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बिहार के प्रसिद्ध व्यंजन लिट्टी-चोखा की कहानी है सदियों पुराने,आइए जानते हैं कैसे बनी यह बिहार की पहचान


बिहार का प्रसिद्ध व्यंजन लिट्टी-चोखा आज दुनिया भर में अपने स्वाद के लिए मशहूर है। माना जाता है कि इसकी शुरुआत मगध साम्राज्य के समय हुई थी जिसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी जो आज का पटना है। उस समय के सैनिकों के लिए लिट्टी-चोखा एक बेहद पौष्टिक और पोर्टेबल फूड आइटम था क्योंकि इसे युद्ध के दौरान अपने साथ ले जा सकते थे। 

आइए आपको बताते हैं इसका दिलचस्प इतिहास।

 कब और कैसे हुई 'लिट्टी-चोखा' की शुरुआत? 

लिट्टी-चोखा सिर्फ एक व्यंजन नहीं, बल्कि बिहार की संस्कृति और पहचान का प्रतीक भी है। लिट्टी-चोखा का स्वाद इतना अनूठा और लाजवाब होता है कि एक बार खाने के बाद हर कोई इसका दीवाना हो जाता है।

आज सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के लोग इस डिश को बड़े चाव से खाते हैं। समय के साथ लिट्टी-चोखा का स्वरूप बेशक बदलता रहा लेकिन इसका स्वाद लोगों के दिलों पर हमेशा राज करता रहा है। जी हां, आपको जानकर हैरानी होगी कि लिट्टी-चोखा का इतिहास उतना ही पुराना है

 मुगलकाल में लिट्टी चोखा

मुगलकाल में लिट्टी चोखा के प्रमाण मिलते हैं, लेकिन इस दौरान इसे खाने का तौर-तरीका बदल गया. मुगल काल में मांसाहारी खाने का प्रचलन ज्यादा था. इसलिए लिट्टी को शोरबा और पाया के साथ खाया जाने लगा. अंग्रेजों के समय लिट्टी को करी के साथ खाया जाने लगा। वक्त के साथ लिट्टी चोखा के साथ कई तरह के नए प्रयोग किए गए.

मगध काल में हुई लिट्टी-चोखा की शुरुआत

माना जाता है कि लिट्टी-चोखा बनाने की शुरुआत मगध काल में हुई. मगध बहुत बड़ा साम्राज्य था, चंद्रगुप्त मौर्य यहां के राजा थे, इसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी. जिसे अब पटना के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि पुराने जमाने में सैनिक युद्ध के दौरान लिट्टी-चोखा खाते थे. यह जल्दी खराब नहीं होती थी. इसे बनाना और पैक करना काफी आसान था. इसलिए सैनिक भोजन के रूप में इसे अपने साथ ले जाते थे.

कई किताबों के अनुसार 18वीं

 शताब्दी में लंबी दूरी तय करने वाले मुसाफिरों का मुख्य भोजन लिट्टी-चोखा ही था. इसके अलावा, यह भी कहा जाता है कि बिहार में पहले लिट्टी-चोखा को किसान लोग खाया और बनाया करते थे. क्योंकि इसे बनाने में अधिक समय नहीं लगता थी और यह पेट के लिए काफी फायदेमंद था.

1857 के विद्रोह में भी हुआ है लिट्टी चोखा खाने का जिक्र

1857 के विद्रोह में सैनिकों के लिट्टी चोखा खाने का जिक्र मिलता है. तात्या टोपे और रानी लक्ष्मी बाई ने इसे अपने सैनिकों के खाने के तौर पर चुना था. इसे फूड फॉर सरवाइवल कहा गया. उस दौर में ये अपनी खासियत की वजह से युद्धभूमि प्रचलन में आया. इसे बनाने के लिए किसी बर्तन की जरूरत नहीं है, इसमें पानी भी कम लगता है और ये सुपाच्य और पौष्टिक भी है. सैनिकों को इससे लड़ने की ताकत मिलती. ये जल्दी खराब भी नहीं होता. एक बार बना लेने के बाद इसे दो-तीन दिन तक खाया जा सकता है। बिहार की धरती का फेमस लिटी चोखा की रेसिपी जाने।

लिट्टी-चोखा बनाने के लिए सामग्री

लिट्टी के लिए सामग्री

आटा – 2 कप

सत्तू – 1 कप

तेल – 2 टी स्पून

घी – 2 टेबल स्पून

प्याज बारीक कटा – 1

लहसुन कद्दूकस – 5

हरी मिर्च कटी – 3

हरा धनिया बारीक कटा – 1/2 कप

अजवाइन – डेढ़ टी स्पून

नींबू रस – 1 टी स्पून

अचार मसाला – 1 टेबल स्पून

नमक – स्वादानुसार

चोखा बनाने की सामग्री

बड़ा बैंगन गोल वाला – 1

आलू – 3

टमाटर – 2

प्याज बारीक कटा – 1

अदरक बारीक कटा – 1 टुकड़ा

हरी मिर्च बारीक कटी – 2

लहसुन कटी – 3

हरा धनिया – 1 टी स्पून

नींबू – 1

तेल – 1 टेबल स्पून

नमक – स्वाद के अनुसार

लिट्टी-चोखा बनाने की विधि

लिट्टी चोखा बनाने के लिए सबसे पहले लिट्टी बनाने की शुरुआत करें. सबसे पहले आटे को लें और उसे अच्छी तरह से छान लें. फिर उसे एक बर्तन में निकाल लें. अब इसमें घी, स्वादनुसार नमक डालकर अच्छे से मिला दें. अब गुनगुने पानी की मदद से आटे को नरम गूंथ लें. अब इस गुंथे हुए आटे को आधा घंटे के लिए ढंककर अलग रख दें.

