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आर-पार के मूड में चीन, ट्रंप को 10% के जवाब में 15% टैरिफ, अब बढ़ेगा तनाव

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा और मेक्सिको को बड़ी राहत दी। ट्रंप ने दोनों देशों पर टैरिफ लगाने के फैसले को 30 दिन के लिए टाल दिया है। हालांकि, चीन को किसी भी तरह की राहत नहीं दी। फिर क्या था अमेरिका के टैरिफ से चीन तिलमिला उठा और अमेरिका को जवाब देने की ठानी। इसी का नतीजा है कि अब चीन ने भी अमेरिका से इंपोर्ट होकर आने वाले सामानों पर टैरिफ लगाना शुरू कर दिया है। चीन ने अमेरिका के कोयला और क्रूड ऑयल समेत कई उत्पादों पर 15 पर्सेंट तक टैरिफ थोप दिया है। चीन की तरफ से लगाए गए ये टैरिफ 10 फरवरी से लागू होंगे।

चीनी वित्त मंत्रालय ने मंगलवार को अमेरिकी उत्पादों पर 10 से 15 प्रतिशत टैरिफ लगाने के फैसले की जानकारी दी। बीजिंग के टैरिफ लगाए जाने से चीन में अमेरिका से आने वाले बड़ी कारों, पिक ट्रक, एलएनजी, कच्चा तेल और खेती-बाड़ी की मशीनों के आयात पर असर पड़ेगा। चीन ने कोयले और प्राकृतिक गैस पर 15 प्रतिशत और पेट्रोलियम, कृषि उपकरण, उच्च उत्सर्जन वाले वाहनों और पिकअप ट्रकों पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाया है। चीन ने कुछ प्रमुख खनिजों के निर्यात पर नियंत्रण लगाया है। साथ ही गूगल और कुछ अमेरिकी कंपनियों की जांच शुरू कर दी है।

केवल टैरिफ तक नहीं रुका चीन

चीन सिर्फ टैरिफ तक ही नहीं रुका, बल्कि उसने दो अमेरिकी कंपनियों को अपनी अविश्वसनीय संस्थाओं की सूची में डाला है। इसमें बायोटेक कंपनी इलुमिना और केल्विन क्लेन और टॉमी हिलफिगर की मालिकाना हक वाली फैशन रिटेलर कंपनी पीवीएच ग्रुप शामिल है। चीन का कहना है कि उन्होंने सामान्य बाजार व्यापार सिद्धांतों का उल्लंघन किया है। टैरिफ के अलावा, चीन ने अमेरिकी टेक्नोलॉजी कंपनी गूगल के खिलाफ एक एंटी-मोनोपॉली जांच शुरू करने की भी घोषणा की है।

चीन-अमेरिका में छिड़ा ट्रेड वॉर

अमेरिका और चीन के एक-दूसरे पर टैरिफ लगाने से दोनों मुल्कों में व्यापार के स्तर पर तनाव बढ़ गया है। इससे आने वाले दिनों में अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर तेज होने की भी संभावना है। दरअसल, चीन का जवाबी कदम ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच संभावित टेलीफोनिक बातचीत से पहले आया है। ट्रंप ने सोमवार को कहा कि शी के साथ बातचीत ‘शायद अगले 24 घंटों में’ होगी। ट्रंप ने यह भी कहा कि अगर चीन के साथ कोई समझौता नहीं हो सका, तो ‘टैरिफ बहुत, बहुत ज्यादा होंगे।

ट्रंप ने भारत-चीन को बताया अमेरिका को नुकसान पहुंचाने वाला देश, टैरिफ लगाने की दी धमकी
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोन पर बात हुई है। खुद ट्रंप और पीएम मोदी ने इसकी जानकारी दी है। ट्रंप की मानें तो भारत के साथ हमारे संबंध बहुत अच्छे हैं। हालांकि, दूसरे ही पल उन्होंने भारत को अमेरिका को ‘नुकसान’ पहुंचाने वाला देश बताया और हाई टैरिफ लगाने की धमकी दी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मंगलवार को फ्लोरिडा में एक कार्यक्रम में भारत, चीन और ब्राजील जैसे देशों पर हाई टैरिफ लगाने की बात कही है।

फ्लोरिडा में हाउस रिपब्लिकन्स के एक रिट्रीट के दौरान ट्रंप ने 'अमेरिका फर्स्ट' आर्थिक एजेंडे पर जोर दिया।  ट्रंप ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि अमेरिका वापस उस सिस्टम को अपनाए जिसने उसे धनी और ताकतवर बनाया है। ट्रंप ने कहा- हम उन देशों और बाहरी लोगों पर टैरिफ लगाने जा रहे हैं जो हमें नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। देखिए दूसरे देश क्या करते हैं। चीन बहुत ज्यादा टैरिफ लगाता है। भारत, ब्राजील और बाकी देश भी ऐसा ही करते हैं। हम ऐसा अब और नहीं होने देंगे क्योंकि हम अमेरिका को सबसे पहले रखेंगे। ट्रंप ने कहा कि ये तीनों देश (ब्राजील, चीन, भारत) अपने हितों के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन इससे अमेरिका को नुकसान पहुंच रहा है। अमेरिका एक ईमानदार सिस्टम तैयार करेगा, जिससे हमारे खजाने में पैसा आएगा और अमेरिका फिर से बहुत अमीर हो जाएगा। यह सब कुछ बहुत जल्द होगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि दूसरे देशों को अमीर बनाने के लिए अपने लोगों पर टैक्स लगाने की जगह हम अपने लोगों को अमीर बनाने के लिए दूसरे देशों पर टैक्स लगाएंगे। विदेशी कंपनियां हाई टैरिफ से बचना चाहती हैं, तो उन्हें अमेरिका में ही अपना प्लांट लगाना होगा।

ट्रंप ने एक बहुत निष्पक्ष प्रणाली स्थापित करने की योजना की बात कही। उन्होंने कहा कि इससे पैसा अमेरिका के खजाने में आएगा और देश फिर से अमीर बन जाएगा। ट्रंप ने कहा कि यह बहुत जल्दी होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति ने विदेशी कंपनियों से ऊंचे टैरिफ से बचने के लिए अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट स्थापित करने का भी आग्रह किया।
चीन के एआई मॉडल डीपसीक ने ChatGPT को पछाड़ा, अमेरिकी शेयर बाजार में खलबली
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* चीन ने हाल ही अपना एआई मॉडल डीपसीक जारी किया। चीन के एआई स्टार्टअप डीपसीक ने आते ही तहलका मचा दिया है। डीपसीक ने ऐपल के ऐप स्‍टोर पर ChatGPT जैसे बड़े नामों को पछाड़ते हुए पहला स्थान हासिल कर लिया है। 2 साल पहले आया ओपन एआई का ChatGPT मुंह देखता रह गया और 2 महीने में तैयार किए गए मॉडल ने अपनी मार्केट में पहचान बना ली। डीपसीक के जारी होने के बाद एआई उद्योग को सेमीकंडक्टर देने वाली अमेरिकी चिप निर्माता कंपनी एनवीडिया के शेयरों में भारी गिरावट आई है। कंपनी के शेयर के बाजार मूल्य में 600 बिलियन डॉलर का घाटा हुआ है।एनवीडिया के शेयरों में गिरावट की मुख्य कारण डीपसीक का कम कीमत पर बेहतर एआई मॉडल पेश करना है। कोडिंग और मैथ्‍स जैसे जटिल कामों को सॉल्व करने और लो कॉस्ट की वजह से इस डीपसीक की चर्चा हो रही है। यह फ्री और ओपन सोर्स एआई मॉडल है। ओपेन एआई के चैटजीपीटी का प्लस सब्सक्रिप्शन $20 मंथली (करीब 1,650 रुपये) है। गूगल ने अपने वर्कस्पेस ऐप में जेमिनी एआई फीचर्स को फ्री किया है। पहले इसका मंथली खर्च 1500 रुपये था। मार्केट में नए आए डीपसीक आर1 की कीमत 0.55 डॉलर (करीब 47 रुपये) प्रति मिलियन इनपुट टोकन और 2.19 डॉलर (करीब 189 रुपये) प्रति मिलियन आउटपुट टोकन है। डीपसीक के संस्थापक क्वांट फंड प्रमुख लियांग वेनफेंग हैं। उन्होंने पिछले हफ्ते ही अपना नवीनतम AI मॉडल जारी किया है। यह अब ओपेन एआई और मेटा जैसी बड़ी कंपनियों को टक्कर देता दिख रहा है। इसका ओपन-सोर्स प्रोडक्ट ऐपल इंक. के ऐप स्टोर रैंकिंग में टॉप पर है। कोटक बैंक के संस्थापक उदय कोटक इसे दुनिया के लिए चेतावनी मानते हैं। उदय कोटक ने सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म 'एक्‍स' पर पोस्‍ट करते हुए कहा कि डीपसीक दिखाता है कि एआई के क्षेत्र में अमेरिका के दबदबे को चुनौती देने के लिए चीन कितना गंभीर है। उन्होंने दूसरे देशों से भी आगे आकर प्रतिस्पर्धा करने का आह्वान किया। कोटक ने लिखा, 'चीन ने एआई की दुनिया में अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती देने के लिए डीपसीक के साथ वैश्विक तकनीकी दौड़ को तेज कर दिया है। इसने ऐपल ऐप स्टोर रैंकिंग में शीर्ष स्थान हासिल किया है। जैसे-जैसे शीर्ष की दौड़ आगे बढ़ेगी, यह समय है कि अन्य महत्वाकांक्षी देश इस खेल को आगे बढ़ाएं।' कोटक का मानना है कि यह इस बात का संकेत है कि दूसरे देशों को भी अपनी तकनीक को बेहतर बनाने की जरूरत है। बेशक, उदय कोटक ने भारत का नाम नहीं लिया है। लेकिन, चीन से भारत की प्रतिद्वंद्विता किसी से छुपी नहीं है। उद्योगपति ने इशारों में भारत को इस दिशा में तेजी लाने की अपील की है। कई दिग्‍गजों ने भी इस पर अपनी राय दी है।
भारत-इंडोनेशिया ने दक्षिण चीन सागर में की आचार संहिता की वकालत, चीन के खिलाफ चली बड़ी चाल

