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कितना अहम है मोहम्मद यूनुस का चीन दौरा, बांग्लादेश को क्या उम्मीदें?

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राजधानी ढाका में सेना की तैनाती, सैन्य अधिकारियों की इमरजेंसी बैठक, छात्रों का विरोध सहित कई अन्य कारणों से बांग्लादेश में फिर से तख्तापलट की चर्चा शुरू हो गई है। इस बीच बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस चीन के दौरे पर हैं। मोहम्मद यूनुस 26 मार्च को चीन पहुंचे हैं। इस दौरान वो हैनान प्रांत में होने वाले बोआओ फोरम में हिस्सा लेंगे, जिसमें एशिया के कई देश हिस्सा ले रहे हैं। इस फोरम में भाग लेने के बाद वो चीन सरकार से मिले आधिकारिक निमंत्रण पर बीजिंग का दौरा करेंगे और 28 मार्च को राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ उनकी द्विपक्षीय बैठक होगी।

जिनपिंग और मोहम्मद यूनुस के बीच की द्विपक्षीय बैठक करीब 30 मिनट तक चलेगी। इस दौरान दोनों नेताओं के बीच आमने-सामने की बातचीत होगी। वहीं इस द्विपक्षीय बैठक को वजन देने के लिए अब दोनों ही पक्षों की तरफ से 12-12 अधिकारियों का डेलीगेशन इसमें मौजूद रहेगा। यानि इस द्विपक्षीय बैठक में दोनों राष्ट्राध्यक्षों को मिलाकर 13-13 लोग शामिल होंगे। इस बैठक का मतलब ये है कि चीन, बांग्लादेश को काफी महत्वपूर्ण देश की तरह भाव दे रहा है। जाहिर तौर पर वो भारत के ऊपर बांग्लादेश में कूटनीतिक बढ़त हासिल करना चाहता है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि बैठक को औपचारिक रूप देकर चीन ने इसके महत्व को बढ़ा दिया है।

दोनों देशों के बीच होने वाली द्विपक्षीय बैठक से बांग्लादेश और चीन के संबंध ना सिर्फ काफी मजबूत होने की संभावना है, बल्कि दोनों देशों के बीच नये अवसरों के भी खुलने की संभावना होगी। बांग्लादेशी एक्सपर्ट्स इस बात पर जोर दे रहे हैं कि चीन के साथ संबंध मजबूत होने से वैश्विक संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी। जाहिर तौर पर उनका इशारा भारत को लेकर है।

भू-राजनीति संतुलन

अंतरराष्ट्रीय संबंध विश्लेषकों का कहना है कि खासतौर पर अंतरिम सरकार के उच्चतम स्तर का पहला द्विपक्षीय दौरा होने की वजह से यह बैठक बेहद महत्वपूर्ण हो गई है। विश्लेषकों का मानना है कि मुख्य सलाहकार की यात्रा से भू-राजनीति को संतुलित करने में मदद मिल सकती है।

अवामी लीग के सत्ता से बेदखल होने के बाद से बांग्लादेश के पड़ोसी भारत के साथ राजनयिक संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं। दूसरी ओर, अमेरिका के पिछले बाइडन प्रशासन के साथ तो अंतरिम सरकार का मैत्रीपूर्ण संबंध देखने को मिला था। लेकिन इस बारे में मौजूदा ट्रंप प्रशासन की नीति अब भी स्पष्ट नहीं हो सकी है।

विश्लेषकों का कहना है कि एक ओर भारत और चीन के बीच क्षेत्रीय प्रभुत्व के सवाल पर तनातनी चल रही है। दूसरी ओर, वैश्विक स्तर पर चीन और अमेरिका के बीच की खींचतान किसी से छिपी नहीं है। डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद दोनों देशों के संबंधों में कड़वाहट और बढ़ी है। इन वजहों से इस मुद्दे पर भी चर्चा हो रही है कि मोहम्मद यूनुस की चीन यात्रा से बांग्लादेश के पड़ोसी भारत और अमेरिका के साथ संबंधों पर असर पड़ेगा।

आर्थिक और व्यापारिक क्षेत्र में उम्मीद

वहीं, विश्लेषकों का ये भी मानना है कि मुख्य सलाहकार के इस दौरे से बांग्लादेश को आर्थिक और व्यापारिक क्षेत्र में फायदा मिलने की संभावना ही ज़्यादा है। इस दौरे के दौरान विशेष रूप से व्यापार, निवेश और क्षेत्रीय विकास के क्षेत्रों में सहयोग को मजबूत करने के उद्देश्य से उच्च स्तरीय चर्चा की उम्मीद है।

