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शांति ड्रैगन की फितरत नहीं! अब ब्रह्मपुत्र नदी पर सबसे बड़ा बांध बनाने का ऐलान, भारत के लिए हो सकता है खतरनाक

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चीन दुनिया का सबसे विशालकाय बांध बनाने जा रहा है। चीन की सरकार ने ऐलान किया है कि वह तिब्‍बत की सबसे लंबी नदी यारलुंग त्‍सांगपो पर महाशक्तिशाली बांध बनाने जा रही है। तिब्बत से निकलते ही यारलुंग जांग्बो नदी को ब्रह्मपुत्र के नाम से जाना जाता है, जो दक्षिण में भारत के अरुणाचल प्रदेश और असम राज्य से होती हुई बांग्लादेश की ओर बहती है। चीन पहले ही इस नदी के ऊपरी तल में हाइड्रोपावर जेनरेशन की शुरुआत कर चुका है, जो कि तिब्बत के पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है।

चीन की सरकारी न्‍यूज एजेंसी शिन्‍हुआ ने बुधवार को इसकी जानकारी दी है। न्यूज़ एजेंसी के मुताबिक, यह प्रोजेक्ट चीन के प्रमुख उद्देश्यों को हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। चीन के कार्बन पीकिंग और कार्बन न्यूट्रैलिटी लक्ष्यों को पूरा करने के साथ साथ इंजीनियरिंग जैसी इंडस्ट्रीज को प्रोत्साहित करने और तिब्बत में नौकरियों के अवसर पैदा करने में यह प्रोजेक्ट मदद करेगा। यारलुंग जांग्बो का एक भाग 50 किमी (31 मील) की छोटी सी दूरी में 2,000 मीटर (6,561 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है, जो विशाल हाइड्रोपावर क्षमता के साथ-साथ इंजीनियरिंग के लिए कठिन चुनौतियां भी पेश करता है।

भारत के लिए कैसे खतरनाक

चीन तिब्बत की जिस लंबी नदी को यारलुंग त्सांगपो नदी कहता है, उसे भारत में ब्रह्मपुत्र नदी कहा जाता है। कई विशेषज्ञों का कहना है कि चीन इस विशालकाय बांध को हथियार की तरह इस्तेमाल करके भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में कभी भी बाढ़ ला सकता है। लगभग 2900 किमी लंबी ब्रह्मपुत्र नदी भारत में आने से पहले तिब्बत के पठार से होकर गुजरती है। जो कि तिब्बत में धरती की सबसे गहरी खाई बनाती है। जिसे तिब्बती बौद्ध भिक्षु बहुत पवित्र मानते हैं।

धरती की स्‍पीड को प्रभावित कर रहा चीन का बांध

वहीं अभी बिजली पैदा करने के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा बांध कहे जाने वाला चीन थ्री जॉर्ज हर साल 88.2 अरब किलोवाट घंटे बिजली पैदा करता है। चीन के हुबई प्रांत में स्थित थ्री जॉर्ज बांध यांगजी नदी पर बनाया गया है।थ्री जॉर्ज बांध में 40 अरब क्‍यूबिक मीटर पानी है और यह धरती की घूमने की रफ्तार को भी प्रभावित कर रहा है। इसकी वजह से धरती की घूमने की गति में हर दिन 0.06 माइक्रोसेकंड बढ़ रहा है। इससे दुनियाभर के वैज्ञानिक काफी चिंत‍ित हैं। इस बांध को सबसे पहले साल 1919 में चीन के पहले राष्‍ट्रपति सुन यात सेन ने बनाने का प्रस्‍ताव दिया था। उन्‍होंने कहा था कि इससे जहां बाढ़ में कमी आएगी, वहीं दुनिया के सामने यह चीन के ताकत का प्रतीक बनेगा। चीन अब तिब्‍बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर नया विशालकाय बांध बनाने जा रहा है।

चालबाजियों से बाज नहीं आ रहा चीन, भूटान में डोकलाम के पास बसाए 22 गांव, भारत के लिए क्यों टेंशन की बात?
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एक तरफ भारत और चीन द्विपक्षीय संबंधों की बहाली को लेकर बातचीत कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ड्रैगन अपनी चालबाजी से बाज नहीं आ रहा है। एक बार फिर चीन की चाल ने भारत की परेशानी को बढ़ाने का काम किया है। चीन ने पिछले 8 साल में भूटान का हिस्सा माने जाने वाले क्षेत्र में कम से कम 22 गांव और बस्तियां बसाने का काम किया है।

*चीन ने बढ़ाई भारत की चिंता*
चीन ने जिन 22 गांवों का निर्माण किया है, उसमें सबसे बड़े गांव का नाम जीवू है, जो पारंपरिक भूटानी चरागाह त्सेथांखखा पर स्थित है। चीन की इस चाल ने भारत की टेंशन बढ़ा दी है। इस क्षेत्र में चीनी स्थिति मजबूत होने से सिलीगुड़ी कॉरिडोर (जिसे चिकन नेक भी कहा जाता है) की सुरक्षा पर खतरा मंडरा सकता है। यह कॉरिडोर भारत को पूर्वोत्तर के राज्यों से जोड़ता है।सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास भारत-तिब्बत-भूटान ट्राई-जंक्शन है। 60 किमी लंबा और 22 किमी चौड़ा यह कॉरिडोर नॉर्थ-ईस्ट के 7 राज्यों को भारत के साथ जोड़ता है।इस कॉरिडोर का भारत के लिए रणनीतिक महत्व है, क्योंकि चीन भूटान की सीमाओं के पास अपने अतिक्रमण का विस्तार कर रहा है, ताकि ज़मीन के इस संकरे हिस्से पर अपना प्रभाव जमा सके। इसकी कमज़ोरी भारत के पूर्वी क्षेत्र में चीन की मज़बूती है।

*7 हजार लोगों को किया स्थानांतरित*
स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज (एसओएएस) के रिसर्च सहयोगी रॉबर्ट बार्नेट की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2016 से, जब चीन ने पहली बार भूटान का हिस्सा माने जाने वाले क्षेत्र में एक गांव बनाया था, तब से चीनी अधिकारियों ने अनुमानित 2,284 आवासीय इकाइयों वाले 22 गांवों और बस्तियों का निर्माण पूरा कर लिया है। रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने लगभग 7 हजार लोगों को यहां स्थानांतरित भी कर दिया है।
रिपोर्ट के अनुसार चीन ने लगभग 825 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर (जो भूटान के अंदर था) कब्जा कर लिया, जो देश के 2 फीसदी हिस्से से थोड़ा अधिक है। चीन ने इन गांवों में अज्ञात संख्या में अधिकारियों, निर्माण करने वालो मजदूरों, बॉर्डर पुलिस और सैन्य कर्मियों को भी भेजा है। ये सभी गांव सड़क के माध्यम से चीन से जुड़े हुए हैं।

*साल 2017 से चल रहा डोकलाम बॉर्डर पर विवाद*
भूटान की 600 किमी सीमा चीन से लगती है। दो इलाकों को लेकर सबसे ज्यादा विवाद है। पहला- 269 वर्ग किमी क्षेत्रफल का डोकलाम इलाका और दूसरा- उत्तर भूटान में 495 वर्ग किमी का जकारलुंग और पासमलुंग घाटी का क्षेत्र। सबसे गंभीर मामला डोकलाम का है, जहां चीन, भारत और भूटान तीनों देशों की सीमाएं लगती है।
भारत और चीन की सेनाओं के बीच साल 2017 में लद्दाख के पास डोकलाम में हुए विवाद पर गतिरोध 73 दिनों तक चला था। उस दौरान भारत ने चीन की ओर से सड़क निर्माण का विरोध किया था। जिसके बाद दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटीं। बीते कुछ सालों से चीन फिर डोकलाम के पास अपनी गतिविधि बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।

*भारत के सामने कई सवाल*
कागजों पर, भूटान, भारत की सहमति के बिना डोकलाम के नजदीकी इलाकों को नहीं छोड़ सकता क्योंकि 2007 की भारत-भूटान शांति संधि के अनुसार भारत को भारत की सुरक्षा चिंताओं का सम्मान करना होगा। इससे हमारे सामने कई सवाल खड़े होते हैं - क्या चीन ने भूटान को भारतीय सीमा के नजदीकी इलाके को छोड़ने के लिए मजबूर किया?
क्या थिम्पू ने भूटानी प्रधानमंत्री की हाल की भारत यात्रा के दौरान डोकलाम के नजदीक चीन द्वारा किए जा रहे निर्माण कार्य के बारे में नई दिल्ली को बताया या शर्मिंदगी से बचने के लिए मामले को दबा दिया गया? ये सवाल इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि भारत और चीन पूर्वी लद्दाख में अपने सीमा विवाद को सुलझाने की प्रक्रिया में हैं।
बुरे फंसे भारत विरोधी जस्टिन ट्रूडो, अमेरिका के बाद अब चीन ने सिखाया सबक
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भारत के साथ अपने संबंधों को बिगाड़ने वाले जस्टिन ट्रूडो की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही है। जस्टिन ट्रूडो इस वक्त घरेलू मोर्चे पर संघर्ष कर रहे हैं और कूटनीतिक स्तर पर भी चारों ओर से चुनौतियों से घिर गए हैं। इस बार मामला चीन से जुड़ा हुआ है। अमेरिका के बाद अब चीन ने कनाडा के खिलाफ बड़ा एक्शन लिया है। चीन उइगर मुस्लिम और तिब्बत से संबंधित मानवाधिकार के मुद्दों में शामिल कनाडा के 2 संस्थानों के करीब 20 लोगों पर बैन लगाने जा रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित डोनाल्ड ट्रंप के टैक्स बम के बाद अब चीन की ये घोषणा कनाडा के लिए बड़ी परेशानी पैदा करने वाली है।

