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विदेश में भी बजा वंदे भारत एक्सप्रेस का डंका, कनाडा समेत कई देशों ने दिखाई खरीदने की इच्छा

#many_countries_expressed_to_buy_vande_bharat

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मेक इन इंडिया पॉलिसी का पूरी दुनिया में डंका बज रहा है। वंदे भारत ट्रेनों की मांग विदेशों में भी बढ़ती जा रही है। चिली कनाडा और मलेशिया जैसे कई देशों ने भारत से वंदे भारत ट्रेनों के आयात में रुचि दिखाई है। बता दें कि देश में वंदे भारत एक्सप्रेस तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं और कई रूट्स पर इसे चलाने की मांग बढ़ रही है।

कीमत बनी सबसे बड़ा कारण

वंदे भारत को खरीदने में इनके दिलचस्पी के कई कारण हैं, जिसके चलते वे वंदे भारत को खरीदना चाहते हैं।सबसे बड़ा कारण वंदे भारत ट्रेन की लागत है। जहां अन्य देशों में निर्मित समान सुविधाओं वाली ट्रेनों की लागत 160-180 करोड़ रुपये के बीच होती है, वहीं भारत वंदे भारत का निर्माण बहुत कम कीमत पर हुआ है। भारत की वंदे भारत ट्रेन की कीमत 120 से 130 करोड़ रुपये है।

रफ्तार जापान की बुलेट ट्रेन को दे रही मात

इसके अलावा वंदे भारत गति पकड़ने के मामले में भी दूसरे देशों को मात दे रही है। सूत्रों की मानें तो वंदे भारत को 0 से 100 किमी प्रति घंटे तक पहुंचने में सिर्फ 52 सेकंड लगते हैं, जो जापान की बुलेट ट्रेन से भी अधिक है, जिसे 0-100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ने में 54 सेकंड का समय लगता है। सूत्रों का कहना है कि वंदे भारत को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बेहतर डिजाइन किया गया है। इसमें विमान की तुलना में सौ गुना कम शोर का अनुभव होता है और इसकी ऊर्जा खपत बहुत कम होती है। वहीं भारतीय रेलवे भी तेजी से अपने ट्रैक नेटवर्क का विस्तार करने और पर्याप्त संख्या में ट्रेनों को बढ़ाने पर विचार कर रहा है।

बता दें कि 2019 में दिल्ली से वाराणसी के लिए पहली वंदे भारत एक्सप्रेस शुरू होने के बाद से, यह सेमी-हाई-स्पीड ट्रेन देश के भीतर परिवहन का एक लोकप्रिय साधन बन गई है। भारत में अन्य ट्रेनों की तुलना में यह बहुत तेज़ और हल्की है, यह न केवल यात्रा के समय को कम करती है, बल्कि वाईफाई कनेक्टिविटी, 32 इंच की मनोरंजन स्क्रीन, विशाल कांच की खिड़कियां और बहुत कुछ जैसी सुविधाओं और विशेषताओं के साथ यात्रियों की यात्रा को भी बेहतर बनाती है। वंदे भारत एक्सप्रेस अब पूरे भारत में 40 से अधिक मार्गों पर चलती है। इसके साथ ही, त्योहारी सीजन के साथ-साथ सर्दियों की यात्रा की माँगों को पूरा करने के लिए विशेष ट्रेनें चलाई जा रही हैं।

भारत ने कश्मीर पर शहबाज शरीफ के बयान को बताया हास्यास्पद, यूएन में यूं लगाई फटकार

#indian_reply_pakistan_in_un_on_shahbaz_sharif_statement 

पाकिस्तान हर बार भारत से झिड़की खाने के बाद भी नहीं सुधरता। पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र महासभा ;(यूएनजीए) में अक्सर कश्मीर को लेकर जहर उगलता है। इसके जवाब में भारत से हर बार खरी-खोटी सुनता है। एक बार फिर पाकिस्तान को वैश्विक मंच पर पानी-पानी होना पड़ा है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर का मुद्दा उठाया था। उन्होंने भारत के खिलाफ इंटरनेशनल मंच से जहर उगला था। इसे लेकर अब भारत ने जवाब दिया है।

भारतीय डिप्लोमैट भाविका मंगलनंदन ने यूएनजीए में पाकिस्तान को जवाब देते कहा कि पाकिस्तान की वैश्विक छवि आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली है, वह अपने पड़ोसी के खिलाफ सीमापार आतंकवाद को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करता है। भारतीय डिप्लोमैट ने शाहबाज शरीफ के भाषण की आलोचना करते हुए बताया कि पाकिस्तान ने कैसे आतंकवाद का इस्तेमाल कर जम्मू-कश्मीर में चुनावों को बाधित करने की कोशिश की है।