प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस ने ऐसे समय में बांग्लादेश की बागडोर संभाली है जब देश की अर्थव्यवस्था कई किस्म के दबावों से जूझ रही है। ऐसे में आर्थिक स्थिति को सुधारना ही उनकी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। विश्लेषकों का कहना है कि देश की मौजूदा आर्थिक परिस्थिति में चीन जैसे बड़े और स्थिर आर्थिक साझेदार के सकारात्मक समर्थन की जरूरत है।

विदेश मंत्रालय के सलाहकार तौहीद अहमद ने बीते रविवार को पत्रकारों को बताया कि मुख्य सलाहकार के इस दौरे के दौरान चीन के साथ किसी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए जाएंगे। लेकिन कुछ सहमति पत्रों (एमओयू) पर हस्ताक्षर ज़रूर किए जा सकते हैं।तौहीद अहमद ने स्थानीय पत्रकारों से कहा था कि चीन के साथ आपसी संबंधों में बांग्लादेश वाणिज्य और निवेश को ही सबसे ज़्यादा अहमियत देगा।

चीन ने वर्ष 1975 में बांग्लादेश को मान्यता देकर राजनयिक संबंध कायम किया था। इस साल दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों के 50 साल पूरे होने जा रहे हैं। ढाका में चीन के राजदूत याओ वेन के मुताबिक, राजनयिक संबंधों को 50 साल पूरे होने के संदर्भ में प्रोफ़ेसर यूनुस का चीन दौरा मील का पत्थर साबित होगा।

लिबरल पार्टी ने सांसद चंद्र आर्य को चुनाव लड़ने से रोका, भारत से करीबी संबंध की सजा

#canadianmpchandra_arya

कनाडा की लिबरल पार्टी ने भारतीय मूल के सांसद चंद्र आर्य के पार्टी नेतृत्व के लिए चुनाव लड़ने के आवेदन को तथा उनके अपने ओटावा नेपियन निर्वाचन क्षेत्र में उनके नामांकन को रद्द कर दिया। यह फैसला उन पर भारत सरकार से करीबी संबंध रखने के आरोपों के बीच आया है। चंद्र पिछले साल भारत दौरे पर आए थे और पीएम मोदी से मिले थे। उस वक्त कनाडा और भारत के रिश्तों में तनाव था, आर्य ने कनाडा सरकार को भारत की अपनी यात्रा के बारे में सूचित नहीं किया था।

'ग्लोब एंड मेल डेल' अखबार ने एक शीर्ष सूत्र के हवाले से कहा, चंद्र आर्य पिछले साल अगस्त में भारत आए थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले थे। उन्होंने इस यात्रा की जानकारी कनाडा सरकार को नहीं दी, जबकि कनाडा और भारत के संबंध उस समय तनावपूर्ण थे।

सूत्रों के मुताबिक कनाडियन सिक्योरिटी इंटेलिजेंस सर्विस (सीएसआईएस) ने भारत सरकार के साथ आर्य के कथित करीबी संबंधों को लेकर कनाडा सरकार को जानकारी दी थी।

आरोपों पर क्या बोले चंद्र आर्य ?

चंद्र आर्य ने इन आरोपों को खारिज किया है। भारतीय मूल के सांसद चंद्र आर्य ने कहा, मेरा टिकट भारत से करीबी संबंध रखने की वजह से नहीं कटा। एक सांसद होने के नाते मैं कई राजनयिकों और राष्ट्र प्रमुखों से मिलता रहता हूं। ऐसी किसी भी मुलाकात के लिए उन्होंने सरकार से कभी भी अनुमति नहीं ली।

आर्य ने कहा कि लिबरल पार्टी की लीडरशिप और नेपियन से उनका हटाए जाने की वजह उनका खालिस्तानी आंदोलन का लगातार विरोध करना है। उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि मुझे इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि मैंने कनाडा में खालिस्तानी चरमपंथ के खिलाफ खुलकर बोला है। मैंने कनाडा में रहने वाले हिंदी समुदाय के मुद्दों पर भी जोर दिया है।

आर्य कनाडा में खालिस्तानी तत्वों के खिलाफ लगातार आवाज उठाते रहे हैं। दरअसल, चंद्र आर्य ने 22 जून 2024 को कनाडा की संसद में खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की याद में मौन रखने पर ट्रूडो सरकार की आलोचना भी की थी।

खालिस्तानी पन्नू ने ट्रूडो से शिकायत की थी

आर्य ने कनाडा में खालिस्तानी तत्वों के खिलाफ जोरदार तरीके से आवाज उठाई है। आर्य की आलोचना से चिढ़े खालिस्तानी समूहों ने अतीत में उन्हें निशाना बनाया है। अक्टूबर में अमेरिका स्थित खालिस्तानी आतंकवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो से आर्य के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया था।