चीन ने रविवार को कहा है कि वह उइगरों और तिब्बत से संबंधित मानवाधिकार के मुद्दों में शामिल दो कनाडाई संस्थानों सहित 20 लोगों के खिलाफ प्रतिबंध की कार्रवाई करने जा रहा है। चीन के विदेश मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर घोषणा की कि शनिवार को प्रभावी हुए इन उपायों में संपत्ति जब्त करना और प्रवेश पर प्रतिबंध लगाना शामिल है और इनके निशाने पर कनाडा का उइगर अधिकार वकालत परियोजना और कनाडा-तिब्बत समिति शामिल है। चीन ने कहा कि वह इन दोनों संस्थानों की चल संपत्ति, अचल संपत्ति और चीन के क्षेत्र में अन्य प्रकार की संपत्ति को फ्रीज कर रहा है।

दरअसल, कनाडा के मानवाधिकार संगठनों ने चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों के उत्पीड़न का मुद्दा उठाया था। मानवाधिकार संगठनों का दावा है कि चीन में उइगर मुसलमानों का शोषण हो रहा है और सरकारी तंत्र उन्हें लगातार प्रताड़ित कर रहा है। इसके बाद चीन ने बड़ा एक्शन लिया है। कनाडा के 20 लोगों को चीन ने बैन कर दिया है। ये सभी लोग अलग-अलग मानवाधिकार संगठनों से जुड़े थे। इन सभी लोगों के चीन में प्रवेश के साथ ही हांगकांग और मकाऊ क्षेत्र में प्रवेश पर भी बैन लगा दिया गया है।

इस प्रतिबंध के तहत, उइगर संस्थान से जुड़े 15 और तिब्बत समिति के पांच सदस्यों की चीन में संपत्तियों को फ्रीज किया गया है। इसके अलावा, इन व्यक्तियों के हांगकांग और मकाऊ सहित पूरे चीन में प्रवेश पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है।

कनाडा के मानवाधिकार समूहों ने चीन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि चीन ने शिनजियांग प्रांत में उइगर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बड़े पैमाने पर शोषण किया है। लगभग एक करोड़ उइगर मुसलमानों को कथित रूप से नजरबंदी शिविरों में रखा गया है, जहां उनसे जबरन मजदूरी करवाया जाता है। हालांकि, चीन ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि ये शिविर पुनर्वास और शिक्षा के लिए हैं। चीन ने 1950 में तिब्बत पर नियंत्रण किया था और इसे "शांतिपूर्ण मुक्ति" कहा था। लेकिन अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों और निर्वासित तिब्बती समुदायों ने इसे दमनकारी शासन करार दिया है और समय-समय पर इसकी निंदा की है।

बता दें कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो इन दिनों आंतरिक और बाहरी संकटों का सामना कर रहे हैं। उनके कार्यकाल में कनाडा के अमेरिका, भारत और चीन जैसे प्रमुख देशों के साथ संबंध खराब हुए हैं। ये तीनों देश वैश्विक स्तर पर अत्यधिक महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इसके अलावा, कनाडा में उनकी लोकप्रियता तेजी से घट रही है। उनके पूर्व सहयोगी और एनडीपी नेता जगमीत सिंह ने अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा की है, जिससे ट्रूडो की सरकार पर दबाव और बढ़ गया है।
फिर से शुरू होगी कैलाश मानसरोवर यात्रा, भारत चीन के बीच बनी बात

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कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर भारत और चीन के बीच एक बड़ा समझौता हुआ है। पूरे पांच साल बाद बीजिंग में दोनों देशों के प्रतिनिधियों की बैठक हुई। इस बैठक में दोनों देश के बीच कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर सहमति बन गई। दोनों देशों के बीच पांच साल के अंतराल के बाद विशेष प्रतिनिधियों की 23वें दौर की बैठक बीजिंग में 6 मुद्दों पर सहमति बनी।भारत की ओर से इस बैठक में राष्ट्रीय सलाहकार अजीत डोभाल तो चीन की ओर से विदेश मंत्री वांग यी शामिल थे।

ईस्टर्न लद्दाख में चार साल लंबे गतिरोध के बाद संबंधों की बहाली के मद्दनेजर सभी मुद्दों पर बात करने के लिए बॉर्डर मुद्दे पर बने इस मैकेनिज्म की आखिरी बैठक दिसंबर 2019 के बाद पहली बार हुई है।भारत की ओर से इस बैठक में राष्ट्रीय सलाहकार अजीत डोभाल तो चीन की ओर से विदेश मंत्री वांग यी शामिल थे। दोनों विशेष प्रतिनिधियों ने बॉर्डर एरिया में शांति क़ायम करने को द्विपक्षीय संबंधों की बेहतरी के लिए अहम बताया।

दोनों पक्षों ने इस बात को माना कि ग्राउंड पर शांतिपूर्ण हालात कायम करने ज़रूरी हैं जिससे कि सीमा संबंधी मुद्दे द्विपक्षीय संबंधों की सामान्य गतिविधियों पर असर ना डाले। साल 2020 से सबक़ लेते हुए बॉर्डर पर शांति कायम करने और बॉर्डर मैनेजमेंट को लेकर चर्चा की गई। दोनों देशों ने इस इसे लेकर संबंधित डिप्लोमैटिक और मिलिट्री चैनल को निर्देशित करने और इस्तेमाल का भी फ़ैसला किया

कैलाश मानसरोवर यात्रा करने के दौरान चीन की अनुमति जरूरी है क्योंकि यह यात्रा तिब्बत में स्थित है। जो वर्तमान में चीन का एक स्वायत्त क्षेत्र है। इसलिए वहां जाने के लिए चीनी पर्यटक वीजा लेना होता है। चीनी सरकार ने इस क्षेत्र में यात्रा के लिए नियम और शर्तें निर्धारित की हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य है. अब भारत के समझौते के साथ कैलाश मानसरोवर की यात्रा आसान हो सकती है।

विशेष प्रतिनिधियों की बैठक प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच कजान में हाल ही में हुई बैठक के दौरान लिए गए निर्णय के अनुसार हुई। इसके तहत सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और सौहार्द के प्रबंधन की देखरेख करने और सीमा से जुड़े सवालों का निष्पक्ष, उचित और परस्पर स्वीकार्य समाधान तलाशने के लिए शीघ्र बैठक की जानी थी। इससे पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान अपने चीनी समकक्ष वांग यी से मुलाकात की थी। जिसमें मानसवोर यात्रा को दोबारा शुरू करने और भारत और चीन के बीच डायरेक्ट फ्लाइट शुरू करने जैसे मुद्दों पर बातचीत हुई थी।

कैलाश मानसरोवर यात्रा एक महत्वपूर्ण धार्मिक तीर्थ यात्रा है, जो हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए विशेष महत्व रखती है. यह यात्रा तिब्बत में स्थित कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील तक जाती है। कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। यह पर्वत तिब्बत के पश्चिमी क्षेत्र में हिमालय श्रृंखला का हिस्सा है, जिसकी ऊंचाई लगभग 6,638 मीटर है। जबिक, मानसरोवर झील को लेकर ऐसी मान्यता है कि इसकी रचना ब्रह्मा जी ने की थी। यह झील तिब्बत के उच्च पठार पर 4,590 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और कैलाश पर्वत से लगभग 30 किलोमीटर दूर है।

इस यात्रा के दौरान तीर्थयात्री कैलाश पर्वत की परिक्रमा करते हैं और मानसरोवर झील में स्नान करते हैं, जिसे पवित्र और मोक्ष प्राप्ति का माध्यम माना जाता है। समुद्र तल से 17,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित लिपूलेख दर्रे से होकर यात्रा की जाती है।

चीन अपनी परमाणु शक्ति बढ़ा रहा, तैयार किए 600 न्यूक्लियर हथियार, भारत के लिए कितना बड़ा खतरा?

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चीन अपने न्यूक्लियर पावर को लगातार बढ़ा रहा है। दावा किया रहा है कि उसने अपने लिए 600 के करीब परमाणु हथियार भी तैयार करके रखा है। ये दावा पेंटागन की रिपोर्ट में किया गया है। इस रिपोर्ट में इस दावे के साथ-साथ कई चौकाने वाले खुलासे भी किए गए हैं।इसमें कहा गया है कि 2030 के अंत तक चीन के पास 1000 से ज्यादा परमाणु बम होंगे। इनमें से कई को पूरी तरह से तैनाती के मोड पर रखे जाने की योजना है।चीन जिस तरह से अपने परमाणु बमों के भंडार को बढ़ा रहा है, वह भारत और अमेरिका के लिए बड़ा खतरा है।

पेंटागन की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन अपने परमाणु हथियारों की संख्या में लगातार इजाफा करने में जुटा है। अगर वह इसी गति से परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ाता रहा तो वर्ष 2030 उसके पास 1000 परमाणु हथियार होंगे।रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की वायु सेना अपने टेक्नोलॉजी स्टैंडर्ड में सुधार कर रही है और तेजी से टेक्नोलॉजी को अमेरिकी मानकों के बराबर ला रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने अपने ड्रोन आधुनिकीकरण के प्रयास जारी रखे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ड्रोन के लिए झुंड क्षमताओं को विकसित करने में पर्याप्त प्रयास कर रहा है। अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि सुधारों के बावजूद, चीन की एयर फोर्स यूएस एयर फोर्स के बराबर या उससे आगे नहीं निकल पाई है।

इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें विकसित कर रहा चीन

पेंटागन की इस रिपोर्ट के अनुसार चीन बीते कुछ समय से अपनी सेना को और अधिक अत्याधुनिक हथियारों से लैस करने में जुटा है। यही वजह है कि वह लगातार ऐसी मिसाइलें भी बना रहा है जो दुश्मनों की नींद उड़ा सके। रिपोर्ट के अनुसार चीन नई इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें विकसित करने पर जोर दे रहा है। ऐसा करने से उसकी परमाणु सक्षम मिसाइल ताकतों में इजाफा होगा। इसके साथ-साथ अनुमान लगाया जा रहा है कि चीन पारंपरिक रूप से सशस्त्र इंटरकॉन्टिनेंटल रेंज मिसाइल सिस्टम विकसित करने पर विचार कर सकता है।