गिनाए पाक की कारनामें

भाविका मंगलनंदन ने कहा, अफसोस के साथ आज यह असेंबली एक मजाक का गवाह बनी है। आज सुबह इस सभा में दुखद रूप से एक हास्यास्पद घटना घटी। सेना की ओर से चलाया जाने वाला एक देश जिसकी प्रतिष्ठा आतंकवाद, ड्रग्स के व्यापार और अंतरराष्ट्रीय अपराध के लिए है, उसके पास दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र पर हमले का दुस्साहस है। उन्होंने आगे कहा, लंबे समय से दुनिया जानती है कि पाकिस्तान ने सीमा पार आतंकवाद का इस्तेमाल अपने पड़ोसियों के खिलाफ किया है। इसने हमारी संसद, हमारी आर्थिक राजधानी मुंबई, मार्केट और तीर्थयात्रा के रास्तों पर हमले किए हैं। लिस्ट बहुत लंबी है।

आतंकवाद पर लगाई फटकार

मंगलनंदन ने पाकिस्तान की आलोचना करते हुए कहा कि वास्तविक सच्चाई यह है कि पाकिस्तान हमारे क्षेत्र पर लालच करता है और वास्तव में भारत के अभिन्न और अविभाज्य अंग जम्मू और कश्मीर में चुनावों को बाधित करने के लिए लगातार आतंकवाद का इस्तेमाल करता रहा है। भारत की ओर से मंगलनंदन ने कहा, रणनीतिक संयम के कुछ प्रस्तावों का संदर्भ दिया गया है। आतंकवाद के साथ कोई समझौता नहीं हो सकता। वास्तव में, पाकिस्तान को यह महसूस करना चाहिए कि भारत के खिलाफ सीमा पार आतंकवाद अनिवार्य रूप से परिणामों को आमंत्रित करेगा। यह हास्यास्पद है कि एक राष्ट्र जिसने 1971 में नरसंहार किया और जो आज भी अपने अल्पसंख्यकों को लगातार सताता है, असहिष्णुता और भय के बारे में बोलने की हिम्मत करता है।

क्या बोले थे शहबाज?

इससे पहले पाकिस्तान ने शुक्रवार को एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र महासभा में जम्मू-कश्मीर का मुद्दा उठाया और कहा कि भारत को अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने के फैसले को वापस लेना चाहिए और मुद्दे के ‘शांतिपूर्ण’ समाधान के लिए उसके (पाकिस्तान) साथ बातचीत करनी चाहिए। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 79वें सत्र की आम बहस में 20 मिनट से अधिक के अपने संबोधन में जम्मू कश्मीर का मुद्दा उठाया साथ ही अनुच्छेद 370 और आतंकवादी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी का संदर्भ दिया।

मोहम्मद मुइज्जू के बदले सुर, बोले-मालदीव में इंडिया आउट मेरी पॉलिसी नहीं

#maldives_president_muizzu_says_never_followed_india_out_policy 

मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू अक्टूबर के दूसरे हफ्ते में भारत के द्विपक्षीय दौरे पर आएंगे। वह 6 से 10 अक्टूबर के बीच भारत में रहेंगे। भारत दौरे पर आने से पहले मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के सुर बदले-बदले नजर आ रहे हैं। मुइज्जू ने कहा है कि उन्होंने कभी भी 'इंडिया आउट' नीति का पालन नहीं किया है। हालांकि उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने भारतीय सैनिकों को मालदीव छोड़ने का आदेश दिया क्योंकि विदेशी सेना की मौजूदगी गंभीर समस्या है और उनके देश के लोग विदेशी सैनिक अपनी जमीन पर नहीं चाहते हैं।

मुइज्जू ने मालदीव के समाचार पोर्टल adhadhu.com से बातचीत में कहा, 'हम कभी भी किसी एक देश के खिलाफ नहीं रहे हैं। हमने कभी इंडिया आउट की बात नहीं की लेकिन ये बात है कि मालदीव के लोग अपनी जमीन एक भी विदेशी सैनिक नहीं चाहते और इस भावना का हमने सम्मान किया। मोहम्मद मुइज्जू इस समय संयुक्त राष्ट्र महासभा के 79वें सत्र में भाग लेने के लिए अमेरिका में हैं।

मुइज्जू ने यह भी कहा कि उन्होंने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गलत कमेंट करने वाले अपने नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की। नरेंद्र मोदी पर मालदीव के कुछ नेताओं की टिप्पणियों का जिक्र करते हुए मुइज्जू ने जोर देकर कहा कि किसी को भी ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए। मैं इस तरह किसी का भी अपमान स्वीकार नहीं करूंगा, हर इंसान की एक प्रतिष्ठा होती है।

भारत के साथ तनाव के बाद उत्पन्न हुए हालात के बाद मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के अब होश ठिकाने आते दिख रहे हैं। उन्हें यह बात समझ आ गई कि भारत के बिना उनके देश का काम नहीं चल सकता। मुज्जू के भारत दौरे को द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। 

राष्ट्रपति बनने के बाद मुइज्जू ने अपने देश की निर्भरता भारत पर कम करने का प्रयास किया, जिसके कारण दोनों देशों के रिश्तों में खटास आ गई थी। मुइज्जू की सरकार ने मालदीव में तैनात 85 भारतीय सैन्य कर्मियों को हटाने की मांग की और भारत के साथ 2019 में किए गए संयुक्त हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण समझौते को समाप्त करने का निर्णय लिया, जिससे दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध और भी खराब हो गए।