चंद्र पहले जस्टिन ट्रूडो के करीबी माने जाते थे, लेकिन खालिस्तानी आतंकवाद और चरमपंथ को लेकर ट्रूडो के रुख के बाद आर्य उनके धुर विरोधी बन गए।

क्या है चंद्र आर्य का भारत कनेक्शन

चंद्र आर्य का जुड़ाव भारत के कर्नाटक से है। उनका जन्म कर्नाटक के तुमकुर जिले के द्वारलू गांव में हुआ। उन्होंने धारवाड़ के कर्नाटक विश्वविद्यालय से एमबीए किया। 2006 में कनाडा जाने के बाद उन्होंने पहले इंडो-कनाडा ओटावा बिजनेस चैंबर के अध्यक्ष के रूप में काम किया और बाद में 2015 के कनाडाई संघीय चुनाव में नेपियन राइडिंग से सांसद बने। उन्हें 2019 और 2021 में भी दोबारा चुना गया।

कुणाल कामरा को पैरोडी सॉन्ग पर टी-सीरीज ने भेजा कॉपीराइट नोटिस, कॉमेडियन बोले- कठपुतली बनना बंद करो

#kunal_kamra_angry_on_t-series_parody_song_copyright_issue

कॉमेडियन कुणाल कामरा इन दिनों सुर्खियों में हैं। कामरा महाराष्ट्र के डिप्टी डिप्टी एकनाथ शिंदे को लेकर पैरोडी सॉन्ग के बाद विवादों में घिर गए हैं। उन्होंने एक पैरोडी सॉन्ग के जरिए महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे पर विवादित कमेंट किया था। उन्होंने बॉलीवुड फिल्म ‘दिल तो पागल’ है के एक गाने पर पैरोडी तैयार की थी जिसमें उनके निशाने पर एकनाथ शिंदे थे। उनके इस वीडियो पर बवाल मच गया था। जो कम होने की जगह बढ़ता ही जा रहा है। अब अपने एक वीडियो में मिस्टर इंडिया फिल्म के गाने पर पैराडी करने की वजह से कुणाल को टी-सीरीज ने कॉपीराइट नोटिस भेजा है। खुद कुणाल ने एकस पर यह जानकारी दी।

कुणाल कामना ने अपने एक्स एकाउंट पर एक पोस्ट किया है। इसमें उन्होंने एक स्क्रीनशॉट भी शेयर किया है। उन्होंने बताया कि यूट्यूब ने उनके वीडियो को फ्लैग कर दिया है। कॉमेडियन ने टी सीरीज पर भड़कते हुए लिखा, “नमस्ते टी सीरीज। कठपुतली बनना बंद करो। पैरोडी और व्यंग्य कानूनी तौर पर उचित उपयोग के अंतर्गत आते हैं। मैंने गाने के लिरिक्स या मूल इंस्ट्रूमेंट का इस्तेमाल नहीं किया है। अगर आप इस वीडियो को हटा देते हैं तो हर कवर सॉन्ग/डांस वीडियो को हटाया जा सकता है। क्रिएटर्स प्लीज इस पर ध्यान दें।”

कॉमेडियन कुणाल कामरा ने कुछ दिन पहले मुंबई के हैबिटेट स्टूडियो में एक शो किया था। शो के दौरान उन्होंने एक पैरोडी गाया और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का नाम लिए बिना उन्हें ‘गद्दार’ कहा था। कुछ लोगों को ये बिलकुल पसंद नहीं आया। विवाद तब बढ़ गया जब कुणाल कामरा ने उसी वीडियो को अपने एक्स अकाउंट पर शेयर कर दिया। शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना को यह बुरा लगा।. इसके बाद हैबिटेट स्टूडियो पर हमला भी हुआ।

राष्ट्रपति पुतिन इस साल भारत दौरे पर आएंगे, यूक्रेन युद्ध के बीच पहला दौरा

#vladimirputinindia_visit

रूस-यूक्रेन जंग के बीच राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत आने वाले हैं। पुतिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भारत दौरा करने का न्योता कबूल कर लिया है। हालांकि, अभी पुतिन के दौरे की तारीख तय नहीं है। पुतिन के भारत दौरे का कार्यक्रम तय किय जा रहा है। यह जानकारी रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने गुरुवार को दी। पुतिन का दौरा ऐसे वक्त में हो रहा है, जब ट्रंप रूस और यूक्रेन के बीच समझौता कराने में जुटे हैं।

रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद रूस की अपनी पहली विदेश यात्रा की है। अब हमारी बारी है। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारतीय सरकार का निमंत्रण स्वीकार कर लिया है। रूसी विदेश मंत्री ने बयान 'रूस और भारत: एक नए द्विपक्षीय एजेंडे की ओर' समिट के दौरान दिया। इस बैठक का आयोजन रूसी अंतरराष्ट्रीय मामलों की परिषद (आरआईएसी) ने किया था।