अमेरिका शहरों पर तक हमला करने की क्षमता

इसमें कहा गया है कि चीन एडवांस न्यूक्लियर डिलीवरी सिस्टम विकसित कर रहा है। इसे अमेरिका से दीर्घकालिक चुनौती को ध्यान में रखकर तैयार किया जा रहा है। पीपल्स रिपब्लिक आर्मी की बढ़ती हुई न्यूक्लियर फोर्स इसे अमेरिकी शहरों, सैन्य सुविधाओं और नेतृत्व स्थलों को निशाना बनाने में सक्षम करेगी। चीन की योजना ऐसे हथियार तैयार करने की है जो बहुत अधिक स्तर पर नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखते हों।

वॉरशिप और सबमरीन

रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के पास 370 से अधिक प्लेटफार्मों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी नेवी है। जहाजों की संख्या 2025 तक 395 और 2030 तक 435 जहाजों तक बढ़ने की उम्मीद है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की नेवी के पास वर्तमान में छह न्यूक्लियर बैलिस्टिक मिसाइल सबमरीन, छह न्यूक्लियर सबमरीन और 48 डीजल से चलने वाली या एयर फ्री अटैक सबमरीन हैं। 2025 तक सबमरीन बल बढ़कर 65 और 2035 तक 80 तक पहुंचने की उम्मीद है।

रूस और उत्तर कोरिया से चीन ने बनाई दूरी

इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन ने सार्वजनिक रूप से रूस और उत्तर कोरिया के बढ़ते रक्षा संबंधों से खुदको दूर कर लिया है। ऐसा माना जा रहा है कि चीन ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि शायद उसे लगता है कि इन देशों से नजदीकी उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकती है।

एनएसए अजीत डोभाल का चीन दौरा, जानें 5 साल बाद हो रही ये बैठक कितनी अहम?

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भारत और चीन के रिश्ते पर जमी बर्फ अब पिघलती दिख रही है। दोनों देशों के बीच एलएसी पर सीमा विवाद के कारण बीते कुछ सालों में तनाव काफी बढ़ गया था। हालांकि, कई दौर की बातचीत के बाद हालात पटरी पर आते दिख रहे हैं। इसी क्रम में मंगलवार को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल बीजिंग पहुंचे हैं। लगभग पांच वर्षों के अंतराल के बाद उनकी चीन की आधिकारिक यात्रा है। इससे पहले एसआर संवाद दिसंबर 2019 में नई दिल्ली में हुआ था।

अजित डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने बुधवार को कई मुद्दों पर चर्चा की। अजीत डोभाल अपने चीनी समकक्ष और विदेश मंत्री वांग यी के साथ विशेष प्रतिनिधियों (एसआर) की 23वें दौर की वार्ता की। इस दौरान पूर्वी लद्दाख से सैनिकों की वापसी और गश्त को लेकर दोनों देशों के बीच 21 अक्टूबर को हुए समझौते के बाद द्विपक्षीय संबंधों को बहाल करने के लिए कई मुद्दों पर चर्चा हुई। इस वार्ता का उद्देश्य पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध के कारण चार साल से अधिक समय तक प्रभावित रहे द्विपक्षीय संबंधों को बहाल करना है। साथ ही दोनों देशों के बीच आई खटास को दूर करना है।

चीनी विदेश मंत्रालय ने क्या कहा?

अजीत डोभाल और वांग यी की विशेष बैठक से पहले चीनी विदेश मंत्रालय ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। एक सवाल के जवाब में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा कि चीन द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने और मतभेदों को दूर करने के लिए भारत संग काम करने को तैयार है। उन्होंने कहा कि चीन और भारत के नेताओं के बीच महत्वपूर्ण आम समझ को लागू करने, एक-दूसरे के मूल हितों और प्रमुख चिंताओं का सम्मान करने, बातचीत और संचार के माध्यम से आपसी विश्वास को मजबूत करने, ईमानदारी और सद्भाव के साथ मतभेदों को ठीक से सुलझाने और द्विपक्षीय संबंधों को जल्द से जल्द स्थिर और स्वस्थ विकास की पटरी पर लाने के लिए भारत के साथ काम करने के लिए तैयार है।

कम होते तनाव के बीच दौरा कितना अहम

एनएसए का दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब दोनों देशों ने डेमचोक और देपसांग क्षेत्रों से अपनी सेना को पीछे हटाने के समझौते पर सहमति बनाई है। खबरों के मुताबिक दोनों ओर से को-ऑर्डिनेट पेट्रोलिंग भी शुरू हो गई है। इस विवाद को सुलझाने के लिए कॉर्प्स कमांडरों की 21 राउंड की बैठक हो चुकी है, इसके अलावा डिप्लोमेटिक लेवल पर भी कई दौर की बातचीत हुई है।

मई 2020 में शुरू हुआ था सैन्य गतिरोध

दोनों देशों के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैन्य गतिरोध मई 2020 में शुरू हुआ था। उसी साल जून में गलवां घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच घातक झड़प हुई थी, जिससे दोनों पड़ोसियों के बीच संबंधों में गंभीर तनाव आ गया था। सैनिकों की वापसी के समझौते को 21 अक्तूबर को अंतिम रूप दिया गया था। समझौते पर हस्ताक्षर होने के दो दिन बाद पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस के कजान शहर में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर बातचीत की थी। बैठक में दोनों पक्षों ने सीमा मुद्दे पर विशेष प्रतिनिधि वार्ता सहित कई वार्ता तंत्रों को बहाल करने पर सहमति व्यक्त की थी।

ट्रंप ने बढ़ाई 'ड्रैगन' की टेंशन! इसे चीन में नियुक्त किया अमेरिकी राजदूत

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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई सरकार वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन सरकार के अंतर्राष्ट्रीयवाद के दृष्टिकोण से बिल्कुल अलग काम करने जा रही है। ऐसा डोनाल्ड ट्रंप के हालिया फैसले के बाद कहा जा सकता है। डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद से लगातार अपनी टीम बनाने तैयारी में लगे हैं। इसी कड़ी में उन्होंने चीन को लेकर भी पत्ते खोल दिए हैं। ट्रंप ने जॉर्जिया डेविड पर्ड्यू को चीन में एंबेसडर के लिए नॉमिनेट किया है।

ट्रंप ने गुरुवार को फैसले की जानकारी दी। अलजजीरा की रिपोर्ट के अनुसार ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में कहा, “फॉर्च्यून 500 के सीईओ के रूप में, जिनका 40 साल का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करियर रहा है और जिन्होंने अमेरिकी सीनेट में सेवा की है। डेविड चीन के साथ हमारे संबंधों को बनाने में मदद करने के लिए बहुमूल्य विशेषज्ञता लेकर आए हैं। वह सिंगापुर और हांगकांग में रह चुके हैं और उन्होंने अपने करियर के अधिकांश समय एशिया और चीन में काम किया है।”

पर्ड्यू की नियुक्ति के लिए अमेरिकी सीनेट की मंजूरी की आवश्यकता होगी, लेकिन उनके अनुमोदन की संभावना है, क्योंकि सदन में रिपब्लिकन का बहुमत है। राजदूत के रूप में पर्ड्यू को शुरुआत से ही चुनौतीपूर्ण कार्यभार का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि ट्रम्प अमेरिका को चीन के साथ एक व्यापक व्यापार युद्ध में ले जाने के लिए तैयार हैं।

अभी हाल ही में ट्रंप ने अवैध अप्रवास और ड्रग्स पर लगाम लगाने के अपने प्रयास के तहत पदभार संभालते ही मैक्सिको, कनाडा और चीन पर व्यापक नए टैरिफ लगाने की धमकी दी है। उन्होंने कहा कि वह कनाडा और मैक्सिको से देश में प्रवेश करने वाले सभी उत्पादों पर 25 प्रतिशत कर लगाएंगे और चीन से आने वाले सामानों पर अतिरिक्त 10 प्रतिशत टैरिफ लगाएंगे, जो उनके पहले कार्यकारी आदेशों में से एक है।

इसके बाद वाशिंगटन स्थित चीनी दूतावास ने इस सप्ताह के प्रारंभ में चेतावनी दी थी कि यदि व्यापार युद्ध हुआ तो सभी पक्षों को नुकसान होगा। दूतावास के प्रवक्ता लियू पेंगयु ने एक्स पर पोस्ट किया कि चीन-अमेरिका आर्थिक और व्यापार सहयोग प्रकृति में पारस्परिक रूप से लाभकारी है। कोई भी व्यापार युद्ध या टैरिफ युद्ध नहीं जीतेगा। उन्होंने कहा कि चीन ने पिछले साल नशीली दवाओं की तस्करी को रोकने में मदद करने के लिए कदम उठाए थे।

धमकियों पर कितना अमल करेंगे ट्रंप?

यह स्पष्ट नहीं है कि क्या ट्रंप वास्तव में इन धमकियों पर अमल करेंगे या वे इन्हें बातचीत की रणनीति के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर टैरिफ लागू किए जाते हैं, तो अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए गैस से लेकर ऑटोमोबाइल और कृषि उत्पादों तक हर चीज की कीमतें नाटकीय रूप से बढ़ सकती हैं। सबसे हालिया अमेरिकी जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका दुनिया में वस्तुओं का सबसे बड़ा आयातक है, जिसमें मेक्सिको, चीन और कनाडा इसके शीर्ष तीन आपूर्तिकर्ता हैं।

ट्रंप की चीन विरोधी टीम!