क्या हसन नसरुल्लाह भी मारा गया? लेबनान में हिजबुल्लाह के हेडक्वार्टर पर बड़े हमले के बाद इजराइल का दावा

#massive_strike_on_hezbollah_headquarter_in_beirut_nasrallah_may_have_been_target 

इजरायल और हिजबुल्लाह के बीच हमले तेज हो गए हैं। इसी क्रम में इजरायल की सेना ने लेबनान की राजधानी बेरूत के दहीह क्षेत्र में बड़ा हवाई हमला किया है। इजरायली सेना ने कहा है कि उसने इस हमले में लेबनानी गुट हिजबुल्लाह के केंद्रीय सैन्य कमांड सेंटर को तबाह कर दिया है।एक इजरायली अधिकारी ने टाइम्स ऑफ इजरायल से पुष्टि की कि हमलों का लक्ष्य हिजबुल्लाह नेता हसन नसरल्लाह था, जो उस समय कमांड सेंटर में मौजूद था। वहीं हिजबुल्लाह से जुड़े सूत्रों ने कहा है कि नसरल्लाह की मौत की बात में सच्चाई नहीं है, वह जिंदा है।

इजराइल की खुफिया एजेंसी को शुक्रवार को पता चला कि 6 बजे नसरल्लाह हेडक्वार्टर पहुंचेगा। इसके 5 मिनट बाद इजराइल ने हिजबुल्लाह के हेडक्वार्टर पर हमला कर दिया। हमले में उसके भाई समेत हिजबुल्लाह के कई कमांडर मारे जाने का दावा किया गया है। इस हमले में हिजबुल्लाह के कई आतंकियों के मारे जाने की भी खबर है।

सेना के एक अधिकारी ने कहा, ऐसे हमले से उसके जीवित बच निकलने की कल्पना करना बहुत कठिन है। कई हिब्रू मीडिया रिपोर्टों में इस बढ़ते इजरायली आकलन का हवाला दिया गया है कि नसरल्लाह भूमिगत हेडक्वार्टर पर हमले में मारा गया। यह हमला हिजबुल्लाह के एक शीर्ष कमांडर के अंतिम संस्कार में हजारों लोगों के शामिल होने के एक घंटे बाद हुआ। कमांडर एक दिन पहले मारा गया था।

बेरूत में हुए विस्फोट के बाद आसमान में नारंगी और काले रंग के धुएं का गुबार छा गया। इस हमले ने लेबनान की राजधानी को हिलाकर रख दिया। विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि बेरूत से लगभग 30 किलोमीटर उत्तर में घरों की खिड़कियां हिल गईं और घर हिल गए।यह हिजबुल्लाह और इजरायल के बीच संघर्ष के लगभग एक साल में बेरूत में सबसे बड़ा हमला था।

यह हमला ऐसे दिन किया गया, जब इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने संयुक्त राष्ट्र को संबोधित किया है। हिजबुल्लाह मुख्यालय पर हुए इस हमले से कुछ देर पहले ही प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने संयुक्त राष्ट्र को बताया था कि लेबनानी के आतंकी संगठन हिजबुल्लाह के खिलाफ अभियान जारी रहेगा।

नेतन्‍याहू के यूएनजीए संबोधन में लगे “शर्म करो” के नारे, फिर भी जंग से पीछे हटने से इनकार

#audience_shouts_shame_shame_as_israels_netanyahu_addresses_unga

इजराइल अभी थमने वाला नहीं है। अमेरिका और यूरोप जैसे देश लगातार इजरायल पर सीजफायर का दबाव बना रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्‍याहू युद्ध से पीछे नहीं हटेंगे। उन्‍होंने बाइडेन को सीजफायर प्‍लान को रिजेक्‍ट कर दिया है।हिजबुल्लाह और इजराइल के बीच जारी जंग के चलते अमेरिका, फ्रांस ने 21 दिनों का सीजफायर प्लान बनाया था। इस प्लान को मानने से इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने साफ इनकार कर दिया है। नेतन्याहू का कहना है कि किसी भी हालत में इस जंग को नहीं रोका जाएगा और हिजबुल्लाह पर उनकी ओर से बमबारी जारी रहेगी।

न्यूयॉर्क में यूनाइटेड नेशन्स जनरल असेंबली को संबोधित करते हुए इजराइल के प्रधानमंत्री, बेंजामिन नेतन्याहू ने अमेरिका-फ्रांस के 21 दिनों के सीजफायर प्लान को मानने से साफ इनकार कर दिया है। जैसे ही इजरायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने विश्व नेताओं को संबोधित करना शुरू किया, कई प्रतिनिधियों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा छोड़ना शुरू कर दिया। दर्शकों ने 'शर्म करो, शर्म करो' चिल्लाना शुरू कर दिया।