2024 में दो बार रूस गए थे मोदी

बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी ने अक्टूबर 2024 में रूस की यात्रा की थी, जो लगभग पांच वर्षों में उनकी पहली यात्रा थी। व्लादिमीर पुतिन और नरेंद्र मोदी की आखिरी मुलाकात 22 अक्टूबर 2024 को रूस के कजान में हुई थी। यह 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान की मुलाकात थी। इस द्विपक्षीय बैठक में दोनों नेताओं ने भारत-रूस संबंधों की समीक्षा की और व्यापार, रक्षा, ऊर्जा व लोगों के बीच संपर्क जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर चर्चा की थी। पीएम मोदी ने रूस-यूक्रेन संघर्ष को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने की भारत की प्रतिबद्धता दोहराई और सहयोग की पेशकश की। उसी दौरान पीएम मोदी ने पुतिन को भारत आने का न्योता दिया था।

इससे पहले जुलाई में भी मोदी ने दो दिन का रूस दौरा किया था। तब उन्होंने पुतिन को भारत आने का न्योता दिया था। वहीं, उन्होंने 2019 में एक आर्थिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए सुदूर पूर्वी शहर व्लादिवोस्तोक का दौरा किया था।

आखिरी बार 2021 में भारत आए थे पुतिन

फरवरी 2022 में यूक्रेन वॉर शुरू होने पुतिन की पहली भारत यात्रा होगी। इससे पहले रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने 06 दिसंबर 2021 में भारत की यात्रा की थी। वह सिर्फ 4 घंटे के लिए भारत आए थे। इस दौरान भारत और रूस के बीच 28 समझौते पर दस्तखत हुए थे। इसमें मिलिट्री और तकनीकी समझौते थे। दोनों देशों ने 2025 तक 30 अरब डॉलर (2 लाख 53 हजार करोड़ रुपए) सालाना ट्रेड का टारगेट रखा था।

संसद परिसर में दिखा अलग अंदाज, कंगना-प्रियंका और कल्याण के बीच हंसी-ठिठोली

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संसद में बहुत कम ऐसे अवसर दिखते हैं जब माहौल हल्का-हल्का दिखा हो। हमेशा हंगामे-तकरार और आरोप प्रत्यारोप की जगह आज संसद हंसी ठिठोली देखी गई। वो भी हमेशा एक दूसरे पर तलवार खींचे रहने वाली पार्टी बीजेपी, कांग्रेस और टीएमसी का सांसदों के बीच।

दरअसल, आज संसद से घर जाने के लिए जब ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी के सांसद कल्याण बनर्जी अपनी कार का इंतजार कर रहे थे, तभी अचानक उनकी नजर अभिनेत्री और बीजेपी सांसद कंगना रनौत पर पड़ी. सांसद कंगना रनौत भी अपनी गाड़ी का इंतजार कर रही थीं। तभी कल्याण बनर्जी अचानक कंगना की तरफ मुड़े और मुस्कुराते हुए कहा, ‘आज तो मेरा दिन अच्छा है, इंडिया की ब्यूटी क्वीन भी यहीं पर हैं।

साथी सांसद की तारीफ के बाद हरे रंग की साड़ी में संसद आईं कंगना ने तपाक से मुस्कुराते हुए जवाब दिया- ‘अरे दादा ऐसा तो कुछ नहीं है। कंगना रनौत और कल्याण के बीच हंसी ठिठोली अभी चल ही रही थी कि तीसरे किरदार कांग्रेस महासचिव और सांसद प्रियंका गांधी की एंट्री हुई। प्रियंका गुलाबी साड़ी में मकर द्वार से निकल रही थीं। उसी वक्त कल्याण बनर्जी ने प्रियंका की तरफ देखा और हंसते हुए कहा- ‘द मोस्ट ग्लैमरस लेडी।’

इस पर प्रियंका गांधी जोर से हंस पड़ीं और कल्याण बनर्जी के साथ ही कंगना की तरफ देखकर बोलीं- ‘नो नो मैं कोई ग्लैमरस नहीं हूं।’ इसपर कल्याण ने दोबारा बोले, ‘आप हैं।’ प्रियंका नहीं नहीं हूं… कहती और मुस्कुराती हुईं अपनी गाड़ी की तरफ चली गईं।

इसके बाद फिर कल्याण बनर्जी और कंगना के बीच संवाद शुरू हुआ। कल्याण ने कंगना से फिर हंसते हुए कहा, आप तो ब्यूटी क्वीन हैं। इस पर कंगना ने हंसते हुए कल्याण बनर्जी से कहा कि आपकी जोरदार आवाज पूरे सदन में गूंजती है, आप बड़े नेता हैं। धन्यवाद, फिर दोनों हंसते हुए अपनी अपनी मंजिल की तरफ बढ़ गए।

क्या भाजपा-अन्नाद्रमुक आएंगे साथ, जानें क्यों लग रही गठबंधन की अटकलें?

