महाशिवरात्रि पर 60 साल बाद बन रहा खास संयोग
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-नितेश श्रीवास्तव
भदोही। शिव-शक्ति के मिलन का महापर्व शिवरात्रि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी में 26 फरवरी बुधवार को मनाया जाएगा। इस दिन श्रवण व धनिष्ठा नक्षत्र का युग्म संयोग, परिघ योग एवं शिव योग के विशेष संयोग के साथ मकर राशि के चन्द्रमा की उपस्थिति रहेगी। महाशिवरात्रि पर वर्ष 1965 के बाद सूर्य, बुध व शनि ये तीनों ग्रह के कुंभ राशि में विद्यमान होने से त्रिग्रही योग का संयोग बन रहा है। सात साल बाद बुधवार के दिन का संयोग रहेगा। करीब 31 वर्ष बाद महाशिवरात्रि पर बुधादित्य योग भी रहेगा। ग्रहों-गोचरों का यह संयोग आध्यात्मिक उन्नति और प्रतिष्ठा में वृद्धि प्रदान करेगा। महाशिवरात्रि के दिन शुभ संयोग व शुभ मुहूर्त में भगवान शिव के साथ माता पार्वती की पूजा-आराधना करने से श्रद्धालुओं की मनोवांछित कामना की प्राप्ति होगी।
महादेव की पूजा यथा श्रद्धा, यथा प्रहर, यथा स्थिति व यथा उपचार के अनुसार करना चाहिए। चार प्रहर की साधना से जातक को धन, यश, प्रतिष्ठा और समृद्धि प्राप्त होती है। सूर्य व शनि पिता-पुत्र है और सूर्य शनि की राशि कुंभ में रहेंगे। इस प्रबल योग में भगवत साधना करने से आध्यात्मिक, धार्मिक उन्नति होती है।वही सूर्य-बुध के केंद्र त्रिकोण का योग पराक्रम व प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिए सहायक सिद्ध होगा।पौराणिक कथा के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था। इसलिए हर वर्ष फाल्गुन माह की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। इस खास अवसर पर देशभर में शिव मंदिरों में महादेव की पूजा विशेष पूजा-अर्चना होती है। साथ ही महाभिषेक किया जाता है। इसके अलावा शिव भक्त महादेव की बारात निकालते हैं। धार्मिक मान्यता है कि महाशिवरात्रि पर शिव जी की उपासना और व्रत करने से विवाह में आ रही बाधा से छुटकारा मिलता है और जल्द विवाह के योग बनते हैं।
जिले में शिवभक्तों की आस्था का प्रमुख केन्द्र बाबा बड़े शिव मंदिर का इतिहास 16वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है। मंदिर परिसर का सुरम्य वातावरण हर किसी को आकर्षित करता है। शायद यहीं कारण है कि यह मंदिर परिसर निर्माण काल से ही साधकों की साधना स्थली रही है। यहां मोरंग के राजा के साथ ही मौनी स्वामी ने यहां सालों तक साधना की है। वहीं आज भी जनवरी-फरवरी माह के दौरान नागा साधु एक महीने तक यहां रूक कर भोलेनाथ की साधना करते हैं। मान्यता है कि भक्तों की मनोकामना पूरी करने वाले बाबा बड़े शिव के दर्शन से ही सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।मंदिर के मुख्य पुजारी शंकाराचार्य दूबे बताते हैं कि मंदिर का निर्माण कार्य लगभग 16वीं शताब्दी में हुआ था। तब मंदिर के चारों ओर घनघोर जंगल हुआ करता था। जिसमें पलाश के वृक्षों की बहुतायत थी। ऐसा बताया जाता है कि एक बार अयोध्या के राजा शिकार करने जंगल में आये थे। वे भूख प्यास से व्याकुल थे, तो एक साधु ने उनको दर्शन दिया और उनकी क्षुधा शांत करने के बाद अंतर्ध्यान हो गए।
मान्यता है कि जहां साधु ने उन्हें दर्शन दिया था। उसी स्थान पर राजा ने एक शिवलिंग की स्थापना की। कालांतर में शिवलिंग जमीन के अंदर चला गया। एक दिन नगर के एक धार्मिक व्यक्ति के घर सर्प आया। सर्प को देख आसपास के लोग उसे मारने को दौड़ पड़े, लेकिन उस व्यक्ति ने उन्हें रोकते हुए जिस ओर नाग देवता चले। अनायास ही उसी ओर चल पड़े। जंगल में पहुंचने के बाद सर्प एक जगह पर अपना फन पटकने लगा। जहां खुदाई की गई तो भोलेनाथ के शिवलिंग का दर्शन हुआ। उसके बाद से ही यह लोगों की आस्था का प्रमुख केन्द्र हो गया। साधु-संतों को भी आकर्षित करता है। इस मंदिर की एक और खासियत है। मंदिर के चारों तरफ हनुमान जी मूर्ति विराजमान है। मंदिर के ठीक सामने एक प्राचीन तालाब है। जिसमें कमल पुष्प सुशोभित होते हैं। इसके अलावा चारों तरफ घने पेड़ों का परिक्षेत्र है। यह साधकों को भी आकर्षित करती है। लगभग 60 वर्ष पूर्व मोरंग के राजा, जो राजा बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुए। इस स्थान को अपनी तपस्थली बनाई। इसी तरह मौनी स्वामी ने भी यहीं पर पीपल के वृक्ष के नीचे साधना की। पीपल का वृक्ष आज भी है। जनवरी-फरवरी में महाकुंभ के समय नागा साधु एक महीने तक मंदिर पर प्रवास कर साधना करते हैं।
Feb 20 2025, 19:03