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जम्मू-कश्मीर सरकार बनाने के बाद एनसी-कांग्रेस की नहीं चलने वाली, जानें गेंद किसके पाले?

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जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस गठबंधन की सरकार बनने वाली है।चुनाव के बाद विधानसभा का गठन होगा और वहां मंत्रीपरिषद शपथ लेंगी। आर्टिकल 370 खत्म करके इसका विशेष दर्जा खत्म किया जा चुका है। सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव हुआ था। मगर ये चुनाव एक राज्य में नहीं बल्कि केंद्रशासित प्रदेश में कराया गया। तो राज्य में अब सरकार बेशक कांग्रेस और कांफ्रेंस मिलकर बना लें लेकिन असल में सारी ताकत को उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के पास होगी।

वर्ष 2019 में जम्मू कश्मीर की अंतिम राज्य सरकार भंग कर दी गई। वर्ष 1952 से चली आ रही ये सरकार देश की दूसरी राज्य सरकारों की तुलना में ज्यादा अधिकार रखती थी। राज्य को देश में आर्टिकल 370 के तहत स्पेशल दर्जा मिला हुआ था। 2019 में सबकुछ खत्म हो गया। राज्य दो केंद्रशासित टुकड़ों टूट गया- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख। अब जबकि राज्य में चुनाव खत्म हो गया है और परिणाम के बाद राज्य की सत्ता पर कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस काबिज होने जा रहे हैं तो कहना चाहिए कि अब सबकुछ पिछली राज्य सरकारों जैसा नहीं होगा। नई राज्य सरकार काफी हद तक पॉवरलेस होगी. असल में राज्य में सुपर बॉस तो लेफ्टिनेंट गर्वनर ही होंगे।

जिस तरह दिल्ली में उप राज्यपाल की ताकत निर्वाचित सरकार से ज्यादा है, कुछ वैसा ही जम्मू-कश्मीर में भी देखने को मिलेगा। जम्मू कश्मीर को अभी भी पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं है और इसीलिए वहां गर्वनर नहीं हैं। जम्मू-कश्मीर अभी केंद्र शासित प्रदेश है और इस तरह वहां लेफ्टिनेंट गवर्नर (एलजी) काम करते रहेंगे और विधानसभा अगर कोई बिल पास करती है तो फिर उसे एलजी की सहमति लेनी होगी। इस तरह एलजी चाहें तो बिल को राष्ट्रपति को भी रेफर कर सकते हैं।

किन मामलों में उपराज्यपाल की चलेगी

कानून और व्यवस्था, सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस कामों सहित विभिन्न प्रशासनिक मामलों में केंद्र शासित प्रदेशों में उपराज्यपाल का फैसला अंतिम होगा। मतलब ये है कि निर्वाचित विधानसभा के बावजूद एलजी दैनिक शासन को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विवेक का प्रयोग कर सकते हैं। कानून-व्यवस्था और पुलिस पर कंट्रोल पूरी तरह राज्यपाल के पास रहेगा। चूंकि पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था को बाहर करने के लिए विधानसभा की विधायी शक्तियों में कटौती की गई है, इसलिए नई सरकार की कार्यकारी शक्तियां और क्षमता गंभीर रूप से कमजोर और समझौतापूर्ण हो जाएगी। ऐसी व्यवस्था केंद्र द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल को सर्वशक्तिमान बना देती है। राज्य में सब कुछ गृह विभाग के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसमें पुलिस, कानून और व्यवस्था, जेल, बंदीगृह आदि शामिल हैं।

केवल पुलिस जैसा अहम महकमा ही चुनी हुई सरकार के नियंत्रण से बाहर नहीं होगा।. यहां तक की पब्लिक ऑर्डर जिसका दायरा बहुत बड़ा होता है, वह भी सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। समवर्ती सूची में दिए गए मामले यानी वैसे विषय जिस पर केन्द्र और राज्य, दोनों को कानून बनाने का अधिकार है, उस पर भी जम्मू कश्मीर विधानसभा कानून नहीं बना पाएगी। ये सारी शक्तियां एलजी या उसके जरिये केंद्र को दे दी गई हैं।

मंत्रियों के कार्यक्रम या बैठकों के एजेंडे की सूचना एलजी को देनी होगी

जम्मू कश्मीर सरकार में मंत्री बनने वालों के अधिकार का अंदाजा इस से भी लगाया जा सकता है कि मंत्रियों के कार्यक्रम या फिर उनके बैठकों के एजेंडे एलजी ऑफिस को देने होंगे और यह कम से दो दिन पहले जमा करा देना होगा। इसके अलावा, भ्रष्टाचार के मामलों से निपटने के लिए बनी प्रदेश की ताकतवर एसीबी (एंटी करप्शन ब्यूरो), जम्मू कश्मीर फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी और जेल जैसे अहम विभाग चुनी हुई सरकार के पास न होकर उपराज्यपाल के पास होंगे।