इससे पहले भी ट्रंप ने मार्को रूबियो और माइक वाल्ट्ज जैसे नेताओं को नई सरकार में अहम भूमिका के लिए चुना है। ये दोनों ही नेता चीन के विरोधी माने जाते रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप चीन के प्रति सख्त रुख की नीति पर ही काम करने जा रहे हैं।

चीन के करीब आ रहा नेपाल, दोनों देशों के बीच बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव समझौता, भारत पर क्या होगा असर?

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नेपाल पर चीन का प्रभाव बढ़ता दिख रहा है। पिछले कुछ सालों में चीन-नेपाल करीब आए हैं। यही कारण है कि चौथी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद केपी शर्मा ओली अपने पहले दौरे पर चीन गए। केपी शर्मा ओली ने बीजिंग दौरे पर कई समझौतों पर साइन किया। इनमें सबसे अहम है बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई)। नेपाल और चीन ने बुधवार को बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) सहयोग के ढांचे पर हस्ताक्षर किए हैं। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इसकी पुष्टि की।

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस समझौते की पुष्टि अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर की। पीएम ओली ने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, “आज हमने बेल्ट एंड रोड्स सहयोग के लिए फ्रेमवर्क पर हस्ताक्षर किए हैं। चीन की मेरी आधिकारिक यात्रा खत्म होने खत्म होने के साथ ही, मुझे प्रधानमंत्री ली कियांग के साथ द्विपक्षीय वार्ता, एनपीसी के अध्यक्ष झांग लेजी के साथ चर्चा और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ अत्यंत उपयोगी बैठक पर विचार करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। पीएम ओली ने कहा कि बेल्ट एंड रोड फ्रेमवर्क सहयोग के तहत नेपाल-चीन आर्थिक सहयोग और मजबूत होगा।

समझौते से पहले बदले गए शब्द

इससे पहले चीन ने नेपाल के भेजे गए मसौदे से अनुदान शब्द हटा दिया था। इस कारण इस मसौदे पर मंगलवार को हस्ताक्षर नहीं हो सके थे। नेपाल ने शुक्रवार शाम एक मसौदा भेजा था, जिसमें प्रस्ताव दिया गया था कि चीन नेपाल सरकार द्वारा आगे बढ़ाई जाने वाली परियोजनाओं पर अनुदान निवेश प्राप्त करेगा। दोनों देशों ने अब अनुदान निवेश के स्थान पर सहायता निवेश, जिसमें अनुदान और ऋण निवेश दोनों शामिल हैं, को ध्यान में रखते हुए ढांचे पर हस्ताक्षर किए हैं।

ओली ने बीआरआई पर लगाई मुहर

नेपाल के प्रधानमंत्री और सीपीएन-यूएमएल के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली और नेपाली कांग्रेस (एनसी) के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा ने पहले बीआरआई सहयोग पर ढांचे के मसौदे को मंजूरी दी थी जिसमें कहा गया था कि नेपाल केवल चीनी अनुदान स्वीकार करेगा। नेपाल ने 2017 में बीआरआई पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। उसके बाद नेपाल और चीन द्वारा बीआरआई कार्यान्वयन योजना पर हस्ताक्षर किए जाने की उम्मीद थी, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ था।

चीन पर बढ़ा ओली का भरोसा

नेपाल के प्रधानमंत्री की 4 दिवसीय ये यात्रा काफी चर्चा में है। अपने दौरे के बाद पीएम ओली ने दावा किया कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नेपाल के विकास का पूरा समर्थन किया है। इसके अलावा ओली ने चीनी निवेशकों से नेपाल में निवेश करने की बात भी कही है। उन्होंने कहा कि हम राष्ट्रीय आकांक्षा, समृद्ध नेपाल, खुशहाल नेपाली के सपने को साकार करने के लिए सरल निवेश सुविधा लाएंगे।

भारत के प्रभाव से दूर हो रहा नेपाल

वहीं, नेपाल के इस फ़ैसले को भारत के प्रभाव से दूर जाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने चीन के साथ अपने आर्थिक और कूटनीतिक रिश्ते और बेहतर करने की रणनीति अपनाई है। ओली इस साल चौथी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने हैं। पीएम बनने के बाद उन्होंने अपने पहले आधिकारिक विदेश दौरे के लिए चीन को चुना था। परंपरागत रूप से नेपाल के प्रधानमंत्री अपने कार्यकाल की शुरुआत में भारत की यात्रा करते रहे हैं, लेकिन ओली ने इस परंपरा को तोड़ते हुए चीन का रुख किया है।

नेपाल की चीनी चाल से भारत हो सकता है परेशान

नेपाल के बीआरआई मसौदे पर हस्ताक्षर करते ही भारत की टेंशन बढ़ गई है। इस मसौदे में नेपाल की चिंताओं के बावजूद अनुदान और और ऋण दोनों को शामिल किया गया है। ऐसे में डर है कि नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियां चीन को खुश करने के लिए कर्ज लेकर देश का बेड़ा गर्क कर सकती हैं। इससे नेपाल के चीन के कर्ज के जाल में फंसने की आशंका बढ़ जाएगी। अगर ऐसा होता है तो नेपाल की नीतियों में चीनी दखल भी बढ़ेगा जो भारत के लिए अच्छा नहीं होगा। नेपाल हिमालयी देश है, जो भारत और चीन के बीच स्थित है।

चीन की दक्षिणी महाद्वीप में धमक, अंटार्कटिका में पहला वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन किया स्थापित
#china_expands_presence_in_antarctica_with_monitoring_station

* चीन ने अब अंटार्कटिका में अपना परचम लहराते हुए पहला वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन स्थापित किया है।चीन मौसम विज्ञान प्रशासन (सीएमए) के अनुसार, पूर्वी अंटार्कटिका में लार्समैन हिल्स में स्थित, झोंगशान राष्ट्रीय वायुमंडलीय पृष्ठभूमि स्टेशन ने रविवार को काम करना शुरू कर दिया। चीन मौसम विज्ञान प्रशासन यानी सीएमए वेबसाइट पर सोमवार को प्रकाशित एक लेख में कहा गया कि यह स्टेशन "अंटार्कटिका के वायुमंडलीय घटकों में सांद्रता परिवर्तनों का सतत और दीर्घकालिक परिचालनात्मक अवलोकन करेगा, तथा क्षेत्र में वायुमंडलीय संरचना और संबंधित विशेषताओं की औसत स्थिति का विश्वसनीय प्रतिनिधित्व प्रदान करेगा।" हांगकांग स्थित साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, लेख में कहा गया है कि निगरानी डेटा "जलवायु परिवर्तन के लिए वैश्विक प्रतिक्रिया का समर्थन करेगा"। यह चीन का नौवां चालू वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन है और विदेश में इसका पहला स्टेशन है। इसके अलावा, चीन में वर्तमान में 10 नए वायुमंडलीय निगरानी स्टेशनों का परीक्षण किया जा रहा है। साल 2024 की शुरुआत में, चीन ने अंटार्कटिका में अपने विशाल 5वें शोध स्टेशन का संचालन किया, जिसमें 5,244 वर्ग मीटर का फर्श क्षेत्र है, जिसमें गर्मियों के दौरान 80 अभियान दल के सदस्यों और सर्दियों के दौरान 30 सदस्यों का समर्थन करने की सुविधाएँ हैं। अपने कॉम्पीटीटर संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह, चीन अंटार्कटिका में अपने 5 वैज्ञानिक अनुसंधान स्टेशनों और अंटार्कटिका में 2 के माध्यम से ध्रुवीय संसाधनों का पता लगाने के प्रयासों का विस्तार कर रहा है।
चीन की दक्षिणी महाद्वीप में धमक, अंटार्कटिका में पहला वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन किया स्थापित
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* चीन ने अब अंटार्कटिका में अपना परचम लहराते हुए पहला वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन स्थापित किया है।चीन मौसम विज्ञान प्रशासन (सीएमए) के अनुसार, पूर्वी अंटार्कटिका में लार्समैन हिल्स में स्थित, झोंगशान राष्ट्रीय वायुमंडलीय पृष्ठभूमि स्टेशन ने रविवार को काम करना शुरू कर दिया। चीन मौसम विज्ञान प्रशासन यानी सीएमए वेबसाइट पर सोमवार को प्रकाशित एक लेख में कहा गया कि यह स्टेशन "अंटार्कटिका के वायुमंडलीय घटकों में सांद्रता परिवर्तनों का सतत और दीर्घकालिक परिचालनात्मक अवलोकन करेगा, तथा क्षेत्र में वायुमंडलीय संरचना और संबंधित विशेषताओं की औसत स्थिति का विश्वसनीय प्रतिनिधित्व प्रदान करेगा।" हांगकांग स्थित साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, लेख में कहा गया है कि निगरानी डेटा "जलवायु परिवर्तन के लिए वैश्विक प्रतिक्रिया का समर्थन करेगा"। यह चीन का नौवां चालू वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन है और विदेश में इसका पहला स्टेशन है। इसके अलावा, चीन में वर्तमान में 10 नए वायुमंडलीय निगरानी स्टेशनों का परीक्षण किया जा रहा है। साल 2024 की शुरुआत में, चीन ने अंटार्कटिका में अपने विशाल 5वें शोध स्टेशन का संचालन किया, जिसमें 5,244 वर्ग मीटर का फर्श क्षेत्र है, जिसमें गर्मियों के दौरान 80 अभियान दल के सदस्यों और सर्दियों के दौरान 30 सदस्यों का समर्थन करने की सुविधाएँ हैं। अपने कॉम्पीटीटर संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह, चीन अंटार्कटिका में अपने 5 वैज्ञानिक अनुसंधान स्टेशनों और अंटार्कटिका में 2 के माध्यम से ध्रुवीय संसाधनों का पता लगाने के प्रयासों का विस्तार कर रहा है।
शांति ड्रैगन की फितरत नहीं! अब ब्रह्मपुत्र नदी पर सबसे बड़ा बांध बनाने का ऐलान, भारत के लिए हो सकता है खतरनाक