इस दौरान नेतन्याहू ने कहा, "जब मैंने इस मंच पर कई वक्ताओं द्वारा अपने देश पर लगाए गए झूठ और बदनामी को सुना, तो मैंने यहां आने और रिकॉर्ड स्थापित करने का फैसला किया।" इज़रायली पीएम ने ईरान को चेतावनी भी दी कि अगर उसने उनके देश पर हमला करने की हिम्मत की, तो "हम जवाबी हमला करेंगे।" उन्होंने कहा कि ईरान में ऐसी कोई जगह नहीं है जहां इजरायली एजेंसियां नहीं पहुंच सकतीं।

नेतन्याहू का कहना है कि किसी भी हालत में इस जंग को नहीं रोका जाएगा और हिजबुल्लाह पर उनकी ओर से बमबारी होती रहेगी। हम तब तक नहीं रुकेंगे जब तक हम अपने सभी लक्ष्यों को पूरा नहीं कर लेते, उनमें से मुख्य है उत्तर में रहने वालों की सुरक्षित उनके घरों में वापसी।

बता दें कि, अमेरिका, फ्रांस और अन्य सहयोगी देशों ने 21 दिनों के संघर्ष विराम का संयुक्त आह्वान किया है। लेबनान के विदेश मंत्री ने संघर्ष विराम प्रयासों का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि उनका देश इजरायल की ओर से ‘लेबनान के सीमावर्ती गांवों में मचाई जा रही सुनियोजित तबाही’ की निंदा करता है। इस बीच इजरायली वाहनों, टैंकों और बख्तरबंद गाड़ियों को लेबनान से सटी देश की उत्तरी सीमा पर जाते हुए देखा गया है। कमांडरों ने रिजर्व सैनिकों को बुलाने का आदेश जारी किया है।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ एफआईआर, MUDA स्कैम मामले में बढ़ सकती हैं मुश्किलें

#firagainstkarnatakacmsiddaramaiah

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस ने शुक्रवार को मैसुरु शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) घोटाले मामले में एफआईआर दर्ज की है। कर्नाटक के एक स्पेशल कोर्ट ने लोकायुक्त टीम को जांच का जिम्मा सौंपा है। याचिकाकर्ता स्नेहमयी कृष्णा की याचिका पर फैसला सुनाते हुए जन प्रतिनिधि कोर्ट ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे। कोर्ट ने अपने फैसले में कर्नाटक लोकयुक्त से इस मामले की जांच कर तीन महीने के अंदर रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश दिए थे। जिसके बाद आज मैसूरु लोकयुक्त पुलिस ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मामला दर्ज किया।

लोकायुक्त ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, बेनामी संपत्ति लेनदेन अधिनियम और भूमि कब्जा निवारण अधिनियम के तहत अदालत द्वारा निर्धारित आईपीसी धारा के तहत प्राथमिकी दर्ज की। सीएम सिद्धारमैया पर आरोप A 1 है, पत्नी पार्वती पर आरोप A 2 है। वहीं, मुख्यमंत्री के साले मल्लिकार्जुन स्वामी को आरोपी नम्बर 3 और देवराज को आरोपी नम्बर 4 बनाया गया है। मुख्यमंत्री पर अपने अधिकारों को दुरुपयोग करके उनकी पत्नी के नाम मैसुरु में MUDA साइट आवंटित करने का आरोप लगा है।

सिद्धरमैया ने बीजेपी पर साधा निशाना

वहीं, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने शुक्रवार को दावा किया कि मैसुरु शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) भूमि आवंटन मामले में उन्हें इसलिए निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि विपक्ष उनसे डरता है। इसके साथ ही, सिद्धरमैया ने कहा कि यह उनके खिलाफ पहला राजनीतिक मामला है। मुख्यमंत्री ने दोहराया कि मामले में अदालत द्वारा उनके खिलाफ जांच का आदेश दिये जाने के बाद भी वह इस्तीफा नहीं देंगे क्योंकि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि वह कानूनी रूप से लड़ाई लड़ेंगे।

केंद्र सरकार पर सीबीआई, ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों और देश भर में विपक्ष शासित राज्यों में राज्यपाल के कार्यालय का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि प्रशासन में राज्यपाल के ‘हस्तक्षेप’ के मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बहस की जरूरत है।

खरगे ने क्या कहा?

