शांति का नोबेल...फिर अशांत बांग्लादेश को क्यों नहीं संभाल पा रहे मोहम्मद यूनुस?
#bangladeshwhyisstillnotstablemuhammad_yunus
बांग्लादेश में अगस्त में तख्तापलट हुआ था। बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण में सुधार को लेकर जून से लगातार प्रदर्शन हो रहे थे। अगस्त में प्रदर्शन इतना भयावह हो गया कि शेख हसीना को देश छोड़ना पड़ा। इसके बाद मोहम्मद यूनुस को अंतरिम मुख्य सलाहकार के तौर पर चुना गया। नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस के साथ ही उम्मीद थी कि बांग्लादेश के हालात बेहतर होंगे। अगस्त के बाद यानी शेख हसीना के जाने के बाद चार महीने बीत चुके हैं। हालांकि, देश में लॉ एंड ऑर्डर के हाल बद से बद्दतर होते जा रहे हैं। यूनुस सरकार से बांग्लादेश नहीं संभल रहा। बांग्लादेश में लगातार हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं। न केवल हिंदू मंदिरों को तोड़ा जा रहा, बल्कि हिंदुओं पर अत्याचार भी हो रहे हैं। इस हालात में मोहम्मदपर ये कहावत बड़ी सटीक बैठती है कि “जब रोम जल रहा था तो नीरो बाँसुरी बजा रहा था।”
बांग्लादेश के हालात पर पूरी दुनिया में सवेल उठ रहे हैं। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर मोहम्मद यूनुस सरकार क्या कर रही है? किसके इशारे पर यूनुस हिंदुओं और अल्पसंख्यकों पर हमले करवा रहे हैं? क्यों वह इसे रोक पाने में नाकाम साबित हो रही है? कुछ तो यूनुस के शांति के नोबेल पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं।
कट्टरपथियों को बढ़ावा दे रही
बांग्लादेश में 4 अगस्त के बाद से कट्टरपंथियों का राज कायम हो गया है। मोहम्मद यूनुस इन इस्लामिक फंडामेंटलिस्ट के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं। हिंदुओं पर हमले के 2 हजार से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं, लेकिन मोहम्मद यूनुस की सरकार इन हमलों को रोक पाने में नाकाम रही है। कट्टरपथियों को बढ़ावा देने और उनके सामने घुटने टेकने के लिए बांग्लादेश की मौजूदा सरकार की इस वक्त पूरी दुनिया में आलोचना हो रही है।
हमलों के पीछे किनका हाथ?
अमेरिकन एनजीओ, फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज के मुताबिक, 5 अगस्त के बाद से हिंदू समुदाय पर हिंसा के दो सौ से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं, जबकि ज्यादातर मामले सामने ही नहीं आए। चिन्मय कृष्ण दास की राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तारी ने अशांति को और भड़का दिया है। इसके बाद से ढाका समेत कई बड़े शहरों में प्रोटेस्ट हो रहे हैं। अल्पसंख्यकों पर हमलों के पीछे कथित तौर पर जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश के लोग हैं।
अगस्त में तख्तापलट के बाद से दो घटनाओं में जेल से लगभग सात सौ कैदी फरार हो गए, इनमें से काफी सारे कैदी जमात-उल-मुजाहिदीन के सपोर्टर थे। इस दौरान ही हिंदुओं पर हमले बढ़ते चले गए।
यूनुस के जमात-ए-इस्लामी से रिश्तों के मायने
एक बड़ी चिंता ये है कि यूनुस के जमात-ए-इस्लामी से अच्छे रिश्ते बने हुए हैं। कम से कम उनके हालिया राजनैतिक फैसलों से यही झलकता है। अंतरिम सरकार के लीडर बतौर उन्होंने इस गुट पर लगी पाबंदियां हटा दीं। बता दें कि जमात-ए-इस्लामी पर कट्टरपंथी राजनैतिक गुट है, जिसके खिलाफ खुद वहां की सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए उसके चुनाव में हिस्सा लेने पर रोक लगा दी। पॉलिटिकल गतिविधियों के अलावा वो कोई सभा भी नहीं कर सकती थी। लेकिन अंतरिम सरकार के आते ही उसपर से सारी रोकटोक खत्म हो गई।
हेफाजत-ए-इस्लाम से भी मेल-मिलाप
हेफाजत-ए-इस्लाम भी एक कट्टरपंथी संगठन है, जिससे यूनुस से रिश्ते सामने आ रहे हैं। इस गुट की विचारधारा महिलाओं के बिल्कुल खिलाफ है, यहां तक कि इसके नेता भी अपनी भारत-विरोधी सोच के लिए जाने जाते हैं। यूनुस का हाल में इन नेताओं से संपर्क बढ़ा है। अगस्त 2024 में, उन्होंने इसके नेता ममनुल हक से मुलाकात की थी।
Dec 03 2024, 14:08