इसके बाद लिट्टी का मसाला तैयार करने की शुरुआत करें. सबसे पहले एक बर्तन में सत्तू निकाल लें. उसमें हरी मिर्च, धनिया, अदरक, नींबू का रस, काला नमक, जीरा, सादा नमक और अचार का मसाला डालकर अच्छी तरह से मिला लें. इस मिश्रण में थोड़ा सा सरसों का तेल भी डाल दें. अब इसमें हल्का सा पानी मिला दें और मसाले को दरदरा बना लें.

अब गुंथे हुए आटे को लें और उससे मीडियम साइज की लोइयां बना लें. इन लोइयों को हथेली पर रखकर कटोरी जैसा आकार दें. अब इसमें तैयार किया गया लिट्टी मसाला एक से दो चम्मच के बीच भरें. और आटे को चारों ओर से उठाकर बंद कर दें. अब इसे गोल कर लोई बना लें. जब लोई गोल हो जाए तो उसे हथेली से दबाकर थोड़ा सा चपटा कर लें. अब एक लोहे का बर्तन लें उसमें लकड़ी या कोयले की मदद से आग तैयार करें. अब आपने जो लोई तैयार की हैं उन्हें इस आग में सेंक लें. बीच में चेक करते रहे कि लिट्टी अच्छे से सिकी है या नहीं. जैसे-जैसे लिट्टी सिकते जाएं उन्हें आग से बाहर निकालकर अलग रख दें।

जानिए हजार की जगह क्यों ' K ' लिखते है ? क्या होता है "K" का मतलब


कभी-कभी हमारे मन में कुछ ऐसे सवाल होते हैं जिनके जवाब हम जानना तो चाहते हैं पर उसका सही उत्तर नहीं मिल पाता है। हमारे जीवन में ऐसे कई शब्द होते हैं जिसका लोग खूब इस्तेमाल करते हैं मगर उसका अर्थ नहीं जानते हैं। अपने आसपास के माहौल से प्रभावित होकर हम भी उस शब्द को लिखना बोलना शुरू कर देते हैं। आपने अक्सर देखा होगा हजार को कई जगहों पर 'K' से दर्शाया जाता है। इसका सबसे आसान उदाहरण है यूट्यूब पर जो सब्सक्राइबर्स दिखते हैं वो 300K या 500K लिखे होते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि हजार को K से क्यों दर्शाते हैं?

आजकल के समय में सोशल मीडिया, मैसेजिंग ऐप्स और यहां तक कि कई दस्तावेजों में 'हजार' को दर्शाने के लिए 'K' का इस्तेमाल किया जाता है। जैसे, ₹10,000 को ₹10K लिखा जाता है। ये तो सभी को पता है कि मिलियन को 'M' से दर्शाया जाता है, बिलियन को 'B' से दर्शाया जाता है, ऐसे बहुत से लोगों के दिमाग में सवाल आता है कि हजार यानी थाउजेंड को T के बजाय K से क्यों दर्शाया जाता है?

दरअसल, ग्रीक शब्द ‘Chilioi’ का अर्थ हजार होता है और माना जाता है कि K शब्द वहीं से आया है और उसके बाद हजार की जगह K का प्रयोग पूरे विश्व में होने लगा। हजार की जगह K का जिक्र बाइबल में भी देखने को मिलता है।

'K' का मतलब 'किलो'

असल में 'K' अक्षर 'किलो' का शॉर्ट फॉर्म है। साइंस में, 'किलो' का मतलब 1000 होता है। इसका सबसे सरल उदाहरण है- 1000 ग्राम को 1 किलोग्राम कहते हैं। उसी तरह 1000 मीटर को एक किलोमीटर कहते हैं। यही वजह है कि 1000 को K से दर्शाया जाता है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि K को हजार दर्शाना एक अंतर्राष्ट्रीय मानक है। इसका सबसे सामान्य उदाहरण हमें सोशल मीडिया पर देखने को मिलता है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी वीडियो को 25 हजार बार देखा गया है तो वहां 25K लिखा होता है। जैसे ही वीडियो को 10 लाख से अधिक बार देखा जाता है वो मिलियन यानी 1M में दिखने लगता है।

केंद्र सरकार की कार्रवाई: नोटरीकृत विवाह और तलाक पर प्रतिबंध

नयी दिल्ली : केंद्र सरकार ने स्पष्ट चेतावनी जारी की है कि नोटरीकृत विवाह और तलाक अवैध हैं, और इन प्रथाओं में शामिल नोटरी को गंभीर कानूनी नतीजों का सामना करना पड़ेगा। यह घोषणा कानून और न्याय मंत्रालय के एक हालिया ज्ञापन के माध्यम से की गई, जिसमें नोटरी कर्तव्यों की सख्त सीमाओं पर जोर दिया गया।

कानूनी मामलों के विभाग द्वारा जारी ज्ञापन में कहा गया है कि नोटरी अधिनियम, 1952 के तहत नियुक्त नोटरी के पास विवाह या तलाक के कामों को निष्पादित करने का अधिकार नहीं है, यह भूमिका विशेष रूप से विवाह अधिकारियों को सौंपी गई है। 

कानून और न्याय मंत्रालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस निर्देश से कोई भी विचलन नोटरी अधिनियम, 1952 और नोटरी नियम, 1956 दोनों का उल्लंघन माना जाता है।