इस मामले में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बेंगलुरु में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कहा कि इस मामले में कानून अपना काम करेगा। उन्होंने कहा कि MUDA के लोग जो चाहें वे कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र हैं। यह जरूरी नहीं है कि सरकार उसके सभी सवालों का जवाब दें, क्योंकि वह एक स्वायत्त निकाय होने के कारण कार्रवाई कर ही सकता है।

खरगे ने सीएम सिद्धारमैया का समर्थन करते हुए कहा कि उनलोगों निजी तौर पर कोई भी अपराध यदि किया हो तो इसके लिए वह खुद ही जिम्मेदार हैं, लेकिन वह ऐसा मानते हैं कि उन्होंने ऐसा कोई भी अपराध नहीं किया है। उन्हें बदनाम किया जा रहा है। पार्टी को बदनाम किया जा रहा है। उन्होंने साफ कहा कि सिद्धारमैया का मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का सवाल ही नहीं उठता है।

मणिपुरः सीमा पर से घुसपैठ और हिंसा, क्यों बार-बार भड़क उठती है “आग”, लंबा है संघर्ष का इतिहास
#manipur_violence_history_between_ethnic_groups
* पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर को जातीय हिंसा की आग में जलते हुए डेढ़ साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है। समाधान अभी तक कुछ निकला नहीं है। शांति बहाली की कोशिशें हो रही है, लेकिन बात नहीं बन पा रही। कुछ दिनों की शांति के बाद राज्य फिर जल उठता है। सीमा पार से कथित घुसपैठ, हथियारों के इस्तेमाल, ड्रग्स की भूमिका, हिंसा के तमाम कारण बताए जा रहे हैं, लेकिन अब तक समाधान नहीं निकाले जा सकें हैं। मणिपुर में भाजपा शासन कर रही है। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की मानें तो आने वाले 4 से 6 महीने में हिंसा पर पूरी तरफ से काबू पाया जा सकेगा। हालांकि, इस बीच एक रिपोर्ट के खुलासे से हडकंप मचा हुआ है। खुफिया जानकारी के अनुसार, 900 से अधिक कुकी उग्रवादी जो ड्रोन-आधारित बम, प्रोजेक्टाइल, मिसाइल और जंगल में युद्ध लड़ने में ट्रेंड हैं उन्होंने म्यांमार के रास्ते मणिपुर में एंट्री कर ली है। रिपोर्ट के अनुसार, ये उग्रवादी 30 सदस्यों के समूहों में बंटे हुए हैं और राज्य के चारों ओर फैले हुए हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह का दावा कितना सही होगा, ये तो भविष्य ही बताएगा। अब भविष्य देखने से राज्य में हिंसा के इतिहास पर एन नजर डालते हैं। मणिपुर एक ऐसा राज्य रहा है जहां हिंसा का एक लंबा इतिहास रहा है।भारत में विलय के पहले से ये इलाक़ा हिंसक वारदातों का गवाह रहा है और द्वितीय विश्व युद्ध में तो यहाँ जापानी फौजों ने लगातार दो सालों तक बमबारी भी की।60 के दशक में मैतेई समुदाय ने यहां एक बड़ा विद्रोह किया था और दावा किया था कि 1949 में मणिपुर को भारत में धोखे से शामिल किया गया था। इतिहासकारों ने लिखा है कि मणिपुर साम्राज्य की स्थापना ‘निंगथोउजा’ कुनबे के दस क़बीलों के एक साथ आने के बाद हुई। इतिहासकार बताते हैं कि ये इलाक़ा बर्मा और चीन के साथ व्यापार का मुख्य केंद्र हुआ करता था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान की सेना और ‘मित्र देशों’ की सेना के बीच चल रहे युद्ध का एक बड़ा केंद्र भी रहा। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व वाली ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ का साथ जापान की सेना ने दिया था क्योंकि बोस जापान की सेना की मदद से ब्रितानी हुकूमत को शिकस्त देना चाहते थे। लेकिन इस मोर्चे पर जापान की सेना और ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। मणिपुर दो सालों तक बमबारी झेलता रहा जिसने पूरे प्रांत में भारी तबाही मचाई थी. इस दौरान इंफ़ाल स्थित राजा का महल भी क्षतिग्रस्त हो गया था। इस तबाही के बाद मणिपुर के लोग ब्रितानी हुकूमत के ख़िलाफ़ गोलबंद होने लगे। आखिरकार ब्रितानी हुकूमत ने 1947 में प्रान्त की बागडोर महाराजा बुधाचंद्र को सौंप दी। *केंद्र शासित घोषित होने के बाद शुरू हुआ संघर्ष* मणिपुर के महाराजा ने शिलॉन्ग में, 21 सितम्बर 1949 को, भारत के साथ विलय के दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर किये और उसी साल 15 अक्टूबर को मणिपुर भारत का अभिन्न अंग बन गया। इसकी