वक्फ बिल पर फूंक-फूंक कर कदम रख रही मोदी सरकार, सीएए की तरह ना बन जाएं हालात
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वक्फ संशोधन बिल 2024 को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच तकरार तेज होती जा रही है। एक तरफ सरकार वक्फ संशोधन बिल को अंतिम रूप देने की तैयारी में है। कहा जा रहा है कि संसद के चालू बजट सत्र के दूसरे चरण में वक्फ संशोधन बिल 2024 को पेश किया जा सकता है। वही वक्फ बिल के खिलाफ मुस्लिम संगठनों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। इस बिल के विरोध में जंतर-मंतर पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन भी हुआ।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से लेकर जमियत उलेमा-ए-हिंद और जमात-ए-इस्लामी सहित तमाम मुस्लिम संगठनों ने 17 मार्च को दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन कर अपने तेवर दिखा दिए हैं। इस प्रदर्शन में विपक्षी नेताओं का भी साथ मिला। इन संगठनों ने किसान आंदोलन की तरह वक्फ बिल के खिलाफ आंदोलन खड़ा करने की चेतावनी सरकार को दी है। जिससे सियासी दबाव बढ़ रहा है। वक्फ बिल को लेकर मौलाना मुसलमानों को एकजुट करने में लगे हैं। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि कहीं सीएए-एनआरसी जैसे हालात तो पैदा नहीं हो जाएंगे?
क्या हुआ था 2019 में?
मोदी सरकार साल 2019 में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक समुदाय को भारत की नागरिकता देने के लिए सीएए कानून लेकर आई थी। सीएए के तहत मुस्लिम समुदाय को छोड़कर हिंदुओं, जैनों, ईसाइयों, सिखों, बौद्धों और पारसियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान रखा गया। इसे लेकर दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय आंदोलन शुरू हुआ, जिसका केंद्र शाहीन बाग बन गया। सीएए-एनआरसी के खिलाफ शाहीन बाग का प्रोटेस्ट एक मॉडल बन गया और इस आंदोलन की चिंगारी देश भर में फैल गई थी। देश के तमाम शहरों में शहीन बाग की तर्ज पर महिलाएं और बच्चे सड़कों पर उतरकर धरने दे रहे थे।
सीएए कानून के विरोध में मुस्लिम समुदाय इसीलिए भी विरोध प्रदर्शन के लिए उतर गए थे, क्योंकि उन्हें ये संशय था कि उनकी नागरिकता छिन जाएगी। सीएए के खिलाफ आंदोलन ने जब विकराल रूप लिया तो मोदी सरकार को साफ-साफ शब्दों में कहना पड़ा कि फिलहाल सरकार की मंशा एनआरसी लागू करने की नहीं है। हालांकि, सरकार ने 2024 में इस कानून को भी लागू कर दिया।
क्या कानून पास कराने की स्थिति में है सरकार?
वक्फ संशोधन बिल को संसद में पारित कराना सरकार के लिए कोई बड़ी चुनौती नहीं है। यह बिल पहले ही संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से पास हो चुका है, और लोकसभा में सरकार के पास स्पष्ट बहुमत है।
लोकसभा में संख्याबल:
लोकसभा कुल सीटें: 542
एनडीए के सांसद: 293 (जिसमें बीजेपी के 240 सदस्य)
कांग्रेस सहित इंडिया ब्लॉक के सांसद: 233
अन्य निर्दलीय और छोटे दलों के सांसद: 16 सदस्य
अगर बिल पर वोटिंग (डिवीजन) होती है, तो भी सरकार आसानी से इसे पारित करा लेगी, क्योंकि एनडीए के पास स्पष्ट बहुमत है।
राज्यसभा में सरकार की स्थिति
राज्यसभा कुल सदस्य: 236
बीजेपी के सांसद: 98
एनडीए के कुल सांसद: 115
6 नॉमिनेटेड सदस्य (जो आमतौर पर सरकार के पक्ष में वोट करते हैं), वहीं, संभावित समर्थन के साथ एनडीए का आंकड़ा 120+ है जो कि बहुमत के लिए पर्याप्त है।
क्या है वक्फ और इसका प्रबंधन?
बता दें कि वक्फ एक इस्लामी परंपरा है, जिसमें धार्मिक उद्देश्यों के लिए संपत्ति दान की जाती है। वक्फ संपत्तियों को बेचा या विरासत में नहीं दिया जा सकता, ये हमेशा अल्लाह के नाम पर होती हैं। भारत में 8,72,351 वक्फ संपत्तियां हैं, जो 9 लाख एकड़ भूमि में फैली हुई हैं। अनुमानित रूप से इनकी कीमत 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक है।
इस वक्त देश में अलग-अलग प्रदेशों के करीब 32 वक्फ बोर्ड हैं, जो वक्फ की संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन, देखरेख और मैनेजमेंट करते हैं। बिहार समेत कई प्रदेशों में शिया और सुन्नी मुस्लिमों के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्ड हैं।
वक्फ बोर्ड का काम वक्फ की कुल आमदनी कितनी है और इसके पैसे से किसका भला किया गया, उसका पूरा लेखा-जोखा रखना होता है। इनके पास किसी जमीन या संपत्ति को लेने और दूसरों के नाम पर ट्रांसफर करने का कानूनी अधिकार है। बोर्ड किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी नोटिस भी जारी कर सकता है। किसी ट्रस्ट से ज्यादा पावर वक्फ बोर्ड के पास होती है।
संसद ने 1954 में बनाया था वक्फ एक्ट
वक्फ में मिलने वाली जमीन या संपत्ति की देखरेख के लिए कानूनी तौर पर एक संस्था बनी, जिसे वक्फ बोर्ड कहते हैं। 1947 में देश का बंटवारा हुआ तो काफी संख्या में मुस्लिम देश छोड़कर पाकिस्तान गए थे। वहीं, पाकिस्तान से काफी सारे हिंदू लोग भारत आए थे। 1954 में संसद ने वक्फ एक्ट 1954 के नाम से कानून बनाया।
इस तरह पाकिस्तान जाने वाले लोगों की जमीनों और संपत्तियों का मालिकाना हक इस कानून के जरिए वक्फ बोर्ड को दे दिया गया। 1955 में यानी कानून लागू होने के एक साल बाद, इस कानून में बदलाव कर हर राज्यों में वक्फ बोर्ड बनाए जाने की बात कही गई।
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