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दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता लगातार बढ़ती जा रही है। चीन के तटरक्षक बल और समुद्री मिलिशिया को दक्षिण चीन सागर में पहले से कहीं ज़्यादा संख्या में, लंबे समय तक और ज़्यादा आक्रामकता के साथ तैनात किया गया। चीन के तटरक्षक बल अन्य देशों को मजबूर करने और डराने के लिए आक्रामकता और बल का प्रयोग करते रहे हैं। इस बीच भारत और इंडोनेशिया ने दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती सैन्य ताकत के बीच प्रासंगिक अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप एक 'पूर्ण और प्रभावी' आचार संहिता की वकालत की है।

भारत दौरे पर आए इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यापक बातचीत में दक्षिण चीन सागर में हालात पर विस्तृत विचार विमर्श हुआ। बैठक में दोनों पक्षों ने 'भारत के सूचना संलयन केन्द्र-हिंद महासागर क्षेत्र' (आईएफसी-आईओआर) में इंडोनेशिया से एक संपर्क अधिकारी तैनात करने पर सहमति व्यक्त की। मोदी और सुबियांतो ने सभी प्रकार के आतंकवाद की कड़ी निंदा करते हुए भारत-इंडोनेशिया आतंकवाद विरोधी सहयोग बढ़ाने का संकल्प लिया और बिना किसी 'दोहरे मापदंड' के इस खतरे से निपटने के लिए ठोस वैश्विक प्रयास करने का आह्वान किया।

रविवार को जारी बयान में कहा गया कि दोनों नेताओं ने सभी देशों से संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों और उनके सहयोगियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने का आह्वान किया। बयान के अनुसार प्रधानमंत्री और सुबियांतो ने भारत-इंडोनेशिया आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने के तरीकों पर भी चर्चा की तथा द्विपक्षीय लेन-देन के लिए स्थानीय मुद्राओं के उपयोग के वास्ते पिछले वर्ष दोनों पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन के शीघ्र क्रियान्वयन के महत्व पर बल दिया।

मोदी और सुबियांतो का मानना है कि द्विपक्षीय लेन-देन के लिए स्थानीय मुद्राओं के उपयोग से व्यापार को और बढ़ावा मिलेगा तथा दोनों अर्थव्यवस्थाओं के बीच वित्तीय एकीकरण गहरा होगा। संयुक्त बयान में समुद्री क्षेत्र की स्थिति का उल्लेख करते हुए कहा गया कि दोनों नेताओं ने क्षेत्र में शांति, स्थिरता, नौवहन और उड़ान की स्वतंत्रता को बनाए रखने और बढ़ावा देने के महत्व की पुष्टि की।उन्होंने निर्बाध वैध समुद्री वाणिज्य और 1982 के यूएनसीएलओएस (समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन) सहित अंतरराष्ट्रीय कानून के सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त सिद्धांतों के अनुसार विवादों के शांतिपूर्ण समाधान को बढ़ावा देने का भी आह्वान किया।

आसियान देश भी दक्षिण चीन सागर पर एक बाध्यकारी आचार संहिता पर जोर दे रहे हैं। इसका मुख्य कारण चीन द्वारा इस क्षेत्र पर अपने व्यापक दावों को स्थापित करने के लगातार प्रयास हैं। बीजिंग सीओसी का कड़ा विरोध कर रहा है। चीन पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपनी संप्रभुता का दावा करता है।2016 में हेग स्थित स्थायी मध्यस्थता न्यायालय ने अपने फैसले में दक्षिण चीन सागर के अधिकांश हिस्से पर बीजिंग के दावे को खारिज कर दिया था। हालांकि, चीन ने इस फैसले को खारिज कर दिया था। भारत इस क्षेत्र में नियम-आधारित व्यवस्था की वकालत करता रहा है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय कानून, विशेषकर यूएनसीएलओएस का पालन करना भी शामिल है।

भारत के साथ तख्त रिश्ते के बीच पहले पाक फिर चीन से संबंध बढ़ा रहा बांग्लादेश, क्या हैं मोहम्‍मद यूनुस के इरादे

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चीन और भारत के रिश्ते कभी सामान्य नहीं रहे। खासकर दुनियाभर में भारत की बढ़ती ताकत ने चीन को बार-बार “चोट” पहुंचाई है। यही वजह है कि चीन, भारत को कमजोर करने की कोई भी चाल को हाथ से गंवाना नहीं चाहता है। भारत के पड़ोसी देशों में पिछले एक साल में कई बदलाव आए हैं। मालदीव, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे देशों में राजनीतिक उथल-पुथल देखी गई है। चीन ने इसका फायदा उठाने की कोशिश लगातार की है। चीन अपनी लोन नीति के चलते कई देशों में अपनी पकड़ मजबूत कर चुका है। पाकिस्तान को अपने चंगुल में लेने के बाद चीन अब बांग्लादेश पर नजर रखे हुए है।

हाल के दिनों में भारत-बांग्लादेश के रिश्ते तल्ख हुए हैं। भारत के ससाथ संबंधों में आई गिरावट के साथ ही बांग्लादेश पहले पाकिस्तान अब चीन के करीब आने लगा है। इसी बीच बांग्लादेश के विदेश सलाहकार तौहीद हुसैन चीन दौरे पर हैं। बांग्‍लादेश आर्मी के टॉप जनरल कमरुल हसन ने कुछ दिनों पहले ही पाकिस्‍तान की यात्रा की थी। उन्‍होंने पाकिस्‍तान आर्मी चीफ असीम मुनीर से मुलाकात की थी। अब यूनुस ने अपने विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन को बीजिंग भेजा है।

बांग्लादेश के विदेश मामलों के सलाहकार हसन की यात्रा पर टिप्पणी करते हुए चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने यहां एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि चीन बांग्लादेश के साथ विभिन्न स्तरों पर बातचीत को मजबूत करने, राजनीतिक आपसी विश्वास को बढ़ाने, उच्च गुणवत्ता वाले बेल्ट एंड रोड सहयोग और अन्य क्षेत्रों में आदान-प्रदान और सहयोग को गहरा करने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि चीन-बांग्लादेश व्यापक रणनीतिक सहकारी साझेदारी को बढ़ाया जाएगा।

बांग्लादेश के विदेश सलाहकार तौहीद हसन चीन दौरे पर हैं और उनके इस दौरे में चीन से लिए लोन भुगतान की मियाद को बढ़ाना अहम मुद्दों में से एक है। द डेली स्टार के खबर के मुताबिक चीन ने इस पर सहमति भी व्यक्त कर दी है। बीजिंग चीनी लौन भुगतान के लिए समय सीमा बढ़ाने पर राजी हो गया और ढाका को आश्वासन दिया है कि वह बांग्लादेश के विदेशी ऋण भुगतान के दबाव को कम करने के लिए ब्याज दर कम करने के अनुरोध पर विचार करेगा।