औपचारिक घोषणा भारतीय सेना के मेजर जनरल अमर रावल ने की थी। महाराजा बुधाचंद्र की मृत्यु वर्ष 1955 में हो गयी। मणिपुर स्वतंत्र भारत का हिस्सा बन गया था और एक निर्वाचित विधायिका के माध्यम से सरकार का गठन भी हो गया। फिर 1956 से लेकर 1972 तक मणिपुर केंद्र शासित राज्य बना रहा। जानकार मानते हैं कि 1956 में केंद्र शासित राज्य घोषित किये जाने के बाद से ही मणिपुर में संघर्ष शुरू हो गया और बाद में ये संघर्ष हिंसक होने लगा। *अलग राज्य की मांग को लेकर शुरू हुआ उग्र आन्दोलन* इस बीच अलग राज्य की मांग को लेकर राजनीतिक और छात्र संगठनों का उग्र आन्दोलन भी चलता रहा। इस दौरान ‘यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट’ नाम का संगठन खड़ा किया जो आज़ादी की मांग करने लगा और समाजवादी विचारधारा की वकालत करने लगा। 1971 की जंग के बाद मणिपुर के तत्कालीन मुख्यमंत्री आर के दोरेंद्रो सिंह ने कई अलगाववादी नेताओं से आत्मसमर्पण करवा लिया, जबकि कुछ बाग़ी मैतेई अलगाववादी नेताओं को गिरफ़्तार भी किया गया। इनमें अलगाववादी नेता एन बिशेश्वर सिंह भी शामिल थे जिन्हें त्रिपुरा की जेल में बंद किया गया था जहां उनकी मुलाक़ात पहले से बंद माओवादी नेताओं से हुई। जून 1975 में जेल से छूटने के बाद 16 अन्य मेतेई अलगावादी नेताओं के साथ बिशेश्वर सिंह ने तिब्बत के ल्हासा में शरण ले ली। हथियार चलाने और छापामार युद्ध का प्रशिक्षण लेने के बाद वो अपने सहयोगियों के साथ मणिपुर लौटे। मणिपुर आने के बाद बिशेश्वर ने ‘जनमुक्ति छापामार सेना’ का गठन कर लिया और ‘अलगाववादी संघर्ष ने फिर ज़ोर पकड़ लिया। *सत्तर-अस्सी के दशक में चरम पर थी हिंसा* सत्तर के दशक के अंत में और अस्सी के दशक की शुरुआत में कई और अलगाववादी संगठन पनप उठे जिनमें ‘पीपल्स रेवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ़ कांगलेइपाक’, ‘कांगलेइपाक कम्युनिस्ट पार्टी’ (केसीपी), ‘पोइरेई लिबरेशन फ्रंट’, ‘मेतेई स्टेट कमिटी’ और ‘यूनाइटेड पीपल्स रेवोल्युशनरी सोशलिस्ट पार्टी’ शामिल थे। इसी दौरान नागा चरमपंथियों ने भी सक्रिय होना शुरू कर दिया। मणिपुर ने नगा बहुल चंदेल, उखरुल, तामेंगलांग और सेनापति ज़िलों में आइज़ैक मुईवाह के नेतृत्व वाले संगठन ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड’ ने एक के बाद एक हिंसक वारदातों को अंजाम देना शुरू किया। 1993 में मई और सितम्बर महीनों के बीच ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड’ के हथियारबंद चरमपंथियों के हमलों में सुरक्षा बलों के 120 के आसपास जवान और अधिकारी मारे गए थे। *अलगावादी गतिविधियों और हिंसा के लिए बना विशेष कानून* आर्म्ड फोर्सेज़ स्पेशल पॉवर्स एक्ट यानी सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, 1958 का ही क़ानून है जो पूर्वोत्तर राज्यों में अलगावादी गतिविधियों और हिंसा को रोकने के लिए बनाया गया था। ये क़ानून तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री बिष्णु राम मेढ़ी की पहल पर 1958 में ही लाया गया था। शुरू में तो ये क़ानून मणिपुर के नगा बहुल उखरुल ज़िले में ही प्रभावी था, मगर 18 सितंबर 1981 को इसे पूरे मणिपुर में लागू कर दिया गया। हालंकि मार्च 2023 में इसे मणिपुर, असम और नागालैंड के कई इलाकों से हटा लिया गया था। *हालिया हिंसा का कारण* मणिपुर में हाल में भड़की हिंसा का प्रमुख कारण मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग रहा है। मैतेई समुदाय की यह मांग नई नहीं है, बल्कि 10 साल से अधिक समय से वह ये मांग कर रहे हैं। इस बार हिंसा तब भड़की जब मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए चार हफ्ते के अंदर सिफारिश केंद्रीय आदिवासी मंत्रालय को भेजे। इस संबंध में याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि मैतेई समुदाय को 1949 में मणिपुर के भारत में शामिल होने से पहले अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल था। उनका कहना है कि अपनी रिति-रिवाज, संस्कृति, जमीन और बोली को बचाए रखने के लिए उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा वापस मिलना चाहिए। मणिपुल हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद राज्यभर में प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया। राज्य के सभी 10 जिलों में छात्र संगठनों के आह्वान पर हजारों लोग ‘ट्राइबल सॉलिडेरिटी मार्च’ के नाम पर सड़कों पर उतर आए। इन प्रदर्शनों के जरिए मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने का विरोध किया गया।