#bjpaiadmkalliance_rumours

तमिलनाडु में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इससे पहले अटकलें लगाई जा रही हैं कि अन्नाद्रमुक राज्य में विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा के साथ दोबारा गठबंधन कर सकती है। अटकलों की वजह है पूर्व मुख्यमंत्री और अन्नाद्रमुक के महासचिव एडप्पादी के पलानीस्वामी की अमित शाह से मुलाकात। पलानीस्वामी मंगलवार को दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह के घर पहुंचे थे।

हिंदी विवाद के बीच मुलाकात

सूत्रों के अनुसार, अन्नाद्रमुक के नेता ने शाह के साथ तमिलनाडु में हिंदी थोपे जाने समेत कई मुद्दों पर चर्चा की। उन्होंने इस पर अपनी पार्टी के विचारों को साझा किया। इस मुलाकात में तमिलनाडु विधानसभा चुनाव 2026 के लिए दोनों दलों के बीच गठबंधन को लेकर चर्चा की गई। बैठक में करीब 2 घंटे तक दोनों नेताओं के बीच बातचीत हुई, जिसमें चुनावी गठबंधन के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया। हालांकि, यह दोनों नेताओं के बीच में शुरुआती बैठक है। सूत्रों के मुताबिक आगे चलकर दो से तीन दौर की बातचीत होगी।

इससे पहले अन्नाद्रमुक के वरिष्ठ नेताओं ने भाजपा प्रमुख जेपी नड्डा से मुलाकात की थी। उन्हें भाजपा की तमिलनाडु इकाई के प्रमुख के अन्नामलाई की आक्रामक राजनीतिक शैली से उत्पन्न स्थिति से अवगत कराया था। अन्नाद्रमुक नेताओं ने द्रविड़ नेता सीएन अन्नादुरई पर की गई टिप्पणी के लिए अन्नामलाई से माफी मांगने या उन्हें हटाने की मांग की थी।

सत्तारूढ़ गठबंधन की बढ़ सकती है परेशानी

तमिलनाडु में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में राजनीतिक दल अभी से सियासी समीकरण सेट करने में जुट गए हैं। यदि अन्नाद्रमुक और भाजपा में फिर से गठबंधन होता है तो वे राज्य में सत्तारूढ़ द्रमुक नीत आइएनडीआइए गठबंधन को कड़ी चुनौती देंगे। विगत कुछ वर्षों में राज्य में अन्नाद्रमुक के वोट शेयर में गिरावट आई है।

लोकसभा चुनाव के समय नहीं बन सकी बात

पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव के समय भी दोनों दलों के बीच गठबंधन की चर्चा हुई थी, लेकिन उस समय बात नहीं बन पाई थी। चुनाव में बीजेपी अपने वोट प्रतिशत को बढ़ाने में सफल रही। हालांकि, बीजेपी तमिलनाडु में लोकसभा की एक भी सीट नहीं जीत पाई लेकिन वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी पार्टी के लिए अच्छे संकेत माने जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में एआईएडीएमके को भी अब लगने लगा है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव बीजेपी बड़ी भूमिका निभा सकती है। इन्हीं सब वजहों को देखते हुए अब दोनों दल एक बार फिर से करीब आ रहे हैं।

2023 में दोनों के बीच टूटा था गठबंधन

सितंबर 2023 में एआईएडीएमके ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया था। एआईएडीएमके के नेता बीजेपी की तमिलनाडु में बढ़ती महत्वाकांक्षाओं और द्रविड़ आइकन पेरियार के बारे में बीजेपी नेताओं की विवादास्पद टिप्पणियों से परेशान थे। 2024 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए, एआईएडीएमके ने अकेले जाने का फैसला किया। वे बीजेपी के प्रभाव के बिना अपनी राह बनाना चाहते थे। लेकिन यह पहली बार नहीं था जब उनका गठबंधन टूटा था।

साउथ कोरिया में 2 लाख मासूमों को अनाथ बताकर विदेशों में “बांट” दिया गए, एडॉप्शन का ये शर्मनाक घालमेल