हसन ने चीन से ब्याज दर को 2-3 फीसद से घटाकर 1 फीसद करने की मांग की है, साथ ही अनुरोध किया है कि भुगतान करने के अच्छे रिकार्ड को देखते हुए, लोन चुकाने की अवधि को 20 साल से बढ़ाकर 30 साल कर दिया जाए। खबरों के मुताबिक चीनी ने दोनों ही मांगों पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है।

हसीन के तख्तापलट के बाद आ रहे करीब

बांग्‍लादेश में प्रचंड विरोध प्रदर्शन से कुछ दिन पहले शेख हसीना ने आधिकारिक तौर पर चीन का दौरा किया था। वहां से लौटने के बाद उनका तख्‍ता पलट हो गया था। वहीं, अंतरिम सरकार के गठन के बाद से, सत्तारूढ़ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के दौरे की मेजबानी की, जिसके बाद कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी सहित बांग्लादेशी इस्लामी दलों के प्रतिनिधिमंडल का भी दौरा हुआ।

छोटे देशों को फांसना चीन की चाल

बता दें कि छोटे देशों को लोन देना चीन के लिए कोई नया नहीं है। देशों को अपने लोन की जाल में फंसाना चीन की नीति का पुराना हिस्सा रहा है। श्रीलंका को भी चीन ने बड़े पैमाने पर लोन दिया है और भुगतान करने में विफल रहने पर श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर कब्जा कर लिया है। हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन की मौजूदगी भारत के लिए बड़ा खतरा है।

चीन ने अपने नौसैनिक निगरानी और जासूसी जहाजों को हंबनटोटा में खड़ा किया है। पिछले दो सालों में बीजिंग ने कई मौकों पर अपने 25 हजार टन वजनी सैटेलाइट और बैलिस्टिक मिसाइल ट्रैकिंग जहाज युआन वांग 5 को हंबनटोटा में तैनात किया है, जो श्रीलंका की भारत से करीबी की वजह से भारत के हितों के लिए हानिकारक है। हालांकि भारत के चिंताओं के बाद श्रीलंका ने आश्वासन दिया है कि वह देश धरती भारत के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होने देगा।

ट्रंप के सत्ता संभालते ही दुनियाभर में खलबली! जिनपिंग की पुतिन से वीडियो कॉल पर हुई बात
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अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर सत्ता में वापसी कर ली है। डोनाल्ड ट्रंप की व्हाइट हाउस में वापसी के एक दिन बाद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग ने बातचीत की। डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता संभालते ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ वर्चुअल मीटिंग की है।इस दौरान दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने पर चर्चा की।

क्रेमलिन की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मंगलवार को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ एक वीडियो कॉल पर बातचीत की है। बातचीत के दौरान रूस और चीन के बीच के रिश्तों को पहले से और भी बेहतर करने पर जोर दिया गया।

शी के साथ फोन पर बातचीत को लेकर पुतिन ने कहा कि रूस-चीन संबंध साझा हितों, समानता और आपसी लाभों पर आधारित हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ये संबंध अंदरूनी राजनीतिक कारकों और मौजूदा अंतरराष्ट्रीय माहौल पर निर्भर नहीं हैं। रूसी राष्ट्रपति ने कहा, हम एक समान बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था के विकास का समर्थन करते हैं और यूरेशिया व पूरी दुनिया में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए काम करते हैं। उन्होंने आगे कहा, रूस और चीन के साझा प्रयास वैश्विक मामलों को स्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

वहीं, चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग ने भी मॉस्को और बीजिंग के बीच सहयोग की सराहना की और कहा कि यह वैश्विक प्रणाली के सुधार और विकास में सकारात्मक भूमिका निभा रहा है। दोनों नेताओं ने सीधे तौर पर ट्रंप का नाम नहीं लिया। हालांकि,बातचीत का समय इस बात का संकेत हो सकता है कि पुतिन और शी दोनों ही नए अमेरिकी प्रशासन के साथ मिलकर काम करें और आपस में संवाद करें।

इससे पहले जिनपिंग ने शुक्रवार को ट्रंप से फोन पर बात की थी और अमेरिका के साथ सकारात्मक संबंधों की उम्मीद जताई थी। दोनों नेताओं ने क्षेत्रीय विवादों और फेंटानल बनाने में उपयोग होने वाली वस्तुओं के निर्यात पर सहयोग के तरीकों पर भी चर्चा की थी। हालांकि, ट्रंप ने पहले अपने दूसरे कार्यकाल में चीन पर शुल्क और अन्य प्रतिबंध लगाने की धमकी दी थी। वहीं, पुतिन ने अब तक ट्रंप से फोन पर बात नहीं की है।
शपथ लेने के बाद चीन पर नरम क्यों हुए ट्रंप, ड्रैगन के साथ नहीं टकराना चाहते हैं अमेरिकी राष्ट्रपति?
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डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर वापसी हो गई है। डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति पद की शपथ ली। ट्रंप ने शपथ लेने के बाद भाषण दिया और उसमें उन्होंने बताया कि उनकी दिशा क्या रहेगी। उद्घाटन भाषण के दौरान वैसे तो डोनाल्ड ट्रंप काफी आक्रामक थे, लेकिन चीन को लेकर उनकी स्थिति काफी नरम थी। उन्होंने अपने पूरे भाषण में सिर्फ एक बार ही चीन का नाम लिया, वो भी सिर्फ पनामा नहर को लेकर, और उनका भाषण 'अमेरिका फर्स्ट' पर टिका था। उन्होंने टैरिफ का जिक्र किया और विदेशी देशों पर टैरिफ लगाने के लिए 'एक्सटर्नल रेवेन्यू सर्विस' के गठन की घोषणा की, लेकिन उसमें भी चीन का कहीं जिक्र नहीं था।

चीन और अमेरिका एक दूसरे के कट्टर दुश्मन हैं। ट्रंप ने राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान चीन पर कड़े हमले भी किए थे, हालांकि अब उनका रूख नरम दिख रहा है। जाहिर तौर पर ये जताता है, कि ट्रंप चीन को लेकर स्थिति का आकलन करना चाहते हैं और कम से कम अपने दूसरे कार्यकाल की शुरूआत चीन से टकराव करते हुए शुरू नहीं करना चाहते।

ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति की शपथ लेने के बाद चीन दौरे पर जाने की योजना बना रहे हैं। अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सलाहकारों से कहा है कि वह शपथ लेने के बाद चीन जाना चाहते हैं। अखबार के मुताबिक ट्रंप ने कहा है कि वह चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के संबंध गहरा करना चाहते हैं। इससे पहले ट्रंप ने चुनाव जीतने के बाद चीन के ख़िलाफ टैरिफ लगाने की धमकी दी थी।
डब्ल्यूएसजे ने लिखा है कि ट्रंप कमान संभालने के बाद 100 दिनों के भीतर ही चीन जाना चाहते हैं। नवंबर में चुनाव जीतने के बाद ट्रंप ने शु्क्रवार को पहली बार शी जिनपिंग से बात की थी। ट्रंप ने शी जिनपिंग से बातचीत के बाद कहा था कि दोनों देश साथ मिलकर कई समस्याओं का समाधान खोज सकते हैं। इसका प्रमुख उद्देश्य दोनों देशों के बीच मौजूद अविश्वास के माहौल को बदलना है।

समारिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने लिखा है कि चीन के तानाशाह के प्रति ट्रंप की बढ़ती उदारता का असर अमेरिका से भारत और जापान के संबंधों पर पड़ेगा। ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में चीन के प्रति नरमी दिखाई है। ट्रंप ने टिक टॉक पर प्रतिबंध को भी टाल दिया है।
शपथ ग्रहण के बाद डोनाल्‍ड ट्रंप की सबसे पहले भारत और चीन के दौरे की चर्चा, जानें क्यों है अहम*

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कुछ घंटों बाद डोनाल्ड ट्रंप दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र की कमान अपने हाथों में लेंगे। ये दूसरा मौका है जब वो सुपरपावर कहे जाने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति बनेंगे। मगर उनकी शपथ से पहले ही दुनिया के कई देशों में हलचल मची हुई है। ट्रंप ने साफ संकेत दिए हैं कि उनके कार्यकाल के दौरान विदेश नीति किस दिशा में जाएगा। कुछ देशों की हालत तो कभी खुशी, कभी गम वाली है। चुनाव जीतने के बाद से ही ट्रंप की जीत और अमेरिका से अलग-अलग देशों के रिश्तों पर दुनिया भर में विश्लेषण चल रहा है। इस बीच खबर आ रही है पदभार संभालने के बाद ट्रंप भारत और चीन का दौरा करेंगे।

नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, बीजिंग के साथ संबंधों को सुधारने के लिए पदभार संभालने के बाद चीन की यात्रा पर जाना चाहते हैं, इसके अलावा उन्होंने भारत की संभावित यात्रा को लेकर भी सलाहकारों से बातचीत की है। ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान चीन पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की चेतावनी दी थी। लेकिन ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल' ने अपनी खबर में बताया, 'ट्रंप ने सलाहकारों से कहा है कि वह पदभार संभालने के बाद चीन की यात्रा पर जाना चाहते हैं, ताकि प्रचार के दौरान चीन को दी गई अधिक शुल्क लगाने संबंधी चेतावनी के कारण शी जिनपिंग के साथ तनावपूर्ण हुए संबंधों को सुधारा जा सके।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सलाहकारों से कहा है कि वे राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद चीन दौरे पर जाना चाहते हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, ट्रंप ने अपने सलाहकारों से भारत के संभावित दौरे को लेकर भी चर्चा की है। बीते महीने क्रिसमस के मौके पर जब भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर अमेरिका गए थे, तब उनके दौरे पर भी ट्रंप के भारत के संभावित दौरे पर लेकर शुरुआती बातचीत हुई थी।

वहीं एक दिन पहले ही ट्रंप ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से फोन पर बात की। इस बातचीत को ट्रंप ने शानदार बताया और कहा कि दोनों के बीच व्यापार, फेंटानिल, टिकटॉक और अन्य मुद्दों पर अच्छी बातचीत हुई। ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आमंत्रित किया गया था, लेकिन अब खबर है कि जिनपिंग की जगह उनके डिप्टी उपराष्ट्रपति हान झेंग, ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हो सकते हैं।

यूरोप, नाटो और पड़ोसियों कनाडा और मैक्सिको को छोड़कर भारत और चीन को तवज्‍जो देना एक बड़ा वैश्विक संदेश भी है। साफ है कि चीन और भारत से संबंधों के जरिए अमेरिकी व्‍यापार को गति मिल सकती है। ट्रंप बड़े बिजनेसमैन भी हैं लिहाजा वो बेहतर तरीके से जानते हैं कि व्‍यापार के बिना अर्थव्‍यवस्‍था को मजबूत नहीं किया जा सकता है। यही वजह है कि ट्रंप की नज भारत चीन पर है।

हिंद महासागर में मजबूत नौसेना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता”, राजनाथ सिंह ने कहा- चीन की बढ़ती मौजूदगी चिंताजनक

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केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हिंद महासागर में चीन की बढ़ती मौजूदगी को भारत के लिए चिंताजनक बताया है। उन्होंने कहा कि भारत की आर्थिक समृद्धि हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा से जुड़ी हुई है। साथ ही कहा कि नौसेना हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की दिशा में काम कर रही है। रक्षमंत्री ने कहा, हम दुनिया भर के विभिन्न क्षेत्रों में संघर्ष और युद्ध देख रहे हैं। इन बातों को ध्यान में रखते हुए, हमें अपनी सुरक्षा के लिए योजना, संसाधन और बजट की आवश्यकता है।

हिंद महासागर महासागर में चीन की बढ़ती मौजूदगी पर चिंता जताते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत की आर्थिक समृद्धि सीधे तौर पर हिंद महासागर क्षेत्र की समुद्री सुरक्षा से जुड़ी हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि यह बहुत जरूरी है कि हम अपने समुद्री मार्गों को सुरक्षित रखें और अपने समुद्र तटों की रक्षा करें।

रक्षा मंत्री ने कहा कि प्रमुख नौसैनिक शक्तियों ने हाल के सालों में हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति कम कर दी है, जबकि भारतीय नौसेना ने इसे बढ़ाया है। उन्होंने कहा, अदन की खाड़ी, लाल सागर और पूर्वी अफ्रीकी देशों से लगे समुद्री क्षेत्रों में खतरे बढ़ने की संभावना है। इसे देखते हुए भारतीय नौसेना अपनी उपस्थिति को और बढ़ाने की दिशा में काम कर रही है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 2024 को नौसेना नागरिक वर्ष के रूप में मनाने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। इस दौरान सिंह ने आगे कहा कि दुनियाभर में हो रही उथल-पुथल और संघर्षों के मद्देनजर भारत की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए आक्रामक और रक्षा संबंधी प्रक्रियाओं पर बल देने की आवश्यकता है। उन्होंने सशस्त्र बलों के सामने बढ़ती जटिलताओं का जिक्र करते हुए देश की रक्षा क्षमता को जल्द बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तनावपूर्ण भू-राजनीतिक सुरक्षा परिदृश्य के मद्देनजर सशस्त्र बलों के लिए बढ़ती जटिलताओं को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, अगर हम रक्षा और सुरक्षा के नजरिए से पूरे दशक का आकलन करें तो हम कह सकते हैं कि यह एक उतार-चढ़ाव भरा दशक रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे में हिंद महासागर में जल की रक्षा करना, नौवहन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना और समुद्री मार्गों को सुरक्षित रखना आवश्यक है।

तिब्बती बच्चों को अपने माता पिता से अलग कर रहा चीन, ये है ड्रैगन का खतरनाक प्लान

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चीन जबरन तिब्बत कर कब्जा जमाना चाहता है। इसके लिए चीन खतरनाक चालें चल रहा है। चीन ने अपने इस मकसद के लिए तिब्बती बच्चों को “हथियार” बनाया है। चीन ने तिब्‍बत की संस्‍कृति को कमजोर करने और वहां चीनी संस्‍कृति फैलाने के लिए बच्‍चों को जरिया बनाया है। चीन बच्‍चों के जरिए तिब्‍बत की संस्‍कृति उसकी आत्‍मा को खत्‍म करने की फिराक में है। इसलिए वह जबरन तिब्‍बती बच्‍चों को बोर्डिंग स्‍कूल में भेज रहा है।

संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों और तिब्बती कार्यकर्ताओं ने चीन पर यह आरोप लगाया है। चीन का मकसद तिब्बत पर अपना नियंत्रण और मजबूत करना है। इसके लिए वह तिब्बती बच्चों को उनकी भाषा के बजाय खासतौर पर बनाए गए बॉर्डिंग स्कूलों में चीनी भाषा पढ़ा रहा है। तिब्बत के छह साल से ज्यादा उम्र के तीन-चौथाई तिब्बती छात्र इन स्कूलों में जा रहे हैं, जहां चीनी भाषा में पढ़ाई होती है। चीन ने तिब्बत में बड़ी संख्या में ये स्कूल और छात्रावास बनाएं हैं, जिनमें फ्री दाखिला मिलता है।

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, तिब्बत में बने इन बॉर्डिंग स्कूलों में तिब्बती भाषा, संस्कृति और बौद्ध धर्म की जगह चीनी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा दिया जाता है। वहीं, चीनी अधिकारी कहते हैं कि ये स्कूल तिब्बती बच्चों को चीनी भाषा और आधुनिक अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी कौशल सीखने में मदद करते हैं। उनका कहना है कि परिवार अपनी मर्जी से बच्चों को इन मुफ्त स्कूलों में भेजते हैं। चीन इन स्कूलों का विस्तार कर रहा है। चीन यह दिखाना चाहता है कि खुश और स्वस्थ तिब्बती बच्चे गर्व से खुद को चीनी बता रहे हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक चीनी अधिकारी तिब्बती बच्चों को इन आवासीय स्कूलों में भेजने के लिए दबाव बनाते हैं। इसमें माता-पिता के पास अपने बच्चों को स्कूल भेजने के अलावा कोई चारा नहीं होता। कई माता-पिता अपने बच्चों से लंबे समय तक नहीं मिल पाते।

वहीं, चीन के दावे के उलट कई शोध पत्रों और रिपोर्टों में तिब्बती बच्चों पर इन स्कूलों के बुरे मनोवैज्ञानिक प्रभावों के बारे में चेतावनी दी गई है। इनमें बच्चों में चिंता, अकेलापन, अवसाद और दूसरी मानसिक परेशानियां शामिल हैं।

तिब्बत एक्शन इंस्टीट्यूट का अनुमान है कि 6 से 18 साल की उम्र के करीब 8 लाख तिब्‍बती बच्‍चे चीन के स्‍कूलों में पढ़ रहे हैं। यानी कि हर 4 में से 3 बच्‍चे चीन के अप्रत्‍यक्ष नियंत्रण में है, जिन्‍हें वह तिब्‍बती संस्‍कृति को मिटाने के लिए हथियार के तौर पर इस्‍तेमाल कर रहा है।