दिल्ली में रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति लगाने को लेकर क्यों खड़ा हुआ विवाद? जानें पूरा मामला
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* दिल्ली के सदर बाजार इलाके में शाही ईदगाह के पास डीडीए की जमीन पर रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति लगाने को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। मूर्ति लगाने का काम फिलहाल रोक दिया गया है और इलाके में भारी पुलिस बल तैनात किया गया है। ईदगाह पार्क में स्थानीय मुस्लिम समुदाय रानी झांसी की प्रतिमा लगाने का विरोध कर रहे हैं। मस्जिद समिति की ओर से दावा किया गया था कि यह जमीन वक्फ बोर्ड की है। *मूर्ति को लेकर क्यों शुरू हुआ विवाद* बता दें कि दिल्ली सरकार के तहत आने वाले लोक निर्माण विभाग ने 2016-17 में एक प्रोजेक्ट शुरू किया, जिसमें तीस हजारी से फिमिस्तान होते हुए पंचकुइया रोड की ओर भारी जाम को देखते हुए सिग्नल फ्री रोड बनाने का प्रोजेक्ट भी था। इसी के तहत देशबंधु गुप्ता रोड पर रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति को शिफ्ट किया जाना था। डीडीए ने प्रतिमा को लगाने के लिए शाही ईदगाह के पास अपनी जमीन दे दी, लेकिन ईदगाह समिति इसके खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट चली गई। कोर्ट ने अपने फैसले में इसे सरकारी जमीन करार दिया। *कोर्ट ने इस मामले में और क्या कहा?* मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि ईदगाह कमेटी का यह दावा करना कानून के मुताबिक नहीं है। कोर्ट ने कहा, ‘ एक तरफ हम महिला सशक्तीकरण की बात कर रहे हैं। वह सभी धार्मिक सीमाओं से परे एक राष्ट्रीय गौरव हैं और आप यह धार्मिक आधार पर कर रहे हैं। इतिहास को सांप्रदायिक राजनीति के आधार पर न बांटें। ऐसा प्रतीत होता है कि इसका उद्देश्य अदालत के माध्यम से सांप्रदायिक राजनीति करना है। रानी लक्ष्मीबाई का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। अगर जमीन आपकी थी, तो आपको स्वेच्छा से आगे आना चाहिए था।’ *कोर्ट की फटकार के बाद वापस ली याचिका* हाईकोर्ट की फटकार के बाद शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी की तरफ से याचिकाकर्ता ने बिना किसी शर्त के माफी मांगते हुए अपनी याचिका वापस लेने की बात कही। कोर्ट ने इसके लिए कमेटी को माफीनामा दाखिल करने का निर्देश भी दिया। *भड़काऊ मैसेज?* इससे पहले गुरुवार को ईदगाह मस्जिद में उस वक्त लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई जब ये मैसेज वायरल किया गया कि ईदगाह की जमीन पर रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति लगाई जा रही है। पुलिस ने फौरन मैसेज जारी करके चेतावनी दी कि सदर बाजार इलाके में किसी को भी प्रदर्शन की इजाजत नहीं दी गई है। स्थानीय निवासियों ने बताया कि कुछ लोगों ने मस्जिद के अंदर नारेबाजी की और फरार हो गए। जो मैसेज वायरल हुआ था, उसमें लिखा था, ‘मुसलमानों अब भी नहीं उठे तो कब उठोगे? अब भी नहीं लड़े तो कब लड़ोगे? अभी भी नहीं बोले तो तुम्हें इजाज़त लेनी पड़ेगी नमाज़ के लिए? शर्म करो क्या मुंह दिखाओगे खुदा को?’ *दिल्ली पुलिस ने फौरन एक्शन लिया* मैसेज में दावा किया गया कि ईदगाह के सामने वाले पार्क की जमीन पर कब्जा करके मुसलमानों का हक मारा जा रहा है। इस मैसेज के वायरल होने के बाद ईदगाह के अंदर कुछ लोगों ने नारेबाजी शुरू कर दी। देखते ही देखते भीड़ जमा होने लगी जिसके बाद पुलिस ने फौरन एक्शन लिया और अपनी तरफ से मैसेज सर्कुलेट किया कि किसी भी तरह के प्रदर्शन की इजाजत नहीं दी गई है और ऐसा करने पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है। गुरुवार की शाम को भारी मात्रा में पुलिस बल भी तैनात हो गया और हालात को काबू से बाहर नहीं होने दिया गया।
खरीफ-रबी की फसलों में अंतर भी जानते हैं राहुल गांधी..', हरियाणा के रेवाड़ी में MSP पर अमित शाह ने किया जमकर हमला