एलजी के फैसले की समीक्षा नहीं हो सकेगी

एलजी के राजनीतिक ताकत का अंदाजा जम्मू कश्मीर पुनर्गठन कानून की धारा 55 से साफ हो जाता है। इसके मुताबिक उपराज्यपाल के फैसले की समीक्षा जम्मू कश्मीर की चुनी गई मंत्रिमंडल नहीं कर सकती। बात यहां तक होती तो भी कोई बात न थी पर एक ओर तो उपराज्यपाल के फैसले की समीक्षा विधानसभा नहीं कर सकती लेकिन इसी के थोड़ा आगे एक प्रावधान ऐसा भी जोड़ दिया गया है जहां एलजी का प्रतिनिधि प्रदेश सरकार की सभी कैबिनेट मीटिंग में बैठेगा।

राज्यपाल करेंगे 5 विधायकों को नोमिनेट

जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल के पास विधानसभा में 5 सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार है, जिनके पास विधायक की पूर्ण विधाई शक्तियां होंगी। ये विधानसभा के भीतर शक्ति संतुलन को बदल सकता है। विधानसभा के मनोनीत सदस्यों को वे सभी अधिकार और विशेषाधिकार प्राप्त होंगे, जिनके निर्वाचित सदस्य हकदार होंगे। उन्हें वोट देने का अधिकार है। अब केन्द्र की बीजेपी के सरकार के एलजी अगर किसी को नॉमिनेट करेंगे तो वह वोट किसे करेगा, यह वह भी बता देगा जिससे पूछा न गया हो। इसके अपावा ये पांच विधायक विधानसभा के कामकाज में भाग लेने का अधिकार है और सरकार के गठन में भूमिका का भी।

जम्मू-कश्मीर में एनसी बनी सबसे बड़ी पार्टी, लेकिन वोटों के मामले में बाजी मार गई बीजेपी
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* जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। फारूक अब्दुल्ला की अगुवाई वाली जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस इन चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। यहां 90 विधानसभा सीटों में से एनसी को 42 और कांग्रेस को 6 सीटों पर जीत मिली है, जबकि भाजपा 29 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर रही है। जम्मू-कश्मीर बहुमत के लिए 46 सीटों की जरूरत थी। राज्य में एनसी और कांग्रेस के बीच गठबंधन है। दोनों दलों ने साथ मिलकर बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है। ऐसे में सरकार एनसी-कांग्रेस ही बनाने वाली है। भले कांग्रेस पार्टी गठबंधन को बहुमत मिला है, लेकिन चुनावी नतीजों का बारीक अध्ययन करें तो पाएगें कि यहां भी उसकी लुटिया डूब गई है। खासकर, बीजेपी के मुकाबले उसका प्रदर्शन काफी खराब रहा है। जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव की प्रमुख पार्टियों बीजेपी, कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस का अलग-अलग इलाकों में प्रदर्शन तो यही कहता है। *बीजेपी को सबसे ज्यादा 25.64 फीसदी वोट मिले* नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भले ही सबसे ज्यादा सीटें जीती हैं, लेकिन कुल वोट पाने के मामले में वह सूबे में दूसरे नंबर पर है। भारतीय जनता पार्टी भले ही कुल सीटों के मामले में दूसरे नंबर पर आई हो, उसने जम्मू-कश्मीर के अपने चुनावी इतिहास में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। बीजेपी ने न सिर्फ सूबे की 90 में से 29 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की, बल्कि सबसे ज्यादा 25.64 फीसदी वोट भी हासिल किए। कुल वोटों के मामले में नेशनल कॉन्फ्रेंस दूसरे नंबर पर रही जिसे 23.43 फीसदी वोट मिले। संख्या के हिसाब से देखें तो बीजेपी को 1462225 वोट और NC को 1336147 वोट मिले हैं। वहीं, कांग्रेस को 11.97 और PDP को 8.87 फीसदी वोट मिले और ये दोनों दल क्रमश: तीसरे और चौथे नंबर पर रहे। इस तरह देखा जाए तो बीजेपी ने कांग्रेस और PDP के कुल वोटों से भी ज्यादा वोट बटोरे। *स्ट्राइक रेट में कांग्रेस से मीलों आगे* जम्मू कश्मीर में 90 सीटों के लिए तीन चरण में चुनाव हुआ। नतीजों में कुल 56 सीटों पर चुनाव लड़ रही नेशनल कांफ्रेंस के हिस्से आई 42 सीट। यानी ओवरऑल एनसी का स्ट्राइक रेट 75 फीसदी के करीब रहा। उसकी सहयोगी कांग्रेस पार्टी का स्ट्राइक रेट 15 फीसदी को भी पार नहीं कर सका। 39 सीटों पर चुनाव लड़ रही कांग्रेस 6 सीट पर सिमट गई। बीजेपी की बात करें तो, वह जम्मू की सभी 43 और कश्मीर की 47 में से केवल 19 सीट पर चुनाव लड़ रही थी। इस तरह, बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में कुल 62 उम्मीदवार उतारे। जिनमें 29 जीत गए। यानी पार्टी 47 फीसदी के स्ट्राइक रेट के साथ एनसी से काफी पीछे मगर कांग्रेस से कई कोस आगे रही। *बीजेपी का जम्मू में स्ट्राइक रेट 67 फीसदी* अब क्षेत्रवार यानी जम्मू और कश्मीर का अलग-अलग स्ट्राइक रेट देखा। जम्मू को केंद्र में रखकर बीजेपी के प्रदर्शन को देखा जाए तो वह एनसी, कांग्रेस से काफी आगे दिखती है। पार्टी ने जम्मू की सभी 43 सीटों पर अपने कैंडिडेट्स को उतारा था। इनमें 29 जीत गए। यानी बीजेपी का जम्मू में स्ट्राइक रेट 67 फीसदी रहा। वहीं, नेशनल कांफ्रेंस जम्मू की जिन 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही थी। उनमें से 7 सीट जीत गई। मतलब ये कि एनसी जम्मू में 41 फीसदी सीट जीत पाने में वह सफल रही। जबकि उसकी सहयोगी कांग्रेस जम्मू में केवल 1 सीट जीत सकी। कांग्रेस जम्मू के 29 सीट पर चुनाव लड़ रही थी। इस तरह, देश की सबसे पुरानी पार्टी का जम्मू में स्ट्राइक रेट महज 3 फीसदी रहा। वहीं, नेशनल कांफ्रेंस ने कश्मीर की 47 सीटों में से 39 पर चुनाव लड़ा। इनमें से 35 सीट वह जीत गई। इस तरह एनसी का घाटी में स्ट्राइक रेट 90 फीसदी रहा, जिसको क्लीन स्वीप कहा जाना चाहिए। जबकि कश्मीर में 10 सीटों पर चुनाव लड़ रही उसकी साझेदार कांग्रेस केवल 5 सीट जीत सकी। यानी वादी में कांग्रेस का स्ट्राइक रेट 50 फीसदी रहा।
हरियाणा में हैट्रिकः क्या है बीजेपी के तीसरे बार जीत की वजह?