#southkoreainternationaladoptionfraud

साउथ कोरिया में अजीबोगरीब घोटाला सामने आया है। आप जानकर हैरान रह जाएंगे की अपने ही बच्चों को गलत तरीके से पूरी दुनिया में बांट दिया गया। यहां करीब 2 लाख मासूम बच्चों को अनाथ बताकर, उनकी पहचान छिपाकर विदेशियों को गोद दिया गया। साउथ कोरिया की सरकारी एजेंसियों पर भी घोटाले में शामिल होने के आरोप लगे हैं। वहां की सरकार ने मामले की जांच के लिए एक आयोग भी बनाया है जिसका नाम ट्रुथ एंड रिकंसिलेशन कमिशन रखा गया है। जो उन कई सौ बच्चों के रिकॉर्ड खंगाल रही है, जिन्हें धोखे से विदेशियों को गोद दिया गया था।

ट्रुथ एंड रिकंसिलेशन कमिशन ने जब खंगालना शुरू क‍िया तो जो बातें सामने आईं, वो हैरान कर देने वाली हैं। पता चला क‍ि देश की एजेंसियों ने बच्चों को गोद लेने के लिए विदेश भेजने में जबरदस्‍त जल्‍दबाजी दिखाई। इसमें उनकी हेल्‍थ और मानवाध‍िकार का भी ख्‍याल नहीं रखा गया। कई बच्‍चों के बर्थ रिकॉर्ड में हेराफेरी की गई, बच्चों को अनाथ बताया जबकि उनके माता-पिता पहले से ही थे। ज‍िन्‍हें बच्‍चे सौंपे गए, उनके बारे में भी पूरी जांच नहीं की गई। बच्चों को जबरन गोद देने के लिए मजबूर किया गया।

फर्जी दस्तावेजों के आधार पर गोद दिए गए बच्चे

जांच में सामने आया कि गोद लेने की प्रक्रिया में शामिल एजेंसियों और अधिकारियों ने कई मामलों में बच्चों को अनाथ के रूप में दर्ज किया गया, जबकि उनके माता-पिता जीवित थे। वे नहीं चाहते थे क‍ि उनका बच्‍चा देश छोड़कर जाए, इसके बावजूद उनसे लेकर लालच देकर बच्‍चों को छीन ल‍िया गया। कई पेरेंट्स को ये तक बता द‍िया गया क‍ि उनका बच्‍चा मर गया है। जबक‍ि वह बच्‍चा जिंदा था। कुछ को ये कहा गया क‍ि बच्‍चे को बेहतर देखभाल के ल‍िए भेजा जा रहा है। लेकिन फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बच्चों को विदेशी परिवारों को सौंप दिया गया। इस प्रक्रिया में बच्चों की पहचान, जन्म तिथि और पारिवारिक इतिहास को बदल दिया गया, जिससे उनकी मूल जड़ों का पता लगाना असंभव हो गया।

बच्चों को विदेश भेजने में मानवाधिकारों का उल्लंघन

कमीशन ने दो साल और सात महीने की जांच की। इसके बाद एक ऐतिहासिक घोषणा में उसने कहा कि साउथ कोरिया के बच्चों के अंतरराष्ट्रीय गोद लेने में मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ। ट्रुथ एंड रिकॉन्सिलिएशन कमीशन ने एक बयान में कहा, यह पाया गया है कि सरकार ने अपना कर्तव्य नहीं निभाया। जिसके परिणामस्वरूप बहुत सारे बच्चों को विदेश भेजने की प्रक्रिया के दौरान संविधान और अंतरराष्ट्रीय समझौतों द्वारा संरक्षित गोद लेने वालों के मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ।

कैसे शुरू हुआ था गोद लेने का रिवाज

दक्षिण कोरिया ने 1950 और 1960 के दशक में कोरियाई युद्ध के बाद विदेशी गोद लेने को बढ़ावा देना शुरू किया था। उस समय देश आर्थिक रूप से कमजोर था और सामाजिक कल्याण प्रणाली सीमित थी। इस दौरान हजारों बच्चों को विदेशों, खासकर अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में गोद लेने के लिए भेजा गया।

साल 1954 में अमेरिका के ओरेगन इलाके से बर्था और हैरी हॉल्ट नाम का दंपत्ति कोरियन युद्ध में अनाथ हुए बच्चों पर एक प्रेजेंटेशन देखने के लिए गए थे। प्रेजेंटेशन में बच्चों को देखकर बर्था का दिल भर आया। द न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक उसने एक जगह लिखा था कि उन छोटे बच्चों के गोल उदास चेहरे देखकर लग रहा था मानो वो अपनी देखभाल के लिए किसी को खोज रहे हों। उस समय अमेरिका में विदेश से दो से अधिक बच्चों को गोद लेने पर रोक थी, लेकिन 1955 में ओरेगन के दो सीनेटरों ने कोरियाई युद्ध में अनाथ हुए बच्चों के लिए एक विधेयक पेश किया, ताकि होल्ट और उसकी पत्नी कोरिया के अनाथ हुए बच्चों को गोद ले सकें।