भारत सरकार के उप सचिव राजीव कुमार ने कहा, “नोटरी द्वारा इस तरह के कदाचार वैवाहिक कार्यवाही की कानूनी अखंडता और गंभीर प्रकृति को बाधित करते हैं।” ऐसी गतिविधियों में शामिल होना जो स्पष्ट रूप से उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं, न केवल कानूनी प्रणाली को कमजोर करता है बल्कि ऐसे कार्यों में शामिल पक्षों के लिए महत्वपूर्ण जोखिम भी पैदा करता है।” 

मंत्रालय के ज्ञापन में कई मिसालों का भी हवाला दिया गया है, जिसमें पार्थ सारथी दास बनाम उड़ीसा राज्य का निर्णय शामिल है, जिसमें अदालत ने फैसला सुनाया था कि नोटरी के पास विवाह अधिकारी के रूप में कार्य करने का कानूनी अधिकार नहीं है। इसके अलावा, भगवान सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का संदर्भ दिया गया, जिसमें नोटरी कर्तव्यों को नियंत्रित करने वाले विधायी ढांचे के पालन के महत्व को रेखांकित किया गया था। 

सरकार अब इस नियम को और अधिक सख्ती से लागू करने के लिए कदम उठा रही है, जिसमें नोटरी गतिविधियों की अधिक बारीकी से निगरानी और उल्लंघन करने वालों के लिए कठोर दंड शामिल हैं।

इसमें नोटरी के रजिस्टर से संभावित निष्कासन और शासकीय कानूनों के अनुसार अन्य अनुशासनात्मक कार्रवाई शामिल है।

विधि एवं न्याय मंत्रालय के अधिकारियों ने विवाह या तलाक के इच्छुक सभी पक्षों से उचित कानूनी चैनलों का पालन करने का आग्रह किया है, साथ ही चेतावनी दी है कि इन उद्देश्यों के लिए नोटरीकृत दस्तावेजों पर निर्भरता को कानूनी रूप से मान्यता नहीं दी जाएगी और इसके परिणामस्वरूप कार्यवाही अमान्य हो सकती है। 

यह निर्देश सरकार द्वारा कानून के शासन को सुदृढ़ करने और यह सुनिश्चित करने के व्यापक प्रयासों का हिस्सा है कि विवाह और तलाक जैसी व्यक्तिगत स्थिति से जुड़ी कानूनी प्रक्रियाएं पूरी वैधता और कानूनी मानदंडों के पालन के साथ संचालित की जाती हैं।

अक्टूबर-नवंबर में यमुना में क्यों बनता है झाग? जानें दिल्ली की हवा के प्रदूषण का कनेक्शन


नई दिल्लीः अक्टूबर और नवंबर के दौरान दिल्ली वायु और जल प्रदूषण की दोहरी चुनौती से जूझती है, जिसमें यमुना नदी में झाग बनना एक प्रमुख समस्या बन जाती है. पहले से ही प्रदूषण के उच्च स्तर से बोझिल दिल्ली की यमुना नदी मॉनसून के बाद के महीनों और सर्दियों की शुरुआत के दौरान झाग के कारण और भी बदतर स्थिति का सामना करती है. मॉनसून की बारिश से जहां प्रदूषक अस्थायी रूप से कम हो जाते हैं, वहीं जल स्तर कम होते ही मुख्य समस्याएं फिर से उभर आती हैं।

आईआईटी कानपुर द्वारा किए गए एक अध्ययन ने इस मौसमी घटना के कारणों का पता लगाया है. यमुना पर झाग मुख्य रूप से नदी में प्रवेश करने वाले प्रदूषकों और सीवेज के उच्च स्तर के कारण होता है. आवासीय और औद्योगिक कचरे से फॉस्फेट और सर्फेक्टेंट युक्त डिटर्जेंट की वजह से भी झाग बढ़ता है. 

नदी में छोड़े जाने पर ये रसायन पानी के सतही तनाव को कम कर देते हैं, जिससे झाग बनता है. अनुपचारित सीवेज की बढ़ी हुई मात्रा समस्या को और बढ़ा देती है. 

यमुना में झाग बनने के पीछे पर्यावरणीय और मानवजनित कारक

नदियों में झाग बनना एक ऐसी घटना है, जिसके लिए अक्सर पर्यावरण और मानवजनित कारकों को जिम्मेदार बताया जाता है. यमुना के मामले में विशेष रूप से अक्टूबर और नवंबर के दौरान कई परिस्थितियों के कारण यह भयावह दृश्य देखने को मिलता है. 

पर्यावरणीय कारक झाग निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. मॉनसून के तुरंत बाद गर्म पानी का तापमान सर्फेक्टेंट की गतिविधि को बढ़ाता है ऐसे यौगिक जो पानी के सतही तनाव को कम करते हैं, जिससे झाग निर्माण को बढ़ावा मिलता है. जैसे-जैसे शुष्क मौसम शुरू होता है, पानी का प्रवाह दर कम हो जाता है. यह ठहराव झाग के संचय के लिए एकदम सही परिस्थितियां प्रदान करता है, जैसा कि यमुना में देखा गया है. 

खासतौर पर दिल्ली में यमुना नदी अनुपचारित सीवेज के कारण गंभीर प्रदूषण से ग्रस्त है. नदी में हर दिन 3.5 बिलियन लीटर से अधिक सीवेज आता है, फिर भी सिर्फ 35-40% का ही उपचार किया जाता है.

अनुपचारित अपशिष्ट प्रदूषण के स्तर में भारी योगदान देता है, जो उच्च प्रवाह के दौरान झाग का कारण बनता है. मॉनसून के मौसम के बाद झाग का निर्माण तेज हो जाता है क्योंकि सर्दियों में ठंडा तापमान झाग को फैलाने की जगह स्थिर कर देता है.