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हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे बेहद चौंकाने वाले रहे। चुनाव के बाद आए एग्जिट पोल के बाद कांग्रेस की जीत तय मानी जा रही थी। चुनाव प्रचार और एग्जिट पोल में कांग्रेस की आंधी दिखी, लेकिन नतीजे बिल्कुल उलट आए।कांग्रेस, हरियाणा में लगातार तीसरी बार हार गई है।

हरियाणा में बीजेपी के जीत निश्चित रूप से अप्रत्याशित है। अप्रत्याशित इसलिए कि 10 साल सत्ता में रहने के बाद पार्टी के सामने टिकट बंटवारे के बाद पार्टी के कई नेताओं की बगावत चुनौती बनकर सामने आई। एग्जिट पोल में भी बीजेपी की हार की संभावना जताई गई। इन सबके बावजूद बीजेपी की जीत निश्चित रूप से बहुत खास है।हरियाणा में बीजेपी की जीत के पीछे क्या कुछ फैक्टर हो सकते हैं देखते हैः-

गैर जाट जातियों को जोड़ने का फार्मूला हिट

बीजेपी 2014 में पहली बार हरियाणा की सत्ता पर काबिज हुई।लोगों को उम्मीद थी कि किसी जाट को ही मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलेगी, क्योंकि पिछले कई दशक से हरियाणा का मुख्यमंत्री जाट ही बन रहा था, भले ही वो किसी भी दल का हो। लेकिन बीजेपी ने पंजाबी समाज के मनोहर लाल खट्टर को सीएम की कुर्सी पर बिठा दिया। पहली बार विधायक बने खट्टर को पीएम नरेंद्र मोदी की पसंद बताया गया। खट्टर को सीएम बनाने के बाद ही यह चर्चा चल उठी कि बीजेपी जाट राजनीति को खत्म करने की कोशिश कर रही है। बीजेपी से जाटों की नाराजगी यहीं से शुरू हुई। बीजेपी कभी जाटों को मनाने की कोशिश करती हुई नजर नहीं आई। उसने पंजाबी, ओबीसी और दलित वोटों को एकजुट रखने की कोशिशें जारी रखीं। 

चुनाव से पहले खट्टर की जगह सैनी को सीएम बनाने का दांव

भाजपा ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अपने सीएम को बदल दिया था। मनोहर लाल खट्टर को लेकर लोगों में नाराजगी नजर को देखते हुए बीजेपी ने उन्हें हटाकर नायब सिंह सैनी को सीएम की कुर्सी पर बैठा दिया। सैनी की माली जाति हरियाणा की बड़ी और ताकतवर ओबीसी जाति है। यानी कि बीजेपी की गैर जाट जातियों को जोड़ने का फार्मूला एक बार फिर काम कर गया है। हरियाणा में गैर जाट जातियां आज भी बीजेपी के साथ मजबूती से खड़ी नजर आ रही हैं।

