*नये टीबी रोगी खोजने के साथ एडॉप्शन पर जोर, चिकित्सकों ने गोद लिये दस मरीज*
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गोरखपुर। जिले में 24 मार्च तक संचालित 100 दिवसीय टीबी उन्मूलन अभियान के दौरान 24 फरवरी तक 3737 नये टीबी मरीज खोजे जा चुके हैं। इस अवधि में खोजे गये नये मरीजों के इलाज के साथ साथ टीबी उपचाराधीन जरूरतमंद मरीजों के एडॉप्शन पर भी विशेष जोर है। इसी कड़ी में बीआरडी मेडिकल कॉलेज के चिकित्सकों ने मंगलवार को दस टीबी उपचाराधीन मरीजों को गोद लिया । उन्हें पोषण पोटली दी और इलाज चलने तक उनकी देखरेख का संकल्प लिया । मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आशुतोष कुमार दूबे ने बताया कि जिले में 1476 निक्षय मित्र 5196 टीबी उपचाराधीन मरीजों को गोद लेकर उनके स्वस्थ होने में मददगार बन रहे हैं।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि गोद लेने का आशय टीबी उपचाराधीन मरीज को पोषक सामग्री से सहायता, इलाज चलने तक नियमित कुशलक्षेम पूछने, सामाजिक योजनाओं का लाभ दिलाने में मदद करने और मानसिक संबल बढ़ाने से है। कोई भी व्यक्ति या संस्था जरूरतमंद टीबी उपचाराधीन मरीज को गोद लेकर निक्षय मित्र बन सकते हैं। निक्षय मित्रों को समय समय पर विभाग द्वारा सम्मानित किया जाता है और उन्हें इस आशय का प्रशस्ति पत्र भी दिया जाता है।
जिला क्षय उन्मूलन अधिकारी डॉ गणेश यादव ने बताया कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के डॉ हरिशचंद्र, डॉ नेहा प्रियंका, डॉ श्रद्धा और डॉ आरूषि ने दस मरीजों को गोद लिया है। एडॉप्शन कार्यक्रम में टीबी एंड चेस्ट विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अश्विनी मिश्रा, चिकित्सा अधिकारी डॉ शमीम अंसारी, एसटीएस अमित नारायण मिश्र, महेश चंद्र साहनी, एसटीएलएस पिंटू सिंह, टीबी एचवी रंजीत सिंह यादव, एसए जितेंद्र चंद और एलटी विश्वजीत शर्मा का विशेष योगदान रहा।
दवा न छूटे
डीटीओ डॉ यादव ने बताया कि सही फॉलो अप के अभाव में, कई बार लक्षण समाप्त होने पर और कुछ मामलों में दवाओं की प्रतिक्रिया के कारण टीबी उपचाराधीन मरीज दवा छोड़ देता है। इससे वह ड्रग रेसिस्टेंट टीबी मरीज बन सकता है, जिसका इलाज जटिल और महंगा है। निक्षय मित्र टीबी उपचाराधीन मरीजों को जब गोद लेकर समय समय पर उनका हालचाल लेते हैं, दवा बंद नहीं होने देते। उनकी मदद करते हैं तो यह स्थिति नहीं आने पाती। इस तरह मरीज न केवल खुद ठीक हो जाता है, बल्कि समाज में भी संक्रमण फैलने का खतरा टल जाता है।
Feb 27 2025, 19:08