आर-पार के मूड में चीन, ट्रंप को 10% के जवाब में 15% टैरिफ, अब बढ़ेगा तनाव

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा और मेक्सिको को बड़ी राहत दी। ट्रंप ने दोनों देशों पर टैरिफ लगाने के फैसले को 30 दिन के लिए टाल दिया है। हालांकि, चीन को किसी भी तरह की राहत नहीं दी। फिर क्या था अमेरिका के टैरिफ से चीन तिलमिला उठा और अमेरिका को जवाब देने की ठानी। इसी का नतीजा है कि अब चीन ने भी अमेरिका से इंपोर्ट होकर आने वाले सामानों पर टैरिफ लगाना शुरू कर दिया है। चीन ने अमेरिका के कोयला और क्रूड ऑयल समेत कई उत्पादों पर 15 पर्सेंट तक टैरिफ थोप दिया है। चीन की तरफ से लगाए गए ये टैरिफ 10 फरवरी से लागू होंगे।

चीनी वित्त मंत्रालय ने मंगलवार को अमेरिकी उत्पादों पर 10 से 15 प्रतिशत टैरिफ लगाने के फैसले की जानकारी दी। बीजिंग के टैरिफ लगाए जाने से चीन में अमेरिका से आने वाले बड़ी कारों, पिक ट्रक, एलएनजी, कच्चा तेल और खेती-बाड़ी की मशीनों के आयात पर असर पड़ेगा। चीन ने कोयले और प्राकृतिक गैस पर 15 प्रतिशत और पेट्रोलियम, कृषि उपकरण, उच्च उत्सर्जन वाले वाहनों और पिकअप ट्रकों पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाया है। चीन ने कुछ प्रमुख खनिजों के निर्यात पर नियंत्रण लगाया है। साथ ही गूगल और कुछ अमेरिकी कंपनियों की जांच शुरू कर दी है।

केवल टैरिफ तक नहीं रुका चीन

चीन सिर्फ टैरिफ तक ही नहीं रुका, बल्कि उसने दो अमेरिकी कंपनियों को अपनी अविश्वसनीय संस्थाओं की सूची में डाला है। इसमें बायोटेक कंपनी इलुमिना और केल्विन क्लेन और टॉमी हिलफिगर की मालिकाना हक वाली फैशन रिटेलर कंपनी पीवीएच ग्रुप शामिल है। चीन का कहना है कि उन्होंने सामान्य बाजार व्यापार सिद्धांतों का उल्लंघन किया है। टैरिफ के अलावा, चीन ने अमेरिकी टेक्नोलॉजी कंपनी गूगल के खिलाफ एक एंटी-मोनोपॉली जांच शुरू करने की भी घोषणा की है।

चीन-अमेरिका में छिड़ा ट्रेड वॉर

अमेरिका और चीन के एक-दूसरे पर टैरिफ लगाने से दोनों मुल्कों में व्यापार के स्तर पर तनाव बढ़ गया है। इससे आने वाले दिनों में अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर तेज होने की भी संभावना है। दरअसल, चीन का जवाबी कदम ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच संभावित टेलीफोनिक बातचीत से पहले आया है। ट्रंप ने सोमवार को कहा कि शी के साथ बातचीत ‘शायद अगले 24 घंटों में’ होगी। ट्रंप ने यह भी कहा कि अगर चीन के साथ कोई समझौता नहीं हो सका, तो ‘टैरिफ बहुत, बहुत ज्यादा होंगे।

ट्रंप ने भारत-चीन को बताया अमेरिका को नुकसान पहुंचाने वाला देश, टैरिफ लगाने की दी धमकी
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोन पर बात हुई है। खुद ट्रंप और पीएम मोदी ने इसकी जानकारी दी है। ट्रंप की मानें तो भारत के साथ हमारे संबंध बहुत अच्छे हैं। हालांकि, दूसरे ही पल उन्होंने भारत को अमेरिका को ‘नुकसान’ पहुंचाने वाला देश बताया और हाई टैरिफ लगाने की धमकी दी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मंगलवार को फ्लोरिडा में एक कार्यक्रम में भारत, चीन और ब्राजील जैसे देशों पर हाई टैरिफ लगाने की बात कही है।

फ्लोरिडा में हाउस रिपब्लिकन्स के एक रिट्रीट के दौरान ट्रंप ने 'अमेरिका फर्स्ट' आर्थिक एजेंडे पर जोर दिया।  ट्रंप ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि अमेरिका वापस उस सिस्टम को अपनाए जिसने उसे धनी और ताकतवर बनाया है। ट्रंप ने कहा- हम उन देशों और बाहरी लोगों पर टैरिफ लगाने जा रहे हैं जो हमें नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। देखिए दूसरे देश क्या करते हैं। चीन बहुत ज्यादा टैरिफ लगाता है। भारत, ब्राजील और बाकी देश भी ऐसा ही करते हैं। हम ऐसा अब और नहीं होने देंगे क्योंकि हम अमेरिका को सबसे पहले रखेंगे। ट्रंप ने कहा कि ये तीनों देश (ब्राजील, चीन, भारत) अपने हितों के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन इससे अमेरिका को नुकसान पहुंच रहा है। अमेरिका एक ईमानदार सिस्टम तैयार करेगा, जिससे हमारे खजाने में पैसा आएगा और अमेरिका फिर से बहुत अमीर हो जाएगा। यह सब कुछ बहुत जल्द होगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि दूसरे देशों को अमीर बनाने के लिए अपने लोगों पर टैक्स लगाने की जगह हम अपने लोगों को अमीर बनाने के लिए दूसरे देशों पर टैक्स लगाएंगे। विदेशी कंपनियां हाई टैरिफ से बचना चाहती हैं, तो उन्हें अमेरिका में ही अपना प्लांट लगाना होगा।

ट्रंप ने एक बहुत निष्पक्ष प्रणाली स्थापित करने की योजना की बात कही। उन्होंने कहा कि इससे पैसा अमेरिका के खजाने में आएगा और देश फिर से अमीर बन जाएगा। ट्रंप ने कहा कि यह बहुत जल्दी होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति ने विदेशी कंपनियों से ऊंचे टैरिफ से बचने के लिए अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट स्थापित करने का भी आग्रह किया।
चीन के एआई मॉडल डीपसीक ने ChatGPT को पछाड़ा, अमेरिकी शेयर बाजार में खलबली
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* चीन ने हाल ही अपना एआई मॉडल डीपसीक जारी किया। चीन के एआई स्टार्टअप डीपसीक ने आते ही तहलका मचा दिया है। डीपसीक ने ऐपल के ऐप स्‍टोर पर ChatGPT जैसे बड़े नामों को पछाड़ते हुए पहला स्थान हासिल कर लिया है। 2 साल पहले आया ओपन एआई का ChatGPT मुंह देखता रह गया और 2 महीने में तैयार किए गए मॉडल ने अपनी मार्केट में पहचान बना ली। डीपसीक के जारी होने के बाद एआई उद्योग को सेमीकंडक्टर देने वाली अमेरिकी चिप निर्माता कंपनी एनवीडिया के शेयरों में भारी गिरावट आई है। कंपनी के शेयर के बाजार मूल्य में 600 बिलियन डॉलर का घाटा हुआ है।एनवीडिया के शेयरों में गिरावट की मुख्य कारण डीपसीक का कम कीमत पर बेहतर एआई मॉडल पेश करना है। कोडिंग और मैथ्‍स जैसे जटिल कामों को सॉल्व करने और लो कॉस्ट की वजह से इस डीपसीक की चर्चा हो रही है। यह फ्री और ओपन सोर्स एआई मॉडल है। ओपेन एआई के चैटजीपीटी का प्लस सब्सक्रिप्शन $20 मंथली (करीब 1,650 रुपये) है। गूगल ने अपने वर्कस्पेस ऐप में जेमिनी एआई फीचर्स को फ्री किया है। पहले इसका मंथली खर्च 1500 रुपये था। मार्केट में नए आए डीपसीक आर1 की कीमत 0.55 डॉलर (करीब 47 रुपये) प्रति मिलियन इनपुट टोकन और 2.19 डॉलर (करीब 189 रुपये) प्रति मिलियन आउटपुट टोकन है। डीपसीक के संस्थापक क्वांट फंड प्रमुख लियांग वेनफेंग हैं। उन्होंने पिछले हफ्ते ही अपना नवीनतम AI मॉडल जारी किया है। यह अब ओपेन एआई और मेटा जैसी बड़ी कंपनियों को टक्कर देता दिख रहा है। इसका ओपन-सोर्स प्रोडक्ट ऐपल इंक. के ऐप स्टोर रैंकिंग में टॉप पर है। कोटक बैंक के संस्थापक उदय कोटक इसे दुनिया के लिए चेतावनी मानते हैं। उदय कोटक ने सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म 'एक्‍स' पर पोस्‍ट करते हुए कहा कि डीपसीक दिखाता है कि एआई के क्षेत्र में अमेरिका के दबदबे को चुनौती देने के लिए चीन कितना गंभीर है। उन्होंने दूसरे देशों से भी आगे आकर प्रतिस्पर्धा करने का आह्वान किया। कोटक ने लिखा, 'चीन ने एआई की दुनिया में अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती देने के लिए डीपसीक के साथ वैश्विक तकनीकी दौड़ को तेज कर दिया है। इसने ऐपल ऐप स्टोर रैंकिंग में शीर्ष स्थान हासिल किया है। जैसे-जैसे शीर्ष की दौड़ आगे बढ़ेगी, यह समय है कि अन्य महत्वाकांक्षी देश इस खेल को आगे बढ़ाएं।' कोटक का मानना है कि यह इस बात का संकेत है कि दूसरे देशों को भी अपनी तकनीक को बेहतर बनाने की जरूरत है। बेशक, उदय कोटक ने भारत का नाम नहीं लिया है। लेकिन, चीन से भारत की प्रतिद्वंद्विता किसी से छुपी नहीं है। उद्योगपति ने इशारों में भारत को इस दिशा में तेजी लाने की अपील की है। कई दिग्‍गजों ने भी इस पर अपनी राय दी है।
भारत-इंडोनेशिया ने दक्षिण चीन सागर में की आचार संहिता की वकालत, चीन के खिलाफ चली बड़ी चाल