जाटों ने बीजेपी का समर्थन किया है

ऐसा नहीं है कि जाट बीजेपी से नाराज ही हैं। हम यह इसलिए कह रहे हैं कि इस बार के चुनाव में बीजेपी ने जाट बहुल सीटों पर भी अच्छा प्रदर्शन किया है। बीजेपी ने 2019 के चुनाव में 30 फीसद जाट बहुल सीटें जीत ली थीं। वहीं 2024 के चुनाव में उसने 51 फीसदी जाट बहुल सीटों पर बढ़त बनाई है। इसका मतलब यह हुआ कि जाट बीजेपी से बहुत नाराज नहीं हैं। हालांकि हरियाणा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस को मिले वोटों का अंतर बहुत ज्यादा नहीं है। 

कुमारी सैलजा की नाराजगी

दलितों में कुमारी सैलजा को सबसे बड़ा जाटव नेता माना जाता है। कुमारी सैलजा की नाराजगी के कारण यह वोट बैंक कांग्रेस से खिसका। इसके अलावा इसमें टर्निंग पॉइंट अशोक तंवर की वापसी से आया। इससे सैलजा की जाति में मैसेज गया कि हुड्डा ने उनका कद कम करने के लिए तंवर की वापसी कराई है।

राहुल गांधी के आरक्षण विरोधी बयान

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के आरक्षण विरोधी बयानों को भी बीजेपी ने चुनावी सभा में खूब भुनाया। इस मैसेज को दलितों की बस्ती में घर घर तक ले जाने का काम संघ के स्वयं सेवकों ने किया। कुछ सीटों पर आप के कैंडिडेट ने भी कांग्रेस के वोट काटने का काम किया।

हरियाणा में जीतते-जीतते कैसे हार गई कांग्रेस? सैलजा, हुड्डा या कोई और वजह

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हरियाणा में बीजेपी ने हैट्रिक लगाई है। भाजपा एक बार फिर सूबे में सरकार बनाती नजर आ रही है। 10 साल से वनवास झेल रही कांग्रेस एक बार फिर सत्ता के करीब आते-आते रह गई।लगभग एग्जिट पोल में कांग्रेस की सरकार बनती हुई दिख रही थी, लेकिन चुनावी नतीजों ने कांग्रेस के अरमानों पर पानी फेर दिया। 60 सीटों पर जीत का दावा करने वाली ओल्ड ग्रैंड पार्टी 40 के नीचे सिमट गई है। इस सियासी जनादेश की वजह से कांग्रेस फिर से 5 साल के लिए सत्ता से दूर हो गई है।

वोटिंग के बाद सामने आए एग्जिट पोल के सर्वे में अनुमान जताया गया था कि हरियाणा में कांग्रेस दमदार तरीके से पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना सकती है, लेकिन चुनावी नतीजे और रुझान उसके उलट नजर आए। हरियाणा में मोहब्बत की दुकान खोलने वाली कांग्रेस बीजेपी के सियासी समीकरण को पछाड़ने में पूरी तरह से नाकाम रही। हरियाणा में चुनाव परिणाम आने के बाद अब इस सवाल के जवाब तलाशे जा रहे हैं कि कांग्रेस इस चुनाव में क्यों पिछड़ गई?

कांग्रेस की हार के कारण

हुड्डा का पार्टी में एकाधिकार

हरियाणा कांग्रेस में पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा पार्टी की हार के सबसे बड़े कारक माने जा रहे हैं। पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा का पार्टी में एकाधिकार था। बीते डेढ़-दो साल से हरियाणा कांग्रेस के बड़े फैसले हुड्डा ही ले रहे थे। फिर चाहे प्रदेश अध्यक्ष उदयभान की नियुक्ति हो या लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारा हो, इन सबमें हुड्डा ही अकेले पॉवर सेंटर बनकर उभरे। चुनाव में राहुल गांधी समेत पार्टी के सभी बड़े नेताओं ने हुड्डा पर विश्वास किया, लेकिन अब हरियाणा में लगातार तीसरी बार कांग्रेस की नैया डूब नजर आ रही है।हुड्डा के पसंद के उम्मीदवार को तरजीह

इस बार के विधानसभा चुनाव में भी 90 में से 70 से अधिक सीटें हुड्डा के कहने पर बंटे। टिकट बंटवारे में को लेकर जब दिल्ली में हरियाणा कांग्रेस की बैठक हुई थी तब भी हुड्डा की ही चली थी। कांग्रेस ने सबसे ज्यादा हुड्डा समर्थक उम्मीदवारों को टिकट दिया था। 90 में से करीब-करीब 70 सीटों पर हुड्डा के पसंद वाले उम्मीदवारों को मौका दिया गया। तब कुमारी सैलजा समेत कई नेताओं ने खुले तौर पर तो नहीं लेकिन अंदरूनी रूप से नाराजगी भी जताई थी, लेकिन हाईकमान ने ध्यान नहीं दिया। अब उसका असर चुनाव के नतीजों में देखने को मिल रहे हैं।