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर में कोटक स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी के डीन प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी इस बारे में बताया कि यमुना में झाग बनने के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं, जिनमें मुख्य रूप से अनुपचारित सीवेज का भारी प्रवाह है. 

वहीं यमुना में प्रवेश करने वाले पानी का लगभग दो-तिहाई हिस्सा अनुपचारित सीवेज है, यानी प्रतिदिन लगभग 2 अरब लीटर अनुपचारित पानी. यह अपशिष्ट जल सर्फेक्टेंट से भरा होता है, ये रासायनिक पदार्थ आमतौर पर डिटर्जेंट और औद्योगिक उत्सर्जन में पाए जाते हैं. सर्फेक्टेंट में पानी के सतही तनाव को कम करने का अनूठा गुण होता है, जो झाग बनने में मदद करता है. जब ऐसा अनुपचारित पानी तापमान और प्रवाह गतिशीलता जैसी अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों से मिलता है तो नदी में झाग बनने लगता है. 

एक अन्य योगदान कारक फिलामेंटस बैक्टीरिया की उपस्थिति है. ये जीव सर्फेक्टेंट अणु छोड़ते हैं, जो झाग को स्थिर करने में सहायता करते हैं. इसके अलावा उत्तर प्रदेश में चीनी और कागज़ उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषक हिंडन नहर के ज़रिए यमुना में प्रवेश करते हैं, जिससे झाग की समस्या और भी बढ़ जाती है. 

यमुना जैसी नदियों में झाग बनने के पीछे का विज्ञान

यमुना और अन्य जल निकायों जैसी नदियों में झाग बनना एक स्पष्ट लेकिन जटिल पर्यावरणीय मुद्दा है, जो अक्सर प्रदूषकों की उपस्थिति का संकेत देता है. झाग के पीछे मुख्य दोषियों में से एक सर्फेक्टेंट हैं, जो आमतौर पर साबुन और डिटर्जेंट में पाए जाने वाले पदार्थ हैं. ये सर्फेक्टेंट मुख्य रूप से अनुपचारित सीवेज के माध्यम से जल प्रणालियों में प्रवेश करते हैं और पानी के सतही तनाव को कम करते हैं, जिससे बुलबुले बनने और बने रहने में आसानी होती है

जैसे-जैसे नदियां आगे बढ़ती हैं और बहती हैं, ये बुलबुले झाग के बड़े पैच में इकट्ठे हो जाते हैं।

सर्फेक्टेंट के अलावा नदियां कार्बनिक पदार्थों की महत्वपूर्ण मात्रा को भी अवशोषित करती हैं. इसमें सड़े हुए पौधे, मृत जीव और कृषि अपशिष्ट शामिल हैं. जैसे-जैसे ये कार्बनिक पदार्थ टूटते हैं, वे गैस छोड़ते हैं. सर्फेक्टेंट युक्त पानी में ये गैसें फंस जाती हैं, जिससे झाग बनने में और भी मदद मिलती है. इस तरह के कार्बनिक पदार्थों का संचय अक्सर कृषि अपवाह और खराब अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं का परिणाम होता है.

इसके अलावा कई प्रदूषित जलमार्ग हाइपोक्सिया से पीड़ित हैं कम घुलित ऑक्सीजन स्तर की स्थिति - नाइट्रेट्स और फॉस्फेट से पोषक तत्व प्रदूषण के कारण और भी बढ़ जाती है. 

यह स्थिति यूट्रोफिकेशन की ओर ले जाती है, जहां अत्यधिक पोषक तत्व शैवाल के खिलने को उत्तेजित करते हैं. जैसे-जैसे ये खिलते हैं और सड़ते हैं, वे मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें छोड़ते हैं. सर्फेक्टेंट के साथ मिलकर ये गैसें बुलबुले के निर्माण को बढ़ाती हैं, जिसके कारण झाग बनता है.

 

यमुना में झाग बनने से बढ़ सकता है वायु प्रदूषण

पानी में मौजूद वाष्पशील कार्बनिक प्रदूषक, जैसे कि फथलेट्स, हाइड्रोकार्बन और कीटनाशक, वायुमंडल में वाष्पित हो सकते हैं. खास तौर पर उन क्षेत्रों में जहां इन प्रदूषकों का स्तर बहुत अधिक है, जैसे कि यमुना नदी, ये प्रदूषक पानी और हवा के बीच विभाजन कर सकते हैं, वायुमंडलीय ऑक्सीडेंट के साथ प्रतिक्रिया करके द्वितीयक कार्बनिक एरोसोल (SOAs) बना सकते हैं. यह प्रक्रिया तापमान, आर्द्रता और पानी की कार्बनिक संरचना सहित पर्यावरणीय परिस्थितियों से प्रभावित होती है. शोध से पता चलता है कि ऐसे प्रदूषित वातावरण में पानी और कार्बनिक प्रजातियों की उपस्थिति वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों को हवा में ले जाने में मदद कर सकती है, जिससे वायु गुणवत्ता के लिए अतिरिक्त चिंताएँ पैदा होती हैं. प्रो. त्रिपाठी के अनुसार, यमुना पर बनने वाला झाग न केवल प्रदूषण का एक दृश्य संकेत है, बल्कि वायु प्रदूषकों का एक संभावित खतरनाक स्रोत भी है।

प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि यमुना के झाग का स्थिर बुलबुला मुख्य रूप से कार्बनिक प्रजातियों से बना है जो वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (वीओसी) छोड़ते हैं. ये वीओसी शहरी वातावरण में वायु प्रदूषण के लिए महत्वपूर्ण योगदानकर्ता हैं, क्योंकि वे वायुमंडल में प्रतिक्रिया करके ओजोन और पार्टिकुलेट मैटर सहित द्वितीयक प्रदूषक बना सकते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं.