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दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता लगातार बढ़ती जा रही है। चीन के तटरक्षक बल और समुद्री मिलिशिया को दक्षिण चीन सागर में पहले से कहीं ज़्यादा संख्या में, लंबे समय तक और ज़्यादा आक्रामकता के साथ तैनात किया गया। चीन के तटरक्षक बल अन्य देशों को मजबूर करने और डराने के लिए आक्रामकता और बल का प्रयोग करते रहे हैं। इस बीच भारत और इंडोनेशिया ने दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती सैन्य ताकत के बीच प्रासंगिक अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप एक 'पूर्ण और प्रभावी' आचार संहिता की वकालत की है।

भारत दौरे पर आए इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यापक बातचीत में दक्षिण चीन सागर में हालात पर विस्तृत विचार विमर्श हुआ। बैठक में दोनों पक्षों ने 'भारत के सूचना संलयन केन्द्र-हिंद महासागर क्षेत्र' (आईएफसी-आईओआर) में इंडोनेशिया से एक संपर्क अधिकारी तैनात करने पर सहमति व्यक्त की। मोदी और सुबियांतो ने सभी प्रकार के आतंकवाद की कड़ी निंदा करते हुए भारत-इंडोनेशिया आतंकवाद विरोधी सहयोग बढ़ाने का संकल्प लिया और बिना किसी 'दोहरे मापदंड' के इस खतरे से निपटने के लिए ठोस वैश्विक प्रयास करने का आह्वान किया।

रविवार को जारी बयान में कहा गया कि दोनों नेताओं ने सभी देशों से संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों और उनके सहयोगियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने का आह्वान किया। बयान के अनुसार प्रधानमंत्री और सुबियांतो ने भारत-इंडोनेशिया आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने के तरीकों पर भी चर्चा की तथा द्विपक्षीय लेन-देन के लिए स्थानीय मुद्राओं के उपयोग के वास्ते पिछले वर्ष दोनों पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन के शीघ्र क्रियान्वयन के महत्व पर बल दिया।

मोदी और सुबियांतो का मानना है कि द्विपक्षीय लेन-देन के लिए स्थानीय मुद्राओं के उपयोग से व्यापार को और बढ़ावा मिलेगा तथा दोनों अर्थव्यवस्थाओं के बीच वित्तीय एकीकरण गहरा होगा। संयुक्त बयान में समुद्री क्षेत्र की स्थिति का उल्लेख करते हुए कहा गया कि दोनों नेताओं ने क्षेत्र में शांति, स्थिरता, नौवहन और उड़ान की स्वतंत्रता को बनाए रखने और बढ़ावा देने के महत्व की पुष्टि की।उन्होंने निर्बाध वैध समुद्री वाणिज्य और 1982 के यूएनसीएलओएस (समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन) सहित अंतरराष्ट्रीय कानून के सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त सिद्धांतों के अनुसार विवादों के शांतिपूर्ण समाधान को बढ़ावा देने का भी आह्वान किया।

आसियान देश भी दक्षिण चीन सागर पर एक बाध्यकारी आचार संहिता पर जोर दे रहे हैं। इसका मुख्य कारण चीन द्वारा इस क्षेत्र पर अपने व्यापक दावों को स्थापित करने के लगातार प्रयास हैं। बीजिंग सीओसी का कड़ा विरोध कर रहा है। चीन पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपनी संप्रभुता का दावा करता है।2016 में हेग स्थित स्थायी मध्यस्थता न्यायालय ने अपने फैसले में दक्षिण चीन सागर के अधिकांश हिस्से पर बीजिंग के दावे को खारिज कर दिया था। हालांकि, चीन ने इस फैसले को खारिज कर दिया था। भारत इस क्षेत्र में नियम-आधारित व्यवस्था की वकालत करता रहा है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय कानून, विशेषकर यूएनसीएलओएस का पालन करना भी शामिल है।

भारत के साथ तख्त रिश्ते के बीच पहले पाक फिर चीन से संबंध बढ़ा रहा बांग्लादेश, क्या हैं मोहम्‍मद यूनुस के इरादे

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चीन और भारत के रिश्ते कभी सामान्य नहीं रहे। खासकर दुनियाभर में भारत की बढ़ती ताकत ने चीन को बार-बार “चोट” पहुंचाई है। यही वजह है कि चीन, भारत को कमजोर करने की कोई भी चाल को हाथ से गंवाना नहीं चाहता है। भारत के पड़ोसी देशों में पिछले एक साल में कई बदलाव आए हैं। मालदीव, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे देशों में राजनीतिक उथल-पुथल देखी गई है। चीन ने इसका फायदा उठाने की कोशिश लगातार की है। चीन अपनी लोन नीति के चलते कई देशों में अपनी पकड़ मजबूत कर चुका है। पाकिस्तान को अपने चंगुल में लेने के बाद चीन अब बांग्लादेश पर नजर रखे हुए है।

हाल के दिनों में भारत-बांग्लादेश के रिश्ते तल्ख हुए हैं। भारत के ससाथ संबंधों में आई गिरावट के साथ ही बांग्लादेश पहले पाकिस्तान अब चीन के करीब आने लगा है। इसी बीच बांग्लादेश के विदेश सलाहकार तौहीद हुसैन चीन दौरे पर हैं। बांग्‍लादेश आर्मी के टॉप जनरल कमरुल हसन ने कुछ दिनों पहले ही पाकिस्‍तान की यात्रा की थी। उन्‍होंने पाकिस्‍तान आर्मी चीफ असीम मुनीर से मुलाकात की थी। अब यूनुस ने अपने विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन को बीजिंग भेजा है।

बांग्लादेश के विदेश मामलों के सलाहकार हसन की यात्रा पर टिप्पणी करते हुए चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने यहां एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि चीन बांग्लादेश के साथ विभिन्न स्तरों पर बातचीत को मजबूत करने, राजनीतिक आपसी विश्वास को बढ़ाने, उच्च गुणवत्ता वाले बेल्ट एंड रोड सहयोग और अन्य क्षेत्रों में आदान-प्रदान और सहयोग को गहरा करने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि चीन-बांग्लादेश व्यापक रणनीतिक सहकारी साझेदारी को बढ़ाया जाएगा।

बांग्लादेश के विदेश सलाहकार तौहीद हसन चीन दौरे पर हैं और उनके इस दौरे में चीन से लिए लोन भुगतान की मियाद को बढ़ाना अहम मुद्दों में से एक है। द डेली स्टार के खबर के मुताबिक चीन ने इस पर सहमति भी व्यक्त कर दी है। बीजिंग चीनी लौन भुगतान के लिए समय सीमा बढ़ाने पर राजी हो गया और ढाका को आश्वासन दिया है कि वह बांग्लादेश के विदेशी ऋण भुगतान के दबाव को कम करने के लिए ब्याज दर कम करने के अनुरोध पर विचार करेगा।