#chinaannouncedmegadamprojectonbrahmaputra_river

चीन दुनिया का सबसे विशालकाय बांध बनाने जा रहा है। चीन की सरकार ने ऐलान किया है कि वह तिब्‍बत की सबसे लंबी नदी यारलुंग त्‍सांगपो पर महाशक्तिशाली बांध बनाने जा रही है। तिब्बत से निकलते ही यारलुंग जांग्बो नदी को ब्रह्मपुत्र के नाम से जाना जाता है, जो दक्षिण में भारत के अरुणाचल प्रदेश और असम राज्य से होती हुई बांग्लादेश की ओर बहती है। चीन पहले ही इस नदी के ऊपरी तल में हाइड्रोपावर जेनरेशन की शुरुआत कर चुका है, जो कि तिब्बत के पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है।

चीन की सरकारी न्‍यूज एजेंसी शिन्‍हुआ ने बुधवार को इसकी जानकारी दी है। न्यूज़ एजेंसी के मुताबिक, यह प्रोजेक्ट चीन के प्रमुख उद्देश्यों को हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। चीन के कार्बन पीकिंग और कार्बन न्यूट्रैलिटी लक्ष्यों को पूरा करने के साथ साथ इंजीनियरिंग जैसी इंडस्ट्रीज को प्रोत्साहित करने और तिब्बत में नौकरियों के अवसर पैदा करने में यह प्रोजेक्ट मदद करेगा। यारलुंग जांग्बो का एक भाग 50 किमी (31 मील) की छोटी सी दूरी में 2,000 मीटर (6,561 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है, जो विशाल हाइड्रोपावर क्षमता के साथ-साथ इंजीनियरिंग के लिए कठिन चुनौतियां भी पेश करता है।

भारत के लिए कैसे खतरनाक

चीन तिब्बत की जिस लंबी नदी को यारलुंग त्सांगपो नदी कहता है, उसे भारत में ब्रह्मपुत्र नदी कहा जाता है। कई विशेषज्ञों का कहना है कि चीन इस विशालकाय बांध को हथियार की तरह इस्तेमाल करके भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में कभी भी बाढ़ ला सकता है। लगभग 2900 किमी लंबी ब्रह्मपुत्र नदी भारत में आने से पहले तिब्बत के पठार से होकर गुजरती है। जो कि तिब्बत में धरती की सबसे गहरी खाई बनाती है। जिसे तिब्बती बौद्ध भिक्षु बहुत पवित्र मानते हैं।

धरती की स्‍पीड को प्रभावित कर रहा चीन का बांध

वहीं अभी बिजली पैदा करने के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा बांध कहे जाने वाला चीन थ्री जॉर्ज हर साल 88.2 अरब किलोवाट घंटे बिजली पैदा करता है। चीन के हुबई प्रांत में स्थित थ्री जॉर्ज बांध यांगजी नदी पर बनाया गया है।थ्री जॉर्ज बांध में 40 अरब क्‍यूबिक मीटर पानी है और यह धरती की घूमने की रफ्तार को भी प्रभावित कर रहा है। इसकी वजह से धरती की घूमने की गति में हर दिन 0.06 माइक्रोसेकंड बढ़ रहा है। इससे दुनियाभर के वैज्ञानिक काफी चिंत‍ित हैं। इस बांध को सबसे पहले साल 1919 में चीन के पहले राष्‍ट्रपति सुन यात सेन ने बनाने का प्रस्‍ताव दिया था। उन्‍होंने कहा था कि इससे जहां बाढ़ में कमी आएगी, वहीं दुनिया के सामने यह चीन के ताकत का प्रतीक बनेगा। चीन अब तिब्‍बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर नया विशालकाय बांध बनाने जा रहा है।

चालबाजियों से बाज नहीं आ रहा चीन, भूटान में डोकलाम के पास बसाए 22 गांव, भारत के लिए क्यों टेंशन की बात?
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एक तरफ भारत और चीन द्विपक्षीय संबंधों की बहाली को लेकर बातचीत कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ड्रैगन अपनी चालबाजी से बाज नहीं आ रहा है। एक बार फिर चीन की चाल ने भारत की परेशानी को बढ़ाने का काम किया है। चीन ने पिछले 8 साल में भूटान का हिस्सा माने जाने वाले क्षेत्र में कम से कम 22 गांव और बस्तियां बसाने का काम किया है।

*चीन ने बढ़ाई भारत की चिंता*
चीन ने जिन 22 गांवों का निर्माण किया है, उसमें सबसे बड़े गांव का नाम जीवू है, जो पारंपरिक भूटानी चरागाह त्सेथांखखा पर स्थित है। चीन की इस चाल ने भारत की टेंशन बढ़ा दी है। इस क्षेत्र में चीनी स्थिति मजबूत होने से सिलीगुड़ी कॉरिडोर (जिसे चिकन नेक भी कहा जाता है) की सुरक्षा पर खतरा मंडरा सकता है। यह कॉरिडोर भारत को पूर्वोत्तर के राज्यों से जोड़ता है।सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास भारत-तिब्बत-भूटान ट्राई-जंक्शन है। 60 किमी लंबा और 22 किमी चौड़ा यह कॉरिडोर नॉर्थ-ईस्ट के 7 राज्यों को भारत के साथ जोड़ता है।इस कॉरिडोर का भारत के लिए रणनीतिक महत्व है, क्योंकि चीन भूटान की सीमाओं के पास अपने अतिक्रमण का विस्तार कर रहा है, ताकि ज़मीन के इस संकरे हिस्से पर अपना प्रभाव जमा सके। इसकी कमज़ोरी भारत के पूर्वी क्षेत्र में चीन की मज़बूती है।

*7 हजार लोगों को किया स्थानांतरित*
स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज (एसओएएस) के रिसर्च सहयोगी रॉबर्ट बार्नेट की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2016 से, जब चीन ने पहली बार भूटान का हिस्सा माने जाने वाले क्षेत्र में एक गांव बनाया था, तब से चीनी अधिकारियों ने अनुमानित 2,284 आवासीय इकाइयों वाले 22 गांवों और बस्तियों का निर्माण पूरा कर लिया है। रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने लगभग 7 हजार लोगों को यहां स्थानांतरित भी कर दिया है।
रिपोर्ट के अनुसार चीन ने लगभग 825 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर (जो भूटान के अंदर था) कब्जा कर लिया, जो देश के 2 फीसदी हिस्से से थोड़ा अधिक है। चीन ने इन गांवों में अज्ञात संख्या में अधिकारियों, निर्माण करने वालो मजदूरों, बॉर्डर पुलिस और सैन्य कर्मियों को भी भेजा है। ये सभी गांव सड़क के माध्यम से चीन से जुड़े हुए हैं।

*साल 2017 से चल रहा डोकलाम बॉर्डर पर विवाद*
भूटान की 600 किमी सीमा चीन से लगती है। दो इलाकों को लेकर सबसे ज्यादा विवाद है। पहला- 269 वर्ग किमी क्षेत्रफल का डोकलाम इलाका और दूसरा- उत्तर भूटान में 495 वर्ग किमी का जकारलुंग और पासमलुंग घाटी का क्षेत्र। सबसे गंभीर मामला डोकलाम का है, जहां चीन, भारत और भूटान तीनों देशों की सीमाएं लगती है।
भारत और चीन की सेनाओं के बीच साल 2017 में लद्दाख के पास डोकलाम में हुए विवाद पर गतिरोध 73 दिनों तक चला था। उस दौरान भारत ने चीन की ओर से सड़क निर्माण का विरोध किया था। जिसके बाद दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटीं। बीते कुछ सालों से चीन फिर डोकलाम के पास अपनी गतिविधि बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।

*भारत के सामने कई सवाल*
कागजों पर, भूटान, भारत की सहमति के बिना डोकलाम के नजदीकी इलाकों को नहीं छोड़ सकता क्योंकि 2007 की भारत-भूटान शांति संधि के अनुसार भारत को भारत की सुरक्षा चिंताओं का सम्मान करना होगा। इससे हमारे सामने कई सवाल खड़े होते हैं - क्या चीन ने भूटान को भारतीय सीमा के नजदीकी इलाके को छोड़ने के लिए मजबूर किया?
क्या थिम्पू ने भूटानी प्रधानमंत्री की हाल की भारत यात्रा के दौरान डोकलाम के नजदीक चीन द्वारा किए जा रहे निर्माण कार्य के बारे में नई दिल्ली को बताया या शर्मिंदगी से बचने के लिए मामले को दबा दिया गया? ये सवाल इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि भारत और चीन पूर्वी लद्दाख में अपने सीमा विवाद को सुलझाने की प्रक्रिया में हैं।
बुरे फंसे भारत विरोधी जस्टिन ट्रूडो, अमेरिका के बाद अब चीन ने सिखाया सबक
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भारत के साथ अपने संबंधों को बिगाड़ने वाले जस्टिन ट्रूडो की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही है। जस्टिन ट्रूडो इस वक्त घरेलू मोर्चे पर संघर्ष कर रहे हैं और कूटनीतिक स्तर पर भी चारों ओर से चुनौतियों से घिर गए हैं। इस बार मामला चीन से जुड़ा हुआ है। अमेरिका के बाद अब चीन ने कनाडा के खिलाफ बड़ा एक्शन लिया है। चीन उइगर मुस्लिम और तिब्बत से संबंधित मानवाधिकार के मुद्दों में शामिल कनाडा के 2 संस्थानों के करीब 20 लोगों पर बैन लगाने जा रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित डोनाल्ड ट्रंप के टैक्स बम के बाद अब चीन की ये घोषणा कनाडा के लिए बड़ी परेशानी पैदा करने वाली है।