हरियाणा के रेवाड़ी में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने एक जनसभा में कांग्रेस और राहुल गांधी पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने अग्निवीर योजना को लेकर जनता में भ्रम फैलाने का काम किया है। अमित शाह ने हरियाणा के जवानों की वीरता की सराहना करते हुए कहा कि देश की सीमाएं आज सुरक्षित हैं और जम्मू-कश्मीर में शांति है, जिसका श्रेय हरियाणा के वीर जवानों के बलिदान और साहस को जाता है।

अमित शाह ने कांग्रेस के शासनकाल को कट, कमीशन, और करप्शन से भरा हुआ बताया और कहा कि उस समय डीलर, दलाल और दामादों का दबदबा था। लेकिन भाजपा सरकार में न डीलर बचे, न दलाल, और दामाद का तो सवाल ही नहीं है। राहुल गांधी पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि राहुल को किसी ने समझाया कि MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का जिक्र करने से वोट मिलेंगे, लेकिन क्या उन्हें इसका फुलफॉर्म भी पता है, रबी और खरीफ फसलों का अंतर पता है ? उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वो MSP के नाम पर किसानों को गुमराह कर रही है, जबकि हरियाणा की भाजपा सरकार 24 फसलों को MSP पर खरीद रही है। उन्होंने कांग्रेस से पूछा कि उनकी कोई सरकार 24 फसलें MSP पर खरीद रही है या नहीं।

राहुल गांधी के विदेशी धरती पर दिए गए बयानों पर भी अमित शाह ने आलोचना की। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी विदेश जाकर कहते हैं कि कांग्रेस आरक्षण खत्म कर देगी। जबकि राहुल लोकसभा चुनाव के समय भाजपा पर आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाते थे। अमित शाह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वन रैंक-वन पेंशन (OROP) योजना का जिक्र करते हुए कहा कि कांग्रेस 40 सालों तक इसे लागू नहीं कर पाई, जबकि मोदी सरकार ने इस मांग को पूरा किया। उन्होंने यह भी बताया कि एक महीने पहले OROP का तीसरा वर्जन भी लागू किया जा चुका है। शाह ने सभा में भाजपा सरकार की उपलब्धियों को गिनाते हुए कांग्रेस पर भ्रष्टाचार और गलत राजनीति का आरोप लगाया।

देश की रक्षा समिति में राहुल गांधी को अहम भूमिका, कंगना को संचार में स्थान, पढ़िए, और किस नेता को मिली अहम जिम्मेवारी

संसद ने 26 सितंबर को अपनी स्थायी समितियों का पुनर्गठन करते हुए 24 प्रमुख समितियों का गठन किया, जिनमें विभिन्न दलों के प्रमुख नेताओं को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ दी गई हैं। लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी को रक्षा मामलों की समिति में सदस्य के रूप में शामिल किया गया है। इस समिति की अध्यक्षता भाजपा सांसद राधा मोहन सिंह करेंगे। वहीं, भाजपा सांसद निशिकांत दुबे को संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी समिति की अध्यक्षता दी गई है, जिसमें अभिनेत्री से नेता बनीं कंगना रनौत भी सदस्य के रूप में शामिल हैं, जो उनकी पहली संसदीय भूमिका है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को महिला, शिक्षा, युवा और खेल मामलों की समिति का अध्यक्ष बनाया गया है, जबकि समाजवादी पार्टी के नेता राम गोपाल यादव को स्वास्थ्य मामलों की समिति का प्रमुख नियुक्त किया गया है। कांग्रेस सांसद शशि थरूर विदेश मामलों की समिति का नेतृत्व करेंगे, जिसमें भाजपा सांसद और अभिनेता अरुण गोविल भी सदस्य होंगे। भाजपा के अन्य नेता राधा मोहन दास अग्रवाल को गृह मामलों की समिति का अध्यक्ष और भर्तृहरि महताब को वित्त मामलों की समिति का प्रमुख बनाया गया है। भाजपा के सीएम रमेश को रेलवे समिति की अध्यक्षता और पूर्व मंत्री अनुराग ठाकुर को कोयला, खान और इस्पात मामलों की समिति की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

सूची में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी का नाम नहीं है। साथ ही, तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) और जनता दल (यू) के नेताओं के साथ भाजपा के महाराष्ट्र में सहयोगी दल शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को भी प्रमुख समितियों में भूमिकाएँ दी गई हैं। एनसीपी के सुनील तटकरे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस समिति के प्रमुख होंगे, जबकि शिवसेना के श्रीरंग अप्पा बारणे ऊर्जा समिति का नेतृत्व करेंगे। जेडी(यू) के संजय झा परिवहन, पर्यटन और संस्कृति समिति के अध्यक्ष होंगे और टीडीपी के मगुंटा श्रीनिवासुलु रेड्डी आवास और शहरी मामलों की समिति की देखरेख करेंगे।

कांग्रेस नेता चरणजीत सिंह चन्नी और सप्तगिरि उलाका क्रमशः कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण तथा ग्रामीण विकास और पंचायती राज समिति के प्रमुख नियुक्त किए गए हैं। डीएमके नेता तिरुचि शिवा और के. कनिमोझी उद्योग, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण समितियों का नेतृत्व करेंगे। पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता राजीव प्रताप रूडी को जल संसाधन समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। स्थायी समितियां केंद्रीय मंत्रालयों की कार्यवाही पर नज़र रखती हैं और विभिन्न मुद्दों पर सरकार को सुझाव देती हैं। इनके कार्यों में बजटीय आवंटनों की समीक्षा करना, संसद में पेश विधेयकों की जांच करना और नीतिगत सिफारिशें देना शामिल है।