हसन ने चीन से ब्याज दर को 2-3 फीसद से घटाकर 1 फीसद करने की मांग की है, साथ ही अनुरोध किया है कि भुगतान करने के अच्छे रिकार्ड को देखते हुए, लोन चुकाने की अवधि को 20 साल से बढ़ाकर 30 साल कर दिया जाए। खबरों के मुताबिक चीनी ने दोनों ही मांगों पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है।

हसीन के तख्तापलट के बाद आ रहे करीब

बांग्‍लादेश में प्रचंड विरोध प्रदर्शन से कुछ दिन पहले शेख हसीना ने आधिकारिक तौर पर चीन का दौरा किया था। वहां से लौटने के बाद उनका तख्‍ता पलट हो गया था। वहीं, अंतरिम सरकार के गठन के बाद से, सत्तारूढ़ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के दौरे की मेजबानी की, जिसके बाद कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी सहित बांग्लादेशी इस्लामी दलों के प्रतिनिधिमंडल का भी दौरा हुआ।

छोटे देशों को फांसना चीन की चाल

बता दें कि छोटे देशों को लोन देना चीन के लिए कोई नया नहीं है। देशों को अपने लोन की जाल में फंसाना चीन की नीति का पुराना हिस्सा रहा है। श्रीलंका को भी चीन ने बड़े पैमाने पर लोन दिया है और भुगतान करने में विफल रहने पर श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर कब्जा कर लिया है। हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन की मौजूदगी भारत के लिए बड़ा खतरा है।

चीन ने अपने नौसैनिक निगरानी और जासूसी जहाजों को हंबनटोटा में खड़ा किया है। पिछले दो सालों में बीजिंग ने कई मौकों पर अपने 25 हजार टन वजनी सैटेलाइट और बैलिस्टिक मिसाइल ट्रैकिंग जहाज युआन वांग 5 को हंबनटोटा में तैनात किया है, जो श्रीलंका की भारत से करीबी की वजह से भारत के हितों के लिए हानिकारक है। हालांकि भारत के चिंताओं के बाद श्रीलंका ने आश्वासन दिया है कि वह देश धरती भारत के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होने देगा।

ट्रंप के सत्ता संभालते ही दुनियाभर में खलबली! जिनपिंग की पुतिन से वीडियो कॉल पर हुई बात
#russia_putin_discusses_with_china_s_xi
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर सत्ता में वापसी कर ली है। डोनाल्ड ट्रंप की व्हाइट हाउस में वापसी के एक दिन बाद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग ने बातचीत की। डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता संभालते ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ वर्चुअल मीटिंग की है।इस दौरान दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने पर चर्चा की।

क्रेमलिन की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मंगलवार को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ एक वीडियो कॉल पर बातचीत की है। बातचीत के दौरान रूस और चीन के बीच के रिश्तों को पहले से और भी बेहतर करने पर जोर दिया गया।

शी के साथ फोन पर बातचीत को लेकर पुतिन ने कहा कि रूस-चीन संबंध साझा हितों, समानता और आपसी लाभों पर आधारित हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ये संबंध अंदरूनी राजनीतिक कारकों और मौजूदा अंतरराष्ट्रीय माहौल पर निर्भर नहीं हैं। रूसी राष्ट्रपति ने कहा, हम एक समान बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था के विकास का समर्थन करते हैं और यूरेशिया व पूरी दुनिया में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए काम करते हैं। उन्होंने आगे कहा, रूस और चीन के साझा प्रयास वैश्विक मामलों को स्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

वहीं, चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग ने भी मॉस्को और बीजिंग के बीच सहयोग की सराहना की और कहा कि यह वैश्विक प्रणाली के सुधार और विकास में सकारात्मक भूमिका निभा रहा है। दोनों नेताओं ने सीधे तौर पर ट्रंप का नाम नहीं लिया। हालांकि,बातचीत का समय इस बात का संकेत हो सकता है कि पुतिन और शी दोनों ही नए अमेरिकी प्रशासन के साथ मिलकर काम करें और आपस में संवाद करें।

इससे पहले जिनपिंग ने शुक्रवार को ट्रंप से फोन पर बात की थी और अमेरिका के साथ सकारात्मक संबंधों की उम्मीद जताई थी। दोनों नेताओं ने क्षेत्रीय विवादों और फेंटानल बनाने में उपयोग होने वाली वस्तुओं के निर्यात पर सहयोग के तरीकों पर भी चर्चा की थी। हालांकि, ट्रंप ने पहले अपने दूसरे कार्यकाल में चीन पर शुल्क और अन्य प्रतिबंध लगाने की धमकी दी थी। वहीं, पुतिन ने अब तक ट्रंप से फोन पर बात नहीं की है।
शपथ लेने के बाद चीन पर नरम क्यों हुए ट्रंप, ड्रैगन के साथ नहीं टकराना चाहते हैं अमेरिकी राष्ट्रपति?
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डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर वापसी हो गई है। डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति पद की शपथ ली। ट्रंप ने शपथ लेने के बाद भाषण दिया और उसमें उन्होंने बताया कि उनकी दिशा क्या रहेगी। उद्घाटन भाषण के दौरान वैसे तो डोनाल्ड ट्रंप काफी आक्रामक थे, लेकिन चीन को लेकर उनकी स्थिति काफी नरम थी। उन्होंने अपने पूरे भाषण में सिर्फ एक बार ही चीन का नाम लिया, वो भी सिर्फ पनामा नहर को लेकर, और उनका भाषण 'अमेरिका फर्स्ट' पर टिका था। उन्होंने टैरिफ का जिक्र किया और विदेशी देशों पर टैरिफ लगाने के लिए 'एक्सटर्नल रेवेन्यू सर्विस' के गठन की घोषणा की, लेकिन उसमें भी चीन का कहीं जिक्र नहीं था।

चीन और अमेरिका एक दूसरे के कट्टर दुश्मन हैं। ट्रंप ने राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान चीन पर कड़े हमले भी किए थे, हालांकि अब उनका रूख नरम दिख रहा है। जाहिर तौर पर ये जताता है, कि ट्रंप चीन को लेकर स्थिति का आकलन करना चाहते हैं और कम से कम अपने दूसरे कार्यकाल की शुरूआत चीन से टकराव करते हुए शुरू नहीं करना चाहते।

ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति की शपथ लेने के बाद चीन दौरे पर जाने की योजना बना रहे हैं। अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सलाहकारों से कहा है कि वह शपथ लेने के बाद चीन जाना चाहते हैं। अखबार के मुताबिक ट्रंप ने कहा है कि वह चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के संबंध गहरा करना चाहते हैं। इससे पहले ट्रंप ने चुनाव जीतने के बाद चीन के ख़िलाफ टैरिफ लगाने की धमकी दी थी।
डब्ल्यूएसजे ने लिखा है कि ट्रंप कमान संभालने के बाद 100 दिनों के भीतर ही चीन जाना चाहते हैं। नवंबर में चुनाव जीतने के बाद ट्रंप ने शु्क्रवार को पहली बार शी जिनपिंग से बात की थी। ट्रंप ने शी जिनपिंग से बातचीत के बाद कहा था कि दोनों देश साथ मिलकर कई समस्याओं का समाधान खोज सकते हैं। इसका प्रमुख उद्देश्य दोनों देशों के बीच मौजूद अविश्वास के माहौल को बदलना है।

समारिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने लिखा है कि चीन के तानाशाह के प्रति ट्रंप की बढ़ती उदारता का असर अमेरिका से भारत और जापान के संबंधों पर पड़ेगा। ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में चीन के प्रति नरमी दिखाई है। ट्रंप ने टिक टॉक पर प्रतिबंध को भी टाल दिया है।
शपथ ग्रहण के बाद डोनाल्‍ड ट्रंप की सबसे पहले भारत और चीन के दौरे की चर्चा, जानें क्यों है अहम*

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कुछ घंटों बाद डोनाल्ड ट्रंप दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र की कमान अपने हाथों में लेंगे। ये दूसरा मौका है जब वो सुपरपावर कहे जाने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति बनेंगे। मगर उनकी शपथ से पहले ही दुनिया के कई देशों में हलचल मची हुई है। ट्रंप ने साफ संकेत दिए हैं कि उनके कार्यकाल के दौरान विदेश नीति किस दिशा में जाएगा। कुछ देशों की हालत तो कभी खुशी, कभी गम वाली है। चुनाव जीतने के बाद से ही ट्रंप की जीत और अमेरिका से अलग-अलग देशों के रिश्तों पर दुनिया भर में विश्लेषण चल रहा है। इस बीच खबर आ रही है पदभार संभालने के बाद ट्रंप भारत और चीन का दौरा करेंगे।

नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, बीजिंग के साथ संबंधों को सुधारने के लिए पदभार संभालने के बाद चीन की यात्रा पर जाना चाहते हैं, इसके अलावा उन्होंने भारत की संभावित यात्रा को लेकर भी सलाहकारों से बातचीत की है। ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान चीन पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की चेतावनी दी थी। लेकिन ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल' ने अपनी खबर में बताया, 'ट्रंप ने सलाहकारों से कहा है कि वह पदभार संभालने के बाद चीन की यात्रा पर जाना चाहते हैं, ताकि प्रचार के दौरान चीन को दी गई अधिक शुल्क लगाने संबंधी चेतावनी के कारण शी जिनपिंग के साथ तनावपूर्ण हुए संबंधों को सुधारा जा सके।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सलाहकारों से कहा है कि वे राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद चीन दौरे पर जाना चाहते हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, ट्रंप ने अपने सलाहकारों से भारत के संभावित दौरे को लेकर भी चर्चा की है। बीते महीने क्रिसमस के मौके पर जब भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर अमेरिका गए थे, तब उनके दौरे पर भी ट्रंप के भारत के संभावित दौरे पर लेकर शुरुआती बातचीत हुई थी।

वहीं एक दिन पहले ही ट्रंप ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से फोन पर बात की। इस बातचीत को ट्रंप ने शानदार बताया और कहा कि दोनों के बीच व्यापार, फेंटानिल, टिकटॉक और अन्य मुद्दों पर अच्छी बातचीत हुई। ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आमंत्रित किया गया था, लेकिन अब खबर है कि जिनपिंग की जगह उनके डिप्टी उपराष्ट्रपति हान झेंग, ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हो सकते हैं।

यूरोप, नाटो और पड़ोसियों कनाडा और मैक्सिको को छोड़कर भारत और चीन को तवज्‍जो देना एक बड़ा वैश्विक संदेश भी है। साफ है कि चीन और भारत से संबंधों के जरिए अमेरिकी व्‍यापार को गति मिल सकती है। ट्रंप बड़े बिजनेसमैन भी हैं लिहाजा वो बेहतर तरीके से जानते हैं कि व्‍यापार के बिना अर्थव्‍यवस्‍था को मजबूत नहीं किया जा सकता है। यही वजह है कि ट्रंप की नज भारत चीन पर है।

हिंद महासागर में मजबूत नौसेना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता”, राजनाथ सिंह ने कहा- चीन की बढ़ती मौजूदगी चिंताजनक

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केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हिंद महासागर में चीन की बढ़ती मौजूदगी को भारत के लिए चिंताजनक बताया है। उन्होंने कहा कि भारत की आर्थिक समृद्धि हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा से जुड़ी हुई है। साथ ही कहा कि नौसेना हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की दिशा में काम कर रही है। रक्षमंत्री ने कहा, हम दुनिया भर के विभिन्न क्षेत्रों में संघर्ष और युद्ध देख रहे हैं। इन बातों को ध्यान में रखते हुए, हमें अपनी सुरक्षा के लिए योजना, संसाधन और बजट की आवश्यकता है।

हिंद महासागर महासागर में चीन की बढ़ती मौजूदगी पर चिंता जताते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत की आर्थिक समृद्धि सीधे तौर पर हिंद महासागर क्षेत्र की समुद्री सुरक्षा से जुड़ी हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि यह बहुत जरूरी है कि हम अपने समुद्री मार्गों को सुरक्षित रखें और अपने समुद्र तटों की रक्षा करें।

रक्षा मंत्री ने कहा कि प्रमुख नौसैनिक शक्तियों ने हाल के सालों में हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति कम कर दी है, जबकि भारतीय नौसेना ने इसे बढ़ाया है। उन्होंने कहा, अदन की खाड़ी, लाल सागर और पूर्वी अफ्रीकी देशों से लगे समुद्री क्षेत्रों में खतरे बढ़ने की संभावना है। इसे देखते हुए भारतीय नौसेना अपनी उपस्थिति को और बढ़ाने की दिशा में काम कर रही है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 2024 को नौसेना नागरिक वर्ष के रूप में मनाने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। इस दौरान सिंह ने आगे कहा कि दुनियाभर में हो रही उथल-पुथल और संघर्षों के मद्देनजर भारत की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए आक्रामक और रक्षा संबंधी प्रक्रियाओं पर बल देने की आवश्यकता है। उन्होंने सशस्त्र बलों के सामने बढ़ती जटिलताओं का जिक्र करते हुए देश की रक्षा क्षमता को जल्द बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तनावपूर्ण भू-राजनीतिक सुरक्षा परिदृश्य के मद्देनजर सशस्त्र बलों के लिए बढ़ती जटिलताओं को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, अगर हम रक्षा और सुरक्षा के नजरिए से पूरे दशक का आकलन करें तो हम कह सकते हैं कि यह एक उतार-चढ़ाव भरा दशक रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे में हिंद महासागर में जल की रक्षा करना, नौवहन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना और समुद्री मार्गों को सुरक्षित रखना आवश्यक है।

तिब्बती बच्चों को अपने माता पिता से अलग कर रहा चीन, ये है ड्रैगन का खतरनाक प्लान

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चीन जबरन तिब्बत कर कब्जा जमाना चाहता है। इसके लिए चीन खतरनाक चालें चल रहा है। चीन ने अपने इस मकसद के लिए तिब्बती बच्चों को “हथियार” बनाया है। चीन ने तिब्‍बत की संस्‍कृति को कमजोर करने और वहां चीनी संस्‍कृति फैलाने के लिए बच्‍चों को जरिया बनाया है। चीन बच्‍चों के जरिए तिब्‍बत की संस्‍कृति उसकी आत्‍मा को खत्‍म करने की फिराक में है। इसलिए वह जबरन तिब्‍बती बच्‍चों को बोर्डिंग स्‍कूल में भेज रहा है।

संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों और तिब्बती कार्यकर्ताओं ने चीन पर यह आरोप लगाया है। चीन का मकसद तिब्बत पर अपना नियंत्रण और मजबूत करना है। इसके लिए वह तिब्बती बच्चों को उनकी भाषा के बजाय खासतौर पर बनाए गए बॉर्डिंग स्कूलों में चीनी भाषा पढ़ा रहा है। तिब्बत के छह साल से ज्यादा उम्र के तीन-चौथाई तिब्बती छात्र इन स्कूलों में जा रहे हैं, जहां चीनी भाषा में पढ़ाई होती है। चीन ने तिब्बत में बड़ी संख्या में ये स्कूल और छात्रावास बनाएं हैं, जिनमें फ्री दाखिला मिलता है।

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, तिब्बत में बने इन बॉर्डिंग स्कूलों में तिब्बती भाषा, संस्कृति और बौद्ध धर्म की जगह चीनी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा दिया जाता है। वहीं, चीनी अधिकारी कहते हैं कि ये स्कूल तिब्बती बच्चों को चीनी भाषा और आधुनिक अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी कौशल सीखने में मदद करते हैं। उनका कहना है कि परिवार अपनी मर्जी से बच्चों को इन मुफ्त स्कूलों में भेजते हैं। चीन इन स्कूलों का विस्तार कर रहा है। चीन यह दिखाना चाहता है कि खुश और स्वस्थ तिब्बती बच्चे गर्व से खुद को चीनी बता रहे हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक चीनी अधिकारी तिब्बती बच्चों को इन आवासीय स्कूलों में भेजने के लिए दबाव बनाते हैं। इसमें माता-पिता के पास अपने बच्चों को स्कूल भेजने के अलावा कोई चारा नहीं होता। कई माता-पिता अपने बच्चों से लंबे समय तक नहीं मिल पाते।

वहीं, चीन के दावे के उलट कई शोध पत्रों और रिपोर्टों में तिब्बती बच्चों पर इन स्कूलों के बुरे मनोवैज्ञानिक प्रभावों के बारे में चेतावनी दी गई है। इनमें बच्चों में चिंता, अकेलापन, अवसाद और दूसरी मानसिक परेशानियां शामिल हैं।

तिब्बत एक्शन इंस्टीट्यूट का अनुमान है कि 6 से 18 साल की उम्र के करीब 8 लाख तिब्‍बती बच्‍चे चीन के स्‍कूलों में पढ़ रहे हैं। यानी कि हर 4 में से 3 बच्‍चे चीन के अप्रत्‍यक्ष नियंत्रण में है, जिन्‍हें वह तिब्‍बती संस्‍कृति को मिटाने के लिए हथियार के तौर पर इस्‍तेमाल कर रहा है।