धनबाद के झरिया विधानसभा सीट पर इस बार भी एक खानदान की दो बहुयें आमने सामने, देखिए धनबाद की जनता सर्यदेव सिंह की विरासत किसे सौंपती है
झारखण्ड डेस्क
धनबाद: धनबाद की झरिया सीट आज एक ऐसा सीट बन गया हैं जहाँ एक हीं परिवार के दो मज़बूत चेहरे हैं. जिनके बीच सियासी जंग हैं.
2014 के चुनाव में जहां चेचेरे भाई आमने-सामने थे तो वहीं 2019 की जंग जेठानी-देवरानी के बीच थी. इस बार 2024 के विधानसभा चुनाव में भी मुकाबला जेठानी और देवरानी के बीच ही है.
इस बाऱ भी धनबाद की झरिया सीट चुनावी कुरुक्षेत्र फिर से सज गया है और इस बार के चुनाव में भी 2019 वाली लड़ाई का ही रीकैप है. झरिया से मौजूदा विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह कांग्रेस से मैदान में हैं जिनके सामने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने उनकी ही देवरानी रागिनी सिंह को उतारा है. कोयलांचल की झरिया सीट पर एक ही परिवार की दो बहुओं की चुनावी फाइट है.
इस सीट पर धनबाद के सबसे पावरफुल सियासी खानदान सूर्यदेव सिंह के परिवार की दो बहुएं आमने-सामने हैं. नीरज सिंह की पत्नी और मौजूदा विधायक पूर्णिमा सिंह के सामने पूर्व विधायक संजीव सिंह की पत्नी रागिनी सिंह एक चुनौती है. इस सीट पर 2019 के चुनाव में भी जेठानी पूर्णिमा औऱ देवरानी रागिनी सिंह के बीच ही मुकाबला था. तब पूर्णिमा सिंह पांच हजार वोट से अधिक के अंतर से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचने में सफल रही थीं.
कभी साथ थी देवरानी और जेठानी, अब दोनों के रहने का ठिकाना अलग है
दोनों ही के परिवारों के बीच दूरियां भी बहुत बढ़ चुकी हैं. 2009 के चुनाव तक धनबाद की सियासत में दबदबा रखने वाला सिंह मेंशन एकजुट था लेकिन इसके बाद परिवार में बढ़ी दूरियों की वजह से एक शाख और निकली- रघुकुल. एक ही परिवार से निकली इन दो साखों की लड़ाई है.
2014 से ही शुरू हुई सिंह मेंशन-रघुकुल की अदावत
धनबाद की सियासत में 2009 के चुनाव तक सिंह मेंशन का दबदबा था. सिंह मेंशन सिंह परिवार का आवास है जिसे सूर्यदेव सिंह ने बनवाया था. सूर्यदेव सिंह 1977 से 1991 तक झरिया सीट से विधायक रहे और पूरे धनबाद की सियासत में इस परिवार की तूती बोलती थी. सियासत में दबदबा रखने वाला सिंह मेंशन 2009 के चुनाव तक एकजुट था. सूर्यदेव सिंह के निधन के बाद उनकी विरासत उनके भाई बच्चा सिंह ने संभाली. बच्चा सिंह विधायक रहे, झारखंड सरकार में मंत्री भी बने लेकिन सिंह मेंशन में रहने वाले सूर्यदेव सिंह और उनके भाइयों के बच्चे जब बड़े हुए, संपत्ति से लेकर बिजनेस और सियासी विरासत को लेकर टकराव की स्थिति उत्पन्न होने लगी.
साल 2005 में बच्चा सिंह को झरिया सीट सूर्यदेव सिंह की पत्नी कुंती देवी के लिए खाली करनी पड़ी. बच्चा सिंह बोकारो से चुनाव मैदान में उतरे लेकिन हार मिली. यह बात बच्चा सिंह को नागवार लगी और इसी को सूर्यदेव सिंह के परिवार में दरार की शुरुआत कहा जाता है.
सूर्यदेव सिंह और उनके भाइयों के बच्चे बड़े हुए तो राजनीतिक विरासत से लेकर बिजनेस, ट्रेड यूनियन और संपत्ति को लेकर आपसी टकराव बढ़ने लगा. दरार बढ़ी तो आवास अलग हुए. सूर्यदेव सिंह के भाई राजनारायण सिंह का परिवार सिंह मेंशन छोड़ रघुकुल में रहने लगा. बच्चा सिंह भी रघुकुल समर्थक हो गए.
पूर्णिमा ने करोड़ों की योजनाओं के शिलान्यास का जिक्र करते हुए कहा कि कुछ पर काम चल रहा है. सभी कार्यों को पूरा कराना है. उन्होंने ये भी कहा कि अभी कई कार्य कराए जाने हैं. झरिया के विस्थापन के सवाल पर पूर्णिमा ने कहा कि अग्नि प्रभावित क्षेत्रों में बसे लोगों को हटाना जरूरी है लेकिन पिछले पांच साल में किसी के साथ जबरदस्ती नहीं की गई है. डर की राजनीति का इस्तेमाल नहीं हुआ है. विस्थापन ससम्मान होगा. लोग जैसे चाहें, वैसे जाएंगे. उन्होंने अपनी जीत का विश्वास व्यक्त किया.
हाल ही में सिंह मेंशन से पृथ्वी मेंशन भी अलग हुआ है. पृथ्वी मेंशन सूर्यदेव सिंह के छोटे भाई रामाधीर सिंह का आवास है. रामाधीर सिंह के पुत्र शशि सिंह की पत्नी आशनी सिंह भी सियासत में सक्रिय हैं. आशनी ने 2017 के यूपी चुनाव में बलिया जिले की बैरिया विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था. हालांकि, वह हार गई थीं. सूर्यदेव सिंह का पैतृक गांव बैरिया विधानसभा क्षेत्र में ही पड़ता है.
Oct 26 2024, 10:35