चीन ने रविवार को कहा है कि वह उइगरों और तिब्बत से संबंधित मानवाधिकार के मुद्दों में शामिल दो कनाडाई संस्थानों सहित 20 लोगों के खिलाफ प्रतिबंध की कार्रवाई करने जा रहा है। चीन के विदेश मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर घोषणा की कि शनिवार को प्रभावी हुए इन उपायों में संपत्ति जब्त करना और प्रवेश पर प्रतिबंध लगाना शामिल है और इनके निशाने पर कनाडा का उइगर अधिकार वकालत परियोजना और कनाडा-तिब्बत समिति शामिल है। चीन ने कहा कि वह इन दोनों संस्थानों की चल संपत्ति, अचल संपत्ति और चीन के क्षेत्र में अन्य प्रकार की संपत्ति को फ्रीज कर रहा है।

दरअसल, कनाडा के मानवाधिकार संगठनों ने चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों के उत्पीड़न का मुद्दा उठाया था। मानवाधिकार संगठनों का दावा है कि चीन में उइगर मुसलमानों का शोषण हो रहा है और सरकारी तंत्र उन्हें लगातार प्रताड़ित कर रहा है। इसके बाद चीन ने बड़ा एक्शन लिया है। कनाडा के 20 लोगों को चीन ने बैन कर दिया है। ये सभी लोग अलग-अलग मानवाधिकार संगठनों से जुड़े थे। इन सभी लोगों के चीन में प्रवेश के साथ ही हांगकांग और मकाऊ क्षेत्र में प्रवेश पर भी बैन लगा दिया गया है।

इस प्रतिबंध के तहत, उइगर संस्थान से जुड़े 15 और तिब्बत समिति के पांच सदस्यों की चीन में संपत्तियों को फ्रीज किया गया है। इसके अलावा, इन व्यक्तियों के हांगकांग और मकाऊ सहित पूरे चीन में प्रवेश पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है।

कनाडा के मानवाधिकार समूहों ने चीन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि चीन ने शिनजियांग प्रांत में उइगर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बड़े पैमाने पर शोषण किया है। लगभग एक करोड़ उइगर मुसलमानों को कथित रूप से नजरबंदी शिविरों में रखा गया है, जहां उनसे जबरन मजदूरी करवाया जाता है। हालांकि, चीन ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि ये शिविर पुनर्वास और शिक्षा के लिए हैं। चीन ने 1950 में तिब्बत पर नियंत्रण किया था और इसे "शांतिपूर्ण मुक्ति" कहा था। लेकिन अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों और निर्वासित तिब्बती समुदायों ने इसे दमनकारी शासन करार दिया है और समय-समय पर इसकी निंदा की है।

बता दें कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो इन दिनों आंतरिक और बाहरी संकटों का सामना कर रहे हैं। उनके कार्यकाल में कनाडा के अमेरिका, भारत और चीन जैसे प्रमुख देशों के साथ संबंध खराब हुए हैं। ये तीनों देश वैश्विक स्तर पर अत्यधिक महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इसके अलावा, कनाडा में उनकी लोकप्रियता तेजी से घट रही है। उनके पूर्व सहयोगी और एनडीपी नेता जगमीत सिंह ने अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा की है, जिससे ट्रूडो की सरकार पर दबाव और बढ़ गया है।
फिर से शुरू होगी कैलाश मानसरोवर यात्रा, भारत चीन के बीच बनी बात

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कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर भारत और चीन के बीच एक बड़ा समझौता हुआ है। पूरे पांच साल बाद बीजिंग में दोनों देशों के प्रतिनिधियों की बैठक हुई। इस बैठक में दोनों देश के बीच कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर सहमति बन गई। दोनों देशों के बीच पांच साल के अंतराल के बाद विशेष प्रतिनिधियों की 23वें दौर की बैठक बीजिंग में 6 मुद्दों पर सहमति बनी।भारत की ओर से इस बैठक में राष्ट्रीय सलाहकार अजीत डोभाल तो चीन की ओर से विदेश मंत्री वांग यी शामिल थे।

ईस्टर्न लद्दाख में चार साल लंबे गतिरोध के बाद संबंधों की बहाली के मद्दनेजर सभी मुद्दों पर बात करने के लिए बॉर्डर मुद्दे पर बने इस मैकेनिज्म की आखिरी बैठक दिसंबर 2019 के बाद पहली बार हुई है।भारत की ओर से इस बैठक में राष्ट्रीय सलाहकार अजीत डोभाल तो चीन की ओर से विदेश मंत्री वांग यी शामिल थे। दोनों विशेष प्रतिनिधियों ने बॉर्डर एरिया में शांति क़ायम करने को द्विपक्षीय संबंधों की बेहतरी के लिए अहम बताया।

दोनों पक्षों ने इस बात को माना कि ग्राउंड पर शांतिपूर्ण हालात कायम करने ज़रूरी हैं जिससे कि सीमा संबंधी मुद्दे द्विपक्षीय संबंधों की सामान्य गतिविधियों पर असर ना डाले। साल 2020 से सबक़ लेते हुए बॉर्डर पर शांति कायम करने और बॉर्डर मैनेजमेंट को लेकर चर्चा की गई। दोनों देशों ने इस इसे लेकर संबंधित डिप्लोमैटिक और मिलिट्री चैनल को निर्देशित करने और इस्तेमाल का भी फ़ैसला किया

कैलाश मानसरोवर यात्रा करने के दौरान चीन की अनुमति जरूरी है क्योंकि यह यात्रा तिब्बत में स्थित है। जो वर्तमान में चीन का एक स्वायत्त क्षेत्र है। इसलिए वहां जाने के लिए चीनी पर्यटक वीजा लेना होता है। चीनी सरकार ने इस क्षेत्र में यात्रा के लिए नियम और शर्तें निर्धारित की हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य है. अब भारत के समझौते के साथ कैलाश मानसरोवर की यात्रा आसान हो सकती है।

विशेष प्रतिनिधियों की बैठक प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच कजान में हाल ही में हुई बैठक के दौरान लिए गए निर्णय के अनुसार हुई। इसके तहत सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और सौहार्द के प्रबंधन की देखरेख करने और सीमा से जुड़े सवालों का निष्पक्ष, उचित और परस्पर स्वीकार्य समाधान तलाशने के लिए शीघ्र बैठक की जानी थी। इससे पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान अपने चीनी समकक्ष वांग यी से मुलाकात की थी। जिसमें मानसवोर यात्रा को दोबारा शुरू करने और भारत और चीन के बीच डायरेक्ट फ्लाइट शुरू करने जैसे मुद्दों पर बातचीत हुई थी।

कैलाश मानसरोवर यात्रा एक महत्वपूर्ण धार्मिक तीर्थ यात्रा है, जो हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए विशेष महत्व रखती है. यह यात्रा तिब्बत में स्थित कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील तक जाती है। कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। यह पर्वत तिब्बत के पश्चिमी क्षेत्र में हिमालय श्रृंखला का हिस्सा है, जिसकी ऊंचाई लगभग 6,638 मीटर है। जबिक, मानसरोवर झील को लेकर ऐसी मान्यता है कि इसकी रचना ब्रह्मा जी ने की थी। यह झील तिब्बत के उच्च पठार पर 4,590 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और कैलाश पर्वत से लगभग 30 किलोमीटर दूर है।

इस यात्रा के दौरान तीर्थयात्री कैलाश पर्वत की परिक्रमा करते हैं और मानसरोवर झील में स्नान करते हैं, जिसे पवित्र और मोक्ष प्राप्ति का माध्यम माना जाता है। समुद्र तल से 17,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित लिपूलेख दर्रे से होकर यात्रा की जाती है।

चीन अपनी परमाणु शक्ति बढ़ा रहा, तैयार किए 600 न्यूक्लियर हथियार, भारत के लिए कितना बड़ा खतरा?

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चीन अपने न्यूक्लियर पावर को लगातार बढ़ा रहा है। दावा किया रहा है कि उसने अपने लिए 600 के करीब परमाणु हथियार भी तैयार करके रखा है। ये दावा पेंटागन की रिपोर्ट में किया गया है। इस रिपोर्ट में इस दावे के साथ-साथ कई चौकाने वाले खुलासे भी किए गए हैं।इसमें कहा गया है कि 2030 के अंत तक चीन के पास 1000 से ज्यादा परमाणु बम होंगे। इनमें से कई को पूरी तरह से तैनाती के मोड पर रखे जाने की योजना है।चीन जिस तरह से अपने परमाणु बमों के भंडार को बढ़ा रहा है, वह भारत और अमेरिका के लिए बड़ा खतरा है।

पेंटागन की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन अपने परमाणु हथियारों की संख्या में लगातार इजाफा करने में जुटा है। अगर वह इसी गति से परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ाता रहा तो वर्ष 2030 उसके पास 1000 परमाणु हथियार होंगे।रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की वायु सेना अपने टेक्नोलॉजी स्टैंडर्ड में सुधार कर रही है और तेजी से टेक्नोलॉजी को अमेरिकी मानकों के बराबर ला रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने अपने ड्रोन आधुनिकीकरण के प्रयास जारी रखे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ड्रोन के लिए झुंड क्षमताओं को विकसित करने में पर्याप्त प्रयास कर रहा है। अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि सुधारों के बावजूद, चीन की एयर फोर्स यूएस एयर फोर्स के बराबर या उससे आगे नहीं निकल पाई है।

इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें विकसित कर रहा चीन

पेंटागन की इस रिपोर्ट के अनुसार चीन बीते कुछ समय से अपनी सेना को और अधिक अत्याधुनिक हथियारों से लैस करने में जुटा है। यही वजह है कि वह लगातार ऐसी मिसाइलें भी बना रहा है जो दुश्मनों की नींद उड़ा सके। रिपोर्ट के अनुसार चीन नई इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें विकसित करने पर जोर दे रहा है। ऐसा करने से उसकी परमाणु सक्षम मिसाइल ताकतों में इजाफा होगा। इसके साथ-साथ अनुमान लगाया जा रहा है कि चीन पारंपरिक रूप से सशस्त्र इंटरकॉन्टिनेंटल रेंज मिसाइल सिस्टम विकसित करने पर विचार कर सकता है।