दिग्गज नेताओं की नाराजगी

कांग्रेस के दिग्गज नेता कुमारी सैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला टिकट बंटवारे से खुश नहीं थे। दोनों नेताओं ने अपने करीबियों और समर्थकों के लिए प्रचार किया। सूबे की बाकी सीटों पर चुनाव प्रचार करने नहीं गए। कुमारी सैलजा ने लंबे समय तक चुनाव प्रचार से दूरी रखी, इसके बाद वे लौटीं। हालांकि, तब भी कई इंटरव्यूज में सैलजा ने इशारों-इशारों में बताया कि उनकी हुड्डा से बातचीत नहीं है।

गठबंधन दलों को तरजीह नहीं देना

कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के दलों को तरजीह नहीं दी। अहीरवाल बेल्ट में पार्टी ओवर कन्फिडेंस में रही। यहां पर सपा सीट मांग रही थी। हुड्डा ने साफ-साफ कह दिया कि हरियाणा में इंडिया का गठबंधन नहीं होगा। कई सीटों पर आप को भी अच्छे-खासे वोट मिले हैं। चुनाव से पहले आप ने कांग्रेस के सामने गठबंधन का प्रस्ताव रखा था, लेकिन क्षेत्रीय नेताओं के कहने पर कांग्रेस ने हाथ नहीं मिलाया। इसका खामियाजा विधानसभा चुनाव के परिणाम में देखने को मिल रहा है।

चुनाव आयोग ने कांग्रेस के आरोपों को किया खारिज, रूझानों में देरी पर दिया जवाब

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हरियाणा में मतगणना जारी है। शुरुआती रुझानों में यहां कांग्रेस आगे थी, लेकिन 10 बजते-बजते बाजी पलट गई और भाजपा ने कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया। हरियाणा विधानसभा चुनाव के रुझान में पिछड़ने के बाद कांग्रेस ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए थे। अब चुनाव आयोग ने इन आरोपों को झूठा करार देते हुए कहा है कि हर पांच मिनट पर वोटो की गिनती का आंकड़ा अपडेट किया जा रहा है।

चुनाव आयोग ने कहा कि कांग्रेस के आरोप "गैरजिम्मेदाराना, निराधार और दुर्भावनापूर्ण हैं। आरोपों को साबित करने के लिए कांग्रेस के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है। अपने जवाब में, चुनाव आयोग ने कहा कि वोटों की गिनती संबंधित मतगणना केंद्रों पर चुनाव संचालन नियमों के नियम 60 के अनुसार और वैधानिक और नियामक व्यवस्था का पालन करते हुए की जा रही है। इस प्रक्रिया को नामित अधिकारियों द्वारा किया जा रहा है।

चुनाव आयोग ने कांग्रेस के महासचिव जयरा रमेश से कहा कहा कि नतीजों को वेबसाइट पर अपडेट करने में देरी के गलत आरोप को साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है। चुनाव आयोग ने आगे बताया कि हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में पूरी मतगणना प्रक्रिया नियमों के अनुसार उम्मीदवारों, पर्यवेक्षकों और सूक्ष्म पर्यवेक्षकों की उपस्थिति में चल रही है।

इससे पहले कांग्रेस ने चुनाव आयोग से शिकायत की है कि सुबह नौ बजे से 11 बजे के बीच हरियाणा के नतीजों को बेवसाइट पर अपलोड करने में देरी की गई है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि नतीजों को अपडेट करने की धीमी गति के चलते नई-नई कहानियां गढ़ी जा रही हैं। उन्होंने चुनाव आयोग से कहा कि हरियाणा चुनावों के सटीक आंकड़े जारी करने के निर्देश जारी किए जाएं।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर पोस्ट में कहा कि लोकसभा चुनावों की तरह हरियाणा में फिर से चुनाव आयोग की वेबसाइट पर रुझानों को अपलोड करने की गति धीमी है। हमें उम्मीद है कि चुनाव आयोग हमारे सवालों का जवाब देगा। 10-11 राउंड के नतीजे जारी हो चुके हैं। लेकिन चुनाव आयोग की वेबसाइट पर केवल 4-5 राउंड ही अपडेट किए गए हैं। यह प्रशासन पर दबाव बनाने की एक रणनीति है। उन्होंने कहा कि निराश होने की जरूरत नहीं है। खेल खत्म नहीं हुआ है। माइंड गेम खेले जा रहे हैं। जनादेश मिलने जा रहा है। कांग्रेस सरकार बनाने जा रही है।