उन्होंने बताया कि पानी और हवा के बीच जटिल कार्बनिक पदार्थों का विभाजन भी हो रहा है. इस प्रक्रिया का मतलब है कि झाग में मौजूद कई कार्बनिक यौगिक हवा में स्थानांतरित हो रहे हैं, जिससे प्रदूषकों का मिश्रण बढ़ रहा है और स्मॉग बनता है. हवा में छोड़ी जाने वाली ये वाष्पशील कार्बनिक गैसें और अन्य यौगिक एरोसोल निर्माण के अग्रदूत के रूप में कार्य करते हैं, जो धुंध का एक महत्वपूर्ण घटक है और दिल्ली को घेरने वाली धुंध के प्रमुख कारणों में से एक है.

यमुना में झाग का इंसान के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?

जल निकायों में झाग बनना, खास तौर पर यमुना जैसी नदियों में, जल की गुणवत्ता, जलीय जीवन और समग्र पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है. यह घटना मुख्य रूप से प्रदूषण के कारण होती है, जिसके परिणामस्वरूप झाग दिखाई देता है, जिसमें हानिकारक रसायनों और कार्बनिक अपशिष्टों की अधिकता होती है.

प्राथमिक चिंताओं में से एक पानी की गुणवत्ता में गिरावट है. झाग उच्च प्रदूषण स्तर का एक संकेत है, जो अनुपचारित सीवेज और औद्योगिक गतिविधियों से सर्फेक्टेंट, फॉस्फेट और कार्बनिक अपशिष्ट के कारण होता है. ये प्रदूषक पानी को मानव उपभोग और मनोरंजन के लिए असुरक्षित बनाते हैं. इसके अलावा अत्यधिक कार्बनिक प्रदूषकों की उपस्थिति यूट्रोफिकेशन की ओर ले जाती है, जिससे शैवाल खिलते हैं. जब ये शैवाल सड़ने लगते हैं, तो वे पानी में ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं, जिससे हाइपोक्सिया होता है, जो पानी की गुणवत्ता को और खराब कर देता है.

जलीय जीवन पर इसका प्रभाव बहुत गंभीर है. झाग में मौजूद सर्फेक्टेंट और जहरीले रसायन जलीय जीवों, खास तौर पर मछलियों की कोशिकीय झिल्लियों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे मृत्यु दर और प्रजनन संबंधी चुनौतियां पैदा होती हैं. इसके अलावा पानी में ऑक्सीजन की कमी के कारण मछलियों और अन्य एरोबिक जीवों का दम घुट सकता है. पोषक तत्वों की अधिकता से उत्पन्न शैवालों के खिलने से भी विषाक्त पदार्थ बनते हैं, जिससे जलीय जीवन खतरे में पड़ जाता है और पानी मानव उपयोग के लिए असुरक्षित हो जाता है. 

पारिस्थितिकी तंत्र के दृष्टिकोण से झाग पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करता है. मछलियों और विभिन्न जलीय प्रजातियों की मृत्यु से खाद्य श्रृंखला में गड़बड़ी होती है, शिकारियों पर असर पड़ता है और असंतुलन पैदा होता है. झाग और शैवाल द्वारा जलीय पौधों के दम घुटने से जीवित रहने के लिए इन पौधों पर निर्भर प्रजातियों के लिए आवास का नुकसान होता है.

इससे मानव स्वास्थ्य भी खतरे में है. झाग वाले प्रदूषित पानी में भारी धातु और कीटनाशक जैसे हानिकारक तत्व मौजूद होते हैं. ऐसे पानी के संपर्क में आने से त्वचा में जलन, जठरांत्र संबंधी समस्याएं और कैंसर सहित स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।

आज का इतिहास:1959 में आज ही के दिन हुई थी चीन और भारत की सेनाओं में भिड़ंत


नयी दिल्ली : 21 अक्टूबर का इतिहास महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि 1951 में आज ही के दिन भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई थी।

1970 में 21 अक्टूबर को ही नारमन इ बारलॉग को नोबेल का शांति पुरस्कार दिया गया था। 

1990 में आज ही के दिन दूरदर्शन ने दोपहर की हिंदी और इंग्लिश न्यूज बुलेटिन शुरू किया था।

2013 में आज ही के दिन कनाडा की संसद ने मलाला युसफजई को कनाडा की नागरिकता दी थी।

2012 में 21 अक्टूबर के दिन ही साइना नेहवाल ने डेनमार्क ओपन सुपर सीरीज खिताब अपने नाम कर लिया था।

2008 में आज ही के दिन भारत व पाकिस्तान के बीच 61 वर्ष बाद कारवां-ए-तिजास शुरू हुआ था।

2003 में 21 अक्टूबर को ही चीन और पाकिस्तान का नौसैनिक अभ्यास शुरू हुआ था।

1999 में आज ही के दिन सुकर्णो पूत्री मेघावती इंडोनेशिया की उप-राष्ट्रपति चुनी गईं थीं।

1999 में 21 अक्टूबर को ही फिल्म निर्माता बी.आर चोपड़ा को दादासाहेब फालके पुरस्कार दिया गया था।

1990 में आज ही के दिन दूरदर्शन ने दोपहर की हिंदी और इंग्लिश न्यूज बुलेटिन शुरू की थीं।

1970 में 21 अक्टूबर को ही नारमन इ बारलॉग को नोबेल का शांति पुरस्कार दिया गया था।

1959 में आज ही के दिन चीन और भारत की सेनाओं में भिडंत हुई थी।

1951 में 21 अक्टूबर को ही भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई थी।