अमेरिका शहरों पर तक हमला करने की क्षमता

इसमें कहा गया है कि चीन एडवांस न्यूक्लियर डिलीवरी सिस्टम विकसित कर रहा है। इसे अमेरिका से दीर्घकालिक चुनौती को ध्यान में रखकर तैयार किया जा रहा है। पीपल्स रिपब्लिक आर्मी की बढ़ती हुई न्यूक्लियर फोर्स इसे अमेरिकी शहरों, सैन्य सुविधाओं और नेतृत्व स्थलों को निशाना बनाने में सक्षम करेगी। चीन की योजना ऐसे हथियार तैयार करने की है जो बहुत अधिक स्तर पर नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखते हों।

वॉरशिप और सबमरीन

रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के पास 370 से अधिक प्लेटफार्मों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी नेवी है। जहाजों की संख्या 2025 तक 395 और 2030 तक 435 जहाजों तक बढ़ने की उम्मीद है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की नेवी के पास वर्तमान में छह न्यूक्लियर बैलिस्टिक मिसाइल सबमरीन, छह न्यूक्लियर सबमरीन और 48 डीजल से चलने वाली या एयर फ्री अटैक सबमरीन हैं। 2025 तक सबमरीन बल बढ़कर 65 और 2035 तक 80 तक पहुंचने की उम्मीद है।

रूस और उत्तर कोरिया से चीन ने बनाई दूरी

इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन ने सार्वजनिक रूप से रूस और उत्तर कोरिया के बढ़ते रक्षा संबंधों से खुदको दूर कर लिया है। ऐसा माना जा रहा है कि चीन ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि शायद उसे लगता है कि इन देशों से नजदीकी उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकती है।

एनएसए अजीत डोभाल का चीन दौरा, जानें 5 साल बाद हो रही ये बैठक कितनी अहम?

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भारत और चीन के रिश्ते पर जमी बर्फ अब पिघलती दिख रही है। दोनों देशों के बीच एलएसी पर सीमा विवाद के कारण बीते कुछ सालों में तनाव काफी बढ़ गया था। हालांकि, कई दौर की बातचीत के बाद हालात पटरी पर आते दिख रहे हैं। इसी क्रम में मंगलवार को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल बीजिंग पहुंचे हैं। लगभग पांच वर्षों के अंतराल के बाद उनकी चीन की आधिकारिक यात्रा है। इससे पहले एसआर संवाद दिसंबर 2019 में नई दिल्ली में हुआ था।

अजित डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने बुधवार को कई मुद्दों पर चर्चा की। अजीत डोभाल अपने चीनी समकक्ष और विदेश मंत्री वांग यी के साथ विशेष प्रतिनिधियों (एसआर) की 23वें दौर की वार्ता की। इस दौरान पूर्वी लद्दाख से सैनिकों की वापसी और गश्त को लेकर दोनों देशों के बीच 21 अक्टूबर को हुए समझौते के बाद द्विपक्षीय संबंधों को बहाल करने के लिए कई मुद्दों पर चर्चा हुई। इस वार्ता का उद्देश्य पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध के कारण चार साल से अधिक समय तक प्रभावित रहे द्विपक्षीय संबंधों को बहाल करना है। साथ ही दोनों देशों के बीच आई खटास को दूर करना है।

चीनी विदेश मंत्रालय ने क्या कहा?

अजीत डोभाल और वांग यी की विशेष बैठक से पहले चीनी विदेश मंत्रालय ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। एक सवाल के जवाब में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा कि चीन द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने और मतभेदों को दूर करने के लिए भारत संग काम करने को तैयार है। उन्होंने कहा कि चीन और भारत के नेताओं के बीच महत्वपूर्ण आम समझ को लागू करने, एक-दूसरे के मूल हितों और प्रमुख चिंताओं का सम्मान करने, बातचीत और संचार के माध्यम से आपसी विश्वास को मजबूत करने, ईमानदारी और सद्भाव के साथ मतभेदों को ठीक से सुलझाने और द्विपक्षीय संबंधों को जल्द से जल्द स्थिर और स्वस्थ विकास की पटरी पर लाने के लिए भारत के साथ काम करने के लिए तैयार है।

कम होते तनाव के बीच दौरा कितना अहम

एनएसए का दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब दोनों देशों ने डेमचोक और देपसांग क्षेत्रों से अपनी सेना को पीछे हटाने के समझौते पर सहमति बनाई है। खबरों के मुताबिक दोनों ओर से को-ऑर्डिनेट पेट्रोलिंग भी शुरू हो गई है। इस विवाद को सुलझाने के लिए कॉर्प्स कमांडरों की 21 राउंड की बैठक हो चुकी है, इसके अलावा डिप्लोमेटिक लेवल पर भी कई दौर की बातचीत हुई है।

मई 2020 में शुरू हुआ था सैन्य गतिरोध

दोनों देशों के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैन्य गतिरोध मई 2020 में शुरू हुआ था। उसी साल जून में गलवां घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच घातक झड़प हुई थी, जिससे दोनों पड़ोसियों के बीच संबंधों में गंभीर तनाव आ गया था। सैनिकों की वापसी के समझौते को 21 अक्तूबर को अंतिम रूप दिया गया था। समझौते पर हस्ताक्षर होने के दो दिन बाद पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस के कजान शहर में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर बातचीत की थी। बैठक में दोनों पक्षों ने सीमा मुद्दे पर विशेष प्रतिनिधि वार्ता सहित कई वार्ता तंत्रों को बहाल करने पर सहमति व्यक्त की थी।

ट्रंप ने बढ़ाई 'ड्रैगन' की टेंशन! इसे चीन में नियुक्त किया अमेरिकी राजदूत

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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई सरकार वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन सरकार के अंतर्राष्ट्रीयवाद के दृष्टिकोण से बिल्कुल अलग काम करने जा रही है। ऐसा डोनाल्ड ट्रंप के हालिया फैसले के बाद कहा जा सकता है। डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद से लगातार अपनी टीम बनाने तैयारी में लगे हैं। इसी कड़ी में उन्होंने चीन को लेकर भी पत्ते खोल दिए हैं। ट्रंप ने जॉर्जिया डेविड पर्ड्यू को चीन में एंबेसडर के लिए नॉमिनेट किया है।

ट्रंप ने गुरुवार को फैसले की जानकारी दी। अलजजीरा की रिपोर्ट के अनुसार ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में कहा, “फॉर्च्यून 500 के सीईओ के रूप में, जिनका 40 साल का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करियर रहा है और जिन्होंने अमेरिकी सीनेट में सेवा की है। डेविड चीन के साथ हमारे संबंधों को बनाने में मदद करने के लिए बहुमूल्य विशेषज्ञता लेकर आए हैं। वह सिंगापुर और हांगकांग में रह चुके हैं और उन्होंने अपने करियर के अधिकांश समय एशिया और चीन में काम किया है।”

पर्ड्यू की नियुक्ति के लिए अमेरिकी सीनेट की मंजूरी की आवश्यकता होगी, लेकिन उनके अनुमोदन की संभावना है, क्योंकि सदन में रिपब्लिकन का बहुमत है। राजदूत के रूप में पर्ड्यू को शुरुआत से ही चुनौतीपूर्ण कार्यभार का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि ट्रम्प अमेरिका को चीन के साथ एक व्यापक व्यापार युद्ध में ले जाने के लिए तैयार हैं।

अभी हाल ही में ट्रंप ने अवैध अप्रवास और ड्रग्स पर लगाम लगाने के अपने प्रयास के तहत पदभार संभालते ही मैक्सिको, कनाडा और चीन पर व्यापक नए टैरिफ लगाने की धमकी दी है। उन्होंने कहा कि वह कनाडा और मैक्सिको से देश में प्रवेश करने वाले सभी उत्पादों पर 25 प्रतिशत कर लगाएंगे और चीन से आने वाले सामानों पर अतिरिक्त 10 प्रतिशत टैरिफ लगाएंगे, जो उनके पहले कार्यकारी आदेशों में से एक है।

इसके बाद वाशिंगटन स्थित चीनी दूतावास ने इस सप्ताह के प्रारंभ में चेतावनी दी थी कि यदि व्यापार युद्ध हुआ तो सभी पक्षों को नुकसान होगा। दूतावास के प्रवक्ता लियू पेंगयु ने एक्स पर पोस्ट किया कि चीन-अमेरिका आर्थिक और व्यापार सहयोग प्रकृति में पारस्परिक रूप से लाभकारी है। कोई भी व्यापार युद्ध या टैरिफ युद्ध नहीं जीतेगा। उन्होंने कहा कि चीन ने पिछले साल नशीली दवाओं की तस्करी को रोकने में मदद करने के लिए कदम उठाए थे।

धमकियों पर कितना अमल करेंगे ट्रंप?

यह स्पष्ट नहीं है कि क्या ट्रंप वास्तव में इन धमकियों पर अमल करेंगे या वे इन्हें बातचीत की रणनीति के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर टैरिफ लागू किए जाते हैं, तो अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए गैस से लेकर ऑटोमोबाइल और कृषि उत्पादों तक हर चीज की कीमतें नाटकीय रूप से बढ़ सकती हैं। सबसे हालिया अमेरिकी जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका दुनिया में वस्तुओं का सबसे बड़ा आयातक है, जिसमें मेक्सिको, चीन और कनाडा इसके शीर्ष तीन आपूर्तिकर्ता हैं।

ट्रंप की चीन विरोधी टीम!