अब उमर के हाथों में होगी जम्मू-कश्मीर की कमान’ दोनों सीटों से जीत के बाद फारूक अब्दुल्ला का ऐलान

जम्मू-कश्मीर में नेकां और कांग्रेस के गठबंधन को रुझानों में स्पष्ट बहुमत मिलता दिख रहा है। नेकां-कांग्रेस जम्मू-कश्मीर में 49 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। इस बीच जम्मू कश्मीर में अगला मुख्यमंत्री कौन होगा इस पर एनसी नेताने बड़ा बयान दिया है। फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू कश्मीर का अगला मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला होंगे।

नेकां अध्यक्ष ने कहा कि विधानसभा चुनाव में भाग लेने वाले सभी लोगों का आभारी हूं। एनसी अध्यक्ष ने यह भी कहा कि फैसला इस बात का प्रमाण है कि जम्मू-कश्मीर के लोग अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के खिलाफ थे। फारुक अब्दुल्ला ने कहा कि लोगों के जनादेश ने साबित कर दिया है कि कश्मीर के लोग 5 अगस्त, 2019 को लिए गए फैसले (धारा 370 को हटाया जाना) को स्वीकार नहीं करते हैं।

फारूक अब्दुल्ला ने आगे कहा कि हमें बेरोजगारी खत्म करनी होगी और महंगाई और नशीली दवाओं की समस्या जैसे मुद्दों का समाधान करना होगा। फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि अब कोई एलजी और उनके सलाहकार नहीं होंगे। अब 90 विधायक होंगे जो लोगों के लिए काम करेंगे।

उमर अब्दुल्ला ने गांदरबल और बडगाम दो सीटों से चुनाव लड़ा था। उन्होंने दोनों सीटों से जीत दर्ज की है। गांदरबल से उमर अब्दुल्ला को 18193 वोट मिले हैं। उन्होंने पीडीपी के बशीर अहमद को हराया है। बशीर अहमद 12745 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे।

वहीं बडगाम सीट की बात करें तो उमर अब्दुल्ला को 36010 वोट मिले। उमर ने पीडीपी उम्मीदवार आगा सैयद मुंतजिर को हराया है।

चुनावी रूझानों के बीच एनसी 42 और कांग्रेस 7 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। 90 में से 51 सीटों पर गठबंधन आगे चल रहा है, जबकि भारतीय जनत पार्टी 28 सीटों पर आगे चल रही है।

हरियाणा विधानसभा चुनाव मतगणना, जलेबियां बंटी, ढोल-नगाड़े बजे..! लेकिन रुझान बदलते ही बदल गया कांग्रेस दफ्तर का माहौल

हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 की वोटों की गिनती जारी है, और यह प्रक्रिया काफी दिलचस्प मोड़ ले चुकी है। मंगलवार सुबह 8 बजे मतगणना शुरू होने के बाद कांग्रेस ने शुरुआती रुझानों में जबरदस्त बढ़त बना ली थी। कांग्रेस को 70 से ज्यादा सीटों पर बढ़त मिलती दिख रही थी, जिससे लग रहा था कि कांग्रेस इस बार हरियाणा में बहुमत के साथ सरकार बना सकती है। लेकिन कुछ समय बाद चीजें बदलने लगीं और भाजपा ने बढ़त हासिल कर ली। चुनाव आयोग के ताजा आंकड़ों के अनुसार, भाजपा 90 में से 50 सीटों पर आगे चल रही है, जो 46 सीटों के बहुमत के आंकड़े से अधिक है, जबकि कांग्रेस अब केवल 34 सीटों पर आगे है।

कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता शुरुआती रुझानों के दौरान काफी उत्साहित थे। कांग्रेस कार्यालय में जश्न की तैयारियां शुरू हो चुकी थीं, जलेबियाँ और मिठाइयाँ बाँटी जा रही थीं। लेकिन जैसे ही भाजपा ने बढ़त हासिल करनी शुरू की, कांग्रेस कार्यालय का माहौल बदल गया। अब दिल्ली स्थित कांग्रेस दफ्तर में पहले जैसा उत्साह नहीं दिख रहा है। ढोल-नगाड़ों की आवाज़ थम गई है और मिठाइयाँ भी बांटी नहीं जा रही हैं। एक तरह की निराशा देखी जा रही है, लेकिन कांग्रेस नेताओं को अभी भी उम्मीद है कि नतीजे उनके पक्ष में आएंगे और वे सरकार बनाएंगे। हालांकि, कांग्रेस ने पिछड़ते ही चुनाव आयोग और वेबसाइट को दोष देना शुरू कर दिया है, सोशल मीडिया पर कांग्रेस समर्थक EVM को भी दोषी ठहरा रहे हैं। हालाँकि, जम्मू कश्मीर में कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस (NC) का गठबंधन प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बना रहा है, वहां EVM भी सही है और चुनाव आयोग तथा वेबसाइट भी सही है।

कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए कहा कि पहली बार ऐसा हो रहा है कि मीडिया चैनल्स चुनाव आयोग के आंकड़े दिखा रहे हैं, जबकि कांग्रेस के कंट्रोल रूम के पास 11 या 12 राउंड के आंकड़े आ चुके हैं। खेड़ा ने कहा कि 4 राउंड के बाद विनेश फोगाट को पीछे दिखाया गया था, लेकिन 9 राउंड के बाद वे 5200 वोटों से आगे चल रही हैं। इस अंतर को लेकर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने भी ट्वीट कर सवाल उठाया और चुनाव आयोग से स्थानीय प्रशासन पर दबाव बनाए जाने की आशंका जताई है। कांग्रेस ने मांग की है कि चुनाव आयोग तुरंत रुझानों को अपडेट करे ताकि प्रक्रिया पारदर्शी बनी रहे।

हरियाणा में बढ़त पर बीजेपी को प्रियंका चतुर्वेदी ने दी बधाई, कांग्रेस को दे डाली ये सलाह

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हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणाम बीजेपी के पक्ष में आए हैं। यहां पर बीजेपी बहुमत की ओर बढ़ रही है। हालांकि, विपक्ष ने ऐसे रिजल्ट की उम्मीद नहीं की थी। एग्जिट पोल के नतीजों के बाद विपक्ष को पूरा भरोसा था कि कांग्रेस को इस बार फायदा होगा। लेकिन नतीजों में वो पिछड़ गई है। इसको लेकर कांग्रेस सहयोगी पार्टियों के निशाने पर आ गई है। शिवसेना (यूबीटी) की नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने एक तरफ बीजेपी को जीत की बधाई दी, तो दूसरी तरफ सहयोगी कांग्रेस को नसीहत।

शिवसेना (यूबीटी) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, "मैं भाजपा को बधाई देती हूं क्योंकि इतनी सत्ता विरोधी लहर के बाद भी ऐसा लग रहा है कि हरियाणा में उनकी ही सरकार बना रही है। कांग्रेस पार्टी को अपनी रणनीति पर विचार करने की जरूरत है क्योंकि जहां भी भाजपा से सीधी लड़ाई होती है, वहां कांग्रेस पार्टी कमजोर हो जाती है।"

उन्होंने आगे कहा, "महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव ऐसे मुद्दों पर लड़े जा रहे हैं जो हरियाणा से बिल्कुल अलग हैं। उन्होंने (भाजपा ने) सत्ता के लिए पार्टियों और परिवारों को तोड़ा। उन्होंने चुनाव आयोग और संविधान का दुरुपयोग किया। महाराष्ट्र के उद्योग महाराष्ट्र से दूसरे राज्यों में ले जाए जा रहे हैं। महाराष्ट्र भावनाओं के आधार पर वोट करेगा।"

बता दें कि, कांग्रेस उम्मीद कर रही थी कि इस बार हरियाणा में सरकार कांग्रेस की बनेगी। एग्जिट पोल के नजीते भी यही कह रहे थे। हरियाणा में कम से कम 60 सीटों पर जीत का दावा कर रहे दिग्गज नेता आपस में मुख्यमंत्री चेहरे पर चर्चा करने लगे थे, लेकिन परिणाम ने पार्टी को चौंका दिया। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक बीजेपी एक बार फिर बहुत की सरकार बना रही है।

हरियाणा विधानसभा चुनाव मतगणना, आएगी तो कांग्रेस ही.., रुझानों में भाजपा को बढ़त मिलने पर बोले भूपिंदर सिंह हुड्डा

हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 की मतगणना मंगलवार को जारी है, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) बढ़त बनाए हुए है। चुनाव आयोग के ताजा आंकड़ों के अनुसार, भाजपा ने बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है और 46 सीटों पर आगे चल रही है। वहीं, कांग्रेस 33 सीटों पर आगे है, जबकि इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को 1-1 सीट पर बढ़त मिली है।

इस बीच, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से शुरुआती रुझानों के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि कांग्रेस की सरकार बनना तय है। उन्होंने कहा कि अभी केवल 2 राउंड की गिनती हुई है, लेकिन जो रिपोर्ट मिल रही है, उसके अनुसार कांग्रेस को बहुमत मिल जाएगा। भूपेंद्र हुड्डा ने कांग्रेस की संभावित जीत का श्रेय राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे, प्रियंका गांधी समेत सभी नेताओं को दिया। जब पत्रकारों ने उनसे भाजपा की बढ़त के बारे में सवाल किया, तो उन्होंने आत्मविश्वास से कहा कि कांग्रेस भारी अंतर से सरकार बनाएगी और उन्हें किसी अन्य दल के सहयोग की जरूरत नहीं पड़ेगी।