1950 में आज ही के दिन चीन ने तिब्बत पर अपना कब्जा जमा लिया था।

1948 में 21 अक्टूबर के दिन ही संयुक्त राष्ट्र ने आण्विक हथियार नष्ट करने के रूस के प्रस्ताव को ठुकराया था।

1945 में आज ही के दिन फ्रांस में महिलाओं को पहली बार वोट करने का अधिकार मिला था।

1934 में 21 अक्टूबर को ही जयप्रकाश नारायण ने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया था।

1934 में आज ही के दिन नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिंद फौज की स्थापना सिंगापुर में की थी।

1871 में 21 अक्टूबर को ही अमेरिका में पहला अव्यवसायी आउटडोर एथलेटिक खेल (न्यूयॉर्क) हुआ था।

1805 में आज ही के दिन स्पेन के तट पर ट्राफलगर की लड़ाई हुई थी।

1727 में 21 अक्टूबर को ही रूस और चीन ने सीमाओं को सही करने के लिए समझौते किए थे।

1577 में आज ही के दिन गुरु रामदास ने अमृतसर नगर की स्थापना की थी।

21 अक्टूबर को जन्मे प्रसिद्ध व्यक्ति

1887 में आज ही के दिन बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री कृष्ण सिंह का जन्म हुआ था।

1889 में 21 अक्टूबर के दिन ही भारतीय पुरातत्व के विद्वान काशीनाथ नारायण दीक्षित का जन्म हुआ था।

1931 में आज ही के दिन प्रसिद्ध हिंदी फिल्म अभिनेता शम्मी कपूर का जन्म हुआ था।

1939 में 21 अक्टूबर को ही हिंदी फ़िल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री और नर्तकी हेलन का जन्म हुआ था।

1949 में आज ही के दिन इज़राइल के नौवें प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का जन्म हुआ था।

21 अक्टूबर को हुए निधन

2012 में आज ही के दिन भारतीय फिल्म मेकर यश चोपड़ा का निधन हुआ था।

आज का इतिहास: आज ही के दिन शुरू हुआ था भारत और पाकिस्तान में पहला युद्ध

नयी दिल्ली : 20 अक्टूबर का इतिहास महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि 1962 में आज ही के दिन भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर युद्ध शुरू हुआ था। 

1962 में 20 अक्टूबर के दिन ही चीन ने भारत पर हमला किया और अरुणाचल प्रदेश के रास्ते भारत में प्रवेश की कोशिश की थी.

2015 में आज ही के दिन भारतीय बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट और इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) से संन्यास लिया था।

2011 में 20 अक्टूबर के दिन ही लीबिया पर 40 साल तक राज करने वाले तानाशाह मोहम्‍मद गद्दाफी को गृह युद्ध में मारा गया था।

2008 में आज ही के दिन आरबीआई ने रेपो दर में 1 प्रशिशत की कटौती की थी।

2003 में 20 अक्टूबर के दिन ही सोयुज अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से जुड़ा था।

1998 में आज ही के दिन मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल गयूम 5वीं बार दोबारा राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित हुए थे।

1995 में 20 अक्टूबर को ही श्रीलंका क्रिकेट टीम ने वेस्टइंडीज को हराकर शारजाह कप फाइनल ट्रॉफी अपने नाम किया था।

1995 में आज ही के दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा का विशेष स्वर्ण जयंती अधिवेशन शुरू हुआ था।

1989 में 20 अक्टूबर को ही पाकिस्तान ने भारत और वेस्टइंडीज के खिलाफ शारजाह ट्रॉफी जीती थी।

1973 में आज ही के दिन ऑस्ट्रेलिया की राजधानी सिडनी में ओपेरा हाउस को पहली बार जनता के लिए खोला गया था।

1962 में 20 अक्टूबर को ही चीन ने भारत पर हमला किया था।

1947 में आज ही के दिन भारत-पाकिस्तान के बीच पहला युद्ध हुआ था।

1947 में 20 अक्टूबर के दिन ही अमेरिका और पाकिस्तान ने पहली बार राजनयिक संबंध स्थापित किए थे।

1904 में आज ही के दिन चिली और बोलविया ने शांति और मित्रता की संधि पर साइन किए थे। 

1880 में 20 अक्टूबर को ही एम्सटर्डम मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी।

1774 में आज ही के दिन कोलकाता (कलकत्ता) भारत की राजधानी बनी थी।

20 अक्टूबर का इतिहास को जन्मे प्रसिद्ध व्यक्ति

1930 में आज ही के दिन भारत में उच्च न्यायालय की प्रथम महिला न्यायाधीश लीला सेठ का जन्म हुआ था।

1978 में 20 अक्टूबर के दिन ही आक्रामक बल्लेबाजी के प्रसिद्ध भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी वीरेन्द्र सहवाग का जन्म हुआ था।

1920 में आज ही के दिन पश्चिम बंगाल के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सिद्धार्थ शंकर राय का जन्म हुआ था।

20 अक्टूबर को हुए निधन

1964 में आज ही के दिन भारत के क्रांतिकारियों में से एक एच. सी. दासप्पा का निधन हुआ था।

1982 में 20 अक्टूबर के दिन ही वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी तथा केरल और मध्य प्रदेश के भूतपूर्व राज्यपाल निरंजन नाथ वांचू का निधन हुआ था।

घर पर बनाएं स्वादिष्ट और पौष्टिक लेमन राइस! जानिए सरल रेसिपी

लेमन राइस एक बहुत ही सरल और स्वादिष्ट डिश है जिसे आप घर पर आसानी से बना सकते हैं। इसे बनाने में समय भी कम लगता है और ये हेल्दी भी है। चलिए, आपको इसकी रेसिपी बताते हैं:

सामग्री:

2 कप पके हुए चावल (ठंडे)

1 नींबू का रस

1 छोटा चम्मच राई (सरसों के बीज)

1 छोटा चम्मच उड़द दाल

1 छोटा चम्मच चना दाल

2-3 हरी मिर्च (कटी हुई)

10-12 करी पत्ते

1/4 छोटा चम्मच हल्दी पाउडर

2 बड़े चम्मच मूंगफली

2 बड़े चम्मच तेल

नमक स्वादानुसार

हरा धनिया (सजाने के लिए)

विधि:

सबसे पहले एक पैन में तेल गरम करें। इसमें राई डालें और जब ये चटकने लगे, तो उड़द दाल और चना दाल डालें। सुनहरा होने तक भूनें।

इसके बाद, हरी मिर्च, करी पत्ते, और मूंगफली डालें। मूंगफली को हल्का सुनहरा होने तक भूनें।

अब हल्दी पाउडर डालें और अच्छे से मिलाएं। इसके बाद पके हुए चावल डालें और इसे हल्के हाथों से मिक्स करें ताकि मसाले अच्छे से चावल में मिल जाएं।

इसमें नींबू का रस और नमक डालें। अच्छे से मिलाएं ताकि नींबू का स्वाद पूरे चावल में आ जाए।

गैस बंद कर दें और ऊपर से थोड़ा हरा धनिया डालकर सजाएं।

परोसने का तरीका:

इसे आप दही, पापड़ या अचार के साथ परोस सकते हैं। ये एक हल्का और स्वादिष्ट व्यंजन है जिसे आप लंच या डिनर में खा सकते हैं।

ये रेसिपी न सिर्फ स्वादिष्ट है बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद है।

जानिए करवा चौथ पर मिट्टी के करवे से अर्घ्य देने की परंपरा और माता सीता से इसका क्या है संबंध?

करवा चौथ एक प्रमुख हिंदू त्योहार है, जिसे मुख्य रूप से उत्तर भारत में विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना के लिए मनाती हैं। इस पर्व पर कई पारंपरिक रीति-रिवाज निभाए जाते हैं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण परंपरा है "मिट्टी के करवे" से चंद्रमा को अर्घ्य देना। इस परंपरा का गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है, जिसका संबंध माता सीता से भी जुड़ा है।

मिट्टी के करवे का महत्व:

प्रकृति और धरती माँ से जुड़ाव: मिट्टी के करवे का प्रयोग करना धरती से हमारा जुड़ाव दर्शाता है। भारतीय संस्कृति में मिट्टी को बहुत पवित्र माना जाता है, क्योंकि यह हमें जीवन देने वाली धरती माँ का प्रतीक है। करवा चौथ पर मिट्टी का करवा उपयोग करने से पृथ्वी के प्रति आभार प्रकट किया जाता है।

सरलता और शुद्धता:

 मिट्टी के करवे को शुद्ध और पवित्र माना जाता है। यह सरलता और साधारणता का प्रतीक है, जो दिखाता है कि जीवन में शुद्ध हृदय और संकल्प ही सबसे महत्वपूर्ण हैं। करवा चौथ के व्रत का उद्देश्य भी पति की लंबी आयु के लिए सच्चे और शुद्ध मन से प्रार्थना करना है, जिसे मिट्टी के करवे का प्रतीकात्मक महत्व और बढ़ा देता है।

संपन्नता का प्रतीक: 

करवा (घड़ा) एक ऐसा पात्र है, जिसमें पानी भरा जाता है। इसे संपन्नता, समृद्धि और जीवन देने वाले तत्व के रूप में देखा जाता है। करवा चौथ पर मिट्टी के करवे का प्रयोग जल का प्रतीकात्मक अर्पण है, जो जीवन के प्रति आभार और समृद्धि की कामना को दर्शाता है।

माता सीता से जुड़ी कथा:

करवा चौथ की परंपरा का एक पुराना धार्मिक और पौराणिक संदर्भ माता सीता से भी जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि माता सीता ने भी श्री राम की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था। जब भगवान राम वनवास पर थे, तो माता सीता ने इस कठिन समय में भगवान राम की सुरक्षा और दीर्घायु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा।

माता सीता ने उस समय मिट्टी से बने करवे का प्रयोग किया था, जिससे उन्होंने चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित किया था। इस कथा के अनुसार, यह विश्वास किया जाता है कि मिट्टी का करवा माता सीता की तपस्या, त्याग और समर्पण का प्रतीक है। आज भी करवा चौथ के दिन मिट्टी के करवे का प्रयोग करना माता सीता के उस आदर्श को मान्यता देने और उनके आशीर्वाद को पाने का प्रतीक माना जाता है।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:

मिट्टी के करवे से चंद्रमा को अर्घ्य देने की परंपरा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह प्रकृति और पारंपरिक मूल्यों के प्रति सम्मान भी दर्शाती है। माता सीता के त्याग, प्रेम और समर्पण का आदर्श भारतीय समाज में स्त्री-शक्ति और परिवार के प्रति निष्ठा का प्रतीक है। करवा चौथ पर मिट्टी के करवे से अर्घ्य देना इस पौराणिक कथा को जीवंत रखता है और व्रत रखने वाली महिलाओं को माता सीता जैसा धैर्य और समर्पण प्राप्त करने की प्रेरणा देता है।

निष्कर्ष:

करवा चौथ पर मिट्टी के करवे से अर्घ्य देने की परंपरा भारतीय संस्कृति में गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक जड़ें रखती है। यह माता सीता के प्रेम, त्याग और समर्पण की कहानी से जुड़ा हुआ है और आज भी यह परंपरा पति-पत्नी के रिश्ते में विश्वास, प्रेम और निष्ठा को बनाए रखने का प्रतीक है।