इससे पहले भी ट्रंप ने मार्को रूबियो और माइक वाल्ट्ज जैसे नेताओं को नई सरकार में अहम भूमिका के लिए चुना है। ये दोनों ही नेता चीन के विरोधी माने जाते रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप चीन के प्रति सख्त रुख की नीति पर ही काम करने जा रहे हैं।

चीन के करीब आ रहा नेपाल, दोनों देशों के बीच बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव समझौता, भारत पर क्या होगा असर?

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नेपाल पर चीन का प्रभाव बढ़ता दिख रहा है। पिछले कुछ सालों में चीन-नेपाल करीब आए हैं। यही कारण है कि चौथी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद केपी शर्मा ओली अपने पहले दौरे पर चीन गए। केपी शर्मा ओली ने बीजिंग दौरे पर कई समझौतों पर साइन किया। इनमें सबसे अहम है बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई)। नेपाल और चीन ने बुधवार को बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) सहयोग के ढांचे पर हस्ताक्षर किए हैं। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इसकी पुष्टि की।

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस समझौते की पुष्टि अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर की। पीएम ओली ने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, “आज हमने बेल्ट एंड रोड्स सहयोग के लिए फ्रेमवर्क पर हस्ताक्षर किए हैं। चीन की मेरी आधिकारिक यात्रा खत्म होने खत्म होने के साथ ही, मुझे प्रधानमंत्री ली कियांग के साथ द्विपक्षीय वार्ता, एनपीसी के अध्यक्ष झांग लेजी के साथ चर्चा और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ अत्यंत उपयोगी बैठक पर विचार करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। पीएम ओली ने कहा कि बेल्ट एंड रोड फ्रेमवर्क सहयोग के तहत नेपाल-चीन आर्थिक सहयोग और मजबूत होगा।

समझौते से पहले बदले गए शब्द

इससे पहले चीन ने नेपाल के भेजे गए मसौदे से अनुदान शब्द हटा दिया था। इस कारण इस मसौदे पर मंगलवार को हस्ताक्षर नहीं हो सके थे। नेपाल ने शुक्रवार शाम एक मसौदा भेजा था, जिसमें प्रस्ताव दिया गया था कि चीन नेपाल सरकार द्वारा आगे बढ़ाई जाने वाली परियोजनाओं पर अनुदान निवेश प्राप्त करेगा। दोनों देशों ने अब अनुदान निवेश के स्थान पर सहायता निवेश, जिसमें अनुदान और ऋण निवेश दोनों शामिल हैं, को ध्यान में रखते हुए ढांचे पर हस्ताक्षर किए हैं।

ओली ने बीआरआई पर लगाई मुहर

नेपाल के प्रधानमंत्री और सीपीएन-यूएमएल के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली और नेपाली कांग्रेस (एनसी) के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा ने पहले बीआरआई सहयोग पर ढांचे के मसौदे को मंजूरी दी थी जिसमें कहा गया था कि नेपाल केवल चीनी अनुदान स्वीकार करेगा। नेपाल ने 2017 में बीआरआई पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। उसके बाद नेपाल और चीन द्वारा बीआरआई कार्यान्वयन योजना पर हस्ताक्षर किए जाने की उम्मीद थी, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ था।

चीन पर बढ़ा ओली का भरोसा

नेपाल के प्रधानमंत्री की 4 दिवसीय ये यात्रा काफी चर्चा में है। अपने दौरे के बाद पीएम ओली ने दावा किया कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नेपाल के विकास का पूरा समर्थन किया है। इसके अलावा ओली ने चीनी निवेशकों से नेपाल में निवेश करने की बात भी कही है। उन्होंने कहा कि हम राष्ट्रीय आकांक्षा, समृद्ध नेपाल, खुशहाल नेपाली के सपने को साकार करने के लिए सरल निवेश सुविधा लाएंगे।

भारत के प्रभाव से दूर हो रहा नेपाल

वहीं, नेपाल के इस फ़ैसले को भारत के प्रभाव से दूर जाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने चीन के साथ अपने आर्थिक और कूटनीतिक रिश्ते और बेहतर करने की रणनीति अपनाई है। ओली इस साल चौथी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने हैं। पीएम बनने के बाद उन्होंने अपने पहले आधिकारिक विदेश दौरे के लिए चीन को चुना था। परंपरागत रूप से नेपाल के प्रधानमंत्री अपने कार्यकाल की शुरुआत में भारत की यात्रा करते रहे हैं, लेकिन ओली ने इस परंपरा को तोड़ते हुए चीन का रुख किया है।

नेपाल की चीनी चाल से भारत हो सकता है परेशान

नेपाल के बीआरआई मसौदे पर हस्ताक्षर करते ही भारत की टेंशन बढ़ गई है। इस मसौदे में नेपाल की चिंताओं के बावजूद अनुदान और और ऋण दोनों को शामिल किया गया है। ऐसे में डर है कि नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियां चीन को खुश करने के लिए कर्ज लेकर देश का बेड़ा गर्क कर सकती हैं। इससे नेपाल के चीन के कर्ज के जाल में फंसने की आशंका बढ़ जाएगी। अगर ऐसा होता है तो नेपाल की नीतियों में चीनी दखल भी बढ़ेगा जो भारत के लिए अच्छा नहीं होगा। नेपाल हिमालयी देश है, जो भारत और चीन के बीच स्थित है।

चीन की दक्षिणी महाद्वीप में धमक, अंटार्कटिका में पहला वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन किया स्थापित
#china_expands_presence_in_antarctica_with_monitoring_station

* चीन ने अब अंटार्कटिका में अपना परचम लहराते हुए पहला वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन स्थापित किया है।चीन मौसम विज्ञान प्रशासन (सीएमए) के अनुसार, पूर्वी अंटार्कटिका में लार्समैन हिल्स में स्थित, झोंगशान राष्ट्रीय वायुमंडलीय पृष्ठभूमि स्टेशन ने रविवार को काम करना शुरू कर दिया। चीन मौसम विज्ञान प्रशासन यानी सीएमए वेबसाइट पर सोमवार को प्रकाशित एक लेख में कहा गया कि यह स्टेशन "अंटार्कटिका के वायुमंडलीय घटकों में सांद्रता परिवर्तनों का सतत और दीर्घकालिक परिचालनात्मक अवलोकन करेगा, तथा क्षेत्र में वायुमंडलीय संरचना और संबंधित विशेषताओं की औसत स्थिति का विश्वसनीय प्रतिनिधित्व प्रदान करेगा।" हांगकांग स्थित साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, लेख में कहा गया है कि निगरानी डेटा "जलवायु परिवर्तन के लिए वैश्विक प्रतिक्रिया का समर्थन करेगा"। यह चीन का नौवां चालू वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन है और विदेश में इसका पहला स्टेशन है। इसके अलावा, चीन में वर्तमान में 10 नए वायुमंडलीय निगरानी स्टेशनों का परीक्षण किया जा रहा है। साल 2024 की शुरुआत में, चीन ने अंटार्कटिका में अपने विशाल 5वें शोध स्टेशन का संचालन किया, जिसमें 5,244 वर्ग मीटर का फर्श क्षेत्र है, जिसमें गर्मियों के दौरान 80 अभियान दल के सदस्यों और सर्दियों के दौरान 30 सदस्यों का समर्थन करने की सुविधाएँ हैं। अपने कॉम्पीटीटर संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह, चीन अंटार्कटिका में अपने 5 वैज्ञानिक अनुसंधान स्टेशनों और अंटार्कटिका में 2 के माध्यम से ध्रुवीय संसाधनों का पता लगाने के प्रयासों का विस्तार कर रहा है।
चीन की दक्षिणी महाद्वीप में धमक, अंटार्कटिका में पहला वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन किया स्थापित
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* चीन ने अब अंटार्कटिका में अपना परचम लहराते हुए पहला वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन स्थापित किया है।चीन मौसम विज्ञान प्रशासन (सीएमए) के अनुसार, पूर्वी अंटार्कटिका में लार्समैन हिल्स में स्थित, झोंगशान राष्ट्रीय वायुमंडलीय पृष्ठभूमि स्टेशन ने रविवार को काम करना शुरू कर दिया। चीन मौसम विज्ञान प्रशासन यानी सीएमए वेबसाइट पर सोमवार को प्रकाशित एक लेख में कहा गया कि यह स्टेशन "अंटार्कटिका के वायुमंडलीय घटकों में सांद्रता परिवर्तनों का सतत और दीर्घकालिक परिचालनात्मक अवलोकन करेगा, तथा क्षेत्र में वायुमंडलीय संरचना और संबंधित विशेषताओं की औसत स्थिति का विश्वसनीय प्रतिनिधित्व प्रदान करेगा।" हांगकांग स्थित साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, लेख में कहा गया है कि निगरानी डेटा "जलवायु परिवर्तन के लिए वैश्विक प्रतिक्रिया का समर्थन करेगा"। यह चीन का नौवां चालू वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन है और विदेश में इसका पहला स्टेशन है। इसके अलावा, चीन में वर्तमान में 10 नए वायुमंडलीय निगरानी स्टेशनों का परीक्षण किया जा रहा है। साल 2024 की शुरुआत में, चीन ने अंटार्कटिका में अपने विशाल 5वें शोध स्टेशन का संचालन किया, जिसमें 5,244 वर्ग मीटर का फर्श क्षेत्र है, जिसमें गर्मियों के दौरान 80 अभियान दल के सदस्यों और सर्दियों के दौरान 30 सदस्यों का समर्थन करने की सुविधाएँ हैं। अपने कॉम्पीटीटर संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह, चीन अंटार्कटिका में अपने 5 वैज्ञानिक अनुसंधान स्टेशनों और अंटार्कटिका में 2 के माध्यम से ध्रुवीय संसाधनों का पता लगाने के प्रयासों का विस्तार कर रहा है।