कांग्रेस से बिल पास होने के बाद होल्ट ने कोरिया से चार लड़के और चार लड़कियों को गोद लिया। जब यह खबर अगले दिन अखबारों में छपी तो होल्ट को कई सारे खत मिले। इनमें कई सारे दंपत्तियों ने इच्छा जाहिर की थी कि वो भी कोरियन युद्ध में अनाथ हुए बच्चों को गोद लेना चाहते हैं।

एक साल में होल्ट दंपत्ति ने एक एडॉप्शन कार्यक्रम की शुरूआत की। इसके बाद साउथ कोरिया में भी होल्ट एजेंसी बनाई गई। धीरे-धीरे इस एजेंसी से न सिर्फ अमेरिका बल्कि कई यूरोपीय देश के लोगों ने भी बच्चे गोद लिए। यह एजेंसी आज के समय में भी विदेश की सबसे बड़ी बच्चे गोद दिलाने वाली एजेंसियों में से एक है।

USCIRF खुद चिंता का विषय', अमेरिकी धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की रिपोर्ट पर भारत का जवाब

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भारत ने अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) की रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया है। यही नहीं इस रिपोर्ट की कड़ी निंदा करते हुए इसे पक्षपातपूर्ण और राजनीति से प्रेरित आकलन का पैटर्न बताया है। बता दें कि एक दिन पहले इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में ना सिर्फ भारत में अल्पसंख्यकों के साथ खराब व्यवहार का जिक्र किया है बल्कि खुफिया एजेंसी रॉ पर भी टारगेटेडे बैन यानि लक्षित प्रतिबंध लगाने को कहा है।

रिपोर्ट जारी होने के बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने मामले में कहा हमने हाल ही में जारी की गई यूएससीआईआरएफ की 2025 वार्षिक रिपोर्ट देखी है, जिसमें यह एक बार फिर अपनी पिछली रिपोर्टों की तरह पक्षपाती आकलन जारी कर रहा है। उन्होंने कहा कि आयोग भारत के धार्मिक विविधता और बहुलवादी ढांचे को सही तरीके से नहीं प्रस्तुत कर रहा है और इसके लगातार आरोप भारत की धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति को गलत तरीके से पेश करते हैं।

इसके साथ ही जायसवाल ने यह भी कहा कि भारत में 1.4 बिलियन लोग रहते हैं, जो अलग-अलग धर्मों से आते है। इस बात के लिए भारत का समाज एक उदाहरण है कि विभिन्न धर्मों के लोग शांति और सामंजस्यपूर्ण तरीके से एक साथ रहते है। साथ ही उन्होंने कहा कि हमें कोई उम्मीद नहीं है कि यूएससीआईआरएफ भारत की बहुलवादी वास्तविकता को स्वीकार करेगा या इसके विविध समुदायों के शांतिपूर्ण सहजीवन को समझेगा।

रणधीर जायसवाल ने अपने आधिकारिक बयान में अंत में यह भी कहा कि लोकतंत्र और सहिष्णुता के प्रतीक के रूप में भारत की स्थिति को कमजोर करने के ऐसे प्रयास सफल नहीं होंगे. वास्तव में, यह यूएससीआईआरएफ है जिसे चिंता का विषय माना जाना चाहिए।

बता दें कि अमेरिकी पैनल के इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में धर्म के नाम पर भेदभाव बढ़ गए है। साथ भारत की खुफिया एजेंसी रॉ (रॉ) के बारे में यह आरोप लगाया गया था कि वह कुछ हत्याओं की साजिशों में कथित रूप से शामिल थी। इस रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई थी कि रॉ की गतिविधियों पर रोक लगाई जाए।

पीएम मोदी से मिलने की आस लगाए बैठे हैं मोहम्मद यूनुस, उससे पहले मिला उनका पत्र

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भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। इस बीच भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में भी अस्थिरता आई है। शेख हसीना के प्रधानमंत्री रहते भारत और बांग्लादेश के जैसे संबंध रहे हैं, अब वैसे नहीं रह गए हैं। हालांकि, दोनों देश रिश्तों को सामान्य बनाए रखने की कोशिश जारी रखे हुए हैं। इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेश के राष्ट्रीय दिवस पर बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस को पत्र लिखकर बधाई दी है।

बांग्लादेश के राष्ट्रीय दिवस पर पीएम मोदी ने बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस को पत्र लिखा है।पीएम मोदी ने इस चिट्ठी में इतिहास का जिक्र किया और 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम की अटूट भावना को भारत-बांग्लादेश के मजबूत संबंधों की नींव बताया, और बांग्लादेश को उसकी स्थापना में भारत की भूमिका की याद दिलाई।