भारतीयों के पसंदीदा आठ मुगलई व्यंजन, जिन्हें खाया जाता है बड़े चाव से


मुगल खानपान भारतीय भोजन परंपरा का एक अभिन्न हिस्सा है, और इसकी विशेषता है समृद्ध मसालों, सूखे मेवों और मलाईदार सॉस का उपयोग। मुगलई भोजन भारतीय स्वादों और विदेशी व्यंजनों का बेहतरीन संगम है। यहां आठ प्रमुख मुगलई व्यंजन दिए जा रहे हैं, जिन्हें भारतीय बड़े चाव से खाते हैं:

1. बिरयानी

बिरयानी मुगलई व्यंजनों में सबसे प्रसिद्ध है। यह चावल, मसालों, और मांस (मुख्य रूप से चिकन या मटन) का लाजवाब मिश्रण है। हैदराबादी बिरयानी से लेकर लखनवी बिरयानी तक, इसके कई प्रकार हैं, और हर एक का स्वाद अद्वितीय होता है।

2. कबाब

कबाब मुगलों के समय का एक और लोकप्रिय व्यंजन है। गलौटी कबाब, शामी कबाब, और सीख कबाब सबसे प्रसिद्ध हैं। इन्हें मसालों में मांस को मेरिनेट कर तंदूर में पकाया जाता है।

3. नीहारी

नीहारी एक धीमी आंच पर पकाया गया मटन का व्यंजन है, जिसे आमतौर पर नाश्ते के रूप में खाया जाता है। यह विशेष रूप से ठंडे मौसम में लोकप्रिय होता है और मसालेदार ग्रेवी के साथ पेश किया जाता है।

4. शाही टुकड़ा

यह मीठा व्यंजन मुगलई खानपान की मिठाइयों का एक हिस्सा है। इसे रोटी या ब्रेड के टुकड़ों को घी में तला जाता है और फिर मलाई, मेवा और केसर के साथ सजाया जाता है।

5. कुर्मा

कुर्मा एक समृद्ध, मलाईदार ग्रेवी वाला व्यंजन है जो मटन या चिकन से बनाया जाता है। इसमें दही, मेवा, और मसालों का मिश्रण होता है, जो इसे खास बनाता है।

6 गुलाब जामुन

यह मिठाई मुगलों के समय से लोकप्रिय रही है और आज भी इसे बड़े चाव से खाया जाता है। गुलाब जामुन को खोया (सूखा दूध) से बनाया जाता है, जिसे छोटे गोले के रूप में तला जाता है और फिर चाशनी में डुबोया जाता है।

7. रोगन जोश

हालांकि यह व्यंजन कश्मीर से आता है, इसे मुगलई खानपान का हिस्सा माना जाता है। यह मटन का मसालेदार व्यंजन है जिसे शाही अंदाज में पकाया जाता है।

8. फिरनी

फिरनी एक चावल की खीर जैसी मिठाई है जिसे खासतौर पर ईद और अन्य खास मौकों पर बनाया जाता है। इसे छोटे मिट्टी के बर्तनों में परोसा जाता है और बादाम, पिस्ता और केसर से सजाया जाता है।

मुगलई भोजन भारतीय पाक परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और इन व्यंजनों को आज भी बड़े चाव से खाया जाता है।

जानिए करवा चौथ व्रत के महत्वपूर्ण नियम इनके बिना अधूरा है सुहागिनों का पर्व

करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण और धार्मिक त्योहार माना जाता है। इस व्रत में कुछ विशेष नियमों का पालन किया जाता है, जिनका महत्व बहुत अधिक होता है। आइए जानते हैं करवा चौथ व्रत के प्रमुख नियम:

1 सूर्योदय से पहले सरगी का सेवन: व्रत रखने वाली महिलाएं सूर्योदय से पहले सरगी (सास द्वारा दी गई भोजन सामग्री) का सेवन करती हैं। इसमें फल, मिठाई, मेवे, और जल शामिल होता है। सरगी के बाद महिलाएं व्रत शुरू करती हैं।

2 जल या अन्न का त्याग: इस व्रत में सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक पानी और अन्न ग्रहण नहीं किया जाता। इसे निर्जला व्रत भी कहा जाता है।

3 शृंगार और पूजा: व्रत रखने वाली महिलाओं को दिन भर अच्छे शृंगार और सुहाग की वस्तुएं धारण करने का नियम है। इसमें साड़ी, बिंदी, चूड़ियाँ, सिंदूर आदि शामिल होते हैं। साथ ही पूजा के समय करवा (मिट्टी का छोटा घड़ा) का भी महत्व होता है।

4 करवा माता की कथा सुनना: शाम के समय सुहागिन महिलाएं एक साथ एकत्र होकर करवा चौथ की कथा सुनती हैं। यह कथा सुनने के बाद व्रत का पालन अधिक पुण्यकारी माना जाता है।

5 चंद्रमा को अर्घ्य देना: चंद्रोदय के बाद महिलाएं छलनी से चंद्रमा और अपने पति को देखती हैं और फिर उन्हें अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। पति के हाथों से पानी पीकर व्रत का समापन होता है।

6* ध्यान और भक्ति: दिन भर व्रती महिलाओं को भगवान शिव, माता पार्वती और करवा माता की आराधना करनी चाहिए। इस दिन संयम और शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

इन नियमों के पालन के बिना करवा चौथ व्रत अधूरा माना जाता है और इसका पूरा फल प्राप्त नहीं होता।