वंशी वादन किया तो उस मनोहारी ध्वनि को सुन कर गोपियां अपने कुल कुटुम्ब पति पुत्र सबका त्याग करके यमुना पुलिन की ओर दौड़ पड़ी।इस प्रसंग में महाराज परीक्षित ने शुकदेव जी से प्रश्न किया कि गोपियों ने तो भगवान कृष्ण को ब्रह्म नहीं बल्कि अपना प्रेमी मान कर स्वीकार किया था फिर उनका मोक्ष कैसे संभव हुआ उनकी भावना में तो भगवान उनके प्रेमी हैं। शुकदेव जी ने हंसते हुए कहा राजन वस्तु का गुण सामने वाले के ज्ञान या भावना की अपेक्षा नहीं करता वह अपने गुण का प्रभाव छोड़ता ही है।विष को चाहे भाव से पियो या दुर्भावना से पियो वह मार ही डालेगा उसी प्रकार अमृत को गाली देकर पियो प्रेम से पियो जाने अंजाने कैसे भी पियो वह अमर ही करेगा। जैसे आग जाने अनजाने कैसे भी छू जाने पर जला देती है वैसे ही परमात्मा से जाने अनजाने प्रेमी शत्रु मित्र पिता पुत्र स्वामी सेवक कुछ भी संबंध जोड़ लें वह मुक्त ही कर देगा।
पं अमरनाथ दूबे द्वारा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रख्यात समाजसेवी पं जंगी राम दूबे की पावन स्मृति में आयोजित भागवत कथा के छठें दिवस मानस महारथी पं निर्मल कुमार शुक्ल ने विशाल श्रोता समाज को भाव विभोर करते हुए उक्त उद्गार व्यक्त किया।आपने कहा ए गोपियां पूर्व जन्म के तपस्वी हैं राम अवतार में जब भगवान दंडकारण्य में गये तो वहां हजारों वर्ष के वृद्ध महात्माओं ने जब भगवान राम के अद्भुत सौंदर्य को देखा तो सोचने लगे अगर ए हमें मिल जाते तो हम इनका आलिंगन करते स्पर्श करते और इनके मुख-कमल का चुंबन करते। रामजी ने उनकी भावना देखकर उन्हें गोपी बनने का आशीर्वाद दिया और इस जन्म में उनकी मनोकामना पूरी किया।आगे आपने भगवान कृष्ण के वृंदावन से मथुरा विदाई की करुण रस से परिपूर्ण कथा सुनाकर श्रोताओ की भाव समुद्र में उतार दिया।कंस वध उद्धव गोपियों का मार्मिक संवाद और अंत में कृष्ण रुक्मिणी विवाह की मनोहारी झांकी प्रस्तुत हुई श्रोताओं ऐसा लगा मानों द्वापर की वह घटना नेत्रों के समक्ष साकार हो गई।
आज की कथा में सुप्रसिद्ध उद्योगपति विदुप अग्रहरि पूर्व विधायक राम शिरोमणि शुक्ला मनोज शुक्ला भोदू मैनेजर किसान नेता राकेश सिंह रंगनाथ मिश्र सत्यदेव त्रिपाठी राजेन्द्र प्रसाद त्रिपाठी शिव कुमार मिश्र युगल किशोर शुक्ल नारायण प्रसाद शुक्ल रमेश चंद्र त्रिपाठी पद्मनाथ त्रिपाठी नत्थू राम द्विवेदी श्रीनाथ सिंह ज्ञान चंद त्रिपाठी राम चंद्र मिश्र आदि गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।पं भोला नाथ दूबे अभय शंकर दूबे हृदय शंकर दूबे अमिय शंकर दूबे एवं अनिय शंकर दूबे ने सभी क्षेत्रीय श्रृद्धालुओं से अधिकाधिक संख्या में कथामृत पान करने का आग्रह किया है।दिनांक 14 अक्टूबर को शायं काल 6 बजे तक इस भव्य आयोजन का विश्राम हो जाएगा।
Oct 13 2025, 18:35