चुनाव आयोग के शुरुआती रुझानों के मुताबिक, भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपने निर्वाचन क्षेत्र गढ़ी सांपला-किलोई से 5,082 वोटों से आगे चल रहे हैं। कुरुक्षेत्र जिले की लाडवा सीट से मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी बढ़त बनाए हुए हैं, जबकि अंबाला कैंट सीट से भाजपा के वरिष्ठ नेता अनिल विज आगे चल रहे हैं। INLD के अभय सिंह चौटाला अपनी ऐलनाबाद सीट से बढ़त में हैं। कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला के बेटे आदित्य सुरजेवाला कैथल सीट से अपने प्रतिद्वंद्वी से आगे हैं। हरियाणा के मुख्य निर्वाचन अधिकारी पंकज अग्रवाल ने बताया कि मतगणना केंद्रों पर त्रिस्तरीय सुरक्षा का इंतजाम किया गया है। सबसे पहले डाक मतपत्रों की गिनती की गई और उसके बाद इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) में दर्ज मतों की गिनती जारी है।

अब हरियाणा विधानसभा में 'दंगल' करेंगी विनेश फोगाट, योगेश कुमार को पटखनी देकर बनीं विधायक

हरियाणा की 90 सदस्यीय विधानसभा सीटों पर 5 अक्टूबर को हुए मतदान के बाद मंगलवार को वोटों की गिनती शुरू हो चुकी है। इस बार का चुनाव हरियाणा की राजनीति के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है, जहां भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अपनी हैट्रिक लगाने की उम्मीद कर रही है, जबकि कांग्रेस लगभग एक दशक बाद सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही है। इस चुनाव में प्रमुख पार्टियों में बीजेपी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (AAP), इनेलो-बसपा गठबंधन और जेजेपी-आजाद समाज पार्टी के बीच सीधी टक्कर है।

मतगणना की शुरुआत सुबह 8 बजे से हो गई है। इस चुनाव में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, और ओलंपियन व कांग्रेस उम्मीदवार विनेश फोगाट समेत कई बड़े नेताओं की किस्मत का फैसला होना है। विनेश फोगाट ने जुलाना सीट से चुनाव लड़ा और उन्हें शानदार जीत मिली। उन्होंने 65,080 वोट हासिल कर बीजेपी के योगेश कुमार को हराया, जिन्हें 59,065 वोट मिले। इस जीत ने उन्हें हरियाणा की राजनीति में एक नया चेहरा बना दिया है, जो खेल के क्षेत्र से राजनीति में आए नेताओं की सफलता की कहानी को भी दर्शाता है। राज्य में बीजेपी ऐतिहासिक प्रदर्शन कर रही है और 50 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। यह पार्टी के लिए एक बड़ा मील का पत्थर है, क्योंकि इससे पहले बीजेपी ने कभी हरियाणा में 50 सीटों का आंकड़ा पार नहीं किया था। अगर यह रुझान अंतिम नतीजों में बदलता है, तो यह हरियाणा के इतिहास में बीजेपी का अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन होगा। खास बात यह है कि हरियाणा के इतिहास में किसी भी पार्टी ने लगातार तीन बार चुनाव जीतकर सत्ता में वापसी नहीं की है। यदि बीजेपी यह कारनामा कर पाती है, तो यह राज्य की राजनीति में एक नया रिकॉर्ड स्थापित करेगा।

दूसरी ओर, कांग्रेस इस चुनाव में 35 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। कांग्रेस को शुरूआती रुझानों में बड़ी सफलता मिलती दिखाई दी थी, जिससे पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं में उत्साह था, लेकिन जैसे-जैसे मतगणना आगे बढ़ी, बीजेपी ने अपनी स्थिति को मजबूत किया। हालांकि, कांग्रेस नेता अभी भी उम्मीद कर रहे हैं कि अंतिम नतीजे उनके पक्ष में आएंगे, लेकिन अब बीजेपी का बढ़ता दबदबा कांग्रेस के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी और इनेलो-बसपा गठबंधन का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा है, जबकि जेजेपी-आजाद समाज पार्टी गठबंधन भी कोई बड़ा उलटफेर नहीं कर पाया है। हरियाणा में यह चुनाव न सिर्फ राज्य की राजनीतिक दिशा तय करेगा, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी इसका प्रभाव महसूस किया जा सकता है, क्योंकि हरियाणा एक प्रमुख राज्य है और यहां की राजनीति का असर केंद्र की राजनीति पर भी पड़ सकता है।

कुल मिलाकर, हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 का परिणाम भारतीय जनता पार्टी के लिए एक ऐतिहासिक सफलता के रूप में सामने आ सकता है, जहां वह राज्य में तीसरी बार सत्ता में वापसी करने वाली पहली पार्टी बनने की ओर अग्रसर है। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या कांग्रेस अंतिम समय में कोई बड़ा उलटफेर कर पाएगी, या बीजेपी इस बार भी राज्य में अपनी पकड़ और मजबूत करेगी।