पीएम मोदी ने कहा कि राष्ट्रीय दिवस हमारे साझा इतिहास और बलिदानों का प्रमाण है, जिसने हमारी द्विपक्षीय साझेदारी की नींव रखी है। मोदी ने कहा कि बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम की भावना हमारे संबंधों के लिए मार्गदर्शक प्रकाश बनी हुई है, जो कई क्षेत्रों में फली-फूली है और हमारे लोगों को ठोस लाभ पहुंचा रही है। पीएम मोदी ने कहा कि हम शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए अपनी साझा आकांक्षाओं और एक-दूसरे के हितों और चिंताओं के प्रति आपसी संवेदनशीलता के आधार पर इस साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

यह घटनाक्रम दोनों नेताओं के थाईलैंड में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में पहली बार आमने-सामने आने के बमुश्किल एक सप्ताह पहले हुआ है। दोनों नेता 3-4 अप्रैल को बैंकॉक में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। ढाका ने द्विपक्षीय बैठक की मांग की है, जबकि भारत अब तक इस मुद्दे पर चुप रहा है। बांग्लादेश ने मंगलवार को कहा कि वह अगले सप्ताह बैंकॉक में बिम्सटेक (बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल) शिखर सम्मेलन के दौरान मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच बैठक के अपने प्रस्ताव पर भारत की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहा है।

भारत की पुरानी सहयोगी शेख हसीना के नेतृत्व वाली आवामी लीग सरकार को देशव्यापी आंदोलन के बाद गिराए जाने और पूर्व प्रधानमंत्री को भारत भागने पर मजबूर होने के बाद दोनों देशों के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं। सत्ता परिवर्तन के बाद बनी अंतरिम सरकार का नेतृत्व नोबेल पुरस्कार विजेता और अर्थशास्त्री मुहम्मद यूनुस कर रहे हैं। अल्पसंख्यकों पर हमलों की खबरों के बीच भारत ने बांग्लादेश के साथ अपनी चिंताएं साझा की हैं। ढाका ने कहा है कि हमले सांप्रदायिक नहीं, बल्कि राजनीति से प्रेरित हैं।

चीन जाने से पहले भारत आना चाहते थे युनूस, दिल्ली ने दिखा दी औकात

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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस चीन के दौरे पर हैं। खबरों की मानें तो वो चीन से पहले भारत की यात्रा करना चाहते थे। इसके लिए उन्हें अनुरोध भी भेजा गया था, लेकिन भारत सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं मिलने के बाद उन्होंने चीन जाने का फैसला किया।

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक मोहम्मद यूनुस पहले दिल्ली आना चाहते थे और इसके लिए अनुरोध भेजा गया था लेकिन भारत सरकार से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने के बाद उन्होंने चीन का दौरा चुनने का फैसला किया। द हिंदू ने मोहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम के हवाले से इसकी जानकारी दी है। आलम ने कहा, हमने भारत दौरे में रुचि दिखाई थी। पिछले साल दिसंबर में ही भारतीय पक्ष से मुख्य सलाहकार प्रोफेसर यूनुस की भारत में द्विपक्षीय यात्रा के लिए कहा गया था। यह उनकी चीन यात्रा को अंतिम रूप दिए जाने से कुछ सप्ताह पहले किया गया था। दुर्भाग्य से, हमें कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली।

रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने कहा कि मोहम्मद यूनुस भारत के साथ मधुर द्विपक्षीय संबंध चाहते हैं। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख प्रेस सचिव आलम ने कहा है कि चीन से लौटने के बाद मोहम्मद यूनुस 3 से 4 अप्रैल को बैंकॉक में आयोजित होने वाले बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। उन्होंने कहा कि हमने थाईलैंड में आयोजित होने वाले आगामी बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान प्रोफेसर यूनुस और प्रधानमंत्री मोदी के बीच बैठक के लिए एक और अनुरोध किया है और हम भारत के जवाब मिलने का इंतजार कर रहे हैं।

बता दें कि मोहम्मद यूनुस 26-29 मार्च तक चीन यात्रा पर हैं। अपने दौरे के दौरान मोहम्मद यूनुस प्रमुख चीनी निवेशकों के साथ बैठक करेंगे। इस दौरान वो चीनी निवेशकों को बांग्लादेश में आमंत्रित करेंगे और चीनी कारोबारियों के लिए बांग्लादेश में एक अनुकूल माहौल बनाने का ऑफर देंगे। ताकि चीनी कंपनियों के लिए बांग्लादेश में कारोबार के लिए एक अच्छा माहौल बनाया जा सके।